यीशु के दिखाए नमूने पर चलते रहिए
“मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।”—यूहन्ना 13:15.
1. मसीहियों के लिए यीशु एक सही आदर्श क्यों है?
पूरे इतिहास में सिर्फ एक इंसान ऐसा रहा है जिसने कभी कोई पाप नहीं किया था। वह है, यीशु। यीशु को छोड़, ‘कोई भी मनुष्य निष्पाप नहीं है।’ (1 राजा 8:46; रोमियों 3:23) इसीलिए सच्चे मसीही, यीशु को अपना सिद्ध आदर्श मानते हैं और उसी के नक्शेकदम पर चलने की कोशिश करते हैं। सामान्य युग 33 के निसान 14 को अपनी मौत से कुछ ही समय पहले, खुद यीशु ने अपने चेलों को उसके नक्शेकदम पर चलने की आज्ञा दी। उसने कहा: “मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो।” (यूहन्ना 13:15) इस आखिरी रात को यीशु ने ऐसे कई मामलों का ज़िक्र किया जिनमें मसीहियों को उसके जैसा बनने की कोशिश करनी चाहिए। इस लेख में हम ऐसे ही कुछ मामलों पर गौर करेंगे।
नम्रता की ज़रूरत
2, 3. किन तरीकों से यीशु, नम्रता दिखाने में एक सिद्ध आदर्श था?
2 जब यीशु ने अपने चेलों से ज़ोर देकर कहा कि वे उसके दिखाए नमूने पर चलें, तो वह खासकर नम्रता की बात कर रहा था। कई मौकों पर उसने अपने चेलों को नम्र होने की सलाह दी थी। और निसान 14 की रात, उसने प्रेरितों के पाँव धोकर अपनी नम्रता का जीता-जागता सबूत पेश किया। फिर यीशु ने कहा: “यदि मैं ने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पांव धोए; तो तुम्हें भी एक दूसरे के पांव धोना चाहिए।” (यूहन्ना 13:14) इसके बाद, उसने प्रेरितों से कहा कि वे उसके दिखाए नमूने पर चलें। वाकई, उसने नम्रता का क्या ही बेहतरीन नमूना पेश किया था!
3 प्रेरित पौलुस हमें बताता है कि यीशु, धरती पर आने से पहले “परमेश्वर के स्वरूप में” था। फिर भी अपना सब कुछ त्यागकर वह एक मामूली-सा इंसान बना। इतना ही नहीं, उसने “अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।” (फिलिप्पियों 2:6-8) ज़रा सोचिए तो! यीशु पूरे विश्व का दूसरा सबसे महान शख्स है। फिर भी उसे मंज़ूर था कि वह स्वर्गदूतों से कम दर्जे का बने, एक लाचार शिशु के रूप में जन्म ले, असिद्ध माता-पिता के साए में पले और उनके अधीन रहे और आखिर में एक अपराधी की मौत मरे। (कुलुस्सियों 1:15, 16; इब्रानियों 2:6, 7) नम्रता की क्या ही बढ़िया मिसाल! क्या हमारे लिए ऐसा “स्वभाव” पैदा करना और “दीनता” का गुण बढ़ाना मुमकिन है? (फिलिप्पियों 2:3-5) हाँ मुमकिन ज़रूर है, पर इतना आसान नहीं।
4. कौन-सी बातें लोगों को घमंडी बनाती हैं, मगर यह क्यों खतरनाक है?
4 नम्रता के बिलकुल खिलाफ है, घमंड। (नीतिवचन 6:16-19) घमंड ही शैतान की बरबादी का सबब बना। (1 तीमुथियुस 3:6) घमंड, इंसान के दिल में बड़ी आसानी से जड़ पकड़ लेता है, और एक बार अगर यह इंसान में घर कर जाए, तो उसे निकालना बहुत मुश्किल है। लोग कई बातों पर घमंड करते हैं, जैसे अपने देश, अपनी जाति, दौलत, पढ़ाई, अपनी कामयाबियों, समाज में ओहदे, अपने रंग-रूप, खेल-कूद में अपनी काबिलीयतों और दूसरी कई चीज़ों पर। लेकिन इनमें से एक भी चीज़ यहोवा के लिए मायने नहीं रखती। (1 कुरिन्थियों 4:7) अगर हम ऐसी बातों को लेकर घमंड से फूल जाएँ, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्ता बिगड़ सकता है। “यहोवा महान है, तौभी वह नम्र मनुष्य की ओर दृष्टि करता है; परन्तु अहंकारी को दूर ही से पहिचानता है।”—भजन 138:6; नीतिवचन 8:13.
