कंधे-से-कंधा मिलाकर सेवा करते रहो
“मैं देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा बुलवाऊंगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।”—सपन्याह 3:9.
1. सपन्याह 3:9 में बताए वादे के मुताबिक आज क्या हो रहा है?
आज सारी धरती पर तकरीबन 6,000 भाषाएँ बोली जा रही हैं। इनके अलावा भाषाओं की अलग-अलग बोलियाँ भी हैं। और अरबी और ज़ुलू जैसी भाषाओं में तो ज़मीन-आसमान का फर्क है। मगर इसके बावजूद परमेश्वर ने एक ऐसा काम पूरा किया है जो वाकई अनोखा है। उसने धरती के हर कोने में रहनेवाले इंसानों के लिए एक ही शुद्ध भाषा सीखना और बोलना मुमकिन कराया है। इस तरह वह भविष्यवक्ता सपन्याह के ज़रिए किए इस वादे को पूरा कर रहा है: “मैं [यहोवा परमेश्वर] देश-देश के लोगों से एक नई और शुद्ध भाषा [शाब्दिक अर्थ, “एक साफ होंठ”] बुलवाऊंगा, कि वे सब के सब यहोवा से प्रार्थना करें, और एक मन से कन्धे से कन्धा मिलाए हुए उसकी सेवा करें।”—सपन्याह 3:9.
2. “शुद्ध भाषा” क्या है और इसकी वजह से क्या मुमकिन हुआ है?
2 “शुद्ध भाषा” का मतलब है परमेश्वर के बारे में सच्चाई, जो उसके वचन बाइबल में पायी जाती है। यह सच्चाई खासकर परमेश्वर के राज्य के बारे में है जो यहोवा के नाम को पवित्र करेगा, उसकी हुकूमत को बुलंद करेगा और इंसानों को आशीषें देगा। (मत्ती 6:9, 10) सारी धरती पर शुद्ध भाषा ही एक ऐसी भाषा है जो आध्यात्मिक रूप से शुद्ध है और इसे सभी देशों और जातियों के लोग बोलते हैं। इस भाषा की मदद से वे सभी “कन्धे से कन्धा मिलाए हुए” या जैसे हमारी हिंदी बाइबल का फुटनोट कहता है, “एक कन्धे” से यहोवा की सेवा कर पाते हैं। इस तरह वे एकता में रहकर या “एक मन से” यहोवा की सेवा करते हैं।
कोई पक्षपात नहीं
3. क्या बात हमारे लिए यहोवा की सेवा एकता से करना मुमकिन बनाती है?
3 हम मसीही यह देखकर खुश हैं कि हम सभी अलग-अलग भाषाओं के होने के बावजूद मिल-जुलकर काम करते हैं। हालाँकि हम राज्य की खुशखबरी कई भाषाओं में सुनाते हैं, फिर भी हम एकता से परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं। (भजन 133:1) इसकी वजह यह है कि हम चाहे पृथ्वी के किसी भी कोने में रहते हों, हम सभी एक ही शुद्ध भाषा बोलते हुए यहोवा की स्तुति कर रहे हैं।
4. परमेश्वर के लोगों के बीच किसी भी तरह का पक्षपात क्यों नहीं होना चाहिए?
4 परमेश्वर के लोगों के बीच किसी तरह का पक्षपात नहीं होना चाहिए। यह बात प्रेरित पतरस ने साफ बतायी जब उसने सा.यु. 36 में एक गैर-यहूदी सैनिक अफसर, कुरनेलियुस के घर पर प्रचार किया। उस वक्त पतरस के मन ने उसे यह कहने के लिए उभारा: “मुझे निश्चय हुआ, कि परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, बरन हर जाति में जो उस से डरता और धर्म के काम करता है, वह उसे भाता है।” (प्रेरितों 10:35) जब परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता, तो मसीही कलीसिया में भी किसी तरह का पक्षपात नहीं होना चाहिए, गुट नहीं होने चाहिए और किसी की तरफदारी नहीं होनी चाहिए।
5. कलीसिया में गुट बनाना क्यों गलत है?
