“रोनेवालों के साथ रोओ”
“एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहो और एक-दूसरे को मज़बूत करते रहो।”—1 थिस्स. 5:11.
1, 2. इस लेख में हम क्या चर्चा करेंगे और क्यों? (लेख की शुरूआत में दी तसवीर देखिए।)
सूसी जिसके बेटे की मौत हो चुकी है कहती है, “हम हर दिन अपने बच्चे के लिए तड़पते हैं। उसकी मौत के एक साल बाद भी हमारा दुख हलका नहीं हुआ।” एक भाई बताता है कि जब उसकी पत्नी की अचानक मौत हुई तो उसके “शरीर में ऐसा दर्द उठा जिसे बयान करना मुश्किल है।” दुख की बात है कि दुनिया में कई लोग इस गम से गुज़र रहे हैं। मंडली में भी बहुत-से भाई-बहनों ने सोचा नहीं था कि हर-मगिदोन से पहले उन्हें अपनों से बिछड़ने का गम सहना पड़ेगा। शायद आपके किसी अज़ीज़ की मौत हुई हो या आप किसी को जानते हों जो यह गम सह रहा है। ऐसे में आप शायद सोचें, ‘इन दुखी लोगों को कहाँ से दिलासा मिल सकता है?’
2 कुछ लोग कहते हैं कि वक्त बड़े-से-बड़े घाव भर देता है। लेकिन क्या यह बात हमेशा सच होती है? एक विधवा ने कहा, “सिर्फ वक्त के गुज़रने से घाव नहीं भरता। असल में यह बात मायने रखती है कि हम वह वक्त कैसे गुज़ारते हैं।” शरीर पर लगे ज़ख्म ठीक होने के लिए वक्त के साथ-साथ मरहम-पट्टी की ज़रूरत होती है। उसी तरह, दिल के ज़ख्मों को भरने के लिए वक्त के साथ-साथ प्यार का मरहम भी ज़रूरी होता है। तो फिर सवाल है कि अपनों की मौत का गम सहनेवालों का दर्द कैसे कम हो सकता है?
यहोवा “हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है”
3, 4. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारा दर्द समझता है?
3 यहोवा हमारा दयालु पिता है। वही एक मुख्य ज़रिया है जिससे हमें दिलासा मिलता है। (2 कुरिंथियों 1:3, 4 पढ़िए।) वह दूसरों से बढ़कर हमारा दर्द समझता है और अपने लोगों से वादा करता है कि “दिलासा देनेवाला मैं ही हूँ।”—यशा. 51:12; भज. 119:50, 52, 76.
4 हमारे प्यारे पिता ने भी यह गम सहा है। उसने अब्राहम, इसहाक, याकूब, मूसा और राजा दाविद जैसे अपने अज़ीज़ों की मौत का दुख झेला है। (गिन. 12:6-8; मत्ती 22:31, 32; प्रेषि. 13:22) बाइबल बताती है कि यहोवा अपने इन वफादार सेवकों को ज़िंदा करने के लिए तरस रहा है। (अय्यू. 14:14, 15) ज़िंदा किए जाने के बाद उनकी ज़िंदगी खुशियों से भर जाएगी और वे सेहतमंद रहेंगे। लेकिन इन सेवकों के अलावा यहोवा ने अपने बेटे की मौत का गम भी सहा है। बाइबल बताती है कि यीशु परमेश्वर को बहुत “प्यारा” था। (मत्ती 3:17) हम सोच भी नहीं सकते कि यहोवा को कितनी तकलीफ हुई होगी जब उसने अपने बेटे को दर्दनाक मौत मरते देखा।—यूह. 5:20; 10:17.
5, 6. यहोवा किस तरह हमें दिलासा देता है?
