अंत के इस समय में शादी और माँ-बाप होने की ज़िम्मेदारी को किस नज़र से देखें
“समय थोड़ा ही रह गया है।”—1 कुरि. 7:29, नयी हिन्दी बाइबिल।
1. (क) आज किस तरह के बदलावों का सामना करना मुश्किल हो रहा है? (ख) परिवार के बदलते आदर्शों पर हमें क्यों ध्यान देना चाहिए?
परमेश्वर के वचन, बाइबल में भविष्यवाणी की गयी थी कि ‘अन्त के समय में’ हर जगह युद्ध, भूकंप, अकाल और महामारियाँ होंगी। (दानि. 8:17, 19; लूका 21:10, 11) बाइबल में यह भी बताया गया था कि इतिहास के इस नाज़ुक दौर में इंसानी समाज में बड़े-बड़े बदलाव होंगे। ये बदलाव परिवार में भी देखे जाएँगे और इनका सामना करना इन “अन्तिम दिनों” में बहुत मुश्किल हो सकता है। (2 तीमु. 3:1-4) हमें इन बदलावों पर क्यों ध्यान देना चाहिए? क्योंकि ये ज़बरदस्त बदलाव बड़े पैमाने पर हो रहे हैं। और इनका असर हम मसीहियों पर भी हो सकता है कि हम शादी और माँ-बाप होने की ज़िम्मेदारी को किस नज़र से देखते हैं। वह कैसे?
2. शादी और तलाक के बारे में दुनिया के लोगों का क्या नज़रिया है?
2 आजकल तलाक लेना आसान हो गया है और जहाँ देखो वहाँ लोग धड़ल्ले से तलाक ले रहे हैं। बहुत-से देशों में तलाक की दर दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। मगर हमें यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि शादी और तलाक के बारे में यहोवा परमेश्वर का नज़रिया, दुनिया के लोगों से बिलकुल अलग है। तो फिर, यहोवा का क्या नज़रिया है?
3. यहोवा और यीशु मसीह की नज़रों में शादी कैसा बंधन है?
3 यहोवा, शादीशुदा जोड़ों से उम्मीद करता है कि वे शादी के वक्त ली गयी अपनी शपथ को निभाएँ। जब यहोवा ने पहले स्त्री-पुरुष को शादी के बंधन में बाँधा, तब उसने कहा कि एक “पुरुष . . . अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे।” आगे चलकर यीशु मसीह ने इस बात को दोहराते हुए यह भी कहा, “इसलिये जिसे परमेश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग न करे।” फिर उसने आगे कहा, “जो कोई व्यभिचार को छोड़ और किसी कारण से, अपनी पत्नी को त्यागकर, दूसरी से ब्याह करे, वह व्यभिचार करता है।” (उत्प. 2:24; मत्ती 19:3-6, 9) इससे साफ पता चलता है कि यहोवा और यीशु की नज़रों में शादी जीवन-भर का बंधन है, जो तभी टूटता है जब एक साथी की मौत हो जाती है। (1 कुरि. 7:39) शादी एक पवित्र बंधन है, इसलिए तलाक को हलकी बात नहीं समझा जाना चाहिए। दरअसल परमेश्वर का वचन बताता है कि यहोवा तलाक से घृणा करता है, खासकर जब ये बिना किसी बाइबल आधार के लिए जाते हैं।a—मलाकी 2:13-16; 3:6 पढ़िए।
शादी की ज़िम्मेदारी कोई खेल नहीं
4. कुछ जवान मसीहियों को क्यों इस बात पर पछतावा हुआ है कि उन्होंने शादी करने में जल्दबाज़ी की?
4 आज की यह दुष्ट दुनिया सेक्स के पीछे पागल है। जहाँ देखो, वहाँ गंदी और बेहूदा तसवीरों की भरमार है। इन तसवीरों का हम पर और खासकर कलीसिया के हमारे नौजवानों पर बुरा असर होता है, क्योंकि ना चाहते हुए भी ये उनमें लैंगिक इच्छाएँ जगाती हैं। मसीही जवानों को इस बुरे असर का कैसे सामना करना चाहिए? कुछ जवानों ने इसका सामना करने के लिए कम उम्र में शादी की है। उन्हें लगा कि इस तरह वे बदचलनी में पड़ने से बच सकते हैं। लेकिन बहुत जल्द उन्हें अपने इस फैसले पर पछतावा हुआ। वह क्यों? क्योंकि वक्त के गुज़रते उन्हें एहसास हुआ कि करीब-करीब हर मामले में उनकी और उनके साथी की राय बिलकुल नहीं मिलती। वाकई, ऐसे जोड़ों के लिए यह क्या ही बड़ी चुनौती है!
