उद्धार प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
एक व्यक्ति ने एक बार यीशु से पूछा: “हे प्रभु, क्या उद्धार पानेवाले थोड़े हैं?” यीशु ने कैसे जवाब दिया? क्या उसने कहा: ‘सिर्फ़ मुझे प्रभु और उद्धारकर्त्ता मान लो, और तुम उद्धार-प्राप्त हो जाओगे’? जी नहीं! यीशु ने कहा: “सकेत द्वार से प्रवेश करने का यत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि बहुतेरे प्रवेश करना चाहेंगे, और न कर सकेंगे।”—लूका १३:२३, २४.
क्या यीशु उस व्यक्ति के सवाल का जवाब देने में असफल रहा? जी नहीं, उस व्यक्ति ने यह नहीं पूछा था कि उद्धार-प्राप्त करना कितना मुश्किल होगा; बल्कि उसने पूछा कि क्या संख्या थोड़ी होती। सो यीशु ने केवल दर्शाया की एक व्यक्ति की अपेक्षा से कहीं थोड़े लोग होते जो इस अद्भुत आशीष को पाने के लिए यत्न करते।
‘यह वह नहीं है जो मुझे बताया गया था,’ कुछ पाठक शायद एतराज़ करें। ये शायद यूहन्ना ३:१६ उद्धृत करें जो कहती है: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” लेकिन हम जवाब देते हैं: ‘तब, हमें उद्धार-प्राप्त करने के लिए क्या विश्वास करना चाहिए? यह कि यीशु वास्तव में जीवित रहा था? बिलकुल। यह कि वह परमेश्वर का पुत्र है? पूरी तरह से! और जबकि बाइबल यीशु को “गुरू” और “प्रभु” कहती है, क्या हमें उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए जो उसने सिखाया, उसकी आज्ञापालन, और उसका अनुसरण नहीं करना चाहिए?’—यूहन्ना १३:१३; मत्ती १६:१६.
यीशु का अनुसरण करना
आह, यहाँ समस्या खड़ी होती है! ऐसा लगता है कि अनेक लोग जिन्हें बताया गया है कि वे “उद्धार-प्राप्त” हो चुके हैं यीशु का या तो अनुसरण करने या आज्ञापालन करने का ज़रा भी ईरादा नहीं रखते। दरअसल, एक प्रोटॆस्टेंट पादरी ने लिखा: “सचमुच, मसीह में हमारा विश्वास निरन्तर होना चाहिए। पर इस बात में इस दावे का कि इसे होना ही चाहिए, या यह अवश्य निरन्तर रहता है, इसके बारे में बाइबल का कोई भी समर्थन प्राप्त नहीं है।”
इसके विपरीत, बाइबल उन अनैतिक अभ्यासों की सूची देती है जो उन लोगों में आम हैं जो यह सोचते हैं कि वे “उद्धार-प्राप्त” हैं। इस प्रकार के एक व्यक्ति के बारे में जो ऐसे मार्गों पर चलता रहता, इसने मसीहियों को निर्देशित किया: “कुकर्मी को अपने बीच में से निकाल दो।” निश्चय ही परमेश्वर नहीं चाहेगा कि दुष्ट लोग उसकी मसीही कलीसिया को दूषित करते रहें!—१ कुरिन्थयों ५:११-१३.
