यहोवा के करीब आने में लोगों की मदद करना
“बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।”—यूहन्ना १४:६.
१. यीशु ने स्वर्ग जाने से पहले अपने शिष्यों को कौन-सी आज्ञा दी और इस आज्ञा को मानकर यहोवा के साक्षियों ने क्या किया है?
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो।” (मत्ती २८:१९) यहोवा के साक्षियों ने पिछले दस सालों में तीस लाख से भी ज़्यादा लोगों की परमेश्वर के करीब आने में मदद की है। साक्षियों की मदद से इन लाखों लोगों ने परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए खुद को समर्पित करके बपतिस्मा लिया है। और हम भी कितने खुश होते हैं कि हम परमेश्वर के करीब आने में लोगों की मदद कर रहे हैं!—याकूब ४:८.
२. बहुत-से नए शिष्यों के बपतिस्मा लेने के बावजूद भी क्या हुआ है?
२ कुछ देशों में हालाँकि बहुत-से नए शिष्यों ने बपतिस्मा लिया है मगर राज्य के प्रचारकों की संख्या में कोई खास बढ़त नहीं हुई है। बेशक, इसका एक कारण कुछ लोगों की मृत्यु हो सकती है। आमतौर पर, दुनिया भर में हर साल सौ लोगों में से एक व्यक्ति की मृत्यु होती है। मगर असल कारण तो यह है कि पिछले कुछ सालों में काफी लोगों ने सच्चाई का रास्ता छोड़ दिया है। इसकी क्या वज़ह हो सकती है? यह लेख और अगला लेख इस बात पर चर्चा करेगा कि लोग यहोवा के करीब कैसे आते हैं और फिर क्यों कुछ लोग यहोवा से दूर भी चले जाते हैं।
हमारे प्रचार का मकसद
३. (क) यीशु के शिष्य और प्रकाशितवाक्य १४:६ का स्वर्गदूत कैसे एक ही काम में लगे हुए हैं? (ख) राज्य के संदेश की तरफ लोगों का ध्यान खींचने का एक अच्छा तरीका कौन-सा है मगर इसमें कौन-सी मुश्किल खड़ी होती है?
३ इस ‘अन्त के समय’ में यीशु के शिष्यों को ‘राज्य के सुसमाचार’ का “[सच्चा] ज्ञान” फैलाने का काम दिया गया है। (दानिय्येल १२:४; मत्ती २४:१४) और बीच आकाश में उड़नेवाला स्वर्गदूत भी यही काम कर रहा है, जो “पृथ्वी पर के रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार” का प्रचार कर रहा है। (प्रकाशितवाक्य १४:६) आज लोग पूरी तरह से रोज़मर्रा ज़िंदगी की मुश्किलों में उलझे हुए हैं। इसलिए अगर हम चाहते हैं कि लोगों का ध्यान यहोवा परमेश्वर के राज्य की तरफ खींचें और उन्हें उसके करीब लाएँ तो अकसर एक अच्छा तरीका यह होता है कि हम उन्हें खूबसूरत नई दुनिया में हमेशा-हमेशा तक जीने की आशा दें। जबकि ऐसा करना ठीक भी है, लेकिन, अगर कोई बस नई दुनिया तक पहुँचने के लिए ही परमेश्वर के लोगों के साथ संगति करता है तो उसके लिए जीवन तक पहुँचानेवाले सकरे मार्ग पर चलते रहना मुश्किल है।—मत्ती ७:१३, १४.
४. यीशु और बीच आकाश में उड़नेवाले स्वर्गदूत ने जो कहा उसके मुताबिक हमारे प्रचार का मकसद क्या है?
४ यीशु ने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।” (यूहन्ना १७:३) और बीच आकाश में उड़ता हुआ एक स्वर्गदूत “सनातन सुसमाचार” का ऐलान कर रहा है और पृथ्वी के रहनेवालों से कहता है: “परमेश्वर से डरो; और उस की महिमा करो; क्योंकि उसके न्याय करने का समय आ पहुंचा है, और उसका भजन करो, जिस ने स्वर्ग और पृथ्वी और समुद्र और जल के सोते बनाए।” (प्रकाशितवाक्य १४:६, ७) इन दोनों आयतों से ज़ाहिर होता है कि यीशु के ज़रिए लोगों को परमेश्वर यहोवा के करीब लाना ही हमारे प्रचार का असली मकसद है।
यहोवा के काम में हमारी भूमिका
५. पौलुस और यीशु द्वारा कही गई कौन-सी बात दिखाती है कि हम अपना नहीं बल्कि परमेश्वर का काम कर रहे हैं?