5. शादी की शपथ पूरी करने में क्या बात एक जोड़े की मदद कर सकती है? (फुटनोट भी देखिए।)
5 अगर आपका साथी, फिर चाहे वह एक मसीही क्यों न हो, वैसा नहीं निकलता जैसा आपने उम्मीद की थी, तो यह सच है कि आपको उसका साथ निभाना मुश्किल लग सकता है। (1 कुरि. 7:28) फिर भी, सच्चे मसीही जानते हैं कि जब शादीशुदा ज़िंदगी में मुश्किलें आती हैं, तो बिना किसी बाइबल आधार के तलाक लेना गलत होगा। इसलिए जो जोड़े शादी की शपथ पूरी करने और अपने रिश्ते को बरकरार रखने का जतन करते हैं, वे कलीसिया के बाकी भाई-बहनों से आदर, प्यार और मदद पाने के हकदार हैं।b
6. शादी के बारे में जवान मसीहियों को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
6 क्या आप एक जवान हैं और अभी तक कुँवारे हैं? अगर हाँ, तो शादी के बारे में आपको किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अच्छा होगा अगर आप जल्दबाज़ी करने के बजाय, उस वक्त तक इंतज़ार करें जब आप शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार हो जाएँ। ऐसा करने से आप कई दुःखों से बच सकते हैं। बेशक बाइबल यह नहीं बताती कि एक व्यक्ति को किस उम्र में शादी करनी चाहिए।c लेकिन यह इतना ज़रूर बताती है कि आपको जवानी के उस दौर के खत्म होने तक इंतज़ार करना चाहिए, जिस दौर में लैंगिक इच्छाएँ बहुत प्रबल होती हैं। (1 कुरि. 7:36) ऐसा करना क्यों ज़रूरी है? क्योंकि ये इच्छाएँ आपको इस कदर अंधा कर सकती हैं, कि आप गलत फैसला कर बैठें और आपको बाद में दुःख के आँसू रोने पड़े। याद रखिए, यहोवा ने शादी के बारे में बाइबल में जो बुद्धि-भरी सलाह दी है, वह आपके फायदे और खुशी के लिए है।—यशायाह 48:17, 18, पढ़िए।
माँ-बाप होने की ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभाइए
7. कुछ जवान जोड़े खुद को किन हालात में पाते हैं और इससे उनकी शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव क्यों आता है?
7 कुछ जवान जोड़े एक-दूसरे को ठीक तरह से जान भी नहीं पाते कि उन्हें पता चलता है कि उनके घर एक नन्हा मेहमान आनेवाला है। इस नन्हे मेहमान की चौबीसों घंटे देखभाल करने की ज़रूरत होती है। और जब एक माँ अपना पूरा ध्यान अपने नन्हे-मुन्ने पर देती है, तो इससे पति को जलन होने लगती है। इसके अलावा, बच्चे की देखभाल करने में जब पति-पत्नी कई-कई रातें आँखों में काटते हैं, तो उनमें तनाव पैदा होता है। जवान जोड़ों को लगने लगता है कि उनके पास घूमने-फिरने या कोई भी काम करने की जो आज़ादी थी, वह अब नहीं रही। ऐसे में, उन्हें इस बदलाव के बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए?
8. माँ-बाप बनने की ज़िम्मेदारी को किस नज़र से देखा जाना चाहिए और क्यों?
8 शादी की तरह माँ-बाप बनने की ज़िम्मेदारी को भी परमेश्वर से मिला एक सम्मान समझा जाना चाहिए। नन्हे मेहमान के आने पर एक मसीही जोड़े को अपनी ज़िंदगी में चाहे जो भी फेरबदल करना पड़े, उन्हें इसे सोच-समझकर करना चाहिए। माँ-बाप को बच्चे पैदा करने की शक्ति यहोवा से मिली है, इसलिए उन्हें अपने नन्हे-मुन्ने को ‘यहोवा की दी हुई विरासत’ समझना चाहिए। (भज. 127:3, NW) एक मसीही जोड़ा ‘प्रभु में माता-पिता’ होने के नाते अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने की पूरी कोशिश करेगा।—इफि. 6:1.
