यहोवा —हमारा कोमल करुणामय पिता
“यहोवा स्नेह में बहुत कोमल और करुणामय है।” —याकूब ५:११, NW, फुटनोट।
१. दीन लोग यहोवा परमेश्वर की ओर क्यों आकर्षित होते हैं?
विश्व-मंडल इतना बड़ा है कि खगोलज्ञ इसकी सभी मंदाकिनियों की गिनती नहीं कर सकते। हमारी मंदाकिनी, आकाश गंगा इतनी विशाल है कि मनुष्य इसके सभी तारों की गिनती नहीं कर सका। कुछ तारे, जैसे कि ऐन्टारीज़, हमारे सूरज से हज़ारों गुना बड़े और प्रकाशमान हैं। विश्व के सभी तारों का महान सृष्टिकर्ता कितना शक्तिशाली होगा! वाक़ई, वह “इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले लेकर बुलाता है।” (यशायाह ४०:२६) फिर भी, वही विस्मय-प्रेरक परमेश्वर “स्नेह में बहुत कोमल और करुणामय” भी है। ऐसा ज्ञान यहोवा के नम्र सेवकों के लिए, ख़ासकर उनके लिए जो सताहट, बीमारी, हताशा, या अन्य मुश्किलों का सामना करते हैं, कितना स्फूर्तिदायक है!
२. इस संसार के लोग कोमल भावनाओं को अकसर क्या मानते हैं?
२ अनेक लोग मसीह की मृदुल भावनाओं, जैसे कि “कोमल स्नेह और करुणा” को कमज़ोरियाँ मानते हैं। (फिलिप्पियों २:१, NW) विकासवाद सम्बन्धी तत्त्वज्ञान से प्रभावित होकर, वे लोगों को ख़ुद को आगे रखने का प्रोत्साहन देते हैं, चाहे इसका अर्थ दूसरों की भावनाओं को कुचलना भी क्यों न हो। मनोरंजन और खेल-कूद के अनेक आदर्श ज़रूरत से ज़्यादा सख़्त होते हैं जो आँसू नहीं बहाते या कोमल स्नेह नहीं दिखाते। कुछ राजनैतिक शासक भी इसी तरह व्यवहार करते हैं। क्रूर सम्राट नीरो को शिक्षा देनेवाले स्टॉइकवादी तत्त्वज्ञानी, सेनेका ने ज़ोर दिया कि “तरस खाना एक कमज़ोरी है।” मैक्लिनटॉक और स्ट्राँग की साइक्लोपीडिया कहती है: “स्टॉइकवाद के प्रभाव . . . वर्तमान समय में भी लोगों के मन प्रभावित करते हैं।”
३. यहोवा ने मूसा को अपना वर्णन कैसे दिया?
३ इसकी विषमता में, मनुष्यजाति के सृष्टिकर्ता का व्यक्तित्व हृदयस्पर्शी है। उसने मूसा को अपना वर्णन इन शब्दों में दिया: “यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, . . . अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा।” (निर्गमन ३४:६, ७) सच ही, अपने न्याय को विशिष्ट करते हुए यहोवा ने अपने बारे में यह वर्णन समाप्त किया। वह ज़िद्दी पापियों को योग्य दंड से मुक्त नहीं करेगा। फिर भी, वह ख़ुद का वर्णन सबसे पहले एक ऐसे परमेश्वर के रूप में करता है जो दयालु, शब्दशः “दया से भरा हुआ” है।
४. अकसर “दया” अनुवादित किए जानेवाले इब्रानी शब्द का हृदयस्पर्शी अर्थ क्या है?
