अध्याय ११
ये अन्तिम दिन हैं!
१. संसार की स्थिति के बारे में विचार करने पर अनेक लोग उलझन में क्यों पड़ जाते हैं, लेकिन विश्व घटनाओं की विश्वसनीय व्याख्या कहाँ मिल सकती है?
हमारा अशान्त संसार इस स्थिति पर कैसे पहुँचा? हम कहाँ जा रहे हैं? क्या आपने कभी ऐसे प्रश्न पूछे हैं? अनेक लोग जब संसार की स्थिति को देखते हैं तो वे उलझन में पड़ जाते हैं। युद्ध, बीमारी, और अपराध जैसी वास्तविकताएँ लोगों को इस सोच में डाल देती हैं कि भविष्य में क्या है। राजनेताओं से शायद ही कोई आशा है। लेकिन, इन कष्टकर दिनों की विश्वसनीय व्याख्या परमेश्वर की ओर से उसके वचन में उपलब्ध है। बाइबल यह देखने में विश्वसनीय रूप से हमारी मदद करती है कि हम समय की धारा में कहाँ हैं। यह दिखाती है कि हम वर्तमान रीति-व्यवस्था के “अन्तिम दिनों” में हैं।—२ तीमुथियुस ३:१.
२. यीशु के शिष्यों ने उससे कौन-सा प्रश्न पूछा, और उसने कैसे जवाब दिया?
२ उदाहरण के लिए, यीशु के शिष्यों द्वारा उठाए गए कुछ प्रश्नों का उसने जो उत्तर दिया उस पर विचार कीजिए। यीशु के मरने से तीन दिन पहले, उन्होंने उससे पूछा: “तेरी उपस्थिति का और रीति-व्यवस्था की समाप्ति का क्या चिन्ह होगा?”a (मत्ती २४:३, NW) जवाब में यीशु ने विशिष्ट विश्व घटनाओं और परिस्थितियों के बारे में बताया जो स्पष्ट रूप से दिखातीं कि यह भक्तिहीन व्यवस्था अपने अन्तिम दिनों में प्रवेश कर चुकी है।
३. जब यीशु ने शासन शुरू किया तब पृथ्वी पर परिस्थितियाँ क्यों बदतर हो गयीं?
३ जैसा पिछले अध्याय में दिखाया गया है, बाइबल कालानुक्रम इस निष्कर्ष की ओर ले जाता है कि परमेश्वर के राज्य ने शासन करना शुरू कर दिया है। लेकिन यह कैसे हो सकता है? स्थिति बदतर हो गयी है, बेहतर नहीं। असल में, यह एक सुस्पष्ट संकेत है कि परमेश्वर के राज्य ने शासन करना शुरू कर दिया है। ऐसा क्यों? भजन ११०:२ हमें सूचित करता है कि कुछ समय के लिए यीशु “अपने शत्रुओं के बीच में” शासन करता। वास्तव में, स्वर्गीय राजा के रूप में उसका पहला कार्य था शैतान और उसके पिशाच स्वर्गदूतों को पृथ्वी के प्रतिवेश में फेंकना। (प्रकाशितवाक्य १२:९) प्रभाव क्या था? वही जो प्रकाशितवाक्य १२:१२ में पूर्वबताया गया था: “हे पृथ्वी, और समुद्र, तुम पर हाय! क्योंकि शैतान बड़े क्रोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है; क्योंकि जानता है, कि उसका थोड़ा ही समय और बाकी है।” अभी हम ‘थोड़े ही बाकी समय’ में जी रहे हैं।
४. अन्तिम दिनों की कुछ विशेषताएँ क्या हैं, और वे किस बात का संकेत करती हैं? (बक्स देखिए।)
४ इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि जब यीशु से पूछा गया कि उसकी उपस्थिति का और रीति-व्यवस्था की समाप्ति का चिन्ह क्या होगा तो उसका जवाब गंभीर था। उस चिन्ह के विभिन्न भाग पृष्ठ १०२ पर दिए गए बक्स में बताए गए हैं। जैसा आप देख सकते हैं, मसीही प्रेरित पौलुस, पतरस, और यूहन्ना अन्तिम दिनों के बारे में हमें और अधिक जानकारी देते हैं। यह सच है कि उस चिन्ह की और अन्तिम दिनों की अधिकांश विशेषताओं में कष्टकर परिस्थितियाँ अंतर्ग्रस्त हैं। फिर भी, इन भविष्यवाणियों की पूर्ति से हमें विश्वस्त होना चाहिए कि यह दुष्ट व्यवस्था अपने अन्त के निकट है। आइए अन्तिम दिनों की कुछ मुख्य विशेषताओं की बारीक़ी से जाँच करें।
अन्तिम दिनों की विशेषताएँ
५, ६. युद्ध और अकाल से सम्बन्धित भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी हो रही हैं?