9. (क) बच्चे को पालने-पोसने में माँ-बाप को क्या करना होता है? (ख) एक पति क्या कर सकता है, जिससे उसकी पत्नी आध्यात्मिक मायने में मज़बूत बनी रहे?
9 बच्चों को पालने-पोसने में माँ-बाप को कई सालों तक बहुत त्याग करना होता है। उन्हें अपना ढेर सारा वक्त और ताकत लगानी होती है। एक मसीही पति को यह समझना चाहिए कि बच्चे के आने से उसकी पत्नी कई सालों तक सभाओं में पूरा-पूरा ध्यान नहीं दे पाएगी। साथ ही, उसे निजी बाइबल अध्ययन और मनन करने के बहुत कम मौके मिलेंगे। इस वजह से वह आध्यात्मिक मायने में कमज़ोर पड़ सकती है। माँ-बाप होने की ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभाने के लिए ज़रूरी है कि पति बच्चे की देखरेख करने में पत्नी का हाथ बँटाए। हो सकता है, सभा से आने के बाद वह अपनी पत्नी के साथ उन मुद्दों पर चर्चा करे, जिन्हें वह बच्चे की वजह से सुन नहीं पायी थी। या यह भी हो सकता है कि पति घर पर बच्चे की देखभाल करे, ताकि उसकी पत्नी को प्रचार में पूरा-पूरा हिस्सा लेने का मौका मिले।—फिलिप्पियों 2:3, 4 पढ़िए।
10, 11. (क) किस तरह बच्चों के ‘मन को यहोवा की सोच के मुताबिक ढाला’ जा सकता है? (ख) बहुत-से मसीही माता-पिताओं की सराहना क्यों की जानी चाहिए?
10 माँ-बाप की ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभाने में सिर्फ यह शामिल नहीं कि बच्चों की सेहत और उनके खाने-पहनने और रहने जैसी ज़रूरतों का खयाल रखा जाए। उन्हें छुटपन से नैतिक मूल्य सिखाना भी बेहद ज़रूरी है क्योंकि आज हम जिन अंतिम दिनों में जी रहे हैं, वे बहुत ही खतरनाक हैं। माता-पिताओं को चाहिए कि वे अपने बच्चों को “प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए [या, ‘मन को ढालते हुए,’ NW]” उनका पालन-पोषण करें। (इफि. 6:4) ‘मन को ढालने’ का मतलब है, बच्चे के मन में यहोवा के सोच-विचार बिठाना। और ऐसा उसके छुटपन से लेकर लड़कपन के मुश्किल सालों तक किया जाना चाहिए।—2 तीमु. 3:14, 15.
11 यीशु ने अपने चेलों से कहा था कि वे ‘सब जातियों के लोगों को चेला बनाएँ।’ (मत्ती 28:19, 20) बेशक उसके कहने का यह भी मतलब था कि माँ-बाप अपने बच्चों को उसका चेला बनाएँ। ऐसा करना हरगिज़ आसान नहीं क्योंकि यह दुनिया जवानों पर ज़बरदस्त दबाव डालती है। इसके बावजूद, बहुत-से माता-पिताओं ने अपने बच्चों को बढ़िया तालीम दी है, जिसकी बदौलत वे यहोवा के सेवक बने हैं। कलीसिया के सभी भाई-बहनों को इन माँ-बाप की दिल से सराहना करनी चाहिए। वाकई, इन माता-पिताओं ने अपने विश्वास से और अपनी ज़िम्मेदारी निभाकर संसार से आनेवाले दबावों पर “जय प्राप्त” की है।—1 यूह. 5:4.
कुँवारे और बेऔलाद रहने के पीछे एक बढ़िया मकसद
12. कुछ मसीही क्यों कुछ साल तक अविवाहित रहने का फैसला करते हैं?