४ कभी-कभी शब्द “दया” को सिर्फ़ रूखे, दंड रोकने के न्यायिक अर्थ में ही समझा जाता है। बहरहाल, बाइबल अनुवादों की एक तुलना, क्रिया राकाम से लिए गए इब्रानी विशेषण के भरपूर अर्थ को सामने लाती है। कुछ विद्वानों के अनुसार, इसका मूल अर्थ है “नरम होना।” सिननिम्स ऑफ दी ओल्ड टेस्टामेंट (अंग्रेज़ी) पुस्तक समझाती है, शब्द “राकाम, करुणा की एक गहरी और कोमल भावना अभिव्यक्त करता है, ऐसी भावना जो उनकी कमज़ोरी या दुःख देखने पर उत्पन्न होती है जो हमारे प्रिय हैं या जिन्हें हमारी मदद की ज़रूरत है।” इस वांछनीय गुण की अन्य हृदयस्पर्शी परिभाषाएँ, शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि, खंड २, पृष्ठ ३७५-९ पर पायी जा सकती हैं।
५. मूसा की व्यवस्था में दया कैसे दिखती थी?
५ परमेश्वर ने इस्राएल की जाति को जो व्यवस्था दी, उससे उसकी कोमल करुणा बिलकुल साफ़ दिखती है। वंचित लोगों, जैसे कि विधवाओं, अनाथों, और ग़रीबों के साथ करुणा से व्यवहार किया जाना था। (निर्गमन २२:२२-२७; लैव्यव्यवस्था १९:९, १०; व्यवस्थाविवरण १५:७-११) दासों और जानवरों सहित, सभी लोगों को साप्ताहिक विश्रामदिन से लाभ उठाना था। (निर्गमन २०:१०) इसके अतिरिक्त, परमेश्वर ने उन लोगों पर ध्यान दिया जिन्होंने दीन लोगों के साथ कोमलता से व्यवहार किया। नीतिवचन १९:१७ कहता है: “जो कंगाल [दीन, NW] पर अनुग्रह करता है, वह यहोवा को उधार देता है, और वह अपने इस काम का प्रतिफल पाएगा।”
ईश्वरीय करुणा की सीमाएँ
६. यहोवा ने अपने लोगों के पास नबियों और दूतों को क्यों भेजा?
६ इस्राएली परमेश्वर के नामधारी लोग थे और यरूशलेम के मन्दिर में उपासना करते थे, जो “यहोवा के नाम का एक भवन” था। (२ इतिहास २:४; ६:३३) बहरहाल, कुछ समय बाद, वे अनैतिकता, मूर्तिपूजा, और हत्या को बरदाश्त करने लगे, जिससे यहोवा के नाम पर बड़ा कलंक लगा। अपने करुणामय व्यक्तित्व के सामंजस्य में, पूरी जाति पर विपत्ति लाए बग़ैर, परमेश्वर ने धैर्यपूर्वक इस बुरी परिस्थिति को सुधारने की कोशिश की। उसने “बड़ा यत्न करके अपने दूतों से उनके पास कहला भेजा, क्योंकि वह अपनी प्रजा और अपने धाम पर तरस खाता था; परन्तु वे परमेश्वर के दूतों को ठट्ठों में उड़ाते, उसके वचनों को तुच्छ जानते, और उसके नबियों की हंसी करते थे। निदान यहोवा अपनी प्रजा पर ऐसा झुंझला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा।”—२ इतिहास ३६:१५, १६.
७. जब यहोवा की करुणा अपनी चरमसीमा तक पहुँची, तब यहूदा के राज्य का क्या हुआ?
७ हालाँकि यहोवा करुणामय और कोप करने में धीरजवन्त है, ज़रूरत पड़ने पर वह धर्मी कोप प्रकट करता है। उस समय, ईश्वरीय करुणा अपनी चरमसीमा तक पहुँच गयी थी। हम परिणामों के बारे में पढ़ते हैं: “तब [यहोवा] ने उन पर कसदियों के राजा से चढ़ाई करवाई, और इस ने उनके जवानों को उनके पवित्र भवन ही में तलवार से मार डाला। और क्या जवान, क्या कुंवारी, क्या बूढ़े, क्या पक्के बालवाले, किसी पर भी कोमलता न की; यहोवा ने सभों को उसके हाथ में कर दिया।” (२ इतिहास ३६:१७) अतः यरूशलेम और उसका मन्दिर नाश हुआ, और उस जाति को बन्दी बनाकर बाबुल में ले जाया गया।
अपने नाम के लिए करुणा
८, ९. (क) यहोवा ने क्यों घोषित किया कि वह अपने नाम के लिए करुणा करेगा? (ख) यहोवा के शत्रुओं को कैसे चुप किया गया?
