क्या संसार की आत्मा आप में ज़हर घोल रही है?
सितंबर १२, १९९० में कज़ाकिस्तान की एक फ़ैक्टरी में एक विस्फोट हुआ। ख़तरनाक रेडियोधर्मिता वातावरण में फैल गई थी, जिससे १,२०,००० स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य को ख़तरा हो गया, जिनमें से अनेक ने इस जानलेवा ज़हर के ख़िलाफ़ सड़कों पर विरोध प्रदर्शन किया।
लेकिन जैसे-जैसे और अधिक जानकारी सामने आयी, उन्हें मालूम पड़ा कि वे दशकों से ज़हरीले वातावरण में जी रहे थे। कुछ वर्षों में, १,००,००० टन रेडियोधर्मी कचरा सुरक्षा-रहित, खुले स्थान में फेंका गया था। हालाँकि ख़तरा उनकी चौखट पर था लेकिन किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया था। क्यों नहीं?
हर दिन, अधिकारी स्थानीय खेल स्टेडियम में, विकिरण गणना की सूचना लगाते थे, जिससे ऐसा लगता था कि कोई भी ख़तरा नहीं है। आँकड़े सही थे, लेकिन उन्होंने केवल गामा विकिरण की सूचना दी। अल्फा विकिरण, जिसे मापा नहीं गया था, उतना ही ख़तरनाक हो सकता है। अनेक माताओं की समझ में आने लगा कि उनके बच्चे इतने बीमार-बीमार से क्यों थे।
आध्यात्मिक रूप से कहा जाए, तो अदृश्य प्रदूषण से भी हममें ज़हर घोला जा सकता है। और कज़ाकिस्तान के उन असहाय लोगों की तरह, अधिकांश लोग इस जानलेवा ख़तरे से अनजान हैं। इस प्रदूषण की पहचान बाइबल “संसार की आत्मा” के रूप में करती है जिसका चलानेवाला शैतान अर्थात् इब्लीस को छोड़ और कोई नहीं। (१ कुरिन्थियों २:१२) परमेश्वर का विरोधी विद्वेषपूर्ण रूप से संसार की इस आत्मा—या प्रबल मनोवृत्ति—का हमारी ईश्वरीय भक्ति को कमज़ोर करने के लिए प्रयोग करता है।
संसार की आत्मा कैसे हमारी आध्यात्मिक शक्ति को क्षीण कर सकती है? आँखों की अभिलाषा को भड़काकर और हमारे स्वाभाविक स्वार्थ का फ़ायदा उठाकर। (इफिसियों २:१-३; १ यूहन्ना २:१६) यह दिखाने के लिए हम ऐसे तीन अलग-अलग क्षेत्र देखेंगे जिनमें कि सांसारिक सोच-विचार हमारी आध्यात्मिकता में धीरे-धीरे ज़हर घोल सकता है।
पहले राज्य की खोज करना
यीशु ने मसीहियों से ‘पहिले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करने’ का आग्रह किया। (मत्ती ६:३३, NHT) दूसरी ओर संसार की आत्मा हमें अपने हितों और सुखों को हद से ज़्यादा महत्त्व देने की ओर ले जा सकती है। आरंभिक ख़तरा आध्यात्मिक हितों को एकदम त्यागने से नहीं बल्कि उन्हें दूसरा दर्जा देने से है। सुरक्षा की झूठी भावना के कारण हम ख़तरे को नज़रअंदाज़ कर सकते हैं, जैसे कज़ाकिस्तान के लोगों ने किया था। सालों की हमारी वफ़ादार सेवा और हमारे आध्यात्मिक बहन-भाइयों के लिए हमारी क़दर हममें ऐसे सोच-विचार डाल सकती है कि हम कभी-भी सच्चाई का रास्ता नहीं छोड़ सकते। संभवतः, इफिसुस की कलीसिया में अनेक लोगों ने ऐसा ही महसूस किया।
वर्ष सा.यु. ९६ के लगभग, यीशु ने उन्हें यह सलाह दी: “मुझे तेरे विरुद्ध यह कहना है कि तू ने अपना पहिला सा प्रेम छोड़ दिया है।” (प्रकाशितवाक्य २:४) लंबे समय से सेवा कर रहे इन मसीहियों ने अनेक कठिनाइयाँ झेली थीं। (प्रकाशितवाक्य २:२, ३) उन्हें वफ़ादार प्राचीनों द्वारा सिखाया गया था, जिनमें प्रेरित पौलुस भी शामिल था। (प्रेरितों २०:१७-२१, २७) लेकिन, साल दर साल यहोवा के लिए उनका प्रेम ठण्डा पड़ता गया और वे अपना आत्मिक उन्माद खो बैठे थे।—प्रकाशितवाक्य २:५.