५ अपने अभिषिक्त भाइयों को “मेल मिलाप की सेवा” के बारे में लिखते वक्त प्रेरित पौलुस समझाता है कि परमेश्वर किस तरह यीशु मसीह के बलिदान के आधार पर लोगों के साथ मेल मिलाप कर रहा है और उन्हें अपनी तरफ खींच रहा है। पौलुस कहता है कि लोगों से मेल-मिलाप करने के लिए “परमेश्वर, हमारे द्वारा विनती कर रहा है” और “हम मसीह की ओर से . . . निवेदन करते हैं कि परमेश्वर के साथ मेल मिलाप कर लो।” तो देखिए कितनी दिल छू लेनेवाली बात कही गई है कि हमारे द्वारा परमेश्वर मेल मिलाप कर रहा है! तो चाहे हम अभिषिक्त जनों में से “मसीह के राजदूत” हों या पृथ्वी पर जीने की आशा रखनेवाले उपराजदूत हों, एक बात हम कभी नहीं भूलेंगे कि प्रचार का काम हमारा नहीं बल्कि परमेश्वर का काम है। (२ कुरिन्थियों ५:१८-२०, NHT) असल में परमेश्वर ही लोगों को अपनी ओर और अपने पुत्र की ओर खींचता है और उन्हें सिखाता है। यीशु ने कहा: “कोई मेरे पास नहीं आ सकता, जब तक पिता, जिस ने मुझे भेजा है, उसे खींच न ले; और मैं उस को अंतिम दिन फिर जिला उठाऊंगा। भविष्यद्वक्ताओं के लेखों में यह लिखा है, कि वे सब परमेश्वर की ओर से सिखाए हुए होंगे। जिस किसी ने पिता से सुना और सीखा है, वह मेरे पास आता है।”—यूहन्ना ६:४४, ४५.
६. यहोवा किस तरीके से सारी दुनिया को हिला रहा है, साथ ही कौन लोग उसकी उपासना के “भवन” में सुरक्षा पा रहे हैं?
६ इन अंतिम दिनों में यहोवा लोगों को अपनी ओर कैसे खींच रहा है और कैसे उनके लिए “विश्वास का द्वार” खोल रहा है? (प्रेरितों १४:२७; २ तीमुथियुस ३:१) इसके लिए वह खासकर अपने साक्षियों को इस्तेमाल कर रहा है। इन्हीं के द्वारा वह लोगों तक उद्धार का संदेश पहुँचाता है और इस दुष्ट दुनिया के खिलाफ न्यायदंड सुनाता है। (यशायाह ४३:१२; ६१:१, २) साक्षियों के इस ऐलान से, सारी दुनिया हिलायी जा रही है जो इस बात का एक चिन्ह है कि जल्द ही परमेश्वर के दंड का भूचाल उस पर आ पड़ेगा। साथ ही, परमेश्वर की नज़रों में जो ‘मनभावने’ हैं, वे इस दुनिया से निकाले जा रहे हैं और वे परमेश्वर के “भवन” में जाकर सुरक्षा पा रहे हैं, जहाँ सच्ची उपासना होती है। इस तरह यहोवा अपनी भविष्यवाणी पूरी करता है, जिसे हाग्गै ने लिखा था: “मैं सारी जातियों को हिलाऊंगा, और सब जातियों की धन-सम्पत्ति [“मनभावनी वस्तुएं”] यहां आएगी, और मैं इस भवन को महिमा से भर दूंगा।”—हाग्गै २:६, ७, NHT; प्रकाशितवाक्य ७:९, १५.
७. यहोवा किस तरह लोगों का मन खोलकर उन्हें अपने और अपने पुत्र के करीब खींच लेता है?
