रत्न यूहन्ना के सुसमाचार से
यहोवा के आत्मा ने बूढ़े प्रेरित यूहन्ना को यीशु मसीह के जीवन और सेवकाई का एक हृदयस्पर्शी वृत्तांत लिखने के लिए प्रेरित किया। यह सुसमाचार सामान्य युग ९८ के लगभग, इफिसुस में या उसके आस-पास लिखा गया था। लेकिन यह किस क़िस्म का वृत्तांत है? और उस में के कुछेक रत्न क्या हैं?
अधिकांशतः अनुपूरक
यूहन्ना चयनात्मक था, इसलिए कि उसने मत्ती, मरकुस, और लूका की लिखी बहुत कम बातें दोहरायीं। वास्तव में, उसका प्रत्यक्षदर्शी वृत्तांत अधिकांशतः अनुपूरक है क्योंकि इस का ९० प्रतिशत से ज़्यादा भाग ऐसे मामलों का विवरण देता है जिनका उल्लेख अन्य सुसमाचारों में नहीं किया गया। उदाहरणार्थ, सिर्फ़ वही हमें यीशु के मानव-पूर्व अस्तित्व के बारे में बताता है, और कि “वचन देहधारी हुआ।” (१:१-१४) जबकि दूसरे सुसमाचार लेखक कहते हैं कि यीशु ने अपनी सेवकाई के अन्त में मन्दिर साफ़ किया, यूहन्ना कहता है कि मसीह ने ऐसा उसकी शुरुआत में भी किया। (२:१३-१७) सिर्फ़ वृद्ध प्रेरित ही हमें यीशु द्वारा किए कुछ विशेष चमत्कारों के विषय बताता है, जैसा कि पानी का दाखरस में बदल, मरे हुए लाजर का पुनरुत्थान, और खुद अपने पुनरुत्थान के बाद मछलियों का चमत्कारिक शिकार।—२:१-११; ११:३८-४४; २१:४-१४.
सभी सुसमाचार लेखक बताते हैं कि यीशु ने किस तरह स्मारक दिन का प्रारंभ किया, लेकिन केवल यूहन्ना ही दिखाता है कि मसीह ने उस रात प्रेरितों के पैर धोकर उन्हें विनम्रता का सबक़ सिखाया। इसके अतिरिक्त, यीशु ने उन से उस समय जो घनिष्ठ बात-चीत की और उनके वास्ते जो प्रार्थना की, केवल यूहन्ना ही इसे लिखता है।—१३:१-१७:२६.
इस सुसमाचार में, चूँकि लेखक खुद का ज़िक्र, ‘वह चेला जिस से यीशु प्रेम रखता था,’ ऐसे करता है, यूहन्ना, यह नाम बपतिस्मा देनेवाले की ओर संकेत करता है। (१३:२३) प्रेरित ने यीशु से निश्चय ही प्रेम रखा, और जब यूहन्ना उसका वर्णन वचन, जीवन की रोटी, जगत की ज्योति, अच्छा चरवाहा, मार्ग, सच्चाई, और जीवन के तौर से करता है, तब मसीह के लिए खुद हमारा प्रेम भी बढ़ाया जाता है। (१:१-३, १४; ६:३५; ८:१२; १०:११; १४:६) यह यूहन्ना का स्पष्ट उद्देश्य पूरा करता है: “ये [बातें] इसलिए लि[खी] ग[यीं] हैं, कि तुम विश्वास करो, कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र मसीह है: और विश्वास करके उसके नाम से जीवन पाओ।”—२०:३१.
विनम्रता और खुशी
यूहन्ना का सुसमाचार यीशु का परिचय वचन और पापों का प्रायश्चित करानेवाले मेम्ने के तौर से करता है और उस में ऐसे चमत्कारों का उल्लेख हुआ है जो उसे “परमेश्वर का पवित्र जन” साबित करते हैं। (१:१-९:४१) अन्य बातों के अलावा, वृत्तांत में बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना की विनम्रता और खुशी विशिष्ट की गयी हैं। वह मसीह का अग्रदूत था लेकिन उसने कहा: “[उस] की जूती का बन्ध मैं खोलने के योग्य नहीं।” (१:२७) चप्पलों को चमड़े के पट्टों, या तसमों से बाँधा जाता था। एक दास शायद दूसरे के चप्पलों के तसमे खोलकर उन्हें यहाँ-वहाँ ढोता, चूँकि यह नौकरों का काम हुआ करता था। बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना ने इस प्रकार विनम्रता और अपने मालिक की तुलना में अपनी नगण्यता का बोध व्यक्त किया। एक उत्तम सबक, इसलिए कि केवल विनम्र लोग ही यहोवा और उसके मसीही राजा की सेवा के लिए योग्य हैं!—भजन १३८:६; नीतिवचन २१:४.
