आगे बढ़ते जाइए—तरक्की करते रहिए
जब आपने पहली बार बाइबल सिद्धांतों को अपनी ज़िंदगी में लागू करना सीखा, तो आपके सोचने का ढंग, बातचीत करने का तरीका और आपका बर्ताव धीरे-धीरे बदलने लगा। परमेश्वर की सेवा स्कूल में दाखिला लेने से भी पहले आप में ये बदलाव आने लगे। अब तक आपने शायद इतनी तरक्की कर ली है कि अपना जीवन यहोवा को समर्पित करके बपतिस्मा भी ले लिया हो। तो क्या इस मुकाम तक पहुँच जाने के बाद आपको और आगे तरक्की करने की ज़रूरत नहीं? ऐसा बिलकुल नहीं है। आपका बपतिस्मा तो तरक्की के रास्ते पर बस एक शुरूआत है।
मसीही शिष्य तीमुथियुस, एक प्राचीन के तौर पर सेवा कर रहा था। फिर भी, पौलुस ने उससे कहा कि जो सलाह उसे मिलती है और जो ज़िम्मेदारियाँ उसे सौंपी गयी हैं, उनके बारे में वह ‘सोचता रहे’ और उन्हीं पर ‘ध्यान लगाए रहे’ ताकि उसकी “उन्नति सब पर प्रगट हो।” (1 तीमु. 4:12-15) इसलिए चाहे आपने अभी-अभी सच्चाई की राह पर चलना शुरू किया हो या आपको लंबा अरसा हो चुका हो, आपको हमेशा तरक्की करते रहना चाहिए।
ज्ञान और बदलाव
इफिसियों 3:14-19 में हम पढ़ते हैं कि प्रेरित पौलुस ने अपने मसीही भाई-बहनों के लिए प्रार्थना की कि सच्चाई की “चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई” के बारे में उन्हें “भली भांति समझने की शक्ति” मिले। इसी मकसद से यीशु ने मनुष्यों में दान दिए ताकि वे कलीसिया के लोगों को सिखा सकें, सुधार सकें और उनका हौसला बढ़ा सकें। परमेश्वर के प्रेरित वचन पर नियमित रूप से मनन करने के साथ-साथ अनुभवी शिक्षकों के मार्गदर्शन के मुताबिक चलने से, हम आध्यात्मिक रूप से आगे ‘बढ़’ सकते हैं।—इफि. 4:11-15, NW.
इस तरह आगे बढ़ने के लिए यह ज़रूरी है कि हम ‘मन को प्रेरित करनेवाली शक्ति में नए बनते जाएँ।’ (NW) इसका मतलब है, मन का ऐसा दृढ़ स्वभाव पैदा करना जो परमेश्वर और मसीह के स्वभाव जैसा हो। इसके लिए ज़रूरी है कि हम लगातार उन्हीं के विचारों पर गौर करें ताकि “नये मनुष्यत्व को पहिन” सकें। (इफि. 4:23, 24) जब आप सुसमाचार की किताबें पढ़ते हैं, जहाँ यीशु की ज़िंदगी की घटनाएँ दर्ज़ हैं, तो क्या आप मानते हैं कि इनमें मसीह का एक नमूना पेश किया गया है और उसी के मुताबिक आपको भी चलना है? क्या आप उन खास गुणों की पहिचान करने की कोशिश करते हैं जो यीशु ने दिखाए थे और फिर वैसे ही गुण दिखाने में कड़ी मेहनत करते हैं?—1 पत. 2:21.
इस मामले में आपने कितनी तरक्की की है, इसका पता आपकी बातचीत से लगाया जा सकता है। जिन लोगों ने नया मनुष्यत्व पहना है, वे झूठ नहीं बोलते, गाली-गलौज नहीं करते, गंदी और अश्लील बातें नहीं कहते, ना ही कड़वी और चुभनेवाली बात करते हैं। इसके बजाय, उनकी ज़बान से निकले शब्द ‘उन्नति के लिये उत्तम होते हैं, और उस से सुननेवालों पर अनुग्रह’ होता है। (इफि. 4:25, 26, 29, 31; 5:3, 4; यहू. 16) वे अपने निजी जीवन या कलीसिया में जो कहते या बताते हैं, उससे ज़ाहिर होता है कि सच्चाई उनकी ज़िंदगी को बदल रही है।
अगर आप ‘ठग-विद्या की हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए नहीं जा रहे’ हैं, तो यह भी इस बात का सबूत है कि आप उन्नति कर रहे हैं। (इफि. 4:14) मसलन, जब संसार नए-नए विचारों और सिद्धांतों पर चलने या नए किस्म के मनोरंजन से जी-बहलाने के लिए आप पर दबाव डालता है, तब आप क्या रुख अपनाते हैं? क्या आपका मन अपनी आध्यात्मिक ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने के बजाय उन चीज़ों में वक्त बिताने के लिए ललचाता है? ऐसा करना आपकी आध्यात्मिक उन्नति में बड़ी दीवार खड़ी कर सकता है। इसलिए आध्यात्मिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए समय मोल लेना क्या ही अक्लमंदी की बात होगी!—इफि. 5:15, 16.
