अध्याय १३
परमेश्वर की शांतिपूर्ण सरकार
१. मानव सरकारें क्या करने में असफल रही हैं?
क्या आपने इस बात पर गौर किया है कि मानव सरकारें, यहाँ तक कि वे भी जिनके उद्देश्य नेक हैं, फिर भी वे लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं को संतुष्ट करने में असफल रही हैं? उनमें से किसी भी सरकार ने अपराध और प्रजाति घृणा की समस्याओं को हल नहीं किया है और न अपने समस्त लोगों को उपयुक्त भोजन और मकान प्रदान किया है। उन्होंने अपने नागरिकों को किसी प्रकार की बीमारी से पूर्णतया स्वतन्त्र नहीं किया है। न ही कोई सरकार बुढापे को या मृत्यु को रोक सकी है और न मृतकों को पुनर्जीवित कर सकी है। उनमें से एक भी सरकार अपने नागरिकों के लिये स्थायी शांति और सुरक्षा नहीं ला पायी है। मनुष्यों की सरकारें उन तमाम बड़ी समस्याओं को जो लोगों के सम्मुख हैं, बिल्कुल भी हल करने के योग्य नहीं हुई है।
२. बाइबल का मुख्य संदेश क्या है?
२ हमारा सृष्टिकर्त्ता जानता है कि हमें एक ऐसी न्याययुक्त सरकार की कितनी आवश्यकता है जो सब लोगों के लिये एक पूर्ण और सुखी जीवन का आनन्द लेना संभव करेगी। इसलिये बाइबल परमेश्वर के निर्देशन के अधीन एक सरकार के विषय में बताती है। वास्तव में, यह परमेश्वर द्वारा प्रतिज्ञित राज्य बाइबल का मुख्य संदेश है।
३. यशायाह ९:६, ७ पद परमेश्वर की सरकार के विषय में क्या कहते हैं?
३ परन्तु शायद आप यह पूछें: ‘बाइबल कहाँ परमेश्वर की सरकार के विषय को बताती है?’ उदाहरणतया, वह यशायाह ९:६, ७ में अवश्य बताती है। बाइबल के किंग जेम्स वर्शन के अनुसार ये पद यह कहते हैं: “क्योंकि हमारे लिये एक बालक उत्पन्न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है: और सरकार उसके कांधे पर होगी; और उसका नाम अद्भुत परामर्शदाता, शक्तिशाली ईश्वर, अनन्तकाल का पिता और शांति का राजकुमार होगा। और उसकी सरकार की वृद्धि और शांति का अन्त नहीं होगा।”
४. वह बालक कौन है जो परमेश्वर की सरकार का शासक बनता है?
४ बाइबल यहाँ एक बालक अर्थात् एक राजकुमार के जन्म के विषय में बता रही है। समय आने पर ‘राजा के पुत्र’ को महान शासक बनना था जो “शांति का राजकुमार” कहलायेगा। और कि वास्तव में एक अत्युत्तम सरकार का कार्यभार उसके सुपुर्द होगा। वह सरकार सारी पृथ्वी पर शांति लायेगी और वह शांति सर्वदा कायम रहेगी। वह बालक जिसके जन्म की पूर्व सूचना यशायाह ९:६, ७ में दी गयी थी, यीशु था। जब स्वर्गदूत जिब्राइल ने मरियम नामक कुंआरी लड़की को उससे यीशु के पैदा होने की घोषणा की थी तो उसने उसके विषय में यह कहा था: “वह राजा के रूप में राज्य करेगा और उसके राज्य का अन्त न होगा।”—लूका १:३०-३३.
राज्य के महत्व पर जोर देना
५. (क) बाइबल में राज्य के महत्व को कैसे प्रदर्शित किया गया है? (ख) परमेश्वर का राज्य क्या है और वह क्या संपन्न करेगा?
५ जब यीशु मसीह और उसके समर्थक पृथ्वी पर थे तब उनका आनेवाले परमेश्वरीय राज्य के विषय में प्रचार करना और उसकी शिक्षा देना मुख्य कार्य था। (लूका ४:४३; ८:१) बाइबल में उस राज्य के विषय में उनके द्वारा दिये गये लगभग १४० प्रसंग मिलते हैं। यीशु ने अपने अनुयायियों को परमेश्वर से यह प्रार्थना करने की भी शिक्षा दी थी: “तेरा राज्य आये। तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है वैसी पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती ६:१०; किंग जेम्स वर्शन) क्या यह राज्य जिसके लिये मसीही प्रार्थना करते हैं वास्तव में एक सरकार है? शायद आपने ऐसा नहीं सोचा होगा, परन्तु वास्तव में वह एक सरकार है। परमेश्वर का पुत्र, यीशु मसीह, उस राज्य का राजा है। और सम्पूर्ण पृथ्वी उसका वह क्षेत्र होगी जिस पर वह राज्य करता है। यह कितनी उत्तम बात होगी जब लोग अनेक विरोधी राष्ट्रों में विभाजित नहीं रहेंगे, बल्कि सब मनुष्य परमेश्वर के राज्य की सरकार के अधीन शांति में संयुक्त रहेंगे!