5 कॉलेज में पढ़नेवाली एक लड़की ने राज्यगृह आने पर जो देखा, उसके बारे में उसने कहा: “आम-तौर पर चर्च में एक ही जाति या भाषा के लोग होते हैं। . . . यहोवा के साक्षियों में मैंने देखा कि सभी जाति के लोग एक-साथ मिलकर बैठे हुए थे, उनमें गुट नहीं थे।” लेकिन पुराने ज़माने में कुरिन्थ की कलीसिया के कुछ सदस्य गुट बना रहे थे। इस तरह कलीसिया में फूट पैदा करके वे दरअसल परमेश्वर की पवित्र आत्मा के काम का विरोध कर रहे थे, जबकि पवित्र आत्मा शांति और एकता को बढ़ावा देती है। (गलतियों 5:22) आज अगर हम कलीसिया में गुट बनाने लगेंगे, तो हम भी आत्मा के मार्गदर्शन के खिलाफ काम कर रहे होंगे। इसलिए आइए हम प्रेरित पौलुस के इन शब्दों को हमेशा याद रखें जो उसने कुरिन्थियों से कहे थे: “हे भाइयो, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा बिनती करता हूं, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो।” (1 कुरिन्थियों 1:10) पौलुस ने इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में भी एकता की बात पर ज़ोर दिया।—इफिसियों 4:1-6, 16.
6, 7. याकूब ने तरफदारी करने के बारे में क्या सलाह दी और उसकी सलाह का मतलब क्या है?
6 शुरू से ही मसीहियों से यह माँग की गयी है कि वे पक्षपात न करें। (रोमियों 2:11) पहली सदी की कलीसिया में जब कुछ लोग रईसों की तरफदारी कर रहे थे, तो शिष्य याकूब ने उनको लिखा: “हे मेरे भाइयो, हमारे महिमायुक्त प्रभु यीशु मसीह का विश्वास तुम में पक्षपात के साथ न हो। क्योंकि यदि एक पुरुष सोने के छल्ले और सुन्दर वस्त्र पहिने हुए तुम्हारी सभा में आए और एक कंगाल भी मैले कुचैले कपड़े पहिने हुए आए। और तुम उस सुन्दर वस्त्रवाले का मुंह देखकर कहो कि तू वहां अच्छी जगह बैठ; और उस कंगाल से कहो, कि तू यहां खड़ा रह, या मेरे पांवों की पीढ़ी के पास बैठ। तो क्या तुम ने आपस में भेद भाव न किया और कुविचार से न्याय करनेवाले न ठहरे?”—याकूब 2:1-4.
7 अगर अविश्वासियों में से अमीर लोग सोने की अंगूठी और भड़कीले कपड़े पहनकर मसीही सभा में आते और गरीब लोग मैले-कुचले कपड़े पहनकर आते, तो अमीरों को खास इज़्ज़त दी जाती थी। उन्हें बैठने के लिए “अच्छी जगह” दी जाती थी जबकि गरीबों से कहा जाता था कि वे खड़े ही रहें या किसी के पैरों के पास ज़मीन पर बैठ जाएँ। लेकिन परमेश्वर ने तो यीशु के छुड़ौती बलिदान का इंतज़ाम बिना किसी पक्षपात के किया है, अमीरों-गरीबों सब के लिए! (अय्यूब 34:19; 2 कुरिन्थियों 5:14) इसलिए अगर हम यहोवा को खुश करना चाहते हैं और कंधे-से-कंधा मिलाकर उसकी सेवा करना चाहते हैं, तो हमें तरफदारी नहीं करनी चाहिए या “अपने लाभ के लिए लोगों की चापलूसी” (NHT) नहीं करनी चाहिए।—यहूदा 4, 16.
कुड़कुड़ाने से दूर रहें
8. इस्राएलियों के कुड़कुड़ाने का क्या अंजाम हुआ?
8 अपनी एकता को बरकरार रखने और परमेश्वर के साये में बने रहने के लिए ज़रूरी है कि हम पौलुस की इस सलाह को मानें: “सब काम बिना कुड़कुड़ाए . . . किया करो।” (फिलिप्पियों 2:14, 15) मिस्र की गुलामी से आज़ाद होने के बाद, जिन इस्राएलियों में विश्वास की कमी थी, वे मूसा और हारून के बारे में कुड़कुड़ाए और इस तरह उन्होंने यहोवा परमेश्वर के खिलाफ बात की। अंजाम यह हुआ कि वफादार यहोशू, कालिब और लेवियों को छोड़, जितने भी पुरुष 20 और उससे ज़्यादा साल के थे, वे सभी वीराने में 40 साल की यात्रा के दौरान मर गए। उन्हें वादा किए गए मुल्क में जाने का मौका नहीं मिला। (गिनती 14:2, 3, 26-30; 1 कुरिन्थियों 10:10) कुड़कुड़ाने की वजह से उन्हें कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ी!