८ इस विपत्ति पर आस-पड़ोस की जातियाँ ख़ुश हुईं। हँसी उड़ाते हुए उन्होंने कहा: “ये यहोवा की प्रजा हैं, परन्तु उसके देश से निकाले गए हैं।” इस कलंक के प्रति अति-संवेदनशील होकर, यहोवा ने घोषणा की: “मैं ने अपने पवित्र नाम की सुधि ली, [अपने पवित्र नाम पर करुणा करूँगा, NW] . . . और मैं अपने बड़े नाम को पवित्र ठहराऊंगा, . . . तब वे जातियां जान लेगी कि मैं यहोवा हूं।”—यहेजकेल ३६:२०-२३.
९ उसकी जाति के ७० वर्ष तक बंधुआई में रहने के बाद, करुणामय परमेश्वर, यहोवा ने उन्हें रिहा किया और उन्हें लौटने और यरूशलेम में मन्दिर का पुनर्निर्माण करने की अनुमति दी। इस बात ने आस-पड़ोस की जातियों को चुप कर दिया, जो आश्चर्य से देखने लगीं। (यहेजकेल ३६:३५, ३६) लेकिन, अफ़सोस की बात है कि इस्राएल की जाति फिर से बुरे अभ्यासों में फँस गयी। एक वफ़ादार यहूदी, नहेमायाह ने स्थिति को सुधारने में मदद की। एक जन प्रार्थना में, उसने जाति के साथ परमेश्वर के करुणामय बर्ताव पर यह कहते हुए पुनर्विचार किया:
१०. नहेमायाह ने यहोवा की करुणा को कैसे विशिष्ट किया?
१० “जब जब वे संकट में पड़कर तेरी दोहाई देते रहे तब तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता रहा; और तू जो अतिदयालु है, इसलिये उनके छुड़ानेवाले को भेजता रहा जो उनको शत्रुओं के हाथ से छुड़ाते थे। परन्तु जब जब उनको चैन मिला, तब तब वे फिर तेरे साम्हने बुराई करते थे, इस कारण तू उनको शत्रुओं के हाथ में कर देता था, और वे उन पर प्रभुता करते थे; तौभी जब वे फिरकर तेरी दोहाई देते, तब तू स्वर्ग से उनकी सुनता और तू जो दयालु है, इसलिये बार बार उनको छुड़ाता, . . . तू तो बहुत वर्ष तक उनकी सहता रहा।”—नहेमायाह ९:२६-३०; साथ ही यशायाह ६३:९, १० भी देखिए।
११. यहोवा और मनुष्य के ईश्वरों में कौन-सी विषमता है?
११ आख़िरकार, परमेश्वर के प्रिय पुत्र को क्रूरतापूर्वक अस्वीकार करने के बाद, यहूदी जाति ने अपने विशेषाधिकार का पद सदा के लिए खो दिया। उनके साथ परमेश्वर का निष्ठ लगाव १,५०० से भी ज़्यादा वर्षों तक बना रहा। यह इस तथ्य की एक सनातन गवाही है कि यहोवा वाक़ई दया का परमेश्वर है। पापी मनुष्यों द्वारा कल्पित क्रूर ईश्वरों और भावशून्य देवताओं से बिलकुल विपरीत!
करुणा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति
१२. परमेश्वर की करुणा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति क्या थी?