६. जब यीशु पृथ्वी पर था तो राज्य के लिए यह क्यों कहा गया था कि वह “निकट” है और “तुम्हारे बीच में” है?
६ यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने इस सरकार के विषय में प्रचार करना आरंभ किया था और वह लोगों को यह बताता था: “पश्चाताप करो क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।” (मत्ती ३:१, २) यूहन्ना क्यों ऐसा कह सकता था? क्योंकि यीशु को, अर्थात् जो वह व्यक्ति था जिसे परमेश्वर की स्वर्गीय सरकार का शासक बनना था, उससे बपतिस्मा लेना था और परमेश्वर की पवित्र आत्मा द्वारा अभिषिक्त होना था। अतः आप इस बात को समझ सकते हैं कि यीशु ने क्यों बाद में फरीसियों से यह कहा था: “देखो! परमेश्वर का राज्य तुम्हारे बीच में है।” (लूका १७:२१) ऐसा इसलिये था क्योंकि यीशु, जिसे परमेश्वर ने राजा के रूप में नियुक्त किया था, उनके बीच मौजूद था। अपने साढ़े तीन वर्षों के प्रचार और शिक्षा के दौरान, यीशु ने परमेश्वर के प्रति मृत्यु तक वफ़ादार रहकर, अपने राजा बनने के अधिकार को सिद्ध किया था।
७. किस बात से प्रदर्शित होता है कि जब यीशु पृथ्वी पर था तो राज्य एक महत्वपूर्ण वाद-विषय था?
७ यह प्रदर्शित करने के लिये कि मसीह की सेवकाई के दौरान परमेश्वर का राज्य एक महत्वपूर्ण वाद विषय था, आइये हम उस घटना पर ग़ौर करें, जो आखिरी दिन उसकी मृत्यु से पहले घटित हुई थी। बाइबल हमें बताती है कि लोगों ने यह कहकर यीशु पर इल्जाम लगाया: “हमने, इस आदमी को हमारे राष्ट्र को ढहाते और कैसर को कर देने से मना करते और अपने आपको मसीह राजा कहते पाया है।” इन बातों को सुनकर रोमी गवर्नर पिन्तुस पीलातुस ने यीशु से पूछा “क्या तू यहूदियों का राजा है?”—लूका २३: १-३.
८. (क) यीशु ने कैसे उत्तर दिया जब उससे यह पूछा गया कि क्या वह राजा है? (ख) यीशु का क्या अभिप्राय था जब उसने यह कहा कि उसका राज्य “इस स्रोत से नहीं है”?
८ यीशु ने पीलातुस के प्रश्न का प्रत्यक्षतया उत्तर नहीं दिया, परन्तु कहा: “मेरा राज्य, इस जगत का भाग नहीं। यदि मेरा राज्य इस जगत का भाग होता तो मेरे सेवक लड़ते कि मैं यहूदियों के हाथ सौंपा न जाऊँ। परन्तु जैसी कि वास्तविकता है कि मेरा राज्य इस स्रोत से नहीं है।” यीशु ने इस तरीके से इसलिये उत्तर दिया, क्योंकि उसके राज्य को एक पार्थिव राज्य नहीं होना था। उसे स्वर्ग से, राज्य करना था न कि मनुष्य बनकर पृथ्वी पर स्थित किसी सिंहासन से। क्योंकि वाद विषय यह था कि क्या यीशु को राजा के रूप में शासन करने का अधिकार प्राप्त था कि नहीं, इसलिये पीलातुस ने फिर यीशु से पूछा: “तो क्या, तू राजा है?”
९. (क) यीशु ने किस अद्भुत सत्य की जानकारी दी? (ख) आज मुख्य प्रश्न क्या हैं?