भाइयों के बीच नम्र होना
5. प्राचीनों का नम्र होना क्यों बेहद ज़रूरी है?
5 यहोवा की सेवा में हम जो मेहनत करते हैं और हमें जो कामयाबियाँ मिलती हैं, उनकी वजह से भी हमें घमंड नहीं करना चाहिए; ना ही कलीसिया में मिली ज़िम्मेदारियों की वजह से हमें अभिमानी होना चाहिए। (1 इतिहास 29:14; 1 तीमुथियुस 6:17, 18) असल में हमें जितनी बड़ी-बड़ी ज़िम्मेदारियाँ मिलती हैं, उतना ही ज़्यादा हमें नम्र होना चाहिए। प्रेरित पतरस ने प्राचीनों से गुज़ारिश की: “जो लोग तुम्हें सौंपे गए हैं, उन पर अधिकार न जताओ, बरन झुंड के लिये आदर्श बनो।” (1 पतरस 5:3) प्राचीनों को भाइयों की सेवा करने और उनके सामने अच्छी मिसाल कायम करने के लिए ठहराया जाता है, न कि दूसरों पर अधिकार जताने के लिए।—लूका 22:24-26; 2 कुरिन्थियों 1:24.
6. मसीही जीवन के किन पहलुओं में हमें नम्रता दिखाने की ज़रूरत है?
6 नम्रता सिर्फ प्राचीनों को ही नहीं बल्कि जवान भाइयों को भी दिखानी है। शायद जवानों को इस बात का घमंड हो कि उनका दिमाग बड़ों के मुकाबले ज़्यादा तेज़ है और उनके पास ज़्यादा ताकत है। इसलिए पतरस ने जवानों को लिखा: “एक दूसरे की सेवा के लिये दीनता से कमर बान्धे रहो, क्योंकि परमेश्वर अभिमानियों का साम्हना करता है, परन्तु दीनों पर अनुग्रह करता है।” (1 पतरस 5:5) जी हाँ, मसीह के जैसी नम्रता दिखाना हम सब के लिए ज़रूरी है। प्रचार काम करने के लिए नम्रता की ज़रूरत होती है, खासकर ऐसी जगहों पर जहाँ लोग हमारे संदेश में कोई दिलचस्पी नहीं लेते या हमारे काम को पसंद नहीं करते। किसी की सलाह को कबूल करने और प्रचार में ज़्यादा हिस्सा लेने के वास्ते अपनी ज़िंदगी को सादा बनाने के लिए भी नम्रता होना ज़रूरी है। इसके अलावा, जब टी.वी. और अखबारों वगैरह में हमारे बारे में झूठी अफवाहें फैलाकर हमें बदनाम किया जाता है, हम पर मुकदमे दायर किए जाते हैं या ज़ुल्म ढाए जाते हैं, तब भी धीरज धरने के लिए नम्रता के साथ-साथ हिम्मत और विश्वास की ज़रूरत होती है।—1 पतरस 5:6.
7, 8. ऐसे कुछ तरीके क्या हैं जिनसे हम नम्रता पैदा कर सकते हैं?
7 एक इंसान घमंड पर कैसे काबू पा सकता है और “दीनता से” पेश आ सकता है, जिससे ज़ाहिर हो कि वह ‘दूसरों को अपने से अच्छा समझता’ है? (फिलिप्पियों 2:3) इसके लिए ज़रूरी है कि वह अपने बारे में यहोवा का नज़रिया रखे। सही नज़रिया क्या है, इस बारे में यीशु ने समझाते हुए कहा: “तुम भी, जब उन सब कामों को कर चुको जिस की आज्ञा तुम्हें दी गई थी, तो कहो, हम निकम्मे दास हैं; कि जो हमें करना चाहिए था वही किया है।” (लूका 17:10) याद रखिए कि हम चाहे कितने भी बड़े-बड़े काम कर लें, मगर यीशु ने जो किया था, उसके आगे हमारे काम कुछ भी नहीं हैं। लेकिन ऐसे महान काम करने के बावजूद यीशु नम्र बना रहा।
8 इसके अलावा, हम खुद के बारे में सही नज़रिया रखने के लिए यहोवा से मदद माँग सकते हैं। भजनहार की तरह हम यह प्रार्थना कर सकते हैं: “मुझे भली विवेक-शक्ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्वास किया है।” (भजन 119:66) यहोवा हमें अपने बारे में सही नज़रिया पैदा करने में मदद देगा और नम्र स्वभाव रखने के लिए हमें आशीषें देगा। (नीतिवचन 18:12) यीशु ने कहा: “जो कोई अपने आप को बड़ा बनाएगा, वह छोटा किया जाएगा: और जो कोई अपने आप को छोटा बनाएगा, वह बड़ा किया जाएगा।”—मत्ती 23:12.