१२ अपने प्रिय पुत्र को पृथ्वी पर भेजना परमेश्वर की करुणा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति थी। सच ही, यीशु के खराई के जीवन ने यहोवा को बहुत ख़ुश किया, जिसने इब्लीस के झूठे इल्ज़ामों के लिए उसे बिलकुल सही जवाब प्रदान किया। (नीतिवचन २७:११) लेकिन, साथ ही, अपने प्रिय पुत्र को एक क्रूर और अपमानजनक मृत्यु सहते हुए देखने से यहोवा को बेशक इतना ज़्यादा दर्द हुआ, जितना कि किसी भी मानवी माता-पिता को कभी नहीं सहना पड़ा है। यह एक बहुत ही प्रेममय बलिदान था, जिसने मनुष्यजाति के उद्धार का मार्ग खोल दिया। (यूहन्ना ३:१६) जैसे यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले के पिता, जकर्याह ने पूर्वबताया, इससे “हमारे परमेश्वर की कोमल करुणा” बढ़कर व्यक्त हुई।—लूका १:७७, ७८, NW.
१३. यीशु ने किस महत्त्वपूर्ण तरीक़े से अपने पिता के व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित किया है?
१३ परमेश्वर के पुत्र के पृथ्वी पर भेजे जाने से भी मनुष्यजाति यहोवा के व्यक्तित्व को ज़्यादा स्पष्ट देख सकी। यह कैसे? क्योंकि यीशु ने अपने पिता के व्यक्तित्व को पूरी तरह प्रतिबिंबित किया, ख़ासकर दीन लोगों के साथ उसके कोमल करुणामय रूप से व्यवहार करने के तरीक़े में! (यूहन्ना १:१४; १४:९) इस सम्बन्ध में, सुसमाचार के तीन लेखक, मत्ती, मरकुस, और लूका, एक यूनानी क्रिया स्प्लैगख़्नीज़ोमाइ इस्तेमाल करते हैं, जो ‘अन्तड़ियों’ के लिए यूनानी शब्द से आती है। बाइबल विद्वान विलियम बार्कली समझाता है, “इसके मूल से ही यह देखा जा सकता है कि यह किसी साधारण तरस या करुणा का नहीं, बल्कि एक ऐसे भाव का वर्णन करती है जो एक व्यक्ति को उसकी गहराइयों से प्रेरित करता है। यूनानी में करुणा की भावना के लिए यह सबसे प्रभावशाली शब्द है।” यह विभिन्न तरीक़ों से अनुवादित किया गया है, जैसे कि ‘तरस आना’ या ‘तरस खाना।’—मरकुस ६:३४; ८:२.
जब यीशु को तरस आया
१४, १५. गलील के एक शहर में, यीशु कैसे तरस खाता है, और यह क्या सचित्रित करता है?
१४ दृश्य गलील के शहर का है। “कोढ़ से भरा हुआ” एक मनुष्य रिवाज़ी चेतावनी दिए बग़ैर यीशु के पास आता है। (लूका ५:१२) परमेश्वर की व्यवस्था की माँग के अनुसार “अशुद्ध, अशुद्ध” न चिल्लाने के लिए क्या यीशु उसे निष्ठुरता से फटकारता है? (लैव्यव्यवस्था १३:४५) नहीं। इसके बजाय, यीशु उस मनुष्य की तीव्र बिनती को सुनता है: “यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है।” “तरस खाकर,” यीशु हाथ बढ़ाता है और कोढ़ी को यह कहते हुए छूता है: “मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा।” उस मनुष्य का स्वास्थ्य तुरंत ठीक हो जाता है। अतः यीशु न केवल अपनी चमत्कारिक, परमेश्वर-प्रदत्त शक्तियों को, बल्कि उन कोमल भावनाओं को भी प्रदर्शित करता है, जो उसे ऐसी शक्तियों का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करती हैं।—मरकुस १:४०-४२.
१५ क्या यीशु के पास पहले होकर जाना होगा तभी वह करुणा की भावनाओं को दिखाएगा? नहीं। कुछ समय बाद, उसे नाईन नगर से बाहर आती हुई एक शव-यात्रा दिखती है। बेशक, यीशु ने पहले भी अनेक अंत्येष्टियाँ देखी हैं, लेकिन यह अंत्येष्टि ख़ासकर दुःखद है। मृत व्यक्ति एक विधवा का एकलौता पुत्र है। “तरस खाकर,” यीशु उसके पास जाता है और कहता है: “मत रो।” उसके बाद वह उसके पुत्र को फिर से जीवित करने का एक उत्कृष्ट चमत्कार करता है।—लूका ७:११-१५.