5 हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा दुख की घड़ी में हमारी मदद ज़रूर करेगा। इसलिए हमें बेझिझक उससे प्रार्थना करनी चाहिए और उसे बताना चाहिए कि हम किस दर्द से गुज़र रहे हैं। हमें यह जानकर कितना सुकून मिलता है कि यहोवा हमारी भावनाओं को समझता है और हमें दिलासा देता है। लेकिन वह किस तरह हमें दिलासा देता है?
6 एक तरीका है अपनी पवित्र शक्ति देकर। (प्रेषि. 9:31) यीशु ने वादा किया था कि पिता अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्ति देगा। (लूका 11:13) सूसी जिसका पहले ज़िक्र किया गया था कहती है, “हमने कई बार घुटने टेककर और गिड़गिड़ाकर यहोवा से बिनती की कि वह हमें दिलासा दे। हर बार उसने हमारी सुनी और हमें वह शांति दी जिससे हमारे दिलो-दिमाग की हिफाज़त हुई।”—फिलिप्पियों 4:6, 7 पढ़िए।
यीशु भी हमारा दर्द समझता है
7, 8. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यीशु हमें दिलासा दे सकता है?
7 जब यीशु धरती पर था तो उसने अपनी बातों और कामों में हू-ब-हू अपने पिता जैसे गुण दिखाए। (यूह. 5:19) उसे धरती पर इसलिए भेजा गया कि वह “टूटे मनवालों” को और “शोक मनानेवाले सभी लोगों को” दिलासा दे। (यशा. 61:1, 2; लूका 4:17-21) लोग महसूस कर सकते थे कि यीशु उनकी तकलीफ समझता है और दिल से उनकी मदद करना चाहता है।—इब्रा. 2:17.
8 ज़ाहिर है कि यीशु ने छोटी उम्र से ही अपने करीबी दोस्तों और परिवार के लोगों को मरते देखा था। मिसाल के लिए, जब वह शायद एक लड़का ही था तब उसके पिता यूसुफ की मौत हो गयी।a ज़रा सोचिए, इतनी कम उम्र में उसे कितना दर्द सहना पड़ा होगा और अपनी माँ और भाई-बहनों को दुखी देखकर उस पर क्या बीती होगी।
9. लाज़र की मौत पर यीशु ने कैसे हमदर्दी जतायी?
9 अपनी सेवा के दौरान यीशु ने दिखाया कि वह लोगों का दर्द अच्छी तरह समझता है और उनसे हमदर्दी रखता है। मिसाल के लिए, जब उसके जिगरी दोस्त लाज़र की मौत हुई तो उसने मरियम और मारथा का दर्द महसूस किया। उसका दिल तड़प उठा और वह रो पड़ा। हालाँकि यीशु कुछ ही देर में लाज़र को ज़िंदा करनेवाला था फिर भी वह अपने आँसू रोक नहीं पाया।—यूह. 11:33-36.
10. हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि यीशु आज भी हमारा दर्द महसूस करता है?
10 यीशु ने जिस तरह दूसरों को दिलासा दिया था, उससे आज हमें कैसे मदद मिलती है? बाइबल साफ बताती है कि यीशु बदला नहीं है। इसमें लिखा है, “यीशु मसीह कल, आज और हमेशा तक एक जैसा है।” (इब्रा. 13:8) उसे ‘जीवन दिलानेवाला खास अगुवा’ कहा गया है यानी उसी की वजह से हमें हमेशा की ज़िंदगी की आशा मिलती है। यही नहीं, वह हमारा गम समझता है और “उन लोगों की मदद करने के काबिल है जिनकी परीक्षा ली जा रही है।” (प्रेषि. 3:15; इब्रा. 2:10, 18) हमें पूरा भरोसा है कि आज भी जब कोई दर्द से गुज़रता है तो यीशु उस दर्द को महसूस कर सकता है। वह उसके गम को समझता है और उसे “सही वक्त पर” दिलासा दे सकता है।—इब्रानियों 4:15, 16 पढ़िए।
‘शास्त्र से दिलासा पाएँ’
11. आपको खासकर किन आयतों से सुकून मिलता है?