९ स्पष्टतया, यह वह मुकदमा था जिसमें यीशु के जीवन का प्रश्न अंतर्ग्रस्त था क्योंकि वह एक नयी सरकार के विषय में प्रचार करता और उसकी शिक्षा देता रहा था। अतः यीशु ने पीलातुस को यह उत्तर दिया: “तू स्वयं कह रहा है कि मैं राजा हूँ। इसी कारण से मैंने जन्म लिया है और इसी लिये मैं जगत में आया हूँ कि मैं सत्य की गवाही देता रहूँ।” (यूहन्ना १८:३६, ३७) हाँ, यीशु ने पृथ्वी पर अपना जीवन लोगों को परमेश्वर की राजकीय सरकार के विषय में अद्भुत सत्य बताने में व्यतीत किया था। यह उसका प्रमुख संदेश था। और आज भी यह राज्य अभी तक अतिमहत्वपूर्ण वाद विषय है। तथापि ये प्रश्न अब भी बाकी रह जाते हैं: कौनसी सरकार एक व्यक्ति के जीवन में अतिमहत्वपूर्ण स्थान रखती है? क्या वह मनुष्यों की कोई सरकार है, या वह परमेश्वर का राज्य है जिसका शासक मसीह है?
पृथ्वी के लिये नयी सरकार का प्रबन्ध करना
१०. (क) परमेश्वर ने कब एक नयी सरकार की आवश्यकता को महसूस किया? (ख) बाइबल में सबसे पहले कहाँ इस सरकार के विषय में प्रसंग दिया गया है? (ग) वह कौन है जो सर्प का प्रतिनिधित्व करता है?
१० उस समय जब शैतान ने आदम और हव्वा को विद्रोह में अपने साथ मिला लिया तब यहोवा ने मानवजाति के ऊपर एक नयी सरकार के होने की आवश्यकता को महसूस किया। अतः तुरन्त परमेश्वर ने इस प्रकार की सरकार को स्थापित करने के विषय में अपने उद्देश्य को प्रकट किया। उसने इस सरकार का प्रसंग उस समय दिया जब उसने सर्प को इस फैसले की घोषणा दी और वस्तुतः शैतान अर्थात् इबलीस को यह बताया: “मैं तेरे और स्त्री के मध्य और तेरे वंश और उसके वंश के मध्य वैर उत्पन्न करूंगा। वह तेरे सिर को कुचलेगा और तू उसकी एड़ी में काटेगा।”—उत्पत्ति ३:१४, १५.
११. किनके मध्य वैर का उत्पन्न होना अवश्य था?
११ परन्तु शायद आप यह पूछें: ‘यहाँ कहाँ एक सरकार के विषय में कुछ कहा गया है?’ आइये हम सावधानीपूर्वक इस कथन पर विचार करें और हम देख पाएंगे। शास्त्रपद यह कहते हैं कि शैतान और “स्त्री” के मध्य वैर अथवा घृणा को उत्पन्न होना अवश्य था। इसके अतिरिक्त शैतान के “वंश” अथवा उसकी संतान और स्त्री के “वंश” अथवा उसकी संतान के मध्य घृणा उत्पन्न होनी थी। सबसे पहले, हमें यह मालूम करने की आवश्यकता है कि वह “स्त्री” कौन है।
१२. प्रकाशितवाक्य के अध्याय १२ में “स्त्री” के विषय में क्या कहा गया है?
१२ वह एक पार्थिव स्त्री नहीं है। किसी मानव स्त्री के प्रति शैतान की कभी कोई विशेष घृणा नहीं रही है। इसकी अपेक्षा यह एक लाक्षणिक स्त्री है। इसका यह अर्थ है कि वह किसी और का प्रतिनिधित्व करती है। यह बाइबल की प्रकाशितवाक्य नामक अंतिम पुस्तक में प्रदर्शित है जहाँ उसके विषय में अधिक सूचना दी गयी है। वहाँ इस “स्त्री” का वर्णन इस रूप से दिया गया है कि वह “सूर्य से अलंकृत और चन्द्रमा पर खड़ी है और उसके सिर पर बारह सितारों का मुकुट है।” यह मालूम करने में हमारी सहायता देने के लिये कि यह “स्त्री” किसका प्रतिनिधित्व करती है, आप गौर कीजिये कि प्रकाशितवाक्य की पुस्तक उसके बालक के विषय में क्या कहती है: “उस स्त्री ने एक नर बालक को जन्म दिया, अर्थात्, पुत्र जिसे लोहे के दंड से सब राष्ट्रों पर राज्य करना था और वह बालक सीधे उठाकर परमेश्वर के पास और उसके सिंहासन के पास पहुंचा दिया गया।”—प्रकाशितवाक्य १२:१-५, द जेरूसलेम बाइबल।
१३. “नर बालक” और “स्त्री” किसका या क्या प्रतिनिधित्व करते हैं?