७ यहोवा ‘सारी जातियों की इन मनभावनी वस्तुओं’ का, यानी उसका भय माननेवालों का मन खोल देता है ताकि वे साक्षियों की ‘बातों पर चित्त लगाएँ।’ (हाग्गै २:७; प्रेरितों १६:१४) पहली सदी की तरह आज भी, जब खरे मन के लोग मदद के लिए परमेश्वर को पुकारते हैं, तो यहोवा कभी-कभी स्वर्गदूतों के ज़रिए साक्षियों को उन तक पहुँचाता है। (प्रेरितों ८:२६-३१) और जब ये लोग जान लेते हैं कि परमेश्वर ने अपने पुत्र यीशु मसीह के ज़रिए उनके लिए कितना प्यार भरा इंतज़ाम किया है तो वे यहोवा के इस प्रेम से उसके करीब खिंचे चले आते हैं। (१ यूहन्ना ४:९, १०) जी हाँ, परमेश्वर अपने सच्चे प्यार या “करुणा” से लोगों को अपने और अपने पुत्र के करीब खींच लेता है।—यिर्मयाह ३१:३.
यहोवा किसको अपनी ओर खींचता है?
८. किस प्रकार के लोगों को परमेश्वर अपनी ओर खींचता है?
८ जो यहोवा को ढूँढ़ते हैं, यहोवा उन्हें अपने और अपने बेटे के करीब खींच लेता है। (प्रेरितों १७:२७) इनमें ऐसे लोग हैं जो ईसाईजगत और दरअसल सारी दुनिया में “किए जानेवाले सब घृणित कार्यों के लिए आहें भरते और कराहते हैं।” (यहेजकेल ९:४, NHT) और वे लोग भी हैं जिनमें ‘आध्यात्मिक बातों की भूख-प्यास’ है। (मत्ती ५:३, NW) वाकई, ये ‘पृथ्वी के नम्र’ लोग हैं, जिन्हें परमेश्वर आनेवाली खूबसूरत नयी दुनिया में हमेशा-हमेशा का जीवन देगा।—सपन्याह २:३.
९. यहोवा क्या देखकर जान लेता है कि कोई व्यक्ति ‘अनन्त जीवन के लिये’ लायक है या नहीं और उसे कैसे अपनी ओर खींच लेता है?
९ यहोवा मनुष्य के दिल की बात पढ़ लेता है। राजा दाऊद ने अपने बेटे सुलैमान से कहा: “यहोवा मन को जांचता और विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है उसे समझता है। यदि तू उसकी खोज में रहे, तो वह तुझ को मिलेगा।” (१ इतिहास २८:९) एक व्यक्ति के मन में क्या है और उसका स्वभाव कैसा है, यह देखकर यहोवा जान लेता है कि क्या वह उन इंतज़ामों को स्वीकार करेगा या नहीं जो यहोवा ने पापों की क्षमा पाने और नयी दुनिया में अनंत जीवन पाने के लिए किए हैं। (२ पतरस ३:१३) यहोवा अपने वचन, बाइबल के ज़रिये लोगों को अपने और अपने पुत्र के करीब खींच लेता है। वह अपने साक्षियों के ज़रिये इस वचन का प्रचार करवाता है और सिखाता है, इस तरह “अनन्त जीवन के लिये ठहराए गए” लोग “विश्वास” करने लगते हैं।—प्रेरितों १३:४८.
१०. क्या बात दिखाती है कि यहोवा लोगों को अनन्त जीवन के लिए नहीं ‘ठहराता’ और पहले से ही उनका भाग्य नहीं लिख देता?