12 “समय थोड़ा ही रह गया है” (नयी हिन्दी बाइबिल) और “संसार की रीति और व्यवहार बदलते” जा रहे हैं। इसलिए परमेश्वर का वचन हमें अविवाहित रहने के फायदों पर सोचने के लिए उकसाता है। (1 कुरि. 7:29-31) इस वजह से कुछ मसीही ज़िंदगी-भर कुँवारे रहते हैं या कम-से-कम कुछ साल तक अविवाहित रहने का फैसला करते हैं। ये जवान वाकई तारीफ के काबिल हैं, क्योंकि वे अपने कुँवारेपन की आज़ादी का इस्तेमाल अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए नहीं करते। कई जवान इसलिए कुँवारे रहते हैं ताकि वे “एक चित्त” होकर यहोवा की सेवा कर सकें। (1 कुरिन्थियों 7:32-35 पढ़िए।) जैसे, कुछ अविवाहित मसीही बेथेल में या पायनियर के नाते सेवा करते हैं। और कई जवान ‘कलीसिया सेवक प्रशिक्षण स्कूल’ से तालीम हासिल करते हैं, ताकि वे यहोवा के संगठन के और भी काम आ सकें। दरअसल जिन मसीहियों ने कुछ समय कुँवारे रहकर पूरे समय की सेवा की थी, उन्होंने पाया कि इन सालों के दौरान जो अहम सबक उन्होंने सीखे थे, वे शादी के बाद भी उनके काम आ रहे हैं।
13. कुछ मसीही जोड़े बेऔलाद रहने का फैसला क्यों करते हैं?
13 दुनिया की कुछ जगहों में परिवारों में एक और बदलाव देखा जा रहा है। कौन-सा बदलाव? कई शादीशुदा जोड़े फैसला ले रहे हैं कि उन्हें बच्चा नहीं चाहिए। कुछ जोड़े आर्थिक वजहों से ऐसा फैसला करते हैं, जबकि कुछ अपना करियर बनाना चाहते हैं और उन्हें लगता है कि बच्चे के आने से उनके सपने अधूरे रह जाएँगे। कई मसीही जोड़े भी बेऔलाद रहने का फैसला करते हैं। लेकिन अकसर इसकी वजह यह होती है कि वे यहोवा की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा करना चाहते हैं। मगर इसका यह मतलब नहीं कि उनकी शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल नहीं होती। दरअसल उन्होंने राज्य के कामों को पहली जगह देने के लिए शादी से जुड़ी कुछ आशीषों को त्यागा है। (1 कुरि. 7:3-5) इनमें से कुछ जोड़े यहोवा और अपने भाइयों की सेवा करने में सर्किट और ज़िला का दौरा करते हैं, या फिर बेथेल में सेवा करते हैं। और दूसरे, पायनियर या मिशनरी सेवा में हैं। यहोवा ऐसे मसीहियों के कामों और उनके प्यार को कभी नहीं भूलेगा, जो वे उसके नाम के लिए दिखाते हैं।—इब्रा. 6:10.
“शारीरिक दुख”
14, 15. मसीही माता-पिताओं को किस तरह के “शारीरिक दुख” झेलने पड़ सकते हैं?
14 प्रेरित पौलुस ने शादीशुदा मसीहियों से कहा था कि उन्हें “शारीरिक दुख” होंगे। (1 कुरि. 7:28) इन दुःखों में सेहत से जुड़ी समस्याएँ शामिल हो सकती हैं, जो पति-पत्नी, उनके बच्चे या उनके बूढ़े माँ-बाप को होती हैं। इनमें वह मुश्किलें और दर्द भी शामिल हो सकता है, जो माता-पिता को अपने बच्चे की परवरिश करते वक्त झेलने होते हैं। जैसे कि लेख के शुरू में बताया गया था, बाइबल भविष्यवाणी करती है कि “अन्तिम दिनों में कठिन समय” आएँगे। और इसकी एक निशानी यह होगी कि बच्चे “माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले” होंगे।—2 तीमु. 3:1-3.
15 मसीही माँ-बाप के लिए बच्चों की परवरिश करना एक बड़ी चुनौती है। आज के इन ‘कठिन समयों’ का हम पर बुरा असर हो सकता है। इसलिए मसीही माँ-बाप को चाहिए कि वे “इस संसार” के खतरनाक असर से अपने बच्चों को बचाए रखने के लिए लगातार संघर्ष करें। (इफि. 2:2, 3) लेकिन इस लड़ाई में माँ-बाप को कभी-कभी हार का मुँह देखना पड़ता है। हो सकता है, उनका बेटा या बेटी यहोवा की उपासना करना छोड़ दे। ऐसे में, माँ-बाप को वाकई बहुत “दुख” होता है, जिन्होंने अपने बच्चे को सच्चाई सिखाने की जी-तोड़ कोशिश की थी।—नीति. 17:25.
