यीशु ने नम्रता दिखाने का नमूना छोड़ा
“मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है कि जैसे मैंने तुम्हारे साथ किया, वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए।”—यूह. 13:15.
1, 2. धरती पर अपनी आखिरी रात यीशु ने किस तरह अपने प्रेषितों को एक ज़रूरी सबक सिखाया?
धरती पर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात है। वह यरूशलेम में एक घर के ऊपरवाले कमरे में अपने प्रेषितों के साथ है। वे शाम का खाना खा रहे हैं कि तभी यीशु मेज़ से उठता है और अपना चोगा उतारकर अलग रख देता है। वह एक तौलिया कमर पर बाँध लेता है। इसके बाद वह एक बरतन में पानी भरता है और अपने चेलों के पैर धोने लगता है और कमर पर बंधे तौलिये से पोंछने लगता है। फिर वह अपना चोगा पहन लेता है। आखिर यीशु ने यह मामूली काम किस लिए किया?—यूह. 13:3-5.
2 यीशु ने खुद समझाया, “क्या तुम जानते हो कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है? . . . अगर मैंने प्रभु और गुरु होते हुए भी तुम्हारे पैर धोए हैं, तो तुम्हें भी एक-दूसरे के पैर धोने चाहिए। इसलिए कि मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है कि जैसे मैंने तुम्हारे साथ किया, वैसे ही तुम्हें भी करना चाहिए।” (यूह. 13:12-15) जी हाँ, इस तरह का मामूली काम करके यीशु ने अपने प्रेषितों को एक ज़रूरी सबक सिखाया। ऐसा सबक जो उनके दिलो-दिमाग पर गहरी छाप छोड़ता और आनेवाले दिनों में उन्हें नम्र बनने के लिए उकसाता।
3. (क) दो मौकों पर यीशु ने किस तरह नम्रता की अहमियत पर ज़ोर दिया? (ख) इस लेख में हम किन बातों पर गौर करेंगे?
3 जब यीशु ने अपने प्रेषितों के पैर धोए, तो ऐसा नहीं था कि वह उन्हें पहली बार नम्र होने की अहमियत समझा रहा था। इससे पहले एक मौके पर जब उसके प्रेषितों ने होड़ की भावना दिखायी, तो यीशु ने एक छोटे बच्चे को अपने पास खड़ा किया और प्रेषितों से कहा, “जो कोई इस छोटे बच्चे को मेरे नाम से स्वीकार करता है वह मुझे भी स्वीकार करता है और जो मुझे स्वीकार करता है वह उसे भी स्वीकार करता है जिसने मुझे भेजा है। इसलिए कि तुम सबमें जो अपने आपको बाकियों से छोटा समझकर चलता है, वही है जो तुम सबमें बड़ा है।” (लूका 9:46-48) यीशु जानता था कि फरीसी दूसरों की नज़र में बड़ा बनने की कोशिश करते हैं, इसलिए एक दूसरे मौके पर यीशु ने कहा, “जो कोई खुद को ऊँचा करता है, उसे नीचा किया जाएगा, और जो खुद को नीचे रखता है उसे ऊँचा किया जाएगा।” (लूका 14:11) ज़ाहिर है यीशु चाहता था कि उसके चेले नम्र बनें, यानी मन के दीन बनें और किसी तरह का घमंड या अहंकार न करें। आइए अब हम गौर करें कि यीशु ने कैसे नम्रता दिखायी ताकि हम उसकी मिसाल पर चल सकें। इस लेख में हम यह भी देखेंगे कि जो लोग नम्रता का गुण दिखाते हैं उन्हें और दूसरों को इससे कैसे फायदा होता है।
‘मैं पीछे न हटा’
4. परमेश्वर के इकलौते बेटे ने धरती पर आने से पहले कैसे नम्रता दिखायी?
4 परमेश्वर के इकलौते बेटे ने धरती पर आने से पहले भी नम्रता दिखायी। उसने स्वर्ग में अपने पिता के साथ अरबों-खरबों साल बिताए थे। उसका अपने पिता के साथ कितना करीबी रिश्ता था, इस बारे में यशायाह की किताब बताती है, “प्रभु यहोवा ने मुझे सीखनेवालों की जीभ दी है कि मैं थके हुए को अपने वचन के द्वारा संभालना जानूं। भोर को वह नित मुझे जगाता और मेरा कान खोलता है कि मैं शिष्य के समान [सुनूं]। प्रभु यहोवा ने मेरा कान खोला है, और मैं ने विरोध न किया, न पीछे हटा।” (यशा. 50:4, 5) परमेश्वर के बेटे ने हमेशा अपने व्यवहार से दिखाया कि वह दिल से नम्र है। उसे यहोवा जो भी सिखाता था, उस पर वह पूरा-पूरा ध्यान देता था। वह सच्चे परमेश्वर से सीखने के लिए बेताब रहता था। बेशक, यीशु ने बड़े गौर से देखा होगा कि कैसे यहोवा पापी इंसानों पर दया दिखाकर नम्रता ज़ाहिर करता है!
