बाइबल की किताब नंबर 39—मलाकी
लेखक: मलाकी
लिखने की जगह: यरूशलेम
लिखना पूरा हुआ: सा.यु.पू. 443 के बाद
मलाकी कौन था? उसके खानदान और उसकी ज़िंदगी के बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी गयी है। मगर उसने जिस तरह अपनी भविष्यवाणियाँ सुनायीं, उससे साफ ज़ाहिर होता है कि वह यहोवा की भक्ति करने और उसके नाम और शुद्ध उपासना की पैरवी करने में बहुत जोशीला था। उससे यह भी ज़ाहिर होता है कि उसे उन लोगों से बड़ी खुंदक थी, जो परमेश्वर के सेवक होने का दम भरते थे मगर असल में अपनी इच्छाओं के गुलाम थे। मूल इब्रानी भाषा में, मलाकी की किताब के चारों अध्यायों में यहोवा का नाम 48 बार आता है।
2 इब्रानी में उसका नाम मलाखी है, जिसका शायद मतलब है: “मेरा संदेशवाहक।” इब्रानी शास्त्र, सेप्टुआजेंट और किताबों के क्रम के मुताबिक मलाकी 12 छोटे नबियों की सूची में आखिरी नंबर पर आता है। प्राचीन यहूदी विद्वानों के मुताबिक मलाकी, भविष्यवक्ता हाग्गै और जकर्याह के बाद जीया था और नहेमायाह के ज़माने का था।
3 भविष्यवाणी की यह किताब कब लिखी गयी थी? यह किताब किसी राज्यपाल के प्रशासन के दौरान लिखी गयी थी। इससे पता चलता है कि यह वह समय था जब यहूदा की 70 साल की बदहाली खत्म हो चुकी थी और यरूशलेम की बहाली का दौर चल रहा था। (मला. 1:8) मगर वह राज्यपाल कौन था? मलाकी की किताब में मंदिर में होनेवाली सेवा का ज़िक्र किया गया है, मगर इसमें मंदिर के दोबारा बनाए जाने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। इसका मतलब है कि यह किताब राज्यपाल जरुब्बाबेल के प्रशासन के दौरान नहीं लिखी गयी होगी, जब मंदिर का निर्माण पूरा हुआ था, बल्कि उसके बाद ही लिखी गयी होगी। अब बाइबल में जरुब्बाबेल के अलावा, सिर्फ एक ही राज्यपाल का नाम आता है जिसने बहाली के उस दौर में प्रशासन किया था, और वह था नहेमायाह। तो क्या मलाकी की किताब, नहेमायाह के दिनों में लिखी गयी थी? मलाकी में यरूशलेम और उसकी शहरपनाह के बनाए जाने के बारे में कुछ नहीं लिखा है, तो इससे इतना तो पता चलता है कि यह किताब नहेमायाह के प्रशासन के शुरूआती सालों में नहीं लिखी गयी थी। मगर मलाकी इस बारे में बहुत कुछ बताता है कि कैसे याजक अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर रहे थे। मलाकी की यह बात उस वक्त से मिलती-जुलती है, जब नहेमायाह बाबुल से दूसरी बार यरूशलेम आया था। यह सा.यु.पू. 443 के बाद ही हो सकता है, क्योंकि जब नहेमायाह पहली बार यरूशलेम आया था तो राजा अर्तक्षत्र ने अपनी हुकूमत के 32वें साल, यानी सा.यु.पू. 443 में उसे वापस बाबुल बुला लिया था। तो मलाकी की किताब इस साल के बाद ही लिखी गयी होगी। (मला. 2:1; नहे. 13:6) मलाकी और नहेमायाह की किताबों में मिलती-जुलती आयतें भी इस बात की ओर इशारा करती हैं कि यह किताब उस वक्त लिखी गयी थी।—मला. 2:4-8, 11, 12—नहे. 13:11, 15, 23-26; मला. 3:8-10—नहे. 13:10-12.
4 यहूदी हमेशा से मलाकी की किताब को सच्चा मानते आए हैं। मसीही यूनानी शास्त्र में इस किताब से हवाले दिए गए हैं और इनमें से कई हवाले मलाकी की भविष्यवाणियों की पूर्ति के बारे में बताते हैं। इन हवालों से साबित होता है कि यह किताब ईश्वर-प्रेरित है और उस इब्रानी शास्त्र के संग्रह का हिस्सा है जिसे मसीही कलीसिया कबूल करती थी।—मला. 1:2, 3—रोमि. 9:13; मला. 3:1—मत्ती 11:10, लूका 1:76 और लूका 7:27; मला. 4:5, 6—मत्ती 11:14 और मत्ती 17:10-13, मर. 9:11-13 और लूका 1:17.
