शांति का बोलबाला—हज़ार साल तक और उसके बाद भी!
“ताकि परमेश्वर ही सबके लिए सबकुछ हो।”—1 कुरिं. 15:28.
1. “बड़ी भीड़” के आगे कैसा शानदार भविष्य है?
क्या आप उस वक्त की कल्पना कर सकते हैं, जब इस धरती पर एक नेक और दयालु राजा हुकूमत करेगा? क्या आप सोच सकते हैं कि उसकी सरकार एक हज़ार साल की हुकूमत में अपनी प्रजा के लिए क्या-क्या आशीषें लाएगी? ऐसा ही शानदार भविष्य “बड़ी भीड़” के सामने बाहें फैलाए खड़ा है। ये वे लोग हैं जो “महा-संकट” से बच निकलेंगे, जब इस दुष्ट दुनिया की व्यवस्था पूरी तरह खत्म कर दी जाएगी।—प्रका. 7:9, 14.
2. पिछले 6,000 सालों के दौरान इंसानों ने क्या अनुभव किया है?
2 पिछले 6,000 सालों के दौरान इंसानों ने सही-गलत के बारे में अपने स्तर ठहराने और खुद पर हुकूमत करने की कोशिश की है। लेकिन इससे इंसानों को दर्द और दुख-तकलीफों के सिवा कुछ नहीं मिला। बाइबल में पहले ही कहा गया था, “एक मनुष्य दूसरे मनुष्य पर अधिकारी होकर [उस पर] हानि लाता है।” (सभो. 8:9) आज हम अपने चारों तरफ क्या देखते हैं? युद्ध, सरकार के खिलाफ बगावत, गरीबी, बीमारी, पर्यावरण की तबाही, आबोहवा में बदलाव और न जाने क्या-क्या। सरकारी अधिकारियों ने आगाह किया है कि अगर इस बारे में कुछ ठोस कदम न उठाए गए, तो अंजाम बहुत भयानक हो सकते हैं।
3. मसीह के हज़ार साल के राज के दौरान क्या होगा?
3 आज धरती की जो तबाही हो रही है और इंसानों को जो दुख-दर्द सहना पड़ रहा है, वह परमेश्वर के राज में दूर कर दिया जाएगा। ये सब इस राज का राजा यीशु मसीह और उसके 1,44,000 संगी राजा करेंगे। मसीह के हज़ार साल के राज के दौरान यहोवा परमेश्वर का यह प्यार-भरा वादा पूरा होगा, “मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करता हूं; और पहिली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएंगी।” (यशा. 65:17) तो फिर भविष्य में क्या शानदार घटनाएँ घटेंगी? बाइबल में दी भविष्यवाणियों की मदद से हम उन घटनाओं को समझ सकते हैं, जो फिलहाल “अनदेखी” हैं यानी अब तक नहीं घटीं।—2 कुरिं. 4:18.
‘वे घर बनाएँगे और दाख की बारियाँ लगाएँगे’
4. रहने की जगह को लेकर आज कई लोग किन हालात का सामना करते हैं?
4 हममें से कौन नहीं चाहेगा कि उसका अपना एक घर हो जहाँ वह और उसका परिवार सुख-चैन से जी सके? मगर आज की दुनिया में रहने की जगह मिलना बहुत बड़ी समस्या है। ज़्यादातर लोग भीड़-भाड़वाले शहरों में रहते हैं। झुग्गी-झोंपड़ियों या गंदी बस्तियों में रहने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं होता। उनके लिए अपना घर होना महज़ एक सपना बनकर रह जाता है।
5, 6. (क) यशायाह 65:21 और मीका 4:4 की भविष्यवाणियाँ कैसे पूरी होंगी? (ख) हम वे आशीषें कैसे पा सकते हैं?
5 परमेश्वर के राज में धरती पर रहनेवाले हर इंसान की यह आरज़ू पूरी होगी कि उसका अपना घर हो। यशायाह ने भविष्यवाणी की थी, “वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियां लगाकर उनका फल खाएंगे।” (यशा. 65:21) लेकिन उन्हें सिर्फ यही आशीष नहीं मिलेगी। देखा जाए तो आज कई लोगों के पास अपना घर है, कुछ लोगों के तो महल जैसे घर होते हैं। लेकिन उन्हें चोरी या डकैती का डर रहता है। या फिर उन्हें यह चिंता सताती है कि अगर उनकी माली हालत डगमगा गयी और उन्हें अपने घर से हाथ धोना पड़ा, तो क्या होगा। मगर परमेश्वर के राज में कोई डर, कोई चिंता नहीं होगी। भविष्यवक्ता मीका ने लिखा, “वे अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले बैठा करेंगे, और कोई उनको न डराएगा।”—मीका 4:4.