11 लाज़र की मौत पर यीशु ने जो दर्द और पीड़ा महसूस की, उस बारे में पढ़कर हमें बहुत दिलासा मिलता है। लेकिन बाइबल में और भी कई आयतें हैं जिनसे हमें राहत और सुकून मिलता है और क्यों न हों, आखिर “जो बातें पहले से लिखी गयी थीं, वे इसलिए लिखी गयीं कि हम उनसे सीखें और शास्त्र से हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम दिलासा पाएँ ताकि हमारे पास आशा हो।” (रोमि. 15:4) अगर मौत ने किसी अपने को आपसे छीन लिया है, तो इन आयतों से आपको भी सुकून और दिलासा मिल सकता है:
“यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है, वह उन्हें बचाता है जिनका मन कुचला हुआ है।”—भज. 34:18, 19.
“जब चिंताएँ मुझ पर हावी हो गयीं, तब [यहोवा ने] मुझे दिलासा दिया, सुकून दिया।”—भज. 94:19.
“हमारा प्रभु यीशु मसीह और हमारा पिता यानी परमेश्वर जिसने हमसे प्यार किया और अपनी महा-कृपा के ज़रिए हमें सदा कायम रहनेवाला दिलासा दिया है और एक शानदार आशा दी है, वे दोनों तुम्हारे दिलों को दिलासा दें और तुम्हें . . . मज़बूत करें।”—2 थिस्स. 2:16, 17.b
मंडली से बहुत दिलासा मिल सकता है
12. हम किस तरह दूसरों को दिलासा दे सकते हैं?
12 अपनों की मौत का गम सहनेवालों को मसीही मंडली से भी दिलासा मिल सकता है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:11 पढ़िए।) आप किस तरह उन लोगों को हिम्मत और दिलासा दे सकते हैं जिनका ‘मन उदास’ है? (नीति. 17:22) याद रखिए, “चुप रहने का समय” है और “बोलने का समय” भी है। (सभो. 3:7) डालीन नाम की एक विधवा कहती है, “शोक मनानेवालों के मन में बहुत सारी बातें होती हैं। उन्हें अपनी भावनाओं को दिल में दबाकर रखने के बजाय किसी को बताना चाहिए।” इससे पता चलता है कि ऐसे व्यक्ति की मदद करने का सबसे बढ़िया तरीका है, बिना टोके उसकी बात सुनना। यूनिया जिसके भाई ने खुदकुशी की कहती है, “भले ही आप लोगों के गम को पूरी तरह समझ न पाए, लेकिन उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करना ही बड़ी बात है।”
13. हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?
13 हमें याद रखना चाहिए कि हर इंसान अपने दिल में एक-जैसा दर्द महसूस नहीं करता, न ही गम ज़ाहिर करने का उनका तरीका एक-जैसा होता है। कभी-कभी दूसरों को यह समझाना मुश्किल हो सकता है कि हम किस दर्द से गुज़र रहे हैं। परमेश्वर का वचन बताता है, “एक इंसान ही अपने दिल का दर्द जानता है और उसकी खुशी को कोई दूसरा नहीं समझ सकता।” (नीति. 14:10) अगर कोई बताता भी है कि उस पर क्या बीत रही है, तब भी दूसरों के लिए उसकी बात पूरी तरह समझना आसान नहीं।
14. गम सहनेवालों से हम क्या कह सकते हैं?
