“हिम्मत न हारें”
“आओ हम बढ़िया काम करने में हार न मानें।”—गला. 6:9.
1, 2. क्या बात यहोवा के संगठन पर हमारा भरोसा बढ़ाती है?
हम विश्व में फैले यहोवा के संगठन का एक हिस्सा हैं, यह सोचकर ही हम दंग रह जाते हैं। यहेजकेल अध्याय 1 और दानिय्येल अध्याय 7 में दर्ज़ दर्शनों में साफ-साफ बताया गया है कि किस तरह यहोवा हालात का रुख बदल रहा है ताकि वह अपना मकसद पूरा कर सके। आज यीशु धरती पर यहोवा के संगठन की अगुवाई कर रहा है। वह प्रचार काम करने, लोगों की आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करने और नए लोगों को यहोवा के उपासक बनने में मदद दे रहा है। यह बात यहोवा के संगठन पर हमारा भरोसा और भी बढ़ाती है।—मत्ती 24:45.
2 क्या हम यहोवा के इस शानदार संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल रहे हैं? वक्त के गुज़रते हमारा जोश बढ़ा है या कम हुआ है? इन सवालों पर मनन करने से शायद हमें एहसास हो कि हमारा हौसला पस्त होता जा रहा है या फिर हमारा जोश ठंडा पड़ रहा है। वाकई ऐसा हो सकता है। पहली सदी के मसीहियों के साथ भी ऐसा हुआ था, इसलिए प्रेषित पौलुस ने उन्हें यीशु की मिसाल देकर उकसाया था। उसने कहा की यह मिसाल उन्हें ‘थककर हार न मानने’ में मदद करेगी। (इब्रा. 12:3) पिछले लेख में हमने देखा कि प्रचार काम को आगे बढ़ाने के लिए यहोवा अपने संगठन का इस्तेमाल किस तरह कर रहा है। और यह भी देखा कि इन बातों पर मनन करने से हम बिना हिम्मत हारे परमेश्वर की सेवा में अपना जोश कैसे बनाए रख सकते हैं।
3. हिम्मत न हारने के लिए हमें क्या करने की ज़रूरत है? इस लेख में हम किन बातों पर गौर करेंगे?
3 पौलुस ने बताया कि हमें हिम्मत न हारने के लिए कुछ कदम उठाने की ज़रूरत है। उसने कहा कि हमें “बढ़िया काम करने में” मेहनत करनी होगी। (गला. 6:9) आइए हम ऐसे पाँच पहलुओं पर गौर करें जिनसे हम अपना जोश बरकरार रख पाएँगे और यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल पाएँगे। ऐसा करने से हम जान पाएँगे कि हमें और हमारे परिवार को किन पहलुओं पर काम करना है।
हौसला पाने और उपासना के लिए इकट्ठा होइए
4. हम क्यों कह सकते हैं कि इकट्ठा होना सच्ची उपसाना का एक अहम हिस्सा है?
4 यहोवा के उपासक हमेशा से ही एक साथ इकट्ठा होते आए हैं। यहाँ तक की स्वर्ग में भी स्वर्गदूत, यहोवा के सामने इकट्ठा होते हैं। (1 राजा 22:19; अय्यू. 1:6; 2:1; दानि. 7:10) बीते समय में इसराएल राष्ट्र के लोग ‘सुनकर सीखने’ के लिए इकट्ठा होते थे। (व्यव. 31:10-12) पहली सदी के यहूदियों का सभा-घरों में जाकर शास्त्र पढ़ने का दस्तूर था। (लूका 4:16; प्रेषि. 15:21) यह इस बात का सबूत है कि जब से मसीही मंडली बनी है तब से लेकर अब तक, इकट्ठा होना यहोवा की उपासना का एक अहम हिस्सा रहा है। सच्चे मसीही जानते हैं कि वे आखिरी दिनों में जी रहे हैं इसलिए वे ‘प्यार और बढ़िया कामों में उकसाने के लिए एक-दूसरे में गहरी दिलचस्पी लेते हैं और एक-दूसरे की हिम्मत बंधाते हैं।’—इब्रा. 10:24, 25.