सही-गलत के बारे में सही नज़रिया
9. यीशु ने सही-गलत को किस नज़र से देखा?
9 यीशु ने असिद्ध इंसानों के बीच 33 साल गुज़ारे थे, फिर भी वह “निष्पाप” बना रहा। (इब्रानियों 4:15) दरअसल, मसीहा के बारे में भजनहार ने एक भविष्यवाणी में यह कहा था: “तू ने धर्म से प्रीति और दुष्टता से बैर रखा है।” (भजन 45:7; इब्रानियों 1:9) इस मामले में भी मसीही, यीशु की मिसाल पर चलने की कोशिश करते हैं। वे न सिर्फ सही-गलत के बीच फर्क करना जानते हैं, बल्कि गलत कामों से नफरत और सही कामों से प्यार भी करते हैं। (आमोस 5:15) इसलिए उन्हें अपनी पैदाइशी पापी अभिलाषाओं से लड़ने में मदद मिलती है।—उत्पत्ति 8:21; रोमियों 7:21-25.
10. अगर हम पश्चाताप किए बगैर “बुराई” करते रहें, तो हम कैसा रवैया दिखा रहे होंगे?
10 यीशु ने नीकुदेमुस नाम के फरीसी से कहा: “जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए। परन्तु जो सच्चाई पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।” (यूहन्ना 3:20, 21) इस बात पर गौर करें: यूहन्ना ने यीशु की पहचान कराते हुए कहा कि वह ‘सच्ची ज्योति है जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है।’ (यूहन्ना 1:9, 10) मगर यीशु ने कहा कि अगर हम “बुराई” यानी परमेश्वर को नाराज़ करनेवाले गलत काम करेंगे, तो हम ज्योति से नफरत कर रहे होंगे। क्या आप यीशु और उसके स्तरों से नफरत करने की सोच भी सकते हैं? जो लोग पाप करने की आदत बना लेते हैं और पश्चाताप नहीं करते, वे ऐसा ही करते हैं। शायद उन्हें एहसास न हो कि वे यीशु और उसके स्तरों से नफरत कर रहे हैं, मगर यीशु समझता है कि वे ऐसा ही कर रहे हैं।
सही-गलत के बारे में यीशु का नज़रिया कैसे पैदा करें
11. सही-गलत के बारे में यीशु का नज़रिया पैदा करने के लिए क्या ज़रूरी है?
11 हमें यह साफ-साफ समझना चाहिए कि यहोवा की नज़रों में क्या सही है और क्या गलत। ऐसी समझ हम सिर्फ परमेश्वर के वचन, बाइबल का अध्ययन करने से ही पा सकते हैं। जब हम अध्ययन करते हैं, तो उस दौरान हमें भजनहार की तरह यह प्रार्थना करनी चाहिए: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे।” (भजन 25:4) मगर याद रखिए कि शैतान धोखेबाज़ है। (2 कुरिन्थियों 11:14) वह गलत बातों को इस तरह पेश कर सकता है कि अगर एक मसीही सावधान न रहे तो उसे उन बातों में कोई बुराई नज़र नहीं आएगी। इसलिए हमें सीखी हुई बातों पर गहराई से मनन करना चाहिए और “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की सलाह को सख्ती से मानना चाहिए। (मत्ती 24:45-47) अध्ययन, प्रार्थना और सीखी हुई बातों पर मनन करने से हमें आध्यात्मिक तरक्की करते हुए प्रौढ़ बनने में मदद मिलेगी, और हम ऐसे लोग बनेंगे जिनकी ‘ज्ञानेन्द्रिय अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्की हो गयी हैं।’ (इब्रानियों 5:14) फिर हम बुरी बातों से नफरत और सही कामों से प्यार करने लगेंगे।
12. बाइबल की कौन-सी सलाह, अधर्म के कामों से परे रहने में हमारी मदद करेगी?
