अध्ययन लेख 27
खुद को जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर मत समझिए
‘मैं तुममें से हरेक से जो वहाँ है, यह कहता हूँ कि कोई भी अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर न समझे। इसके बजाय सही सोच बनाए रखे।’—रोमि. 12:3.
गीत 130 माफ करना सीखें
लेख की एक झलकa
1. फिलिप्पियों 2:3 के मुताबिक नम्र होने से दूसरों के साथ हमारा कैसा रिश्ता होगा?
यहोवा जानता है कि हमारे लिए अच्छा क्या है, इसलिए हम नम्र होकर उसकी आज्ञाएँ मानते हैं। (इफि. 4:22-24) नम्र होने से हम यहोवा की मरज़ी को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देंगे और दूसरों को खुद से बेहतर समझेंगे। ऐसा करने से यहोवा और मंडली के भाई-बहनों के साथ हमारा अच्छा रिश्ता होगा।—फिलिप्पियों 2:3 पढ़िए।
2. (क) पौलुस ने रोम के मसीहियों से जो कहा, उसका क्या मतलब था? (ख) इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे?
2 वहीं दूसरी तरफ दुनिया के लोग घमंडी और स्वार्थी हैं।b अगर हम सावधान न रहें, तो शायद हम भी उनकी तरह बन जाएँ। पहली सदी के कुछ मसीहियों के साथ ऐसा ही हुआ था। इस वजह से प्रेषित पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखा, ‘मैं तुममें से हरेक से जो वहाँ है, यह कहता हूँ कि कोई भी अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर न समझे। इसके बजाय सही सोच बनाए रखे।’ (रोमि. 12:3) पौलुस के कहने का मतलब था कि हममें कुछ हद तक आत्म-सम्मान होना चाहिए। लेकिन हमें खुद को बहुत बड़ा नहीं समझना चाहिए। नम्र होने से हम खुद के बारे में सही सोच रख पाएँगे। इस लेख में हम तीन मामलों पर गौर करेंगे जिनमें हमें नम्र होना है। ये हैं (1) शादीशुदा ज़िंदगी, (2) यहोवा के संगठन से मिली ज़िम्मेदारियाँ और (3) सोशल मीडिया का इस्तेमाल।
अपने साथी से नम्रता से पेश आइए
3. (क) शादीशुदा ज़िंदगी में मुश्किलें क्यों आती हैं? (ख) ऐसे में कुछ पति-पत्नी क्या करते हैं?
3 यहोवा चाहता है कि पति-पत्नी खुश रहें। लेकिन अपरिपूर्ण होने की वजह से उनमें कभी-कभी अनबन हो सकती है। पौलुस ने भी लिखा कि जो शादी करते हैं, उन्हें “दुख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी।” (1 कुरिं. 7:28) कुछ पति-पत्नी अकसर लड़ते रहते हैं और सोचते हैं, ‘काश! हमने एक-दूसरे से शादी न की होती।’ दुनिया के लोगों की तरह शायद वे सोचें कि तलाक लेना ही अच्छा होगा, तभी वे खुश रह पाएँगे।
4. समस्याएँ आने पर हमें क्या नहीं करना चाहिए?
4 अगर हमारी शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ आ रही हैं, तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम यह रिश्ता निभाने में नाकाम हो गए हैं, न ही हमें तलाक लेने के बारे में सोचना चाहिए। बाइबल बताती है कि तलाक लेने का सिर्फ एक ही आधार है, वह है नाजायज़ यौन-संबंध। (मत्ती 5:32) तो फिर जब समस्याएँ आती हैं, तो पति-पत्नी को सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए और यह नहीं कहना चाहिए, ‘उसे मेरी परवाह नहीं। वह मुझसे प्यार नहीं करता। शायद मैं किसी और के साथ ज़्यादा खुश रहूँगा।’ अगर हम ऐसा सोचते हैं तो हम सिर्फ अपने बारे में सोच रहे होंगे। दुनिया के लोगों की सोच भी ऐसी ही है। वे कहते हैं, “अपने दिल की सुनो, तुम्हें जो सही लगता है वह करो। अगर तलाक ही समस्याओं का हल है, तो तलाक ले लो।” लेकिन यह सोच परमेश्वर की सोच से बिलकुल अलग है। बाइबल कहती है, “हर एक सिर्फ अपने भले की फिक्र में न रहे, बल्कि दूसरे के भले की भी फिक्र करे।” (फिलि. 2:4) यहोवा नहीं चाहता कि आप अपना रिश्ता तोड़ दें, बल्कि चाहता है कि आप इसे मज़बूत करने की कोशिश करें। (मत्ती 19:6) वह यह भी चाहता है कि आप सिर्फ अपने बारे में न सोचें बल्कि उसे खुश करने के बारे में भी सोचें।
5. इफिसियों 5:33 के मुताबिक पति-पत्नी को एक-दूसरे से कैसे पेश आना चाहिए?