संभवतः इफिसुस के कुछ लोग शहर के व्यापार और समृद्धि द्वारा प्रभावित हुए थे। दुःख की बात है कि इसी प्रकार आज के समाज की भौतिकवादी विचार-धारा कुछ मसीहियों को अपने साथ बहा ले गई है। आरामदेह जीवन-शैली पाने का निश्चित प्रयास, बेशक हमें आध्यात्मिक लक्ष्यों से दूर ले जाएगा।—मत्ती ६:२४ से तुलना कीजिए।
इस ख़तरे के बारे में आगाह करते हुए, यीशु ने कहा: “शरीर का दिया आंख है: इसलिये यदि तेरी आंख निर्मल हो, तो तेरा सारा शरीर भी उजियाला होगा। परन्तु यदि तेरी आंख बुरी [“ईर्ष्यालु,” NW फुटनोट] हो, तो तेरा सारा शरीर भी अन्धियारा होगा।” (मत्ती ६:२२, २३) एक “निर्मल” आँख ऐसी आँख है जो आध्यात्मिक बातों पर केंद्रित रहती है, ऐसी आँख जो परमेश्वर के राज्य पर जमी हुई होती है। दूसरी ओर, एक “बुरी” आँख या एक “ईर्ष्यालु” आँख वह है जो आगे नहीं देख पाती, जो केवल तात्कालिक शारीरिक अभिलाषाओं पर ही केंद्रित हो सकती है। आध्यात्मिक लक्ष्य और भावी प्रतिफल इसकी पहुँच से दूर होते हैं।
इससे पिछली आयत में यीशु ने कहा: “जहां तेरा धन है वहां तेरा मन भी लगा रहेगा।” (मत्ती ६:२१) हम यह कैसे जान सकते हैं कि हमारा मन आध्यात्मिक वस्तुओं पर लगा है या भौतिक वस्तुओं पर? संभवतः सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक है हमारी बातचीत, क्योंकि “जो मन में भरा है वही . . . मुंह पर आता है।” (लूका ६:४५) यदि हम ख़ुद को लगातार भौतिक वस्तुओं के बारे में या सांसारिक उपलब्धियों के बारे में बातचीत करते पाते हैं, तो यह साफ़ है कि हमारा मन बँटा हुआ है और हमारी आध्यात्मिक दृष्टि में दोष है।
कारमेन, एक स्पेनी बहन ने इस समस्या के साथ संघर्ष किया।a “मेरा पालन-पोषण सच्चाई में हुआ था,” कारमेन बताती है, “लेकिन १८ की उम्र में मैंने अपनी बालवाड़ी की शुरूआत की। तीन साल के बाद मेरे पास चार कर्मचारी थे, काम फल-फूल रहा था और मैं बहुत पैसा कमा रही थी। लेकिन वास्तविकता यह थी कि जिस बात से मुझे सबसे ज़्यादा संतुष्टि मिलती थी वह यह कि मुझे आर्थिक आज़ादी थी और मैं ‘कामयाब’ थी। सच कहूँ तो मेरा मन मेरे काम में बसा था—यह मुझे सबसे प्यारा था।
“मैंने महसूस किया कि काम में अपना अधिकांश समय देने के बावजूद भी मैं एक मसीही बनी रह सकती थी। साथ ही दूसरी ओर, मुझे यह अहसास सता रहा था कि मैं यहोवा की सेवा और भी कर सकती थी। जिस बात ने आख़िरकार मुझे राज्य हितों को पहला स्थान देने के लिए उकसाया वह था दो सहेलियों का उदाहरण जो पायनियर थीं। उनमें से एक हूलयाना, मेरी कलीसिया में थी। उसने पायनियर कार्य करने के लिए मुझ पर दबाव नहीं डाला, लेकिन उसकी बातचीत ने और उस आनंद ने जो उसने अपनी सेवकाई से उठाया था, मुझे अपने आध्यात्मिक मूल्यों को दोबारा जाँचने में मदद दी।