12 अगर हम बुरी बातों से नफरत करते हैं, तो हम कभी-भी दिल में उनके लिए चाहत नहीं पैदा होने देंगे। यीशु की मौत के कई साल बाद, प्रेरित यूहन्ना ने लिखा: “तुम न तो संसार से और न संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में पिता का प्रेम नहीं है। क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात् शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है।”—1 यूहन्ना 2:15, 16.
13, 14. (क) संसार की चीज़ों से प्यार करना मसीहियों के लिए खतरनाक क्यों है? (ख) हम क्या कर सकते हैं ताकि हमारे दिल में संसार की बातों के लिए प्यार न बढ़े?
13 कुछ लोग शायद सोचें कि संसार की हर चीज़ तो बुरी नहीं है। हालाँकि यह बात सच है, मगर यह संसार और इसकी लुभावनी चीज़ें यहोवा की सेवा से हमारा ध्यान बड़ी आसानी से भटका सकती हैं। संसार में एक भी चीज़ ऐसी नहीं है जो हमें यहोवा के करीब लाने के लिए तैयार की गयी हो। इसलिए अगर हम संसार की चीज़ों से प्रेम करने लगें, यहाँ तक कि ऐसी चीज़ों से जो अपने आप में बुरी नहीं हैं, तो आगे चलकर हम खतरे में पड़ जाएँगे। (1 तीमुथियुस 6:9, 10) देखा जाए तो, दुनिया की ज़्यादातर बातें बुरी हैं और हमें भ्रष्ट कर सकती हैं। अगर हम ऐसी फिल्में या टी.वी. कार्यक्रम देखते हैं जिनमें हिंसा, धन-दौलत के मोह या बदचलनी को बढ़ावा दिया जाता है, तो कुछ समय बाद हमें इन बातों में कोई बुराई नज़र नहीं आएगी और बाद में हम उनकी तरफ लुभाए जाएँगे। अगर हम ऐसे लोगों से मेल-जोल रखते हैं जिनकी ज़िंदगी का खास मकसद अपने रहन-सहन का स्तर ऊँचा करना या बिज़नेस में तरक्की के मौके तलाशना है, तो यही बातें हमारी ज़िंदगी का भी मकसद बन जाएँगी।—मत्ती 6:24; 1 कुरिन्थियों 15:33.
14 दूसरी तरफ, अगर हम यहोवा के वचन से मगन होते हैं तो हम ‘शरीर की अभिलाषा, आंखों की अभिलाषा और जीविका के घमण्ड’ की तरफ आकर्षित नहीं होंगे। साथ ही, अगर हम ऐसे लोगों के साथ संगति करें जो राज्य के कामों को ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं, तो हम उन्हीं की तरह बनेंगे। वे जिन बातों से प्यार करते हैं, उनसे हम प्यार करेंगे और जिनसे वे दूर रहते हैं, उनसे हम दूर रहेंगे।—भजन 15:4; नीतिवचन 13:20.
15. यीशु की तरह, धार्मिकता से प्रेम और अधर्म से बैर रखने से हम कैसे मज़बूत होंगे?
15 अधर्म से बैर और धार्मिकता से प्रेम करने की वजह से, यीशु को अपनी नज़र उस “आनन्द” पर लगाए रखने में मदद मिली “जो उसके आगे धरा था।” (इब्रानियों 12:2) हम भी ऐसा ही कर सकते हैं। हम जानते हैं कि “संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं।” यह संसार मौज-मस्ती करने के जो भी मौके पेश करता है, वे सब पल-भर के हैं। लेकिन “जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा।” (1 यूहन्ना 2:17) यीशु ने परमेश्वर की इच्छा पूरी की थी, जिस वजह से इंसानों के लिए हमेशा की ज़िंदगी पाना मुमकिन हुआ। (1 यूहन्ना 5:13) आइए हम सब यीशु की मिसाल पर चलें और उसने जो खराई दिखायी उससे फायदा पाएँ।
ज़ुल्म सहना
16. यीशु ने अपने चेलों से यह ज़ोर देकर क्यों कहा कि वे एक-दूसरे से प्यार करें?