5 अपना रिश्ता मज़बूत करने के लिए पति-पत्नी को एक-दूसरे से प्यार और आदर से पेश आना चाहिए। (इफिसियों 5:33 पढ़िए।) बाइबल सिखाती है कि लेने से ज़्यादा खुशी देने में है। (प्रेषि. 20:35) इसलिए पति-पत्नी को सोचना चाहिए कि वे एक-दूसरे के लिए क्या कर सकते हैं, न कि वे एक-दूसरे से क्या पा सकते हैं। ऐसा करने के लिए उन्हें नम्र बनना होगा। अगर पति-पत्नी नम्र होंगे, तो वे ‘अपने फायदे की नहीं बल्कि दूसरे के फायदे की सोचेंगे।’ (1 कुरिं. 10:24) यही नहीं, वे एक-दूसरे से प्यार और आदर से पेश आएँगे।
6. स्टीवन और स्टेफानी ने जो कहा, उससे आप क्या सीखते हैं?
6 देखा गया है कि नम्र होने से कई मसीही जोड़े ज़्यादा खुश रहने लगे हैं। स्टीवन का उदाहरण लीजिए। वह कहता है, “अगर हम एक टीम के जैसे हैं तो समस्याएँ आने पर हम मिलकर उनका सामना करेंगे। हम यह नहीं सोचेंगे कि ‘मेरे लिए क्या अच्छा है’ बल्कि यह कि ‘हमारे लिए क्या अच्छा है।’” उसकी पत्नी स्टेफानी भी ऐसा ही सोचती है। वह कहती है, “ऐसे इंसान के साथ कोई नहीं रहना चाहेगा जो हमेशा लड़ता-झगड़ता रहता है। जब हम किसी बात पर राज़ी नहीं होते तो हम समस्या की असली वजह जानने की कोशिश करते हैं। फिर हम इस बारे में प्रार्थना और खोजबीन करते हैं। हम खुलकर एक-दूसरे से बात करते हैं। झगड़ने के बजाय हम मिलकर मुश्किलों का हल ढूँढ़ते हैं।” जब पति-पत्नी खुद को दूसरे से बड़ा नहीं समझते और मिलकर काम करते हैं तो वे ज़्यादा खुश रहते हैं।
“नम्रता से” यहोवा की सेवा कीजिए
7. ज़िम्मेदारी मिलने पर एक भाई को क्या करना चाहिए?
7 यहोवा की सेवा करना हमारे लिए एक सम्मान की बात है। (भज. 27:4; 84:10) जब एक भाई बढ़-चढ़कर यहोवा की सेवा करने के लिए आगे आता है, तो यह बहुत अच्छी बात है। बाइबल बताती है, “अगर कोई आदमी निगरानी का काम करने की कोशिश में आगे बढ़ता है, तो वह एक बढ़िया काम करने की चाहत रखता है।” (1 तीमु. 3:1) लेकिन ज़िम्मेदारी मिलने पर उसे खुद को बहुत बड़ा नहीं समझ लेना चाहिए। (लूका 17:7-10) इसके बजाय उसे नम्र होकर दूसरों की सेवा करनी चाहिए।—2 कुरिं. 12:15.
