प्राचीनों परमेश्वर के झुंड के साथ कोमलता से पेश आओ!
“जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही हम ने भी तुम्हारे बीच में रहकर कोमलता दिखाई है।”—१ थिस्सलुनीकियों २:७.
१. यहोवा का प्रत्येक वफ़ादार गवाह क्यों सुरक्षित महसूस कर सकता है?
यहोवा महान् चरवाहा हैं। वह अपने भेड़-समान सेवकों के लिए अत्याधिक प्रबंध करते हैं और “धर्म के मार्गों में” अपने पवित्र नाम के निमित्त उनकी अगुवाई करते हैं। इसलिए, जो उनकी इच्छानुसार कर रहे हैं, उन्हें कोई हानि से डरने की ज़रूरत नहीं और वे सान्त्वना के लिए अपने संवेदनशील परमेश्वर की ओर अपेक्षा से देख सकते हैं। सचमुच, यहोवा के हर वफ़ादार गवाह को परमेश्वर की प्रेममय देख-रेख में सुरक्षित महसूस करने के लिए ठोस कारण है।—भजन २३:१-४.
२. परमेश्वर की महिमा के प्रतिबिम्ब के रूप में, यीशु कौनसे गुण दर्शाते हैं?
२ यीशु मसीह “[परमेश्वर] की महिमा का प्रकाश, और उसके तत्व की छाप है।” (इब्रानियों १:१-४) इसलिए, उत्तम चरवाहा, यीशु भी प्रेम और संवेदना दर्शाता है। (यूहन्ना १०:१४, १५) उदाहरण के लिए, एक अवसर पर “उस ने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।”—मरकुस ६:३४.
३. (अ) यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह की तरह, मसीही उप-चरवाहों को कौनसे गुण दर्शाने चाहिए? (ब) प्रेरित पौलुस ने अध्यक्षों को कौनसी सलाह और चेतावनी दी?
३ सभी मसीहियों को ‘परमेश्वर के सदृश्य बनना चाहिए और जैसे मसीह ने उन से प्रेम किया वैसे प्रेम में चलना’ चाहिए। (इफिसियों ५:१, २) तो उन्हें प्रेममय और संवेदनशील होना चाहिए। यह परमेश्वर के झुंड के उप-चरवाहों के बारे में ख़ास तौर से सच होना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने कहा: “अपनी और पूरे झुंड की चौकसी करो; जिस में पवित्र आत्मा ने तुम्हें अध्यक्ष ठहराया है; कि तुम परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली करो, जिसे उस ने अपने पुत्र के लोहू से मोल लिया है। मैं जानता हूँ कि मेरे जाने के बाद अत्याचारी भेड़िए तुम में आएँगे, जो झुंड के साथ कोमलता से पेश नहीं आएँगे। तुम्हारे ही बीच में से भी ऐसे ऐसे मनुष्य उठेंगे, जो चेलों को अपने पीछे खींच लेने को टेढ़ी मेढ़ी बातें कहेंगे।”—प्रेरितों २०:२८-३०, न्यू.व.
४. (अ) कुछ समय बाद, प्रेरितों २०:२९, ३० में दी गयी पौलुस की चेतावनी के अनुरूप क्या हुआ? (ब) अब कौनसे सवालों पर विचार करना उपयुक्त है?
४ कुछ समय बाद, धर्मत्यागी “फाड़नेवाले (अत्याचारी, न्यू.व.) भेड़िए” प्रगट हो गए और वे ‘झुंड के साथ कोमलता से पेश नहीं आए।’ लेकिन हम कितने खुश हैं कि यहोवा के गवाहों में प्राचीन ऐसा अत्याचार नहीं करते! फिर भी, संगी विश्वासी इन आत्मा द्वारा नियुक्त अध्यक्षों की ओर से किस प्रकार का बरताव पाने की आशा रख सकते हैं? और ऐसे नियुक्त लोग यहोवा की भेड़ों के लिए संवेदनशील परवाह किस तरह दिखा सकते हैं?
