प्यार ज़ाहिर कीजिए, इससे हिम्मत बँधती है
“प्यार मज़बूत करता है।”—1 कुरिं. 8:1.
1. अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात यीशु ने किस अहम विषय पर बात की?
धरती पर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात थी। उस रात यीशु ने अपने चेलों से बात करते वक्त करीब 30 बार प्यार का ज़िक्र किया। उसने खासकर अपने चेलों से कहा कि उन्हें “एक-दूसरे से प्यार” करना चाहिए। (यूह. 15:12, 17) उसने यह भी कहा कि उनके बीच का प्यार इतना अनोखा होगा कि यह सबको साफ नज़र आएगा और लोग समझ जाएँगे कि वे यीशु के सच्चे चेले हैं। (यूह. 13:34, 35) यीशु ने जिस प्यार की बात की, वह सिर्फ एक भावना नहीं है। इस प्यार में इतनी ताकत है कि यह चेलों को त्याग करने के लिए उभारता है। यीशु ने कहा, “क्या कोई इससे बढ़कर प्यार कर सकता है कि वह अपने दोस्तों की खातिर जान दे दे? जो आज्ञा मैं देता हूँ अगर तुम उसे मानो तो तुम मेरे दोस्त हो।”—यूह. 15:13, 14.
2. (क) आज यहोवा के सेवक किस बात के लिए जाने जाते हैं? (ख) इस लेख में हमें किन सवालों के जवाब मिलेंगे?
2 आज यहोवा के सेवकों के बीच सच्चा और निस्वार्थ प्यार है और उनकी एकता अटूट है। इसके लिए वे पूरी दुनिया में जाने जाते हैं। (1 यूह. 3:10, 11) हमारे लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती कि हम किस जाति के हैं, कौन-सी भाषा बोलते हैं, किस देश से हैं या हमारी परवरिश कैसे हुई है। हम सच्चे दिल से एक-दूसरे से प्यार करते हैं। लेकिन शायद हम सोचें, आज के समय में प्यार ज़ाहिर करना इतना ज़रूरी क्यों है? यहोवा और यीशु हमसे प्यार करते हैं, इससे हमें मज़बूती या हिम्मत कैसे मिलती है? हम कैसे वह प्यार ज़ाहिर कर सकते हैं, जो हिम्मत बँधाता है?—1 कुरिं. 8:1.
आज प्यार ज़ाहिर करना इतना ज़रूरी क्यों है?
3. आज ‘संकटों से भरे वक्त’ में जीने की वजह से लोगों की ज़िंदगी पर क्या असर हो रहा है?
3 हम ‘संकटों से भरे वक्त’ में जी रहे हैं, इसलिए लोगों की ज़िंदगी ‘दुख और मुसीबतों से भरी है।’ (2 तीमु. 3:1-5; भज. 90:10) बहुत-से लोग इतनी तकलीफों से जूझ रहे हैं कि वे जीना नहीं चाहते। हर साल 8,00,000 से ज़्यादा लोग खुदकुशी कर लेते हैं यानी हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति अपनी जान ले लेता है। दुख की बात है कि हमारे कुछ भाई-बहन भी इस तरह की निराशा से गुज़रे हैं और उन्होंने अपनी जान ले ली है।
4. बाइबल के कौन-से किरदार अपनी ज़िंदगी में एक वक्त पर जीना नहीं चाहते थे?
4 पुराने ज़माने में भी परमेश्वर के कुछ वफादार सेवक ज़िंदगी की परेशानियों से इतने तंग आ चुके थे कि वे मर जाना चाहते थे। उनमें से एक था, अय्यूब। जब वह दर्द से तड़प रहा था, तो उसने कहा, “[मुझे] नफरत हो गयी है ज़िंदगी से, मैं और जीना नहीं चाहता।” (अय्यू. 7:16; 14:13) उसी तरह योना भी था। जैसा उसने सोचा था, वैसा न होने पर उसने दुखी होकर कहा, “हे यहोवा, मेहरबानी करके मेरी जान ले ले। जीने से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊँ।” (योना 4:3) भविष्यवक्ता एलियाह भी इतना निराश हो गया था कि उसने कहा, “हे यहोवा, अब मुझसे और बरदाश्त नहीं होता! तू मेरी जान ले ले।” (1 राजा 19:4) लेकिन यहोवा अपने इन सभी वफादार सेवकों से प्यार करता था और नहीं चाहता था कि वे ज़िंदगी से हार मान लें। उसने उनसे सीधे-सीधे नहीं कहा कि उनकी सोच गलत है और न ही उन्हें डाँटा। इसके बजाय उसने प्यार से उनकी मदद की, ताकि उनमें फिर से जीने की चाहत पैदा हो और वे उसकी सेवा करते रहें।
5. हमारे भाई-बहनों को हमारा प्यार क्यों चाहिए?
