उसमें “सावधानी से छिपाया गया” खज़ाना ढूँढ़ना
“उसी में बुद्धि और ज्ञान का सारा खज़ाना बड़ी सावधानी से छिपाया गया है।”—कुलु. 2:3.
1, 2. (क) सन् 1922 में कौन-सा खज़ाना ढूँढ़ निकाला गया? आज वे कला-कृतियाँ कहाँ हैं? (ख) परमेश्वर अपने वचन में सबको क्या न्यौता देता है?
सन् 1922 में एक खबर ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया। ब्रिटेन के पुरातत्वज्ञानी हावर्ड कार्टर ने सालों की जी-तोड़ मेहनत और मुश्किल-से-मुश्किल हालात में काम करने के बाद एक बेशकीमती खज़ाना ढूँढ़ निकाला। वह खज़ाना था, फिरौन तूतनकामन का शाही मकबरा। इसमें 5,000 से भी ज़्यादा अनमोल चीज़ें थीं, जिन्हें अब तक लूटा नहीं गया था।
2 कार्टर की यह खोज वाकई हैरतअँगेज़ थी, लेकिन उस खज़ाने में मिली ज़्यादातर कला-कृतियाँ आज या तो किसी म्यूज़ियम की शोभा बढ़ा रही हैं या कुछ लोगों के घरों में सजी हुई हैं। इतिहास और कला की दृष्टि से देखें तो शायद इनका बड़ा मोल हो मगर हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में ये कोई मायने नहीं रखतीं। लेकिन परमेश्वर अपने वचन बाइबल में हम सबको ऐसा खज़ाना ढूँढ़ने का न्यौता देता है, जो हमारी ज़िंदगी पर गहरा असर करता है। इस खज़ाने को ढूँढ़ने पर हमें जो इनाम मिलता है, वह दुनिया की किसी भी दौलत से बढ़कर है।—नीतिवचन 2:1-6 पढ़िए।
3. यहोवा हमें जो खज़ाना ढूँढ़ने को कहता है, वह हमारे लिए किन तरीकों से फायदेमंद है?
3 ज़रा गौर कीजिए कि यह खज़ाना किन तरीकों से हमारे लिए फायदेमंद है। “यहोवा का भय” मानने से इस खतरनाक दौर में हमारी हिफाज़त होती है। (भज. 19:9) “परमेश्वर का ज्ञान” प्राप्त करने से हम उसके साथ एक करीबी रिश्ता बना पाते हैं, जो किसी भी इंसान के लिए बहुत बड़ा सम्मान है। परमेश्वर की बुद्धि, ज्ञान और समझ हासिल करने से हम ज़िंदगी की छोटी-बड़ी समस्याओं और चिंताओं का आसानी से सामना कर पाते हैं। (नीति. 9:10, 11) अब सवाल है कि हम यह अनमोल खज़ाना कैसे पा सकते हैं?
आध्यात्मिक खज़ाना ढूँढ़ना
4. आध्यात्मिक खज़ाना ढूँढ़ने के लिए हमें क्या मदद दी गयी है?
4 पुरातत्वज्ञानियों और खोजकर्ताओं को जगह-जगह खुदाई करनी पड़ती है, तब कहीं जाकर उन्हें खज़ाना मिलता है। लेकिन आध्यात्मिक खज़ाना ढूँढ़ने के लिए हमें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं। परमेश्वर का वचन खज़ाने के नक्शे की तरह है, जो ठीक-ठीक बताता है कि हमें खज़ाना कहाँ मिल सकता है। यह खज़ाना हमें मसीह में मिल सकता है। उसके बारे में पौलुस ने लिखा: “उसी में बुद्धि और ज्ञान का सारा खज़ाना बड़ी सावधानी से छिपाया गया है।” (कुलु. 2:3) इन शब्दों को पढ़ने पर शायद हमारे मन में ये सवाल उठें: ‘हमें उस खज़ाने को क्यों ढूँढ़ना चाहिए? वह किस मायने में मसीह में “छिपाया” गया है? और हम उस खज़ाने को कैसे पा सकते हैं?’ जवाब जानने के लिए आइए हम पौलुस के शब्दों की गहराई से जाँच करें।
5. पौलुस ने आध्यात्मिक खज़ाने के बारे में क्यों लिखा?