झुंड पर अधिकार न जताओ
५. (अ) अक्सर सांसारिक नेता अपनी प्रजा से किस तरह बरताव करते हैं? (ब) यीशु ने किस प्रकार दिखाया कि उसके अनुयायियों के बीच अत्याचार के लिए कोई स्थान नहीं है?
५ हम सही-सही अपेक्षा कर सकते हैं कि मसीही प्राचीन एक संवेदनशील रीति से हम से बरताव करेंगे। वे सांसारिक हाकिमों की तरह नहीं हैं, जो अक्सर अपनी प्रजा पर प्रभुता करते हैं। मिसाल के तौर पर, यह रिपोर्ट किया जाता है कि फ्रैंक (उत्तर-पश्चिमी यूरोप) के राजा, शार्लमेन ने (जिस ने सामान्य युग के वर्ष ७६८-८१४ तक राज्य किया) “सैक्सन (उत्तर जर्मन) लोगों को मृत्युदण्ड की धमकी देकर बपतिस्मा लेने के लिए बाध्य किया, लेंट के दिनों को भंग करनेवालों को कड़ी से कड़ी सज़ा से दण्डित किया, और हर कहीं समझाने-बुझाने के स्थान ज़बरदस्ती इस्तेमाल की।” (विलियम जोन्स द्वारा लिखित, द हिस्टरी ऑफ द क्रिस्चियन चर्च) यीशु के अनुयायियों के बीच अत्याचार के लिए कोई स्थान नहीं है, इसलिए कि उसने कहा: “तुम जानते हो कि अन्यजातियों के हाकिम उन पर प्रभुता करते हैं, और जो बड़े हैं, वे उन पर अधिकार जताते हैं। ऐसा तुम्हारे बीच नहीं होना चाहिए, परन्तु जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे, वह तुम्हारा सेवक बने, और जो तुम में प्रधान होना चाहे, वह तुम्हारा दास बने। जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि उस की सेवा ठहल की जाए, परन्तु इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे; और बहुतों की छुड़ौती के लिए अपने प्राण दे।”—मत्ती २०:२५-२८, एन अमेरिकन् ट्रांस्लेशन.
६. (अ) प्राचीनों के संबंध में, कौनसे आधारभूत तत्त्व स्पष्ट दिखायी देते हैं? (ब) मण्डली को प्राचीनों से किस बात की अपेक्षा रखने के लिए कारण है, और इन आदमियों ने अपने आप का कैसा विचार करना चाहिए?
६ एक मसीही पुरुष ‘जो अध्यक्ष होना चाहता है, वह भले काम की इच्छा करता है।’ (१ तीमुथियुस ३:१) जब हम इस पर और यीशु की अभी-अभी उल्लेख की गयी सलाह पर ग़ौर करते हैं, तब ये आधारभूत तत्त्व स्पष्ट होते हैं: (१) मसीही प्राचीनों को दूसरों पर अत्याचार नहीं करना चाहिए; (२) यीशु के अनुयायियों के बीच जो लोग ज़िम्मेदारी उठाते हैं, उन्हें उनके स्वामी नहीं बल्कि उनके दास होना चाहिए; और (३) अध्यक्ष के पद की इच्छा करनेवाले आदमियों को इसे एक “भला काम” समझना चाहिए, न कि कोई उच्च पद। (नीतिवचन २५:२७; १ कुरिन्थियों १:३१) “प्राचीन” शब्द किसी भी आदमी को यहोवा के अन्य उपासकों के ऊपर उन्नत नहीं करता। उलटा, मण्डली को यह अपेक्षा रखने के लिए ठोस कारण है कि सभी प्राचीन आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़, अनुभवी, और विनम्र आदमी हों, जो पवित्र सेवा में अगुवाई लेते हैं। सचमुच, प्राचीनों ने अपने आप को यहोवा परमेश्वर, यीशु मसीह और संगी मसीहियों के विनम्र दास समझना चाहिए।—रोमियों १२:११; गलतियों ५:१३; कुलुस्सियों ३:२४.
७. (अ) दूसरों से बरताव करने में प्राचीनों को २ कुरिन्थियों १:२४ का अनुप्रयोग किस तरह करना चाहिए? (ब) शासी वर्ग से प्राप्त आदेशों के बारे में प्राचीनों को क्या करना चाहिए?