6 परमेश्वर के राज में जीने के लिए हमें क्या करना होगा? यह सच है कि रहने के लिए घर होना ज़रूरी है। लेकिन अभी अपने सपनों का महल खड़ा करना और उसके लिए कर्ज़ में डूब जाना समझदारी नहीं होगी। इसके बजाय हमें इस तरह जीना होगा जिससे ज़ाहिर हो कि हम यहोवा के वादों पर अपना ध्यान लगाए हुए हैं। याद कीजिए, यीशु ने खुद के बारे में क्या कहा था, “लोमड़ियों की माँदें और आकाश के पंछियों के बसेरे होते हैं, मगर इंसान के बेटे के पास कहीं सिर टिकाने की भी जगह नहीं है।” (लूका 9:58) यीशु चाहता तो अपने लिए इस दुनिया का सबसे आलीशान घर बना या खरीद सकता था, उसमें इतनी ताकत और काबिलीयत थी। मगर उसने ऐसा नहीं किया। क्यों? ज़ाहिर है यीशु ऐसी किसी भी चीज़ से दूर रहना चाहता था, जो राज को पहली जगह देने में उसके आड़े आ सकती थी। क्या हम यीशु की तरह अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रख सकते हैं? क्या हम घर और ऐशो-आराम जैसी चीज़ों को पहली जगह देने और खुद को बेवजह चिंता में डालने से बच सकते हैं?—मत्ती 6:33, 34.
“भेड़िया और मेम्ना एक संग चरा करेंगे”
7. जीव-जंतुओं के बारे में यहोवा ने इंसानों को क्या आज्ञा दी थी?
7 यहोवा ने सृष्टि करते वक्त इंसान को, जो धरती पर उसकी सबसे उम्दा सृष्टि थी, आखिर में बनाया। उसने अपने कुशल कारीगर यीशु पर ज़ाहिर किया कि उसने इंसानों को किस मकसद से बनाया। उसने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं; और वे समुद्र की मछलियों, और आकाश के पक्षियों, और घरेलू पशुओं, और सारी पृथ्वी पर, और सब रेंगनेवाले जन्तुओं पर जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, अधिकार रखें।” (उत्प. 1:26) परमेश्वर ने आदम और हव्वा को सभी जीव-जंतुओं की देखभाल करने और उन पर अधिकार रखने की आज्ञा दी थी। आगे चलकर सभी इंसानों को यह अधिकार मिलता।
8. आम तौर पर जानवरों का स्वभाव कैसा होता है?
8 क्या यह मुमकिन है कि इंसान सभी जानवरों पर अधिकार रखे और उनके साथ शांति से रहे? बहुत-से लोगों को अपने पालतू जानवरों जैसे कुत्ते-बिल्लियों से लगाव होता है। लेकिन जंगली जानवरों के बारे में क्या? एक रिपोर्ट बताती है: “कुछ वैज्ञानिकों ने जंगली जानवरों को करीबी से देखा है और उनका अध्ययन किया है। उन्होंने पाया है कि सभी स्तनधारी जानवरों में भावनाएँ होती हैं।” बेशक, हम जानते हैं कि जब जानवरों को खतरा महसूस होता है, तो वे घबरा जाते हैं या खूँखार हो जाते हैं, मगर क्या उनमें प्यार जैसी कोमल भावनाएँ होती हैं? रिपोर्ट आगे बताती है: “स्तनधारी जानवर अपने नन्हे-मुन्नों की परवरिश करने में जो प्यार और ममता दिखाते हैं, वह देखते बनती है!”
9. भविष्य में हम जानवरों में क्या बदलाव देख सकेंगे?