8. दियुत्रिफेस, उज्जियाह और अबशालोम से हम क्या सबक सीखते हैं?
8 बाइबल में कुछ ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है जो खुद को बहुत बड़ा समझते थे। उनमें से एक था दियुत्रिफेस। वह मंडली में “सबसे बड़ा” बनना चाहता था, इसलिए वह अपनी मर्यादा में नहीं रहा। (3 यूह. 9) उज्जियाह भी घमंडी हो गया था। उसने वह काम करने की कोशिश की जो यहोवा ने सिर्फ याजकों को करने के लिए कहा था। (2 इति. 26:16-21) अबशालोम राजा बनना चाहता था। इसलिए उसने चालाकी से लोगों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश की। (2 शमू. 15:2-6) बाइबल के इन ब्यौरों से साफ पता चलता है कि यहोवा उन लोगों से खुश नहीं होता जो अपनी वाह-वाही चाहते हैं। (नीति. 25:27) घमंड करनेवालों और दूसरों की नज़रों में छाने की कोशिश करनेवालों को बुरे अंजाम भुगतने पड़ते हैं।—नीति. 16:18.
9. यीशु कैसे हमारे लिए एक बढ़िया मिसाल है?
9 यीशु इन घमंडी लोगों की तरह नहीं था। बाइबल बताती है कि “उसने परमेश्वर के स्वरूप में होते हुए भी, उस पद को हथियाने की यानी परमेश्वर की बराबरी करने की कभी नहीं सोची।” (फिलि. 2:6) हालाँकि यहोवा के बाद यीशु के पास सबसे ज़्यादा अधिकार है, फिर भी उसने खुद को बहुत बड़ा नहीं समझा। उसने अपने चेलों से भी कहा, “तुममें से जो अपने आपको बाकियों से छोटा समझकर चलता है, वही तुम सब में बड़ा है।” (लूका 9:48) पायनियर, सहायक सेवक, प्राचीन और सर्किट निगरान भी यीशु की तरह खुद को दूसरों से बड़ा नहीं समझते। वे नम्र रहकर यहोवा की सेवा करते हैं। ऐसे भाई-बहनों के साथ काम करना वाकई एक आशीष है। जब हम नम्र होंगे तो भाई-बहनों से और भी प्यार करेंगे। यीशु ने कहा था कि यही प्यार सच्चे मसीहियों की पहचान है।—यूह. 13:35.
10. अगर आपको लगे कि प्राचीन किसी समस्या को सही तरह नहीं निपटा रहे हैं, तो आपको कैसा रवैया रखना चाहिए?
10 हो सकता है कि मंडली में कुछ समस्याएँ उठी हैं और आपको लग रहा है कि प्राचीन इसे सही तरह नहीं निपटा रहे हैं। तब आप क्या करेंगे? शिकायत करने के बजाय नम्र रहिए और अगुवाई करनेवाले भाइयों के अधीन रहिए। (इब्रा. 13:17) खुद से पूछिए, ‘क्या यह समस्या वाकई इतनी बड़ी है कि इसे सुलझाया जाना चाहिए? क्या इसे सुलझाने का यह सही वक्त है? क्या इसे सुलझाना मेरा काम है? क्या मैं मंडली की एकता बनाए रखने की कोशिश कर रहा हूँ या खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश कर रहा हूँ?’
11. इफिसियों 4:2, 3 के मुताबिक नम्र होकर यहोवा की सेवा करने से क्या फायदे होते हैं?