७ दूसरों के लिए विनम्रता से सेवा करने से, स्वाभाविक रूप से किसी प्राचीन को दूसरों पर ‘प्रभुता करने’ की कोशिश करने में एक रोक उत्पन्न होती है। और यह कितना अच्छा है कि हमारे अध्यक्ष पौलुस के जैसे अभिवृत्ति दर्शाते हैं! उन्होंने कुरिन्थ के मसीहियों से कहा: ‘हम तुम्हारे विश्वास के मालिक नहीं, बल्कि तुम्हारे आनन्द में सहायक हैं।’ (२ कुरिन्थियों १:२४) तदनुसार, जो लोग प्रेममय अध्यक्षता करते हैं, वे संगी विश्वासियों पर अनावश्यक मानवीय नियमों का भार नहीं डालते। उलटा, यहोवा के गवाहों के बीच अध्यक्ष धर्मशास्त्रीय सिद्धान्तों से नियंत्रित होते हैं और वे कृपालु, मददपूर्ण सेवा करते हैं। और यहोवा के गवाहों के शासी वर्ग से प्राप्त आदेशों का अनुपालन तुरन्त करने के द्वारा, वे परमेश्वर के झुंड के लिए गहरी परवाह भी दिखाते हैं।—प्रेरितों के काम, अध्याय १५.
८. अपने संगी विश्वासियों के प्रति पौलुस की अभिवृत्ति क्या थी, और इस से २०वीं सदी के प्राचीनों को कैसे प्रभावित होना चाहिए?
८ चूँकि पौलुस को परमेश्वर के झुंड के लिए संवेदनशील परवाह थी, वह थिस्सलुनीके के मसीहियों से कह सका: “जिस तरह माता अपने बालकों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही हम ने भी तुम्हारे बीच में रहकर कोमलता दिखायी है। और वैसे ही हम तुम्हारी लालसा करते हुए, न केवल परमेश्वर का सुसमाचार, पर अपना अपना प्राण भी तुम्हें देने को तैयार थे, इसलिए कि तुम हमारे प्यारे हो गए थे।” (१ थिस्सलुनीकियों २:७, ८) पौलुस ने एक दूध पिलानेवाली माँ के जैसे बरताव किया, जो अपने बच्चों से इतनी गहराई से प्रेम करती है, कि वह उनके हितों को अपने हित के आगे रखती है और उनके लिए संवेदनशील परवाह करती है। इस बात से २०वीं सदी के प्राचीनों को परमेश्वर के झुंड के साथ कोमलता से बरताव करने के लिए किस तरह प्रेरित होना चाहिए!
राहत और ताज़गी के स्रोत
९. यहोवा के आधुनिक गवाहों की कौनसी परिस्थितियाँ यशायाह ३२:१, २ में पूर्वबतलायी गयी थीं?
९ यीशु मसीह के राज्य शासन के इस दिन की ओर संकेत करते हुए, भविष्यवक्ता यशायाह ने पूर्वबतलाया कि एक राजा ‘धर्म से राज्य करता,’ और “राजकुमार” ‘न्याय की हुकूमत करते।’ इसलिए, मौजूदा ईश्वर-शासित संघटन में प्राचीन स्थापित स्वर्गीय राज्य के हितों की देखभाल कर रहे हैं—सचमुच ही राजसी सेवा! इन ज़िम्मेवार आदमियों पर यशायाह के अगले भविष्यसूचक शब्द लागू होते हैं: “हर एक मानो आँधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।”—यशायाह ३२:१, २.
१०. यहोवा के गवाहों में हर एक प्राचीन को किस बात का स्रोत होना चाहिए?
