क्या आप परमेश्वर के किए हुए काम की क़दर करते हैं?
“यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपे से इन्कार करे और प्रति दिन अपना यातना खंभा उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।”—लूका ९:२३, न्यू.व.
१. कुछेक अत्युत्तम भेंट क्या हैं, जो परमेश्वर ने दिए हैं?
अपनी जानों के लिए हम परमेश्वर के देनदार हैं। अगर उन्होंने मनुष्यजाति को नहीं सृष्ट किया होता, तो हमारा कभी जन्म ही नहीं हुआ होता। लेकिन परमेश्वर ने जीवन से कुछ ज़्यादा सृष्ट किया। उन्होंने हमें इस तरह बनाया कि हम अनेक चीज़ों का आनन्द ले सकते हैं: खाने का ज़ायका, धूप की गरमी, संगीत की आवाज़, बसंत ऋतु के एक दिन की ताज़गी, प्रेम की कोमलता। इस से भी ज़्यादा, परमेश्वर ने हमें एक दिमाग़ दिया है और उनके बारे में सीखने की एक इच्छा भी दी है। उन्होंने बाइबल को उत्प्रेरित किया, जो कि हमें पक्का मार्गदर्शन देती है, हमें दिखाती है किस तरह ज़्यादा आनन्दित ज़िन्दगियाँ बिताएँ, और यह उनकी धर्मी नयी दुनिया में हमेशा के लिए जीवन की आशा भी देती है। परमेश्वर अपनी पवित्र आत्मा भी देते हैं, तथा स्थानीय मण्डली की सहायता, और प्रेमपूर्ण बुज़ुर्ग आदमी और औरतों का प्रबन्ध करते हैं, जो हमें उनकी सेवा में शक्तिशाली रहने की मदद कर सकते हैं।—उत्पत्ति १:१, २६-२८; २ तीमुथियुस ३:१५-१७; इब्रानियों १०:२४, २५; याकूब ५:१४, १५.
२. (अ) वह सबसे उत्कृष्ट काम क्या है जो परमेश्वर ने हमारे लिए किया है? (ब) क्या हम काम करने के द्वारा उद्धार कमा सकते हैं?
२ इन सारी बातों के अतिरिक्त, परमेश्वर ने खुद अपने पहलौटे बेटे को पिता हम से क्या अपेक्षा रखते हैं, इस बारे में हमें ज़्यादा बताने के लिए भेजा, और एक “छुटकारा” उन सब की ख़ातिर देने के लिए, जो इसे स्वीकार करेंगे। (इफिसियों १:७; रोमियों ५:१८) उस बेटे, यीशु मसीह ने कहा: “परमेश्वर के जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” (यूहन्ना ३:१६, किंग जेम्स् वर्शन) उस छुटकारे के द्वारा संभव हुए उद्धार का मूल्य इतना सर्वोच्च है, कि ऐसा बिल्कुल ही नहीं हो सकता कि कोई शख़्स काम करके इसे कमा सके, और निश्चय ही, वे काम तो नहीं जो पहले मूसा के नियम के अंतर्गत किए जाते थे। इस प्रकार, पौलुस ने लिखा: “मनुष्य व्यवस्था के कामों से नहीं, पर केवल यीशु मसीह पर विश्वास करने के द्वारा धर्मी ठहरता है।”—गलतियों २:१६; रोमियों ३:२०-२४.
विश्वास और कर्म
३. याकूब ने विश्वास और कर्मों के बारे में क्या कहा?
३ उद्धार विश्वास के ज़रिए आता है, लेकिन विश्वास और परमेश्वर ने हमारे लिए जो कुछ भी किया है, उसके लिए क़दरदानी के भाव से हमें कार्य करने के लिए प्रेरित होना चाहिए। इस से हमें ऐसा कुछ करने के लिए प्रेरित होना चाहिए जिस से हमारा विश्वास दर्शाया जाता है। यीशु के सौतेले भाई याकूब ने लिखा: “विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है।” उसने आगे कहा: “तू अपना विश्वास अपने कर्म बिना तो दिखा; और मैं अपना विश्वास अपने कर्मों के द्वारा तुझे दिखाऊँगा।” याकूब ने इस बात को स्पष्ट किया कि दुष्टात्माएँ भी “विश्वास रखते, और थरथराते हैं,” लेकिन ज़ाहिर है कि दुष्टात्माएँ ईश्वरीय कर्म नहीं करते। दूसरी ओर, इब्राहीम को दोनों, विश्वास भी था और उसने कर्म भी किए थे। “विश्वास ने उस के कामों के साथ मिलकर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ।” याकूब ने दोहराया: “विश्वास भी कर्म बिना मरा हुआ है।”—याकूब २:१७-२६.