5 आज हमारे बहुत-से भाई-बहन काफी तनाव में जीते हैं और इन्हें हमारा प्यार चाहिए। ये भाई-बहन कई परेशानियों से जूझ रहे हैं। जैसे, कुछ भाई-बहनों का मज़ाक उड़ाया जाता है या उन्हें सताया जाता है। कई ऐसे हैं, जिनके काम की जगह उन पर धौंस जमायी जाती है या पीठ पीछे उनकी बुराई की जाती है। कुछ मसीहियों को ज़्यादा घंटे या तनाव में काम करना पड़ता है। कुछ और मसीही ऐसे हैं, जिनके परिवार में समस्याएँ हैं। शायद उनका जीवन-साथी यहोवा की उपासना न करता हो और बार-बार उन पर ताने कसता हो। इस तरह की कई समस्याओं की वजह से कुछ भाई-बहन थककर चूर हो गए हैं। यहाँ तक कि उन्हें लग सकता है कि उनके जीने का कोई फायदा नहीं है। इन भाई-बहनों की कौन मदद कर सकता है?
यहोवा हमसे प्यार करता है, इससे हमें हिम्मत मिलती है
6. यहोवा अपने सेवकों से प्यार करता है, इससे उन्हें किस तरह हिम्मत मिलती है?
6 यहोवा अपने सेवकों को यकीन दिलाता है कि वह उनसे प्यार करता है और हमेशा करता रहेगा। ज़रा सोचिए कि इसराएलियों को उस वक्त कैसा लगा होगा, जब यहोवा ने उनसे कहा, ‘तुम मेरी नज़रों में अनमोल हो, तुम आदर के लायक ठहरे हो और मैं तुमसे प्यार करता हूँ। डरो मत क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ!’ (यशा. 43:4, 5) उसी तरह हम भी जानते हैं कि हममें से हर कोई यहोवा की नज़र में अनमोल है।a बाइबल में यह वादा किया गया है, “एक वीर योद्धा की तरह [परमेश्वर] तुझे बचाएगा। वह तेरी वजह से बहुत खुश होगा।”—सप. 3:16, 17.
7. यहोवा का प्यार एक माँ के प्यार की तरह कैसे है? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
7 यहोवा अपने लोगों से वादा करता है कि उन पर चाहे जैसी भी समस्याएँ आएँ, वह उन्हें हिम्मत और दिलासा देगा। वह उनके बारे में कैसा महसूस करता है, यह हमें यशायाह 66:12, 13 से पता चलता है, जहाँ उसने कहा, “तुम्हें दूध पिलाया जाएगा, गोद में उठाया जाएगा और पैरों पर खिलाया जाएगा। जैसे एक माँ अपने बेटे को दिलासा देती है, वैसे ही मैं तुम्हें दिलासा देता रहूँगा।” ज़रा सोचिए, जब एक माँ अपने दूध पीते बच्चे को गोद में लेती है या फिर उसके साथ खेलती है, तो बच्चा कितना सुरक्षित महसूस करता है! उसी तरह यहोवा आपसे बहुत प्यार करता है और चाहता है कि आप सुरक्षित महसूस करें। ऐसा कभी मत सोचिए कि उसकी नज़र में आपका कोई मोल नहीं है।—यिर्म. 31:3.
8, 9. यीशु हमसे प्यार करता है, इससे हमें हिम्मत कैसे मिलती है?