१० ईसाईजगत् के अत्याचारी अगुवों के असमान, यहोवा के गवाहों में जो प्राचीन हैं, वे राहत और ताज़गी के स्रोत होते हैं। बुज़ुर्ग आदमियों की समितियों के रूप में, वे यहोवा के लोगों में शान्ति, प्रशान्ति, और सुरक्षा को आगे बढ़ाते हैं। व्यक्तिगत रूप से, परमेश्वर के झुंड के साथ कोमलता से बरताव करने के द्वारा, हर प्राचीन इस उत्तम अवस्था में सहायक हो सकता है।
न्याय और धार्मिकता के साथ
११. (अ) कौनसी आम अवस्था जो पहली-सदी के मसीहियों के बीच विद्यमान थी, आज यहोवा के गवाहों की अधिकांश मण्डलियों में प्रचलित है? (ब) मण्डली के प्रति अध्यक्षों को कौनसी ज़िम्मेदारी है, और क्यों?
११ हालाँकि पहली सदी की कुछेक मसीही मण्डलियों में समस्याएँ उत्पन्न हुईं, उनकी आम अवस्था शांति, एकता और हर्ष की थी। (१ कुरिन्थियों १:१०-१२; ३:५-९; इफिसियों १:२; याकूब २:१-९; ३:२-१२; ४:११, १२; १ यूहन्ना १:३, ४) परमेश्वर के आशीर्वाद, मसीह की अगुवाई और नियुक्त अध्यक्षों के विश्वसनीय काम की वजह से आज यहोवा के गवाहों की मण्डलियों में भी एक उत्तम आध्यात्मिक अवस्था विद्यमान है। मण्डली की शांति, एकता, और हर्ष को निश्चित करने के लिए, ये पुरुष ईश्वरीय सहायता माँगते हैं और अध्यवसाय से परमेश्वर के संघटन को नैतिक और आध्यात्मिक रूप से स्वच्छ रखने की कोशिश करते हैं। (यशायाह ५२:११) एक अस्वच्छ संघटन कभी शांतिपूर्ण और हर्षमय नहीं हो सकता, और निश्चय ही इस पर परमेश्वर का अनुमोदन और आशीर्वाद नहीं होता। उनकी “आँखें तो इतनी शुद्ध हैं कि” वह ‘बुराई को देख ही नहीं सकते।’ (हबक्कूक १:१३) तो फिर, अन्य बातों के अलावा, एक सीधे, धर्मशास्त्रीय तरीक़े से न्यायिक मामलों की देख-रेख करने के लिए प्राचीनों से अपेक्षा रखी जाती है। लेकिन ऐसे मामलों से निपटते समय कुछ तत्त्व क्या हैं, जिन्हें याद रखना ज़रूरी है?
१२. हालाँकि यह आवश्क नहीं कि प्राचीन पूर्णतया व्यक्तिगत मामलों की जाँच-पड़ताल करें, जिन में बाइबल नियमों या सिद्धान्तों का गम्भीर उल्लंघन शामिल नहीं, गलतियों ६:१ को ध्यान में रखते हुए क्या किया जाना चाहिए?
१२ एक बात तो यह है कि निजी मतभेद से संबद्ध मामलों में, व्यक्तियों के लिए शायद यह सम्भव होगा कि वे अकेले में मामले को निपट लें। (मत्ती १८:१५-१७) चूँकि प्राचीन हमारे ‘विश्वास के मालिक’ नहीं, उन्हें पूर्णतया व्यक्तिगत मामलों की जाँच-पड़ताल करने की कोई ज़रूरत नहीं, जिन में बाइबल नियमों या सिद्धान्तों का गम्भीर उल्लंघन शामिल नहीं। स्वाभाविक रूप से, यदि ऐसा कोई सबूत हो कि ‘किसी मनुष्य ने जानने से भी पहले कोई ग़लत क़दम उठाया है,’ तो जिन्हें आध्यात्मिक योग्यताएँ हैं, उन्हें “नम्रता की आत्मा के साथ ऐसे को सँभालने की कोशिश करनी चाहिए।”—गलतियों ६:१, न्यू.व.
१३. धर्मशास्त्रों में किस तरह दिखाया गया है कि प्राचीनों को सुनी-सुनाई के बल पर नहीं, बल्कि अपराध के सबूत के बल पर ही कार्रवाई करनी चाहिए?