5. प्रधान स्वर्गदूत के नाते, यीशु ने इब्लीस से पेश आते वक्त कैसे नम्रता दिखाने और मर्यादा में रहने की मिसाल कायम की?
5 स्वर्ग में रहनेवाले हरेक स्वर्गदूत का रवैया वैसा नहीं था जैसा परमेश्वर के इकलौते बेटे का था। जो स्वर्गदूत आगे चलकर शैतान या इब्लीस बना, वह यहोवा से सीखने के लिए तैयार नहीं था। नम्रता दिखाने के बजाय, वह खुद को बहुत अहमियत देने लगा और उसने अपने अंदर घमंड को पनपने दिया। यहाँ तक कि उसने यहोवा के खिलाफ बगावत की। वहीं दूसरी तरफ, यीशु का जो स्वर्ग में ओहदा था उससे वह पूरी तरह संतुष्ट था। उसने कभी अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करने की नहीं सोची। मसलन, जब यीशु यानी मीकाएल की “मूसा की लाश के मामले में शैतान के साथ बहस हुई,” तो एक प्रधान स्वर्गदूत होने के नाते वह अपने अधिकार के दायरे से बाहर नहीं गया। परमेश्वर के बेटे ने नम्रता दिखायी और वह अपनी मर्यादा में रहा। उसने मामले को इस विश्व के सबसे महान न्यायी यहोवा पर छोड़ दिया कि वह अपने तरीके से और अपने समय पर सबकुछ ठीक कर देगा।—यहूदा 9 पढ़िए।
6. मसीहा के तौर पर सेवा करने की ज़िम्मेदारी कबूल कर यीशु ने कैसे नम्रता दिखायी?
6 ज़ाहिर है कि स्वर्ग में रहते वक्त यीशु ने बहुत-सी बातें सीखीं। और बेशक उसने उन भविष्यवाणियों के बारे में भी सीखा होगा जिनमें बताया गया था कि धरती पर मसीहा की ज़िंदगी कैसी होगी। इसलिए शायद वह पहले से जानता था कि आगे चलकर उस पर क्या-क्या बीतेगी। फिर भी, यीशु धरती पर आने को तैयार था और उसने वादा किए गए मसीहा के तौर पर मरना कबूल किया। प्रेषित पौलुस के शब्दों से ज़ाहिर होता है कि नम्रता की वजह से ही यीशु इतना बड़ा त्याग कर पाया। पौलुस ने लिखा, “उसने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी, उस पद को हथियाने की बात कभी न सोची, यानी यह कि वह परमेश्वर की बराबरी करे। इसके बजाय, उसने अपना सबकुछ त्याग दिया और एक दास का स्वरूप ले लिया और इंसान बन गया।”—फिलि. 2:6, 7.
धरती पर “उसने खुद को नम्र किया”
7, 8. यीशु ने किस तरह बचपन में और धरती पर अपनी सेवा के दौरान नम्रता दिखायी?
