सदा-सर्वदा को मन में रखकर —परमेश्वर के साथ-साथ चलना
“हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।”—मीका ४:५.
१. यहोवा को ‘युग युग का राजा’ क्यों कहा जा सकता है?
यहोवा परमेश्वर की कोई शुरुआत नहीं है। उसे सही मायनों में “अति प्राचीन” कहा जाता है, क्योंकि उसका अस्तित्त्व अनादिकाल से है। (दानिय्येल ७:९, १३) यहोवा भविष्य में अनंतकाल तक जीवित रहेगा। केवल वही ‘युग युग का राजा’ है। (प्रकाशितवाक्य १०:६; १५:३) और उसकी नज़रों में, एक हज़ार साल ऐसे हैं जैसे “कल का दिन जो बीत गया, वा रात का एक पहर।”—भजन ९०:४.
२. (क) आज्ञा माननेवाले मनुष्यों के लिए परमेश्वर का उद्देश्य क्या है? (ख) हमारी सारी उम्मीदें या सारे मनसूबे किस बात पर होने चाहिए?
२ जबकि जीवनदाता अनंतकाल तक जीवित रहता है, तो वह पहले मानव जोड़े, आदम और हव्वा के सामने एक सुंदर बाग या परादीस में अंतहीन जीवन की आशा रख सकता था। लेकिन, आज्ञा न मानने के कारण आदम अनंत जीवन पर अपना अधिकार खो बैठा और उसने अपने वंशजों को विरासत में पाप और मौत दी। (रोमियों ५:१२) फिर भी, आदम की बगावत से परमेश्वर का मूल उद्देश्य असफल नहीं हुआ। यहोवा की यह मरज़ी है कि आज्ञा माननेवाले मनुष्य सदा-सर्वदा तक जीएँ और वह अपने उद्देश्य को हर हाल में पूरा करेगा। (यशायाह ५५:११) इसलिए, हमारी सारी उम्मीदें या सारे मनसूबे सदा-सर्वदा तक यहोवा की सेवा करने के होने चाहिए। जहाँ हमें दिन-रात ध्यान रहता है कि ‘यहोवा का दिन’ निकट है, वहीं यह याद रखना ज़रूरी है कि हमारा मकसद सदा-सर्वदा तक परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहना है।—२ पतरस ३:१२.
यहोवा अपने ठहराए हुए समय पर काम करता है
३. हम कैसे जानते हैं कि अपने उद्देश्य पूरे करने के लिए यहोवा का एक ‘ठहराया हुआ समय’ है?
३ परमेश्वर के साथ-साथ चलनेवालों के नाते हमें उसकी इच्छा पूरी करने में बड़ी दिलचस्पी है। हम जानते हैं कि यहोवा की तरह समय का हिसाब रखनेवाला और कोई नहीं है। और हमें पूरा भरोसा है कि वह अपने ठहराए हुए समय पर अपने उद्देश्य को पूरा करने में कभी नाकाम नहीं होता। मिसाल के तौर पर, “जब समय पूरा हुआ, तो परमेश्वर ने अपने पुत्र को भेजा।” (गलतियों ४:४) प्रेरित यूहन्ना से कहा गया कि उसे जिन भविष्यवाणियों के चिन्ह दिखाए गए वे “[ठहराए गए] समय” में पूरी होंगी। (प्रकाशितवाक्य १:१-३) “मरे हुओं का न्याय” करने का भी एक “समय” ठहराया गया है। (प्रकाशितवाक्य ११:१८) प्रेरित पौलुस ने १,९०० से ज़्यादा साल पहले प्रेरणा पाकर कहा कि परमेश्वर ने “एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा।”—प्रेरितों १७:३१.
४. हम कैसे जानते हैं कि यहोवा इस दुष्ट रीति-व्यवस्था का अंत करना चाहता है?