५ “जाति पर जाति, और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा।” (मत्ती २४:७; प्रकाशितवाक्य ६:४) लेखक अरनॆस्ट हॆमिन्गवे ने प्रथम विश्वयुद्ध को “पृथ्वी पर कभी हुआ सबसे विशाल, हिंसक, कुप्रबन्धित हत्याकाण्ड” कहा। पुस्तक १९१४-१९१९—क्रूसिबल में संसार (अंग्रेज़ी) के अनुसार, यह “युद्ध की नयी पहुँच थी, मानवजाति के अनुभव में पहला पूर्ण युद्ध था। इसकी अवधि, तीव्रता, और पैमाना इतना था जो कि पहले कभी ज्ञात नहीं था अथवा सामान्यतः उसकी अपेक्षा नहीं की गयी थी।” उसके बाद आया द्वितीय विश्व युद्ध, जो प्रथम विश्व युद्ध से कहीं ज़्यादा विनाशकारी साबित हुआ। “बीसवीं शताब्दी पर,” इतिहास का प्रोफ़ॆसर ह्यू थॉमस कहता है, “मशीन गन, टैंक, बी-५२ [बमवर्षक विमान], परमाणु बम और अंततः मिसाइल का प्रभुत्व रहा है। यह किसी भी अन्य युग के युद्धों से अधिक ख़ूनी और विनाशक युद्धों से चिन्हित हुई है।” यह सच है कि शीत युद्ध की समाप्ति के बाद निरस्त्रीकरण के बारे में काफ़ी कुछ कहा गया था। फिर भी, एक रिपोर्ट अनुमान लगाती है कि प्रस्तावित कटौतियों के बाद लगभग १०,००० से २०,००० परमाणु युद्ध-शस्त्र बचेंगे—जो कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रयोग की गयी अग्नि-शक्ति के ९०० गुना से भी अधिक है।
६ “अकाल पड़ेंगे।” (मत्ती २४:७; प्रकाशितवाक्य ६:५, ६, ८) वर्ष १९१४ से कम से कम २० प्रमुख अकाल पड़ चुके हैं। पीड़ित क्षेत्रों में इथियोपिया, कम्बोडिया, चीन, नाइजीरिया, बंगलादेश, बुरूण्डी, भारत, यूनान, रुवाण्डा, रूस, सुदान, और सोमालिया सम्मिलित हैं। लेकिन अकाल हमेशा भोजन की कमी के कारण नहीं पड़ता। “हाल के दशकों में संसार की खाद्य सप्लाई उसकी जनसंख्या से ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी है,” कृषि-वैज्ञानिकों और अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने निष्कर्ष निकाला। “लेकिन क्योंकि कम से कम ८० करोड़ लोग अत्यन्त ग़रीबी में हैं, . . . वे जीर्ण कुपोषण से बाहर निकलने के लिए उस बहुतायत में से पर्याप्त मात्रा ख़रीदने में असमर्थ हैं।” दूसरे मामलों में राजनैतिक हस्तक्षेप सम्मिलित है। टोरोन्टो विश्वविद्यालय का डॉ. अबदलग़लील एलमकी ऐसे दो उदाहरण देता है जहाँ हज़ारों लोग भूखे मर रहे थे जबकि उनके देश बड़ी मात्रा में खाद्य निर्यात कर रहे थे। ऐसा प्रतीत हुआ कि सरकारें अपने नागरिकों को भोजन देने से कहीं ज़्यादा अपने युद्धों में लगाने के लिए विदेशी मुद्रा जुटाने के बारे में चिन्तित थीं। डॉ. एलमकी का निष्कर्ष? अकाल अकसर “वितरण और सरकार की नीति का मामला” होता है।
७. मरियों के बारे में आज तथ्य क्या हैं?
