अध्याय 30
‘प्रेम में चलते’ जाओ
1-3. जब हम प्यार दिखाने में यहोवा की मिसाल पर चलते हैं, तो इसका क्या नतीजा निकलता है?
“लेने से देने में अधिक सुख है।” (प्रेरितों 20:35, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यीशु के ये शब्द इस अहम सच्चाई पर ज़ोर देते हैं: निःस्वार्थ प्रेम अपने आप में बहुत फायदेमंद है। हालाँकि दूसरों से प्यार पाने में बहुत खुशी मिलती है, मगर इससे भी बढ़कर खुशी दूसरों को प्यार देने या दिखाने से मिलती है।
2 इस बात की सच्चाई को हमारे स्वर्गीय पिता से बेहतर और कौन जान सकता है। जैसा हमने इस भाग के पिछले अध्यायों में देखा यहोवा, प्रेम की सबसे बड़ी, सबसे महान मिसाल है। किसी और ने उससे बढ़िया तरीकों से या उससे ज़्यादा समय तक प्रेम नहीं दिखाया। तो फिर, क्या इसमें कोई ताज्जुब की बात है कि यहोवा “आनंदित परमेश्वर” कहलाता है?—1 तीमुथियुस 1:11, NW.
3 हमारा प्यारा परमेश्वर चाहता है कि हम उसके जैसे बनने की कोशिश करें, खासकर प्यार दिखाने के मामले में। इफिसियों 5:1, 2 कहता है: “प्रिय, बालको की नाईं परमेश्वर के सदृश्य बनो। और प्रेम में चलो।” जब हम प्यार दिखाने में यहोवा की मिसाल पर चलते हैं, तब उस बड़ी खुशी को पाते हैं जो देने से मिलती है। इतना ही नहीं, हमें इस बात का भी संतोष होता है कि हम यहोवा के दिल को खुश कर रहे हैं, क्योंकि उसका वचन हमसे ‘एक दूसरे से प्रेम रखने’ की गुज़ारिश करता है। (रोमियों 13:8) मगर हमें क्यों ‘प्रेम में चलते’ जाना चाहिए, इसकी और भी कई वजह हैं।
प्रेम ज़रूरी क्यों है
4, 5. अपने मसीही भाई-बहनों की खातिर खुद को कुरबान करनेवाला प्रेम दिखाना क्यों ज़रूरी है?
4 अपने मसीही भाई-बहनों से प्रेम करना क्यों ज़रूरी है? सीधे शब्दों में कहें तो इसलिए कि प्यार सच्ची मसीहियत की जान है। प्रेम के बिना संगी मसीहियों के साथ हमारा नज़दीकी रिश्ता नहीं बंध सकता और उससे भी बढ़कर बिना प्रेम के यहोवा की नज़रों में हमारी कीमत कुछ भी नहीं। गौर कीजिए कि कैसे परमेश्वर के वचन में इन सच्चाइयों पर ज़ोर दिया गया है।
5 इस धरती पर अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात को, यीशु ने अपने चेलों से कहा: “मैं तुम्हें एक नई आज्ञा देता हूं, कि एक दूसरे से प्रेम रखो: जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो। यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:34, 35) “जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा है”—जी हाँ, हमें आज्ञा दी गयी है कि हम वैसा ही प्रेम दिखाएँ जैसा यीशु ने दिखाया था। अध्याय 29 में, हमने देखा कि यीशु ने दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाले प्यार की एक उम्दा मिसाल रखी, उसने दूसरों की ज़रूरतों और फायदे को खुद से आगे रखा। हमें भी निःस्वार्थ प्रेम दिखाना है, और यह इस हद तक होना चाहिए कि वे लोग भी इसे साफ-साफ देख सकें जो मसीही कलीसिया के बाहर हैं। वाकई दूसरों की खातिर कुरबान होनेवाला भाईचारे का प्रेम एक ऐसी निशानी है, जो मसीह के सच्चे चेलों के नाते हमारी पहचान कराता है।
6, 7. (क) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा के वचन में प्रेम दिखाने को बहुत अहमियत दी गयी है? (ख) पहला कुरिन्थियों 13:4-8 में दर्ज़ पौलुस के शब्दों में, प्रेम के किस पहलू पर ध्यान दिलाया गया है?