४. यीशु ने कहा कि जो उस के अनुयायी बनना चाहते हैं, उनको क्या करना चाहिए?
४ यीशु ने भी सही कर्मों के महत्त्व को यह कहते हुए दिखाया: “तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।” “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आपे से इन्कार करे और प्रति दिन अपना यातना खंभा उठाए हुए मेरे पीछे हो ले।”a अगर हम अपने आपे से “इन्कार” करेंगे, हम अपने अनेक व्यक्तिक पसन्दों को त्याग देते हैं। हम मानते हैं कि हम हर चीज़ के लिए परमेश्वर के देनदार हैं, इसलिए हम अपने आप को ग़ुलामों की तरह उनके हवाले कर देते हैं, और जैसे यीशु ने किया वैसे ही उनकी इच्छा सीखने तथा उनकी इच्छानुसार करने की कोशिश करते हैं।—मत्ती ५:१६; लूका ९:२३, न्यू.व.; यूहन्ना ६:३८.
ज़िन्दगियाँ प्रभावित होती हैं
५. (अ) पतरस ने दिखाया कि हमारा सारा जीवन-क्रम किस बात से प्रभावित होना चाहिए? (ब) उसने कौनसे भले कामों को उपयुक्त बताया?
५ पतरस ने स्पष्ट किया कि मसीह का “बहुमूल्य लोहू,” जो हमारे लिए दिया गया है, इतना उत्तम है कि उसके लिए हमारी क़दरदानी अपने सम्पूर्ण जीवन-क्रम में ज़ाहिर होनी चाहिए। प्रेरित ने ऐसी अनेक बातों को सूचिबद्ध किया जिन को करने के लिए हमें अपनी क़दरदानी के भाव से प्रेरित होना चाहिए। उसने सलाह दी: ‘सब प्रकार का बैरभाव दूर करो।’ “नए जन्मे हुए बच्चों की नाईं निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो।” “जिस ने तुम्हें अन्धकार में से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है, उसके गुण प्रगट करो।” “बुराई का साथ छोड़ें, और भलाई ही करें।” “जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो।” “भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं बरन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करो।”—१ पतरस १:१९; २:१, २, ९; ३:११, १५; ४:२.
६. (अ) पहली सदी के मसीहियों ने अपने विश्वास को किस तरह दर्शाया? (ब) इस से हमारे लिए कौनसा आदर्श प्रस्तुत होना चाहिए?
६ पहली सदी के मसीहियों ने अपने विश्वास के अनुसार आचरण किया। इस से उनका दृष्टिकोण बदल गया और उनके व्यक्तित्वों में भी परिवर्तन हुआ, जिस से वे अपना जीवन परमेश्वर की इच्छा के अनुरूप लाने के लिए प्रेरित हुए। अपने विश्वास को भंग करने के बजाय उन्होंने निष्कासन, पत्थरवाह, पिटाई, क़ैद, और मृत्यु को भी सहन कर लिया।” (प्रेरितों ७:५८-६०; ८:१; १४:१९; १६:२२; १ कुरिन्थियों ६:९-११; इफिसियों ४:२२-२४; कुलुस्सियों ४:३; फिलेमोन ९, १०) सुविख्यात रोमी इतिहासकार टॅसिटस्, जिसका जन्म सामान्य युग के तक़रीबन वर्ष ५६ में हुआ, कहता है कि मसीहियों का “दिन ढल जाने पर, रात की दीपसज्जा के तौर से काम आने के लिए, आग में डाला जाकर जलाया जाना नियत था।” फिर भी, वे नहीं डगमगाए!—दी ॲन्नलस्, किताब XV (१५), परिच्छेद ४४.