11 हो सकता है, आपमें बहुत सारी काबिलीयतें हों। लेकिन यहोवा आपकी काबिलीयतों से ज़्यादा आपकी नम्रता देखकर खुश होता है। उसी तरह, यहोवा के लिए मंडली की एकता ज़्यादा मायने रखती है न कि यह कि आप अपने काम में कितने कुशल हैं। इसलिए नम्र होकर यहोवा की सेवा कीजिए। नम्र होने से आप भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करेंगे और इससे मंडली की एकता बनी रहेगी। (इफिसियों 4:2, 3 पढ़िए।) हो सके तो ज़्यादा-से-ज़्यादा प्रचार कीजिए। दूसरों के लिए भले काम कीजिए। मेहमान-नवाज़ी कीजिए, उनकी भी जिनके पास मंडली में कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। (मत्ती 6:1-4; लूका 14:12-14) जब आप नम्र होंगे और भाई-बहनों के साथ मिलकर काम करेंगे, तो वे देख पाएँगे कि आपमें न सिर्फ काबिलीयतें हैं बल्कि आप एक नम्र इंसान भी हैं।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते वक्त नम्र रहिए
12. दोस्त बनाने के बारे में बाइबल क्या कहती है? समझाइए।
12 यहोवा चाहता है कि हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ खुशियों के पल बिताएँ। (भज. 133:1) यीशु के भी दोस्त थे और उसने उनके साथ अच्छा वक्त बिताया। (यूह. 15:15) बाइबल बताती है कि अच्छे दोस्त हमारी बहुत मदद करते हैं। (नीति. 17:17; 18:24) वहीं दूसरी तरफ बाइबल में यह लिखा है कि अगर हम दूसरों से दूर-दूर रहें, तो यह हमारे लिए अच्छा नहीं है। (नीति. 18:1) कइयों को लगता है कि वे सोशल मीडिया के ज़रिए बहुत-से दोस्त बना सकते हैं जिससे उनका अकेलापन दूर हो जाएगा। लेकिन हमें सोच-समझकर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करना चाहिए।
13. सोशल मीडिया का इस्तेमाल करनेवाले कुछ लोग क्यों मायूस और निराश हो जाते हैं?
13 कुछ अध्ययन के मुताबिक जो लोग सोशल मीडिया पर दूसरों की लिखी बातें और तसवीरें देखते रहते हैं वे बहुत अकेला महसूस करते हैं और निराश हो जाते हैं। ऐसा क्यों होता है? इसकी एक वजह यह है कि लोग अकसर सोशल मीडिया पर अपनी अच्छी तसवीरें ही डालते हैं। इनमें यही नज़र आता है कि उन्होंने कितने मज़े किए, दोस्तों के साथ अच्छे पल बिताए और अलग-अलग जगह घूमने गए। इन तसवीरों से उनकी ज़िंदगी के सिर्फ कुछ खास पल ही दिखायी देते हैं। इन्हें देखकर एक व्यक्ति शायद सोचने लगे, ‘ये लोग तो कितने मज़े कर रहे हैं, लेकिन मेरी ज़िंदगी में क्या है? कुछ भी नहीं।’ एक 19 साल की बहन ने कहा, “जब मैं देखती थी कि लोग शनिवार-रविवार को कितने मज़े कर रहे हैं और मैं घर बैठी बोर हो रही हूँ, तो मुझे उनसे जलन होती थी।”
14. सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते वक्त हम 1 पतरस 3:8 में दी सलाह कैसे मान सकते हैं?
14 यह सच है कि सोशल मीडिया के कुछ फायदे भी हैं। इसके ज़रिए हम अपने परिवार और दोस्तों से जुड़े रहते हैं। मगर आपने गौर किया होगा कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर अपनी तसवीरें और वीडियो इसलिए डालते हैं या कोई बात इसलिए लिखते हैं कि लोगों का ध्यान उन पर जाए। वे मानो कह रहे हों, “मुझे देखो।” कुछ लोग तो अपनी और दूसरों की तसवीरों के बारे में चोट पहुँचानेवाली और अश्लील बातें लिखते हैं। लेकिन अगर हम नम्र होंगे और दूसरों की भावनाओं का खयाल रखेंगे, तो हम सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल नहीं करेंगे।—1 पतरस 3:8 पढ़िए।
15. सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते वक्त एक नम्र मसीही किन बातों का ध्यान रखता है?
