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एक सामरी सच्चा पड़ोसी साबित हुआयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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यीशु उससे कहता है, “तूने सही जवाब दिया। ऐसा ही करता रह और तू जीवन पाएगा।” मगर क्या इतना सुनकर वह आदमी खुश हो जाता है? नहीं, वह दिखाना चाहता है कि वह बड़ा नेक है। वह साबित करना चाहता है कि वह जो सोचता है वह सही है और वह जिस तरह लोगों के साथ व्यवहार करता है वह बिलकुल सही है। इसलिए वह यीशु से पूछता है, “असल में मेरा पड़ोसी कौन है?” (लूका 10:28, 29) यह एक मामूली-सा सवाल लग सकता है, मगर यीशु जो जवाब देगा वह लोगों को सोचने पर मजबूर करेगा कि उन्हें दूसरी जाति के लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए।
यहूदियों का कहना है कि पड़ोसी या संगी-साथी का मतलब है ऐसा इंसान जो यहूदी धर्म की परंपराएँ मानता है। ऐसा लग सकता है कि लैव्यव्यवस्था 19:18 के हिसाब से यह धारणा सही है। कुछ यहूदी तो यह भी कहते हैं कि दूसरी जाति या भाषा के लोगों से मेल-जोल रखना “नियम के खिलाफ” है। (प्रेषितों 10:28) इसलिए यह आदमी और शायद यीशु के कुछ चेले भी मानते हैं कि सिर्फ यहूदियों के साथ अच्छा व्यवहार करना काफी है। इसी से वे नेक ठहरेंगे। और जो यहूदी नहीं हैं, उनके साथ वे शायद अच्छा व्यवहार न करें, क्योंकि वे उन्हें अपने पड़ोसी या संगी-साथी नहीं मानते।
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एक सामरी सच्चा पड़ोसी साबित हुआयीशु—राह, सच्चाई, जीवन
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यीशु का जवाब नहीं! कितने बढ़िया तरीके से सिखाया उसने! अगर यीशु उस आदमी से कहता कि गैर-यहूदी भी उसके पड़ोसी या संगी-साथी हैं, तो क्या वह आदमी और बाकी यहूदी उससे सहमत होते? शायद नहीं। लेकिन यीशु ने एक छोटी-सी कहानी बताकर यह साफ दिखा दिया कि असल में उनका पड़ोसी कौन है। सच्चा पड़ोसी या संगी-साथी वही है जो दूसरों से प्यार करता है और उनकी मदद करता है। बाइबल में हमें यही करने की आज्ञा दी गयी है।
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