यीशु का जीवन और सेवकाई
याईर का घर छोड़ना और नासरत की पुनःभेंट करना
यह दिन यीशु के लिए बहुत ही व्यस्त रहा है—दिकापुलिस से एक जलयात्रा, रक्तस्राव से पीड़ित स्त्री को स्वस्थ करना, और याईर की बेटी का पुनरुत्थान करना। लेकिन दिन अभी समाप्त नहीं हुआ है। स्पष्टतः जैसे यीशु याईर के घर से निकलता है, दो अँधे मनुष्य पीछे-पीछे चलते हैं और चिल्लाते हैं: “हे दाऊद की सन्तान, हम पर दया कर।”
यीशु को “दाऊद की सन्तान” नाम से सम्बोधित करने के द्वारा, ये पुरुष यह विश्वास अभिव्यक्त कर रहे हैं कि यीशु दाऊद के सिंहासन का वारिस है, जिसका अर्थ है कि वह प्रतिज्ञात मसीहा है। किन्तु, यीशु प्रतीयमान रूप से मदद के लिए उनकी पुकारों की ओर ध्यान नहीं देता, शायद उनके आग्रह की परीक्षा लेने के लिए। लेकिन वे मनुष्य आशा नहीं छोड़ते। वे यीशु के रहने की जगह तक उसके पीछे-पीछे आते हैं और जब वह घर में प्रवेश करता है, वे भी उसके पीछे अन्दर चले जाते हैं।
वहाँ यीशु पूछता है: “क्या तुम्हें विश्वास है, कि मैं यह कर सकता हूँ?”
वे विश्वासपूर्वक कहते हैं: “हाँ प्रभु।”
तो, उनकी आँखों को छूकर यीशु कहता है: “तुम्हारे विश्वास के अनुसार तुम्हारे लिये हो।” अचानक वे देख सकते हैं! यीशु फिर सख़्ती से उन्हें आदेश देता है: “सावधान, कोई इस बात को न जाने।” लेकिन खुशी से फूल उठने की वजह से, वे यीशु के आदेश की उपेक्षा करते हैं और उसके बारे में सारे देहात में चर्चा करते हैं।
जैसे ही ये पुरुष चले जाते हैं, लोग एक दुष्टात्मा-ग्रस्त व्यक्ति को अन्दर ले आते हैं, जिसकी वाणी दुष्टात्मा ने छीन ली है। यीशु उस दुष्टात्मा को निकाल देता है, और तुरन्त ही वह पुरुष बात करने लगता है। भीड़ इन अद्भुत कार्यों को देखकर आश्चर्यचकित हो जाते हैं, और कहते हैं: “इस्राएल में ऐसा कभी नहीं देखा गया।”
फरीसी भी उपस्थित हैं। वे उसके अद्भुत कार्यों का इन्कार नहीं कर सकते, लेकिन उनके दुष्ट अविश्वास के कारण, वे यीशु के शक्तिशाली कार्यों के स्रोत के सम्बन्ध में अपना आरोप दोहराते हैं, और कहते हैं: “यह तो दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।”
इन घटनाओं के कुछ समय बाद, यीशु अपने नगर नासरत लौटता है, इस बार अपने शिष्यों के साथ। क़रीब एक वर्ष पहले, उसने आराधनालय की भेंट की थी और वहाँ सिखाया था। यद्यपि पहले लोगों ने उसके प्रीतिकर शब्दों पर आश्चर्य किया था, बाद में वे उसके शिक्षण से नाराज़ हुए और उसे मार ड़ालने की कोशिश की। अब, दयालु भाव से, यीशु फिर एक बार उसके भूतपूर्व पड़ोसियों की मदद करने की कोशिश करता है।
जब कि अन्य जगहों में लोग यीशु के पास जमा होते हैं, प्रत्यक्षतः यहाँ वे ऐसा नहीं करते। इसलिए, सब्त के दिन वह सिखाने के लिए आराधनालय में चला जाता है। सुननेवालों में से अधिकांश आश्चर्यचकित होते हैं। वे पूछते हैं, “इस को यह ज्ञान और सामर्थ के काम कहां से मिले? क्या यह बढ़ई का बेटा नहीं? और क्या इस की माता का नाम मरियम और इस के भाइयों के नाम याकूब और यूसुफ और शमौन और यहूदा नहीं? और क्या इस की सब बहिनें हमारे बीच में नहीं रहतीं? फिर इस को यह सब कहां से मिला?”
वे तर्क करते हैं कि ‘यीशु तो हमारे जैसा यहाँ का एक निवासी है। हमने उसे बड़े होते देखा है, और हम उसके परिवार को जानते हैं। वह मसीहा कैसे बन सकता है?’ इसलिए सभी सबूतों के बावजूद—उसकी महान प्रज्ञा और उसके अद्भुत कार्य—वे उसका अस्वीकार करते हैं। उनकी गहरी घनिष्ठता के कारण, उसके अपने रिश्तेदार भी उसके विरुद्ध हो जाते हैं, जिस कारण यीशु अन्त में कहता है: “भविष्यद्वक्ता अपने देश और अपने घर को छोड़ और कहीं निरादर नहीं होता।”
सचमुच, यीशु उनके विश्वास की कमी पर आश्चर्य करता है। इसलिए वह थोड़े से बीमार लोगों को स्वस्थ करने के अलावा वहाँ और कोई अद्भुत कार्य नहीं करता। मत्ती ९:२७-३४; १३:५४-५८; मरकुस ६:१-६; यशायाह ९:७.
◆ यीशु को “दाऊद की सन्तान” के नाम से सम्बोधित करने के द्वारा, वे अंधे मनुष्य अपना कौनसा विश्वास व्यक्त करते हैं?
◆ यीशु के अद्भुत कार्यों का फरीसियों ने कौनसा स्पष्टीकरण निर्धारित किया है?
◆ नासरत के निवासियों की मदद करने के लिए लौटना यीशु की ओर से दयालुता क्यों है?
◆ नासरत में यीशु को कैसा स्वागत मिलता है, और क्यों?
[पेज 9 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]