७ “मरियां।” (लूका २१:११; प्रकाशितवाक्य ६:८) वर्ष १९१८-१९ के स्पैनिश फ्लू ने कम से कम २.१ करोड़ लोगों की जान ली। “इतिहास-भर में संसार ने कभी ऐसे हत्यारे के द्वारा बरबादी नहीं देखी थी जो इतनी जल्दी इतने सारे मनुष्यों को निगल गया हो,” ए. ए. होएलिन्ग बड़ी महामारी (अंग्रेज़ी) में लिखता है। आज, मरियों का प्रकोप जारी है। हर साल, कैंसर से ५० लाख लोगों की जान जाती है, अतिसार के रोग ३० लाख से अधिक शिशुओं और बच्चों की जान लेते हैं, और तपेदिक ३० लाख लोगों की मृत्यु का कारण बनती है। श्वास-संक्रामण, मुख्यतः निमोनिया से प्रति वर्ष पाँच साल से कम उम्र के ३५ लाख बच्चों की मृत्यु होती है। और २.५ अरब की विस्मयकारी संख्या—संसार की आधी जनसंख्या—ऐसी बीमारियों से पीड़ित है जो अपर्याप्त या संदूषित पानी और अच्छे सफ़ाई-प्रबन्ध के अभाव के कारण होती हैं। एड्स इस बात के अतिरिक्त अनुस्मारक के रूप में मँडरा रहा है कि मनुष्य, अपनी महत्त्वपूर्ण चिकित्सीय उपलब्धियों के बावजूद मरियों को दूर करने में अयोग्य है।
८. लोग कैसे “लोभी” साबित हो रहे हैं?
८ ‘मनुष्य लोभी होंगे।’ (२ तीमुथियुस ३:२) संसार-भर के देशों में, ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों को अधिक धन की अतृप्य भूख है। “सफलता” अकसर लोगों के वेतन से मापी जाती है, और “उपलब्धि” इससे कि व्यक्ति के पास कितना है। “भौतिकवाद अमरीकी समाज में एक प्रेरक शक्ति . . . और अन्य प्रमुख बाज़ारों में भी अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होती शक्ति बना रहेगा,” एक विज्ञापन एजॆन्सी की उपाध्यक्षा ने कहा। क्या यह वहाँ हो रहा है जहाँ आप रहते हैं?
९. माता-पिता के प्रति पूर्वकथित अवज्ञाकारिता के बारे में क्या कहा जा सकता है?
९ “माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले।” (२ तीमुथियुस ३:२) वर्तमान-समय के माता-पिताओं, शिक्षकों, और दूसरों के पास आँखों देखा सबूत है कि अनेक बच्चे अनादरपूर्ण और अवज्ञाकारी हैं। इनमें से कुछ युवा या तो अपने माता-पिता के दुर्व्यवहार की प्रतिक्रिया में ऐसा कर रहे हैं अथवा उनकी नक़ल कर रहे हैं। बढ़ती संख्या में बच्चे स्कूल, कानून, धर्म, और अपने माता-पिता में विश्वास खो रहे हैं और उनके विरुद्ध विद्रोह कर रहे हैं। एक अनुभवी स्कूल शिक्षक कहता है, “ऐसा प्रतीत होता है कि एक प्रवृत्ति के रूप में उनको किसी भी बात के लिए बहुत ही कम आदर है।” लेकिन, ख़ुशी की बात है कि परमेश्वर का भय माननेवाले अनेक बच्चों का आचरण अनुकरणीय है।
१०, ११. इस बात का क्या प्रमाण है कि लोग कठोर हैं और उनमें स्वाभाविक स्नेह की कमी है?