5. सभाओं में किस तरह हम एक-दूसरे की हिम्मत बँधाते हैं?
5 एक-दूसरे की हिम्मत बँधाने का एक तरीका है सभाओं में हिस्सा लेना। मिसाल के लिए, हम पैराग्राफ में दिए सवालों के जवाब देते हैं, बाइबल की आयतों को किस तरह लागू किया जाना चाहिए यह बताते हैं या फिर छोटे-छोटे अनुभवों के ज़रिए बताते हैं कि बाइबल सिद्धांत किस तरह हमारी मदद करते हैं। (भज. 22:22; 40:9) जी हाँ, हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि भले ही हम मसीही सभाओं में सालों से आ रहे हों, लेकिन आज भी बुज़ुर्ग और जवान भाई-बहनों के दिल से दिए जवाबों को सुनकर हमारा हौसला बढ़ता है।
6. सभाएँ किस तरह आध्यात्मिक मायने में हमारा जोश बनाए रखने में मदद करती हैं?
6 परमेश्वर ने नियमित तौर पर इकट्ठा होने पर क्यों इतना ज़ोर दिया? सभाएँ, अधिवेशन और सम्मेलन हमें निडर होकर परमेश्वर का वचन सुनाने और प्रचार के इलाके में लोगों की बेरुखी और विरोध का सामना करने में मदद देते हैं। (प्रेषि. 4:23, 31) बाइबल पर भाषण सुनकर हमारा हौसला बढ़ता है और विश्वास मज़बूत होता है। (प्रेषि. 15:32; रोमि. 1:11, 12) उपासना की जगह सीखी बातों से और भाई-बहनों की हौसला-अफज़ाई से हमें सच्ची खुशी मिलती है साथ ही, ‘विपत्ति के दिनों में चैन’ मिलता है। (भज. 94:12, 13) शासी निकाय की शिक्षा-समिति पूरी दुनिया में यहोवा के लोगों के लिए आध्यात्मिक इंतज़ामों की देखरेख करती है ताकि उन्हें हिदायतें दे सके। हम इन इंतज़ामों के लिए यहोवा के कितने शुक्रगुज़ार हैं कि वह साल-ब-साल, हफ्ते-दर-हफ्ते हमें आध्यात्मिक भोजन देता आ रहा है।
7, 8. (क) मसीही सभाओं का खास मकसद क्या है? (ख) सभाएँ किस तरह हमारी मदद करती हैं?
7 हम सभाओं में सिर्फ इसलिए नहीं जाते कि हमें उनसे फायदा पहुँचता है। इसके बजाय हमारा खास मकसद है, यहोवा की उपासना करना। (भजन 95:6 पढ़िए।) अपने महान परमेश्वर का गुणगान करने का हमें क्या ही बढ़िया सम्मान मिला है! (कुलु. 3:16) हम लगातार सभाओं में हाज़िर होकर और उनमें भाग लेकर यहोवा की उपासना करते हैं जिसका वह हकदार है। (प्रका. 4:11) इसलिए हमें उकसाया जाता है कि हम “एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होना न छोड़ें, जैसा कुछ लोगों का दस्तूर है।”—इब्रा. 10:25.
8 मसीही सभाएँ हमें यहोवा की तरफ से मिला एक तोहफा है, जो हमें इस दुष्ट व्यवस्था के अंत के आने तक डटे रहने में मदद करती हैं। क्या आप भी ऐसा ही सोचते हैं? अगर हाँ, तो व्यस्त होने के बावजूद सभाओं में हाज़िर होइए, जो हमारी ज़िंदगी में सबसे “ज़्यादा अहमियत” रखती हैं। (फिलि. 1:10) जब तक कोई वाजिब कारण न हो सभाओं में हाज़िर होने से मत चूकिए।
जोश के साथ प्रचार काम कीजिए
9. हम कैसे जान सकते हैं कि प्रचार का काम सबसे अहम है?