8 एक और बात है, जिससे हम जानते हैं कि यहोवा हमसे प्यार करता है। यूहन्ना 3:16 में लिखा है, “परमेश्वर ने दुनिया से इतना प्यार किया कि उसने अपना इकलौता बेटा दे दिया ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न किया जाए बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।” यही नहीं, इस बलिदान से पता चलता है कि यीशु भी हमसे प्यार करता है। इस बात से हमें बहुत हिम्मत मिलती है। बाइबल कहती है कि “मसीह के प्यार” से “संकट या दुख” भी ‘हमें अलग नहीं कर सकता।’—रोमि. 8:35, 38, 39.
9 कई बार समस्याओं की वजह से हम बहुत कमज़ोर हो जाते हैं, हिम्मत हारने लगते हैं या यहोवा की सेवा में हमारी खुशी छिन जाती है। ऐसे में अगर हम याद रखें कि मसीह हमसे कितना प्यार करता है, तो हम धीरज रख पाएँगे। (2 कुरिंथियों 5:14, 15 पढ़िए।) मसीह का प्यार हमें जीने की वजह देता है और हम यहोवा की सेवा कर पाते हैं। इसी प्यार की वजह से हम हार नहीं मानते, फिर चाहे हम पर विपत्तियाँ आएँ, ज़ुल्म ढाए जाएँ, हमारी उम्मीदें पूरी न हों या हम चिंताओं से घिरे हों।
भाई-बहनों को हमारा प्यार चाहिए
10, 11. निराश भाई-बहनों की हिम्मत बँधाने की ज़िम्मेदारी किसकी है? समझाइए।
10 यहोवा मंडली के ज़रिए भी प्यार से हम सबकी हिम्मत बँधाता है। भाई-बहनों से प्यार करके हम साबित करते हैं कि हम यहोवा से प्यार करते हैं। भाई-बहनों से प्यार करने का एक तरीका है, उन्हें यकीन दिलाना कि यहोवा उनसे प्यार करता है और उन्हें अनमोल समझता है। (1 यूह. 4:19-21) प्रेषित पौलुस ने लिखा, “एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो और एक-दूसरे को मज़बूत करते रहो, ठीक जैसा तुम कर भी रहे हो।” (1 थिस्स. 5:11) यह ज़िम्मेदारी सिर्फ प्राचीनों की नहीं है। हममें से हरेक को यहोवा और यीशु मसीह की तरह होना चाहिए और भाई-बहनों को दिलासा देना चाहिए।—रोमियों 15:1, 2 पढ़िए।
11 शायद मंडली के कुछ भाई-बहन इतनी निराशा या चिंता में हों कि उन्हें अपना इलाज कराने की ज़रूरत हो। (लूका 5:31) प्राचीन और दूसरे मसीही जानते हैं कि वे डॉक्टर नहीं हैं, फिर भी वे इन भाई-बहनों की जो मदद करते हैं, वह बहुत मायने रखती है। वे उन्हें दिलासा दे सकते हैं और कुछ और तरीकों से उनकी मदद कर सकते हैं। मंडली में सब लोग बाइबल की इस सलाह पर चल सकते हैं, “जो मायूस हैं उन्हें अपनी बातों से तसल्ली दो, कमज़ोरों को सहारा दो और सबके साथ सब्र से पेश आओ।” (1 थिस्स. 5:14) हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि हमारे भाई-बहनों पर क्या बीत रही है। जब वे निराश होते हैं, तो हमें उनके साथ सब्र से पेश आना चाहिए और इस तरह बात करनी चाहिए कि उन्हें दिलासा मिले। क्या आप ऐसे भाई-बहनों की हिम्मत बँधाने की कोशिश करते हैं? उन्हें हिम्मत और दिलासा देने के लिए आप और क्या कर सकते हैं?
