‘सुसमाचार से नहीं लजाना’
“मैं सुसमाचार से नहीं लजाता, इसलिए कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिए . . . उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ है।”—रोमियों १:१६.
१. आम तौर से सुसमाचार को किस तरह ग्रहण किया जाता है, लेकिन इस दुनिया के विश्वासहीन लोग परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का विचार किस तरह करते?
एक व्यक्ति को जो बात सुसमाचार लगे, वही बात दूसरे को सुसमाचार शायद न लगे। आम तौर से, सुसमाचार धारक का हार्दिक स्वागत किया जाता है, और उस से ख़बर सुनने के लिए उत्सुकता से ध्यान दिया जाएगा। परन्तु, बाइबल ने पूर्वबतलाया कि दुनिया के विश्वासहीन लोग परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार और उसके उद्धार के संदेश को आनन्दप्रद न समझते।—२ कुरिन्थियों २:१५, १६ से तुलना करें।
२. जो सुसमाचार प्रेरित पौलुस ने घोषित किया, उसके बारे में उसने क्या कहा, और जो संदेश उसने घोषित किया, वह आज भी सुसमाचार क्यों है?
२ प्रेरित पौलुस ऐसा आदमी था जिसे जनता को सुसमाचार देने के लिए भेजा गया। अपने नियत-कार्य के बारे में वह कैसे महसूस करता था? उसने कहा: “सो मैं तुम्हें भी जो रोम में रहते हो, सुसमाचार सुनाने को भरसक तैयार हूँ। क्योंकि मैं सुसमाचार से नहीं लजाता।” (रोमियों १:१५, १६) आज भी, प्रेरित पौलुस के वहाँ रोम में मसीहियों को लिखने के लगभग २,००० साल बाद, किसी समाचार को अच्छा होने के लिए उसे सचमुच एक दीर्घकालिक सुसमाचार होना पड़ता। दरअसल, यह “सनातन सुसमाचार” है।—प्रकाशितवाक्य १४:६.
३, ४. प्रेरित पौलुस ने क्यों कहा कि वह सुसमाचार से लजाता न था?
३ प्रेरित पौलुस ने ऐसा क्यों कहा कि वह सुसमाचार से नहीं लजाता था? वह उस से क्यों लजा सकता था? क्योंकि यह एक लोकप्रिय संदेश न था। इसलिए कि यह एक ऐसे आदमी के बारे में था जिसे किसी तिरस्कृत अपराधी की तरह एक यातना खंभे पर चढ़ाया गया था, जिस से बाहरी प्रतीति के अनुसार उसके बारे में लोगों की धारणा बुरी थी। साढ़े तीन साल तक, इस आदमी ने पलश्तीन में हर जगह जाकर सुसमाचार का प्रचार किया था और यहूदियों, खासकर धार्मिक अगुवों, की तरफ़ से सख़्त विरोध का सामना किया था। और अब पौलुस, जिस पर उस तिरस्कृत आदमी का नाम था, समान बैर का सामना कर रहा था।—मत्ती ९:३५; यूहन्ना ११:४६-४८, ५३; प्रेरितों के काम ९:१५, २०, २३.
४ ऐसे विरोध की वजह से, लोगों ने शायद पौलुस और यीशु मसीह के उसके संगी शिष्यों का विचार इस प्रकार किया होगा मानो उनके पास लज्जित होने जैसे कोई बात हो। वास्तव में, अब पौलुस एक ऐसी बात का अनुसरण कर रहा था, जो खुद वही पहले लज्जाजनक समझता था। उसने व्यक्तिगत रूप से यीशु मसीह के अनुयायियों की निन्दा करने में हिस्सा लिया था। (प्रेरितों के काम २६:९-११) लेकिन उसने वह रास्ता छोड़ दिया था। इसके फलस्वरूप, मसीही बननेवाले अन्यों के साथ-साथ, उसने भी हिंसक उत्पीड़न भोगा।—प्रेरितों के काम ११:२६.
५. पौलुस ने सुसमाचार के कारण लज्जित न होने के बारे में अपने कथन की व्याख्या कैसे की?
