‘मुर्दे उठाए जाएंगे’
“तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएंगे, और हम बदल जाएंगे।”—१ कुरिन्थियों १५:५२.
१, २. (क) भविष्यवक्ता होशे के ज़रिए कौन-सी तसल्ली देनेवाली प्रतिज्ञा बताई गई थी? (ख) हम यह कैसे जानते हैं कि परमेश्वर मरे हुए लोगों को जीवित करने की इच्छा रखता है?
क्या आपने कभी अपने किसी अज़ीज को मौत की वज़ह से खोया है? अगर हाँ, तब तो आप जानते ही होंगे कि मौत का दुःख कैसा होता है। फिर भी, मसीही परमेश्वर की उस प्रतिज्ञा से तसल्ली पाते हैं जो उसने अपने भविष्यवक्ता होशे द्वारा बताई थी: “मैं उसको अधोलोक के वश से छुड़ा लूंगा और मृत्यु से उसको छुटकारा दूंगा। हे मृत्यु, तेरी मारने की शक्ति कहां रही? हे अधोलोक, तेरी नाश करने की शक्ति कहां रही?”—होशे १३:१४.
२ मरे लोगों को फिर से जीवित करने की बात अविश्वासियों को बेतुकी लगती है। लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर ऐसा करने की ताकत रखता है! खास बात यह है कि यहोवा परमेश्वर मरे हुओं को जीवित करने की इच्छा रखता है या नहीं। धर्मी अय्यूब ने पूछा: “यदि मनुष्य मर जाए तो क्या वह फिर जीवित होगा?” इसके बाद उसने तसल्ली देनेवाला यह जवाब दिया: “तू मुझे बुलाता, और मैं बोलता; तुझे अपने हाथ के बनाए हुए काम की अभिलाषा होती।” (अय्यूब १४:१४, १५) शब्द “अभिलाषा” का अर्थ बड़ी लालसा या गहरी इच्छा है। (भजन ८४:२ से तुलना कीजिए।) जी हाँ, यहोवा परमेश्वर मरे हुओं को जिलाने के लिए बहुत उत्सुक है—वह फिर से वफादार जनों को जीवित देखना चाहता है, जो अभी उसकी यादों में ज़िंदा हैं।—मत्ती २२:३१, ३२.
यीशु पुनरुत्थान के बारे में ज़्यादा समझाता है
३, ४. (क) पुनरुत्थान की आशा के बारे में यीशु ने क्या प्रकट किया? (ख) यीशु को मनुष्य के रूप में न जिलाकर एक स्वर्गीय व्यक्ति के रूप में क्यों जिलाया गया?
३ अय्यूब की तरह प्राचीन समय के विश्वासी लोगों को पुनरुत्थान का सिर्फ थोड़ा ही ज्ञान था। यीशु मसीह ने ही इस अद्भुत आशा को पूरी तरह समझाया। उसने अपनी मुख्य भूमिका के बारे में बताया जब उसने कहा: “जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है।” (यूहन्ना ३:३६) यह जीवन कहाँ होगा? विश्वास रखनेवाले ज़्यादातर लोगों के लिए यह पृथ्वी पर होगा। (भजन ३७:११) लेकिन यीशु ने अपने चेलों को बताया: “हे छोटे झुण्ड, मत डर; क्योंकि तुम्हारे पिता को यह भाया है, कि तुम्हें राज्य दे।” (लूका १२:३२) परमेश्वर का राज्य स्वर्ग का है। इसलिए इस प्रतिज्ञा का मतलब है कि एक “छोटे झुण्ड” का स्वर्गीय जीवधारियों के रूप में यीशु के साथ स्वर्ग में होना। (यूहन्ना १४:२, ३; १ पतरस १:३, ४) यह कितनी शानदार आशा है! यीशु ने प्रेरित यूहन्ना को इस “छोटे झुण्ड” की गिनती बताई जो सिर्फ १,४४,००० होनी थी।—प्रकाशितवाक्य १४:१.