१० “कठोर।” (२ तीमुथियुस ३:३) “कठोर” अनुवादित यूनानी शब्द का अर्थ है ‘बनैला, जंगली, जिसमें मानव सहानुभूति और भावना का अभाव हो।’ यह आज के अनेक हिंसा करनेवालों पर कितना ठीक बैठता है! जीवन इतना तनावपूर्ण है, संत्रास से इतना रक्तरंजित है कि दैनिक समाचार को पढ़ने के लिए व्यक्ति को अपना मन कड़ा करना पड़ता है,” एक संपादकीय लेख ने कहा। एक आवासीय सुरक्षा-पुलिस ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि अनेक युवा अपने कार्यों के परिणामों से आँखें मूँद लेते हैं। उसने कहा: “यह भावना है कि, ‘मैं कल के बारे में नहीं जानता। जो मुझे चाहिए वह मैं आज ही ले लूँगा।’”
११ “स्वाभाविक स्नेहरहित।” (२ तीमुथियुस ३:३, NW) इस पद का अनुवाद एक यूनानी शब्द से किया गया है जिसका अर्थ है “निर्दय, अमानुषिक” और यह “स्वाभाविक, पारिवारिक स्नेह की कमी” को सूचित करता है। (नए नियम धर्म-विज्ञान का नया अंतरराष्ट्रीय कोश, अंग्रेज़ी) जी हाँ, स्नेह अकसर उसी वातावरण में नहीं होता जहाँ उसे पनपना चाहिए—घर। यह परेशान करनेवाली बात है कि विवाह-साथी, बच्चों, और यहाँ तक कि वृद्ध माता-पिता के साथ अपमानजनक व्यवहार की रिपोर्टें सामान्य हो गयी हैं। एक अनुसंधान दल ने टिप्पणी की: “मानव हिंसा—चाहे वह एक थप्पड़ हो या धक्का, छुरा भोंकना हो या गोली मारना—हमारे समाज में किसी दूसरे क्षेत्र से अधिक पारिवारिक दायरे में होती है।”
१२. यह क्यों कहा जा सकता है कि लोग ईश्वरीय भक्ति का मात्र भेष धरते हैं?
१२ ‘ईश्वरीय भक्ति का भेष तो धरना, पर उसकी शक्ति को न मानना।’ (२ तीमुथियुस ३:५) बाइबल में लोगों को बेहतर बनाने की शक्ति है। (इफिसियों ४:२२-२४) फिर भी, अनेक लोग आज अपने धर्म को एक परदे के रूप में प्रयोग करते हैं जिसके पीछे वे ऐसे अधर्मी कार्य करते हैं जो परमेश्वर को अप्रसन्न करते हैं। झूठ, चोरी, और लैंगिक दुराचरण को धार्मिक नेता अकसर नज़रअंदाज़ करते हैं। अनेक धर्म प्रेम का प्रचार करते हैं लेकिन युद्ध का समर्थन करते हैं। “सर्वोच्च सृष्टिकर्ता के नाम पर,” इंडिया टुडे (अंग्रेज़ी) पत्रिका का एक संपादकीय लेख कहता है, “मनुष्यों ने अपने संगी मनुष्यों के विरुद्ध अति घृणास्पद क्रूरताएँ की हैं।” असल में, हाल के समय के दो सबसे खूनी संघर्ष—प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध—मसीहीजगत के केंद्र में शुरू हुए।
१३. इस बात का क्या प्रमाण है कि पृथ्वी को बिगाड़ा जा रहा है?
१३ ‘पृथ्वी को बिगाड़ना।’ (प्रकाशितवाक्य ११:१८) संसार-भर से १०४ नोबॆल पुरस्कार विजेताओं सहित १,६०० से अधिक वैज्ञानिकों ने संबद्ध वैज्ञानिक संघ (यू.सी.एस.) द्वारा जारी की गयी एक चेतावनी का समर्थन किया, जिसने कहा: “मनुष्य और प्रकृति में टक्कर होनेवाली है। . . . कुछ ही दशकों के अन्दर ख़तरों को रोकने का अवसर हाथ से निकल जाएगा।” रिपोर्ट ने कहा कि मनुष्य के जीवन-घातक अभ्यास “शायद संसार को इतना बदल दें कि वह जीवन को उस ढंग से क़ायम रखने में समर्थ नहीं होगा जिसे हम जानते हैं।” ओज़ोन घटाव, जल प्रदूषण, बन-कटाई, भूमि-उत्पादकता की क्षति, और अनेक जन्तु एवं पादप जातियों के विलोपन का उल्लेख उन गंभीर समस्याओं के रूप में किया गया जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यू.सी.एस. ने कहा, “जीवन के परस्पर-निर्भर ताने-बाने के साथ हमारे छेड़-छाड़ करने के व्यापक प्रभाव हो सकते हैं, जिसमें जैविक तंत्रों का नष्ट होना सम्मिलित है जिनकी जटिलता हम ठीक से नहीं समझते।”
१४. आप कैसे साबित कर सकते हैं कि मत्ती २४:१४ हमारे समय में पूरा हो रहा है?