6 अगर हममें प्रेम न हो तो क्या होगा? प्रेरित पौलुस ने कहा: “यदि मैं . . . प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं।” (1 कुरिन्थियों 13:1) झनझनाती झाँझ से ऐसी आवाज़ निकलती है जो कानों को अखरती है। ठनठनाते पीतल के बारे में क्या? कुछ और अनुवाद कहते हैं, “ठनठनाती घन्टी” या “खनखनाता घड़ियाल।” ये उदाहरण कितने सही हैं! जिस इंसान में प्यार नहीं होता, वह ऐसे बेसुरे साज़ जैसा है जिससे सुरीली धुन नहीं, बल्कि ऐसी कर्कश आवाज़ निकलती है जिसे सुनकर लोग कान बंद कर लेते हैं। भला ऐसा इंसान दूसरों के साथ एक करीबी रिश्ता कैसे कायम कर सकता है? पौलुस ने यह भी कहा: “मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं।” (1 कुरिन्थियों 13:2) ज़रा सोचिए, एक इंसान चाहे कितने ही बड़े-बड़े काम करे, अगर उसमें प्रेम नहीं है तो वह “कुछ भी नहीं” है! क्या इससे साफ पता नहीं लगता कि यहोवा के वचन में प्रेम दिखाने को कितनी अहमियत दी गयी है?
7 मगर हम दूसरों के साथ पेश आते वक्त यह गुण कैसे दिखा सकते हैं? इसका जवाब देने के लिए, आइए हम 1 कुरिन्थियों 13:4-8 में पाए जानेवाले पौलुस के शब्दों की जाँच करें। इन आयतों में न तो हमारे लिए परमेश्वर के प्रेम पर, न ही परमेश्वर के लिए हमारे प्रेम पर ज़ोर दिया गया है। इसके बजाय, पौलुस खास तौर पर यह बताता है कि हमें एक-दूसरे को प्रेम कैसे दिखाना चाहिए। उसने समझाया कि प्रेम क्या-क्या है और क्या-क्या नहीं।
प्रेम क्या है
8. दूसरों के साथ पेश आते वक्त धीरजवंत होना, हमारी कैसे मदद कर सकता है?
8 “प्रेम धीरजवन्त है।” धीरजवंत होने का मतलब है, सब्र के साथ दूसरों की सहना। (कुलुस्सियों 3:13) क्या हमारे लिए ऐसा सब्र या धीरज ज़रूरी है? हम सभी असिद्ध इंसान, कंधे-से-कंधा मिलाकर सेवा कर रहे हैं, इसलिए यह उम्मीद की जा सकती है कि कभी-कभी हमारे मसीही भाई अपने तौर-तरीकों से हमें चिढ़ दिलाएँ या हम उन्हें चिढ़ दिलाएँ। मगर धीरज और सहनशीलता की मदद से हम कलीसिया की शांति भंग किए बगैर, दूसरों के साथ पेश आते वक्त छोटे-मोटे मनमुटाव और नाराज़गी का सामना कर सकते हैं।
9. किन तरीकों से हम दूसरों को कृपा दिखा सकते हैं?
9 “प्रेम . . . कृपाल है।” जब हम दूसरों की मदद करते हैं और बातचीत में लिहाज़ दिखाते हैं, तो हम कृपा दिखा रहे होते हैं। प्यार की वजह से हम दूसरों को खासकर ज़रूरतमंदों को कृपा दिखाने के मौके ढूँढेंगे। मिसाल के लिए, एक बुज़ुर्ग मसीही भाई या बहन शायद अकेला महसूस कर रहा हो, और उसे ज़रूरत हो कि कोई आकर उसकी हिम्मत बँधाए। एक अकेली माँ या एक बहन जिसका परिवार सच्चाई में नहीं, उसे शायद किसी मदद की ज़रूरत हो। कोई भाई शायद बीमार हो या किसी तकलीफ से गुज़र रहा हो और उसे किसी वफादार दोस्त के प्यार भरे बोल सुनने की ज़रूरत हो। (नीतिवचन 12:25; 17:17) जब हम इन तरीकों से कृपा करने में पहल करते हैं, तो हम दिखाते हैं कि हमारा प्यार सच्चा है।—2 कुरिन्थियों 8:8.
