अध्याय 29
‘मसीह के प्रेम को जानो’
1-3. (क) किस बात से यीशु को अपने पिता के जैसा होने के लिए उकसाया? (ख) यीशु के प्रेम के किन पहलुओं की हम जाँच करेंगे?
क्या आपने कभी एक छोटे लड़के को अपने पिता की तरह बनने की कोशिश करते देखा है? शायद वह अपने पिता की तरह चलने, बोलने के तरीके या उसके हाव-भाव की नक्ल करता है। कुछ वक्त के बाद, शायद यह लड़का अपने पिता के नैतिक और आध्यात्मिक उसूलों को भी अपना ले। जी हाँ, बेटा अपने पिता को इतना प्यार करता है कि वह उसी के जैसा बनना चाहता है।
2 यीशु और उसके स्वर्गीय पिता के बीच के रिश्ते के बारे में क्या? यीशु ने एक मौके पर कहा: “मैं पिता से प्रेम रखता हूं।” (यूहन्ना 14:31) यहोवा से उसका यह बेटा जितना प्यार करता है, उतना कोई और नहीं कर सकता। यह बेटा पिता के साथ, तब से है जब दुनिया के बाकी प्राणियों की रचना तक नहीं हुई थी। अपने पिता के लिए सच्ची श्रद्धा रखनेवाले इस बेटे को उसके प्यार ने उकसाया कि वह अपने पिता के जैसा बने।—यूहन्ना 14:9.
3 इस किताब के पिछले अध्यायों में, हम चर्चा कर चुके हैं कि यीशु कैसे शक्ति, बुद्धि और न्याय के गुण दिखाने में बिलकुल यहोवा जैसा है। मगर यीशु ने अपने पिता का प्रेम का गुण कैसे दिखाया? आइए हम यीशु के प्रेम के तीन पहलुओं की जाँच करें—दूसरों की खातिर कुरबान हो जाने की भावना, उसकी कोमल करुणा, और माफ करने की तत्परता।
“इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं”
4. यीशु ने इंसानों में, दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाले प्रेम की सबसे बढ़िया मिसाल कैसे रखी?
4 यीशु, खुद को कुरबान करने की हद तक प्रेम दिखाने की बेजोड़ मिसाल है। खुद को कुरबान करने का मतलब है, निःस्वार्थ भाव से अपनी ज़रूरतों और चिंताओं से पहले दूसरों की ज़रूरतों और चिंताओं पर ध्यान देना। यीशु ने ऐसा प्रेम कैसे दिखाया? उसने खुद ही समझाया: “इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।” (यूहन्ना 15:13) यीशु ने खुशी-खुशी अपनी सिद्ध ज़िंदगी हमारे लिए कुरबान कर दी। किसी भी इंसान ने अब तक अपने प्यार का सबूत इस तरीके से नहीं दिया, यह उसके प्यार का सबसे महान सबूत था। मगर यीशु ने और भी कई तरीकों से दूसरों की खातिर कुरबान हो जानेवाला प्रेम दिखाया।
5. स्वर्ग छोड़कर इस धरती पर आना, क्यों परमेश्वर के एकलौते बेटे की तरफ से एक प्यार-भरी कुरबानी थी?
5 इंसान बनने से पहले, जब यीशु स्वर्ग में था, तो परमेश्वर का यह एकलौता बेटा स्वर्ग में खास सम्मान के ऊँचे पद पर था। उसका यहोवा के साथ और लाखों आत्मिक प्राणियों के साथ नज़दीकी रिश्ता था। ऐसे बढ़िया पद के बावजूद, इस प्यारे बेटे ने “अपने आप को . . . शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।” (फिलिप्पियों 2:7) वह खुशी-खुशी एक ऐसे संसार में पापी इंसानों के बीच रहने को आया जो “दुष्ट के वश में पड़ा है।” (1 यूहन्ना 5:19) क्या यह परमेश्वर के पुत्र की तरफ से एक प्यार-भरी कुरबानी नहीं थी?