५ अगर किसी व्यक्ति ने अपने आप को यीशु मसीह का अनुयायी होने में लज्जा महसूस करने दिया होता, तो वह एक मानवी दृष्टिकोण अपना रहा होता। प्रेरित पौलुस उस तरह न था। उलटा, जिस सुसमाचार का वह प्रचार कर रहा था, उस के कारण लज्जा महसूस न करने का कारण बताते हुए, उसने कहा: “इसलिए कि वह हर एक विश्वास करनेवाले के लिए . . . उद्धार के निमित्त परमेश्वर की सामर्थ है।” (रोमियों १:१६) परमेश्वर की सामर्थ लज्जा का कोई कारण नहीं अगर यह यीशु के किसी शिष्य के ज़रिए उस शानदार परमेश्वर के प्रशंसनीय उद्देश्य की निष्पत्ति के लिए काम करती है, जिस परमेश्वर का खुद यीशु मसीह उपासक और प्रशंसक था।—१ कुरिन्थियों १:१८; ९:२२, २३ से तुलना करें।
दुनिया भर में सुसमाचार का प्रचार
६, ७. (अ) यहोवा के गवाह सुसमाचार से संबंधित कौनसी ज़िम्मेदारी निभाने की कोशिश कर रहे हैं, और इसका परिणाम क्या रहा है? (ब) हालाँकि हम कभी नहीं चाहेंगे कि डर हमें गवाही देने से रोकें, कभी-कभी क्या आवश्यक होगा? (फुटनोट देखें।)
६ पौलुस के जैसे, आज यहोवा के गवाह उसके महिमान्वित पुत्र, यीशु मसीह के शिष्य हैं। अपने इन गवाहों को, यहोवा ने “महिमा के उस सुसमाचार” की धन-सम्पत्ति सौंपी है। (१ तीमुथियुस १:११) यहोवा के गवाह यह भारी ज़िम्मेदारी पूरा करने से रह नहीं गए हैं, और उन से आग्रह किया जाता है कि वे उसके कारण लज्जित न हों। (२ तीमुथियुस १:८) यह अत्यावश्यक है कि हम डर या भीरुता को हमें गवाही देने और यहोवा के गवाहों के तौर से खुद की पहचान देने से कभी न रोकने दें।a
७ ऐसी साहसिक और निडर गवाही देने के परिणामस्वरूप परमप्रधान परमेश्वर का नाम सारी पृथ्वी में घोषित हुआ है और उसके राज्य का सुसमाचार एक विश्वव्याप्त पैमाने पर प्रचार किया गया है। परमेश्वर के पुत्र ने कहा: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा,” और उसके भविष्यकथन को विफलता कभी अनुभव करने नहीं दिया जाता। (मत्ती २४:१४) सुसमाचार अब २१० से ज़्यादा देशों में प्रचार हो रहा है, और इस प्रचार कार्य का समापन अब तक नहीं हुआ। सुसमाचार से न लजाकर और भविष्य का सामना साहस से करते हुए, हम यीशु मसीह के प्रारंभिक शिष्यों के जैसे प्रार्थना करते हैं: “अब, हे यहोवा, . . . अपने दासों को यह वरदान दे, कि तेरा वचन बड़े हियाव से सुनाएँ।”—प्रेरितों के काम ४:२९, न्यू.व.
८. यहोवा के गवाहों को पृथ्वी के सभी देशों में विरोध से निरुत्साह क्यों नहीं होना चाहिए?
८ जबकि यह सच है कि पृथ्वी के सभी देशों में यहोवा के गवाहों से बैर और उनका विरोध किया जाता है, यह उस बात की पूर्ति में है जो पूर्वबतलायी गयी थी कि यह एकमात्र जीवित और सच्चे परमेश्वर के असली उपासकों की पहचान देनेवाला चिन्ह होता। (यूहन्ना १५:२०, २१; २ तीमुथियुस ३:१२) तो इस से निरुत्साह और हताश होने के बजाय, सुसमाचार के प्रचारकों को इस बात से आश्वासन मिलता है कि उनको ईश्वरीय समर्थन मिला है और कि वे विश्व अधिराट्, यहोवा के अनुमोदित संघटन का एक हिस्सा हैं।
९. अगर हमारे विरुद्ध सारी दुनिया भी हो तो क्यों कोई परवाह नहीं?
९ कभी न भूलें: हमें सारे ब्रह्मांड के परमप्रधान परमेश्वर का समर्थन मिला है। इसलिए अगर दुनिया, अपने सभी धार्मिक पंथों और राजनीतिक दलों के साथ, हमारे विरुद्ध हो, तो क्या परवाह है? परमेश्वर के एकलौते पुत्र के ख़िलाफ़ सारी दुनिया थी, और हम उसी स्थिति में पाए जाने से नहीं लजाते। जैसा कि उसने अपने प्रेरितों से कहा: “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उस ने तुम से पहले मुझ से भी बैर रखा। यदि तुम संसार के होते, तो संसार अपनों से प्रीति रखता, परन्तु इस कारण कि तुम संसार के नहीं, बरन मैं ने तुम्हें संसार में से चुन लिया है इसी लिए संसार तुम से बैर रखता है।”—यूहन्ना १५:१८, १९.