तब, यीशु का अनुसरण करने का क्या अर्थ है, और हम ऐसा कैसे कर सकते हैं? आख़िर यीशु ने क्या किया? क्या वह अनैतिक था? एक व्यभिचारी था? एक पियक्कड़ था? एक झूठा था? क्या वह कारोबार में बेईमान था? बिलकुल नहीं! ‘लेकिन,’ शायद आप पूछें, ‘क्या मुझे इन सभी बातों को अपने जीवन से निकालने की आवश्यकता है?’ जवाब के लिए, इफिसियों ४:१७ से ५:५ तक ध्यान दीजिए। यह ऐसा नहीं कहती कि चाहे हम जो भी करें परमेश्वर हमें स्वीकार कर लेगा। इसके बजाय, ये हमें सांसारिक जातियों से अलग रहने के लिए कहती है जो ‘सब नैतिक बुद्धि से सुन्न हो गए . . . पर तुम ने मसीह की ऐसी शिक्षा नहीं पाई . . . तुम अगले चालचलन के पुराने मनुष्यत्व को . . . उतार डालो . . . चोरी करनेवाला फिर चोरी न करे . . . जैसा पवित्र लोगों के योग्य है, वैसा तुम में व्यभिचार, और किसी प्रकार के अशुद्ध काम, या लोभ की चर्चा तक न हो . . . क्योंकि तुम जानते हो, कि किसी व्यभिचारी, या अशुद्ध जन, या लोभी मनुष्य की, जो मूरत पूजनेवाले के बराबर है, मसीह और परमेश्वर के राज्य में मीरास नहीं।’
क्या हम यीशु का अनुसरण कर रहे हैं यदि हम उसके उदाहरण के सामंजस्य में जीने की कम से कम कोशिश भी नहीं करते? क्या हमें अपने जीवन को अधिक मसीह-समान बनाने के लिए कार्य नहीं करना चाहिए? यह महत्त्वपूर्ण सवाल विरले ही, यदि ग़ौर किया जाता है तो, उन लोगों द्वारा ग़ौर किया जाता है जो ऐसा कहते हैं जैसा एक धार्मिक ट्रैक्ट कहता है: “अभी मसीह के पास आइए—जैसे आप हैं।”
यीशु के शिष्यों में से एक ने चेतावनी दी कि भक्तिहीन मनुष्य “हमारे परमेश्वर की दया को लुचपन में बदल डालते हैं, और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं।” (यहूदा ४) सचमुच, कैसे हम परमेश्वर के अनुग्रह को “लुचपन में” बदल डालते हैं? हम ऐसा यह मानने के द्वारा कर सकते हैं कि यीशु का बलिदान उन पापों के बजाय जो हम मानव असिद्धता के कारण करते हैं, जिन्हें हम अपने पीछे छोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, उन पापों को ढाँपता है जो हम जानबूझकर लगातार करने का विचार करते हैं। निश्चित ही हम उस प्रसिद्ध अमरीकी प्रचारक के साथ सहमत होना नहीं चाहते, जिन्होंने कहा कि आपको “शुद्ध होने की, त्याग करने की, या जीवन को बदलने की” कोई ज़रूरत नहीं है।—प्रेरितों १७:३०; रोमियों ३:२५; याकूब ५:१९, २० से विषमता कीजिए.
विश्वास कार्य के लिए उसकाता है
अनेक लोगों को बताया गया है कि “यीशु में विश्वास करना” केवल एक कार्य है और कि हमारे विश्वास को इतना मज़बूत होने की ज़रूरत नहीं है कि वह आज्ञापालन करने को उसकाए। लेकिन बाइबल असहमत है। यीशु ने यह नहीं कहा कि जो लोग मसीही मार्ग शुरू करते हैं उद्धार-प्राप्त हैं। इसके बजाय, उसने कहा: “जो अन्त तक धीरज धरे रहेगा उसी का उद्धार होगा।” (मत्ती १०:२२) बाइबल हमारे मसीही मार्ग की समानता एक दौड़ से करती है जिसके अन्त में ईनाम के रूप में उद्धार रखा है। और यह आग्रह करती है: “तुम वैसे ही दौड़ो, कि जीतो।”—१ कुरिन्थियों ९:२४.
अतः, “मसीह को स्वीकार करने” में यीशु का अत्युत्तम बलिदान जो आशीषें प्रदान करता है उन्हें मात्र स्वीकार करने से ज़्यादा शामिल है। आज्ञाकारिता की माँग की जाती है। प्रेरित पतरस कहता है कि न्याय “परमेश्वर के घराने” से ही आरम्भ होता है, और आगे कहता है: “अतः यदि न्याय का आरम्भ हम से ही होगा तो उनका क्या परिणाम होगा जिन्होंने परमेश्वर के सुसमाचार का पालन नहीं किया?” (तिरछे टाइप हमारे।) (१ पतरस ४:१७, NHT) सो हमें केवल सुनने और विश्वास करने से ज़्यादा करना चाहिए। बाइबल कहती है कि हमें ‘वचन पर चलनेवाले बनना चाहिए, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।’—याकूब १:२२.
यीशु के अपने सन्देश
बाइबल की प्रकाशितवाक्य पुस्तक में यीशु के सन्देश हैं जो यूहन्ना के द्वारा सात प्रारम्भिक मसीही कलीसियाओं को दिए गए थे। (प्रकाशितवाक्य १:१, ४) क्या यीशु ने कहा था कि चूँकि इन कलीसियाओं के लोगों ने उसे पहले ही “स्वीकार” कर लिया था, तो उतना काफ़ी था? नहीं। उसने उनके कामों की, उनकी मेहनत की और उनके धीरज की प्रशंसा की और उनके प्रेम, विश्वास, और सेवकाई का उल्लेख किया। लेकिन उसने कहा कि शैतान उनको परखेगा और कि उन्हें “हर एक को उसके कामों के अनुसार” बदला दिया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य २:२, १०, १९, २३.