9. मरियम को कुड़कुड़ाने का क्या सिला मिला?
9 यह दिखाता है कि अगर एक पूरी-की-पूरी जाति कुड़कुड़ाए, तो क्या अंजाम हो सकता है। लेकिन अगर एक-दो लोग ऐसा करें तो क्या होगा? मूसा की बहन मरियम और उसका भाई हारून यह कहकर कुड़कुड़ाए: “क्या यहोवा ने केवल मूसा ही के साथ बातें की हैं? क्या उस ने हम से भी बातें नहीं कीं?” वृत्तांत आगे कहता है: “उनकी यह बात यहोवा ने सुनी।” (गिनती 12:1, 2) नतीजा क्या हुआ? परमेश्वर ने मरियम का अपमान किया, क्योंकि शायद मूसा के बारे में शिकायत करने में वही आगे थी। यहोवा ने उसका अपमान कैसे किया? उसे कोढ़ से पीड़ित किया और उसके शुद्ध होने तक, यानी सात दिनों के लिए उसे छावनी के बाहर रहने को मजबूर किया।—गिनती 12:9-15.
10, 11. शिकायत करने की आदत पर रोक न लगाने से क्या हो सकता है? मिसाल दीजिए।
10 कुड़कुड़ाने का मतलब सिर्फ किसी की गलती के बारे में शिकायत करना नहीं है। जिन लोगों में कुड़कुड़ाने की आदत बन जाती है, उन्हें दरअसल अपनी भावनाओं या अपने ओहदे की बहुत चिंता होने लगती है और वे परमेश्वर की महिमा करने के बजाय खुद की बड़ाई चाहने लगते हैं। कुड़कुड़ानेवाले, हमेशा अपनी शिकायत का रोना रोते हैं ताकि दूसरे उन पर हमदर्दी जताएँ। इसलिए ऐसे रवैए पर काबू न पाने से आध्यात्मिक भाइयों के बीच मत-भेद पैदा हो जाता है और वे कंधे-से-कंधा मिलाकर यहोवा की सेवा नहीं कर पाते हैं।
11 मिसाल के लिए, हो सकता है एक भाई किसी प्राचीन में नुक्स निकाले कि कलीसिया में भाग पेश करने या अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने का उसका तरीका ठीक नहीं है। अगर हम उसकी शिकायत पर कान लगाएँ, तो हम भी प्राचीन को उसी की नज़र से देखने लगेंगे। जब तक हमारे दिमाग में यह बात नहीं डाली जाती, तब तक शायद हमें उसमें कोई बुराई नज़र न आए, लेकिन अब शायद हम उससे खीजने लगें। आखिरकार ऐसा होगा कि उस प्राचीन का एक भी काम हमें सही नहीं लगेगा और हम भी शायद उसके बारे में शिकायत करने लगें। यहोवा के लोगों की कलीसिया में ऐसा रवैया होना ठीक नहीं है।
12. कुड़कुड़ाने से, परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते पर क्या असर हो सकता है?
12 जिन पुरुषों को परमेश्वर के झुंड की चरवाही करने का काम सौंपा गया है, उनके खिलाफ कुड़कुड़ाते रहने से शायद हम उनकी निंदा करने लगें। इस तरह कुड़कुड़ाने या उनके बारे में खरी-खोटी सुनाने से, यहोवा के साथ हमारा रिश्ता बिगड़ सकता है। (निर्गमन 22:28) और जो निंदक, पश्चाताप नहीं करते वे परमेश्वर के राज्य के वारिस नहीं होंगे। (1 कुरिन्थियों 5:11; 6:10) शिष्य यहूदा ने लिखा कि कुड़कुड़ानेवाले कुछ लोग “प्रभुता को तुच्छ जानते” थे और “ऊंचे पदवालों” यानी कलीसिया में ज़िम्मेदारियाँ निभानेवाले पुरुषों की निंदा करते थे। (यहूदा 8) कुड़कुड़ानेवाले उन लोगों को परमेश्वर की मंज़ूरी नहीं मिली। इसलिए उनके जैसा दुष्ट रवैया अपनाने से दूर रहना हमारे लिए अक्लमंदी होगी।
13. हर तरह की शिकायतें क्यों गलत नहीं होतीं?