४ यहोवा इस दुष्ट रीति-व्यवस्था का अंत करेगा क्योंकि आज की दुनिया में उसके नाम की निंदा की जा रही है। दुष्ट लोग फूले-फले हैं। (भजन ९२:७) अपनी बोलचाल और अपने काम से वे परमेश्वर का अपमान करते हैं और जब उसके सेवकों की निंदा की जाती है और उन्हें सताया जाता है तो परमेश्वर को बहुत दुःख होता है। (जकर्याह २:८) इसमें हैरानी की कोई बात नहीं कि यहोवा ने शैतान के पूरे संगठन का जल्दी ही विनाश करने का फैसला सुनाया है! परमेश्वर ने यह ठान लिया है कि यह ठीक-ठीक कब होगा, और बाइबल की भविष्यवाणियों की पूर्ति से ज़ाहिर होता है कि अब हम “अन्त समय” में जी रहे हैं। (दानिय्येल १२:४) परमेश्वर जल्द ही उससे प्रेम करनेवालों की खातिर कदम उठाएगा।
५. लूत और हबक्कूक ने अपने चारों ओर के हालात को किस नज़र से देखा?
५ बीते हुए काल में यहोवा के सेवक दुष्टता का अंत देखने के लिए तरसते थे। धर्मी लूत “अधर्मियों के अशुद्ध चालचलन से बहुत दुखी था।” (२ पतरस २:७) अपने आस-पास के हालात से दुःखी होकर, भविष्यवक्ता हबक्कूक ने बिनती की: “हे यहोवा मैं कब तक तेरी दोहाई देता रहूंगा, और तू न सुनेगा? मैं कब तक तेरे सम्मुख ‘उपद्रव’, ‘उपद्रव’, चिल्लाता रहूंगा? क्या तू उद्धार नहीं करेगा? तू मुझे अनर्थ काम क्यों दिखाता है? और क्या कारण है कि तू उत्पात को देखता ही रहता है? मेरे साम्हने लूट-पाट और उपद्रव होते रहते हैं; और झगड़ा हुआ करता है और वादविवाद बढ़ता जाता है।”—हबक्कूक १:२, ३.
६. हबक्कूक की प्रार्थना के जवाब में यहोवा ने क्या कहा और इससे हम क्या सीख सकते हैं?
६ हबक्कूक को यहोवा ने जवाब दिया उसका एक अंश यूँ है: “इस दर्शन की बात नियत समय में पूरी होनेवाली है, वरन इसके पूरे होने का समय वेग से आता है; इस में धोखा न होगा। चाहे इस में विलम्ब भी हो, तौभी उसकी बाट जोहते रहना; क्योंकि वह निश्चय पूरी होगी और उस में देर न होगी।” (हबक्कूक २:३) परमेश्वर ने इस तरह ज़ाहिर कर दिया कि वह “नियत समय” पर कदम उठाएगा। शायद ऐसा लगे कि विलंब हो रहा है, मगर यहोवा अपना उद्देश्य ज़रूर पूरा करेगा—चाहे जो भी हो!—२ पतरस ३:९.
अथक जोश के साथ सेवा करना
७. हालाँकि यीशु सही-सही नहीं जानता था कि यहोवा का दिन कब आएगा, वह अपने काम को किस तरह करता रहा?