आप दूसरे लोगों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं, इससे भी आपकी उन्नति परखी जा सकती है। क्या आपने अपने भाई-बहनों के साथ ‘करुणामय होना और एक दूसरे के अपराध क्षमा करना’ सीखा है?—इफि. 4:32.
आप यहोवा के बताए तरीके से चलने में तरक्की कर रहे हैं, यह कलीसिया और घर, दोनों में ज़ाहिर होना चाहिए। इसके अलावा, आपकी तरक्की आपके स्कूल में, काम करने की जगह पर और घर के बाहर दूसरी जगहों पर भी लोगों को नज़र आनी चाहिए। (इफि. 5:21–6:9) अगर आप इन सभी पहलुओं में पूरी तरह से ईश्वरीय गुण दिखा रहे हैं, तो आपकी तरक्की खुद-ब-खुद नज़र आएगी।
अपने वरदान का इस्तेमाल कीजिए
यहोवा ने हम सभी को काबिलीयतें और प्रतिभाएँ दी हैं। और वह उम्मीद करता है कि हम इन्हें दूसरों के लिए इस तरीके से इस्तेमाल करें जिससे वह हमारे ज़रिए उन पर अपना अनुग्रह दिखा सके। इस बारे में प्रेरित पतरस ने लिखा: “जिस को जो बरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए।” (1 पत. 4:10) आप, भण्डारी होने की अपनी ज़िम्मेदारी को कैसे पूरा कर रहे हैं?
पतरस हमें आगे बताता है: “यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले, मानो परमेश्वर का वचन है।” (1 पत. 4:11) यह आयत हमारी इस ज़िम्मेदारी पर ज़ोर देती है कि हम पूरी तरह परमेश्वर के वचन के मुताबिक बात करें ताकि परमेश्वर की महिमा हो। हमारे बात करने के लहज़े से भी यहोवा की स्तुति होनी चाहिए। परमेश्वर की सेवा स्कूल में मिलनेवाली तालीम आपकी मदद कर सकती है जिससे आप बात करने के अपने वरदान को सही तरह इस्तेमाल कर सकें यानी दूसरों की मदद करके परमेश्वर की महिमा करें। इस लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, स्कूल में आप अपनी उन्नति का हिसाब कैसे लगा सकते हैं?
यह सोचने के बजाय कि भाषण के आपके सलाह पर्चे में आपने कितने गुणों पर काम कर लिया है या किस तरह के भाग आप पेश कर चुके हैं, इस बात पर ध्यान दीजिए कि स्कूल से मिलनेवाली तालीम की मदद से परमेश्वर को चढ़ानेवाले आपके स्तुतिरूपी बलिदान और उत्तम कैसे बने हैं। यह स्कूल हमें प्रचार में और भी प्रभावशाली होने के लिए तैयार करता है। इसलिए खुद से पूछिए: ‘प्रचार में लोगों को जो बताना है, क्या मैं उसकी वाकई तैयारी करता हूँ? जिसको मैं साक्षी देता हूँ, क्या मैंने उसमें निजी दिलचस्पी लेना सीखा है? क्या मैं लोगों से सवाल पूछकर उनसे अगली बार मिलने की बुनियाद डालता हूँ? अगर मैं किसी को बाइबल अध्ययन करवा रहा हूँ, तो क्या मैं ऐसा शिक्षक बनने की कोशिश कर रहा हूँ जो अपने विद्यार्थी के दिल तक पहुँचता है?’
ऐसा मत सोचिए कि आपको सेवा करने के जो सुअवसर मिले हैं, सिर्फ वही आपकी तरक्की की निशानी है। आपकी तरक्की, आपकी ज़िम्मेदारियों से नहीं बल्कि इस बात से देखी जाती है कि आप उनके साथ क्या कर रहे हैं। अगर आपको सिखाने की ज़िम्मेदारी दी जाती है, तो उसे पूरा करने के बाद खुद से पूछिए: ‘क्या मैंने वाकई सिखाने की कला अपनायी? क्या मैंने जानकारी को इस तरह पेश किया जिससे सुननेवालों की ज़िंदगी पर वाकई असर पड़े?’