७. कुछ लोग अपने आप को शायद कौनसी स्थिति में पा सकते हैं?
७ कुछ मण्डलियों में आप ऐसे लोगों को पाएँगे जो बरसों से सभाओं में उपस्थित होते आए हैं। वे यहोवा के संघटन से प्रीति रखते हैं, उनकी राय में सबसे उत्तम लोग जिन से वे कभी मिले, यहोवा के लोग हैं, वे सच्चाई के बारे में बढ़िया टीका करते हैं, और बाहर के लोगों के सामने सच्चाई का बचाव करते हैं। लेकिन उनके रास्ते में ऐसी कोई बात है जो एक रुकावट है, ऐसी कोई बात जो उन्हें पीछे रोककर रखती है। उन्होंने वह बढ़िया क़दम नहीं लिया जो पिन्तेकुस्त के दिन ३,००० लोगों ने लिया, या जिसके बारे में विश्वास करनेवाले कूशी ने पूछा था। या वह क़दम जो हनन्याह ने पौलुस को लेने के लिए प्रोत्साहित किया, जैसे ही उस भूतपूर्व उत्पीड़क को समझ में आया कि असल में यीशु ही मसीहा है। (प्रेरितों २:४१; ८:३६; २२:१६) आज ऐसे लोगों में किस बात की कमी है? उन्होंने वह क़दम क्यों नहीं लिया है जिसे बाइबल “परमेश्वर से शुद्ध अन्तःकरण के लिए बिनती” कहती है? (१ पतरस ३:२१, न्यू.व.) अगर आप खुद को इस स्थिति में पाते हैं—सच्चाई जानना लेकिन उसके बारे में कुछ करने को हिचकना—तो इस लेख का ऐसे विचार कीजिए कि यह आपके लिए ख़ास प्रेम भाव से तैयार किया गया है।
बपतिस्मा के रास्ते की रुकावटों पर विजय पाना
८. अगर आप कभी एक अच्छे विद्यार्थी नहीं रहे हैं, तो अब कौनसा विवेकपूर्ण रास्ता अपनाना चाहिए?
८ आपके आड़े क्या आ सकता है? पिछले अंक में प्रकाशित किए गए लेख में दिखाया गया कि शायद कुछ लोग निजी बाइबल अध्ययन को एक समस्या पाते हैं। परमेश्वर ने हमें एक बहुत बढ़िया दिमाग़ दिया है, और वह हम से अपेक्षा रखते हैं कि हम इसे उनकी सेवा करने में उपयोग करें। कुछ लोग, जिन्होंने पढ़ना भी नहीं सीखा था, परमेश्वर और उनके उद्देश्यों के बारे में ज़्यादा सीखने के लिए पढ़ना सीखने के काम में जुट गए। आपके बारे में क्या? अगर आप पहले से ही पढ़ना जानते हैं, तो क्या आप सचमुच ही अभ्यास करते हैं, जैसे बिरीया वासियों ने किया, “प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ध्यानपूर्वक ढूँढते” हुए, यह देखने कि क्या ये बातें योंही हैं, कि नहीं? क्या आप ने सच्चाई की “चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊँचाई, और गहराई” की छान-बीन की है? क्या आपने परमेश्वर के वचन में काफ़ी गहराई तक खोजा है? क्या आपने पता लगाया है कि यह वास्तव में कितना उत्तेजक है? क्या आपने परमेश्वर की इच्छा जानने की एक वास्तविक अभिलाषा विकसित की है? क्या सच्चाई के लिए आपको एक असली भूख है?—प्रेरितों १७:१०, ११; इफिसियों ३:१८.
९. सही रूप से क्या किया जाना चाहिए अगर मण्डली में किसी व्यक्ति के साथ आपकी कोई समस्या हो?