७ परमेश्वर के साथ-साथ जोश से चलने के लिए क्या यह ज़रूरी है कि हम हर घटना के लिए यहोवा के ठहराए गए समय को जानें? नहीं, ऐसा ज़रूरी नहीं है। कुछ मिसालों पर गौर कीजिए। यीशु को वह समय जानने की बड़ी दिलचस्पी थी जब परमेश्वर की इच्छा जैसी स्वर्ग में वैसी पृथ्वी पर भी पूरी होती है। वाकई, मसीह ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाया: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:९, १०) हालाँकि यीशु जानता था कि इस प्रार्थना का जवाब मिलेगा, मगर कब मिलेगा इसका सही समय उसे पता नहीं था। इस रीति-व्यवस्था के अंत के बारे में अपनी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणी में उसने कहा: “उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता; न स्वर्ग के दूत, और न पुत्र, परन्तु केवल पिता।” (मत्ती २४:३६) यीशु मसीह परमेश्वर के उद्देश्यों की पूर्ति में एक अहम भूमिका निभाता है, इसलिए अपने स्वर्गीय पिता के दुश्मनों को नाश करने में वह खुद शामिल होगा। लेकिन, जब यीशु पृथ्वी पर था तब वह खुद भी नहीं जानता था कि परमेश्वर कब कार्यवाही करेगा। क्या इसकी वज़ह से यहोवा की सेवा में उसका जोश कम हो गया? नहीं, बिलकुल नहीं! यीशु को जोश से मंदिर को साफ करते देखकर, “उसके चेलों को स्मरण आया कि लिखा है, ‘तेरे घर की धुन मुझे खा जाएगी’।” (यूहन्ना २:१७; भजन ६९:९) यीशु को जिस काम के लिए भेजा गया था उसमें उसने खुद को पूरी तरह लगा दिया और अथक जोश से उसे पूरा किया। उसने भी सदा-सर्वदा को मन में रखकर परमेश्वर की सेवा की।
८, ९. जब चेलों ने राज्य फेर देने की बात पूछी, तो उनसे क्या कहा गया और उन पर इसका क्या असर हुआ?
८ मसीह के चेलों के बारे में भी ऐसा ही था। यीशु स्वर्ग जाने से कुछ ही समय पहले उनसे मिला। वृत्तांत बताता है: “उन्हों ने इकट्ठे होकर उस से पूछा, कि हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?” अपने स्वामी की तरह वे भी राज्य के आने के लिए तरस रहे थे। फिर भी, यीशु ने जवाब दिया: “उन समयों या कालों को जानना, जिन को पिता ने अपने ही अधिकार में रखा है, तुम्हारा काम नहीं। परन्तु जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।”—प्रेरितों १:६-८.
९ ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता कि चेले यह जवाब पाकर निराश हो गए। इसके बजाय, उन्होंने प्रचार के काम में खुद को पूरे जोश से लगा दिया। कुछ ही हफ्तों में, उन्होंने यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया था। (प्रेरितों ५:२८) और ३० साल में, उनका प्रचार काम इस हद तक बढ़ चुका था कि पौलुस यह कह सका कि “आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में” सुसमाचार का प्रचार किया गया है। (कुलुस्सियों १:२३) चेलों की गलत उम्मीदों के मुताबिक, न तो ‘इस्राएल को राज्य फेर दिया गया’ न ही उनके जीवनकाल में यह राज्य स्वर्ग में स्थापित हुआ। फिर भी वे सदा-सर्वदा को मन में रखकर जोश के साथ यहोवा की सेवा करते रहे।
अपनी नीयत जाँचना
१०. परमेश्वर शैतान की दुनिया का कब अंत करेगा, यह पता न होने के कारण हमें क्या साबित करने का मौका मिलता है?
१० आज भी यहोवा के सेवक इस बुरी दुनिया का अंत देखने के लिए तरस रहे हैं। लेकिन, हमारी सबसे बड़ी चिंता यह नहीं कि हम छुटकारा पाकर परमेश्वर के वादा किए गए नए संसार में पहुँचें। हम यहोवा के नाम को पवित्र होते हुए और उसके राज करने के हक पर लगाए गए इल्ज़ाम को मिटते हुए देखना चाहते हैं। इसलिए हम खुश हो सकते हैं कि परमेश्वर ने हमें शैतान की दुनिया के विनाश के लिए ठहराए गए ‘दिन और घड़ी’ के बारे में नहीं बताया। इस तरह हमें यह दिखाने का मौका मिलता है कि हम अनंतकाल तक परमेश्वर के साथ-साथ चलने की ठान चुके हैं, इसलिए कि हम उससे प्रेम करते हैं न कि इसलिए कि हम स्वार्थी हैं और अभी के लिए उससे कुछ पाना चाहते हैं।
११, १२. अय्यूब की खराई पर किस तरह सवाल उठाया गया था और यह सवाल किस तरह हमसे जुड़ा हुआ है?