13 लेकिन परमेश्वर हर तरह की शिकायत से नाराज़ नहीं होता। जब सदोम और अमोरा के खिलाफ “चिल्लाहट बढ़ गई” तो उसने अनदेखा नहीं किया बल्कि उन दुष्ट शहरों का नाश किया। (उत्पत्ति 18:20, 21; 19:24, 25) सा.यु 33 के पिन्तेकुस्त के कुछ ही समय बाद, यरूशलेम में “यूनानी भाषा बोलनेवाले इब्रानियों पर कुड़कुड़ाने लगे, कि प्रति दिन की सेवकाई में हमारी विधवाओं की सुधि नहीं ली जाती।” तब “उन बारहों” ने उस मामले को निपटाने के लिए “सात सुनाम पुरुषों को” नियुक्त किया ताकि वे खाना बाँटने के उस “ज़रूरी काम” (NW) की देखरेख करें। (प्रेरितों 6:1-6) आज भी प्राचीनों को ऐसी शिकायतें सुनने से अपने “कान बन्द” नहीं करने चाहिए जो जायज़ होती हैं। (नीतिवचन 21:13, NHT) और प्राचीनों को अपने मसीही भाई-बहनों की नुक्ताचीनी करने के बजाय, उनका उत्साह बढ़ाना चाहिए और उन्नति करने में उनकी मदद करनी चाहिए।—1 कुरिन्थियों 8:1.
14. कुड़कुड़ाने से दूर रहने के लिए हममें खासकर कौन-सा गुण होना ज़रूरी है?
14 हम सभी को कुड़कुड़ाने या शिकायत करने की आदत से दूर रहना चाहिए क्योंकि इससे हमें आध्यात्मिक तरीके से नुकसान पहुँच सकता है। इससे हमारी एकता टूट सकती है। इसलिए कुड़कुड़ाने के बजाय, आइए हम हमेशा पवित्र आत्मा को अपने अंदर प्रेम का गुण बढ़ाने दें। (गलतियों 5:22) अगर हम ‘प्रेम की राज्य व्यवस्था’ को मानेंगे तो हम हमेशा कंधे-से-कंधा मिलाकर यहोवा की सेवा कर पाएँगे।—याकूब 2:8; 1 कुरिन्थियों 13:4-8; 1 पतरस 4:8.
चुगली करने से दूर रहें
15. गपशप और चुगलखोरी के बीच आप क्या फर्क बताएँगे?
15 कुड़कुड़ाने की आदत होने पर हम नुकसान पहुँचानेवाली गपशप भी कर सकते हैं, इसलिए हमें सावधान रहना चाहिए कि हम कैसी बातें करते हैं। गपशप का मतलब है, दूसरे लोगों और उनके मामलों के बारे में फिज़ूल की बातें करना। लेकिन चुगली करने का मतलब है, किसी को बदनाम करने के इरादे से उसके बारे में झूठी बात फैलाना। ऐसी बातचीत कड़वाहट से भरी होती है और परमेश्वर के सिद्धांतों के खिलाफ है। इसलिए परमेश्वर ने इस्राएलियों से कहा: “तुम्हें अन्य लोगों के विरुद्ध चारों ओर अफवाहें फैलाते हुए नहीं चलना चाहिए।”—लैव्यव्यवस्था 19:16, ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
16. पौलुस ने गप मारनेवाले कुछ लोगों के बारे में क्या कहा और उसकी सलाह को मानकर हमें क्या करना चाहिए?
16 फिज़ूल की बातें करनेवाला, दूसरों की चुगली भी कर सकता है। इसलिए पौलुस ने गपशप करनेवाले कुछ लोगों को निडरता से फटकार सुनायी। यह बताने के बाद कि कौन-सी विधवाएँ कलीसिया से मदद पाने के लायक थीं, उसने ऐसी विधवाओं का ज़िक्र किया जो “घर घर फिरकर आलसी होना सीखती हैं, और केवल आलसी नहीं, पर बकबक करती रहती और औरों के काम में हाथ भी डालती हैं और अनुचित बातें बोलती हैं।” (1 तीमुथियुस 5:11-15) अगर एक मसीही स्त्री पाती है कि उसमें ऐसी बातें करने की कमज़ोरी है जिससे कि वह बाद में दूसरों की चुगली भी कर सकती है, तो अच्छा होगा कि वह ‘गम्भीर होने और दोष लगानेवाली न होने’ की पौलुस की सलाह को माने। (1 तीमुथियुस 3:11) बेशक, मसीही पुरुषों को भी नुकसान पहुँचानेवाली गपशप से दूर रहना चाहिए।—नीतिवचन 10:19.
दोष मत लगाओ!
