यीशु का जीवन और सेवकाई
एक भयानक आँधी शान्त करना
यीशु का दिन कार्यकलाप से पूरा भरा है, जिस में समुन्दर तट पर लोगों को सिखाना और बाद में चेलों को अकेले में दृष्टान्त समझा देना भी सम्मिलित है। जब शाम होती है, वह कहता है: “आओ, हम पार चलें।”
गलील सागर के पूर्वी तट पर डेकापोलिस नामक क्षेत्र है, जिसका नाम यूनानी शब्द डेʹका, यानी “दस,” और पोʹलिस, यानी “शहर” से आता है। डेकापोलिस के शहर यूनानी संस्कृति के केंद्र हैं, हालाँकि बेशक वे अनेक यहूदियों का भी निवास हैं। परन्तु, इस क्षेत्र में यीशु का कार्यकलाप बहुत ही सीमित है। इस भेंट पर भी, जैसा कि हम बाद में देखेंगे, उसे काफ़ी समय के लिए ठहरने से रोका जाता है।
जब यीशु अनुरोध करता है कि वह दूसरे किनारे के लिए निकल पड़ें, चेलें उसे नाव में ले लेते हैं। परन्तु, उनकी रवानगी अलक्षित नहीं रहती। जल्द ही दूसरे लोग उनके साथ चलने के लिए अपनी अपनी नाव में चढ़ जाते हैं। उस पार जाना बहुत दूर नहीं। दरअसल, गलील सागर बस एक बड़ी झील ही है जो लगभग १३ मील (२१ कि.मि.) लंबी और अधिकतम ७ १/२ मील (१२ कि.मि.) चौड़ी है।
यह समझने योग्य है कि यीशु थका हुआ है। तो, किनारे से हटने के जल्द ही बाद, वह कश्ती के पिछले हिस्से में, एक तकिये पर अपना सिर रखकर, सो जाता है। कई प्रेरित अनुभवी नाविक हैं, क्योंकि उन्होंने गलील सागर पर व्यापक रूप से मछुवाही की थी। इसलिए वे नाव चलाने की ज़िम्मेदारी उठा लेते हैं।
लेकिन यह एक आसान यात्रा नहीं होनेवाली है। झील की सतह पर, जो कि समुद्र-तल के लगभग ७०० फुट (२१० कि.मि.) नीचे है, अधिक गरम तापमान होने, और पास के पहाड़ों में अधिक ठंडी हवा होने की वजह से, ज़ोरदार हवाएँ कभी-कभी तेज़ी से चलती हैं और झील पर आकस्मिक प्रचण्ड आँधियाँ उत्पन्न करती हैं। अब यही होता है। जल्द ही लहरें नाव से टकराकर उस में पानी उछाल रही हैं, यहाँ तक कि वह क़रीब-क़रीब जल-मग्न होने को है। फिर भी, यीशु सोता रहता है!
अनुभवी नाविक नाव चलाने के लिए व्यग्रता से काम करते हैं। बेशक उन्होंने पहले भी कई आँधियों में से नाव चलायी है। लेकिन अब की बार वे निरुपाय हैं। अपनी जान के लिए आशंकित होकर, वे यीशु को जगाते हैं। ‘हे गुरु, क्या तुम्हें कोई परवाह नहीं? हम डूबे जा रहे हैं!’ वे बोल उठते हैं। ‘हमें बचा लो, हम डूबनेवाले हैं!’
जागकर, यीशु आँधी और सागर को आदेश देता है: “शान्त रह! थम जा!” और हवा का प्रकोप थम जाता है और सागर शान्त होता है। अपने चेलों की ओर मुड़कर, वह पूछता है: ‘तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं?’
इस पर, चेलों को एक असाधारण भय पकड़ लेता है। ‘यह आदमी सचमुच कौन है?’ वे एक दूसरे से पूछते हैं। ‘इसलिए कि वह आँधी और पानी को भी आदेश देता है, और वे उसकी आज्ञा मानते हैं।’
यीशु कैसी शक्ति प्रदर्शित करता है! यह जानना कितना आश्वासन देता है कि प्राकृतिक शक्तियों पर भी हमारे राजा का नियंत्रण है और कि उसके राज्य शासन के दौरान जब उसका सारा ध्यान इस पृथ्वी की ओर निर्देशित होगा, तब भयभीत करानेवाली प्राकृतिक विपत्तियों से सभी लोग सुरक्षा में जीएँगे!
आँधी के शान्त होने के कुछ समय बाद, यीशु और उसके चेले पूर्वी तट पर सही-सलामत पहुँचते हैं। शायद दूसरी कश्तियाँ आँधी के प्रकोप से बच गयीं और सही-सलामत घर पहँच गयीं। मरकुस ४:३५–५:२; मत्ती ८:१८, २३-२८; लूका ८:२२-२७.
◆ डेकापोलिस क्या है, और वह कहाँ स्थित है?
◆ गलील सागर पर होनेवाली प्रचण्ड आँधियों के लिए ज़िम्मेदार भौतिक विशेषताएँ क्या हैं?
◆ जब उनकी नाविक-कुशलताएँ उन्हें बचा नहीं सकते, चेलें क्या करते हैं?
[पेज 12 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]