10. प्रेम कैसे हमारी मदद करेगा कि सच बोलें और इसका दामन न छोड़ें, तब भी जब ऐसा करना आसान न हो?
10 “प्रेम . . . सत्य से आनन्दित होता है।” एक और अनुवाद कहता है: “प्रेम, . . . खुशी से सत्य का पक्ष लेता है।” प्रेम हमें उकसाएगा कि ‘एक दूसरे के साथ सत्य बोलें’ और सच्चाई का दामन न छोड़ें। (जकर्याह 8:16) मिसाल के लिए, अगर हमारा कोई अज़ीज़ किसी गंभीर पाप में फँस गया है, तो यहोवा के लिए और पाप करनेवाले के लिए प्रेम, हमारी मदद करेगा कि हम परमेश्वर के स्तरों का पालन करें, ना कि पाप को छिपाने की कोशिश करें, सही ठहराने के लिए कोई बहाना बनाएँ, या फिर झूठ बोलने की कोशिश करें। बेशक, सच्चाई का सामना करना बहुत मुश्किल हो सकता है। लेकिन अपने अज़ीज़ की भलाई चाहते हुए, हम कोशिश करेंगे कि वह परमेश्वर की प्यार-भरी ताड़ना को स्वीकार करे और उसके मुताबिक बदलाव करे। (नीतिवचन 3:11, 12) इसके अलावा, प्रेम करनेवाले मसीहियों के नाते, हम “नेकी [“ईमानदारी,” NW] के साथ ज़िन्दगी बिताना चाहेंगे।”—इब्रानियों 13:18, हिन्दुस्तानी बाइबिल।
11. क्योंकि प्रेम “सब बातें सह लेता है,” हमें अपने मसीही भाई-बहनों की कमियों के बारे में क्या करना चाहिए?
11 “प्रेम . . . सब बातें सह लेता है।” इस पद का शाब्दिक अर्थ है: “यह सब चीज़ों को ढांप देता है।” (किंगडम इंटरलीनियर) पहला पतरस 4:8 कहता है: “प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।” जी हाँ, एक मसीही जो प्रेम के सिद्धांत पर चलता है, वह अपने मसीही भाइयों की हर असिद्धता और कमी को सबके सामने लाने की ताक में नहीं रहेगा। बहुत-से मामलों में, हमारे मसीही भाई-बहनों की गलतियाँ ज़्यादा गंभीर नहीं होतीं और उन्हें प्यार से ढांपा जा सकता है।—नीतिवचन 10:12; 17:9.
12. प्रेरित पौलुस ने कैसे दिखाया कि वह फिलेमोन के बारे में अच्छी-से-अच्छी बात सोचना चाहता था, और हम पौलुस की मिसाल से क्या सीख सकते हैं?