5 पौलुस ने ये शब्द कुलुस्से के भाइयों को लिखे थे। उसने कहा कि वह उनकी खातिर कड़ा संघर्ष कर रहा है, ताकि ‘उनके दिलों को दिलासा मिल सके और वे सब पूरे तालमेल के साथ प्यार में एक-दूसरे से जुड़े रह सकें।’ (कुलुस्सियों 2:1, 2 पढ़िए।) पौलुस को उनकी इतनी फिक्र क्यों थी? उस समय मंडली के ही कुछ लोग यूनानी तत्त्वज्ञान सिखा रहे थे या यह बढ़ावा दे रहे थे कि मसीहियों को मूसा का कानून मानना चाहिए। शायद कुछ भाई-बहन इन लोगों की बातों में आ गए थे और यह बात पौलुस से छिपी नहीं थी। उसने भाइयों को कड़ी चेतावनी दी: “खबरदार रहो: कहीं ऐसा न हो कि कोई तुम्हें दुनियावी फलसफों और छलनेवाली उन खोखली बातों से अपना शिकार बनाकर ले जाए, जो इंसानों की परंपराओं और दुनियादारी के उसूलों के मुताबिक हैं और मसीह की शिक्षाओं के मुताबिक नहीं।”—कुलु. 2:8.
6. पौलुस की सलाह पर ध्यान देना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?
6 आज हम पर शैतान और उसकी दुष्ट व्यवस्था कुछ ऐसे ही प्रभाव डालती है। दुनिया में बहुत-से तत्त्वज्ञान सिखाए जाते हैं, जैसे परमेश्वर का अस्तित्व नहीं है और इंसान बंदरों से आया है। ये फलसफे लोगों के सोच-विचार, नैतिक स्तर, लक्ष्य और रहन-सहन को अपने साँचे में ढालते हैं। इसके अलावा, दुनिया-भर में मनाए जानेवाले मशहूर त्योहारों के पीछे झूठे धर्म का सबसे बड़ा हाथ है। आज टी.वी. के कार्यक्रमों, फिल्मों और गानों को इस तरह बनाया जाता है कि वे हमारे अंदर बुरी इच्छाओं को भड़काते हैं। और इंटरनेट पर दी ज़्यादातर जानकारी हर उम्र के लोगों के लिए खतरनाक साबित होती है। अगर हम दिन-रात इन फलसफों, कार्यक्रमों वगैरह को देखते-सुनते रहें, तो ये हमारे रवैए और भावनाओं पर हावी हो जाएँगे। और हम इस कगार पर पहुँच जाएँगे कि यहोवा से मिलनेवाली हिदायतें हमें बोझ लगने लगेंगी। नतीजा यह होगा कि असल ज़िंदगी पर हमारी पकड़ ढीली पड़ जाएगी। (1 तीमुथियुस 6:17-19 पढ़िए।) अगर हम शैतान की धूर्त चालों का शिकार नहीं बनना चाहते, तो हमें समझना होगा कि पौलुस ने यह सलाह क्यों दी और उसे दिल से मानना होगा।
7. पौलुस के मुताबिक कौन-सी दो बातें कुलुस्से के भाइयों की मदद करतीं?
7 एक बार फिर पौलुस की कही बात पर गौर कीजिए। कुलुस्से के भाइयों के लिए अपनी चिंता ज़ाहिर करने के बाद वह ऐसी दो बातें बताता है, जो उन्हें दिलासा देतीं और प्यार में एक-दूसरे से जोड़तीं। पहली बात, पौलुस ने “उस समझ” का ज़िक्र किया, “जिसके सच होने का उन्हें पूरा-पूरा यकीन” था। इसका मतलब है कि उन्हें पूरा भरोसा होना चाहिए था कि शास्त्र के बारे में उनकी समझ सही है। तभी उनका विश्वास एक मज़बूत बुनियाद पर खड़ा होता। (इब्रा. 11:1) दूसरी बात थी, ‘परमेश्वर के पवित्र रहस्य का सही ज्ञान।’ यानी सच्चाई की बुनियादी जानकारी हासिल करने के बाद भी उन्हें परमेश्वर के गहरे रहस्यों की अच्छी समझ पाने में बढ़ते जाना था। (इब्रा. 5:13, 14) वाकई, कुलुस्से के भाइयों और हमारे लिए यह क्या ही बढ़िया सलाह है! लेकिन ऐसा यकीन और सही ज्ञान हम कैसे पा सकते हैं? इसका जवाब हमें पौलुस की उस बात से मिलता है जो उसने यीशु के बारे में कही थी: “उसी में बुद्धि और ज्ञान का सारा खज़ाना बड़ी सावधानी से छिपाया गया है।”
मसीह में “छिपाया गया” खज़ाना
8. सारा खज़ाना मसीह में “छिपाया गया है,” इसका क्या मतलब है?