१४ “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा।” (मत्ती २४:१४) यीशु ने पूर्वबताया कि राज्य के सुसमाचार का प्रचार पृथ्वी-भर में किया जाता, कि सब जातियों पर गवाही हो। ईश्वरीय मदद और आशिष से, लाखों यहोवा के साक्षी इस प्रचार और शिष्य-बनाने के कार्य में अरबों घंटे बिता रहे हैं। (मत्ती २८:१९, २०) जी हाँ, साक्षी यह समझते हैं कि यदि वे सुसमाचार की घोषणा न करें तो वे रक्तदोषी होंगे। (यहेजकेल ३:१८, १९) लेकिन वे आनन्दित हैं कि हर साल हज़ारों लोग आभार के साथ राज्य संदेश के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं और सच्चे मसीहियों, अर्थात् यहोवा के साक्षियों के रूप में अपनी स्थिति लेते हैं। यहोवा की सेवा करना और इस प्रकार परमेश्वर का ज्ञान फैलाना एक अनमोल विशेषाधिकार है। और पूरी पृथ्वी पर इस सुसमाचार का प्रचार हो जाने के बाद, इस दुष्ट व्यवस्था का अन्त आ जाएगा।
प्रमाण के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाइए
१५. वर्तमान दुष्ट व्यवस्था का अन्त कैसे होगा?
१५ इस व्यवस्था का अन्त कैसे होगा? बाइबल पूर्वबताती है कि इस संसार के राजनैतिक तत्त्व द्वारा ‘बड़े बाबुल,’ अर्थात् झूठे धर्म के विश्व साम्राज्य पर आक्रमण के साथ एक “भारी क्लेश” शुरू होगा। (मत्ती २४:२१; प्रकाशितवाक्य १७:५, १६) यीशु ने कहा कि इस समय के दौरान “सूर्य अन्धियारा हो जाएगा, और चान्द का प्रकाश जाता रहेगा, और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे और आकाश की शक्तियां हिलाई जाएंगी।” (मत्ती २४:२९) यह आक्षरिक दिव्य घटनाओं को सूचित कर सकता है। बात जो भी हो, धार्मिक जगत की जगमगाती हस्तियों का परदाफ़ाश होगा और उन्हें मिटाया जाएगा। तब शैतान, जिसे ‘मागोग देश का गोग’ कहा जाता है, यहोवा के लोगों पर चौतरफ़ा हमला करने के लिए भ्रष्ट मनुष्यों का प्रयोग करेगा। लेकिन शैतान सफल नहीं होगा, क्योंकि परमेश्वर उनका बचाव करेगा। (यहेजकेल ३८:१, २, १४-२३) “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई,” अर्थात् अरमगिदोन में “भारी क्लेश” अपने चरम पर पहुँचेगा। वह शैतान के पार्थिव संगठन का कोई भी अवशेष नहीं रहने देगा, अतः उत्तरजीवी मानवजाति के लिए अन्तहीन आशिषों के प्रवाह का मार्ग खोलेगा।—प्रकाशितवाक्य ७:९, १४; ११:१५; १६:१४, १६; २१:३, ४.
१६. हम कैसे जानते हैं कि अन्तिम दिनों की भविष्यसूचक विशेषताएँ हमारे समय पर लागू होती हैं?
१६ अपने आप में, अन्तिम दिनों का वर्णन करनेवाली भविष्यवाणियों की कुछ विशेषताएँ इतिहास की अन्य अवधियों पर लागू होती प्रतीत हो सकती हैं। लेकिन जोड़े जाने पर, भविष्यसूचक प्रमाण हमारे समय पर पूर्णतया ठीक बैठते हैं। उदाहरण के लिए: जिन रेखाओं से एक व्यक्ति की उँगलियों की छाप बनती है वे एक ऐसा नमूना बनाती हैं जो किसी दूसरे व्यक्ति का नहीं हो सकता। उसी प्रकार, अन्तिम दिनों का भी अपना ही चिन्हों या घटनाओं का नमूना है। ये एक ऐसी “उँगलियों की छाप” बनाते हैं जो किसी अन्य समय अवधि की नहीं हो सकती। इस बात के बाइबल संकेतों के साथ-साथ जाँचने पर कि परमेश्वर का स्वर्गीय राज्य अब शासन कर रहा है, प्रमाण यह निष्कर्ष निकालने का ठोस आधार देता है कि सचमुच ये अन्तिम दिन हैं। इसके अलावा, इस बात का स्पष्ट शास्त्रीय सबूत है कि वर्तमान दुष्ट व्यवस्था जल्द ही नष्ट की जाएगी।
१७. इस बात के ज्ञान से कि ये अन्तिम दिन हैं हमें क्या करने के लिए प्रेरित होना चाहिए?