12 “प्रेम . . . सब बातों पर विश्वास करता है।” (NHT) मॉफेट का अनुवाद कहता है कि प्रेम दूसरों के बारे में “हमेशा अच्छे-से-अच्छा सोचने के लिए तैयार रहता है।” हम अपने मसीही भाइयों को हर वक्त शक की निगाह से नहीं देखेंगे, न ही उनके हर इरादे पर सवाल उठाएँगे। प्रेम हमारी मदद करेगा कि अपने भाइयों के बारे में ‘अच्छे-से-अच्छा सोचें’ और उन पर भरोसा करें।a फिलेमोन को लिखी पौलुस की पत्री में दर्ज़ एक मिसाल पर गौर कीजिए। पौलुस अपनी पत्री से फिलेमोन को उकसाना चाहता था कि वह अपने दास उनेसिमुस को प्यार दिखाते हुए फिर से स्वीकार करे। उनेसिमुस, फिलेमोन का दास था जो पहले उसकी सेवा से भाग गया था, मगर अब एक मसीही बनने के बाद उसके पास वापस आ रहा था। फिलेमोन पर दबाव डालने के बजाय, पौलुस ने प्रेम का वास्ता देकर उससे दरख्वास्त की। पौलुस ने यह भरोसा दिखाया कि फिलेमोन वही करेगा जो सही है, और उससे कहा: “मैं तेरे आज्ञाकारी होने का भरोसा रखकर, तुझे लिखता हूं और यह जानता हूं, कि जो कुछ मैं कहता हूं, तू उस से कहीं बढ़कर करेगा।” (आयत 21) जब प्रेम के उकसाने पर हम अपने भाइयों पर ऐसा भरोसा ज़ाहिर करते हैं, तो इससे अच्छे-से-अच्छा नतीजा निकलता है।
13. हम कैसे दिखाते हैं कि हम अपने भाइयों के लिए अच्छे-से-अच्छे की उम्मीद करते हैं?
13 “प्रेम . . . सब बातों की आशा रखता है।” विश्वास करने के साथ-साथ, प्रेम आशा भी रखता है। प्रेम से प्रेरित होकर, हम अपने भाइयों के लिए अच्छे-से-अच्छे की उम्मीद करते हैं। मिसाल के लिए, अगर एक भाई ‘अनजाने में कोई गलत कदम उठाता है,’ तो हम यह उम्मीद नहीं छोड़ते कि सुधार के लिए दी गयी प्यार-भरी मदद को वह स्वीकार करेगा। (गलतियों 6:1, NW) हम यह भी आशा ज़ाहिर करते हैं कि जो विश्वास में कमज़ोर हैं, वे फिर से मज़बूत होंगे। हम ऐसों के साथ धैर्य से पेश आते हैं, और उन्हें विश्वास में मज़बूत होने में मदद देने के लिए हर मुमकिन तरीके से कोशिश करते हैं। (रोमियों 15:1; 1 थिस्सलुनीकियों 5:14) अगर एक अज़ीज़ भटक भी जाए, हम यह आस नहीं छोड़ते कि किसी-न-किसी दिन वह, यीशु के दृष्टांत के उस उड़ाऊ पुत्र की तरह अपने आपे में आएगा और यहोवा के पास लौट आएगा।—लूका 15:17, 18.
14. कलीसिया के अंदर ही हमारे धीरज की परीक्षा कैसे हो सकती है, और प्रेम हमें ऐसे में क्या करने में मदद देगा?
14 “प्रेम . . . सब बातों में धीरज धरता है।” धीरज हमें निराशाओं और मुसीबतों का डटकर मुकाबला करने के काबिल बनाता है। ज़रूरी नहीं कि हमारे धीरज की परीक्षा, कलीसिया के बाहर से आनेवाली मुसीबतों से हो। कभी-कभी कलीसिया के अंदर से ही ये परीक्षाएँ आती हैं। असिद्धता की वजह से, हो सकता है कि कई बार हमारे भाई ही हमें निराश कर दें। बिना सोचे-समझे कही गयी बात से हमारी भावनाओं को ठेस लग सकती है। (नीतिवचन 12:18) शायद जैसा हमने सोचा था, कलीसिया के किसी मामले को उस तरीके से नहीं निपटाया गया। कलीसिया में जिस भाई को बहुत आदर दिया जाता है, वह शायद ऐसा सलूक करे, जिससे हम परेशान हो जाएँ और सोचने लगें, ‘एक मसीही ऐसा कैसे कर सकता है?’ जब हम ऐसे हालात में होते हैं, तो क्या हम कलीसिया से दूर चले जाते हैं और यहोवा की सेवा करना छोड़ देते हैं? अगर हममें प्रेम है, तो हम ऐसा नहीं करेंगे! जी हाँ, प्रेम हमारी मदद करेगा कि हम किसी भाई की कमियों को इतना तूल न दें कि हम उसकी सारी अच्छाइयाँ भूल जाएँ या पूरी कलीसिया में ही हमें बुराई नज़र आने लगे। चाहे किसी असिद्ध इंसान ने कुछ भी क्यों न कहा या किया हो, प्रेम हमें इस काबिल बनाता है कि परमेश्वर के वफादार रहें और कलीसिया का हमेशा साथ दें।—भजन 119:165.