15 अगर आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं तो खुद से पूछिए, ‘क्या मेरी लिखी बातों, तसवीरों और वीडियो से लोगों को ऐसा लगता है कि मैं डींगें मार रहा हूँ? क्या इन्हें देखकर वे जलने लगते हैं?’ ध्यान दीजिए बाइबल कहती है, “दुनिया में जो कुछ है यानी शरीर की ख्वाहिशें, आँखों की ख्वाहिशें और अपनी चीज़ों का दिखावा, वह पिता की तरफ से नहीं बल्कि दुनिया की तरफ से है।” (1 यूह. 2:16) “अपनी चीज़ों का दिखावा” इन शब्दों का एक बाइबल में इस तरह अनुवाद किया गया है, “खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश करना।” लेकिन मसीही खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश नहीं करते, न ही दूसरों की नज़रों में छाने की कोशिश करते हैं। वे बाइबल की यह सलाह मानते हैं, “हम अहंकारी न बनें, एक-दूसरे को होड़ लगाने के लिए न उकसाएँ और एक-दूसरे से ईर्ष्या न करें।” (गला. 5:26) अगर हम नम्र होंगे तो दुनिया के लोगों की तरह नहीं बनेंगे, जो घमंडी हैं और खुद को बड़ा दिखाने की कोशिश करते हैं।
‘सही सोच बनाए रखिए’
16. हमें क्यों घमंडी नहीं बनना चाहिए?
16 एक घमंडी इंसान “सही सोच” नहीं रखता। (रोमि. 12:3) वह किसी बात पर राज़ी नहीं होता और सिर्फ अपने बारे में सोचता है। वह अपनी सोच और अपने व्यवहार से खुद को और दूसरों को चोट पहुँचाता है। अगर वह अपनी सोच न बदले तो शैतान उसकी सोच भ्रष्ट कर सकता है। (2 कुरिं. 4:4; 11:3) वहीं दूसरी तरफ एक नम्र इंसान सही सोच रखता है। वह जानता है कि कई मामलों में दूसरे उससे बेहतर हैं। (फिलि. 2:3) वह यह भी जानता है कि “परमेश्वर घमंडियों का विरोध करता है, मगर नम्र लोगों पर महा-कृपा करता है।” (1 पत. 5:5) हम नहीं चाहते कि यहोवा हमारा विरोध करे इसलिए हमें नम्र होना चाहिए और सही सोच रखनी चाहिए।
17. नम्र बने रहने के लिए हमें क्या करना होगा?
17 अब तक हमने सीखा कि हमें नम्र होना चाहिए। लेकिन नम्र रहने के लिए हमें बाइबल की यह सलाह माननी होगी, “पुरानी शख्सियत को उसकी आदतों समेत उतार फेंको और . . . नयी शख्सियत पहन लो।” इसके लिए हमें मेहनत करनी होगी। हमें अध्ययन करना होगा कि यीशु कैसा इंसान था और उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलना होगा। (कुलु. 3:9, 10; 1 पत. 2:21) ये सब करने से हमें कई फायदे होंगे। हमारा परिवार ज़्यादा खुश रहेगा। हम मंडली की एकता बनाए रख पाएँगे और सोशल मीडिया का गलत इस्तेमाल नहीं करेंगे। सबसे बढ़कर हम यहोवा का दिल खुश करेंगे।
गीत 117 भलाई का गुण
a आज हम ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जो घमंडी और स्वार्थी लोगों से भरी पड़ी है। इसलिए हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम उनकी तरह न बन जाएँ। इस लेख में तीन मामलों पर चर्चा की जाएगी जिनमें हमें खुद को बड़ा नहीं समझना चाहिए।
b इसका क्या मतलब है? एक घमंडी इंसान दूसरों से ज़्यादा खुद के बारे में सोचता है। वह बहुत स्वार्थी होता है। लेकिन एक नम्र इंसान न तो स्वार्थी होता है और न ही घमंडी। वह खुद को दूसरों से बड़ा नहीं समझता।
c तसवीर के बारे में: एक प्राचीन अधिवेशन में बढ़िया भाषण दे रहा है और दूसरी जगह पर भाइयों को कुछ निर्देश दे रहा है। वही भाई प्रचार के लिए भी हाज़िर है और राज-घर की सफाई खुशी-खुशी कर रहा है।