9 तो फिर जब हम बाइबल में पढ़ते हैं कि इंसान और जानवर आपस में अमन-चैन से रहेंगे, हमें हैरान नहीं होना चाहिए। (यशायाह 11:6-9; 65:25 पढ़िए।) क्यों नहीं? याद कीजिए जब नूह और उसका परिवार जलप्रलय के बाद जहाज़ से बाहर निकले तो यहोवा ने उनसे कहा, “तुम्हारा डर और भय पृथ्वी के सब पशुओं . . . पर बना रहेगा।” परमेश्वर ने जानवरों की हिफाज़त के लिए ही उनके अंदर इंसानों का डर पैदा किया। (उत्प. 9:2, 3) तो क्या नयी दुनिया में यहोवा कुछ हद तक वह डर दूर नहीं कर सकता, ताकि इंसान और जानवर के बीच वैसी ही शांति हो जैसी उसने शुरू में चाही थी? (होशे 2:18) उस वक्त जो लोग धरती पर जीएँगे वे क्या ही खुशनुमा माहौल का लुत्फ उठाएँगे!
“वह . . . हर आँसू पोंछ देगा”
10. इंसान आँसू क्यों बहाता है?
10 जब सुलैमान “ने वह सब अन्धेर देखा जो संसार में होता है” तो उसने दुखी मन से कहा, “अन्धेर सहनेवालों के आंसू बह रहे हैं, और उनको कोई शान्ति देनेवाला नहीं!” (सभो. 4:1) आज भी हालात वैसे ही हैं, बल्कि उससे भी बदतर हैं। हममें से ऐसा कौन है जिसने कभी आँसू न बहाए हों? हाँ, यह सच है कि कभी-कभी हमारी आँखों से खुशी के आँसू छलक पड़ते हैं, लेकिन ज़्यादातर हम गम के आँसू ही बहाते हैं।
11. बाइबल का कौन-सा वाकया खासकर आपके दिल को छू जाता है?
11 बाइबल में दिल छू लेनेवाले उन वाकयों को याद कीजिए जिनमें लोगों ने आँसू बहाए थे। जब 127 साल की उम्र में सारा की मौत हो गयी, तो “[अब्राहम] सारा के लिये रोने पीटने” लगा। (उत्प. 23:1, 2) नाओमी जब अपनी दो विधवा बहुओं से बिछड़ रही थी, तो “वे फूट-फूटकर रोने लगीं।” फिर जब नाओमी ने उनसे कुछ और बातें कहीं, तो वे “[और] फूट-फूटकर रोने लगीं।” (रूत 1:9, 14, वाल्द-बुल्के अनुवाद) जब हिज़किय्याह बहुत बीमार हो गया और मरने पर था, तब उसने यहोवा से प्रार्थना की और वह “बिलक बिलक कर रोया।” यहोवा ने उसके आँसुओं को देखा और उसे चंगा किया। (2 राजा 20:1-5) और जब प्रेषित पतरस ने यीशु को जानने से इनकार किया, तब मुर्गे की बाँग सुनकर “वह बाहर जाकर फूट-फूटकर रोने लगा।” यह वाकया हमारे दिल को छू जाता है।—मत्ती 26:75.
12. परमेश्वर का राज किस तरह इंसानों को सच्ची राहत दिलाएगा?
12 आज इंसानों के साथ इतने हादसे होते हैं कि उन्हें दिलासे और राहत की सख्त ज़रूरत है। परमेश्वर के राज के हज़ार साल में उन्हें क्या राहत मिलेगी, इस बारे में हम पढ़ते हैं, “[परमेश्वर] उनकी आँखों से हर आँसू पोंछ देगा, और न मौत रहेगी, न मातम, न रोना-बिलखना, न ही दर्द रहेगा।” (प्रका. 21:4) ज़रा सोचिए उस वक्त मातम, रोना-बिलखना और दर्द नहीं रहेगा! लेकिन इससे भी बढ़कर परमेश्वर हमसे वादा करता है कि वह हमारे ताकतवर दुश्मन मौत को मिटा देगा। लेकिन यह कैसे होगा?
“वे सभी जो स्मारक कब्रों में हैं . . . बाहर निकल आएँगे”
13. आदम के पाप करने से मौत का इंसानों पर क्या असर हुआ है?
13 जब से आदम ने पाप किया, मौत ने इंसानों पर राज किया है। यह एक ऐसा दुश्मन है जिससे कोई नहीं बच सकता, न ही इससे लड़ सकता है। इसने न जाने कितनों को खून के आँसू रुलाए हैं। (रोमि. 5:12, 14) दरअसल, “मौत के डर से” लाखों लोग “पूरी ज़िंदगी गुलामी में पड़े” रहते हैं।—इब्रा. 2:15.
