रत्न लूका के सुसमाचार से
यहोवा का पुत्र, यीशु मसीह, दयालु होने के सम्बन्ध में विख्यात था। तो फिर, यह कितना उचित है कि सुसमाचार लेखक लूका करुणा, दया और सहानुभूति पर विशेष बल देता है! यहूदी और गैर-यहूदी के लिए समान रूप से वह यीशु के पर्थिव जीवन के बारे में एक सचमुच ममनस्पर्शी वृत्तान्त लिखता है।
इस सुसमाचार लेख की कुछ बातें सूचित करती है कि एक विद्वान् ने इसे लिखा है। उदाहरणार्थ, उसकी प्रस्तावना शास्त्रीय है, और उस में एक व्यापक शब्दसंग्रह है। यह बातें उस तथ्य का समर्थन करती हैं कि लूका एक सुशिक्षित चिकित्सक था। (कुलुस्सियों ४:१४) यद्यपि वह यीशु की मृत्यु के बाद तक एक विश्वासी नहीं बना, वह प्रेरित पौलुस की तीसरी मिशनरी यात्रा के बाद, उनके साथ यरूशलेम चले गए। इसलिए, वहाँ पौलुस की गिरफ्तारी और कैसरिया में उसकी कैद के बाद, यह सतर्क अन्वेषक, प्रत्यक्षदर्शियों से मिलने और सार्वजनिक अभिलेखों से परामर्श लेने के द्वारा जानकारी प्राप्त कर सका। (१:१-४; ३:१, २) उसका सुसमाचार लेख करीब सामान्य युग ५६-५८ में, कैसरिया में प्रेरित की दो-वर्षीय कैद के दौरान लिखा गया होगा।
कुछ उत्कृष्ट बातें
कम से कम यीशु के छः अद्भुत कार्य केवल लूका के सुसमाचार लेख में ही है। ये हैं: मछलियों का एक अद्भुत बझाव (५:१-६); नाईन में एक विधवा के बेटे का पुनरुत्थान (७:११:१५); एक कबड़ी औरत का चंगा किया जाना (१३:११-१३); एक ऐसे पुरुष को स्वस्थ करना जिसे जलन्धर का रोग था (१४:१-४); दस कोढ़ियों को चंगा करना (१७:१२-१४); और महा याजक के सेवक के कान को पुनःस्थापित करना।—२२:५०, ५१.
और साथ ही यीशु के कुछ ऐसे दृष्टान्त हैं जो केवल लूका के वृत्तान्त में ही है। इन में ये हैं: दो कर्ज़दार (७:४१-४७); वह मिलनसार सामरी (१०:३०-३५); वह निष्फल अंजीर का पेड़ (१३:६-९); वह शानदार संध्या भोज (१४:१६-२४); वह अपव्ययी पुत्र (१५:११-३२); वह अमीर मनुष्य और लाज़र (१६:१९-३१); और वह विधवा और अधर्मी न्यायी।—१८:१-८.
मर्मस्पर्शी घटनाएँ
चिकित्सक लूका ने स्त्रियों, बच्चों और प्रौढ़ व्यक्तियों के विषय चिन्ता प्रकट की। केवल उन्ही ने इलीशिबा के बाँझपन, उसके गर्भधारण, और यूहन्ना के जन्म का ज़िक्र किया। केवल उन्ही के सुसमाचार लेख ने मरियम के सामने जिब्राईल स्वर्गदूत के दर्शन के बारे में बताया है। लूका यह कहने के लिए प्रेरित हुआ कि जैसे मरियम ने उससे बात की, इलीशिबा के बच्चे ने उसके कोख में उछला। केवल उन्ही ने यीशु के खतना और मंदिर में अपने प्रस्तुतीकरण के बारे में बताया, जहाँ उसे वृद्ध सिमोन और हन्नाह ने देखा था। और हम यीशु और यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के बचपन की जानकारी के लिए लूका के सुसमाचार लेख के लिए आभारी हैं।—१:१-२:५२.
जब लूका ने नाईन की उस दुःखी विधवा के बारे में लिखा जिसके एक मात्र बेटे की मृत्यु हुई थी, उन्होंने कहा, कि यीशु “को तरस आया” और फिर उस जवान को जिलाया। (७:११-१५) एक प्रमुख कर-समाहर्ता, जक्काई, से सम्बध्ति एक घटना जो हृदयस्पर्शी भी है, केवल लूका के सुसमाचार लेख में बतायी गयी है। छोटा कद का होने के कारण वह यीशु के दर्शन के लिए एक पेड़ पर चढ़ जाता है। कितनी आश्चर्य की बात थी जब यीशु ने कहा कि वह जक्काई के घर में रहनेवाला था! लूका बताता है कि यह भेंट उस प्रसन्न अतिथेय के लिए एक महान आशीष थी।—१९:१-१०.