7 पौलुस ने लिखा, “जब [यीशु] ने खुद को इंसान की शक्ल-सूरत में पाया, तो उसने खुद को नम्र किया और इस हद तक आज्ञा माननेवाला बना कि उसने मौत भी, हाँ, यातना की सूली पर मौत भी सह ली।” (फिलि. 2:8) यीशु ने बचपन से ही नम्रता दिखाने में हमारे लिए एक नमूना छोड़ा। हालाँकि उसकी परवरिश उसके असिद्ध माता-पिता यूसुफ और मरियम ने की, फिर भी नम्रता दिखाते हुए वह “लगातार उनके अधीन रहा।” (लूका 2:51) छोटे बच्चों के लिए क्या ही उम्दा मिसाल! अगर वे खुशी-खुशी अपने माता-पिता के अधीन रहें, तो परमेश्वर उन्हें आशीष देगा।
8 जब यीशु बड़ा हुआ, तब उसने अपनी मरज़ी पूरी करने के बजाय यहोवा की मरज़ी पूरी करने को ज़्यादा ज़रूरी समझा और इस तरह उसने नम्रता दिखायी। (यूह. 4:34) अपनी सेवा के दौरान, यीशु मसीह ने परमेश्वर के नाम का इस्तेमाल किया। उसने नेकदिल लोगों की मदद की, ताकि वे यहोवा की शख्सियत और इंसानों के लिए उसके मकसद के बारे में सही-सही ज्ञान ले सकें। यीशु ने लोगों को यहोवा के बारे में जो सिखाया उसके मुताबिक वह जीया भी। मिसाल के लिए, आदर्श प्रार्थना में यीशु ने सबसे पहले जो बात कही, वह थी, “हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र किया जाए।” (मत्ती 6:9) इस तरह यीशु ने अपने चेलों को हिदायत दी कि उन्हें यहोवा का नाम पवित्र करने को सबसे ज़्यादा अहमियत देनी चाहिए। और उसने अपने जीने के तरीके से खुद ऐसा करके दिखाया। इसीलिए धरती पर अपनी सेवा के आखिर में यीशु, यहोवा से प्रार्थना करते वक्त कह पाया, “मैंने तेरा नाम उन्हें [प्रेषितों को] बताया है और आगे भी बताऊँगा।” (यूह. 17:26) इसके अलावा, अपनी सेवा के दौरान यीशु ने जो किया, उसका सारा श्रेय उसने हमेशा यहोवा को दिया।—यूह. 5:19.
9. जकर्याह ने मसीहा के बारे में क्या भविष्यवाणी की? यह भविष्यवाणी यीशु में कैसे पूरी हुई?
9 मसीहा के बारे में जकर्याह ने भविष्यवाणी की, “हे सिय्योन बहुत ही मगन हो! हे यरूशलेम जयजयकार कर! क्योंकि तेरा राजा तेरे पास आएगा; वह धर्मी और उद्धार पाया हुआ है, वह दीन है, और गदहे पर वरन गदही के बच्चे पर चढ़ा हुआ आएगा।” (जक. 9:9) यह भविष्यवाणी तब पूरी हुई, जब ईसवी सन् 33 में फसह के त्योहार से पहले यीशु यरूशलेम में दाखिल हुआ। भीड़ ने अपने ओढ़ने और पेड़ों की डालियाँ काटकर रास्ते में बिछायीं। जी हाँ, जब वह यरूशलेम में दाखिल हुआ, तो पूरे शहर में तहलका मच गया। लोगों ने उसे अपना राजा कहकर उसकी जयजयकार की, फिर भी वह नम्र बना रहा।—मत्ती 21:4-11.
10. यीशु ने अपनी मौत तक खुशी-खुशी यहोवा की आज्ञा मानी, इससे क्या साबित हुआ?
10 धरती पर रहते वक्त यीशु ने अपनी पूरी ज़िंदगी नम्रता दिखायी और परमेश्वर की आज्ञा मानी। सूली पर अपनी मौत तक उसने ऐसा किया। इस तरह उसने साबित किया कि इंसान पर चाहे कितनी ही आज़माइशें क्यों न आ जाएँ, वह यहोवा का वफादार बना रह सकता है। यीशु ने यह भी दिखाया कि शैतान ने इंसानों पर जो इलज़ाम लगाया था कि वे सिर्फ अपने मतलब के लिए यहोवा की सेवा करते हैं, वह झूठा है। (अय्यू. 1:9-11; 2:4) जिस तरह यीशु ने अंत तक खराई बनाए रखी, उससे उसने साबित किया कि सिर्फ यहोवा को ही पूरे विश्व पर हुकूमत करने का हक है और वही एक ऐसा शख्स है जो सही तरह से हुकूमत कर सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि जब यहोवा ने देखा होगा कि उसके नम्र बेटे ने किस हद तक वफादारी दिखायी, तो उसका दिल कितना खुश हुआ होगा!—नीतिवचन 27:11 पढ़िए।
11. जो लोग यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं, उनके लिए फिरौती बलिदान से क्या मुमकिन हुआ?