१० तो क्या इसका मतलब यह है कि यहोवा कुछ लोगों को अनन्त जीवन के लिए ‘ठहराता’ है और कुछ लोगों को नहीं? क्या वह लोगों का भाग्य लिखता है? हरगिज़ नहीं! परमेश्वर उन्हीं लोगों को अपनी ओर खींचता है, जो अपनी इच्छा से उसके पास आना चाहते हैं। परमेश्वर ने हर इंसान को अपना-अपना चुनाव करने की आज़ादी दी है इसलिए वह किसी को ज़बरदस्ती अपनी ओर नहीं खींचता। यहोवा ने आज दुनिया में रहनेवाले सभी लोगों के सामने वही चुनाव रखा है जो उसने करीब ३,००० साल पहले इस्राएलियों के सामने रखा था। मूसा के ज़रिये यहोवा ने इस्राएलियों से कहा: “सुन, आज मैं ने तुझ को जीवन और मरण, हानि और लाभ दिखाया है। . . . मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे साम्हने इस बात की साक्षी बनाता हूं, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें; इसलिये अपने परमेश्वर यहोवा से प्रेम करो, और उसकी बात मानो, और उस से लिपटे रहो; क्योंकि तेरा जीवन और दीर्घजीवन यही है।”—व्यवस्थाविवरण ३०:१५-२०.
११. इस्राएलियों को जीवन का चुनाव करने के लिए क्या करना था?
११ ध्यान दीजिए कि अगर इस्राएलियों को जीवन चाहिए था तो उन्हें ‘यहोवा से प्रेम करना, उसकी बात मानना और उससे लिपटे रहना’ था। जब ये बातें उनसे कही गयी थीं तब तक उन्होंने वादा किए हुए देश को अपने कब्ज़े में नहीं लिया था। वे मोआब के मैदानों में ठहरे हुए थे और यरदन नदी पार करने और वादा किए हुए कनान देश में प्रवेश करने की तैयारी में थे। इसलिए अगर वे ऐसे वक्त पर उस “अच्छे और बड़े” देश के बारे में सपने बुनते, जहाँ “दूध और मधु की धारा बहती” थी, तो इसमें कोई गलत बात नहीं थी। (निर्गमन ३:८) मगर फिर भी, उस देश में पहुँचने का उनका सपना तभी सच होता जब वे यहोवा से प्रेम करते, उसकी बात मानते और उससे लिपटे रहते। मूसा ने उनसे यह बात साफ कह दी थी: “यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करेगा, जिनका आदेश आज मैं तुझे दे रहा हूं, यदि तू अपने प्रभु परमेश्वर से प्रेम करेगा और उसके मार्ग पर चलेगा, यदि तू उसकी आज्ञाओं, संविधियों और न्याय सिद्धान्तों का पालन करेगा, तो तू जीवित रहेगा, और असंख्य होगा। प्रभु परमेश्वर तुझ को उस देश में, जिस पर अधिकार करने के लिए तू वहां जा रहा है, आशीष देगा।” (तिरछे टाइप हमारे)—व्यवस्थाविवरण ३०:१६, न्यू हिंदी बाइबल।
१२. इस्राएलियों के बारे में बतायी गयी बात से हमें अपने प्रचार और सिखाने के काम के बारे में क्या सीखना चाहिए?
१२ इस्राएलियों के बारे में ऊपर बतायी गयी बात से, इस अंत के समय में हमें अपने प्रचार और सिखाने के काम के बारे में क्या सीखना चाहिए? इस्राएलियों की तरह हम भी वादा की हुई नई दुनिया के बारे में अकसर सोचते हैं और प्रचार के दौरान भी इसके बारे में बात करते हैं। लेकिन अगर हम और जिन्हें हम सिखाते हैं, वे लोग भी सिर्फ नयी दुनिया के लिए ही परमेश्वर की सेवा कर रहे हैं तो हम उस नयी दुनिया तक नहीं पहुँच पाएँगे। जैसे इस्राएलियों को करना था वैसे ही हमें और जिन्हें हम सिखाते हैं, उन्हें भी, ‘यहोवा से प्रेम करना, उसकी बात सुनना और उससे लिपटे रहना’ चाहिए। और अगर हम यही बात मन में रखकर प्रचार करें तो लोगों को हम सही मायनों में परमेश्वर की तरफ खिंचे चले आने में मदद दे रहे होंगे और तभी हम यहोवा के साथ-साथ काम कर रहे होंगे।
परमेश्वर के सहकर्मी
१३, १४. (क) पहला कुरिन्थियों ३:५-९ के मुताबिक हम किस तरह परमेश्वर के सहकर्मी हैं? (ख) राज्य के प्रचारकों में बढ़ोतरी कौन ला रहा है और ऐसा हम क्यों कहते हैं?