१०. गवाहों का अत्याधिक उत्पीड़न किस स्रोत से आया है, और वे उसके कारण लज्जित क्यों नहीं?
१० इस प्रकार यहोवा के गवाहों ने दुनिया भर में बहुत उत्पीड़न सहा है, लेकिन विशेष कर उन देशों में जो तथाकथित मसीहीजगत का मुख्य हिस्सा बनते हैं। मसीहीजगत द्वारा ऐसा उत्पीड़न गवाहों को ग़ैर-मसीही साबित नहीं करता। उलटा, यह सच्चे मसीही, यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता, अर्थात् यहोवा, के गवाह होने के उनके दावे को प्रमाणित करता है। चूँकि वे परमेश्वर के गवाह हैं, वे लज्जित नहीं होते जब वे ऐसे धार्मिक कारणवश उत्पीड़न भुगतते हैं। इसलिए, लज्जित न होने के लिए पहली सदी के मसीहियों को दी प्रेरित पौलुस की चेतावनी अब यहोवा के गवाहों पर उचित रूप से लागू होती है।—फिलिप्पियों १:२७-२९ देखें।
घोषित हो सकनेवाला सबसे अच्छा सुसमाचार
११. यहोवा के गवाह नाम धारण करने से, ऐसा क्यों नहीं कि हम यीशु मसीह के अनुयायी नहीं रहते?
११ यहोवा के गवाहों ने साहस से अपना नाम स्वीकार किया है जो कि यशायाह ४३:१० में अपनी वाचा के लोगों को दिए यहोवा के वादे की पूर्ति में है। बहरहाल, इसका यह मतलब नहीं कि वे अब और अपने अगुवा यीशु मसीह का अनुसरण नहीं करते। यीशु उनका अगुवा है, वही जिसके आदर्श पर वे चलते हैं। खुद वही यहोवा का एक गवाह है। दरअसल, वह यहोवा का अग्र गवाह है।—१ तीमुथियुस ६:१३; प्रकाशितवाक्य १:५.
१२. यहोवा के गवाह दुनिया भर में किस प्रकार के सुसमाचार का प्रचार कर रहे हैं, और क्यों?
१२ ये यहोवा के गवाह दुनिया भर में जिस संदेश का प्रचार करते हैं, वह कभी भी घोषित हो सकनेवाली सबसे अच्छी ख़बर है। मानवजाति के लिए कोई और सरकार मसीही राज्य से बेहतर नहीं हो सकती जो कि यहोवा ने मनुष्यजाति की दुनिया, जिनके उद्धार के लिए उसने अपने एकलौते पुत्र को भेज दिया, पर राज्य करने के लिए स्थापित किया है। (यशायाह ९:६, ७) पृथ्वी के जिन निवासियों को राज्य का सुसमाचार प्रचार किया जा रहा है, उन्हें उसे स्वीकार करने और एक परादीस पृथ्वी पर मानव संपूर्णता में अनन्त जीवन की भेंट के योग्य साबित होने का मौक़ा दिया जा रहा है।
१३. हम आश्वस्त क्यों हो सकते हैं कि मसीही राज्य सरकार सबसे अच्छी होगी, और गवाह बिना शर्म के किस बात की सिफ़ारिश करते हैं?
१३ निश्चय ही, अगर यीशु उन लोगों का उद्धार करने के लिए, जो उसकी प्रजा बननेवाले थे, एक क्रूर मृत्यु मरने के लिए तैयार था, वह ज़रूर उन्हें सबसे अच्छी सरकार के अलावा और कोई सरकार न देता। हम पृथ्वी पर हर मानव से सिफ़ारिश करते हैं: उस सरकार का एक विश्वासनीय, आज्ञाकारी नागरिक बनो। हम उस सरकार से लज्जित नहीं जिसकी सिफ़ारिश हम सारी मनुष्यजाति से करते हैं। हम राज्य का प्रचार करने से पीछे नहीं हटते, हालाँकि इस रास्ते पर हमें उत्पीड़न मिल सकता है। प्रेरित पौलुस के जैसे, हम में से हर एक कहता है: “मैं सुसमाचार से नहीं लजाता।”
१४. यीशु के अनुसार, हमारे समय में राज्य प्रचार कार्य कितना व्यापक होता?