१६. यीशु उसके पीछे आ रही बड़ी संख्या में भीड़ के लिए तरस क्यों खाता है?
१६ उपर्युक्त घटनाओं से यह उल्लेखनीय सबक़ सीखा जा सकता है कि जब यीशु ‘तरस खाता’ है, तो वह मदद करने के लिए कुछ सकारात्मक कार्य करता है। बाद में एक अवसर पर, यीशु उसके पीछे आ रही बड़ी संख्या में भीड़ को देखता है। मत्ती कहता है कि “उस को लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे उन भेडों की नाईं जिनका कोई रखवाला न हो, ब्याकुल और भटके हुए से थे।” (मत्ती ९:३६) साधारण लोगों की आध्यात्मिक भूख मिटाने के लिए फरीसी कुछ नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे आम लोगों पर अनेक अनावश्यक नियमों का बोझ डालते हैं। (मत्ती १२:१, २; १५:१-९; २३:४, २३) साधारण लोगों के बारे में उनका दृष्टिकोण तब प्रकट हुआ जब उन्होंने यीशु के सुननेवालों के बारे में कहा: “ये लोग जो व्यवस्था नहीं जानते, स्रापित हैं।”—यूहन्ना ७:४९.
१७. भीड़ के प्रति यीशु का तरस उसे कैसे प्रभावित करता है, और वह वहाँ कौन-सा दूरव्यापी मार्गदर्शन प्रदान करता है?
१७ इसकी विषमता में, लोगों की आध्यात्मिक दुर्दशा को देखकर यीशु गहराई से प्रभावित होता है। लेकिन, राज्य संदेश में दिलचस्पी रखनेवाले लोग बहुत ज़्यादा हैं और वह सब को व्यक्तिगत ध्यान नहीं दे पाता है। सो वह अपने चेलों से और ज़्यादा मज़दूरों के लिए प्रार्थना करने को कहता है। (मत्ती ९:३५-३८) ऐसी प्रार्थनाओं के सामंजस्य में, यीशु अपने प्रेरितों को इस संदेश के साथ भेजता है: “स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” उस अवसर पर दी गयी हिदायतों ने तब से इस वर्तमान समय तक मसीहियों के लिए एक बहुमूल्य मार्गदर्शक के रूप में कार्य किया है। बेशक, यीशु की करुणा की भावनाएँ उसे मनुष्यजाति की आध्यात्मिक भूख मिटाने के लिए प्रेरित करती हैं।—मत्ती १०:५-७.
१८. जब भीड़ यीशु की एकान्तता में दख़ल देती है, तो यीशु कैसी प्रतिक्रिया दिखाता है, और हम इससे कौन-सा सबक़ सीखते हैं?
१८ एक अन्य अवसर पर, भीड़ की आध्यात्मिक ज़रूरतों के बारे में यीशु चिन्ता करता है। इस बार वह और उसके शिष्य एक व्यस्त प्रचार यात्रा के बाद थके हुए हैं, और वे आराम करने के लिए एक जगह ढूँढ निकालते हैं। लेकिन जल्द ही लोग उन्हें ढूँढ लेते हैं। मरकुस लिखता है कि उनकी एकान्तता में इस दख़लंदाज़ी के कारण चिढ़ने के बजाय, यीशु ने “तरस खाया।” और यीशु की गहरी भावनाओं का कारण क्या था? “वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो।” फिर से, यीशु अपनी भावनाओं को कार्यों के द्वारा अभिव्यक्त करता है और भीड़ को “परमेश्वर के राज्य की बातें” सिखाने लगता है। जी हाँ, वह उनकी आध्यात्मिक भूख से इतनी गहराई से प्रभावित हुआ कि उन्हें सिखाने के लिए उसने अपना ज़रूरी आराम त्याग दिया।—मरकुस ६:३४; लूका ९:११.