१३ परमेश्वर के साथ-साथ हम कैसे काम करते हैं इसे समझाने के लिए पौलुस ने खेती के काम का उदाहरण दिया। उसने लिखा: “अपुल्लोस क्या है? और पौलुस क्या? केवल सेवक, जिन के द्वारा तुम ने विश्वास किया, जैसा हर एक को प्रभु ने दिया। मैं ने लगाया, अपुल्लोस ने सींचा, परन्तु परमेश्वर ने बढ़ाया। इसलिये न तो लगानेवाला कुछ है, और न सींचनेवाला, परन्तु परमेश्वर जो बढ़ानेवाला है। लगानेवाला और सींचनेवाला दोनों एक हैं; परन्तु हर एक व्यक्ति अपने ही परिश्रम के अनुसार अपनी ही मजदूरी पाएगा। क्योंकि हम परमेश्वर के सहकर्मी हैं; तुम परमेश्वर की खेती . . . हो।”—१ कुरिन्थियों ३:५-९.
१४ परमेश्वर के सहकर्मी होने के नाते हम लगातार ‘राज्य के वचन’ का बीज लोगों के दिल में लगाएँगे और अच्छी तैयारी के साथ दिलचस्पी दिखानेवालों के पास फिर से जाएँगे और बाइबल सिखाकर उन्हें सींचेंगे। अगर मिट्टी यानी उनका दिल अच्छा है, तो यहोवा अपना काम करेगा और उनके दिल में बाइबल की सच्चाई के बीज को बढ़ाएगा, जो आगे जाकर एक फलदार पेड़ बनेगा। (मत्ती १३:१९, २३) यहोवा ऐसे लोगों को अपने और अपने पुत्र के करीब खींचेगा। इसीलिए राज्य के प्रचारकों में जो बढ़ोतरी हो रही है, वह यहोवा का ही काम है क्योंकि वही लोगों के दिल के मुताबिक सच्चाई के बीज को बढ़ाता है और अपने और अपने पुत्र के करीब उनको खींच लेता है।
ऐसा निर्माण काम जो टिका रहे
१५. पौलुस ने कौन-से उदाहरण से दिखाया कि हम कैसे दूसरों के विश्वास को मज़बूत कर सकते हैं?
१५ जब प्रचारकों की संख्या बढ़ती है तो हमें बेहद खुशी होती है, मगर हम दिल से यह भी चाहते हैं कि वे हमेशा यहोवा को प्यार करते रहें, उसकी सुनते रहें और उससे लिपटे रहें। हमें बड़ा दुःख होता है जब हम कुछ लोगों को ठंडे पड़कर सच्चाई का रास्ता छोड़ते हुए देखते हैं। इसे कैसे रोका जा सकता है? पौलुस हमें एक और उदाहरण देता है जिसमें वह बताता है कि लोगों के विश्वास को मज़बूत करने के लिए हम कैसे मदद कर सकते हैं। वह लिखता है: “उस नेव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है: कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता। और यदि कोई इस नेव पर सोना या चान्दी या बहुमोल पत्थर या काठ या घास या फूस का रद्दा रखे। तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिये कि आग के साथ प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है?।”—१ कुरिन्थियों ३:११-१३.
१६. (क) पौलुस अपने पहले उदाहरण में क्या ज़ाहिर करता है जबकि उसका दूसरा उदाहरण किस बात पर ज़ोर देता है? (ख) हमारा निर्माण काम किस तरह कमज़ोर और आग में न टिकनेवाला हो सकता है?