“कुछ समय बाद, अमरीका में छुटिट्यों के दौरान, मैं एक पायनियर बहन, ग्लोरिया, के साथ रही। हाल ही में उसके पति की मौत हुई थी और वह अपनी पाँच साल की बच्ची और माँ की देखभाल कर रही थी जिसे कैंसर था। फिर भी उसने पायनियर कार्य किया। उसका उदाहरण और सेवकाई के लिए उसकी हार्दिक क़दरदानी ने मेरे दिल को छू लिया। उन मात्र चार दिनों ने, जो मैंने उसके घर में बिताए, यहोवा को अपना सर्वोत्तम देने में दृढ़संकल्प करने के लिए मुझे प्रेरित किया। सबसे पहले मैं एक नियमित पायनियर बनी और कुछ सालों के बाद, मेरे पति और मुझे बेथेल सेवा के लिए आमंत्रित किया गया। मैंने अपने काम—मेरी आध्यात्मिक उन्नति के लिए बाधा—को अलविदा कहा और अब मैं महसूस करती हूँ कि यहोवा की नज़रों में मेरा जीवन सफल है, जिस बात से वाक़ई फ़र्क पड़ता है।”—लूका १४:३३.
‘उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जनना’ जैसा कारमॆन ने किया, हमें नौकरी, शिक्षण, घर-मकान और जीवन शैली के मामले में बुद्धिमत्तापूर्ण फ़ैसले करने में मदद देगा। (फिलिप्पियों १:१०) लेकिन क्या हम तब भी उत्तम से उत्तम बातों को प्रिय जानते हैं जब मनोरंजन की बात आती है? यह एक और क्षेत्र है जहाँ संसार की आत्मा अत्यधिक प्रभाव डालती है।
फुरसत को उसकी जगह रखिए
संसार की आत्मा आराम करने और फुरसत चाहने की लोगों की स्वाभाविक इच्छा का धूर्ततापूर्ण रूप से प्रयोग करती है। चूँकि अधिकांश लोगों के लिए भविष्य की कोई वास्तविक आशा नहीं, तो यह बात ज़ाहिर है कि वे आज को मनोरंजन और आराम से भरने की कोशिश करते हैं। (यशायाह २२:१३; १ कुरिन्थियों १५:३२ से तुलना कीजिए।) क्या हम पाते हैं कि हम फुरसत पर ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं? यह इस बात का एक संकेत हो सकता है कि संसार का सोच-विचार हमारी मनोवृत्ति को प्रभावित कर रहा है।
बाइबल चेतावनी देती है: “जो रागरंग [“मनोरंजन,” लामसा] से प्रीति रखता है, वह कंगाल होता है।” (नीतिवचन २१:१७) मौज़-मस्ती करना ग़लत नहीं, लेकिन उससे प्रेम करना, या उसे सबसे ज़्यादा महत्त्व देना, आध्यात्मिक कंगाली की ओर ले जाएगा। हमारी आध्यात्मिक भूख प्रत्यक्ष रूप से कमज़ोर पड़ जाएगी और सुसमाचार का प्रचार करने के लिए हमारे पास कम समय होगा।
इस कारण से, परमेश्वर का वचन हमें “कार्य करने के लिए अपनी बुद्धि की कमर कस कर आत्मा में संयमित हो” जाने की सलाह देता है। (१ पतरस १:१३, NHT) हमारे फुरसत के समय को जितना उचित है उस तक सीमित रखने के लिए आत्म-संयम की ज़रूरत है। कार्य के लिए कमर कसने का अर्थ है आध्यात्मिक गतिविधि के लिए तैयार होना, चाहे वह अध्ययन, सभाएँ, या क्षेत्र सेवकाई ही क्यों न हो।
ज़रूरी आराम के बारे में क्या? जब हम आराम के लिए समय निकालते हैं तो क्या हमें दोषी महसूस करना चाहिए? बिलकुल नहीं। आराम अनिवार्य है, ख़ास तौर पर आज के तनावपूर्ण संसार में। फिर भी, समर्पित मसीही होने के नाते हम अपने जीवन को फुरसत के इर्द-गिर्द केंद्रित रहने की अनुमति नहीं दे सकते। हद से ज़्यादा फुरसत का समय लेना अर्थपूर्ण गतिविधि में कम-से-कम भाग लेने के लिए हमें फुसला सकता है। यह हमारे अत्यावश्यकता के भाव को धुँधला कर सकता है और आत्म-संतुष्टि को भी प्रोत्साहित कर सकता है। तो फिर, हम आराम के बारे में एक संतुलित दृष्टिकोण कैसे रख सकते हैं?