९ कभी-कभी लोग मण्डली के किसी सदस्य और उनके बीच हुई कोई असली या कल्पित समस्या के कारण हिचकते हैं। क्या किसी ने आपको गंभीर रूप से नाराज़ किया है? फिर, यीशु के शब्दों से सूचित इस निदेशक तत्त्व के अनुसार कीजिए: “जा और अकेले में बातचीत करके उसे समझा।” (मत्ती १८:१५) आपको शायद यह पाकर ताज्जुब होगा कि उस व्यक्ति को पता भी न था कि आप नाराज़ हो गए थे। लेकिन अगर वह जानता भी है, तब भी आप शायद ‘अपने भाई को पा लेंगे,’ जैसे यीशु ने कहा। आप शायद उसे किसी और को ठोकर खिलाने से बचे रहने की मदद भी करेंगे। इसके अतिरिक्त, ज़रा सोचिए, आप दरअसल किसकी सेवा कर रहे हैं—उस व्यक्ति की या परमेश्वर की? क्या परमेश्वर के लिए आपका प्रेम इतना सीमित है कि आप किसी अपरिपूर्ण मनुष्य की ग़लती को परमेश्वर के लिए अपने प्रेम में दख़ल देने देंगे?
१०, ११. आपको क्या करना चाहिए अगर कोई गुप्त अपराध आपको रोक रहा है?
१० कोई गुप्त अपराध किसी व्यक्ति को बपतिस्मा लेने से शायद रोकेगा। यह शायद एक ऐसी बात होगी जो अतीत में हुई थी, या फिर यह एक ग़लत आदत होगी जो अब तक जारी है। अगर यह आप के लिए एक समस्या हो, तो क्या अब इस मामले को सुधारना नहीं चाहिए? (१ कुरिन्थियों ७:२९-३१) यहोवा के अनेक लोगों को अपनी ज़िन्दगी में परिवर्तन करना पड़ा है। बाइबल कहती है: “इसलिए, मन फिराओ और लौट आओ कि तुम्हारे पाप मिटाए जाएँ, जिस से यहोवा के सन्मुख से विश्रान्ति के दिन आए।”—प्रेरितों ३:१९, न्यू.व.
११ आपने अतीत में चाहे जो भी किया हो, आप पश्चाताप कर सकते हैं, बदल सकते हैं, और परमेश्वर से माफ़ी माँग सकते हैं। “इसलिए अपने उन अंगों को मार डालो, जो पृथ्वी पर हैं, अर्थात् व्यभिचार, अशुद्धता, दुष्कामना, बुरी लालसा . . . पुराने व्यक्तित्व को उसके कामों समेत उतार डालो, और नए व्यक्तित्व को पहन लो, जो अपने सृजनहार के स्वरूप के अनुसार यथार्थ ज्ञान के ज़रिए नया बनता जाता है।” आप अपनी ज़िन्दगी उनके मार्गों के अनुरूप बना सकते हैं, एक शुद्ध अन्तःकरण का आनन्द उठा सकते हैं, और उनकी धर्मी नयी दुनिया में अनन्त जीवन की आशा रख सकते हैं। क्या यह हर संभव प्रयास के योग्य नहीं?—कुलुस्सियों ३:५-१०, न्यू.व.; यशायाह १:१६, १८; १ कुरिन्थियों ६:९-११; इब्रानियों ९:१४.
१२. अगर तमाख़ू, शराब का ग़लत इस्तेमाल, या लत पैदा करनेवाले नशीले पदार्थ, आपके और एक शुद्ध अन्तःकरण के बीच खड़े हैं, तो आपको क्या करना चाहिए?
१२ क्या तमाख़ू का इस्तेमाल, शराब का ग़लत इस्तेमाल, या ड्रग्स की लत आपके और एक शुद्ध अन्तःकरण के आड़े आ रहा है? क्या ऐसी जीवन को ख़तरे में डालनेवाली आदतें जीवन की उत्तम भेंट के लिए, जो परमेश्वर ने दी है, अनादर नहीं दिखातीं? अगर ऐसी आदतें आपके रास्ते में रुकावटें बनी हुई हैं, तो बेशक अब तो उन्हें सुधारना चाहिए। क्या ये आदतें इस योग्य हैं कि ये आपका जीवन लें? पौलुस ने कहा: “आओ, हम अपने आप को शरीर और आत्मा की सब मलिनता से शुद्ध करें, और परमेश्वर का भय रखते हुए पवित्रता को सिद्ध करें।” क्या आप परमेश्वर के शुद्ध और धार्मिक तरीक़ों की इस हद तक क़दर करते हैं कि ऐसा कर सकें?b—२ कुरिन्थियों ७:१.