12. समझाइए कि मंडली के भाई-बहनों ने एक बहन की किस तरह मदद की।
12 यूरोप में रहनेवाली एक बहन कहती है, “कभी-कभी मेरे मन में आता है कि मैं अपनी जान ले लूँ। ऐसी भावना पर काबू पाने के लिए मैं मंडली के भाई-बहनों का सहारा लेती हूँ। उनकी वजह से मेरी जान बच गयी। वे हमेशा मेरा हौसला बढ़ाते हैं और मुझसे बहुत प्यार करते हैं। मंडली के बहुत कम लोगों को पता है कि मुझे गहरी निराशा है, फिर भी मंडली के सब लोग मेरी मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। एक पति-पत्नी मेरे माता-पिता की तरह हैं। वे मेरी अच्छी देखभाल करते हैं और किसी भी वक्त मेरी मदद के लिए हाज़िर रहते हैं, फिर चाहे दिन हो या रात।” बेशक हममें से हर कोई इस तरह की मदद नहीं कर सकता, फिर भी वह कुछ-न-कुछ ज़रूर कर सकता है।b
वह प्यार कैसे ज़ाहिर करें, जो हिम्मत बँधाता है?
13. दूसरों को दिलासा देने के लिए आप क्या कर सकते हैं?
13 ध्यान से सुनिए। (याकू. 1:19) जो भाई निराशा से गुज़र रहा है, उसके लिए प्यार ज़ाहिर करने का एक तरीका है, उसकी ध्यान से सुनना और उससे हमदर्दी जताना। खुद को उसकी जगह रखकर देखिए कि ऐसे हालात में आप कैसा महसूस करते। फिर प्यार से उससे ऐसे सवाल कीजिए, जिससे आप उसे अच्छी तरह समझ सकें। आपके चेहरे के भाव से भी यह नज़र आना चाहिए कि आप उसकी परवाह करते हैं, तभी वह आपसे अपने दिल की बात कह पाएगा। जब वह बात करता है, तब सब्र से काम लीजिए। उसे अपनी बात कहने दीजिए, बीच में टोकिए मत। उसकी ध्यान से सुनने पर आप समझ पाएँगे कि उसे कैसा लग रहा है और वह भी आप पर भरोसा कर पाएगा। इसके बाद आप उससे जो कहेंगे, उसे वह ध्यान से सुनेगा। जब उसे एहसास होगा कि आपको उसकी दिल से परवाह है, तो इससे उसे बहुत दिलासा मिलेगा।
14. हमें दूसरों में नुक्स क्यों नहीं निकालना चाहिए?
14 नुक्स मत निकालिए। अगर एक निराश व्यक्ति को लगे कि हम उसमें नुक्स निकाल रहे हैं, तब वह और भी निराश हो जाएगा। ऐसे में उसकी मदद करना बहुत मुश्किल हो जाएगा। बाइबल में लिखा है, “बिना सोचे-समझे बोलना, तलवार से वार करना है, लेकिन बुद्धिमान की बातें मरहम का काम करती हैं।” (नीति. 12:18) हालाँकि हम जानबूझकर कोई ऐसी बात नहीं कहेंगे, जिससे निराश व्यक्ति को बुरा लगे, फिर भी हमारे बिना सोचे-समझे बोलने से उसे ठेस लग सकती है। भाई की हिम्मत बँधाने के लिए आपको उसे यकीन दिलाना होगा कि आप सच में उसके हालात समझने की कोशिश कर रहे हैं।—मत्ती 7:12.
15. हम भाई-बहनों को दिलासा कैसे दे सकते हैं?
15 परमेश्वर के वचन से दिलासा दीजिए। (रोमियों 15:4, 5 पढ़िए।) बाइबल यहोवा का वचन है, जो “धीरज और दिलासा देनेवाला परमेश्वर” है। इस वजह से बाइबल में लिखी बातों से बहुत दिलासा मिल सकता है। बाइबल की आयतों और उस पर आधारित लेखों से हम भाई-बहनों की हिम्मत बँधा सकते हैं। इस मामले में यहोवा के साक्षियों के लिए खोजबीन गाइड से हमें मदद मिल सकती है।
16. निराश भाई-बहनों को दिलासा देने के लिए हममें कौन-से गुण होने चाहिए?