6, 7. (क) यीशु ने इस धरती पर अपनी सेवा के दौरान, किन तरीकों से खुद को कुरबान करनेवाला प्रेम दिखाया? (ख) यूहन्ना 19:25-27 में निःस्वार्थ प्रेम की कौन-सी दिल छू लेनेवाली मिसाल दर्ज़ है?
6 इस धरती पर अपनी सेवा के दौरान, यीशु ने अलग-अलग तरीकों से दूसरों की खातिर कुरबान होनेवाला प्यार दिखाया। वह पूरी तरह से निःस्वार्थ था। वह अपनी सेवा में इस कदर रमा हुआ था कि उसने वह सारा आराम त्याग दिया जो एक आम आदमी के लिए ज़रूरी है। उसने कहा: “लोमड़ियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; परन्तु मनुष्य के पुत्र के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है।” (मत्ती 8:20) यीशु एक हुनरमंद बढ़ई था, वह चाहता तो कुछ वक्त निकालकर अपने लिए एक अच्छा-सा घर बना सकता था या एक-से-बढ़कर-एक फर्नीचर बना सकता था जिसे बेचकर वह अपने लिए कुछ पैसा जमा कर सके। मगर उसने अपना हुनर, पैसा कमाने या सामान जोड़ने के लिए इस्तेमाल नहीं किया।
7 यूहन्ना 19:25-27 में, खुद को कुरबान करनेवाले प्यार की यीशु की एक दिल छू लेनेवाली मिसाल दर्ज़ है। ज़रा सोचिए कि जिस दिन यीशु मरा उस दोपहर को उसके दिल पर क्या बीत रही होगी और वह किन चिंताओं से घिरा हुआ होगा। सूली पर लटकाए जाने पर जब वह दर्द से तड़प रहा था, तब भी उसे अपने चेलों की, प्रचार काम की और खासकर अपनी खराई बनाए रखने की और उसके पिता पर इसके असर की चिंता सता रही थी। सचमुच, सब इंसानों के भविष्य का भार उसी के कंधों पर था! ऐसे में भी, मरने से कुछ पल पहले यीशु ने अपनी माँ मरियम के लिए परवाह दिखायी, जो इस वक्त तक शायद विधवा हो चुकी थी। यीशु ने प्रेरित यूहन्ना से कहा कि वह मरियम को अपनी माँ समझकर उसकी देखभाल करे और वह प्रेरित इसके बाद मरियम को अपने घर ले गया। इस तरह यीशु ने अपनी माँ की रोज़ी-रोटी और आध्यात्मिक ज़रूरतों का ख्याल रखे जाने का इंतज़ाम किया। निःस्वार्थ प्रेम दिखाने का कितना कोमल तरीका था यह!
‘उसने उन पर तरस खाया’
8. बाइबल में यीशु की करुणा समझाने के लिए इस्तेमाल होनेवाले यूनानी शब्द का मतलब क्या है?
8 अपने पिता की तरह, यीशु करुणामयी था। शास्त्र में यीशु को एक ऐसा इंसान बताया है जो मुसीबत में पड़े लोगों की जी-जान से मदद करता था। यीशु की करुणा समझाने के लिए, बाइबल में एक यूनानी शब्द इस्तेमाल किया गया है जिसका अनुवाद ‘तरस खाना’ किया है। एक विद्वान कहता है, “यह एक ऐसी . . . भावना है जो इंसान को गहराई तक झंझोड़ देती है। यूनानी भाषा में, करुणा की भावना के लिए यह सबसे ज़ोरदार शब्द है।” कुछ ऐसे हालात पर गौर कीजिए जिनमें यीशु की गहरी करुणा ने उसे कदम उठाने पर मजबूर किया।
9, 10. (क) किन हालात की वजह से, यीशु और उसके प्रेरितों ने एक एकांत जगह ढूँढ़ निकालनी चाही? (ख) जब भीड़ की वजह से एकांत न रहा, तो यीशु ने क्या किया, और क्यों?