भौतिक चीज़ें
१३, १४. (अ) पवित्र शास्त्र भौतिक चीज़ों के बारे में क्या कहते हैं? (ब) स्वर्गीय बातों को प्रथम स्थान पर रखना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
१३ आज की दुनिया सफ़लता और ‘जीविका के घमण्ड’ को तक़रीबन हर चीज़ के आगे रखती है। लेकिन यीशु ने ‘संसार की चिन्ता, और धन के धोखे’ की तुलना उन “झाड़ियों” से की जो परमेश्वर के वचन को दबा देती हैं। उसने यह भी पूछा: “यदि मनुष्य सारे जगत को प्राप्त करे, और अपने प्राण की हानि उठाए, तो उसे क्या लाभ होगा?”—१ यूहन्ना २:१६; मरकुस ४:२-८, १८, १९; मत्ती १६:२६.
१४ यीशु ने बताया कि परमेश्वर ने प्रबन्ध किया कि परिन्दे दाना पाए और सोसनों के पेड़ शानदार रूप से खिले। फिर उसने पूछा: “तुम्हारा मूल्य पक्षियों से कहीं अधिक है! . . . [परमेश्वर] तुम्हें क्यों न पहनाएगा?” विवेकपूर्ण रूप से, यीशु ने हमें भौतिक चीज़ों के बारे में “चिन्ता न करने” के लिए कहा। उसने कहा: “[परमेश्वर] के राज्य की खोज करते रहो, तो ये वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।” उसने बताया कि हमें स्वर्ग के ख़ज़ाने को प्रथम स्थान पर रखना चाहिए इसलिए कि ‘जहाँ हमारा धन है वहाँ हमारा मन भी लगा रहेगा।’—लूका १२:२२-३१; मत्ती ६:२०, २१, न्यू.व.
परमेश्वर की मदद से ईश्वरीय सेवा
१५. पहली सदी के मसीहियों की मिसाल से हमें किस तरह का बढ़िया प्रोत्साहन मिलता है?
१५ क्या दूसरों को सुसमाचार सुनाना आपके लिए एक समस्या है? क्या शर्मीलेपन के कारण आप हिचकते हैं? अगर ऐसा है, तो इस बात को याद रखना महत्त्वपूर्ण है कि पहली सदी के मसीहियों की उसी तरह की भावनाएँ थीं जैसी आज हमारी हैं। परमेश्वर ने अनेक ज्ञानी और ताक़तवर लोगों को नहीं चुना, लेकिन उन्होंने “जगत के निबर्लों को चुन लिया है, कि बलवानों को लज्जित करे।” (१ कुरिन्थियों १:२६-२९) ताक़तवर धार्मिक अगुवों ने इन “साधारण” लोगों का विरोध किया और उनको प्रचार करना बन्द कर देने का आदेश दिया। उन मसीहियों ने क्या किया? उन्होंने प्रार्थना की। उन्होंने परमेश्वर से निडरता की माँग की, और परमेश्वर ने उन को यह दे दी। इसके परिणामस्वरूप, उनका संदेश सारे यरूशलेम में फैल गया और बाद में उस से पूरी दुनिया भी हिल गयी! —प्रेरितों ४:१-४, १३, १७, २३, २४, २९-३१; ५:२८, २९; कुलुस्सियों १:२३.
१६. इब्रानियों अध्याय ११ में “गवाहों के जिस बड़े बादल” का वर्णन किया गया है, उस से हम क्या सीखते हैं?
१६ इस प्रकार, मनुष्य के भय को हमारे और परमेश्वर की सेवा के रास्ते में कभी एक रुकावट नहीं होनी चाहिए। इब्रानियों अध्याय ११ “गवाहों के एक ऐसे बड़े बादल” के बारे में बताता है, जिन्होंने मनुष्यों का नहीं, बल्कि परमेश्वर का भय माना। हमें भी समान विश्वास दर्शाना चाहिए। प्रेरित ने लिखा: “इस कारण जब कि गवाहों का ऐसा बड़ा बादल हम को घेरे हुए है, तो आओ, हर एक रोकनेवाली वस्तु, और उलझानेवाले पाप को दूर करके, वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।”—इब्रानियों १२:१.