४ लेकिन, ये १,४४,००० स्वर्ग कैसे जाते हैं? यीशु ने “जीवन और अमरता को . . . सुसमाचार के द्वारा प्रकाशमान कर दिया।” अपने लहू के द्वारा उसने स्वर्ग में जानेवाले एक “नए और जीवते मार्ग” का अभिषेक किया। (२ तीमुथियुस १:१०; इब्रानियों १०:१९, २०) पहले, वह मरा, जैसा कि बाइबल में पहले से ही बताया गया था। (यशायाह ५३:१२) और फिर जैसा प्रेरित पतरस कहता है, “इसी यीशु को परमेश्वर ने जिलाया, जिस के हम सब गवाह हैं।” (प्रेरितों २:३२) लेकिन यीशु को मनुष्य के रूप में जिलाया नहीं गया था। उसने खुद कहा था: “जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूंगा, वह मेरा मांस है।” (यूहन्ना ६:५१) इस शरीर को वापस लेने का मतलब होता कि उसने कोई भी बलिदान नहीं दिया। इसलिए यीशु “शरीर के भाव से तो घात किया गया, पर आत्मा के भाव से जिलाया गया।” (१ पतरस ३:१८) इस तरह यीशु ने “छोटे झुण्ड” के लिए “अनन्त छुटकारा प्राप्त किया”। (इब्रानियों ९:१२) उसने पापी मानवजाति के लिए छुड़ौती के तौर पर अपना सिद्ध मानवी जीवन परमेश्वर को पेश किया और १,४४,००० इसका फायदा उठानेवालों में से पहले थे।
५. पहली सदी में यीशु के चेलों के सामने कौन-सी आशा रखी गई थी?
५ स्वर्गीय जीवन के लिए पुनरुत्थान पानेवाला अकेला यीशु ही नहीं। पौलुस ने रोम में रहनेवाले अपने संगी मसीहियों को बताया था कि पवित्र आत्मा से उन्हें अभिषिक्त किया गया है जिससे वे परमेश्वर के पुत्र और मसीह के संगी वारिस बन सकें लेकिन तभी अगर वे अंत तक धीरज धरकर, अभिषिक्त होने का सबूत देंगे। (रोमियों ८:१६, १७) पौलुस ने यह भी समझाया: “यदि हम उस की मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे।”—रोमियों ६:५.
पुनरुत्थान की आशा का समर्थन
६. पुनरुत्थान की शिक्षा पर कुरिन्थ में क्यों सवाल उठाए गए और प्रेरित पौलुस ने इसका किस तरह जवाब दिया?
६ पुनरुत्थान मसीहियत की शिक्षा की ‘आरम्भ की बातें’ हैं। (इब्रानियों ६:१, २) फिर भी कुरिन्थ में इस शिक्षा पर सवाल उठाया जा रहा था। कलीसिया के कुछ लोग शायद यूनानी तत्वज्ञान के बहकावे में आकर यह कहने लगे थे कि “मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं।” (१ कुरिन्थियों १५:१२) जब इस बात की खबर प्रेरित पौलुस के पास पहुँची, तब उसने पुनरुत्थान की आशा के बारे में खासकर अभिषिक्त मसीहियों की आशा के बारे में बात की और उसे पूरा समर्थन दिया। आइए अब हम १ कुरिन्थियों के १५ अध्याय में लिखी पौलुस की बातों पर गौर करें। जैसा पिछले लेख में बताया गया था अगर आपने इस अध्याय को पूरा पढ़ा है तो यह आपके लिए फायदेमंद होगा।
७. (क) पौलुस चर्चा के किस मुख्य विषय पर ध्यान खींचता है? (ख) पुनरुत्थित यीशु को किस-किसने देखा था?
७ पहला कुरिन्थियों के १५ अध्याय की पहली दो आयतों में पौलुस चर्चा का विषय बताता है: “हे भाइयो, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूं जो पहिले सुना चुका हूं, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था और जिस में तुम स्थिर भी हो . . . नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ हुआ।” अगर कुरिन्थ के मसीही सुसमाचार में स्थिर नहीं रहते तो उन्हें सच्चाई स्वीकार करने का कोई फायदा नहीं होता। पौलुस आगे कहता है: “मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। और गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा। और कैफा को तब बारहों को दिखाई दिया। फिर पांच सौ से अधिक भाइयों को एक साथ दिखाई दिया, जिन में से बहुतेरे अब तक वर्तमान हैं पर कितने सो गए। फिर याकूब को दिखाई दिया तब सब प्रेरितों को दिखाई दिया। और सब के बाद मुझ को भी दिखाई दिया, जो मानो अधूरे दिनों का जन्मा हूं।”—१ कुरिन्थियों १५:३-८.