5 मलाकी की भविष्यवाणी से पता चलता है कि भविष्यवक्ता हाग्गै और जकर्याह ने मंदिर के निर्माण के वक्त यहूदियों में उपासना के लिए जो जोश और उत्साह भरा था, वह ठंडा पड़ चुका था। याजक लापरवाह और घमंडी बन गए थे और खुद को दूसरों से ज़्यादा धर्मी समझने लगे थे। मंदिर की सेवाएँ एक मज़ाक बनकर रह गयी थीं। इस्राएली दशमांश देने और भेंट चढ़ाने में ढीले हो गए थे, क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि परमेश्वर को उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है। जरुब्बाबेल से उन्होंने जो उम्मीदें बाँध रखी थीं, वे पूरी नहीं हुईं और कुछ लोगों को आशा थी कि मसीहा उस वक्त आएगा, मगर वह भी पूरी नहीं हुई। यहूदियों की आध्यात्मिक हालत बहुत खराब थी। ऐसे में उन्हें किस बात से हौसला और उम्मीद मिलती? उन्हें अपनी असली हालत का पता कैसे चलता और धार्मिकता की तरफ लौटने के लिए वे कैसे उभारे जाते? मलाकी की भविष्यवाणी इन सवालों के जवाब देती है।
6 मलाकी की लेखन-शैली के बारे में देखें तो वह अपनी बातों को बिलकुल सीधे और दमदार तरीके से कहता है। पहले तो वह लोगों के सामने अपना मुद्दा पेश करता है, और फिर उनके एतराज़ों का जवाब देता है। आखिर में, वह अपना मुद्दा फिर दोहराता है। इससे उसके तर्क में और भी वज़न और जान आ जाती है। वह लच्छेदार शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि अपनी बातें साफ-साफ कहता है और ज़बरदस्त तर्क पेश करता है।
क्यों फायदेमंद है
13 मलाकी किताब की मदद से हम यहोवा परमेश्वर के कभी न बदलनेवाले सिद्धांतों, उसके प्रेम और दया को समझ सकते हैं। यह किताब शुरूआत में ही यहोवा के उस महान प्रेम पर ज़ोर देती है, जो उसने अपनी प्रजा “याकूब” के लिए दिखाया था। उसने याकूब की संतानों से कहा: “मैं यहोवा बदलता नहीं।” उनके घोर पापों के बावजूद यहोवा उनकी ओर फिरने के लिए तैयार था, बशर्ते वे उसकी ओर फिरते। वाकई, वह कितना दयालु परमेश्वर है! (मला. 1:2; 3:6, 7; रोमि. 11:28; निर्ग. 34:6, 7) मलाकी के ज़रिए यहोवा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि एक याजक को चाहिए कि वह अपने होंठों से “ज्ञान की रक्षा करे।” आज जिन्हें परमेश्वर का वचन सिखाने की ज़िम्मेदारी दी जाती है, उन्हें भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे सिखाते वक्त हमेशा सही ज्ञान दें। (मला. 2:7; फिलि. 1:9-11. याकूब 3:1 से तुलना कीजिए।) यहोवा पाखंडियों को हरगिज़ बरदाश्त नहीं करता, जो लोगों से कहते हैं कि “जो कोई बुरा करता है, वह यहोवा की दृष्टि में अच्छा लगता है।” कोई भी इंसान महान राजा यहोवा को भेंट चढ़ाने का ढोंग करके उसकी आँखों में धूल नहीं झोंक सकता। (मला. 2:17; 1:14; कुलु. 3:23, 24) यहोवा उन सभों के खिलाफ तुरंत साक्षी देगा जो उसके धर्मी कानूनों और सिद्धांतों को तोड़ते हैं। बुरे काम करके कोई भी इंसान सज़ा से बच नहीं सकता क्योंकि यहोवा ऐसे लोगों का न्याय ज़रूर करेगा। (मला. 3:5; इब्रा. 10:30, 31) धर्मी लोग पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा उनके कामों को याद करेगा और उन्हें इनाम देगा। उन्हें यीशु की तरह मूसा की व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि इसमें बतायी बहुत-सी बातें यीशु में पूरी हुई थीं।—मला. 3:16; 4:4; लूका 24:44, 45.