१४ यीशु ने पूर्वबतलाया कि राज्य के सुसमाचार का प्रचार एक विश्वव्याप्त पैमाने पर होता, और यह विस्तृत तथा व्यापक भविष्यद्वाणी ऐसे संदेश के लिए उचित थी। (मरकुस १३:१०) वह यह पूर्वबतलाने के लिए अनिच्छुक न था कि यहोवा के राज्य का प्रचार दूर-दूर तक—जी हाँ, पृथ्वी की छोर तक—होता। (प्रेरितों के काम १:८) यीशु जानता था कि जहाँ कहीं लोग मिल सकते थे, उसके विश्वसनीय शिष्य राज्य का सुसमाचार लेकर उन तक पहँचने की सच्ची कोशिश करते।
१५, १६. (अ) कौन इस योग्य हैं कि उन तक सुसमाचार पहँचाया जाए? (ब) इब्लीस के संघटन की तरफ़ से उत्पीड़न के बावजूद प्रचार कार्य क्यों संपन्न होगा?
१५ आज पृथ्वी के निवासियों की संख्या लाखों करोड़ों में है और वे सभी महाद्वीपों तथा महासागरों के मुख्य द्वीपों पर फैले हुए हैं। फिर भी, बसी हुई पृथ्वी का कोई हिस्सा यहोवा के गवाहों के लिए इतना दूर नहीं रहा है कि वे सुसमाचार लेकर वहाँ तक पहुँचने की कोशिश न कर सके हैं। संपूर्ण बसी हुई पृथ्वी यहोवा परमेश्वर की प्रतीकात्मक चरणों की चौकी है। (यशायाह ६६:१) उसकी चरणों की चौकी के किसी भी हिस्से में रहनेवाले मानव इस योग्य हैं कि उन तक यह उद्धार का संदेश पहँचाया जाए।
१६ आज सुसमाचार एक ऐसी शाही सरकार के बारे में आनन्दित ख़बर है, जो मसीह के हाथों अभी स्थापित हो चुकी है। यीशु को मालूम था कि इब्लीस के संघटन की तरफ़ से सबसे विद्वेषपूर्ण उत्पीड़न के बावजूद भी, परमेश्वर का आत्मा मसीह के सच्चे अनुयायियों को बिल्कुल हद तक जाने के लिए प्रेरित करता ताकि “राज्य का यह सुसमाचार,” एक स्थापित वास्तविकता के तौर से “सारे जगत में प्रचार किया” जाए।—मत्ती २४:१४.
यीशु मसीह और यहोवा से न लजाना
१७. (अ) सच्चे उपासक किस से नहीं लजाते? (ब) मरकुस ८:३८ में यीशु ने कौनसा नियम घोषित किया, और उसका अभिप्राय क्या है?
१७ परमप्रधान परमेश्वर अपने को एक नाम, यहोवा, देने के लिए अनिच्छुक न था; और न ही उसके विश्वसनीय उपासकों को उस नाम से लजाना चाहिए। सच्चे उपासक खुश हैं कि वे ऐसे व्यक्ति के तौर से जाने और पहचाने जाएँ, जो उसे अविभक्त उपासना और आज्ञाकारिता देते हैं। खुद के संबंध में, यीशु ने मरकुस ८:३८ (न्यू.व.) में एक नियम, या सिद्धांत घोषित किया: “जो कोई इस व्यभिचारी और पापी पीढ़ी के बीच मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र दूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उस से भी लजाएगा।” उसी तरह, जो कोई प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता से लजाता, यहोवा सही-सही ऐसे व्यक्ति से लजाता। और यहोवा जिस किसी प्राणी के अविश्वसनीय आचरण की वजह से उस से लजाता, वह स्वर्ग में या पृथ्वी परमेश्वर के प्राधिकार क्षेत्र के किसी भी हिस्से में अस्तित्व का आनन्द उठाने के योग्य न होता।—लूका ९:२६.