9 आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रेरित। मरकुस 6:30-34 दिखाता है कि यीशु खासकर किस वजह से दूसरों पर तरस खाता था। इस नज़ारे को मन की आँखों से देखने की कोशिश कीजिए। प्रेरितों की खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि उन्होंने अभी-अभी प्रचार का एक लंबा दौरा खत्म किया था। यीशु के पास वापस आकर उन्होंने बड़े उत्साह के साथ देखी-सुनी हर बात उसे बतायी। मगर वहाँ एक बड़ी भीड़ जमा हो गयी, जिसकी वजह से यीशु और उसके प्रेरितों को खाने तक की फुरसत नहीं मिली। यीशु जो हमेशा लोगों को ध्यान से देखता था, उसने देखा कि प्रेरित बहुत थक चुके हैं। उसने उनसे कहा: “तुम आप अलग किसी जंगली स्थान में आकर थोड़ा विश्राम करो।” नाव पर चढ़कर, वे गलील सागर के उत्तरी सिरे पर एक सुनसान जगह के लिए निकले। मगर भीड़ ने उन्हें जाते हुए देख लिया था। दूसरों ने भी उनके बारे में सुना। ये सब भी सागर के उत्तरी तट पर दौड़ते हुए, नाव के आने से पहले वहाँ पहुँच गए!
10 क्या यीशु इस बात से खीज उठा कि उन्हें फुरसत के दो पल भी न मिल सके? बिलकुल नहीं! हज़ारों की तादाद में जमा भीड़ को अपना इंतज़ार करते देख, यीशु का दिल पसीज गया। मरकुस ने लिखा: “उस ने निकलकर बड़ी भीड़ देखी, और उन पर तरस खाया, क्योंकि वे उन भेड़ों के समान थे, जिन का कोई रखवाला न हो; और वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।” यीशु ने इस भीड़ में हर इंसान की आध्यात्मिक ज़रूरतों को समझा। वे उन बेसहारा, भटकती भेड़ों जैसे थे, जिन्हें राह दिखाने या जिनकी रखवाली करनेवाला कोई चरवाहा न था। यीशु जानता था कि पत्थरदिल धर्मगुरु आम लोगों की ज़रा भी परवाह नहीं करते, जबकि होना तो यह चाहिए था कि वे उनकी रखवाली करते। (यूहन्ना 7:47-49) उसने लोगों पर तरस खाया, इसलिए वह उन्हें “परमेश्वर के राज्य” के बारे में सिखाने लगा। (लूका 9:11) गौर कीजिए कि भीड़ पर नज़र पड़ते ही यीशु ने उन पर तरस खाया, हालाँकि वह नहीं जानता था कि यह भीड़ उसकी शिक्षाओं को सुनकर उन पर अमल करेगी भी या नहीं। दूसरे शब्दों में, भीड़ को सिखाने के बाद उसके अंदर करुणा पैदा नहीं हुई, बल्कि इसी करुणा की वजह से यीशु ने लोगों को सिखाया।
11, 12. (क) बाइबल के ज़माने में कोढ़ियों के साथ कैसा सलूक किया जाता था, मगर जब यीशु के पास “कोढ़ से भरा हुआ” एक आदमी आया तो उसने क्या किया? (ख) यीशु के स्पर्श से उस कोढ़ी पर क्या असर हुआ होगा, और एक डॉक्टर के अनुभव से यह कैसे समझ में आता है?