प्रेम क्या नहीं है
15. गलत किस्म की जलन क्या है, और प्रेम कैसे हमें इस विनाशकारी भावना से दूर रहने में मदद देगा?
15 “प्रेम डाह नहीं करता।” डाह या गलत किस्म की जलन की वजह से हम दूसरों के पास जो है—उनकी संपत्ति, आशीषें या काबिलीयतें, उसकी वजह से उनसे ईर्ष्या करने लगते हैं। ऐसी जलन महसूस करना स्वार्थ की निशानी है। यह ऐसी विनाशकारी भावना है, जिसे अगर काबू में न रखा गया, तो यह कलीसिया की शांति को भंग कर सकती है। “ईर्ष्या करने की प्रवृत्ति” का विरोध करने में क्या बात हमारी मदद करेगी? (याकूब 4:5, NW) एक शब्द में इसका जवाब है, प्रेम। यह अनमोल गुण, उन लोगों की खुशी में खुश होने में हमारी मदद करेगा जिनके बारे में हमें लगता है कि वे हमसे बेहतर हालात में हैं। (रोमियों 12:15) जब किसी की अनोखी काबिलीयत या बेहतरीन कामयाबी के लिए उसकी तारीफ की जाती है, तो प्रेम हमारी मदद करेगा कि हम इसे किसी तरह अपनी बेइज़्ज़ती न समझें।
16. अगर हम सही मायनों में अपने भाइयों से प्रेम करते हैं, तो हमें क्यों यहोवा की सेवा में अपनी कामयाबियों की डींग मारने से दूर रहना चाहिए?
16 “प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं।” प्रेम हमें रोकता है कि हम अपनी प्रतिभाओं या कामयाबियों के बारे में ढिंढोरा ना पीटें। अगर हम सही मायनों में अपने भाइयों से प्रेम करते हैं, तो हम प्रचार काम में अपनी कामयाबी और कलीसिया में अपनी खास ज़िम्मेदारियों के बारे में भला शेखी कैसे बघार सकते हैं? ऐसी घमंड भरी बातों से दूसरों का हौसला टूट सकता है, और वे खुद को दूसरों से कम समझने लगेंगे। परमेश्वर हमें अपनी सेवा में जो करने का मौका दे रहा है, अगर हममें प्रेम है तो हम उसके बारे में डींगें नहीं मारेंगे। (1 कुरिन्थियों 3:5-9) और-तो-और, प्रेम “फूलता नहीं,” या जैसा एक अनुवाद कहता है, यह “खुद को दूसरों से बढ़-चढ़कर अहमियत” नहीं देता। प्यार हमें रोकता है कि हम खुद को बहुत ही श्रेष्ठ समझने की गलती न करें।—रोमियों 12:3.
17. प्रेम हमें दूसरों के लिए कैसा लिहाज़ दिखाने को प्रेरित करेगा, और इसलिए हम किस किस्म के व्यवहार से दूर रहेंगे?
17 “प्रेम . . . अभद्र व्यवहार नहीं करता।” (NHT) अभद्र व्यवहार करनेवाला इंसान, अनुचित या घिनौने काम करता है। ऐसा तौर-तरीका प्रेम से खाली होता है, क्योंकि इससे हम दिखाते हैं कि हमें दूसरों की भावनाओं और उनकी भलाई की ज़रा भी परवाह नहीं। उसके उलटे, प्रेम में वह सज्जनता होती है, जो हमें दूसरों का लिहाज़ करने को उकसाती है। प्रेम, शिष्टाचार और परमेश्वर को पसंद आनेवाले चालचलन और अपने मसीही भाई-बहनों के साथ आदर से पेश आने का बढ़ावा देता है। इस तरह, प्रेम हमें “निर्लज्जता” के काम करने से रोकेगा—जी हाँ, ऐसे किसी भी व्यवहार से जिससे हमारे मसीही भाइयों को धक्का लगे या उनकी भावनाओं को चोट पहुँचे।—इफिसियों 5:3, 4.