बाइबल चैन के साथ एक मुट्ठी भर को हद से ज़्यादा परिश्रम से अच्छा बताती है—ख़ासकर तब जब लौकिक कार्य अनावश्यक हो। (सभोपदेशक ४:६) हालाँकि आराम हमारे शरीर को दोबारा शक्ति प्रदान करने में मदद देता है, आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत परमेश्वर की सक्रिय शक्ति है। (यशायाह ४०:२९-३१) हम यह पवित्र आत्मा अपनी मसीही सेवकाई के संबंध में प्राप्त करते हैं। व्यक्तिगत अध्ययन हमारे हृदय को पोषित करता है और सही अभिलाषाओं को उकसाता है। सभाओं में उपस्थित होना हमारे सृष्टिकर्ता के लिए क़दरदानी बढ़ाता है। मसीही सेवकाई में भाग लेना दूसरों के प्रति संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करता है। (१ कुरिन्थियों ९:२२, २३) जैसा पौलुस ने यथार्थ रूप से समझाया, “यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है।”—२ कुरिन्थियों ४:१६.
इलियाना, छः बच्चों की माँ और एक अविश्वासी पति की पत्नी, बहुत व्यस्त जीवन बिताती है। अपने परिवार और अपने कई रिश्तेदारों के प्रति उसकी ज़िम्मेदारियाँ हैं, जिसका मतलब है कि वह हर समय भागमभाग में लगी रहती है। फिर भी, वह प्रचार कार्य और सभाओं की तैयारी करने में भी देखनेयोग्य उदाहरण पेश करती है। वह इतनी सारी भाग-दौड़ से कैसे निपटती है?
“सभाएँ और क्षेत्र सेवा मुझे मेरी बाक़ी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में वाक़ई मदद देती हैं,” इलियाना समझाती है। “उदाहरण के लिए, प्रचार के बाद, जब मैं अपना घर का काम करती हूँ तो सोचने के लिए मेरे पास बहुत कुछ होता है। काम करते वक़्त मैं अकसर गीत गाती हूँ। दूसरी ओर, यदि मैं किसी सभा में नहीं जाती या जब क्षेत्र सेवा में बहुत कम काम किया करती हूँ तब घरेलू काम बोझ बन जाते हैं।”
फुरसत को दिये गए अत्यधिक महत्त्व से कितना भिन्न!