11 तकलीफ दूर करने को प्रेरित। तरह-तरह के रोगों से पीड़ित लोग जानते थे कि यीशु में करुणा का गुण है, इसलिए वे उसके पास खिंचे चले आते थे। यह खासकर तब ज़ाहिर हुआ जब यीशु के पीछे भीड़-की-भीड़ चली आ रही थी और उसके पास “कोढ़ से भरा हुआ” एक आदमी आया। (लूका 5:12) बाइबल के ज़माने में, कोढ़ियों को बाकी लोगों से अलग रखा जाता था ताकि दूसरे इस बीमारी से अशुद्ध न हों। (गिनती 5:1-4) लेकिन, वक्त के गुज़रते रब्बियों ने कोढ़ के बारे में लोगों में कठोर रवैया पैदा कर दिया था और अपनी तरफ से सख्त नियम बना दिए थे।a लेकिन, गौर कीजिए कि यीशु उस कोढ़ी के साथ कैसे पेश आया: “एक कोढ़ी ने उसके पास आकर, उस से बिनती की, और उसके साम्हने घुटने टेककर, उस से कहा; यदि तू चाहे तो मुझे शुद्ध कर सकता है। उस ने उस पर तरस खाकर हाथ बढ़ाया, और उसे छूकर कहा; मैं चाहता हूं तू शुद्ध हो जा। और तुरन्त उसका कोढ़ जाता रहा, और वह शुद्ध हो गया।” (मरकुस 1:40-42) यीशु जानता था कि एक कोढ़ी का लोगों की भीड़ में मौजूद होना ही, व्यवस्था के मुताबिक गलत था। मगर उसे दुत्कारने के बजाय, यीशु ने गहरी भावना के साथ उसकी मदद करनी चाही। उसने ऐसा काम किया जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। यीशु ने उसे छुआ!
12 क्या आप सोच सकते हैं कि उस स्पर्श की उस कोढ़ी के लिए क्या अहमियत थी? इसे समझने के लिए, एक अनुभव पर गौर कीजिए। कोढ़ के विशेषज्ञ डॉ. पॉल ब्रैन्ड भारत के एक कोढ़ी के बारे में बताते हैं जिसका उन्होंने इलाज किया था। जाँच के दौरान, डॉक्टर ने कोढ़ी के कंधे पर हाथ रखा और एक अनुवादक के ज़रिए समझाया कि इलाज के लिए उस आदमी को क्या-क्या करना पड़ेगा। एकाएक वह कोढ़ी रोने लगा। डॉक्टर ने घबराकर पूछा: “क्या मैंने कुछ गलत कह दिया?” अनुवादक ने उस नौजवान से उसकी भाषा में यही सवाल पूछा और फिर जवाब दिया: “नहीं डॉक्टर। यह कह रहा है कि यह इसलिए रो रहा है क्योंकि आपने उसके कंधे पर हाथ रखा। यहाँ आने से पहले, बरसों तक उसे किसी ने हाथ तक नहीं लगाया।” जो कोढ़ी यीशु के पास आया, उसके लिए यीशु के छूने के और भी ज़्यादा मायने थे। उस एक स्पर्श से, जिस रोग की वजह से उसे समाज से बेदखल किया गया था, वह रोग ही उड़न-छू हो गया!
13, 14. (क) नाईन नगर के पास आते वक्त यीशु किस जुलूस से मिला, और ये हादसा क्यों खास तौर पर दर्दनाक था? (ख) यीशु की करुणा ने उसे नाईन नगर की विधवा के लिए क्या करने को उकसाया?