8 बुद्धि और ज्ञान का सारा खज़ाना मसीह में “छिपाया गया है।” लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे पाना हमारी पहुँच से दूर है। बल्कि इसका मतलब है कि इस खज़ाने को पाने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी होगी। और अपना ध्यान मसीह की ओर लगाना होगा क्योंकि यीशु ने अपने बारे में कहा, “मैं ही वह राह, सच्चाई और जीवन हूँ। कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।” (यूह. 14:6) जी हाँ, परमेश्वर का ज्ञान पाने के लिए हमें यीशु से मिलनेवाली मदद और हिदायतों को कबूल करना होगा।
9. यीशु को कौन-सी भूमिकाएँ दी गयी हैं?
9 यीशु ने कहा कि वह “राह” होने के साथ-साथ “सच्चाई और जीवन भी है।” इससे पता चलता है कि यीशु हमें परमेश्वर के करीब लाने के अलावा और भी कई भूमिका निभाता है। ये भूमिकाएँ हमें बाइबल की सच्चाइयाँ समझने और हमेशा की ज़िंदगी पाने में मदद करती हैं। सचमुच, यीशु में बेशकीमती आध्यात्मिक खज़ाना छिपा है, जो सिर्फ बाइबल का गहरा अध्ययन करनेवाले ही पा सकते हैं। आइए, अब कुछ ऐसे अनमोल रत्न ढूँढ़ें जिनका सीधा असर परमेश्वर के साथ हमारे रिश्ते और हमारे भविष्य पर होता है।
10. हम कुलुस्सियों 1:19 और 2:9 से यीशु के बारे में क्या सीख सकते हैं?
10 “मसीह में ही ईश्वरत्व का स्वभाव पूरी हद तक निवास करता है।” (कुलु. 1:19; 2:9) यीशु स्वर्ग में अपने पिता के साथ अनगिनत युगों तक रहा। इसलिए पिता की शख्सियत और उसकी मरज़ी को यीशु से बेहतर और कोई नहीं जान सकता। धरती पर अपनी सेवा के दौरान उसने वही बातें सिखायीं जो उसने पिता से सीखी थीं। और अपने कामों से भी पिता के गुण ज़ाहिर किए। इसलिए यीशु कह सका: “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को भी देखा है।” (यूह. 14:9) परमेश्वर के बारे में बुद्धि और ज्ञान की सारी बातें मसीह में पायी जाती हैं। इसलिए यहोवा के बारे में सीखने का सबसे अच्छा तरीका है, यीशु के बारे में ज़्यादा-से-ज़्यादा सीखना।
11. यीशु और बाइबल की भविष्यवाणियों के बीच क्या संबंध है?
11 “भविष्यवाणियों का मकसद यीशु की गवाही देना है।” (प्रका. 19:10) ये शब्द दिखाते हैं कि बाइबल की बहुत-सी भविष्यवाणियों के पूरा होने में यीशु मुख्य भूमिका निभाता है। उत्पत्ति 3:15 की पहली भविष्यवाणी से लेकर प्रकाशितवाक्य के शानदार दर्शनों तक जितनी भी भविष्यवाणियाँ दर्ज़ हैं, उनकी सही समझ हमें तभी मिल सकती है जब हम मसीहाई राज से जुड़ी यीशु की भूमिका पर ध्यान देंगे। यही वजह है कि जो लोग यीशु को वादा किया मसीहा नहीं मानते, वे इब्रानी शास्त्र में दर्ज़ कई भविष्यवाणियाँ समझ नहीं पाते। इसके अलावा जो लोग इब्रानी शास्त्र की कदर नहीं करते, जिसमें मसीहा के बारे में ढेरों भविष्यवाणियाँ दी गयी हैं, उनके लिए यीशु महज़ एक महान इंसान है। यीशु के बारे में ज्ञान लेने से परमेश्वर के लोग बाइबल की वे भविष्यवाणियाँ समझ पाते हैं, जिनका पूरा होना अभी बाकी है।—2 कुरिं. 1:20.
12, 13. (क) यीशु किस तरह “दुनिया की रौशनी” है? (ख) झूठे धर्म के अंधकार से निकलने के बाद, मसीहियों की क्या ज़िम्मेदारी बनती है?