८, ९. (क) पुनरुत्थान में विश्वास करना क्यों ज़रूरी है? (ख) शायद किस वक्त यीशु “पांच सौ से अधिक भाइयों” को दिखायी दिया होगा?
८ जिन लोगों ने सुसमाचार को स्वीकार किया था, उनके लिए यीशु के पुनरुत्थान में विश्वास करना अपनी मरज़ी की बात नहीं थी। इस बात के बहुत से चश्मदीद गवाह थे कि “मसीह हमारे पापों के लिये मर गया” और जिलाया गया। उन गवाहों में से एक था कैफा जिसे पतरस नाम से जाना जाता है। जिस रात यीशु के साथ विश्वासघात किया गया और उसे पकड़वाया गया, उस रात पतरस के यीशु को पहचानने से इंकार करने के बावजूद जब यीशु उस पर प्रकट हुआ तो उसे बहुत तसल्ली मिली होगी। “बारहों” यानी प्रेरितों से भी यीशु अपने पुनरुत्थान के बाद मिला—इस अनुभव ने वाकई उनका डर दूर किया होगा और यीशु के पुनरुत्थान की बेधड़क गवाही देने में उनकी मदद की होगी।—यूहन्ना २०:१९-२३; प्रेरितों २:३२.
९ मसीह “पांच सौ से अधिक भाइयों” के एक बड़े समूह को भी दिखायी दिया। क्योंकि उसके इतने सारे चेले सिर्फ गलील में ही थे इसलिए यह तब हुआ होगा जब उसने चेला बनाने की आज्ञा दी होगी जो मत्ती २८:१६-२० में लिखी है। ये लोग इस बात की कितनी ठोस गवाही दे सकते थे? उनमें से कुछ सा.यु. ५५ में ज़िंदा थे जब पौलुस ने कुरिन्थियों को यह पहली पत्री लिखी। ध्यान दीजिए कि उस वक्त तक जो मर गए थे उनके बारे में कहा गया था कि वे “सो गए” हैं। तब तक उन्होंने अपना स्वर्गीय प्रतिफल नहीं पाया था।
१०. (क) यीशु की अपने चेलों के साथ आखिरी मुलाकात का असर क्या हुआ? (ख) यीशु पौलुस को कैसे दिखायी दिया ‘जो मानो अधूरे दिनों का जन्मा था’?
१० यीशु के पुनरुत्थान का एक और खास गवाह था याकूब जो यूसुफ और यीशु की माँ मरियम का बेटा था। यीशु के पुनरुत्थान से पहले याकूब विश्वासी नहीं था। (यूहन्ना ७:५) लेकिन यीशु को देखने के बाद उसने विश्वास किया और अपने बाकी भाइयों को विश्वास दिलाने में शायद उसी का हाथ था। (प्रेरितों १:१३, १४) अपने चेलों से आखिरी मुलाकात के वक्त जब यीशु स्वर्ग जानेवाला था तब उसने उन्हें “पृथ्वी की छोर तक . . . गवाह” होने का काम सौंपा। (प्रेरितों १:६-११) फिर वह तरसुस के शाऊल को दिखायी दिया जो मसीहियों को सताया करता था। (प्रेरितों २२:६-८) यीशु शाऊल को दिखायी दिया ‘जो मानो अधूरे दिनों का जन्मा था।’ यह ऐसा था कि पुनरुत्थान के नियुक्त समय से सदियों पहले मानो शाऊल स्वर्ग गया और यीशु को उसकी महिमा में देखा। इस अनुभव से, मसीहियों के खून के प्यासे शाऊल ने अपना मार्ग छोड़ा और अपनी ज़िंदगी में बहुत बड़ा बदलाव किया। (प्रेरितों ९:३-९, १७-१९) शाऊल ही आगे चलकर प्रेरित पौलुस कहलाया और मसीही विश्वास का सबसे बड़ा हिमायती बना।—१ कुरिन्थियों १५:९, १०.