13 दुःख दूर करने को प्रेरित। दूसरों का दुःख देखकर यीशु का दिल तड़प उठता था। मिसाल के लिए, लूका 7:11-15 में बताए किस्से पर गौर कीजिए। यह तब हुआ जब यीशु अपनी सेवा का लगभग आधा दौर खत्म कर चुका था, और वह गलील में नाईन नाम के एक नगर के पास आ रहा था। जैसे ही यीशु नगर के फाटक के पास पहुँचा, तो उसने एक अर्थी आते देखी। यह हादसा खास तौर पर बड़ा दर्दनाक था। एक नौजवान जो अपनी माँ का एकलौता बेटा था, मर गया था और उसकी माँ विधवा थी। पहले भी शायद इसी तरह वह अपने पति की अर्थी के साथ गयी होगी। मगर इस बार वह अपने बेटे की अर्थी के साथ जा रही थी, जो शायद उसका एक आखिरी सहारा था। उस भीड़ में विलाप करनेवालों के साथ-साथ साज़ पर दर्द-भरी धुनें बजानेवाले भी थे। (यिर्मयाह 9:17, 18; मत्ती 9:23) लेकिन, यीशु की नज़र दुःख में डूबी माँ पर आकर ठहर गयी, जो शायद अपने बेटे की अर्थी के साथ-साथ चल रही थी।
14 यीशु को इस शोक में डूबी माँ पर “तरस आया।” उसकी हिम्मत बँधाते हुए यीशु ने उससे कहा: “मत रो।” (लूका 7:11-15) बिना किसी के कहे, वह अर्थी के पास आया और उसे छुआ। अर्थी उठानेवाले—और शायद बाकी भीड़ भी वहीं थम गयी। बड़ी ज़बरदस्त आवाज़ में और अधिकार के साथ यीशु ने उस मुर्दे से कहा: “हे जवान, मैं तुझ से कहता हूं, उठ।” उसके बाद क्या हुआ? “तब वह मुरदा उठ बैठा, और बोलने लगा” मानो वह गहरी नींद से जाग उठा हो! उसके बाद जो कहा गया है वह हमारे दिल को छू लेता है: “और [यीशु] ने उसे उस की मां को सौंप दिया।”
15. (क) बाइबल के जो किस्से दिखाते हैं कि यीशु ने लोगों पर तरस खाया, उनमें करुणा दिखाने और कार्यवाही करने में क्या नाता बताया गया है? (ख) हम इस मामले में यीशु की तरह कैसे कार्यवाही कर सकते हैं?
15 हम इन घटनाओं से क्या सीखते हैं? गौर कीजिए, हर मामले में यीशु ने करुणा दिखाने के साथ-साथ कदम भी उठाया। यीशु जब लोगों की दुर्दशा देखता था तो वह उन पर तरस खाने से खुद को रोक नहीं पाता था, और जब वह करुणा महसूस करता तो उसके मुताबिक कुछ किए बिना उससे रहा नहीं जाता था। हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? मसीहियों के नाते हम पर सुसमाचार प्रचार करने और चेले बनाने की ज़िम्मेदारी है। परमेश्वर का प्रेम हमें यह काम करने को खास तौर पर उकसाता है। लेकिन, आइए हम याद रखें कि यह ऐसा काम है जिसमें करुणा की ज़रूरत है। यीशु की तरह जब हमारे मन में लोगों के लिए हमदर्दी होगी, तो हमारा दिल हमें उकसाएगा कि सुसमाचार प्रचार करने में हम जी-जान लगाकर मेहनत करें। (मत्ती 22:37-39) मगर उन मसीही भाई-बहनों को करुणा दिखाने के बारे में क्या जो तकलीफ में हैं या शोक में डूबे हैं? हम चमत्कार करके शरीर की तकलीफों को तो दूर नहीं कर सकते, ना ही मरे हुओं को ज़िंदा कर सकते हैं। लेकिन, हम करुणा दिखाते हुए उन्हें बता सकते हैं कि हमें उनकी परवाह है या फिर उन्हें ऐसी कोई मदद दे सकते हैं जिससे उन्हें फायदा हो।—इफिसियों 4:32.
“हे पिता, इन्हें क्षमा कर”
16. सूली पर मरते वक्त भी यह कैसे ज़ाहिर हुआ कि यीशु क्षमा करने को तत्पर रहा?
16 यीशु ने एक और अहम तरीके से अपने पिता के जैसा प्यार दिखाया—वह “क्षमा करने को तत्पर रहता” था। (भजन 86:5, NHT) जब वह सूली पर लटका हुआ था, तब भी साफ ज़ाहिर था कि वह क्षमा करने को तत्पर है। जब यीशु के हाथों और पैरों को सूली पर कीलों से ठोंक दिया गया, और एक शर्मनाक मौत मरने के लिए उसे छोड़ दिया गया, तब यीशु के मुँह से कैसी बातें निकलीं? क्या उसने अपनी जान लेनेवालों को सज़ा देने के लिए यहोवा को पुकारा? नहीं, इसके बजाय यीशु के आखिरी शब्दों में से कुछ शब्द ये थे: “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं?”—लूका 23:34.b
17-19. यीशु ने किन तरीकों से दिखाया कि उसे जानने से तीन बार इनकार करनेवाले प्रेरित पतरस को उसने माफ किया था?