आध्यात्मिक सुंदरता यहोवा को प्रसन्न करती है
हम ऐसे संसार में रहते हैं जो अधिकाधिक शारीरिक रूप पर मोहित है। लोग अपने नैन-नक़्श को सँवारने के लिए तैयार किए गए उपचारों पर और बढ़ती उम्र के प्रभावों को छिपाने के लिए बहुत पैसा ख़र्च करते हैं। इसमें बालों का प्रतिरोपण और रंगना, वक्ष रोपण और कॉसमैटिक सर्जरी शामिल है। करोड़ों लोग वज़न घटाने के केंद्रों, व्यायामशालाओं और वातापेक्षी-व्यायाम कक्षाओं में जाते हैं या कसरत सिखानेवाले विडियो और आहार पुस्तकें ख़रीदते हैं। संसार हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि ख़ुशी के लिए हमारा पासपोर्ट शारीरिक रूप है कि हमारी “छवि” ही सब कुछ है।
अमरीका में, न्यूज़वीक पत्रिका से लिए गए एक सर्वेक्षण ने यह पाया कि ९० प्रतिशत श्वेत अमरीकी किशोर “अपनी शारीरिक बनावट से असंतुष्ट” थे। आदर्श काठी पाने की जी-तोड़ कोशिश हमारी आध्यात्मिकता पर प्रभाव डाल सकती है। डोरा एक युवा यहोवा की साक्षी थी जिसे अपने शारीरिक रूप पर शर्म आती थी क्योंकि उसका वज़न ज़्यादा था। “जब मैं ख़रीदारी के लिए जाती, तो मेरे नाप के ढंग के कपड़े पाना मुश्किल होता था,” वह बताती है। “ऐसा लगता था कि मानो फैशनेबल कपड़े केवल पतली किशोरियों के लिए ही बनाए जाते हों। उससे भी बदतर यह कि लोग मेरे वज़न को लेकर ताना मारते थे, जिसने मुझे बहुत परेशान किया, ख़ासकर तब जब मेरे आध्यात्मिक भाई-बहन ऐसा कहते थे।
“नतीजा यह हुआ कि मुझे अपने रूप के बारे में ज़्यादा से ज़्यादा सनक सवार हो गई, इस हद तक कि आध्यात्मिक मूल्यों ने मेरे जीवन में दूसरा स्थान लेना शुरू कर दिया। यह ऐसा था, मानो मेरी ख़ुशी मेरे वज़न पर निर्भर थी। तब से कई साल बीत चुके हैं और अब मैं एक महिला और मसीही के तौर पर परिपक्व हो चुकी हूँ, मेरा दृष्टिकोण बदल गया है। हालाँकि मैं अपने रूप का ध्यान रखती हूँ, मुझे अहसास है कि यह आध्यात्मिक सुंदरता है जिससे सबसे अधिक फ़र्क़ पड़ता है और यही बात मुझे सबसे ज़्यादा संतुष्टि देती है। एक बार जब मैंने यह समझ लिया, तब मैं राज्य हितों को उनका उचित स्थान देने में समर्थ हुई।”
सारा, प्राचीनकाल की वफ़ादार महिला थी जिसके पास यह संतुलित दृष्टिकोण था। हालाँकि बाइबल उसकी शारीरिक सुंदरता के बारे में तब बात करती है जब वह ६० साल से ज़्यादा उम्र की थी, यह मुख्यतः उसके उत्तम गुणों की ओर ध्यान खींचती है—छिपा हुआ और गुप्त मनुष्यत्व। (उत्पत्ति १२:११; १ पतरस ३:४-६) उसने एक कोमल और नम्र आत्मा दिखायी और उसने अधीनतापूर्वक अपने पति का कहना माना। सारा इस बारे में हद से ज़्यादा परेशान नहीं थी कि दूसरे लोग उसे किस नज़रिए से देखते हैं। हालाँकि वह एक अमीर घराने से थी, वह स्वेच्छापूर्वक ६० से भी ज़्यादा साल तंबुओं में रही। उसने नम्रतापूर्वक और निःस्वार्थ रूप से अपने पति को समर्थन दिया; वह विश्वास की एक महिला थी। इसी बात ने उसे वाक़ई एक सुंदर महिला बनाया।—नीतिवचन ३१:३०; इब्रानियों ११:११.