9 एक और तरीका जिससे हम यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल सकते हैं, वह है प्रचार काम में पूरा-पूरा हिस्सा लेना। यीशु जब धरती पर था, तब उसने इस काम की शुरूआत की। (मत्ती 28:19, 20) तब से लेकर आज तक, प्रचार और चेले बनाने का काम यहोवा के संगठन का सबसे अहम मकसद रहा है। कई उदाहरण इस बात का सबूत देते हैं कि स्वर्गदूत इस काम में हमारी मदद कर रहे हैं और “हमेशा की ज़िंदगी पाने के लायक अच्छा मन” रखनेवालों को ढूँढ़ने में हमारा मार्गदर्शन करते हैं। (प्रेषि. 13:48; प्रका. 14:6, 7) धरती पर यहोवा के संगठन का मकसद है, प्रचार काम को संगठित करना और उसे आगे बढ़ाना। क्या हमारी ज़िंदगी का भी खास मकसद प्रचार काम है?
10. (क) समझाइए कि हम सच्चाई के लिए अपना प्यार कैसे बनाए रख सकते हैं। (ख) प्रचार काम से किस तरह आपको हिम्मत के साथ डटे रहने में मदद मिलती है?
10 प्रचार में जोश के साथ काम करने से हम सच्चाई के लिए अपना प्यार बनाए रख पाएँगे। मिसाल के लिए एक पायनियर भाई मिचल जो लंबे समय से प्राचीन भी है कहता है: “मुझे लोगों को सच्चाई के बारे में बताना अच्छा लगता है। जब मैं प्रहरीदुर्ग या सजग होइए! में आए किसी नए लेख पर सोचता हूँ, तो मैं हैरान रह जाता हूँ कि किस तरह इन लेखों में बुद्धि-भरी सलाहें और गहरी समझ के साथ-साथ बढ़िया और कारगर बातें दी होती हैं। मैं प्रचार में इन्हें पेश करके देखना चाहता हूँ कि इनका लोगों पर क्या असर होता है और मैं कैसे उनकी दिलचस्पी जगा सकता हूँ। प्रचार में जाने से मैं अपना जोश बनाए रख पाता हूँ। मेरी हमेशा यही कोशिश रही है कि कोई भी बात प्रचार काम के आड़े न आने पाए।” ठीक इसी तरह, अगर हम यहोवा की सेवा में लगे रहें, तो इन आखिरी दिनों में भी हम हिम्मत के साथ डटे रह पाएँगे।—1 कुरिंथियों 15:58 पढ़िए।
आध्यात्मिक इंतज़ामों से फायदा पाइए
11. हमें क्यों साहित्य पढ़ना और उस पर मनन करना चाहिए?
11 यहोवा ने हमें साहित्यों के ज़रिए बहुतायत में आध्यात्मिक खाना दिया है ताकि हम मज़बूत बने रहें। शायद आपको वह दिन याद होगा जब आपने कोई साहित्य पढ़ा और आपको लगा, ‘यही तो मुझे चाहिए था! यह ऐसा था मानो यहोवा ने यह लेख बिलकुल मेरे लिए लिखा हो!’ ऐसा होना कोई इत्तफाक नहीं। इन साहित्यों के ज़रिए यहोवा हमें हिदायतें देता है और सही राह दिखाता है। वह कहता है: “मैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा।” (भज. 32:8) क्या हम मिलनेवाले हर साहित्य को पढ़कर उस पर मनन करते हैं? ऐसा करने से हम इन आखिरी दिनों में भी आध्यात्मिक मायने में फल लाएँगे और मुरझाएँगे नहीं।—भजन 1:1-3; 35:28; 119:97 पढ़िए।
12. आध्यात्मिक इंतज़ामों की कदर करने में क्या बात हमारी मदद करेगी?