१६ पौलुस ने खेती के उदाहरण से साफ ज़ाहिर किया कि बढ़त तब होती है जब मेहनत से बीज बोने, लगातार पानी डालने के बाद परमेश्वर उस पर आशीष देता है। जबकि, पौलुस का दूसरा उदाहरण इस बात पर ज़ोर देता है कि हरेक मसीही अपने निर्माण काम के लिए खुद ज़िम्मेदार है। क्या उसने एक मज़बूत नींव पर बढ़िया रद्दा रखकर निर्माण किया है? पौलुस सावधान करता है: “हर एक मनुष्य चौकस रहे, कि वह उस पर कैसा रद्दा रखता है।” (१ कुरिन्थियों ३:१०) हम दिलचस्पी जगाने के लिए किसी व्यक्ति को खूबसूरत नई दुनिया में अनंत जीवन की आशा के बारे में बताते हैं, मगर इसके बाद क्या? क्या हम सिर्फ बाइबल की बुनियादी बातें सिखाकर, बस इसी बात पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं कि अनंत जीवन पाने के लिए उसे क्या करना चाहिए? क्या हम बस यही सिखाते हैं: ‘अगर आप आनेवाली नयी दुनिया में हमेशा-हमेशा जीना चाहते हैं तो आपको स्टडी करनी चाहिए, मीटिंगों में जाना चाहिए और प्रचार का काम करना चाहिए’। अगर ऐसा है तो हम उस व्यक्ति के विश्वास का निर्माण एक मज़बूत नींव पर नहीं कर रहे और जो भी रद्दा रखेंगे वह शायद अग्नि परीक्षा में टिक न पाए या ज़्यादा समय तक चल न पाए। अगर हम लोगों से कहते हैं कि ‘अंत जल्द ही आएगा इसलिए अब कुछ साल तक यहोवा की सेवा कीजिए और बदले में आपको अनंत जीवन मिलेगा,’ तो यह ऐसा होगा, मानो हम नींव पर “काठ या घास या फूस का रद्दा” रखते हैं।
परमेश्वर और मसीह के लिए प्यार बढ़ाना
१७, १८. (क) अगर अंत तक विश्वास बनाए रखना है तो एक व्यक्ति को क्या करना ज़रूरी है? (ख) हम कैसे एक व्यक्ति की मदद कर सकते हैं ताकि यीशु उसके दिल में बस जाए?
१७ अंत तक विश्वास बनाए रखने के लिए ज़रूरी है कि यीशु मसीह के ज़रिए यहोवा परमेश्वर के साथ एक बहुत ही करीब का रिश्ता बनाएँ। और असिद्ध इंसान होने के नाते हम परमेश्वर के साथ ऐसा शांति का रिश्ता सिर्फ उसके पुत्र के ज़रिए ही बना सकते हैं। (रोमियों ५:१०) याद है यीशु ने कहा था: “बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।” दूसरों का विश्वास मज़बूत करने के लिए “उस नेव को छोड़ जो पड़ी है, और वह यीशु मसीह है: कोई दूसरी नेव नहीं डाल सकता।” तो इसका मतलब क्या है?—यूहन्ना १४:६; १ कुरिन्थियों ३:११.
१८ यीशु की नींव पर निर्माण करने का मतलब है कि बाइबल के विद्यार्थी को इस तरह सिखाना कि यीशु के लिए उसके दिल में बहुत ही गहरा प्यार पैदा हो। और ऐसा गहरा प्यार पैदा करने के लिए हम विद्यार्थी को यीशु के बारे में पूरा-पूरा ज्ञान देंगे कि वह कैसे हमारा छुड़ानेवाला है, कलीसिया का मुखिया है, प्यार करनेवाला महायाजक है और शासन करनेवाला एक राजा है। (दानिय्येल ७:१३, १४; मत्ती २०:२८; कुलुस्सियों १:१८-२०; इब्रानियों ४:१४-१६) यानी विद्यार्थी के लिए यीशु केवल एक किताबी व्यक्ति न होकर असल व्यक्ति बन जाए और उसके दिल में बस जाए। हमें अपने विद्यार्थी के लिए इस तरह प्रार्थना करनी चाहिए जिस तरह पौलुस ने इफिसुस के मसीहियों के लिए बिनती की थी। उसने लिखा: ‘मैं पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं, कि वह तुम्हें यह दान दे, कि विश्वास के द्वारा मसीह तुम्हारे हृदय में बसे कि तुम प्रेम में जड़ पकड़ो और नेव डालो।’—इफिसियों ३:१४-१७.
१९. अपने विद्यार्थी के दिल में यीशु के लिए प्यार बढ़ाने का नतीजा क्या होगा, लेकिन साथ ही उसे क्या समझाना ज़रूरी है?