16 यीशु ने एक और मामले का ज़िक्र किया जिसमें चेलों को उसकी मिसाल पर चलना था। उसने कहा: “मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।” (यूहन्ना 15:12, 13, 17) अपने भाइयों से प्रेम रखने के लिए मसीहियों के पास कई कारण हैं। मगर जब यीशु ने ऊपर बतायी बात कही, तब उसके मन में सबसे बड़ा कारण यह था कि उन्हें दुनिया की नफरत का सामना करना पड़ेगा। उसने कहा: “यदि संसार तुम से बैर रखता है, तो तुम जानते हो, कि उस ने तुम से पहिले मुझ से भी बैर रखा। . . . दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं होता, उसको याद रखो: यदि उन्हों ने मुझे सताया, तो तुम्हें भी सताएंगे; यदि उन्हों ने मेरी बात मानी, तो तुम्हारी भी मानेंगे।” (यूहन्ना 15:18, 20) जी हाँ, ज़ुल्म सहने के मामले में भी मसीही, यीशु की मिसाल पर चलते हैं। उन्हें आपस में प्यार का एक अटूट बंधन कायम करना चाहिए ताकि वे हिम्मत के साथ संसार की नफरत झेल सकें।
17. संसार, सच्चे मसीहियों से क्यों नफरत करता है?
17 यह संसार मसीहियों से क्यों नफरत करता है? क्योंकि यीशु की तरह, वे भी “संसार के नहीं” हैं। (यूहन्ना 17:14, 16) वे दुनिया के फौजी और राजनीतिक मामलों में निष्पक्ष रहते हैं और बाइबल के उसूलों को मानते हैं। मसलन, वे जीवन की पवित्रता की कदर करते और ऊँचे नैतिक आदर्शों के मुताबिक जीते हैं। (प्रेरितों 15:28, 29; 1 कुरिन्थियों 6:9-11) वे आध्यात्मिक लक्ष्यों का पीछा करते हैं, न कि नाम, शोहरत और दौलत जैसी चीज़ों का। वे संसार में जीते तो हैं, मगर जैसे पौलुस ने लिखा, वे ‘संसार ही के नहीं हो’ जाते। (1 कुरिन्थियों 7:31) यह सच है कि संसार के कुछ लोगों ने यहोवा के साक्षियों के ऊँचे आदर्शों की तारीफ की है। मगर साक्षी बाकी लोगों की तारीफ या मंज़ूरी पाने के लिए अपने इन आदर्शों से मुकरते नहीं। इसी वजह से, संसार के ज़्यादातर लोग उन्हें समझ नहीं पाते और कई तो उनसे नफरत भी करते हैं।
18, 19. यीशु के नमूने पर चलते हुए मसीही, विरोध और ज़ुल्म का सामना कैसे करते हैं?
18 जब यीशु को गिरफ्तार किया गया और मार डाला गया, तो उसके प्रेरितों ने देखा कि संसार उससे कितनी नफरत करता है। उन्होंने यह भी देखा कि यीशु ने कैसे उस नफरत का सामना किया। गतसमनी के बाग में जब यीशु का विरोध करनेवाले धर्मगुरू उसे गिरफ्तार करने आए, तो पतरस ने तलवार के सहारे यीशु को बचाने की कोशिश की। मगर यीशु ने उससे कहा: “अपनी तलवार काठी में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे।” (मत्ती 26:52; लूका 22:50, 51) पुराने ज़माने में, इस्राएली तलवार के दम पर दुश्मनों से लड़ते थे। मगर अब हालात बदल चुके थे। परमेश्वर का राज्य “इस जगत का नहीं” है, इसलिए इस राज्य ने किसी एक देश पर हुकूमत नहीं किया जिसकी सीमा की रक्षा करना मसीहियों का फर्ज़ बनता। (यूहन्ना 18:36) जल्द ही पतरस एक आध्यात्मिक जाति का हिस्सा बनता, जिसके सदस्यों को स्वर्ग में नागरिकता हासिल होती। (गलतियों 6:16; फिलिप्पियों 3:20, 21) इसलिए अब यीशु के चेले भी नफरत और ज़ुल्म का सामना ठीक उसी तरीके से करते जैसे यीशु ने किया था—निडरता से मगर शांति के साथ। वे यहोवा पर पूरा भरोसा रखकर अंजाम उसके हाथ में छोड़ देते और धीरज धरने के लिए उससे मदद माँगते।—लूका 22:42.