१३ प्राचीनों को हमेशा निष्पक्ष रहकर, “न्याय से हुकूमत” करनी चाहिए। इसलिए उन्हें अपराध के सबूत के बल पर ही कार्रवाई करनी चाहिए, न सिर्फ़ सुनी-सुनाई बातों के बल पर। पौलुस ने उपदेश दिया: “कोई दोष किसी प्राचीन पर लगाया जाए तो बिना दो या तीन गवाहों के उस को न सुन।” (१ तीमुथियुस ५:१९) यहोवा के स्तरों के अनुसार, पुराने इस्राएल में जिस व्यक्ति पर मृत्युदंड अपराध का आरोप लगाया गया था, उसे ‘एक ही साक्षी से नहीं, किन्तु दो या तीन मनुष्यों की साक्षी से’ मार डालना था। इसके अतिरिक्त, प्रत्यक्षतः अभियुक्त को अपने अभियोक्ताओं के आमने-सामने आने का मौक़ा दिया जाता था, और अगर सबूत पर्याप्त था, तो ‘उसे मार डालने के लिए सब से पहले साक्षियों के हाथ उस पर उठने थे।’—व्यवस्थाविवरण १७:६, ७.
१४. (अ) दियुत्रिफेस ने ग़लत रूप से क्या करने की कोशिश की? (ब) जब प्राचीन न्यायिक मामलों से निपट रहे होते हैं, तब परमेश्वर उन से कैसी अपेक्षा रखते हैं?
१४ न्यायिक कार्रवाई करने के लिए एक ठोस धर्मशास्त्रीय आधार होना आवश्यक है। हम कितने आनन्दित हो सकते हैं कि मण्डली के अध्यक्ष सामान्य युग की पहली सदी के घमण्डी दियुत्रिफेस के जैसे नहीं हैं! उसने ग़लत रूप से उन लोगों को “मण्डली से निकाल” देने की कोशिश की, जो सफ़र करनेवाले भाइयों को सत्कारशील रूप से ग्रहण करना चाहते थे। प्रेरित यूहन्ना ने इसे और अन्य अपकर्मों को अमहत्त्वपूर्ण नहीं समझा, लेकिन चेतावनी दी: “सो जब मैं आऊँगा, तो उसके कामों की, जो वह कर रहा है, सुधि दिलाऊँगा।” (३ यूहन्ना ९, १०) इस प्रकार, आज की न्यायिक कमेटी को यक़ीन होना चाहिए कि वे जाति-बहिष्कार की जो भी कार्रवाई करेंगे, उसके लिए एक बाइबलीय आधार है।a अवश्य, परमेश्वर मसीही प्राचीनों से अपेक्षा रखते हैं कि वे दूसरों से व्यवहार करने में न्याय्य हों। सचमुच, जो लोग यहोवा के पार्थिव संघटन के मामलों की देख-रेख करते हैं, उन्हें “गुणी, और परमेश्वर का भय माननेवाले, और सच्चे” होना ही चाहिए।—निर्गमन १८:२१.
१५. न्यायिक सुनवाइयों में प्रार्थना की भूमिका क्या होनी चाहिए?
१५ हर एक मसीही न्यायिक कमेटी को हार्दिक प्रार्थना में यहोवा की मदद माँगनी चाहिए। किसी भाई या बहन के साथ मिलते समय, जिस पर एक गम्भीर अपराध का आरोप लगाया गया हो, सभा को प्रार्थना के साथ आरंभ किया जाना चाहिए। दरअसल, विचार-विमर्श के दौरान किसी भी समय अगर परमेश्वर की सहायता की विशेष ज़रूरत उत्पन्न हो, तो प्रार्थना करना उचित होगा।—याकूब ५:१३-१८.
१६. प्राचीनों ने किस ढंग से न्यायिक सुनवाइयों को संचालित करना चाहिए, और क्यों?