16 अपना व्यवहार कोमल और नरम रखिए। यहोवा “कोमल दया का पिता है और हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है।” वह अपने सेवकों पर “कोमल करुणा” करता है। (2 कुरिंथियों 1:3-6 पढ़िए; लूका 1:78; रोमि. 15:13) यहोवा की इस मिसाल पर चलकर पौलुस ने एक अच्छा उदाहरण रखा। इस वजह से वह कह सका, “हम तुम्हारे साथ बड़ी नरमी से पेश आए, ठीक जैसे एक दूध पिलानेवाली माँ प्यार से अपने नन्हे-मुन्नों की देखभाल करती है। हमें तुमसे इतना गहरा लगाव हो गया कि हमने तुम्हें न सिर्फ परमेश्वर की खुशखबरी सुनायी बल्कि तुम्हारे लिए अपनी जान तक देने को तैयार थे, क्योंकि तुम हमारे प्यारे हो गए थे।” (1 थिस्स. 2:7, 8) यहोवा की तरह अपना व्यवहार कोमल और नरम रखने से शायद हम भाई-बहनों को वह दिलासा दे रहे होंगे, जिसके लिए वे प्रार्थना कर रहे होंगे!
17. भाई-बहनों के बारे में कैसा नज़रिया रखने से हम उनका हौसला बढ़ा पाएँगे?
17 यह उम्मीद मत कीजिए कि भाई-बहनों से कोई गलती नहीं होगी। अगर आप यह उम्मीद करते हैं कि वे कोई गलती नहीं करेंगे, तो आप ज़िंदगी की सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर रहे होंगे और इससे आपको निराशा ही हाथ लगेगी। (सभो. 7:21, 22) हम यहोवा की तरह बनना चाहते हैं। यहोवा जानता है कि हम कितना कर सकते हैं, उससे बढ़कर वह हमसे उम्मीद नहीं करता। इस वजह से हमें एक-दूसरे से सब्र से पेश आना चाहिए। (इफि. 4:2, 32) हमें ऐसा कुछ नहीं कहना चाहिए, जिससे भाई-बहनों को लगे कि वे ज़्यादा नहीं कर पा रहे हैं। हमें किसी से उनकी तुलना भी नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय हमें उनका हौसला बढ़ाना चाहिए और उनके अच्छे कामों की तारीफ करनी चाहिए। इससे वे यहोवा की सेवा खुशी से कर पाएँगे।—गला. 6:4.
18. हमें वह प्यार क्यों ज़ाहिर करना चाहिए, जो हिम्मत बँधाता है?
18 यहोवा का हर सेवक उसकी और यीशु की नज़र में अनमोल है। (गला. 2:20) हम दिल से अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं, इसलिए हमें उनके साथ कोमलता से व्यवहार करना चाहिए। हम ‘उन बातों में लगे रहते हैं, जिनसे शांति कायम होती है और एक-दूसरे का हौसला मज़बूत होता है।’ (रोमि. 14:19) हमें नयी दुनिया का बेसब्री से इंतज़ार है, जहाँ निराश होने की कोई वजह नहीं होगी! बीमारियाँ और लड़ाइयाँ नहीं होंगी। आदम और हव्वा से मिले पाप की वजह से किसी की मौत नहीं होगी। ज़ुल्म नहीं होंगे, पारिवारिक समस्याएँ नहीं होंगी, हम ज़िंदगी से नाउम्मीद नहीं होंगे। हज़ार साल के आखिर में सारे इंसान परिपूर्ण हो जाएँगे। जो आखिरी परीक्षा तक वफादार रहेंगे, उन्हें यहोवा अपने बेटे-बेटियों के तौर पर गोद लेगा और वे “परमेश्वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी” पाएँगे। (रोमि. 8:21) आइए हम सब वह प्यार ज़ाहिर करें, जो हिम्मत बँधाता है और एक-दूसरे की मदद करें, ताकि हम सब परमेश्वर की नयी दुनिया में जा सकें।
b जिन लोगों के मन में खुदकुशी करने का खयाल आता है, उनकी मदद करने के लिए सजग होइए! के लेख देखिए: “आखिर किस लिए जीऊँ?—जीने की तीन वजह” (जुलाई-सितंबर 2014) और “जब न हो जीने की आस” (अप्रैल-जून 2012)।