१८. (अ) मत्ती १०:३२, ३३ में यीशु के शब्द हमारे दिल और दिमाग़ पर पक्के क्यों होने चाहिए? (ब) जो लोग मनुष्यों के डर से यीशु और यहोवा का इन्कार करते हैं, उनका क्या होता है? (फुटनोट पर आधारित कुछ मिसाल दें।)
१८ यीशु मसीह के निम्नलिखित शब्द हमारे दिल और दिमाग़ में पक्के हों: “जो कोई मनुष्यों के सामने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने मान लूँगा। पर जो कोई मनुष्यों के सामने मेरा इन्कार करेगा उस से मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के सामने इन्कार करूँगा।” (मत्ती १०:३२, ३३; लूका १२:८, ९) उसी आधार पर, जो कोई प्रभु यीशु मसीह के परमेश्वर और पिता का इन्कार करता, वह उस के द्वारा इन्कार किया जाता। वह उस गृहस्थी का सदस्य होने के योग्य नहीं माना जाता जिसका प्रमुख पुत्र यीशु मसीह है। इस प्रकार वह परमेश्वर के नियत समय पर नष्ट किया जाता।b
१९, २०. (अ) ऐसा क्यों है कि जिन लोगों ने यहोवा के नाम के पवित्रीकरण के लिए प्रार्थना की है, उनके लिए ऐसी कोई बात न होगी जिससे उन्हें लजाना पड़े? (ब) निडर राज्य उद्घोषकों ने क्या संपन्न किया है, और किसके समर्थन से?
१९ वह आदर्श प्रार्थना जो यीशु ने अपने शिष्यों को सिखायी, पूरी की जाएगी: “हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:९, १०) जब वैसा होगा, ऐसी कोई बात न होगी जिस से यीशु के प्रेममय शिष्यों को लजाना पड़े। यहोवा का नाम पूज्य और पवित्र माना जाएगा, न केवल अब ज़िन्दा लाखों के द्वारा जिन्हें मरने की कोई ज़रूरत नहीं, बल्कि मानवजाति के उन लाखों करोड़ों के द्वारा भी जिन्हें वह अपने हज़ार-वर्षीय राज्य शासनकाल के दौरान उनके क़ब्रों में से बुला लाएगा। उन्हें हमेशा के लिए एक परादीस पृथ्वी पर जीने का मौक़ा प्राप्त होगा।
२० बिना लजाकर, राज्य के सुसमाचार के ये निडर उद्घोषक विश्वव्याप्त विरोध के बावजूद एक व्यापक प्रचार कार्य संपन्न कर सके हैं, इसलिए कि उनके पीछे एक दैवी ताक़त है—स्वर्ग दूतों का समर्थन। इसलिए, यहोवा के गवाह ‘परमेश्वर से डरते और उसकी महिमा करते हैं।’—प्रकाशितवाक्य १४:६, ७.
परमेश्वर से डरने और उसकी महिमा करने से नहीं लजाना
२१. यहोवा के गवाह क्या करने से नहीं लजाए हैं, और इसका नतीजा क्या रहा है?
२१ यहोवा के गवाहों ने यह साबित किया है कि वे परमेश्वर से डरने और उसकी महिमा करने से नहीं लजाते, यहाँ तक कि वे उसका निजी नाम, यहोवा, भी इस्तेमाल करते हैं। इस से उन्हें वर्णनातीत आशीर्वाद मिले हैं। ये आशीर्वाद परमप्रधान परमेश्वर के वादों की विश्वसनीय पूर्ति की वजह से प्राप्त हुए हैं। एकमात्र जीवित और सच्चे परमेश्वर, विश्व के अधिराट्, के तौर से यह उसकी क्या ही सत्य सिद्धि रही है!
२२. यहोवा के गवाह विद्वेषपूर्ण उत्पीड़न का सामना क्यों करेंगे, लेकिन उन्हें कैसा आनन्द प्राप्त होगा?
२२ आनेवाले भविष्य में, सांसारिक सरकार धार्मिक शासनों के विरुद्ध होकर उन सब को—मसीहीजगत समेत—नष्ट करेंगे, यहाँ तक कि उनका अस्तित्व ही न रहेगा। (प्रकाशितवाक्य १७:१६, १७) इसके परिणामस्वरूप, यहोवा के गवाह सांसारिक तत्त्वों की ओर से विद्वेषपूर्ण उत्पीड़न के काल का सामना करेंगे। अगर अनन्त परमेश्वर उनके साथ न होता तो वे न सहन कर पाते और न ही बच सकते थे। मगर वह उनके साथ है, और इसलिए उन्हें ऐसे सभी मसीही-विरोधी और यहोवा-विरोधी शत्रुओं का सर्वनाश होते देखने का आनन्द प्राप्त होगा, उस परमेश्वर के द्वारा जिसकी उपासना गवाह अविचल रूप से करते हैं। वे सच्चे ईशतंत्र के शत्रुओं के तौर से बेपरदा होने और नष्ट किए जाने की शर्मिंदगी नहीं भुगतेंगे, बल्कि वे यहोवा को यह गाकर सुनाने का वर्णनातीत आनन्द अनुभव करेंगे: “अनादिकाल से अनन्तकाल तक तू ही ईश्वर है।”—भजन ९०:२.