17, 18. (क) अपने भाई पर दोष लगाने के बारे में यीशु ने क्या कहा? (ख) दोष लगाने के बारे में हम यीशु के शब्दों पर कैसे अमल कर सकते हैं?
17 हो सकता है कि हम दूसरों के बारे में चुगली नहीं करते हों लेकिन हमें शायद दूसरों पर दोष न लगाने के लिए खुद से सख्ती बरतने की ज़रूरत हो। यीशु ने दोष लगाने के रवैए को गलत ठहराते हुए कहा: “दोष मत लगाओ, कि तुम पर भी दोष न लगाया जाए। क्योंकि जिस प्रकार तुम दोष लगाते हो, उसी प्रकार तुम पर भी दोष लगाया जाएगा; और जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा। तू क्यों अपने भाई की आंख के तिनके को देखता है, और अपनी आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता? और जब तेरी ही आंख में लट्ठा है, तो तू अपने भाई से क्योंकर कह सकता है, कि ला मैं तेरी आंख से तिनका निकाल दूं? हे कपटी, पहले अपनी आंख में से लट्ठा निकाल ले, तब तू अपने भाई की आंख का तिनका भली भांति देखकर निकाल सकेगा।”—मत्ती 7:1-5.
18 आध्यात्मिक अर्थ में अगर हमारे भाई की आँख में सिर्फ एक ‘तिनका’ है जबकि हमारी आँख में “लट्ठा” है, तो हमें उससे यह नहीं कहना चाहिए कि हम उसका ‘तिनका’ निकालना चाहते हैं। अगर हम सचमुच इस बात की कदर करते हैं कि परमेश्वर कितना रहमदिल है, तो हम अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों में नुक्स निकालने की आदत से दूर रहेंगे। अगर हम उन पर दोष लगाएँ, तो क्या हम कह सकेंगे कि हम उनको उतनी अच्छी तरह समझते हैं जैसे हमारा स्वर्गीय पिता उनको समझता है? इसीलिए यीशु ने खबरदार किया कि हम ‘दोष न लगाएँ कि हम पर भी दोष न लगाया जाए।’ अगर हम ईमानदारी से कबूल करेंगे कि खुद हमारे अंदर कितनी खामियाँ हैं, तो हम ऐसी बातों को लेकर भाइयों पर दोष नहीं लगाएँगे जिनकी वजह से परमेश्वर हमें अधर्मी ठहरा सकता है।
कमज़ोर फिर भी आदर के योग्य
19. हमें मसीही भाई-बहनों को किस नज़र से देखना चाहिए?
19 अगर हमने पक्का इरादा कर लिया है कि हम अपने भाई-बहनों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर परमेश्वर की सेवा करेंगे, तो हम न सिर्फ उन पर दोष लगाने से दूर रहेंगे बल्कि उनका आदर करने में भी आगे रहेंगे। (रोमियों 12:10) हम अपनी नहीं बल्कि उनकी भलाई करना चाहेंगे और उनकी खातिर ऐसे काम भी करेंगे जिन्हें छोटे दर्जे का समझा जाता है। (यूहन्ना 13:12-17; 1 कुरिन्थियों 10:24) हम ऐसा बढ़िया नज़रिया कैसे बनाए रख सकते हैं? यह बात हमेशा मन में रखकर कि हर एक मसीही, यहोवा की नज़रों में अनमोल है और कि हमें एक-दूसरे की ज़रूरत है, ठीक जैसे हमारे शरीर का हर अंग दूसरे अंगों पर निर्भर है।—1 कुरिन्थियों 12:14-27.
20, 21. दूसरा तीमुथियुस 2:20, 21 के शब्द हमारे लिए क्या मायने रखते हैं?
20 यह सच है कि मसीही, मिट्टी के ऐसे कमज़ोर बरतन हैं जिन्हें सेवा का अनमोल खज़ाना सौंपा गया है। (2 कुरिन्थियों 4:7) अगर हम यहोवा की स्तुति करने के लिए यह पवित्र काम करना चाहते हैं, तो हमें यहोवा और उसके बेटे के सामने हमेशा आदर के योग्य बने रहना होगा। नैतिक और आध्यात्मिक रूप से शुद्ध बने रहने से ही परमेश्वर हमेशा हमें आदर के बरतनों के तौर पर इस्तेमाल करेगा। इस बारे में पौलुस ने लिखा: “बड़े घर में न केवल सोने-चान्दी ही के, पर काठ और मिट्टी के बरतन भी होते हैं; कोई कोई आदर, और कोई कोई अनादर के लिये। यदि कोई अपने आप को इन से शुद्ध करेगा, तो वह आदर का बरतन, और पवित्र ठहरेगा; और स्वामी के काम आएगा, और हर भले काम के लिये तैयार होगा।”—2 तीमुथियुस 2:20, 21.