प्रेरित पौलुस ने, अपने वरदान को इस्तेमाल करने का जो बढ़ावा दिया, उसमें खुद पहल करना भी शामिल है। क्या आप भाई-बहनों के साथ मिलकर प्रचार करने में पहल करते हैं? क्या आप अपनी कलीसिया के नए लोगों, नौजवानों और बीमारों की मदद करने के मौके ढूँढ़ते हैं? क्या आप किंगडम हॉल की साफ-सफाई करने या अधिवेशनों और सम्मेलनों में कुछ और तरीके से हाथ बँटाने के लिए अपना नाम देते हैं? क्या आप समय-समय पर ऑक्ज़लरी पायनियर के तौर पर सेवा कर सकते हैं? क्या आप रेग्युलर पायनियर बनकर सेवा कर सकते हैं या ऐसी कलीसिया में जा सकते हैं, जिसे मदद की सख्त ज़रूरत है? अगर आप एक भाई हैं, तो क्या आप शास्त्र की माँगों को पूरा करके सहायक सेवक या प्राचीन बनने के लिए आगे बढ़ रहे हैं? खुशी-खुशी मदद करने की आपकी ख्वाहिश और अपने कंधे पर ज़िम्मेदारी लेने में आपकी पहल, आपकी उन्नति की एक निशानी है।—भज. 110:3.
तजुर्बे की भूमिका
मसीही जीवन में कम तजुर्बेकार होने की वजह से आप शायद आध्यात्मिक कामों में ज़्यादा हिस्सा नहीं ले पा रहे हों, फिर भी निराश मत होइए। परमेश्वर का वचन “साधारण लोगों को बुद्धिमान” बना सकता है। (भज. 19:7; 119:130; नीति. 1:1-4) बाइबल में दी गयी सलाह में यहोवा की सिद्ध बुद्धि पायी जाती है, जिसको अमल में लाने से हम बहुत लाभ पा सकते हैं। यह बुद्धि किसी भी तजुर्बे से मिले ज्ञान से कहीं श्रेष्ठ है। जी हाँ, जैसे-जैसे हम यहोवा की सेवा में आगे बढ़ते हैं, हम बेशकीमती तजुर्बा हासिल करते हैं। यह तजुर्बा, हम अच्छे काम करने में कैसे लगा सकते हैं?
जिस इंसान ने अपनी ज़िंदगी में बहुत-से उतार-चढ़ाव देखें हों, वह यह सोच सकता है: ‘पहले भी कई बार मैं ऐसे हालात से गुज़र चुका हूँ, इसलिए मुझे मालूम है कि मुझे क्या करना चाहिए।’ लेकिन क्या इस तरह सोचना अक्लमंदी है? नीतिवचन 3:7 हमें सावधान करता है: ‘अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो।’ यह सही है कि ज़िंदगी में तजुर्बा हासिल करने से हम हालात को और भी अच्छी तरह समझने के काबिल बनते हैं। लेकिन अगर हम आध्यात्मिक तौर पर तरक्की कर रहे हैं, तो अपने तजुर्बे से हमारे दिलो-दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठ जानी चाहिए कि कामयाब होने के लिए हमें यहोवा की आशीषों की ज़रूरत है। तो फिर हमारी तरक्की इस बात से ज़ाहिर नहीं होगी कि क्या हम अपने बलबूते पर, पूरे आत्मा-विश्वास के साथ हालात का सामना कर सकते हैं बल्कि इससे कि ज़िंदगी में कैसे भी हालात आने पर क्या हम फौरन यहोवा से मार्गदर्शन माँगते हैं। हमारी तरक्की यह विश्वास रखने पर ज़ाहिर होगी कि परमेश्वर की इजाज़त के बगैर कुछ नहीं हो सकता। और इस बात से भी कि हमारा स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता यहोवा के साथ हर हाल में प्यार भरा और भरोसे का रिश्ता बना हुआ है।
आगे बढ़ते रहिए
प्रेरित पौलुस आध्यात्मिक रीति से प्रौढ़ था और एक अभिषिक्त मसीही भी। फिर भी, वह इस बात को अच्छी तरह जानता था कि जीवन के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए लगातार ‘आगे बढ़ते’ रहना ज़रूरी है। (फिलि. 3:13-16) क्या आप भी ऐसा नज़रिया रखते हैं?
आपने किस हद तक उन्नति की है? अगर आप मापना चाहते हैं, तो ऐसे मापिए: आपने किस हद तक नये मनुष्यत्व को धारण कर लिया है? आपने खुद को किस हद तक यहोवा की हुकूमत के अधीन किया है? और जो वरदान आपको मिले हैं, उनसे यहोवा का आदर करने में आप कितनी कड़ी मेहनत कर रहे हैं? जैसे-जैसे परमेश्वर की सेवा स्कूल से आपको फायदा होगा, परमेश्वर के वचन में बताए गए गुण आपकी बातचीत और सिखाने के तरीकों से धीरे-धीरे ज़ाहिर होने लगेंगे। अपनी उन्नति के इन पहलुओं को हमेशा ध्यान में रखिए। जी हाँ, उनसे खुश होइए और आपकी उन्नति छिपाए नहीं छिपेगी।