एक चिकित्सक की लेखनी से
इस सुसमाचार लेख में ऐसे कई पद या शब्द हैं जिनका डाक्टरी अर्थ या महत्त्व है। मसीही युनानी शास्त्रों के अन्य लेखकों के द्वारा बिल्कुल या एक डाक्टरी अर्थ में उपयोग ही नही किए गए थे। लेकिन हम एक चिकित्सक की कलम से डाक्टरी भाषा की अपेक्षा कर सकते हैं।
उदाहरणार्थ, सिर्फ लूका ने ही कहा कि पतरस की सास को “उच्च ज्वर था” (४:३५, न्यू. व) उन्होंने यह भी लिखा: “देखो, वहाँ कोढ़ से भरा हुआ एक मनुष्य था!” (५:१२) अन्य सुसमाचार लेखकों के लिए कोढ़ का केवल उल्लेख करना ही काफी था। लेकिन चिकित्सक लूका के सम्बन्ध में यह काफी नहीं था, जिन्होंने सूचित किया कि उस मनुष्य की बीमारी एक विकसित अवस्था में थी।
प्रथाओं पर अन्तर्दृष्टि
लूका ने कहा कि यीशु के जन्म के बाद, मरियम ने “उसे कपड़े में लपेटा” था। (२:७) प्रथागत रूप से नवजात शिशु को स्नान दिया जाता है और नमक से लेप किया जाता है, शायद त्वचा को सुखाने और उसे दृढ़ करने के लिए। फिर उस शिशु को शिशु-वस्त्र में लपेटा जाता है, एक परिरक्षित शव के समान। ये पट्टियाँ उस शरीर को सीधा और गरम रखती हैं और उन्हें ठुड्डी के नीचे और सिर के ऊपर से लेना उस बच्चे को नाक से श्वास लेने के लिए प्रशिक्षित करता है। समान शिशु-वस्त्र प्रथाओं पर एक १९-वीं सदी की रिपोर्ट ने बेथलेहेम के एक दर्शक को उद्धृत किया, जो कहता है: “मैंने उस छोटे से जीवको बाहों में लिया। सफेद और जामुनी कपड़ों से उसका शरीर इतना कसकर बाँधा गया था कि वह अनम्य और दृढ़ हो गया था। उसके हाथ और पैर बँधे हुए थे और उसका सिर एक छोटे लाल मुलयम शाल से बँधा गया था जो उसकी ठुड्डि के नीचे से लेकर माथे तक छोटे छोटे परतों के रूप में लपेटा गया है।”
लूका का सुसमाचार हमें पहली सदी के दफ़न कार्यों की प्रथाओं पर भी अन्तर्दृष्टि देता है। यीशु नाईन नगर के द्वार पर था जब उसने देखा कि “कि एक मुरदे को बाहर लिए जा रहे थे, जो अपनी [विधवा] माँ का एकलौता पुत्र था,” और “नगर के बहुत से लोग उसके साथ थे।” (७:११, १२) दफ़न साधारणतः नगर के बाहर हुआ करता था, और उस मृतक के मित्र शव के साथ कब्र तक जाते। अर्थी एक तृणशैय्या थी जो सम्भवतः खपच्चियों से बनायी गयी थी और उसके कोनों से खम्भे निकलते थे जो, जैसे वह जलूस दफ़न स्थल की ओर जाते थे चार पुरुषों को अपने कँधों पर ले जाने के लिए सहायक थी।
एक और उदाहरण में जो लूका द्वारा अभिलिखित है, यीशु ने एक मनुष्य के बारे में कहा जो चोरों से मारा गया था। एक मिलनसार सामरी ने “उसके घावों पर तेल और दाखरस ढालकर पट्टियां बान्धी।” (१०:३४) घावों की देखभाल की यह एक प्रथागत रीति थी। जैतून तेल घावों को मृदु और कम कर देता है। (यशायाह १:६) लेकिन दाखमधु के बारे में क्या? द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल असोसियेशन ने कहा: “यूनान में दाखमधु एक मुख्य दवाई थी। . . . कॉस के हिपॉक्रेट्स (सा. यू. पू. ४६०-३७०) ने . . . दाखमधु का व्यापक उपयोग किया, उसे एक मरहम-पट्टी, ज्वर के लिए एक शीतलन कारक, एक विरेचक, और मूत्रवर्धक के रूप में नुसखा लिखने के द्वारा किया।” यीशु ने अपने दृष्टान्त में दाखमधु के रोगाणुरोधक और विसंक्रामक गुणों और साथ ही घावों को सुखाने के लिए जैतुन तेल की प्रगुणता को सूचित किया। निस्सन्देह, इस दृष्टान्त की मुख्य बात यह है कि एक सच्चा पड़ोसी दयापूर्वक व्यवहार करता है। हमें दूसरों के साथ इसी प्रकार व्यवहार करना चाहिए।—१०:३६, ३७.