११ परमेश्वर के प्रति अपनी खराई बनाए रखने से यह साबित करने में भी मदद मिलती है कि खरा अय्यूब और उसके जैसे मनुष्य परमेश्वर की सेवा स्वार्थ की वज़ह से नहीं करते। जब यहोवा ने अय्यूब का वर्णन एक सीधे, खरे और परमेश्वर का भय माननेवाले मनुष्य के रूप में किया, तो शैतान ने दुष्टता से इलज़ाम लगाया: “क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है? क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा।” (अय्यूब १:८-११) परीक्षा में भी अपनी खराई बनाए रखने के द्वारा, अय्यूब ने इस ज़लील इल्ज़ाम को झूठ साबित किया।
१२ इसी तरह खराई के मार्ग पर चलते रहने से हम शैतान के ऐसे किसी भी इलज़ाम को झूठा साबित कर सकते हैं कि हम परमेश्वर की सेवा सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि हमें जल्द ही इसका इनाम मिलेगा। हम नहीं जानते कि दुष्टों से पलटा लेने का परमेश्वर का ठहराया हुआ समय कौन-सा है, और इससे हमें यह साबित करने का मौका मिलता है कि हम सचमुच यहोवा से प्रेम करते हैं और अनंतकाल तक उसके मार्गों पर चलते रहना चाहते हैं। यह दिखाता है कि हम परमेश्वर के वफादार हैं और मामलों को निपटाने के उसके तरीके पर भरोसा रखते हैं। इसके अलावा, उस दिन और उस घड़ी के बारे में न जानने से हमें सतर्क और आध्यात्मिक रूप से जागते रहने में मदद मिलती है क्योंकि हमें यह एहसास होता है कि अंत कभी-भी आ सकता है, जैसे रात को चोर आता है। (मत्ती २४:४२-४४) रोज़ यहोवा के साथ-साथ चलने से, हम उसके दिल को खुश करते हैं और उसकी निंदा करनेवाले शैतान के लिए उसे एक जवाब देते हैं।—नीतिवचन २७:११.
सदा-सर्वदा को मन में रखकर योजना बनाइए!
१३. बाइबल भविष्य के लिए योजनाएँ बनाने के बारे में क्या बताती है?
१३ जो परमेश्वर के साथ-साथ चलते हैं वे जानते हैं कि भविष्य के लिए कुछ हद तक योजनाएँ बनाना बुद्धिमानी की बात है। बुढ़ापे की समस्याओं और सीमाओं को जानते हुए, कई लोग अपनी जवानी और शक्ति का अच्छा इस्तेमाल करते हैं ताकि अपने बुढ़ापे के लिए पैसा कमा सकें। तो फिर, हमारे कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक भविष्य की योजनाओं के बारे में क्या? नीतिवचन २१:५ (NHT) कहता है: “परिश्रमी की योजनाएं निःसन्देह लाभदायक होती हैं, परन्तु प्रत्येक उतावली करने वाला निश्चय ही दरिद्रता में फंस जाता है।” सदा-सर्वदा को मन में रखकर पहले से योजना बनाना सचमुच बहुत फायदेमंद है। हम यह नहीं जानते कि इस दुनिया का अंत ठीक-ठीक कब होगा, इसलिए हमें भविष्य की अपनी ज़रूरतों के बारे में कुछ हद तक सोचना चाहिए। मगर हमें हद-से-ज़्यादा परेशान नहीं होना चाहिए और जीवन में पहला स्थान परमेश्वर के काम को देना चाहिए। जिन लोगों को परमेश्वर पर पूरा-पूरा भरोसा नहीं है वे शायद सोचें कि परमेश्वर की इच्छा पूरी करने में अपना सबकुछ लगा देना, दूर की सोचना या अकलमंदी नहीं है। मगर क्या यह सही है?
१४, १५. (क) भविष्य की योजनाओं के बारे में यीशु ने कौन-सा दृष्टांत बताया? (ख) यीशु के दृष्टांत का धनवान मनुष्य कैसे दूर की सोचनेवाला नहीं था?