14 कभी-कभी हमें शायद यह समझ न आएँ कि हम गम सहनेवालों से क्या कहेंगे। लेकिन बाइबल बताती है, “बुद्धिमान की बातें मरहम का काम करती हैं।” (नीति. 12:18) जब आपका कोई अपना मर जाए ब्रोशर में अच्छे सुझाव दिए गए हैं कि हम दिलासा देने के लिए क्या कह सकते हैं।c लेकिन अकसर देखा गया है कि दिलासा देने का सबसे बेहतरीन तरीका है, ‘रोनेवालों के साथ रोना।’ (रोमि. 12:15) गैबी जिसके पति की मौत हो चुकी है कहती है, “कभी-कभी मैं अपना दुख बता नहीं पाती, बस रो पड़ती हूँ। जब मेरे दोस्त मेरे साथ रोते हैं तो मेरा मन हलका हो जाता है। उस वक्त मुझे लगता है कि मेरे दोस्त मेरा गम समझते हैं।”
15. जब आपको कुछ कहना मुश्किल लगता है, तो आप क्या कर सकते हैं? (बक्स “दिलासा और सुकून देनेवाली बातें” भी देखिए।)
15 अगर आपको गम सहनेवाले व्यक्ति से कुछ कहना मुश्किल लगता है, तो आप उसे एक कार्ड, ई-मेल, मैसेज या खत भेज सकते हैं। लिखते वक्त आप एक आयत का हवाला दे सकते हैं, मरे हुए व्यक्ति की किसी खूबी के बारे में बता सकते हैं या उसके साथ बिताए मीठे पल का ज़िक्र कर सकते हैं। यूनिया कहती है, “जब कोई चंद बातें लिखकर मेरा हौसला बढ़ाता है या कोई मुझे अपने घर बुलाता है तो मैं बता नहीं सकती कि मुझे कितनी खुशी होती है। मैं महसूस कर पाती हूँ कि भाई-बहन मुझसे प्यार करते हैं और मेरी परवाह करते हैं।”
16. दूसरों को दिलासा देने का एक बढ़िया तरीका क्या है?
16 प्रार्थना करके हम गम सहनेवाले भाई-बहनों की मदद कर सकते हैं। हम या तो उनके साथ या उनके लिए प्रार्थना कर सकते हैं। आप शायद उनके साथ प्रार्थना करने से झिझकें, इस डर से कि कहीं आप रो न पड़ें। लेकिन आपकी प्रार्थना उनके दिल को छू सकती है और उन्हें दिलासा दे सकती है। डालीन कहती है, “कभी-कभी जब बहनें मुझसे मिलने आती हैं तो मैं उन्हें प्रार्थना करने के लिए कहती हूँ। जैसे ही वे प्रार्थना शुरू करती हैं, उनका गला भर आता है। लेकिन फिर वे खुद को सँभाल लेती हैं और दिल छू लेनेवाली प्रार्थना करती हैं। ऐसा कई बार हुआ है। उन बहनों का मज़बूत विश्वास, प्यार और परवाह देखकर मेरा विश्वास मज़बूत हुआ है।”
दिलासा देते रहिए
17-19. हमें क्यों गम सहनेवालों को दिलासा देते रहना चाहिए?
17 एक व्यक्ति को गम से उबरने में कितना वक्त लगेगा, यह कहा नहीं जा सकता। जब उसके अज़ीज़ की मौत होती है तो शुरू-शुरू में कई दोस्त और रिश्तेदार उसे दिलासा देने आते हैं। कुछ समय बाद वे सब अपने-अपने कामों में व्यस्त हो जाते हैं, मगर उसे अभी-भी दिलासे की ज़रूरत होती है। इसलिए उसकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहिए। बाइबल बताती है, “सच्चा दोस्त हर समय प्यार करता है और मुसीबत की घड़ी में भाई बन जाता है।” (नीति. 17:17) हमें गम सहनेवालों को तब तक दिलासा देते रहना चाहिए जब तक उन्हें हमारी ज़रूरत हो।—1 थिस्सलुनीकियों 3:7 पढ़िए।