अतः यीशु ने उससे भी बड़ी वचनबद्धता का उल्लेख किया जिसे अधिकतर लोगों ने ऐसे समझा था कि जैसे ही उन्होंने उसे एक धार्मिक सभा में “स्वीकार” किया उनका उद्धार एक “समाप्त कार्य” था। यीशु ने कहा: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप का इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले। क्योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहे, वह उसे खोएगा; और जो कोई मेरे लिये अपना प्राण खोएगा, वह उसे पाएगा।”—मत्ती १६:२४, २५.
अपने आप का इनकार करना? यीशु के पीछे लगातार चलना? ऐसा करना प्रयत्न की माँग करता। यह हमारे जीवन को बदलता। फिर भी, क्या यीशु ने वास्तव में कहा कि हम में से कुछ लोगों को शायद ‘अपने प्राणों को भी खोना’ पड़ेगा—उसके लिए मरना पड़ेगा? जी हाँ, उस तरह का विश्वास केवल उन शानदार बातों के ज्ञान से आता है जिन्हें आप परमेश्वर के वचन के अध्ययन से सीख सकते हैं। यह उस दिन प्रमाणित हुआ जिस दिन स्तिफनुस को धार्मिक हठधर्मियों द्वारा पत्थरवाह किया गया था जो “उस ज्ञान और उस आत्मा का जिस से वह बातें करता था . . . साम्हना न कर सके।” (प्रेरितों ६:८-१२; ७:५७-६०) और ऐसा विश्वास हमारे समय में उन सैकड़ों यहोवा के साक्षियों द्वारा दिखाया गया है जो अपने बाइबल प्रशिक्षित अन्तःकरण को भ्रष्ट करने के बजाय नात्ज़ी नज़रबन्दी शिविरों में मर गए।a
मसीही उत्साह
हमें अपने मसीही विश्वास को दृढ़ता से थामे रहना चाहिए क्योंकि, आप कुछ गिरजों में या धार्मिक टेलिविज़न कार्यक्रमों में जो सुनते हैं उसकी विषमता में, बाइबल कहती है कि हम गिर सकते हैं। यह ऐसे मसीहियों के बारे में बताती है जिन्होंने “सीधे मार्ग” को छोड़ दिया। (२ पतरस २:१, १५) अतः हमें ‘डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य्य पूरा करते जाने’ की ज़रूरत है।—फिलिप्पियों २:१२; २ पतरस २:२०.
क्या इसी तरह प्रथम-शताब्दी मसीहियों ने, जिन्होंने वास्तव में यीशु और उसके शिष्यों को सिखाते सुना था, मामले को समझा था? जी हाँ। वे जानते थे कि उन्हें कुछ करना था। यीशु ने कहा: “जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।”—मत्ती २८:१९, २०.
यीशु के ऐसा कहने के दो महीने बाद, केवल एक दिन में ३,००० लोगों ने बपतिस्मा लिया। विश्वासियों की संख्या जल्द ही बढ़कर ५,००० हो गई। जिन्होंने विश्वास किया उन्होंने दूसरों को भी सिखाया। जब सताहट ने उन्हें तित्तर बित्तर किया, इसने केवल उनके सन्देश को फैलाने का कार्य किया। बाइबल कहती है कि केवल कुछ नेता ही नहीं बल्कि “जो तित्तर बित्तर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते हुए फिरे।” लगभग ३० साल बाद, प्रेरित पौलुस इसीलिए लिख सकता था कि सुसमाचार “प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया गया” था।—प्रेरितों २:४१; ४:४; ८:४; कुलुस्सियों १:२३.
पौलुस ने यह कहने के द्वारा धर्म परिवर्तित नहीं बनाए, जैसा की कुछ टेलिविज़न प्रचारक करते हैं कि ‘इसी वक़्त यीशु को स्वीकार कीजिए, और आप हमेशा के लिए उद्धार-प्राप्त हो जाएँगे।’ न ही उसके पास उस अमरीकी पादरी की तरह विश्वास था जिसने लिखा: “एक किशोर लड़के के तौर पर, . . . मैं उद्धार-प्राप्त हो चुका था।” यीशु द्वारा पौलुस को व्यक्तिगत रूप से जातियों के लोगों को मसीही सन्श देने के लिए चुने जाने के २० से अधिक साल बाद, इस मेहनती प्रेरित ने लिखा: “मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।”—१ कुरिन्थियों ९:२७; प्रेरितों ९:५, ६, १५.