१४ यीशु ने इस बारे में एक दृष्टांत बताया जिससे इस विषय पर हमारी आँखें खुल जाएँगी। उसने बताया: “किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई। तब वह अपने मन में विचार करने लगा, कि मैं क्या करूं, क्योंकि मेरे यहां जगह नहीं, जहां अपनी उपज इत्यादि रखूं। और उस ने कहा; मैं यह करूंगा: मैं अपनी बखारियां तोड़ कर उन से बड़ी बनाऊंगा; और वहां अपना सब अन्न और संपत्ति रखूंगा: और अपने प्राण से कहूंगा, कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिये बहुत संपत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह। परन्तु परमेश्वर ने उस से कहा; हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझ से ले लिया जाएगा: तब जो कुछ तू ने इकठ्टा किया है, वह किस का होगा? ऐसा ही वह मनुष्य भी है जो अपने लिये धन बटोरता है, परन्तु परमेश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।”—लूका १२:१६-२१.
१५ क्या यीशु यह सबक दे रहा था कि धनवान मनुष्य को भविष्य के लिए धन-संपत्ति बचाकर रखने के लिए मेहनत नहीं करनी चाहिए थी? नहीं, क्योंकि बाइबल मेहनत करने का प्रोत्साहन देती है। (२ थिस्सलुनीकियों ३:१०) उस धनवान मनुष्य की गलती यह थी कि उसने “परमेश्वर की दृष्टि में धनी” बनने के लिए जो ज़रूरी था वह नहीं किया। अगर वह कई साल तक अपनी धन-दौलत का मज़ा लूटता रहता भी तो आखिरकार तो उसे मरना ही था। वह बस इसी ज़िंदगी के बारे में सोच रहा था। उसने सदा-सर्वदा को मन में नहीं रखा।
१६. सुरक्षित भविष्य के लिए हम यहोवा पर क्यों पूरा भरोसा रख सकते हैं?
१६ युगों-युगों तक यहोवा के साथ-साथ चलने का उद्देश्य रखना, समझदारी भी है और दूरदर्शिता भी है। भविष्य के लिए योजना बनाने का यह सबसे बेहतरीन तरीका है। जबकि पढ़ाई-लिखाई, नौकरी और परिवार की ज़िम्मेदारियाँ निभाने के बारे में व्यावहारिक योजनाएँ बनाना बुद्धिमानी की बात है, वहीं हमें हर पल याद रखना चाहिए कि यहोवा कभी-भी अपने वफादार सेवकों को नहीं त्यागता। राजा दाऊद ने गीत में कहा: “मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है।” (भजन ३७:२५) उसी तरह यीशु ने विश्वास दिलाया कि परमेश्वर उन सभी की देखभाल करेगा जो पहले राज्य की खोज करते हैं और यहोवा के धर्मी मार्गों पर चलते हैं।—मत्ती ६:३३.
१७. हम कैसे जानते हैं कि अंत नज़दीक है?
१७ हालाँकि हमारा इरादा सदा-सर्वदा को मन में रखकर परमेश्वर की सेवा करना है, मगर हम यहोवा के दिन को भी मन में रखते हैं। बाइबल की भविष्यवाणी की पूर्ति उस दिन के नज़दीक होने का साफ-साफ सबूत देती है। युद्ध, बीमारियाँ, भूकंप और भुखमरी इस सदी की खासियत हैं और इस सदी में सच्चे मसीहियों को सताने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। और इसी सदी में परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार सारी दुनिया में किया जा रहा है। ये सब इस दुष्ट दुनिया के अंतिम समय के लक्षण हैं। (मत्ती २४:७-१४; लूका २१:११) दुनिया ऐसे लोगों से भरी पड़ी है जो “अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले” हैं। (२ तीमुथियुस ३:१-५) इन संकटपूर्ण अंतिम दिनों में, यहोवा के सेवकों के नाते हमारे लिए जीवन बहुत ही मुश्किल है। हम उस दिन को देखने के लिए तरसते हैं जब यहोवा का राज्य इस सारी बुराई का नामो-निशान मिटा देगा! तब तक, आइए हम सदा-सर्वदा को मन में रखकर परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहें।
अनंत जीवन को मन में रखकर सेवा करना
१८, १९. क्या बात दिखाती है कि प्राचीन काल के वफादार जन सदा-सर्वदा को मन में रखकर परमेश्वर की सेवा करते थे?