17 यीशु के माफ करने की इससे भी ज़बरदस्त मिसाल हमें, पतरस के साथ उसके व्यवहार से देखने में आती है। इसमें कोई दो राय नहीं कि पतरस यीशु को दिलो-जान से चाहता था। निसान 14 को जो यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात थी, पतरस ने उससे कहा: “हे प्रभु, मैं तेरे साथ बन्दीगृह जाने, बरन मरने को भी तैयार हूं।” ऐसा कहने पर भी, सिर्फ कुछ घंटों बाद पतरस ने तीन बार इस बात से इनकार किया कि वह यीशु को जानता भी है! बाइबल बताती है कि तीसरी बार पतरस के इनकार करते ही क्या हुआ: “तब प्रभु ने घूमकर पतरस की ओर देखा।” अपने पाप के बोझ से बेहाल, पतरस “बाहर निकलकर फूट फूट कर रोने लगा।” जब उसी दिन बाद में, यीशु मौत की नींद सो गया, तो उस प्रेरित के मन में यह सवाल खटक रहा होगा, ‘क्या मेरे प्रभु ने मुझे माफ किया?’—लूका 22:33, 61, 62.
18 पतरस को बहुत जल्द इसका जवाब मिल गया। यीशु को निसान 16 की सुबह जी उठाया गया और ज़ाहिर है उसी दिन वह खुद जाकर पतरस से मिला। (लूका 24:34; 1 कुरिन्थियों 15:4-8) जिस प्रेरित ने इतनी बार ज़ोर देकर उसे जानने से इनकार किया था, उस पर यीशु इतना मेहरबान क्यों था? यीशु शायद प्रायश्चित्त कर रहे पतरस को यह यकीन दिलाना चाहता था कि उसका प्रभु उससे अब भी प्यार करता है और उसकी कदर करता है। मगर यीशु ने पतरस को यकीन दिलाने के लिए और बहुत कुछ किया।
19 कुछ वक्त के बाद, यीशु गलील सागर के पास चेलों के सामने प्रकट हुआ। इस मौके पर, यीशु ने तीन बार पतरस से (जिसने तीन बार अपने प्रभु से इनकार किया था) सवाल किया कि क्या पतरस उससे प्यार करता है। तीसरी बार पूछे जाने के बाद, पतरस ने जवाब दिया: “हे प्रभु, तू तो सब कुछ जानता है: तू यह जानता है कि मैं तुझ से प्रीति रखता हूं।” जी हाँ, दिल की बात जान लेनेवाले यीशु को यह अच्छी तरह पता था कि पतरस उससे प्यार करता है और उसे दिल से चाहता है। फिर भी, यीशु ने पतरस को अपना प्यार एक बार फिर दिखाने का मौका दिया। इसके अलावा, यीशु ने पतरस को आज्ञा दी कि उसके “मेमनों” को ‘चराए’ और उनकी “रखवाली” करे। (यूहन्ना 21:15-17) इससे पहले, पतरस को प्रचार करने का काम सौंपा गया था। (लूका 5:10) मगर अब, यीशु ने एक अनोखे तरीके से दिखाया कि वह पतरस पर भरोसा करता है। यीशु ने उसे बहुत भारी ज़िम्मेदारी सौंपी—उन लोगों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी जो मसीह के चेले बननेवाले थे। इसके कुछ ही समय बाद, यीशु ने अपने चेलों के काम-काज में पतरस को एक खास भूमिका अदा करने का सम्मान दिया। (प्रेरितों 2:1-41) पतरस के दिल को यह जानकर कितना चैन मिला होगा कि यीशु ने उसे माफ कर दिया है और वह अब भी उस पर भरोसा करता है!