१६ प्राचीन जानते हैं कि जिस संगी विश्वासी पर अपराध का आरोप लगाया गया है, वह परमेश्वर के झुंड की “भेड़” है और उसके साथ कोमलता से पेश आना चाहिए। (यहेज़केल ३४:७-१४ से तुलना करें।) वास्तविक भेड़ों को कोमल देख-रेख की ज़रूरत होती है, इसलिए कि वे भीरु प्राणी हैं जो रक्षा के लिए अपने चरवाहे पर निर्भर हैं। तो, स्थानीय मण्डली की प्रतीकात्मक भेड़ों का क्या? बेशक वे महान् चरवाहा, यहोवा परमेश्वर, और उत्तम चरवाहा, यीशु मसीह की देख-रेख में सुरक्षित महसूस करते हैं। लेकिन झुंड के उप-चरवाहों को ऐसे तरीक़ों से कार्य करना चाहिए, जो यहोवा के भेड़-समान सेवकों की भीतरी शांति और सुरक्षा की भावना के बढ़ने में सहायक होते हैं। अगर आप एक मसीही उप-चरवाहा हैं, तो फिर, क्या आपके भाई-बहन आपकी देख-रेख में सुरक्षित और शांतिमय महसूस करते हैं? यह सच है कि प्राचीनों को बाइबल के नियमों और सिद्धान्तों का दृढ़तापूर्वक समर्थन करना चाहिए। लेकिन धर्मशास्त्रीय रूप से उन से अपेक्षित है कि वे भेड़ों से एक प्रेममय रीति से बरताव करें और एक शान्त, सुव्यवस्थित, कृपालु और विचारशील ढंग से न्यायिक सुनवाइयों को संचालित करें।
१७. ख़ास तौर से न्यायिक सुनवाइयों के दौरान, प्राचीनों को कौनसी धर्मशास्त्रीय बातें ध्यान में रखनी चाहिए?
१७ अपरिपूर्ण होने की वजह से, हम जो कहते हैं, उस में “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं।” (याकूब ३:२) हम में से हर एक को परमेश्वर की दया और मसीह के “प्रायश्चित्तिक बलिदान” की ज़रूरत है। (१ यूहन्ना १:८-२:२; भजन १३०:३) इसीलिए एक मसीही उप-चरवाहे को अपने बारे में एक विनम्र नज़रिया रखना चाहिए। उसने यीशु के शब्द भी याद रखना चाहिए: “और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो।” (लूका ६:३१) इस सलाह का अनुप्रयोग ख़ास तौर से न्यायिक सुनवाइयों के दौरान होना चाहिए। आध्यात्मिक रूप से योग्य आदमियों को ‘नम्रता की आत्मा के साथ’ एक पथभ्रष्ट मसीही को ‘सँभालने की कोशिश करनी चाहिए और अपनी भी चौकसी रखनी चाहिए कि वे भी परीक्षा में न पड़े।’—गलतियों ६:१, न्यू.व.; १ कुरिन्थियों १०:१२.
१८. (अ) क्या होगा अगर न्यायिक सुनवाइयों के दौरान प्राचीनों ने दुसरों से कठोर व्यवहार किया? (ब) मरकुस ९:४२ का विचार करते हुए, प्राचीनों और अन्यों को क्या नहीं करने के विषय में सावधानी बरतनी चाहिए?
१८ अगर न्यायिक सुनवाइयों के दौरान प्राचीन एक दूसरे से कठोर व्यवहार करते, तो यह ऐसे व्यक्तियों के लिए हानिकर साबित हो सकता है। लेकिन अगर जज़बाती या जिस्मानी हानि नहीं भी हुई, फिर भी घोर आध्यात्मिक हानि पहुँच सकती है, और अध्यक्षों की योग्यताओं पर भी शक किया जा सकता है। (याकूब २:१३ से तुलना करें।) इसलिए, न्यायिक सुनवाइयों के दौरान, और अन्य सभी अवसरों पर, प्राचीनों को कृपालु होना चाहिए और दूसरों को ठोकर खिलाने के विषय में चौकस रहना चाहिए। अवश्य, सभी मसीहियों को इस संबंध में सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि यीशु ने कहा: “पर जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं, किसी को ठोकर खिलाए तो उसके लिए भला यह है कि एक बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाए और वह समुद्र में डाल दिया जाए।” (मरकुस ९:४२) चक्की का ऊपरी हिस्सा इतना बड़ा हो सकता था कि उसे चलाने के लिए सामान्यतः एक जानवर के बल की ज़रूरत होती थी, और गले में ऐसा भार लटकाए जाने तथा समुन्दर में फेंके जाने पर ऐसा कोई भी न था जो बच सकता था। तो फिर, निश्चय ही, एक प्राचीन को ठोकर न खिलाने के विषय में सावधान रहना चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप उसे और इस प्रकार ठोकर खिलाए गए किसी दूसरे व्यक्ति को स्थायी आध्यात्मिक हानि पहुँच सकती है।—फिलिप्पियों १:९-११.