१८ जब हम यहोवा के साथ-साथ चलते हैं, तो हमें हाबिल, हनोक, नूह, इब्राहीम और सारा का विश्वास याद रखना चाहिए। उनका ज़िक्र करने के बाद, पौलुस ने लिखा: “ये सब विश्वास ही की दशा में मरे; और उन्हों ने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं नहीं पाईं; पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया, कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं।” (इब्रानियों ११:१३) विश्वास रखनेवाले ये लोग “एक उत्तम अर्थात् स्वर्गीय देश के अभिलाषी” थे। (इब्रानियों ११:१६) विश्वास से वे परमेश्वर के मसीहाई राज्य के शासन के अधीन एक बेहतर जगह का इंतज़ार कर रहे थे। हम भरोसा रख सकते हैं कि परमेश्वर उस बेहतर जगह में, यानी राज्य शासन के अधीन पृथ्वी पर बसे बाग या परादीस में उन्हें अनंत जीवन जीने का इनाम देगा।—इब्रानियों ११:३९, ४०.
१९ परमेश्वर की उपासना अनंतकाल तक करने के यहोवा के लोगों के दृढ़संकल्प के बारे में भविष्यवक्ता मीका ने कहा: “सब राज्यों के लोग तो अपने अपने देवता का नाम लेकर चलते हैं, परन्तु हम लोग अपने परमेश्वर यहोवा का नाम लेकर सदा सर्वदा चलते रहेंगे।” (मीका ४:५) अपनी ज़िंदगी की आखिरी घड़ी तक मीका ने वफादारी से यहोवा की सेवा की। नए संसार में जब उसका पुनरुत्थान होगा, तो वह भविष्यवक्ता बेशक सदा-सर्वदा तक परमेश्वर के साथ-साथ चलता रहेगा। इन अंतिम दिनों के आखिरी भाग में जीनेवाले हम लोगों के लिए यह कितनी अच्छी मिसाल है!
२०. हमें क्या ठान लेना चाहिए?
२० जब हम यहोवा के नाम के लिए प्यार दिखाते हैं तो वह इससे बहुत खुश होता है। (इब्रानियों ६:१०) वह जानता है कि शैतान के वश में पड़ी इस दुनिया में उसके वफादार बने रहना हमारे लिए बहुत मुश्किल है। हालाँकि ‘संसार मिटता जाता है,’ मगर “जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (१ यूहन्ना २:१७; ५:१९) तो फिर, आइए यहोवा की मदद से हम हर दिन आनेवाली परीक्षाओं में धीरज धरने की ठान लें। आइए हम अपने प्रेमी स्वर्गीय पिता की आशीषों को मन में रखें, और इन्हीं को मन में रखकर अपना जीवन बिताएँ। ये आशीषें हमें भी मिल सकती हैं अगर हम सदा-सर्वदा को मन में रखकर परमेश्वर के साथ-साथ चलते रहें।—यहूदा २०, २१.
आप कैसे जवाब देंगे?
◻ आज्ञा माननेवाले मनुष्यों के लिए परमेश्वर का उद्देश्य क्या है?
◻ यहोवा ने इस अधर्मी संसार का अंत करने के लिए अब तक कदम क्यों नहीं उठाया?
◻ परमेश्वर ठीक-ठीक कब कार्यवाही करेगा यह पता न होने की वज़ह से क्यों हमारा जोश कम नहीं होना चाहिए?
◻ सदा-सर्वदा को मन में रखकर परमेश्वर के साथ-साथ चलने के कुछ फायदे क्या हैं?
[पेज 17 पर तसवीर]
परमेश्वर के साथ-साथ चलने के लिए ज़रूरी है कि हम मसीह के पहली सदी के चेलों की तरह जोश के साथ उसकी सेवा करें