19 सालों बाद, पतरस ने लिखा: ‘मसीह तुम्हारे लिये दुख उठाकर, तुम्हें एक आदर्श दे गया है, कि तुम भी उसके चिन्ह पर चलो। वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था।’ (1 पतरस 2:21-23) ठीक जैसे यीशु ने चेतावनी दी थी, मसीही बरसों से भयानक अत्याचार सहते आए हैं। पहली सदी में और हमारे ज़माने में भी, मसीहियों ने यीशु की मिसाल पर चलकर वफादारी से धीरज धरने में बढ़िया रिकॉर्ड कायम किया है। इस तरह, उन्होंने ज़ाहिर किया है कि वे शांति से खराई पर चलनेवाले हैं। (प्रकाशितवाक्य 2:9, 10) जब हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, तो आइए हममें से हरेक जन शांति से अपनी खराई बनाए रखे।—2 तीमुथियुस 3:12.
“प्रभु यीशु मसीह को पहिन लो”
20-22. मसीही किस तरह ‘प्रभु यीशु मसीह को पहिनते’ हैं?
20 पौलुस ने रोम की कलीसिया को लिखा: “प्रभु यीशु मसीह को पहिन लो, और शरीर की अभिलाषों को पूरा करने का उपाय न करो।” (रोमियों 13:14) मसीही, यीशु को पहन लेते हैं, जिस तरह वे एक पोशाक पहनते हैं। इसका मतलब है कि वे उसके जैसे गुण दिखाने और काम करने की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं। वे उस हद तक अपने स्वामी के जैसे गुण दिखाने की कोशिश करते हैं, जितना कि असिद्ध इंसानों के लिए मुमकिन है।—1 थिस्सलुनीकियों 1:6.
21 हम ‘प्रभु यीशु मसीह को पहिनने’ में कामयाब हो सकते हैं, बशर्ते हम उसकी ज़िंदगी से वाकिफ हों और उसके जैसे जीने की कोशिश करें। यीशु ने जिस तरह नम्रता दिखायी, धार्मिकता से प्रेम और अधर्म से बैर रखा, अपने भाइयों से प्यार किया, संसार से अलग रहा और धीरज के साथ ज़ुल्म सहा, हम भी वैसा ही करते हैं। हम “शरीर के अभिलाषों को पूरा करने का उपाय” नहीं करते, यानी दुनियावी लक्ष्य हासिल करने या शरीर की इच्छाएँ पूरी करने में ज़िंदगी नहीं लगा देते। इसके बजाय, कोई भी फैसला करते वक्त या समस्या से निपटते वक्त हम खुद से पूछते हैं: ‘अगर यीशु मेरी जगह होता तो क्या करता? वह मुझसे क्या करने की उम्मीद करता है?’
22 आखिरी बात यह है कि हम मसीही “सुसमाचार प्रचार” करने में लगे रहकर यीशु की मिसाल पर चलते हैं। (मत्ती 4:23; 1 कुरिन्थियों 15:58) इस मामले में हम यीशु के दिखाए नमूने पर कैसे चलते हैं, इस बारे में अगले लेख में चर्चा की जाएगी।
क्या आप समझा सकते हैं?
• एक मसीही के लिए नम्र होना क्यों बेहद ज़रूरी है?
• हम सही-गलत के बारे में सही नज़रिया कैसे पैदा कर सकते हैं?
• मसीही, विरोध और ज़ुल्म का सामना करने में यीशु की मिसाल पर कैसे चलते हैं?
• ‘प्रभु यीशु मसीह को पहिनना’ कैसे मुमकिन है?
[पेज 7 पर तसवीर]
यीशु ने नम्रता दिखाने में बढ़िया नमूना पेश किया
[पेज 8 पर तसवीर]
एक मसीही को ज़िंदगी के हर पहलू में, यहाँ तक कि प्रचार काम में भी नम्रता दिखाने की ज़रूरत है
[पेज 9 पर तसवीर]
शैतान गलत किस्म के मनोरंजन को ऐसे पेश कर सकता है कि एक मसीही को उसे देखने में कोई बुराई नज़र न आए
[पेज 10 पर तसवीर]
भाइयों का प्यार हमें विरोध का सामना करने के लिए मज़बूत करेगा