१७ यह प्रमाण देखने पर कि ये अन्तिम दिन हैं आप कैसी प्रतिक्रिया दिखाएँगे? इस पर विचार कीजिए: यदि एक अत्यन्त विनाशक तूफ़ान आनेवाला है, तो हम बिना देर किए एहतियाती क़दम उठाते हैं। बाइबल इस वर्तमान व्यवस्था के बारे में जो पूर्वबताती है उससे हमें क्रियाशील बनने के लिए प्रेरित होना चाहिए। (मत्ती १६:१-३) हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि हम इस विश्व व्यवस्था के अन्तिम दिनों में जी रहे हैं। इससे हमें परमेश्वर का अनुग्रह पाने के लिए ज़रूरी कोई भी समंजन करने की प्रेरणा मिलनी चाहिए। (२ पतरस ३:३, १०-१२) उद्धार के कर्ता के रूप में अपना उल्लेख करते हुए, यीशु अत्यावश्यक आह्वान करता है: “सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त हो जाएं, और वह दिन तुम पर फन्दे की नाईं अचानक आ पड़े। क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहनेवालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आनेवाली घटनाओं से बचने, और मनुष्य के पुत्र के साम्हने खड़े होने के योग्य बनो।”—लूका २१:३४-३६.
[फुटनोट]
a कुछ बाइबलें “रीति-व्यवस्था” के बजाय “जगत” शब्द प्रयोग करती हैं। डब्ल्यू. ई. वाइन की एक्सपॉज़िट्री डिक्शनरी ऑफ़ न्यू टॆस्टामॆंट वर्डस् (अंग्रेज़ी) कहती है कि यूनानी शब्द एऑन “अनिश्चित कालावधि को, या समय को उस अवधि में होनेवाली बातों की दृष्टि से देखने को सूचित करता है।” पार्कहर्स्ट का नए नियम का यूनानी और अंग्रेज़ी शब्दकोश (पृष्ठ १७) इब्रानियों १:२ में एऑनस् (बहुवचन) के प्रयोग की चर्चा करते समय “यह रीति-व्यवस्था” अभिव्यक्ति को शामिल करता है। सो “रीति-व्यवस्था” अनुवाद मौलिक यूनानी पाठ के सामंजस्य में है।
अपने ज्ञान को जाँचिए
मसीह के शासन के आरंभ में संसार की घटनाओं के बारे में बाइबल ने क्या पूर्वबताया था?
अन्तिम दिनों की कुछ विशेषताएँ क्या हैं?
क्या बात आपको विश्वस्त करती है कि ये अन्तिम दिन हैं?
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अन्तिम दिनों की कुछ विशेषताएँ
• अपूर्व युद्ध।—मत्ती २४:७; प्रकाशितवाक्य ६:४.
• अकाल।—मत्ती २४:७; प्रकाशितवाक्य ६:५, ६, ८.
• मरियाँ।—लूका २१:११; प्रकाशितवाक्य ६:८.
• बढ़ती अराजकता।—मत्ती २४:१२.
• पृथ्वी का बिगाड़ा जाना।—प्रकाशितवाक्य ११:१८.
• भुईंडोल।—मत्ती २४:७.
• सामना करने के लिए कठिन समय।—२ तीमुथियुस ३:१.
• पैसे का अत्यधिक लोभ।—२ तीमुथियुस ३:२.
• माता-पिता की आज्ञा टालना।—२ तीमुथियुस ३:२.
• स्वाभाविक स्नेह की कमी।—२ तीमुथियुस ३:३.
• परमेश्वर को नहीं वरन् सुख-विलास को चाहना।—२ तीमुथियुस ३:४.
• आत्म-संयम की कमी।—२ तीमुथियुस ३:३.
• भले के बैरी।—२ तीमुथियुस ३:३.
• सन्निकट ख़तरे पर कोई ध्यान नहीं देना।—मत्ती २४:३९.
• हँसी ठट्ठा करनेवाले अन्तिम दिनों के सबूत को ठुकराते हैं।—२ पतरस ३:३, ४.
• परमेश्वर के राज्य का विश्वव्यापी प्रचार।—मत्ती २४:१४.
[पेज 101 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]