१७. परमेश्वर ने यशायाह के ज़रिए कैसा प्रोत्साहन दिया?
१७ परमेश्वर अपने सेवकों को ज़बरदस्त मदद दे सकते हैं। इस विश्व के सृजनहार ने यशायाह से कहा: “जो यहोवा की बाट जोहते हैं, वे नया बल प्राप्त करते जाएँगे, वे उकाबों की नाईं उड़ेंगे, वे दौड़ेंगे और श्रमित न होंगे, चलेंगे और थकित न होंगे।”—यशायाह ४०:३१.
१८. राज्य के प्रचार कार्य में हिस्सा लेने के लिए आप शर्मीलेपन पर किस तरह क़ाबू पा सकते हैं?
१८ स्थानीय मण्डली में आप जिन साहसी और आनन्दित गवाहों को देखते हैं, वे दुनिया भर के चालीस लाख से ज़्यादा उत्साही सेवकों का बस एक छोटा ही हिस्सा हैं। वे उस काम में हिस्सा लेने के लिए आनन्द मनाते हैं जिसके बारे में स्वयं यीशु ने इन शब्दों में भविष्यवाणी की थी: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा, कि सब जातियों पर गवाही हो, तब अन्त आ जाएगा।” अगर राज्य के प्रचार कार्य में हिस्सा लेना आपके लिए एक समस्या है, हालाँकि आप यह कार्य करने के योग्य हैं, तो क्यों न आप सेवकाई में अच्छा काम करनेवाले किसी गवाह से निवेदन करें कि आपको प्रचार कार्य में हिस्सा लेने के लिए उसके साथ जाने दें? परमेश्वर सचमुच ही “असीम सामर्थ” देते हैं, और आप को यह पता करने पर शायद ताज्जुब होगा कि यह ईश्वरीय सेवा असल में कितना हर्षजनक है।—मत्ती २४:१४; २ कुरिन्थियों ४:७; और भजन ५६:११; मत्ती ५:११, १२; फिलिप्पियों ४:१३ भी देखें।
१९. यीशु ने अपने अनुयायियों को कौनसा शिक्षण कार्य करने की आज्ञा दी?
१९ राज्य के संदेश की क़दर करनेवाले लोगों से यीशु अपेक्षा रखते हैं कि वे उस संदेश पर अमल करें। उन्होंने कहा: “इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूँ।”—मत्ती २८:१९, २०.
२०. अगर आप आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ रहे हैं, तो जल्दी ही कौनसा सवाल उपयुक्त होगा?
२० क्या परमेश्वर की आशिषों, यीशु के “बहुमूल्य लोहू,” और अनन्त जीवन की बढ़िया आशा के लिए आपकी क़दरदानी की भावना आपको कार्य करने के लिए प्रेरित करती है? (१ पतरस १:१९) क्या आपने अपने जीवन को परमेश्वर की धर्मी आवश्यकताओं के अनुरूप किया है? क्या आप नियमित रूप से शिष्य बनाने के कार्य में हिस्सा लेते हैं? क्या आपने खुद का परित्याग करके अपना जीवन परमेश्वर को समर्पित किया है? अगर इन सारे सवालों का जवाब एक सुनिश्चित हाँ है, तो शायद जिस मण्डली में आप उपस्थित होते हैं, उस के किसी प्राचीन से वही सवाल पूछने का समय आ गया है, जो विश्वास करनेवाले कूशी ने फिलिप्पुस से पूछा: “मुझे बपतिस्मा लेने में क्या रोक है?”—प्रेरितों ८:३६.