यीशु के प्रति विद्वेष महसूस करने के बजाय, बपतिस्मा देनेवाले यूहन्ना ने कहा: “दूल्हे का मित्र जो खड़ा हुआ उस की सुनता है, दूल्हे के शब्द से बहुत हर्षित होता है; अब मेरा यह हर्ष पूरा हुआ है।” (३:२९) दूल्हे का प्रतिनिधि होने के नाते, दूल्हे का मित्र शादी संबंधी समझौते की बात-चीत करता था, कभी-कभी सगाई की व्यवस्था करके दुल्हन को उपहार और उसके पिता को महर पहुँचाता है। इस प्रतिनिधि को अपने कर्त्तव्य के पूरा होने पर हर्षित होने का कारण था। उसी तरह, यूहन्ना यीशु को अपनी दुल्हन के पहले सदस्यों से मिलाने में हर्षित हुआ। (प्रकाशितवाक्य २१:२, ९) जिस तरह दूल्हे के मित्र का काम सिर्फ़ थोड़े समय के लिए ही था, उसी तरह यूहन्ना का काम भी जल्द ही ख़त्म हुआ। वह घटता गया, जबकि यीशु बढ़ता गया।—यूहन्ना ३:३०.
लोगों के लिए यीशु की परवाह
सूखार नाम शहर के पास के एक कूएँ पर, यीशु ने एक सामरी औरत को अनन्त जीवन प्रदान करनेवाले प्रतीकात्मक जल के बारे में बताया। जब उसके चेले वहाँ पहुँचे, वे “अचम्भा करने लगे, कि वह स्त्री से बातें कर रहा है।” (४:२७) ऐसी प्रतिक्रिया क्यों? खैर, यहूदी लोग सामरियों को तिरस्कार करते थे और उनके साथ उनका कोई लेना-देना न था। (४:९; ८:४८) और किसी यहूदी शिक्षक का किसी औरत से खुले आम बातें करना भी असाधारण था। लेकिन लोगों के लिए यीशु की अनुकंपाशील परवाह से वह गवाही देने के लिए प्रेरित हुआ और उसी की वजह से, उस शहर के निवासी “उसके पास आने लगे।”—४:२८-३०.
लोगों के लिए परवाह से यीशु यह कहने के लिए प्रेरित हुआ: “यदि कोई प्यासा हो तो मेरे पास आकर पीए।” (७:३७) प्रत्यक्ष रूप से, इस प्रकार उसने उस प्रथा की ओर संकेत किया जो आठ दिन के झोंपड़ियों के पर्ब्ब से जोड़ा गया था। सात दिनों तक हर सुबह, एक याजक शीलोह के कुण्ड से पानी खींचकर मन्दिर की वेदी पर बहा देता था। अन्य बातों के अतिरिक्त, कहा जाता था कि यह आत्मा का उद्गार चित्रित करता था। सा.यु. ३३ से शुरू होकर, परमेश्वर के आत्मा ने यीशु के चेलों को दुनिया भर के लोगों के पास प्राण-दायक जल ले जाने के लिए प्रेरित किया। केवल मसीह के ज़रिए, यहोवा, “जीवित जल के सोते,” से कोई व्यक्ति अनन्त जीवन पा सकता है।—यिर्मयाह २:१३; यशायाह १२:३; यूहन्ना १७:३.
अच्छा चरवाहा परवाह करता है!