पुनरुत्थान में विश्वास ज़रूरी
११. पौलुस इस विचार के गलत होने का कैसे परदाफाश करता है कि “मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं”?
११ यीशु के पुनरुत्थान के बहुत से गवाह थे। पौलुस तर्क करता है “सो जब कि मसीह का यह प्रचार किया जाता है, कि वह मरे हुओं में से जी उठा तो तुम में से कितने क्योंकर कहते हैं, कि मरे हुओं का पुनरुत्थान है ही नहीं?” (१ कुरिन्थियों १५:१२) इन लोगों को पुनरुत्थान के बारे में न सिर्फ खुद शक या सवाल थे बल्कि ये लोग इन्हें खुले आम बता रहे थे। इसलिए पौलुस उनके इस विचार के गलत होने का परदाफाश करता है। वह कहता है कि अगर मसीह जिलाया नहीं गया, तो मसीही संदेश झूठा है और जिन्होंने मसीह के जी उठने की गवाही दी थी वे “परमेश्वर के झूठे गवाह” थे। अगर मसीह का पुनरुत्थान नहीं हुआ तो परमेश्वर को कोई छुड़ौती नहीं दी गई; मसीही “अब तक अपने पापों में फंसे” हुए थे। (१ कुरिन्थियों १५:१३-१९; रोमियों ३:२३, २४; इब्रानियों ९:११-१४) और जो मसीही “सो गए” हैं, जैसे शहीद हुए मसीही, उनके लिए कोई आशा नहीं और वे नाश हो गए। मसीही कितने बेबस होते अगर उनके पास बस यही छोटा-सा जीवन होता! उनका दुःख उठाना व्यर्थ होता।
१२. (क) मसीह को ‘जो सो गए हैं, उन में पहिला फल’ कहने का क्या मतलब है? (ख) मसीह ने पुनरुत्थान कैसे मुमकिन बनाया?
१२ लेकिन यह बात नहीं थी। पौलुस आगे कहता है: “सचमुच मसीह मुर्दों में से जी उठा है।” और सबसे बढ़कर वह “जो सो गए हैं, उन में पहिला फल हुआ।” (१ कुरिन्थियों १५:२०) जब इस्राएलियों ने यहोवा को अपनी उपज का पहला फल दिया तब यहोवा ने उन्हें भरपूर फसल दी। (निर्गमन २२:२९, ३०; २३:१९; नीतिवचन ३:९, १०) मसीह को “पहिला फल” कहने से पौलुस का मतलब था कि और भी ऐसे लोगों की कटनी होगी जो मरने के बाद पुनरुत्थान पाकर स्वर्गीय जीवन पाएँगे। पौलुस कहता है, “क्योंकि जब [एक] मनुष्य के द्वारा मृत्यु आई; तो [एक] मनुष्य ही के द्वारा मरे हुओं का पुनरुत्थान भी आया। और जैसे आदम में सब मरते हैं, वैसा ही मसीह में सब जिलाए जाएंगे।” (१ कुरिन्थियों १५:२१, २२) यीशु ने अपने सिद्ध मानवी जीवन को देकर पुनरुत्थान मुमकिन बनाया और इससे मनुष्यजाति के लिए पाप और मृत्यु की गुलामी से छुटकारे का रास्ता खुल गया।—गलतियों १:४; १ पतरस १:१८, १९.a
१३. (क) स्वर्गीय पुनरुत्थान कब होता है? (ख) कैसे कुछ अभिषिक्त मसीही ‘नहीं सोते’?