12 हम आध्यात्मिक इंतज़ामों की कदर तभी कर पाएँगे, जब हमें इस बात का एहसास होगा कि इनके पीछे कितनी मेहनत लगती है। शासी निकाय की लेखन-समिति साहित्यों पर खोजबीन करने, उन्हें लिखने, पढ़कर उनकी कमियाँ सुधारने (प्रूफरीडिंग), तस्वीरों के ज़रिए उन्हें समझाने और उनके अनुवाद काम की देखरेख करती है। ये सब करने के बाद ही इन्हें वेबसाइट पर डाला जाता है और छापा जाता है। जो शाखा दफ्तर इन साहित्यों की छपाई करते हैं वे इन्हें अलग-अलग इलाकों की मंडलियों में भेजते हैं। यह सब क्यों किया जाता है? इसलिए कि लोगों को यहोवा की हिदायतें और निर्देशन मिल सकें और वे उसके वफादार बने रहें। (यशा. 65:13) आइए ठान लें कि हम यहोवा के संगठन के ठहराए हर इंतज़ाम का पूरा-पूरा फायदा उठाएँगे।—भज. 119:27.
संगठन के इंतज़ामों का साथ दीजिए
13, 14. कौन स्वर्ग में यहोवा के इंतज़ामों का साथ देते हैं? और हम कैसे धरती पर उसके इंतज़ामों का साथ दे सकते हैं?
13 प्रेषित यूहन्ना ने एक दर्शन में देखा कि यीशु सफेद घोड़े पर सवार होकर, यहोवा के खिलाफ बगावत करनेवालों पर जीत हासिल करते हुए आगे बढ़ रहा है। (प्रका. 19:11-15) यह जानकर हमारा विश्वास और मज़बूत होता है कि यीशु अकेला नहीं है बल्कि उसके साथ कई स्वर्गदूत हैं और वे अभिषिक्त-जन भी हैं जिन्हें स्वर्ग में रहने का इनाम मिल चुका है। (प्रका. 2:26, 27) यहोवा के ठहराए इंतज़ामों का साथ देने में इन्होंने क्या ही बढ़िया मिसाल रखी है!
14 उसी तरह, बड़ी भीड़ यीशु के अभिषिक्त भाइयों का साथ देती है जो आज धरती पर संगठन के कामों में अगुवाई ले रहे हैं। (जकर्याह 8:23 पढ़िए।) यहोवा ने अपने संगठन के ज़रिए जो इंतज़ाम किए हैं हम उनका साथ कैसे दे सकते हैं? एक तरीका है, अगुवाई लेनेवाले भाइयों के अधीन रहना। (इब्रा. 13:7, 17) इसकी शुरूआत हमें अपनी मंडली से करनी होगी। क्या हमारी बातों से मंडली के प्राचीनों और उनके किए कामों के लिए आदर झलकता है? क्या हम अपने बच्चों को बढ़ावा देते हैं कि वे इन वफादार भाइयों का आदर करें और इनसे बाइबल की सलाह पाएँ? साथ ही, क्या हम अपने परिवार के सदस्यों के साथ इस बात पर चर्चा करते हैं कि पूरी दुनिया में हो रहे काम के लिए दान कैसे दें? (नीति. 3:9; 1 कुरिं. 16:2; 2 कुरिं. 8:12) क्या हम राज-घर की सफाई और उसके रख-रखाव में हिस्सा लेना एक सम्मान की बात समझते हैं? अगर हम इस तरह संगठन के इंतज़ामों का साथ देंगे तभी यहोवा की पवित्र शक्ति हम पर काम करेगी और इसकी मदद से हम आखिरी दिनों में धीरज धर पाएँगे।—यशा. 40:29-31.
बाइबल सिद्धांतों के मुताबिक ज़िंदगी बिताना
15. हमें बाइबल सिद्धांतों के मुताबिक जीने के लिए कड़ी मेहनत क्यों करनी पड़ती है?