‘उस समय भारी क्लेश होगा’
16. यीशु ने कौन-से “क्लेश” की भविष्यवाणी की थी?
16 शादी और बच्चे पैदा करने में चाहे किसी भी तरह का “दुख” आए, लेकिन इससे भी बड़ा दुख या क्लेश आनेवाला है, जो पूरी दुनिया को हिलाकर रख देगा। यीशु ने अपनी उपस्थिति और जगत के अंत के बारे में भविष्यवाणी करते वक्त कहा, “उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।” (मत्ती 24:3, 21) यीशु ने बाद में बताया कि इस “भारी क्लेश” से एक बड़ी भीड़ बचकर निकलेगी, जबकि शैतान की दुनिया को नाश किया जाएगा। लेकिन इससे पहले शैतान दुनिया-भर में मौजूद यहोवा के अमन-पसंद लोगों पर एक आखिरी वार करेगा। इसमें कोई शक नहीं कि वह समय हम सबके लिए बहुत ही मुश्किल होगा, फिर चाहे हम बच्चे हों या बड़े।
17. (क) हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि हमारा भविष्य उज्ज्वल होगा? (ख) शादी और माँ-बाप होने की ज़िम्मेदारी के बारे में हमारे नज़रिए पर किस बात का असर होना चाहिए?
17 लेकिन भविष्य को लेकर हमें बहुत ज़्यादा घबराने की ज़रूरत नहीं। जो माँ-बाप यहोवा के वफादार रहते हैं, वे उम्मीद कर सकते हैं कि उन्हें और उनके बच्चों को भारी क्लेश से सुरक्षित रखा जाएगा। (यशायाह 26:20, 21 पढ़िए; सप. 2:2, 3; 1 कुरि. 7:14) मगर हम अंतिम दिनों में जी रहे हैं, इसका असर हमारे नज़रिए पर होना चाहिए कि हम शादी और माँ-बाप होने की ज़िम्मेदारी को कैसे देखते हैं। (2 पत. 3:10-13) अगर हम ऐसा करें, तो चाहे हम अविवाहित हों या शादीशुदा, बाल-बच्चेवाले हों या बेऔलाद, हम अपने जीने के तरीके से यहोवा की स्तुति और महिमा करेंगे। साथ ही, मसीही कलीसिया के नाम पर कोई आँच नहीं आने देंगे।
[फुटनोट]
a लिव विथ जेहोवाज़ डे इन माइंड (अँग्रेज़ी) किताब का पेज 125 पर दिया उपशीर्षक “मैं स्त्री-त्याग से घृणा करता हूं” देखिए।
b 15 सितंबर, 2003 की प्रहरीदुर्ग और अप्रैल-जून 2001 की सजग होइए! में शादी के बारे में लेख दिए गए हैं। जो जोड़े अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याओं से जूझ रहे हैं, वे इन लेखों को पढ़कर हिम्मत और मदद पा सकते हैं।
c युवाओं के प्रश्न—व्यावहारिक उत्तर किताब का अध्याय 30, “क्या मैं विवाह के लिए तैयार हूँ?” देखिए।
दोहराने के लिए
• जवान मसीहियों को शादी करने में जल्दबाज़ी क्यों नहीं करनी चाहिए?
• बच्चों को पालने-पोसने में क्या-क्या शामिल है?
• किस वजह से बहुत-से मसीही अविवाहित रहते हैं या अगर वे शादीशुदा हैं, तो बेऔलाद रहते हैं?
• मसीही माता-पिताओं को किस तरह के “दुख” झेलने पड़ सकते हैं?
[पेज 17 पर तसवीर]
जवान मसीहियों के लिए यह क्यों अक्लमंदी है कि वे शादी करने में जल्दबाज़ी न करें?
[पेज 18 पर तसवीर]
एक पति अपनी पत्नी की बहुत मदद कर सकता है, ताकि वह आध्यात्मिक कामों में पूरा-पूरा हिस्सा ले सके
[पेज 19 पर तसवीर]
कुछ मसीही जोड़े बेऔलाद रहने का फैसला क्यों करते हैं?