14 ईश्वर-प्रेरित इब्रानी शास्त्र की आखिरी किताब होने की वजह से मलाकी आनेवाले मसीहा से जुड़ी घटनाओं के बारे में बताता है। यह मसीहा चार सौ साल बाद प्रकट हुआ, जिस वजह से मसीही यूनानी शास्त्र लिखा गया। मसीहा से जुड़ी एक घटना के बारे में, मलाकी 3:1 में सेनाओं के यहोवा ने कहा: “देखो, मैं अपने दूत को भेजता हूं, और वह मार्ग को मेरे आगे सुधारेगा।” ईश्वर-प्रेरणा से बुज़ुर्ग जकरयाह ने बताया कि यह भविष्यवाणी उसके बेटे, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले पर पूरी हुई है। (लूका 1:76) यीशु मसीह ने भी इस बात को पुख्ता किया, साथ ही उसने यह भी कहा: “यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले से कोई बड़ा नहीं हुआ; पर जो स्वर्ग के राज्य में छोटे से छोटा है वह उस से बड़ा है।” जैसे मलाकी ने भविष्यवाणी की थी, यूहन्ना को ‘मार्ग तैयार करने’ के लिए भेजा गया था, इसलिए वह उन लोगों में से नहीं था जिनके साथ यीशु ने आगे चलकर राज्य की वाचा बाँधी थी।—मत्ती 11:7-12; लूका 7:27, 28; 22:28-30.
15 फिर मलाकी 4:5, 6 में यहोवा ने वादा किया: “देखो, . . . मैं तुम्हारे पास एलिय्याह नबी को भेजूंगा।” यह “एलिय्याह” कौन था? यीशु ने और जकरयाह को प्रकट होनेवाले स्वर्गदूत ने इन आयतों को यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले पर लागू किया और बताया कि वही “सब कुछ सुधारेगा” और “[यहोवा] के लिये एक योग्य प्रजा तैयार करे[गा]” ताकि यह प्रजा मसीहा को कबूल कर सके। लेकिन मलाकी यह भी कहता है कि “यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन” के आने से पहले “एलिय्याह” आएगा। इसका मतलब है कि भविष्य में न्याय के दिन के आने से पहले मलाकी 4:5, 6 की भविष्यवाणी की एक और पूर्ति होनी बाकी है।—मत्ती 17:11; लूका 1:17; मत्ती 11:14; मर. 9:12.
16 आनेवाले उस दिन के बारे में सेनाओं का यहोवा कहता है: ‘उदयाचल से लेकर अस्ताचल तक जाति जाति में मेरा नाम महान् होगा। क्योंकि मैं तो महाराजा हूं और मेरा नाम अन्यजातियों में भययोग्य है।’ वाकई वह दिन भययोग्य होगा! क्योंकि ‘वह धधकते भट्ठे का सा दिन होगा, जब सब अभिमानी और सब दुराचारी लोग अनाज की खूंटी बन जाएंगे।’ इसके बावजूद, यहोवा के नाम का भय माननेवाले खुश होंगे क्योंकि उनके लिए “धर्म का सूर्य उदय होगा, और उसकी किरणों के द्वारा [वे] चंगे हो [जाएँगे]।” यह बात उस खुशहाल समय की तरफ इशारा करती है, जब आज्ञा माननेवाले इंसानों को आध्यात्मिक, भावात्मक, मानसिक और शारीरिक रूप से, जी हाँ, पूरी तरह से चंगा किया जाएगा। (प्रका. 21:3, 4) उस खूबसूरत और शानदार दिन की भविष्यवाणी करते हुए मलाकी हमें बढ़ावा देता है कि हम यहोवा के भवन में उत्तम-से-उत्तम आत्मिक बलिदान चढ़ाएँ: “सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूं कि नहीं।”—मला. 1:11, 14, NHT; 4:1, 2; 3:10.
17 हालाँकि ‘नबियों की किताबों’ की यह आखिरी किताब ‘पृथ्वी के सत्यानाश’ होने की लगातार चेतावनी देती है, मगर यह उम्मीद रखने के साथ-साथ खुशियाँ मनाने की वजह भी देती है। जैसे कि यहोवा के इन शब्दों से पता चलता है जो उसने अपने लोगों से कहे थे: “सारी जातियां तुम को धन्य कहेंगी, क्योंकि तुम्हारा देश मनोहर देश होगा।”—4:6; 3:12.