11 सूली पर अपनी जान कुरबान कर, यीशु ने इंसानों के लिए फिरौती बलिदान की कीमत भी अदा की। (मत्ती 20:28) इस फिरौती बलिदान से पापी इंसानों के लिए हमेशा की ज़िंदगी पाने का रास्ता खुला गया और यहोवा के न्याय की माँगे भी पूरी हुईं। पौलुस ने लिखा, “एक ही इंसान के एक नेक काम का नतीजा, सब किस्म के इंसानों के लिए नेक ठहराया जाना हुआ ताकि वे जीवन पाएँ।” (रोमि. 5:18) यीशु के बलिदान की वजह से अभिषिक्त मसीहियों के लिए स्वर्ग में अमर जीवन पाना और ‘दूसरी भेड़ों’ के लिए धरती पर हमेशा की ज़िंदगी पाना मुमकिन हुआ।—यूह. 10:16; रोमि. 8:16, 17.
मैं “दिल से दीन हूँ”
12. असिद्ध इंसानों से पेश आते वक्त यीशु ने कैसे कोमलता और नम्रता दिखायी?
12 यीशु ने उन सभी को अपने पास आने का न्यौता दिया जो “कड़ी मज़दूरी से थके-माँदे और बोझ से दबे” हुए थे। उसने कहा, “मेरा जूआ अपने ऊपर लो और मुझसे सीखो, क्योंकि मैं कोमल-स्वभाव का, और दिल से दीन हूँ और तुम ताज़गी पाओगे।” (मत्ती 11:28, 29) यीशु नम्र और कोमल था, तभी वह असिद्ध इंसानों के साथ दया से पेश आता था और उनके साथ कोई भेदभाव नहीं करता था। वह अपने चेलों से हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता था। यीशु उनकी सराहना करता और उनका हौसला बढ़ाता। यीशु ने कभी कुछ ऐसा नहीं कहा या किया जिससे उन्होंने खुद को नकारा या नाकाबिल महसूस किया हो। यीशु ने कभी किसी पर धौंस नहीं जमायी, न ही किसी पर ज़ुल्म ढाए। इसके बजाय, उसने अपने चेलों को यकीन दिलाया कि अगर वे उसके करीब आएँ और उसकी शिक्षाओं को मानें, तो उन्हें ताज़गी मिलेगी क्योंकि उसका जुआ आरामदायक और उसका बोझ हल्का है। उसकी मौजूदगी में स्त्री या पुरुष, बच्चे, बुढ़े, जवान, किसी को भी झिझक महसूस नहीं होती थी।—मत्ती 11:30.
13. यीशु ने दीन-दुखियों पर कैसे करुणा दिखायी?
13 यीशु जब इसराएल के दीन-दुखियों को देखता, तो उसे उन पर तरस आता था। उसने उन पर करुणा दिखायी और उनकी ज़रूरतें पूरी कीं। एक बार यरीहो के पास, यीशु को बरतिमाई नाम का एक भिखारी और उसका साथी मिला। वे दोनों अंधे थे। वे बार-बार यीशु से मदद की गुहार लगा रहे थे, मगर भीड़ ने कड़ाई से उनसे कहा कि वे चुप हो जाएँ। ऐसे में यीशु बड़ी आसानी से उन अंधों की गुहार अनसुनी कर सकता था। मगर नहीं, उसने ऐसा नहीं किया, बल्कि उसने उन्हें अपने पास बुलवाया। उन्हें देखकर यीशु तड़प उठा। उसने उनकी आँखें ठीक कर दीं। जी हाँ, यीशु अपने पिता यहोवा की मिसाल पर चला। वह नम्रता से पेश आया और उसने दीन-दुखियों पर दया दिखायी।—मत्ती 20:29-34; मर. 10:46-52.
“जो कोई खुद को नीचे रखता है उसे ऊँचा किया जाएगा”
14. यीशु ने जो नम्रता का गुण दिखाया, वह कैसे फायदेमंद साबित हुआ?
14 यीशु मसीह ने जिस तरह हमेशा नम्रता का गुण दिखाया वह सभी के लिए खुशी का कारण बना और बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ। यहोवा ने जब देखा कि उसका अज़ीज़ बेटा कैसे नम्रता से उसकी मरज़ी पूरी कर रहा है, तो उसे बेहद खुशी हुई। यीशु के कोमल-स्वभाव और दिल से दीन होने की वजह से उसके प्रेषितों और दूसरे चेलों को ताज़गी मिली। उसने जो मिसाल कायम की, जो शिक्षाएँ दीं और जिस तरह उनकी सराहना की, उससे उन्हें परमेश्वर के और भी अच्छे सेवक बनने में मदद मिली। यीशु ने जो नम्रता दिखायी उससे दीन-दुखियों को भी फायदा हुआ। उसने उनकी मदद की, उन्हें सिखाया और उनका हौसला बढ़ाया। दरअसल, वे सभी इंसान जो यीशु पर विश्वास रखते हैं, उसके फिरौती बलिदान से हमेशा फायदा पाएँगे।
15. नम्रता दिखाने से खुद यीशु को क्या फायदा हुआ?