18 कभी-कभी ऐसा होता है कि कुछ तसवीरों, संगीत, खुशबू, आवाज़ या कामों से एक व्यक्ति को अपने अज़ीज़ की याद आए और उसके घाव हरे हो जाए। ऐसा तब भी होता है जब कोई मौसम या कुछ खास मौके आते हैं। जब एक मसीही पहली बार अपने जीवन-साथी के बगैर कोई काम करता है जैसे, किसी सम्मेलन या स्मारक में जाता है तो यह उसके लिए बहुत मुश्किल वक्त हो सकता है। एक भाई कहता है, “मेरी पत्नी के गुज़रने के बाद जब हमारी शादी की सालगिरह पास आ रही थी, तो मुझे लगा कि मैं यह दिन उसके बगैर कैसे गुज़ारूँगा। लेकिन फिर कुछ भाई-बहनों ने मेरे लिए एक कार्यक्रम रखा और मेरे करीबी दोस्तों को बुलाया ताकि मैं इस मौके पर अकेला न रहूँ।”
19 गम सहनेवालों को दूसरे मौकों पर भी दिलासे की ज़रूरत होती है। यूनिया कहती है, “जब भाई-बहन किसी खास मौके का इंतज़ार नहीं करते बल्कि कभी-भी घर आकर मेरे साथ वक्त बिताते हैं और मेरी मदद करते हैं तो मुझे बहुत खुशी होती है। उनके साथ बिताए ये पल बहुत कीमती हैं और इससे मुझे बहुत दिलासा मिला है।” यह सच है कि हम ऐसे लोगों का गम या अकेलापन पूरी तरह दूर नहीं कर सकते, लेकिन हम अलग-अलग तरीकों से मदद करके उन्हें दिलासा दे सकते हैं। (1 यूह. 3:18) गैबी कहती है, “मैं उन प्राचीनों के लिए यहोवा का बहुत एहसान मानती हूँ जिन्होंने मुश्किल घड़ी में मेरा साथ दिया। उनका प्यार और परवाह देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे यहोवा मेरे लिए प्यार और परवाह दिखा रहा है।”
20. यहोवा के वादों से हमें सच्चा दिलासा क्यों मिलता है?
20 बहुत जल्द यहोवा, जो हर तरह का दिलासा देनेवाला परमेश्वर है, मरे हुओं को ज़िंदा करेगा और सारे गम मिटा देगा। इस बात से हमें कितना दिलासा मिलता है! (यूह. 5:28, 29) परमेश्वर ने वादा किया है, “वह मौत को हमेशा के लिए मिटा देगा, सारे जहान का मालिक यहोवा हर इंसान के आँसू पोंछ देगा।” (यशा. 25:8, फु.) आज हम ‘रोनेवाले के साथ रोते’ हैं लेकिन उस वक्त हम ‘खुशी मनानेवालों के साथ खुशियाँ मनाएँगे।’—रोमि. 12:15.
a बाइबल से सुराग मिलता है कि यीशु जब 12 साल का था तब यूसुफ ज़िंदा था। लेकिन जब यीशु ने अपना पहला चमत्कार किया यानी पानी को दाख-मदिरा में बदला तब यूसुफ का कोई ज़िक्र नहीं मिलता। इस घटना के बाद भी बाइबल में कहीं उसके बारे में नहीं बताया गया है। इससे पता चलता है कि शायद यूसुफ उस वक्त तक मर चुका था। इसके अलावा, जब यीशु यातना के काठ पर था तब उसने प्रेषित यूहन्ना से कहा कि वह उसकी माँ की देखभाल करे। अगर यूसुफ ज़िंदा होता तो यीशु अपनी माँ के लिए यह इंतज़ाम नहीं करता।—यूह. 19:26, 27.
b ऐसी और भी आयतें हैं जिनसे कई लोगों को दिलासा मिला है। वे हैं, भजन 20:1, 2; 31:7; 38:8, 9, 15; 55:22; 121:1, 2; यशायाह 57:15; 66:13; फिलिप्पियों 4:13 और 1 पतरस 5:7.
c 2016 की प्रहरीदुर्ग के अंक 3 के पेज 6-7 पर दिया लेख, “जो अपनों से बिछड़ गए हैं, उन्हें दिलासा दीजिए” भी देखिए।