मसीही होने के नाते हम अपनी आध्यात्मिक सुंदरता बढ़ाने में दिलचस्पी रखते हैं, ऐसी सुंदरता जिसे यदि नियमित तौर पर निखारा जाए तो वह बढ़ेगी और क़ायम रहेगी। (कुलुस्सियों १:९, १०) हम दो मुख्य तरीक़ों से अपने आध्यात्मिक रूप की देखभाल कर सकते हैं।
हम यहोवा की नज़रों में और सुदंर बन जाते हैं जब हम अपनी जीवन-रक्षक सेवकाई में भाग लेते हैं। (यशायाह ५२:७; २ कुरिन्थियों ३:१८–४:२) इसके अलावा, जैसे-जैसे हम मसीही गुणों को प्रदर्शित करना सीखते हैं, हमारी सुंदरता और भी गहरी होती जाती है। अपनी आध्यात्मिक सुंदरता को बढ़ाने के अनेक अवसर हैं: “एक दूसरे पर मया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो। . . . आत्मिक उन्माद में भरे रहो; . . . पहुनाई करने में लगे रहो। . . . आनन्द करनेवालों के साथ आनन्द करो; और रोनेवालों के साथ रोओ। . . . बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; . . . सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।” (रोमियों १२:१०-१८) ऐसी मनोवृत्ति पैदा करना हमें परमेश्वर और संगी मनुष्यों दोनों का प्रिय बनाएगा और यह हमारी वंशागत पापमय प्रवृत्तियों की बदसूरती को कम करेगा।—गलतियों ५:२२, २३; २ पतरस १:५-८.
हम संसार की आत्मा से लड़ सकते हैं!
अनेक धूर्त तरीक़ों से संसार की ज़हरीली आत्मा हमारी खराई को कमज़ोर कर सकती है। जो हमारे पास है, यह उसके प्रति हमें असंतुष्ट और परमेश्वर से आगे अपनी ज़रूरतों और हितों को रखने के लिए चिंताग्रस्त कर सकती है। या यह हमें परमेश्वर के विचारों के बजाय मनुष्यों के विचारों की तरह सोचने की ओर ले जा सकती है जिससे कि शायद हम फुरसत या शारीरिक रूप को हद से ज़्यादा महत्त्व देने लगें।—मत्ती १६:२१-२३ से तुलना कीजिए।
शैतान हमारी आध्यात्मिकता को नष्ट करने में जुटा हुआ है और संसार की आत्मा उसके ख़ास हथियारों में से एक है। याद रखिए इब्लीस अपनी चालें बदलकर गर्जनेवाले सिंह की बजाय साँप की तरह चालाक बन सकता है। (उत्पत्ति ३:१; १ पतरस ५:८) कभी-कभी संसार एक मसीही को बर्बर सताहट से जीत लेता है, लेकिन ज़्यादातर यह उसमें धीरे-धीरे ज़हर घोलता है। पौलुस इस दूसरे ख़तरे के बारे में ज़्यादा चिंतित था: “मैं डरता हूं कि जैसे सांप ने अपनी चतुराई से हव्वा को बहकाया, वैसे ही तुम्हारे मन उस सीधाई और पवित्रता से जो मसीह के साथ होनी चाहिए कहीं भ्रष्ट न किए जाएं।”—२ कुरिन्थियों ११:३.
अपने आप को सर्प की चतुराई से बचाने के लिए, हमें उस प्रचार को पहचानने की ज़रूरत है जो “संसार ही की ओर से है” और तब दृढ़तापूर्वक उसे ठुकराने की ज़रूरत है। (१ यूहन्ना २:१६) हमें इस बात पर विश्वास करने से धोखा नहीं खाना चाहिए कि सांसारिक सोच-विचार नुक़सानदेह नहीं है। शैतान की व्यवस्था की ज़हरीली हवा ख़तरे की सीमा तक पहुँच गई है।—इफिसियों २:२.
सांसारिक सोच-विचार की एक बार पहचान होने के बाद, हम यहोवा की शुद्ध शिक्षा को अपने मन और हृदय में भरने के द्वारा इससे लड़ सकते हैं। आइए हम भी राजा दाऊद की तरह कहें: “हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे। मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्धार करनेवाला परमेश्वर है।”—भजन २५:४, ५.
[फुटनोट]
a काल्पनिक नाम इस्तेमाल किए गए हैं।
[पेज 26 पर तसवीर]
एक आरामदेह जीवन-शैली के पीछे भागना हमें आध्यात्मिक लक्ष्यों से दूर कर सकता है