15 लेकिन यीशु के बारे में क्या? नम्रता दिखाने से क्या उसे फायदा हुआ? बिलकुल। उसने अपने चेलों से कहा: “जो कोई खुद को नीचे रखता है उसे ऊँचा किया जाएगा।” (मत्ती 23:12) ये शब्द यीशु के बारे में सोलह आने सच साबित हुए। पौलुस ने समझाया, “परमेश्वर ने [यीशु को] पहले से भी ऊँचा पद देकर महान किया और मेहरबान होकर उसे वह नाम दिया जो दूसरे हर नाम से महान है ताकि जो स्वर्ग में हैं और जो धरती पर हैं और जो ज़मीन के नीचे हैं, हर कोई यीशु के नाम से घुटना टेके, और हर जीभ खुलकर यह स्वीकार करे कि यीशु मसीह ही प्रभु है, जिससे परमेश्वर हमारे पिता की महिमा हो।” धरती पर रहते वक्त यीशु ने जो नम्रता और वफादारी दिखायी उसकी वजह से यहोवा परमेश्वर ने अपने बेटे को महान किया, उसे स्वर्ग में और धरती पर रहनेवाले सभी प्राणियों पर अधिकार दिया।—फिलि. 2:9-11.
यीशु ‘सत्य और नम्रता के लिए सवार होगा’
16. क्या बातें दिखाती हैं कि परमेश्वर के बेटे के कामों से आगे भी नम्रता ज़ाहिर होती रहेगी?
16 परमेश्वर के बेटे के कामों से आगे भी नम्रता ज़ाहिर होती रहेगी। यीशु जब स्वर्ग में अपने महान पद पर होगा तब वह अपने दुश्मनों के खिलाफ क्या कदम उठाएगा, इस बारे में बताते हुए एक भजनहार ने लिखा था, “अपने प्रताप में सवार होकर सत्य, नम्रता, और धार्मिकता के लिए विजयपूर्वक आगे बढ़ता जा।” (भज. 45:4, अ न्यू हिंदी ट्रांस्लेशन) हर-मगिदोन के युद्ध में यीशु मसीह उन लोगों की तरफ से लड़ेगा जो नम्र और नेक हैं और सच्चाई से प्यार करते हैं। लेकिन हज़ार साल के राज के आखिर में जब मसीहाई राजा के तौर पर “वह सारी हुकूमत और सारे अधिकार और सारी ताकत को मिटा चुका होगा,” तब क्या होगा? क्या तब भी वह नम्रता दिखाएगा? जी हाँ, क्योंकि बाइबल बताती है कि उस वक्त “वह अपने परमेश्वर और पिता के हाथ में राज सौंप देगा।”—1 कुरिंथियों 15:24-28 पढ़िए।
17, 18. (क) यीशु ने नम्रता का जो नमूना छोड़ा, यहोवा के सेवकों के लिए उस पर चलना क्यों ज़रूरी है? (ख) अगले लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
17 हमारे बारे में क्या? क्या हम अपने आदर्श यीशु मसीह के नमूने पर चलेंगे और नम्रता दिखाएँगे? जब हमारा राजा यीशु मसीह हर-मगिदोन के युद्ध में न्याय करेगा तो क्या हम बच पाएँगे? जैसा कि हमने देखा वह सिर्फ उन्हें बचाएगा जो नम्र हैं और नेकी की राह पर चलते हैं। इसलिए अगर हम बचना चाहते हैं, तो यह बेहद ज़रूरी है कि हम नम्रता का गुण पैदा करें। और हमारे नम्रता दिखाने के और भी बहुत-से फायदे होंगे, ठीक जैसे यीशु के हमेशा नम्रता दिखाने से खुद उसे और दूसरों को फायदा हुआ।
18 यीशु ने नम्रता दिखाने का जो नमूना छोड़ा, उस पर चलने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? आज हमारे सामने जो चुनौतियाँ आती हैं, उनके बावजूद हम कैसे नम्र बने रह सकते हैं? अगले लेख में हम इन सवालों पर चर्चा करेंगे।