15 यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चलने का एक और तरीका है, अपनी ज़िंदगी बाइबल में दिए सिद्धांतों के मुताबिक जीना और “जाँच कर पक्का करते रहना कि प्रभु को क्या भाता है।” (इफि. 5:10, 11) हमें लगातार अपनी असिद्धता, शैतान और उसकी दुष्ट दुनिया से लड़ना पड़ता है, ताकि हम इनके बुरे असर से दूर रह सकें। हमारे बीच ऐसे कई मसीही भाई-बहन हैं जो यहोवा के साथ अपने रिश्ते को कायम रखने के लिए, हर दिन कड़ा संघर्ष करते हैं। यकीन रखिए यहोवा इससे खुश होता है। अगर हम बिना हिम्मत हारे अपनी ज़िंदगी यहोवा के स्तरों के मुताबिक जीएँगे, तो इससे हमें संतोष मिलेगा और यहोवा की मंज़ूरी हम पर बनी रहेगी।—1 कुरिं. 9:24-27.
16, 17. (क) अगर हमने कोई गंभीर पाप किया है, तो हमें क्या करना चाहिए? (ख) ऐनी के उदाहरण से हम कैसे फायदा पा सकते हैं?
16 अगर हमने कोई गंभीर पाप किया है तब हमें क्या करना चाहिए? जल्द-से-जल्द मदद लीजिए। मामले को छिपाए रखने से बात और बिगड़ सकती है। याद रखिए, जब दाविद गंभीर पाप करके चुप रहा तो ‘कराहते कराहते उसकी हड्डियां पिघल गईं।’ (भज. 32:3) जी हाँ, पाप को छिपाए रखने से हमारी खुशी छिन जाती है और यहोवा के साथ हमारा रिश्ता टूट जाता है लेकिन “जो उनको मान लेता और छोड़ भी देता है, उस पर दया की जायेगी।”—नीति. 28:13.
17 एक मसीही बहन ऐनीa की मिसाल लीजिए। जब वह जवान थी उसने पायनियर सेवा शुरू की। समय के गुज़रते वह दोहरी ज़िंदगी जीने लगी और जिसका उस पर बुरा असर हुआ। वह कहती है: “मेरा मन मुझे हमेशा धिक्कारता था और मैं अकसर निराश और उदास रहती थी।” उसने क्या कदम उठाया? उसका कहना है कि एक दिन सभा में याकूब 5:14, 15 पर चर्चा हुई। तब उसे एहसास हुआ कि उसे मदद की ज़रूरत है और इसलिए वह प्राचीनों के पास गयी। बीते सालों को याद करके एनी कहती है: “वे आयतें मेरे लिए डॉक्टर के दवा परचे में लिखी दवाई की तरह थीं जिसे लेने के बाद मेरी बीमारी दूर हो गयी और मैं आध्यात्मिक रूप से ठीक हो गयी। यह दवा लेना इतना आसान नहीं था मगर इसमें ठीक करने की ज़बरदस्त ताकत थी। मैंने आयतों में दी हिदायतें मानी और इसका मुझ पर असर हुआ।” आज ऐनी नए जोश और साफ ज़मीर के साथ फिर से यहोवा की सेवा कर रही है।
18. हमें क्या ठान लेना चाहिए?
18 इन आखिरी दिनों में यहोवा के संगठन का हिस्सा होना हमारे लिए क्या ही सम्मान की बात है! आइए ठान लें कि हम हमेशा यहोवा के ठहराए इंतज़ामों की कदर करेंगे। साथ ही, परिवार के साथ मिलकर यहोवा की उपासना करने के लिए लगातार मंडली की सभाओं में हाज़िर होंगे, जोश के साथ प्रचार करेंगे और संगठन के इंतज़ामों का साथ देंगे। इसके अलावा हम मंडली में अगुवाई लेनेवालों को सहयोग देंगे और अपनी ज़िंदगी बाइबल सिद्धांतो के मुताबिक जीएँगे। ऐसा करने से हम यहोवा के संगठन के साथ कदम-से-कदम मिलाकर चल रहे होंगे और बढ़िया काम करने में हिम्मत नहीं हारेंगे।
a नाम बदल दिए गए हैं।