१९ अगर हम इस तरह विद्यार्थी के दिल में मसीह के लिए प्यार बढ़ाएँ तो इससे उसके दिल में यहोवा के लिए भी प्यार बढ़ जाएगा। यीशु का प्यार, उसकी भावनाएँ, उसकी दया और उसके सभी गुण हू-ब-हू परमेश्वर के गुणों को दर्शाते हैं। (मत्ती ११:२८-३०; मरकुस ६:३०-३४; यूहन्ना १५:१३, १४; कुलुस्सियों १:१५; इब्रानियों १:३) सो जैसे-जैसे लोग यीशु को अच्छी तरह जानेंगे और उससे प्यार करेंगे, वैसे-वैसे वे यहोवा को भी ज़्यादा अच्छी तरह जानेंगे और उससे प्यार करने लगेंगे।a (१ यूहन्ना ४:१४, १६, १९) हमें बाइबल विद्यार्थी को यह समझाना ज़रूरी है कि मसीह ने इंसान के लिए जो कुछ किया है उसका कर्त्ता-धर्ता यहोवा ही है, इसलिए “उद्धारकर्त्ता” के नाते यहोवा ही हमारे धन्यवाद, हमारी स्तुति और उपासना पाने का हकदार है।—भजन ६८:१९, २०; यशायाह १२:२-५; यूहन्ना ३:१६; ५:१९.
२०. (क) हम लोगों को परमेश्वर और उसके पुत्र के करीब आने में कैसे मदद कर सकते हैं? (ख) अगला लेख किस विषय पर चर्चा करेगा?
२० आइए हम लोगों के दिल में परमेश्वर और उसके बेटे के लिए प्यार और विश्वास बढ़ाकर उन्हें उनके करीब आने में मदद करें। इस तरह हम परमेश्वर के साथ-साथ काम कर रहे होंगे। और फिर यहोवा उनका एक सच्चा दोस्त बन जाएगा। (यूहन्ना ७:२८) मसीह के ज़रिए वे परमेश्वर के साथ एक करीब का रिश्ता जोड़ सकेंगे और वे उससे प्यार करेंगे और उससे लिपटे रहेंगे। यह प्यार उन्हें सिर्फ कुछ साल तक नहीं बल्कि सदा तक यहोवा की सेवा करने के लिए उकसाता रहेगा और वे पक्का विश्वास रखेंगे कि यहोवा अपने ठहराए हुए समय पर अपना शानदार वादा पूरा करेगा। (विलापगीत ३:२४-२६; इब्रानियों ११:६) विश्वास, आशा और प्यार बढ़ाने में दूसरों की मदद करते वक्त यह भी ज़रूरी है कि हम खुद अपना विश्वास भी दृढ़ करें ताकि यह एक ऐसे मज़बूत जहाज़ की तरह हो जो प्रचंड तूफानों का भी सामना कर सके। और अगला लेख इसी विषय पर चर्चा करेगा।
[फुटनोट]
a यीशु को अच्छी तरह समझने में वह सर्वश्रेठ मनुष्य जो कभी जीवित रहा किताब लोगों की मदद कर सकती है और इससे वे उसके पिता यहोवा को भी अच्छी तरह जान पाएँगे। यह किताब वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित की गयी है।
क्या आपको याद है?
◻ हम राज्य के संदेश में अकसर लोगों की दिलचस्पी किस तरह से जगाते हैं, मगर खतरा क्या है?
◻ किस प्रकार के लोगों को यहोवा अपने और अपने पुत्र के करीब खींच लेता है?
◻ वादा किए हुए देश में पहुँचने के लिए इस्राएलियों को क्या करना था और हम इससे क्या सीख सकते हैं?
◻ लोगों को यहोवा और उसके पुत्र के करीब लाने में हम कौन-सी भूमिका अदा करते हैं?
[पेज 10 पर तसवीर]
हालाँकि हम लोगों को नई दुनिया में हमेशा-हमेशा जीने की आशा देते हैं लेकिन हमारा असल मकसद होना चाहिए लोगों को परमेश्वर के करीब लाना
[पेज 13 पर तसवीर]
अगर हम पुनःभेंट के लिए अच्छी तैयारी करके जाएँ तो सफल होंगे