लोगों के लिए यीशु की परवाह, अपने भेड़-जैसे अनुयायियों की परवाह करनेवाले अच्छे चरवाहे की उसकी भूमिका में प्रकट है। जैसे उसकी मृत्यु क़रीब आयी, तब भी यीशु ने अपने चेलों को प्रेममय सलाह दी और उनके लिए प्रार्थना की। (१०:१-१७:२६) कोई चोर या लुटेरे से विपरीत, वह दरवाज़े से भेड़शाले में प्रवेश करता है। (१०:१-५) भेड़शाला एक घेरा थी जिस में भेड़ों को चोरों और परभक्षी जानवरों से सुरक्षित रखने के लिए रात भर रखा जाता था। उसकी चारों ओर पत्थरों की दीवारें थीं, शायद जिस के ऊपर कटीली डालें थीं, और एक प्रवेश-द्वार, जिसकी रखवाली द्वार-पालक करता था।
शायद कई चरवाहों के झुण्ड एक ही भेड़शाले में रखे जाते थे, लेकिन भेड़ सिर्फ़ अपने-अपने चरवाहे की आवाज़ के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते थे। अपनी किताब मॅन्नर्ज़ ॲन्ड कस्टंस् ऑफ़ बाइबल लैंडस् में, फ्रेड एच. वाइट कहता है: “जब भेड़ों के कई झुण्डों को अलग करने की आवश्यकता होती है, एक चरवाहे के बाद दूसरा चरवाहा खड़ा होकर पुकारेगा: ‘टाहू! टाहू!’ या अपनी पसंद की ऐसी ही एक पुकार। भेड़ अपना सिर उठाते हैं, और आम धक्कमधक्का के बाद, हर कोई अपन-अपने चरवाहे के पीछ चलते हैं। वे अपने-अपने चरवाहे की आवाज़ के स्वर से पूरी तरह अभिज्ञ हैं। अपरिचित लोगों ने अक़्सर वही पुकार इस्तेमाल की है, लेकिन भेड़ों को अपने पीछे कराने की उनकी कोशिशें हमेशा विफल होती हैं।” दिलचस्प रीति से, यीशु ने कहा: “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूँ, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं। और मैं उन्हें अनन्त जीवन देता हूँ।” (१०:२७, २८) दोनों “छोटा झुण्ड” और “अन्य भेड़” यीशु की आवाज़ के प्रति प्रतिक्रिया दिखाते हैं, उसकी अगुआई के अनुसार चलते हैं और उसकी कोमल चिन्ता का आनन्द लेते हैं।—लूका १२:३२; यूहन्ना १०:१६, न्यू.व.
परमेश्वर का सदा-विश्वसनीय पुत्र
मसीह परमेश्वर के प्रति सदा विश्वसनीय था और एक प्रेममय चरवाहे की हैसियत से अपनी सारी पार्थीव ज़िन्दगी के दौरान अनुकरणीय था। उसकी अनुकंपा पुनरुत्थान-उत्तर दर्शनों में भी प्रकट थी। दूसरों के लिए अनुकंपाशील परवाह होने की वजह से ही यीशु उस वक़्त अपनी भेड़ें चराने के लिए पतरस को प्रोत्साहित करने को प्रेरित हुआ।—१८:१-२१:२५.
सूली पर चढ़ा दिए गए शिकार होने के नाते, यीशु ने हमारे लिए मृत्यु तक विश्वसनीय रहने का एक उत्तम आदर्श पेश किया। भविष्यद्वाणी की पूर्ति में उसने जो बदनामी सही वह यह थी कि सैनिकों ने ‘अपने बीच उसके वस्त्र बाँट लिए।’ (भजन २२:१८) उन्होंने यह तय करने के लिए चिट्ठियाँ डाली कि उसका बढ़िया कुरता [यूनानी, खीटॉनʹ], जो बिन सीअन से बुना हुआ था, किस को मिलेगा। (१९:२३, २४) ऐसा कुरता शायद ऊन या सन से एक ही टुकड़े में बुना जाता है और सफ़ेद रंग या विविध रंगों का हो सकता है। अक़्सर बे-आस्तीन होकर, यह अन्दर के वस्त्र के तौर से पहना जाता था और घुटनों या टखनों तक भी पहुँचता था। निश्चय ही, यीशु भौतिकवादी न था, लेकिन उसने उत्तम कोटि का ऐसा वस्त्र, अपना सीअनहीन कुरता, ज़रूर पहना।
यीशु के एक पुनरुत्थान-उत्तर दर्शन के दौरान, उसने अपने चेलों का अभिवादन इन शब्दों में किया: “तुम्हें शान्ति मिले।” (२०:१९) यहूदियों में, यह एक सामान्य अभिवादन था। (मत्ती १०:१२, १३) अनेकों के लिए, ऐसे शब्दों का प्रयोग शायद बिल्कुल ही कोई अभिप्राय न रखता। लेकिन यीशु के लिए ऐसा न था, इसलिए कि उसने अपने चेलों को पहले बता दिया था: “मैं तुम्हें शान्ति दिए जाता हूँ, अपनी शान्ति तुम्हें देता हूँ।” (यूहन्ना १४:२७) जो शान्ति यीशु ने अपने चेलों को दी, वह परमेश्वर के पुत्र की हैसियत से उस पर उनके विश्वास पर आधारित थी और उनके दिल और दिमाग़ शान्त करने में सहायक थी।
उसी तरह, हम “परमेश्वर की शान्ति” का आनन्द उठा सकते हैं। ऐसा हो कि हम अपने दिल में यहोवा के परमप्रिय पुत्र के ज़रिए, उसके साथ एक घनिष्ठ रिश्ते से उत्पन्न इस बेजोड़ प्रशान्ति को सँजाए रखें।—फिलिप्पियों ४:६, ७.
[पेज 27 पर चित्र का श्रेय]
Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.