१३ वह “नर बालक” कौन और क्या है उसके विषय में जानकारी प्राप्त करने से हमें यह मालूम करने में सहायता मिलेगी कि वह “स्त्री” किसका और क्या प्रतिनिधित्व करती है। वह बालक एक वास्तविक व्यक्ति नहीं है जिस प्रकार वह स्त्री एक वास्तविक मानव नारी नहीं है। शास्त्र पद यह प्रदर्शित करता है कि इस “नर बालक” को सब जातियों पर राज्य करना अवश्य है। अतः वह “बालक” परमेश्वर की सरकार का प्रतिनिधित्व करता है जिसका राजा बनकर यीशु मसीह शासन करेगा। इसलिये वह “स्त्री” वफादार स्वर्गीय प्राणियों से बने परमेश्वर के संगठन का प्रतिनिधित्व करती है। जिस प्रकार वह “नर बालक” उस स्त्री” से निकला था उसी प्रकार राजा यीशु मसीह उस स्वर्गीय संगठन अर्थात् जो स्वर्ग में वफ़ादार आत्मिक प्राणियों से बनी उस संस्था से निकला और वह जो एकता में परमेश्वर के उद्देश्य को कार्यान्वित करते हैं। पवित्रशास्त्र में गलतियों ४:२६ का पद इस संगठन को “ऊपर का यरूशलेम” बताता है। अतः जब आदम और हव्वा ने परमेश्वर की शासकता के विरुद्ध विद्रोह किया था, तब यहोवा ने एक राजकीय सरकार का प्रबन्ध किया जो धार्मिकता के प्रेमियों के लिये एक आशा सिद्ध होगी।
यहोवा अपनी प्रतिज्ञा को याद रखता है
१४. (क) यहोवा ने कैसे प्रदर्शित किया कि उसे उस “वंश” के विषय में दी हुई प्रतिज्ञा याद है जो शैतान को कुचलेगा? (ख) वह प्रतिज्ञित “वंश” कौन है?
१४ यहोवा उस “वंश” के भेजने की प्रतिज्ञा को नहीं भूला था जो परमेश्वर की सरकार का शासक होगा। यह शासक शैतान को उसका सिर कुचलकर नष्ट करेगा। (रोमियों १६:२०; इब्रानियों २:१४) बाद में यहोवा ने यह कहा था कि प्रतिज्ञित वंश वफ़ादार पुरुष इब्राहीम के द्वारा आयेगा। यहोवा ने इब्राहीम से यह कहा था: “तेरे वंश के द्वारा पृथ्वी की सारी जातियाँ अपने आपको निश्चय धन्य मानेंगी।” (उत्पत्ति २२:१८) वह “वंश” कौनसा है जिसकी इब्राहीम के वंशक्रम द्वारा आने की प्रतिज्ञा की गयी थी? बाइबल बाद में इसका उत्तर यह कहकर देती है: “प्रतिज्ञाएं इब्राहीम से और उसके वंश से की गयी थीं। वह यह नहीं कहती है: ‘वंशों’ को जैसे कि बहुतों के विषय में कहा गया हो परन्तु एक ही विषय में: ‘तेरे वंश को,’ जो मसीह है।” (गलतियों ३:१६) यहोवा ने इब्राहीम के पुत्र इसहाक और उसके पौत्र याकूब से भी यही कहा था, कि परमेश्वर की “स्त्री का वंश” उनके वंशक्रम से आयेगा।”—उत्पत्ति २६:१-५; २८:१०-१४.
१५, १६. किस बात से सिद्ध होता है कि उस “वंश” को वह राजा होना था, जो शासन करेगा?
१५ इस बात को स्पष्ट करते हुए कि यह “वंश” वह राजा होगा जो शासन करेगा, याकूब ने अपने पुत्र यहूदा को इस बात का विवरण दिया: “जब तक शीलो न आये, तब तक यहूदा से न तो राजदंड [शासनाधिकार] और न उसके पांव के बीच से आदेश दंड अलग होगा और उसके प्रति सब जातियों के लोगों की आज्ञाकारिता होगी।” (उत्पत्ति ४९:१०) यीशु मसीह यहूदा के वंश से था। वह यह “शीलो” सिद्ध हुआ जिसके प्रति “सब जातियों के लोगों की आज्ञाकारिता होगी।”—इब्रानियों ७:१४.