संवेदनशील परवाह दर्शाते रहें
१९. पतरस ने संगी प्राचीनों को क्या सलाह दी, और इसके प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाने तथा उनके भविष्य के बीच क्या संबंध है?
१९ प्रेरित पतरस ने दिखाया कि संगी अध्यक्षों को झुंड की रखवाली किस तरह करनी थी, जब उसने लिखा: “परमेश्वर के उस झुंड की, जो तुम्हारे बीच में है, रखवाली करो; और यह दबाव से नहीं, परन्तु परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आनन्द से, और नीच कमाई के लिए नहीं, पर मन लगा कर। और जो लोग तुम्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार न जताओ, बरन झुंड के लिए आदर्श बनो। और जब प्रधान रखवाला प्रगट होगा, तो तुम्हें महिमा का मुकुट दिया जाएगा, जो मुरझाने का नहीं।” (१ पतरस ५:२-४) ऐसी सलाह पर अमल करने और परमेश्वर के झुंड के लिए संवेदनशील परवाह दर्शाने के द्वारा ही अभिषिक्त अध्यक्ष अमर आत्मिक जीव के रूप में अपना स्वर्गीय प्रतिफल पा सकेंगे और पार्थिव आशा रखनेवाले प्राचीन आनेवाले विश्वव्याप्त परादीस में अनन्त जीवन प्राप्त कर सकेंगे।
२०. (अ) मसीही उप-चरवाहों को अपने संगी विश्वासियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए? (ब) प्रेममय प्राचीनों की अनुकरणीय सेवा और संवेदनशील परवाह के बारे में आप कैसे महसूस करते हैं?
२० यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह दोनों प्रेममय, संवेदनशील चरवाहे हैं। तो हालाँकि मसीही उप-चरवाहे ईश्वरीय स्तरों से दृढ़तापूर्वक लगे रहते हैं, फिर भी उन्हें अपने भेड़-समान संगी विश्वासियों से व्यवहार करने में प्रेम और संवेदना अवश्य दर्शाना चाहिए। निश्चय ही, यहोवा के सभी वफ़ादार गवाह ऐसे आत्म-त्यागी प्राचीनों की अनुकरणीय सेवा की गहरी क़दर करते हैं, जो कि अपनी अमानत की रखवाली करते हैं और परमेश्वर के झुंड के साथ कोमलता से पेश आते हैं। वह क़दर, और साथ ही उचित आदर, उन लोगों के प्रति आज्ञाकारी रहने के द्वारा दर्शायी जा सकती है, जो हमारे बीच अगुवाई कर रहे हैं।
[फुटनोट]
a अगर कोई व्यक्ति मानता है कि उसे जाति-बहिष्कृत करने के निर्णय में कोई गम्भीर ग़लती की गयी हो, तो वह उस निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए अपील कर सकता है।
आपका क्या विचार है?
◻ यीशु मसीह ने किस प्रकार दिखाया कि उसके अनुयायियों के बीच अत्याचार के लिए कोई जगह नहीं?
◻ प्राचीनों को क्या करना चाहिए जब शासी वर्ग से आदेश मिलते हैं?
◻ यशायाह ३२:१, २ के अनुसार, प्राचीनों को किन बातों के स्रोत बनना चाहिए?
◻ धर्मशास्त्र किस तरह दिखाते हैं कि प्राचीनों को सिर्फ़ सनी-सुनाई के बल पर ही कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?
◻ मसीही उप-चरवाहों ने झुंड के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए?
[पेज 20 पर तसवीरें]
जब न्यायिक कमेटी एक संगी विश्वासी के साथ मिलती है, तब हार्दिक प्रार्थना अत्यावश्यक है