नम्रता के सबक
केवल लूका ने ही उस दृष्टान्त का वर्णन किया जो यीशु ने यह देखने पर दिया कि कैसे भोजन के लिए आए मेहमान सब से मुख्य स्थान ले रहे थे। दावतों के दौरान, मेहमान मेज़ के तीन बाजुओं मे रखे गए पलंगों पर लेटते। सेवक चौथे बाजू से उसकी ओर आ सकते थे। प्रथागत रूप से एक पलंग तीन व्यक्तियों से उपयोग किया जाता था, प्रत्येक व्यक्ति मेज़ के सामने अपनी बायी कोहनी पर विश्राम करता और अपने दाएं हाथ से भोजन करता था। ये तीन स्थानों ने यह सूचित किया कि एक व्यक्ति को पलंग पर उच्च, मध्य, या तो फिर नीचे का स्थान मिलता। तीसरे पलंग पर जिसका नीचे का स्थान होता उसे उस भोजन में सब से छोटा स्थान था। यीशु ने कहा: ‘जब तू बुलाया जाए, तो सब से नीची जगह जा बैठ, कि जब अतिथेए आए, तो तूझ से कहे कि, “आगे बढ़कर बैठ”, तब तेरे साथ बैठनेवालों के साम्हने तेरी बड़ाई होगी।’ (१४:७-१०) जी हाँ, चलो हम नम्रतापूर्वक दूसरों को हमारे सामने रखें। वस्तुतः, इस दृष्टान्त का विनियोग करने के सम्बन्ध में यीशु ने कहा: “जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा; और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”—१४:११.
नम्रता पर ही बल देते हुए और केवल लूका के सुसमाचार लेख में पाया गया यीशु का एक दृष्टान्त जो एक कर-समाहर्ता और एक फरीसी के बारे में है जो मन्दिर में प्रार्थना कर रहे थे। अन्य बातों में, उस फरीसी ने कहा, “मैं हर सप्ताह दो बार उपवास करता हूँ।” (१८:९-१४) नियम के अनुसार सिर्फ एक वार्षिक उपवास की आवश्यकता थी। (लैव्यव्यवस्था १६:२९) लेकिन फरीसियों ने उपवास कार्य में ज्यादती की। इस दृष्टान्त में के फरीसी ने सप्ताह के दूसरे दिन उपवास किया क्योंकि यह सोचा गया था कि यह वह समय था जब मूसा सीनाई पर्वत पर गया था, जहाँ उसने नियम की दो पट्टियाँ प्राप्त की। यह कहा गया है कि वे सप्ताह के पाँचवे दिन पर्वत से नीचे आए। (निर्गमन ३१:१८; ३२:१५-२०) उस फरीसी ने उसके अर्ध-साप्ताहिक उपवास को उसकी भक्ति के प्रमाण के रूप में उल्लेख किया। लेकिन यह दृष्टान्त हमें नम्र होने के लिए और न कि दंभी होने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
लूका के सुसमाचार लेख के ये रत्न सिद्ध करते हैं कि यह अनुपम और शिक्षाप्रद है। इस वृत्तान्त में बतायी गयी बातें हमें यीशु के पार्थिव जीवन की मर्मस्पर्शी घटनाओं को पुनः अनुभव करने में सहायता देती हैं। हम कुछ अमुक प्रथाओं की पृष्ठिका से भी लाभ उठाते हैं। लेकिन हम विशेष रूप से तब धन्य ठहरेंगे जब हम प्रिय चिकित्सक लूका के सुसमाचार द्वारा सिखाए गए, दया और नम्रता जैसे विषयों के सबकों का विनियोग करेंगे।