14. मौत के मिटाए जाने के क्या नतीजे होंगे?
14 बाइबल उस वक्त के बारे में बताती है जब ‘सब से आखिरी दुश्मन मौत को मिटा दिया जाएगा।’ (1 कुरिं. 15:26) कहा जा सकता है कि इससे दो समूहों को फायदा होगा। “बड़ी भीड़” के लोग जो आज ज़िंदा हैं, उनके आगे परमेश्वर की नयी दुनिया में कदम रखने और हमेशा की ज़िंदगी जीने की आशा है। दूसरी तरफ जो अरबों लोग मौत की आगोश में चले गए हैं, उन्हें दोबारा ज़िंदा किया जाएगा। उस वक्त कैसी खुशी और चहल-पहल होगी जब बड़ी भीड़ के लोग उन लोगों का स्वागत करेंगे जिन्हें जी उठाया जाएगा। क्या आप अपने मन की आँखों से इस नज़ारे को देख सकते हैं? बाइबल में दिए पुनरुत्थान के कुछ वाकये पढ़ने से हमें उस समय के बारे में कल्पना करने में मदद मिलेगी।—मरकुस 5:38-42; लूका 7:11-17 पढ़िए।
15. जब आप अपने अज़ीज़ों को वापस ज़िंदा देखेंगे, तब आप कैसा महसूस करेंगे?
15 ज़रा इन शब्दों पर गौर कीजिए, “यह देखकर उनकी खुशी का ठिकाना न रहा” और ‘वे परमेश्वर की बड़ाई करने लगे।’ अगर आप उस वक्त मौजूद होते, तो शायद आपको भी उसी तरह महसूस होता। इसमें कोई दो राय नहीं, जब हम अपने मरे हुए अज़ीज़ों को वापस ज़िंदा देखेंगे, तो खुशी के साथ-साथ हमें ताज्जुब भी होगा। यीशु ने कहा था, “वह वक्त आ रहा है जब वे सभी जो स्मारक कब्रों में हैं उसकी आवाज़ सुनेंगे और बाहर निकल आएँगे।” (यूह. 5:28, 29) हममें से किसी ने ऐसा होते नहीं देखा है, लेकिन हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि “अनदेखी” घटनाओं में से वह सबसे शानदार घटना होगी।
परमेश्वर “सबके लिए सबकुछ” होगा
16. (क) हमें भविष्य में मिलनेवाली आशीषों के बारे में जोश से बात क्यों करनी चाहिए? (ख) पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को बढ़ावा देने के लिए क्या कहा?
16 संकटों से भरे इस वक्त में जो लोग यहोवा के वफादार रहते हैं, उनके आगे क्या ही शानदार भविष्य है! हालाँकि हमें ये बेहतरीन आशीषें भविष्य में मिलेंगी, फिर भी हमें उनके बारे में सोचते रहना चाहिए। इससे हम उन बातों पर ध्यान लगा पाएँगे जो हमारे लिए ज़रूरी हैं, न कि इस दुनिया की चमक-दमक पर जो आज है तो कल नहीं। (लूका 21:34; 1 तीमु. 6:17-19) आइए हम अपनी शानदार आशा के बारे में इन मौकों पर पूरे जोश से बात करें: पारिवारिक उपासना के दौरान, भाई-बहनों से बात करते वक्त और दिलचस्पी लेनेवालों और बाइबल विद्यार्थियों के साथ चर्चा करते वक्त। इस तरह यह आशा हमारे लिए और भी सच्ची बन जाएगी। प्रेषित पौलुस ने अपने मसीही भाइयों को बढ़ावा देते वक्त ठीक ऐसा ही किया। वह अपने शब्दों से मानो उन्हें मसीह के हज़ार साल के आखिर में ले गया। पौलुस के उन शब्दों का पूरा मतलब समझने की कोशिश कीजिए जो 1 कुरिंथियों 15:24, 25, 28 में दर्ज़ हैं।—पढ़िए।
17, 18. (क) इंसान की शुरूआत में यहोवा किस मायने में “सबके लिए सबकुछ” था? (ख) परमेश्वर और इंसानों के बीच शांति और एकता दोबारा कायम करने के लिए यीशु क्या करेगा?