१६ यहूदा को दिये गये इस कथन के लगभग ७०० वर्ष पश्चात् यहोवा ने यहूदा के वंश के दाऊद नामक पुरुष के विषय में यह कहा था: “मैंने दाऊद को अपना सेवक पाया . . . और मैं निश्चय उसके वंश को सदा के लिये बनाये रखूँगा और उसका सिंहासन स्वर्ग के दिनों के समान सदा बना रहेगा।” (भजन संहिता ८९:२०, २९) जब परमेश्वर कहता है कि दाऊद का “वंश” “सर्वदा” के लिये बना रहेगा, और “उसका सिंहासन” उतने समय तक अस्तित्व में रहेगा जितने समय तक “स्वर्ग के दिन” रहेंगे तो यहोवा के यह कहने का क्या अर्थ है? यहोवा परमेश्वर इस वास्तविकता की ओर संकेत कर रहा है कि उसके द्वारा नियुक्त शासक यीशु मसीह के हाथों में वह राजकीय सरकार सर्वदा रहेगी। यह हम कैसे जानते हैं?
१७. हम कैसे जानते हैं कि वह प्रतिज्ञित शासक यीशु मसीह है?
१७ उस बात को याद कीजिये, जब यहोवा के स्वर्गदूत जिब्राइल ने मरियम को उस बालक के विषय में जो उससे उत्पन्न होगा, कहा था। उसने यह कहा था: “तू उसका नाम यीशु रखना।” परन्तु यीशु को पृथ्वी पर केवल एक बालक बनकर या बड़े होकर एक पुरुष बनकर भी नहीं रहना था। जिब्राइल ने फिर यह भी कहा था: “वह महान होगा और परमप्रधान का पुत्र कहलायेगा; और यहोवा परमेश्वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उसको देगा और वह याकूब के घराने पर राजा बनकर सदा शासन करेगा और उसके राज्य का अंत न होगा।” (लूका १:३१-३३) क्या यह वास्तव में एक अद्भुत बात नहीं है, कि यहोवा ने एक न्याययुक्त सरकार उन लोगों के चिरस्थायी लाभ के लिये जो उससे प्रेम करते हैं और उसपर विश्वास रखते हैं, स्थापित करने का प्रबंध किया है?
१८. (क) बाइबल पार्थिव सरकारों के अन्त का वर्णन कैसे करती है? (ख) परमेश्वर की सरकार लोगों के लिए क्या करेगी?
१८ वह समय अब निकट है जब परमेश्वर की राजकीय सरकार दुनिया की सब सरकारों को नष्ट करने के लिये कार्यवाही करेगी। यीशु मसीह तब एक विजयी राजा बनकर कार्यवाही आरंभ करेगा। इस युद्ध का वर्णन करते हुए बाइबल यह कहती है: “उन राजाओं के दिनों में स्वर्ग का परमेश्वर एक ऐसा राज्य उदय करेगा जो अनन्त काल तक न टूटेगा . . . वह इन सब राज्यों को चूर-चूर करेगा और उनका अन्त कर डालेगा और वह स्वयं सदा स्थिर रहेगा।” (दानिय्येल २:४४; प्रकाशितवाक्य १९:११-१६) अन्य सब सरकारों के नष्ट होने के बाद, परमेश्वर की यह सरकार लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं को पूरा करेगी। और उस सरकार का शासक, यीशु मसीह इस बात को देखेगा कि उसकी वफ़ादार प्रजा में कोई भी व्यक्ति न बीमार हो, न बूढ़ा हो और न मरे। अपराध, मकानों का अनुचित प्रबंध, भूख और इस प्रकार की अन्य सब समस्याओं का हल किया जायेगा। सारी पृथ्वी पर वास्तविक शांति और सुरक्षा होगी। (२ पतरस ३:१३; प्रकाशितवाक्य २१:३-५) तथापि हमारा उन व्यक्तियों के विषय में जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है जो परमेश्वर की इस राजकीय सरकार के शासक होंगे।
[पेज ११२, ११३ पर तसवीरें]
यीशु ने अपने अनुयायियों को परमेश्वर के राज्य के विषय में प्रचार का महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए भेजा
[पेज ११४ पर तसवीरें]
उस मुकदमे के दौरान जिसमें यीशु के जीवन का प्रश्न अंतर्ग्रस्त था तो वह परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता रहा
[पेज ११९ पर तसवीरें]
आप यीशु को किस दृष्टिकोण से देखते हैं—एक विजयी राजा के रूप में या एक निःसहाय बालक के रूप में?