उद्धार परमेश्वर की ओर से एक मुफ़्त भेंट है। यह कमाया नहीं जा सकता। फिर भी यह हमसे प्रयत्न की माँग करता है। यदि किसी ने आपको कोई बहुमूल्य भेंट प्रस्तुत की और आपने उसे लेने, और अपने साथ ले जाने के लिए पर्याप्त मूल्याकंन नहीं दिखाया, तो आपकी कृतज्ञता की कमी शायद देनेवाले को वह चीज़ किसी और को देने के लिए उकसा सकती है। यीशु मसीह का जीवन का लहू कितना मूल्यवान है? यह एक मुफ़्त भेंट है, लेकिन हमें इसके प्रति गहरा मूल्यांकन दिखाने की ज़रूरत है।
सच्चे मसीही उद्धार की स्थिति में इस अर्थ से हैं कि परमेश्वर के सामने वे एक अनुमोदित स्थिति में हैं। एक समूह के तौर पर उनका उद्धार निश्चित है। व्यक्तिगत रूप से, उन्हें परमेश्वर की माँगों को पूरा करना चाहिए। लेकिन हम असफल हो सकते हैं, क्योंकि यीशु ने कहा: “यदि कोई मुझ में बना न रहे, तो वह डाली की नाईं फेंक दिया जाता, और सूख जाता है।”—यूहन्ना १५:६.
‘परमेश्वर का वचन जीवित है’
पिछले लेख के आरम्भ में जिस बातचीत का ज़िक्र है वह लगभग ६० साल पहले हुई थी। जॉनी अब भी विश्वास करता है कि उद्धार केवल यीशु मसीह द्वारा ही आता है, लेकिन वह समझता है कि हमें उसे आगे बढ़कर पाने की ज़रूरत है। वह मानता है कि बाइबल मानवजाति के लिए आशा के एकमात्र सच्चे स्रोत की ओर संकेत करती है और कि हमें उस अद्भुत पुस्तक का अध्ययन करना, उसके द्वारा उकसाया जाना, और इसे हमें प्रेम के कामों, विश्वास, कृपा, आज्ञाकारिता, और धीरज के लिए प्रेरित करने देना चाहिए। उसने अपने बच्चों की परवरिश इस तरह से की है कि वे भी इन्हीं बातों पर विश्वास करते हैं, और अब वह यह देखकर मग्न होता है कि उसके बच्चे अपने बच्चों की भी उसी प्रकार परवरिश कर रहे हैं। उसकी इच्छा है कि सबका वैसा ही विश्वास होता, और वह दूसरों के हृदयों और मनों में उसे डालने के लिए जो भी कर सकता है कर रहा है।
प्रेरित पौलुस यह लिखने के लिए प्रेरित हुआ कि “परमेश्वर का वचन जीवित, और प्रबल . . . है।” (इब्रानियों ४:१२) यह जीवन को बदल सकता है। यह आपको हार्दिक प्रेम के कामों, विश्वास, और आज्ञाकारिता के लिए प्रेरित कर सकता है। लेकिन आपको बाइबल जो कहती है उसे मानसिक रूप से “स्वीकार” करने से ज़्यादा कुछ करना चाहिए। इसका अध्ययन करें और अपने हृदय को इसके द्वारा प्रेरित होने दें। इसकी बुद्धि को आपका मार्गदर्शन करने दें। लगभग ५०,००,००० इच्छुक यहोवा के साक्षी २३० से भी अधिक देशों में मुफ़्त गृह बाइबल अध्ययन प्रस्तुत करते हैं। यह देखने के लिए कि आप ऐसे अध्ययन से क्या सीख सकते हैं, इस पत्रिका के प्रकाशकों को लिखिए। जो विश्वास और आध्यात्मिक शक्ति आपको मिलेगी आपको ख़ुश करेगी!
[फुटनोट]
a अपनी पुस्तक नात्ज़ी राज्य और नए धर्म: अपालन में पाँच घटना अध्ययन (अंग्रेज़ी) में, डॉ. क्रिसटीन ई. किंग ने रिपोर्ट की: “दो में से एक जर्मन [यहोवा के] साक्षियों को जेल में डाला गया था, चार में से एक ने अपनी जान गवाँ दी।”
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क्यों ‘विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़ें’?