18. प्यार करनेवाला एक इंसान क्यों यह माँग नहीं करेगा कि हर काम उसी के तरीके से किया जाए?
18 “प्रेम . . . अपनी भलाई नहीं चाहता।” एक और अनुवाद यहाँ कहता है: “प्रेम अपनी बात पर अड़ा नहीं रहता।” प्रेम करनेवाला इंसान कभी यह माँग नहीं करेगा कि हर काम उसी के तरीके से किया जाए, मानो वह कभी गलत हो ही नहीं सकता। वह दूसरों को गुमराह करने की कोशिश नहीं करेगा, ना ही अपनी धूर्त या चालाक दलीलों के बल पर उन लोगों की हिम्मत तोड़ने या उन्हें गिराने की कोशिश करेगा जो उससे सहमत नहीं होते। ऐसा ढीठ इंसान असल में कुछ हद तक घमंडी होने का सबूत देता है और बाइबल कहती है: “विनाश से पहिले . . . घमण्ड होता है।” (नीतिवचन 16:18) अगर हम सचमुच अपने भाइयों से प्यार करते हैं, तो हम उनकी राय का आदर करेंगे और जहाँ मुमकिन हो वहाँ हम उनकी बात मानने के लिए तैयार रहेंगे। दूसरों की मानने के लिए तैयार रहना, पौलुस के इन शब्दों के साथ मेल खाता है: “कोई अपनी ही भलाई को न ढूंढ़े, बरन औरों की।”—1 कुरिन्थियों 10:24.
19. जब दूसरे हमें चोट पहुँचाते हैं, तो प्रेम हमें बदले में क्या करने में मदद देगा?
19 “प्रेम कभी झुँझलाता नहीं, वह बुराइयों का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) दूसरे जो कुछ कहते या करते हैं, प्रेम उस पर आसानी से झुँझलाता नहीं। बेशक जब दूसरे हमें चोट पहुँचाते हैं, तो गुस्सा आना लाज़मी है। लेकिन, गुस्सा होने का सही कारण होने पर भी, प्रेम हमें गुस्से में रहने नहीं देता। (इफिसियों 4:26, 27) हम चोट पहुँचानेवाली बातों या कामों का रिकॉर्ड नहीं रखेंगे, मानो हमने इन्हें याद रखने के लिए बही-खाते में लिख लिया हो। इसके बजाय, प्रेम हमें उकसाता है कि हम अपने प्रेमी परमेश्वर यहोवा जैसे बनें। जैसा हमने अध्याय 26 में देखा, सही वजह होने पर यहोवा माफ करने के लिए तैयार रहता है। जब वह माफ करता है तो उन पापों को भूल जाता है, यानी वह भविष्य में उन पापों को फिर से याद करके हमें उनके लिए सज़ा नहीं देता। क्या हम यहोवा के शुक्रगुज़ार नहीं कि वह हमारी बुराइयों का लेखा-जोखा नहीं रखता?
20. अगर एक मसीही भाई या बहन पाप के फंदे में फँस जाता है और मुसीबत में पड़ता है, तो हमें क्या करना चाहिए?
20 “प्रेम . . . कुकर्म से आनन्दित नहीं होता।” यहाँ बुल्के बाइबिल यूँ कहती है: ‘प्रेम दूसरों के पाप से प्रसन्न नहीं होता।’ मॉफेट का अनुवाद कहता है: “जब दूसरे गलती करते हैं, तब प्रेम कभी खुश नहीं होता।” प्रेम, कुकर्म से कभी खुशी नहीं पाता, इसलिए हम किसी भी किस्म की अनैतिकता को मामूली बात नहीं समझेंगे। अगर हमारा कोई भाई या बहन पाप के फंदे में फँस जाता है और इस वजह से मुसीबत में पड़ जाता है, तब हम क्या करेंगे? अगर हममें प्रेम है तो हम उसकी बुरी हालत पर खुशियाँ नहीं मनाएँगे, मानो हम कह रहे हों, ‘बहुत अच्छा हुआ! वो इसी के लायक था!’ (नीतिवचन 17:5) लेकिन हाँ, एक भाई जिसने अपराध किया था और आध्यात्मिक रूप से गिर चुका था, अगर वह वापस आने के लिए सही कदम उठाता है तब हम ज़रूर खुश होते हैं।
“सब से उत्तम मार्ग”
21-23. (क) “प्रेम कभी मिटता नहीं,” इससे पौलुस क्या कहना चाह रहा था? (ख) इस किताब के आखिरी अध्याय में हम किस विषय पर चर्चा करेंगे?