21 जो लोग परमेश्वर की माँगों के मुताबिक नहीं चलते, वे ‘अनादर के बरतन’ हैं। लेकिन अगर हम परमेश्वर को स्वीकार होनेवाले मार्ग पर चलते रहें, तो हम ‘आदर के बरतन और पवित्र ठहरेंगे और यहोवा के काम आएँगे और हर भले काम के लिये तैयार होंगे।’ इसलिए अच्छा होगा अगर हम खुद से यह पूछें: ‘क्या मैं “आदर का बरतन” हूँ? क्या मेरी संगति से भाई-बहनों को फायदा हो रहा है? क्या मैं कलीसिया का ऐसा सदस्य हूँ जो दूसरे मसीहियों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर काम करता है?’
कंधे-से-कंधा मिलाकर सेवा करते रहो
22. मसीही कलीसिया की तुलना किससे की जा सकती है?
22 मसीही कलीसिया एक परिवार की तरह है। जिस परिवार के सभी सदस्य यहोवा की उपासना करते हैं, उसमें सभी एक-दूसरे की मदद करते हैं और उनमें प्यार और खुशी का माहौल रहता है। परिवार में कई लोग हो सकते हैं और उनकी शख्सियत एक-दूसरे से अलग हो सकती है मगर फिर भी हरेक का आदर किया जाता है। कलीसिया के बारे में भी यही बात सच है। हालाँकि हम सभी एक-दूसरे से अलग हैं, और-तो-और असिद्ध हैं, फिर भी परमेश्वर ने मसीह के ज़रिए हमें अपनी ओर खींच लिया है। (यूहन्ना 6:44; 14:6) यहोवा और यीशु हमसे प्यार करते हैं इसलिए एकता में रहनेवाले परिवार की तरह हमें ज़रूर एक-दूसरे से प्यार करना चाहिए।—1 यूहन्ना 4:7-11.
23. हमें क्या याद रखना चाहिए और क्या करने की ठान लेनी चाहिए?
23 मसीही कलीसिया जब परिवार जैसी है तो उसके सदस्यों से वफादारी निभाने की उम्मीद करना भी वाजिब है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मैं चाहता हूं, कि हर जगह पुरुष बिना क्रोध और विवाद के पवित्र [“वफादार,” NW] हाथों को उठाकर प्रार्थना किया करें।” (1 तीमुथियुस 2:8) इस तरह जब पौलुस ने “हर जगह” यानी मसीहियों के जमा होने की जगह पर सरेआम की जानेवाली प्रार्थना के बारे में बताया तो उसने वफादारी का भी ज़िक्र किया। सिर्फ वफादार पुरुषों को कलीसिया की तरफ से सरेआम प्रार्थना करनी चाहिए। बेशक, परमेश्वर हम सभी से चाहता है कि हम उसके और आपस में एक-दूसरे के वफादार रहें। (सभोपदेशक 12:13, 14) इसलिए आइए हम सभी, शरीर के अंगों की तरह, मिल-जुलकर काम करने की ठान लें। इसके अलावा, यहोवा के उपासकों का जो परिवार है, उसके सदस्यों के तौर पर भी हम एकता में सेवा करते रहें। और इन सबसे बढ़कर हम हमेशा याद रखें कि हमें एक-दूसरे की ज़रूरत है और हम यहोवा की मंज़ूरी और आशीषें तभी पाएँगे जब हम उसकी सेवा कंधे-से-कंधा मिलाकर करते रहेंगे।
आप क्या जवाब देंगे?
• क्या बात यहोवा के लोगों के लिए कंधे-से-कंधा मिलाकर सेवा करना मुमकिन बनाती है?
• मसीही, पक्षपात से क्यों दूर रहते हैं?
• आपकी राय में कुड़कुड़ाना क्यों गलत है?
• हमें अपने भाई-बहनों का आदर क्यों करना चाहिए?
[पेज 15 पर तसवीर]
पतरस ने समझा कि “परमेश्वर किसी का पक्ष नहीं करता”
[पेज 16 पर तसवीर]
क्या आप जानते है कि परमेश्वर ने क्यों मरियम का अपमान किया?
[पेज 18 पर तसवीर]
वफादार मसीही कंधे-से-कंधा मिलाकर, खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करते हैं