[फुटनोट]
a द जेरूसलेम बाइबल इसका अनुवाद “अपना परित्याग करना,” इस प्रकार करती है। जे. बी. फिलिप्पस के अनुवाद में कहा गया है “अपने सारे अधिकारों को त्याग देना।” द न्यू इंग्लिश बाइबल कहती है “अपने आप को पीछे छोड़ देना।”
b ऐसी आदतों को छुड़ाने के विषय पर जानकारी हासिल करने के लिए द वॉचटावर, फरवरी १, १९८१, पृष्ठ ३-१२; जून १, १९७३, पृष्ठ ३३६-४३; और अवेक!, जुलाई ८, १९८२, पृष्ठ ३-१२; मई २२, १९८१, पृष्ठ ३-११ देखें। ये शायद यहोवा के गवाहों के स्थानीय किंग्डम हॉल की लाइब्रेरी में उपलब्ध होंगे।
क्या आपको याद है?
◻ हमें परमेश्वर के आभारी होने के लिए कौनसे ख़ास कारण हैं?
◻ विश्वास और क़दरदानी की भावना से हमें क्या करने के लिए प्रेरित होना चाहिए?
◻ हमारे और परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता के बीच कौनसी समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं, और हम उनके बारे में क्या कर सकते हैं?
◻ जिन लोगों का अभी बपतिस्मा नहीं हुआ, वे अपने आप से क्या सवाल कर सकते हैं?
[पेज 13 पर बक्स]
‘मैं किस तरह की “भूमि” हूँ?’
यीशु ने एक ऐसे आदमी का दृष्टान्त दिया जो बीज बोने के लिए बाहर गया। कुछ बीज रास्ते के किनारे गिरे और पक्षियों ने उन्हें खा लिया। कुछ और बीज पथरीली भूमि पर गिरे, जहाँ गहरी मिट्टी न थी। उनके अंकुर निकल आए, लेकिन जब सूरज निकला, तब वे मुरझाकर मर गए। कुछ और बीज झाड़ियों में गिरकर दब गए। यीशु ने कहा कि ये तीन दल इन के प्रतीक थे: पहला, जो व्यक्ति “राज्य का वचन सुनकर नहीं समझता”; दूसरा, वह जो वचन को स्वीकार करता तो है लेकिन जो “क्लेश या उपद्रव” के ताप से फिरता है; और तीसरा, वह व्यक्ति जिसके मामले में “इस संसार की चिन्ता और धन का धोखा वचन को दबाता है।”
लेकिन यीशु ने दूसरे बीज के बारे में भी बताया जो अच्छी भूमि पर गिरे। उसने कहा: “यह वह है, जो वचन को सुनकर समझता है, और फल लाता है।”—मत्ती १३:३-८, १८-२३.
अच्छा होगा अगर हम अपने आप से पूछें: ‘मैं किस तरह की “भूमि” हूँ?’
[पेज 14 पर बक्स]
वे अपने विश्वास के लिए मर गए
क्या आप ऐसे किसी व्यक्ति को जानते हैं जो अपने विश्वास को भंग करने के बजाय मरना ही बेहतर समझेगा? यहोवा के हज़ारों गवाहों ने वैसा किया है। द नाट्ज़ी स्टेट ॲन्ड द न्यू रिलिजियनस्: फाईव केस स्टडीज़ इन नॉन-कॉन्फॉर्मिटी (नाट्ज़ी शासन और नए धर्म: अपरंपरावादिता में पाँच परिशीलन) में, डॉ. क्रिस्टीन ई. किंग ने लिखा: “हर दो जर्मन गवाहों में से एक को क़ैद में डाला गया, और हर चार गवाहों में एक की जान चली गयी।”
१९४५ में जब नज़रबन्दी शिबिरों का संत्रास ख़त्म हो गया, “गवाहों की संख्या बढ़ गयी थी और कोई समझौता नहीं किया गया था।” द नाट्ज़ी पर्सिक्यूशन् ऑफ द चर्चिज़ में, जे. एस. कॉन्वे ने गवाहों के बारे में लिखा: “गेस्टापो के अत्याचार की पूरी ताक़त के सम्मुख दूसरे किसी समूह ने इस तरह की दृढ़ता के जैसे कुछ भी नहीं दर्शाया।”
यहोवा के गवाहों को राजनीति या प्रजाति के कारण उत्पीड़ित नहीं किया गया था। उलटा, उन्होंने सिर्फ़ परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम और अपने बाइबल-प्रशिक्षित अन्तःकरणों को भंग करने के उनके इन्कार के कारण दुःख झेले।