21 “प्रेम कभी मिटता नहीं।” (NHT) इन शब्दों से पौलुस क्या कहना चाहता था? जैसा हम आस-पास की आयतों से जान सकते हैं, वह आत्मा के उन वरदानों की बात कर रहा था जो पहली सदी के मसीहियों के पास थे। ये वरदान इस बात की निशानी थे कि अभी-अभी बनी मसीही कलीसिया पर परमेश्वर का अनुग्रह है। लेकिन सभी मसीही, चंगाई करने, भविष्यवाणी करने या अलग-अलग भाषाओं में बोलने के काबिल नहीं थे। मगर, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि ये चमत्कारिक वरदान धीरे-धीरे मिट जाते। मगर, कुछ और था जो कायम रहता, कुछ ऐसा जो हर मसीही अपने अंदर पैदा कर सकता था। यह किसी भी चमत्कारिक वरदान से कहीं ज़्यादा शानदार और अटल था। दरअसल, पौलुस ने उसे “सब से उत्तम मार्ग” कहा। (1 कुरिन्थियों 12:31) यह “सब से उत्तम मार्ग” क्या था? यह प्रेम का मार्ग था।
यहोवा के लोग, एक-दूसरे के लिए अपने प्रेम से पहचाने जाते हैं
22 वाकई, जिस मसीही प्रेम का पौलुस ने ब्यौरा दिया वह “कभी मिटता नहीं,” यानी उसका कभी-भी अंत नहीं होता। आज तक, यीशु के सच्चे चेलों की पहचान, उनका वह प्यार है जो दूसरों की खातिर खुद को कुरबान करने के लिए तैयार रहता है। क्या हम सारी धरती पर यहोवा के उपासकों की कलीसियाओं में ऐसे प्यार का सबूत नहीं देखते? यह प्यार हमेशा कायम रहेगा, क्योंकि यहोवा ने अपने वफादार सेवकों को अनंत जीवन देने का वादा किया है। (भजन 37:9-11, 29) आइए हम ‘प्रेम में चलते’ जाने की जी-जान से कोशिश करें। इससे हम वह बड़ी खुशी पाएँगे जो देने से मिलती है। इतना ही नहीं, हम अनंतकाल तक जी सकेंगे—जी हाँ, प्रेम कर सकेंगे, वैसे ही जैसे हमारा प्रेमी परमेश्वर, यहोवा करता है।
23 इस अध्याय से हम प्रेम के इस भाग का अंत करते हैं। इसमें हमने चर्चा की कि कैसे हम एक-दूसरे के लिए प्रेम दिखा सकते हैं। लेकिन, यहोवा के प्रेम—साथ ही उसकी शक्ति, बुद्धि और न्याय—से जिन अनगिनत तरीकों से हम फायदा पाते हैं उन्हें ध्यान में रखते हुए, हमें अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए, ‘मैं यहोवा को कैसे दिखा सकता हूँ कि मैं उससे सचमुच प्यार करता हूँ?’ इस सवाल पर हमारे आखिरी अध्याय में चर्चा की जाएगी।
a बेशक, मसीही प्रेम का मतलब आँख मूंदकर किसी पर विश्वास करना नहीं है। बाइबल हमें उकसाती है: “जो लोग . . . फूट पड़ने, और ठोकर खाने के कारण होते हैं, उन्हें ताड़ लिया करो; और उन से दूर रहो।”—रोमियों 16:17.