१३ पौलुस आगे कहता है, “परन्तु हर एक अपनी अपनी बारी से; पहिला फल मसीह; फिर मसीह के आने पर उसके लोग।” (१ कुरिन्थियों १५:२३) यीशु का पुनरुत्थान सा.यु. ३३ में हुआ था। लेकिन उसके अभिषिक्त चेलों को—‘मसीह के लोगों को’—यीशु की शाही उपस्थिति के थोड़े समय बाद तक इंतज़ार करना पड़ता। जैसा बाइबल भविष्यवाणी से पता चलता है यह उपस्थिति १९१४ में शुरू हुई। (१ थिस्सलुनीकियों ४:१४-१६; प्रकाशितवाक्य ११:१८) उनका क्या होगा जो उसकी उपस्थिति के दौरान जीवित रहेंगे? पौलुस कहता है: “देखो, मैं तुम से भेद की बात कहता हूं: कि हम सब तो नहीं सोएंगे, परन्तु सब बदल जाएंगे। और यह क्षण भर में, पलक मारते ही पिछली तुरही फूंकते ही होगा: क्योंकि तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएंगे, और हम बदल जाएंगे।” (१ कुरिन्थियों १५:५१, ५२) यह साफ ज़ाहिर है कि मौत में सोए सभी अभिषिक्त जनों को पुनरुत्थान के लिए कब्रों में इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। जो मसीह की उपस्थिति के दौरान मरते हैं वे क्षण भर में बदल जाते हैं।—प्रकाशितवाक्य १४:१३.
१४. किस तरह अभिषिक्त जन ‘मरने के लिए बपतिस्मा लेते हैं?’
१४ पौलुस पूछता है “नहीं तो जो लोग मरने के लिए बपतिस्मा लेते हैं, वे क्या करेंगे? अगर मुर्दे जी उठते ही नहीं, तो फिर वे क्यों ऐसे होने के लिए बपतिस्मा लेते हैं? और हम भी क्यों हर घड़ी खतरे में पड़े रहते हैं?” (१ कुरिन्थियों १५:२९, ३०, NW) पौलुस यह नहीं कह रहा था कि जीवित लोग मरे हुओं के नाम पर बपतिस्मा लेते हैं, जैसा कि कितनी बाइबलों में अनुवाद किया गया है। आखिर बपतिस्मा चेले बनाने के काम से जुड़ा है और मरे हुए चेले नहीं बन सकते। (यूहन्ना ४:१) इसके बजाय, पौलुस जीवित मसीहियों के बारे में बात कर रहा था, जिनमें से कई खुद पौलुस की तरह “हर घड़ी खतरे में पड़े रहते” थे। अभिषिक्त मसीहियों ने ‘मसीह की मृत्यु का बपतिस्मा लिया’ था। (रोमियों ६:३) उनके अभिषिक्त होने के समय से लेकर, मानो उनका ऐसे मार्ग के लिए “बपतिस्मा” होने जा रहा था जिसमें आगे चलकर वे मसीह की तरह मरते। (मरकुस १०:३५-४०) मरने पर उनके पास स्वर्ग में महिमा के जीवन की आशा थी।—१ कुरिन्थियों ६:१४; फिलिप्पियों ३:१०, ११.
१५. पौलुस ने शायद किन खतरों का सामना किया हो, और इनका सामना करने में पुनरुत्थान पर विश्वास ने कैसे मदद की?
१५ पौलुस अब बताता है कि हर घड़ी उसने इतने खतरों का सामना किया था कि वह कह सकता था “मैं प्रतिदिन मरता हूं।” कहीं कुछ लोग यह न कहने लगें कि वह डींग मार रहा है, पौलुस इससे पहले कहता है, “हे भाइयो, मेरे उस घमण्ड के कारण जो मसीह यीशु हमारे प्रभु में तुम्हारे लिए है, मैं दृढ़तापूर्वक कहता हूँ।” जिन खतरों का उसने सामना किया था उनके उदाहरण के रूप में आयत ३२ में पौलुस ‘इफिसुस में बन-पशुओं से लड़ने’ की बात बताता है। अपराधियों को सज़ा देने के लिए रोमी उन्हें अकसर अखाड़े में जंगली जानवरों के बीच फेंक देते थे। अगर पौलुस जंगली जानवरों से लड़कर बचा तो वह सिर्फ यहोवा की मदद से ही बचा होगा। पुनरुत्थान की आशा के बिना ऐसा जीवन चुनना उसके लिए वाकई मूर्खता होती जिसमें उसे इस तरह के खतरों का सामना करना पड़ता। भविष्य में जीवन की आशा के बिना परमेश्वर की सेवा में आनेवाली कठिनाइयाँ सहने में और त्याग करने में कोई फायदा नहीं होता। “यदि मृतक जिलाए नहीं जाते” पौलुस कहता है “तो आओ, खाएं और पिएं, क्योंकि कल तो मरना ही है।”—१ कुरिन्थियों १५:३१, ३२, NHT. २ कुरिन्थियों १:८, ९; ११:२३-२७ देखिए।
१६. (क) “तो आओ, खाएं और पिएं, क्योंकि कल तो मरना ही है” यह विचार कहाँ से शुरू हुआ होगा? (ख) इस विचार को मानने के क्या-क्या खतरे थे?