बाइबल की यहूदा की पुस्तक “बुलाए हुओं के, . . . जो . . . यीशु मसीह के लिए सुरक्षित हैं” नाम लिखी गई थी। क्या यह कहती है कि चूँकि उन्होंने ‘यीशु को स्वीकार किया था’ उनका उद्धार निश्चित था? जी नहीं, यहूदा ने ऐसे मसीहियों को “विश्वास के लिये पूरा यत्न” करने के लिए कहा। उसने ऐसा करने के उन्हें तीन कारण दिए। पहला, परमेश्वर ‘ने एक कुल को मिस्र देश से छुड़ाया,’ लेकिन उनमें से अनेक लोग बाद में मुकर गए। दूसरा, यहाँ तक कि स्वर्गदूतों ने भी विद्रोह किया और दुष्टात्माएँ बन गए। तीसरा, परमेश्वर ने सदोम और अमोरा को उन नगरों में की गई घोर लैंगिक अनैतिकता के कारण नाश किया। यहूदा इन बाइबलीय अभिलेखों को चेतावनी रूपी ‘दृष्टान्तों’ के जैसे प्रस्तुत करता है। जी हाँ, यहाँ तक कि “यीशु मसीह में सुरक्षित” विश्वासियों को भी सच्चे विश्वास से न मुकरने के लिए सावधान रहने की ज़रूरत है।—यहूदा १-७.
[पेज 8 पर बक्स]
कौन-सा सही है?
बाइबल कहती है: “मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहरता है।” वह यह भी कहती है: “मुनष्य केवल विश्वास से ही नहीं, बरन कर्मों से भी धर्मी ठहरता है।” कौन-सा सही है? क्या हम धर्मी विश्वास के द्वारा ठहराए जाते हैं या कर्मों के द्वारा?—रोमियों ३:२८; याकूब २:२४.
बाइबल से मेल खाता जवाब यह है कि दोनों ही सही हैं।
शताब्दियों से वह व्यवस्था जो परमेश्वर ने मूसा के द्वारा दी, यहूदी उपासकों से निश्चित बलिदानों और भेंट चढ़ाने की, पर्व दिनों को मनाने की, और भोजन सम्बन्धि आज्ञापालन और अन्य ज़रूरतों की माँग करती थी। ऐसे “व्यवस्था के कामों” या केवल “कामों,” की यीशु के सिद्ध बलिदान देने के बाद आगे कोई भी आवश्कता नहीं है।—रोमियों १०:४.
लेकिन यह तथ्य कि मूसा की व्यवस्था के अधीन किए जानेवाले इन कार्यों का स्थान यीशु के उत्तम बलिदान ने लिया, का यह अर्थ नहीं था कि हम बाइबल निर्देशनों को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं। यह कहती है: “मसीह का लोहू . . . तुम्हारे विवेक को मरे हुए कामों से क्यों न शुद्ध करेगा, ताकि तुम जीवते परमेश्वर की सेवा करो।”—इब्रानियों ९:१४.
हम “जीवते परमेश्वर की सेवा” कैसे करते हैं? अन्य बातों के साथ-साथ बाइबल हमें शरीर के कामों से लड़ने, संसार की अनैतिकता का विरोध करने, और उसके फंदों से बचने के लिए कहती है। यह कहती है: “विश्वास की अच्छी कुश्ती लड़” “उलझानेवाले पाप को दूर करके वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें। और विश्वास के कर्त्ता और सिद्ध करनेवाले यीशु की ओर ताकते रहें।” और बाइबल हम से आग्रह करती है कि हम ‘निराश होकर हियाव न छोड़े।’—१ तीमुथियुस ६:१२; इब्रानियों १२:१-३; गलतियों ५:१९-२१.
इन कामों को करने के द्वारा हम उद्धार कमाते नहीं हैं, क्योंकि कोई भी मनुष्य कभी भी ऐसी उत्कृष्ट आशीष को पाने के योग्य पर्याप्त कार्य नहीं कर सकता। लेकिन यदि हम उन बातों को जो बाइबल कहती कि परमेश्वर और यीशु हम से चाहते हैं उन्हें न करने के द्वारा हमारा प्रेम और आज्ञाकारिता दिखाने में असफल हो जाते हैं तो हम इस शानदार भेंट के लायक़ नही हैं। हमारे विश्वास को दिखानेवाले कामों के बिना, हमारा यीशु का अनुसरण करने का दावा कितना तुच्छ ठहरता, क्योंकि बाइबल स्पष्ट रूप से कहती है: “विश्वास भी, यदि कर्म सहित न हो तो अपने स्वभाव में मरा हुआ है।”—याकूब २:१७.
[पेज 7 पर तसवीरें]
बाइबल का अध्ययन कीजिए, और उसके द्वारा प्रेरित होइए