१९. किस प्रकार यीशु ने भीड़ की आध्यात्मिक ज़रूरतों के अतिरिक्त, अन्य बातों में भी उनके प्रति चिन्ता दिखायी?
१९ जबकि यीशु मुख्यतः लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतों के बारे में चिन्तित था, उसने उनकी मूलभूत शारीरिक ज़रूरतों को कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया। उसी अवसर पर, उसने “जो चंगे होना चाहते थे, उन्हें चंगा” भी किया। (लूका ९:११) बाद में एक अवसर पर, भीड़ उसके साथ बहुत देर तक थी, और वे घर से काफ़ी दूर थे। उनकी शारीरिक ज़रूरत को समझते हुए, यीशु ने अपने शिष्यों से कहा: “मुझे इस भीड़ पर तरस आता है, क्योंकि वे तीन दिन से मेरे साथ हैं और उन के पास कुछ खाने को नहीं; और मैं उन्हें भूखा विदा करना नहीं चाहता; कहीं ऐसा न हो कि मार्ग में थककर रह जाएं।” (मत्ती १५:३२) संभाव्य तक़लीफ़ को रोकने के लिए यीशु अब कुछ करता है। वह चमत्कारिक रूप से हज़ारों पुरुषों, स्त्रियों, और बच्चों को सात रोटी और कुछ छोटी मछलियों से बनाया गया खाना प्रदान करता है।
२०. यीशु के तरस खाने की आख़िरी अभिलिखित घटना से हम क्या सीखते हैं?
२० यीशु के तरस खाने की आख़िरी अभिलिखित घटना यरूशलेम को उसकी अंतिम यात्रा के समय की है। फसह मनाने के लिए बड़ी संख्या में भीड़ उसके साथ सफ़र कर रही है। यरीहो के नज़दीक रास्ते पर, दो अन्धे भिखारी पुकार पुकारकर कह रहे थे: “हे प्रभु, . . . हम पर दया कर।” भीड़ उन्हें चुप कराने की कोशिश करती है, लेकिन यीशु उन्हें बुलाकर पूछता है कि वे क्या चाहते हैं कि वह करे। “हे प्रभु; यह कि हमारी आंखें खुल जाएं,” वे याचना करते हैं। “तरस खाकर” वह उन की आँखों को छूता है, और वे देखने लगते हैं। (मत्ती २०:२९-३४) हम इससे क्या ही महत्त्वपूर्ण सबक़ सीखते हैं! यीशु की पार्थिव सेवकाई का आख़िरी सप्ताह शुरू होने ही वाला है। शैतान के अभिकर्ताओं के हाथों एक क्रूर मौत सहने से पहले, उसे बहुत से काम निष्पन्न करने हैं। फिर भी, वह इस महत्त्वपूर्ण समय के दबाव को, कम महत्त्वपूर्ण मानवी ज़रूरतों के प्रति करुणा की कोमल भावनाएँ प्रदर्शित करने से अपने आप को रोकने नहीं देता है।
दृष्टान्त जो करुणा को विशिष्ट करते हैं
२१. स्वामी का अपने दास के बड़े कर्ज़ को माफ़ करना क्या सचित्रित करता है?
२१ यीशु के जीवन के इन वृत्तान्तों में इस्तेमाल की गयी यूनानी क्रिया स्प्लैगख़्नीज़ोमाइ यीशु के तीन दृष्टान्तों में भी इस्तेमाल की गयी है। एक कहानी में एक दास बड़ा कर्ज़ अदा करने के लिए समय की मोहलत माँगता है। उसका स्वामी, “तरस खाकर,” कर्ज़ माफ़ कर देता है। यह सचित्रित करता है कि यहोवा परमेश्वर ने यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्वास करनेवाले प्रत्येक व्यक्तिगत मसीही के पाप का बड़ा कर्ज़ माफ़ करने में बहुत करुणा दिखायी है।—मत्ती १८:२७; २०:२८.
२२. उड़ाऊ पुत्र का उदाहरण क्या सचित्रित करता है?