१६ पौलुस ने शायद यशायाह २२:१३ का हवाला दिया, जिसमें आज्ञा न माननेवाले यरूशलेम के निवासियों की आशाहीन मनोवृत्ति बताई गई है। या उसके मन में शायद एपीक्यूरियों का विश्वास था, जो मृत्यु के बाद के जीवन की किसी भी शिक्षा को नहीं मानते थे, और जिनका मानना था कि इसी जीवन में सुख भोगना सबसे बढ़िया मार्ग है। बात चाहे कुछ भी क्यों न हो ‘खाओ-पीओ’ का तत्वज्ञान परमेश्वर की ओर से नहीं था। इसलिए पौलुस चेतावनी देता है: “धोखा न खाना, बुरी संगति अच्छे चरित्र को बिगाड़ देती है।” (१ कुरिन्थियों १५:३३) उन लोगों के साथ संगति करना खतरनाक हो सकता था, जो पुनरुत्थान को ठुकराते थे। कुरिन्थ की कलीसिया की जिन समस्याओं से पौलुस को निपटना था, उनमें ऐसी संगति का शायद बहुत बड़ा हाथ था। ये समस्याएँ थीं लैंगिक अनैतिकता, फूट, मुकद्दमेबाज़ी और प्रभु के संध्या भोज के लिए आदर की कमी।—१ कुरिन्थियों १:११; ५:१; ६:१, ११:२०-२२.
१७. (क) पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों को क्या नसीहत दी? (ख) किन सवालों का जवाब देना बाकी है?
१७ पौलुस कुरिन्थ के मसीहियों को एक बढ़िया नसीहत देता है, “धर्म के लिये जाग उठो और पाप न करो; क्योंकि कितने ऐसे हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते, मैं तुम्हें लज्जित करने के लिये यह कहता हूं।” (१ कुरिन्थियों १५:३४) पुनरुत्थान के बारे में गलत विचार की वज़ह से कुछ लोग आध्यात्मिक रूप से सो गए थे, मानो नशे में हों। उन्हें नींद से जागने, होश में आने की ज़रूरत थी। अभिषिक्त मसीहियों को भी आज आध्यात्मिक रूप से सचेत रहने की ज़रूरत है। उन पर इस दुनिया की अविश्वासी मनोवृत्ति का असर नहीं पड़ना चाहिए। उन्हें स्वर्गीय पुनरुत्थान के अपने विश्वास को थामे रहना चाहिए। लेकिन उस वक्त के कुरिन्थ के मसीहियों के लिए और आज हमारे लिए कई सवाल खड़े होते हैं। मिसाल के तौर पर १,४४,००० किस रूप में जी उठते हैं? उन लोगों का क्या होगा जो अब भी कब्रों में हैं और जिनकी स्वर्गीय जीवन की आशा नहीं थी? ऐसों के लिए पुनरुत्थान का क्या मतलब होगा? हमारे अगले लेख में हम पुनरुत्थान के बारे में पौलुस की बाकी चर्चा पर ध्यान देंगे।
[फुटनोट]
a छुड़ौती पर चर्चा के लिए फरवरी १५, १९९१ की प्रहरीदुर्ग (अंग्रेज़ी) देखिए।
क्या आपको याद है?
◻ पुनरुत्थान के बारे में यीशु क्या प्रकट करता है?
◻ यीशु के पुनरुत्थान का कौन-कौन गवाह था?
◻ पुनरुत्थान की शिक्षा पर हमला क्यों किया गया और पौलुस का जवाब क्या था?
◻ अभिषिक्त मसीहियों के लिए पुनरुत्थान में विश्वास रखना क्यों ज़रूरी है?
[पेज 15 पर तसवीर]
याईर की बेटी इस बात का सबूत थी कि पुनरुत्थान मुमकिन था
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
पुनरुत्थान की आशा के बिना वफादार मसीहियों का शहीद होना बेकार था