२३. ऐसा क्यों है कि ऐसी कोई भी बात नहीं जिससे यहोवा के गवाहों को लजाना पड़े, और इसका क्या नतीजा होगा?
२३ वे परमेश्वर, यीशु मसीह के पिता का गौरव करेंगे, जिसके ज़रिए एक परादीस पृथ्वी पर मानव संपूर्णता और खुशी में अनन्त जीवन का आनन्द उठाने के लिए मानव परिवार का उद्धार होता है। यहोवा ने खुद को मसीह यीशु के ज़रिए क्या ही शक्तिशाली परमेश्वर साबित किया है! यहोवा ने कितनी बखूबी से साबित किया है कि वह अपने सर्वशक्तिमान सामर्थ्य का, एक ग़लत इस्तोमल करनेवाला नहीं, बल्कि एक बुद्धिमान और प्रेममय इस्तेमाल करनेवाला है! तदनुसार, उसके या उसके एकलौते पुत्र, यीशु मसीह, के संबंध में ऐसी कोई भी बात नहीं जिसकी वजह से हमें लजाना पड़े। हम उस शानदार सुसमाचार के उद्घोषक होने से नहीं लजाते, जो कि मसीह यीशु के ज़रिए यहोवा परमेश्वर की सर्व-विजयी सामर्थ्य घोषित करता है। उसी यीशु ने अपने पार्थिव ज़िन्दगी की अंतिम घड़ियों में कहा: “ढाढ़स बांधो! मैं ने संसार को जीत लिया है।” (यूहन्ना १६:३३) यह रास्ता लेने में, हम प्रेरित पौलुस के आदर्श का हमेशा अनुसरण करें, जो सुसमाचार से कभी नहीं लजाया। अगर हम ऐसा करेंगे, तो सर्वशक्तिमान परमेश्वर हम से नहीं लजाएगा।
[फुटनोट]
a हालाँकि हमें यह वास्तविकता स्वीकार करने से नहीं लजाना चाहिए कि हम गवाह हैं, ऐसे समय भी हैं जब हमें “साँपों की नाईं बुद्धिमान” होना चाहिए। (मत्ती १०:१६) नाट्ज़ी जर्मनी में गवाह जानते थे कि एक ऐसा समय था जब उन्हें अपनी पहचान देनी चाहिए थी और एक ऐसा समय जब उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।—प्रेरितों के काम ९:२३-२५ से तुलना करें।
b बारम्बार, जिन लोगों ने मनुष्यों के डर से यीशु और यहोवा का इन्कार किया है, उन्होंने दुनिया से भी कोई कृपा नहीं पायी। उदाहरणार्थ, मई १, १९८९ का द वॉचटावर, पृष्ठ १२; १९८२ यरबुक, पृष्ठ १६८; १९७७ यरबुक, पृष्ठ १७४-६; १९७४ यरबुक, पृष्ठ १४९-५०, १७७-८ देखें। दूसरी ओर, सुसमाचार के पक्के विरोधी भी पहले से मान लेते हैं कि गवाह यीशु और यहोवा का इन्कार नहीं करेंगे। (१९८९ यरबुक, पृष्ठ ११६-१८) मत्ती १०:३९ और लूका १२:४ भी देखें।
समीक्षा के प्रश्न
◻ प्रेरित पौलुस के जैसे, सुसमाचार घोषित करने के संबंध में हमारी मनोवृत्ति कैसी होनी चाहिए, और क्यों?
◻ यहोवा के गवाहों द्वारा घोषित किया गया संदेश सबसे अच्छी ख़बर क्यों है?
◻ यीशु ने उन लोगों के बारे में कौनसी चेतावनी दी जो राज्य महिमा में उसके आगमन पर उससे लजाते?
◻ जो कोई यीशु और यहोवा का इन्कार करते हैं, उनका क्या होगा?
◻ बिना लजाकर, सुसमाचार के उद्घोषक क्या संपन्न कर पाए हैं, और क्यों?