२२ फिर उड़ाऊ पुत्र की कहानी है। याद कीजिए कि जब भटका हुआ पुत्र घर लौटता है तब क्या होता है। “वह अभी दूर ही था, कि उसके पिता ने उसे देखकर तरस खाया, और दौड़कर उसे गले लगाया, और बहुत चूमा।” (लूका १५:२०) यह दिखाता है कि जब एक मसीही, जो भटक गया है, सच्चा पश्चाताप दिखाता है, तब यहोवा तरस खाएगा और उसे कोमलता से फिर स्वीकार करेगा। अतः, इन दो दृष्टान्तों के द्वारा, यीशु दिखाता है कि हमारा पिता, यहोवा “स्नेह में बहुत कोमल और करुणामय है।”—याकूब ५:११, NW, फुटनोट।
२३. स्नेही सामरी के यीशु के दृष्टान्त से हम क्या सबक़ सीखते हैं?
२३ स्प्लैगख़्नीज़ोमाइ का तीसरा दृष्टान्तिक इस्तेमाल उस करुणामय सामरी से सम्बन्धित है जिसने एक यहूदी की दुर्दशा पर “तरस खाया,” जिसे लूटा गया और अधमरा छोड़ दिया गया था। (लूका १०:३३) इन भावनाओं को अपने कार्यों में अभिव्यक्त करते हुए, सामरी ने उस अजनबी की मदद करने के लिए जो उसके बस में था किया। यह प्रदर्शित करता है कि यहोवा और यीशु सच्चे मसीहियों से अपेक्षा करते हैं कि कोमलता और करुणा दिखाने में उनके उदाहरण का अनुकरण करें। अगले लेख में कुछ तरीक़ों की चर्चा की जाएगी जिनसे हम ऐसा कर सकते हैं।
पुनर्विचार में प्रश्न
▫ दयालु होने का क्या अर्थ है?
▫ यहोवा ने अपने नाम के लिए करुणा कैसे दिखायी?
▫ करुणा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति क्या है?
▫ किस उल्लेखनीय तरीक़े से यीशु अपने पिता के व्यक्तित्व को प्रतिबिंबित करता है?
▫ यीशु के करुणामय कार्यों और उसके दृष्टान्तों से हम क्या सीखते हैं?
[पेज 6, 7 पर बक्स]
“कोमल प्रेममय परवाह” के लिए एक स्पष्ट शब्द
भविष्यवक्ता यिर्मयाह चिल्लाया “हाय मेरी अन्तड़ियाँ, मेरी अन्तड़ियाँ।” (NW) क्या वह कुछ गंदी चीज़ खाने की वजह से हुई आँत की बीमारी की शिकायत कर रहा था? नहीं। यहूदा के राज्य पर आनेवाली विपत्ति पर अपनी गहरी चिन्ता का वर्णन करने के लिए यिर्मयाह एक इब्रानी रूपक का इस्तेमाल कर रहा था।—यिर्मयाह ४:१९.
क्योंकि यहोवा की गहरी भावनाएँ हैं, ‘अन्तड़ियाँ’ या ‘आँत’ (मेइम) के लिए इब्रानी शब्द को उसकी कोमल भावनाओं का वर्णन करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए, यिर्मयाह के दिनों से दशकों पहले, अश्शूर के राजा ने इस्राएल के दस-जातीय राज्य पर क़ब्ज़ा कर लिया। उनके विश्वासघात के लिए दण्ड के रूप में यहोवा ने ऐसा होने की अनुमति दी। लेकिन क्या परमेश्वर उन्हें बन्धुआई में भूल गया? नहीं। उसका उनसे अब भी अपनी वाचा के लोगों के भाग के रूप में गहरा लगाव था। मुख्य जाति एप्रैम के नाम से उनका उल्लेख करते हुए यहोवा ने पूछा: “क्या एप्रैम मेरा प्रिय पुत्र नहीं है? क्या वह मेरा दुलारा लड़का नहीं है? जब जब मैं उसके विरुद्ध बातें करता हूं, तब तब मुझे उसका स्मरण हो आता है। इसलिये मेरा मन उसके कारण भर आता है [मेरी अन्तड़ियाँ उसके लिए ऊधमी हो गयी हैं, NW]; और मैं निश्चय उस पर दया करूंगा।”—यिर्मयाह ३१:२०.