17 हज़ार साल के आखिर के बारे में हम पढ़ते हैं कि “परमेश्वर ही सबके लिए सबकुछ हो।” इससे अच्छा वर्णन हमें शायद ही कहीं मिले! लेकिन इन शब्दों का मतलब क्या है? ज़रा उस वक्त को याद कीजिए जब अदन के बाग में सिद्ध इंसान आदम और हव्वा परमेश्वर के परिवार का हिस्सा थे, उस परिवार का जिसमें शांति और एकता थी। पूरे जहान का महाराजा और मालिक यहोवा इस परिवार पर सीधे-सीधे हुकूमत करता था, जो इंसानों और स्वर्गदूतों से मिलकर बना था। वे परमेश्वर से बात कर सकते थे, उसकी उपासना करते थे और उससे आशीषें पाते थे। यहोवा ही “सबके लिए सबकुछ” था।
18 शैतान के बहकावे में आकर जब इंसान ने यहोवा की हुकूमत के खिलाफ बगावत की, तो परमेश्वर के साथ उनका रिश्ता टूट गया। लेकिन परमेश्वर और इंसानों के बीच शांति और एकता दोबारा कायम करने के लिए मसीहाई राज सन् 1914 से कदम उठा रहा है। (इफि. 1:9, 10) फिलहाल जो बातें “अनदेखी” हैं, उन्हें हज़ार साल के राज में हकीकत का रूप दिया जाएगा। इसके बाद मसीह के हज़ार साल के राज का “अंत” आ जाएगा। तब क्या होगा? हालाँकि यीशु को “स्वर्ग में और धरती पर सारा अधिकार” दिया गया है, फिर भी उसमें बड़ा बनने की चाहत नहीं है। वह यहोवा का पद नहीं हथियाना चाहता। नम्रता दिखाते हुए “वह अपने परमेश्वर और पिता के हाथ में राज सौंप देगा।” जी हाँ, यीशु अपनी खास पदवी और अधिकार का इस्तेमाल हमेशा ‘परमेश्वर की महिमा’ के लिए करता है।—मत्ती 28:18; फिलि. 2:9-11.
19, 20. (क) परमेश्वर के राज में लोग कैसे दिखाएँगे कि वे यहोवा की हुकूमत को कबूल करते हैं? (ख) हमारे आगे क्या सुनहरा भविष्य है?
19 उस वक्त तक परमेश्वर के राज की प्रजा सिद्ध हो जाएगी। सभी लोग यीशु की मिसाल पर चलेंगे और नम्र होकर खुशी-खुशी यह कबूल करेंगे कि पूरे विश्व पर हुकूमत करने का हक सिर्फ यहोवा को है। और आखिरी परीक्षा में खरे उतरकर वे दिखाएँगे कि वे यहोवा की हुकूमत को कबूल करते हैं। (प्रका. 20:7-10) उसके बाद सभी बागियों का हमेशा-हमेशा के लिए खात्मा कर दिया जाएगा फिर चाहे वे इंसान हों, या स्वर्गदूत। स्वर्ग में और धरती पर यहोवा का पूरा परिवार उसकी महिमा करेगा और वह “सबके लिए सबकुछ” होगा। वह क्या ही खुशी का समाँ होगा!—भजन 99:1-3 पढ़िए।
20 परमेश्वर का राज बहुत जल्द बेहतरीन आशीषें लानेवाला है। क्या यह बात आपको उभारती है कि आप परमेश्वर की मरज़ी पूरी करने में अपना ध्यान लगाए रखें और ऐसा करने में जी-जान लगा दें? क्या आप इस बात का ध्यान रखते हैं कि शैतान की दुनिया जो ऐशो-आराम की ज़िंदगी और झूठी आशा देती है, वह आपको यहोवा की सेवा से दूर न ले जाए? क्या यहोवा की हुकूमत को बुलंद करने का आपका इरादा और मज़बूत हुआ है? हमारी दुआ है कि आप अपने कामों से दिखाएँ कि आप हमेशा यहोवा की हुकूमत बुलंद करना चाहते हैं। फिर आप न सिर्फ हज़ार साल तक बल्कि हमेशा-हमेशा शांति और खुशहाली का लुत्फ उठाएँगे!