क्या आप ‘मसीह के प्रेम को जानते’ हैं?
20, 21. हम कैसे “मसीह के . . . प्रेम” को अच्छी तरह ‘जान सकेंगे’?
20 वाकई, यहोवा का वचन मसीह के प्रेम का बहुत बढ़िया शब्दों में बयान करता है। मगर हमें यीशु का प्रेम पाकर क्या करना चाहिए? बाइबल हमसे गुज़ारिश करती है कि हम “मसीह के उस प्रेम को जा[नें] जो ज्ञान से परे है।” (इफिसियों 3:19) जैसा हमने देखा है, सुसमाचार की किताबों में यीशु के जीवन और उसकी सेवा का ब्यौरा हमें मसीह के प्रेम के बारे में काफी कुछ सिखाता है। लेकिन, ‘मसीह के प्रेम को’ अच्छी तरह ‘जानने’ के लिए सिर्फ यह पता लगाना काफी नहीं कि बाइबल उसके बारे में क्या कहती है।
21 जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “को जान” किया गया है, उसका मतलब है “व्यावहारिक तरीके से, अनुभव के ज़रिए” जानना। जब हम यीशु की तरह प्रेम करेंगे—दूसरों की भलाई करने में निःस्वार्थ भाव से खुद को लगा देंगे, करुणा दिखाकर उनकी ज़रूरतों के मुताबिक काम करेंगे, दिल से उन्हें माफ करेंगे—तब हम सही मायनों में उसकी भावनाओं को समझ सकेंगे। इस तरह, हम अनुभव से ‘मसीह के उस प्रेम को जान पाते हैं जो ज्ञान से परे है।’ और हाँ, हम यह कभी न भूलें कि हम जितना ज़्यादा मसीह के जैसे होते हैं, उतना ज़्यादा हम अपने प्रेमी परमेश्वर यहोवा के करीब आते हैं, क्योंकि मसीह हू-ब-हू अपने इस पिता के जैसा था।
a रब्बियों के बनाए नियमों के मुताबिक, एक कोढ़ी से चार हाथ (लगभग छः फुट) की दूरी बनाए रखना ज़रूरी था। लेकिन अगर सामने से हवा चल रही हो, तो एक कोढ़ी से कम-से-कम 100 हाथ (लगभग 150 फुट) की दूरी रखना ज़रूरी था। मिद्राश राब्बाह में एक ऐसे रब्बी के बारे में बताया है जो कोढ़ियों को देखते ही छिप जाता था और एक और रब्बी उन्हें दूर रखने के लिए पत्थर मारता था। इसलिए, कोढ़ी जानते थे कि ठुकराए जाने का दर्द क्या होता है और जब लोग आपसे घृणा करते हैं और आपको देखना पसंद नहीं करते, तो कैसा महसूस होता है।
b कुछ प्राचीन हस्तलिपियों में लूका 23:34 का पहला भाग निकाल दिया गया है। लेकिन, ये शब्द कई जानी-मानी और भरोसेमंद हस्तलिपियों में पाए जाते हैं, इसलिए इन्हें और बहुत-से अनुवादों के साथ-साथ न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में भी शामिल किया गया है। ज़ाहिर है कि यीशु रोमी सैनिकों के बारे में कह रहा था जिन्होंने उसे सूली पर चढ़ाया था। वे नहीं जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं, क्योंकि वे इस बात से बेखबर थे कि यीशु असल में है कौन। बेशक, जिन धर्मगुरुओं ने लोगों को भड़काकर यीशु को यह सज़ा सुनवायी थी वे ही इस अन्याय के लिए ज़िम्मेदार और दोषी थे, क्योंकि सब जानते-बूझते उन्होंने बड़ी बेरहमी के साथ इस काम को अंजाम दिया था। उनमें से ज़्यादातर को माफी मिलना नामुमकिन था।—यूहन्ना 11:45-53.