यह कहने के द्वारा कि ‘मेरी अन्तड़ियाँ ऊधमी हो गयी हैं’ यहोवा ने अपने बन्दी लोगों के लिए स्नेह की अपनी गहरी भावनाओं का वर्णन करने के लिए एक अलंकार का इस्तेमाल किया। उन्नीसवीं सदी के बाइबल विद्वान, ई. हेण्डरसन ने इस आयत पर अपनी टिप्पणी में लिखा: “लौटकर आनेवाले उड़ाऊ [पुत्र] के प्रति कोमल जनकीय भावनाओं के मर्मस्पर्शी प्रदर्शन से बढ़कर कुछ भी नहीं हो सकता, जैसे यहाँ यहोवा द्वारा प्रदर्शित किया गया है। . . . जबकि उसने [मूर्तिपूजक एप्रैमियों] के विरुद्ध इस तरह बातें की थीं और उन्हें दण्ड दिया था . . . , वह उन्हें कभी नहीं भूला, बल्कि इसके विपरीत, उनकी प्रत्याशा से आनन्दित था कि वे आख़िरकार पुनःस्थापित होंगे।”
‘आँत,’ या ‘अन्तड़ियों,’ के लिए यूनानी शब्द को मसीही यूनानी शास्त्र में भी उसी तरह इस्तेमाल किया गया है। जब शब्दशः इस्तेमाल नहीं किया जाता, जैसे प्रेरितों १:१८ में किया गया है, तब यह स्नेह या करुणा की कोमल भावनाओं को सूचित करता है। (फिलेमोन १२, NW) यह शब्द कभी-कभी यूनानी शब्द के साथ जोड़ा जाता है जिसका अर्थ है “अच्छा” या “भला।” “कोमल करुणामय,” शब्दशः “तरस की ओर भली-भाँति प्रवृत्त,” होने के लिए मसीहियों को प्रोत्साहित करते समय प्रेरित पौलुस और पतरस इस संयुक्त अभिव्यक्ति का इस्तेमाल करते हैं। (इफिसियों ४:३२, NW; १ पतरस ३:८, NW) ‘आँतों’ के लिए यूनानी शब्द को यूनानी शब्द पोली के साथ भी जोड़ा जा सकता है। इस जोड़ का शाब्दिक अर्थ है “बहुत आँत होना।” यह अति विरल यूनानी अभिव्यक्ति बाइबल में सिर्फ़ एक बार ही इस्तेमाल की गयी है, और वह यहोवा परमेश्वर का उल्लेख करती है। नया संसार अनुवाद इस तरह अनुवाद करता है: “यहोवा स्नेह में बहुत कोमल है।”—याकूब ५:११.
हमें कितना एहसानमंद होना चाहिए कि पूरे विश्व-मण्डल में सबसे शक्तिशाली व्यक्ति, यहोवा परमेश्वर अकरुण मनुष्यों द्वारा कल्पित क्रूर ईश्वरों से कितना ही भिन्न है! अपने “कोमल करुणामय” परमेश्वर का अनुकरण करने के द्वारा, सच्चे मसीही एक दूसरे के साथ उसी तरह बर्ताव करने के लिए प्रेरित होते हैं।—इफिसियों ५:१.
[पेज 4 पर तसवीर]
जब ईश्वरीय करुणा अपनी चरमसीमा तक पहुँची, यहोवा ने बाबुल-वासियों को अपने भटके हुए लोगों पर विजय पाने की अनुमति दी
[पेज 5 पर तसवीर]
अपने प्रिय पुत्र को मरते देखने से यहोवा को इतना ज़्यादा दर्द हुआ होगा जितना कि कभी किसी को नहीं सहना पड़ा है
[पेज 9 पर तसवीर]
यीशु ने अपने पिता के करुणामय व्यक्तित्व को पूरी तरह प्रतिबिंबित किया