12 “मैं दुनिया की रौशनी हूँ।” (यूहन्ना 8:12; 9:5 पढ़िए।) धरती पर यीशु के जन्म से बहुत पहले भविष्यवक्ता यशायाह ने भविष्यवाणी की थी: “जो लोग अन्धियारे में चल रहे थे उन्हों ने बड़ा उजियाला देखा; और जो लोग घोर अन्धकार से भरे हुए मृत्यु के देश में रहते थे, उन पर ज्योति चमकी।” (यशा. 9:2) प्रेषित मत्ती ने समझाया कि यीशु ने यह भविष्यवाणी तब पूरी की जब उसने प्रचार करना शुरू किया और लोगों से कहा: “पश्चाताप करो, क्योंकि स्वर्ग का राज पास आ गया है।” (मत्ती 4:16, 17) यीशु की सेवा से लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान की रौशनी और झूठी शिक्षाओं से आज़ादी मिली। यीशु ने कहा: “मैं इस दुनिया में रौशनी बनकर आया हूँ ताकि हर कोई जो मुझ पर विश्वास करे वह अंधकार में न रहे।”—यूह. 1:3-5; 12:46.
13 यीशु की सेवा के कई साल बाद प्रेषित पौलुस ने अपने संगी मसीहियों से कहा: “तुम एक वक्त अंधकार में थे, मगर अब तुम प्रभु के साथ एकता में होने की वजह से रौशनी में हो। रौशनी की संतानों के नाते चलते रहो।” (इफि. 5:8) झूठे धर्म के अंधकार से बाहर निकलने के बाद, मसीहियों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वे रौशनी की संतानों के नाते चलते रहें। यही बात यीशु ने पहाड़ी उपदेश में अपने चेलों से कही थी: “तुम्हारी रौशनी लोगों के सामने चमके, जिससे वे तुम्हारे भले काम देखकर स्वर्ग में रहनेवाले तुम्हारे पिता की महिमा करें।” (मत्ती 5:16) आपने यीशु में जो आध्यात्मिक खज़ाना पाया है, क्या आप उसके लिए शुक्रगुज़ार हैं? क्या आप अपनी बातों और अच्छे मसीही चालचलन से दूसरों को भी उस खज़ाने को ढूँढ़ने के लिए उकसाते हैं?
14, 15. (क) भेड़ों और दूसरे जानवरों को सच्ची उपासना में किस तरह इस्तेमाल किया जाता था? (ख) “परमेश्वर का मेम्ना” होने के नाते यीशु की भूमिका कैसे दुनिया के हर खज़ाने से अनमोल है?
14 यीशु, “परमेश्वर का मेम्ना” है। (यूह. 1:29, 36) प्राचीन समय में पापों की माफी पाने और परमेश्वर के पास आने के लिए भेड़ की बलि चढ़ायी जाती थी। उस वाकये को याद कीजिए जब अब्राहम ने दिखाया कि वह अपने बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने को तैयार है। लेकिन फिर उसे इसहाक की जान लेने से रोका गया और बदले में एक मेढ़ा बलिदान करने के लिए दिया गया। (उत्प. 22:12, 13) मिस्र की गुलामी से छुड़ाए जाने के वक्त भी भेड़ का इस्तेमाल किया गया था। इसराएलियों को हुक्म दिया गया था कि “यहोवा का फसह” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) मनाने से पहले वे भेड़ का खून अपने दरवाज़ों के अलंगों पर लगाएँ। (निर्ग. 12:1-13) आगे चलकर, मूसा के कानून में तरह-तरह के जानवरों की बलि चढ़ाने की आज्ञा दी गयी, जिनमें भेड़-बकरियाँ शामिल थीं।—निर्ग. 29:38-42; लैव्य. 5:6, 7.
15 लेकिन न तो जानवरों का, न इंसानों का दिया कोई बलिदान मानवजाति को हमेशा के लिए पाप और मौत से छुड़ा सकता था। (इब्रा. 10:1-4) जबकि यीशु, “परमेश्वर का मेम्ना [है] जो दुनिया का पाप दूर ले जाता है।” यीशु की यह भूमिका दुनिया के किसी भी खज़ाने से कहीं ज़्यादा अनमोल है। इसलिए समय निकालकर यीशु की फिरौती पर गहराई से अध्ययन करना और इस लाजवाब इंतज़ाम पर विश्वास करना बेहद ज़रूरी है। ऐसा करके हम बढ़िया इनाम पाने की आशा रख सकते हैं। “छोटे झुंड” को स्वर्ग में मसीह के साथ महिमा और आदर मिलेगा और “दूसरी भेड़ें” धरती पर फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाएँगी।—लूका 12:32; यूह. 6:40, 47; 10:16.
16, 17. ‘हमारे विश्वास के खास नुमाइंदे और इसे परिपूर्ण करनेवाले’ के नाते यीशु जो भूमिका निभाता है, उसे समझना क्यों ज़रूरी है?
16 यीशु “विश्वास का खास नुमाइंदा और इसे परिपूर्ण करनेवाला है।” (इब्रानियों 12:1, 2 पढ़िए।) इब्रानियों अध्याय 11 में विश्वास के बारे में हम पौलुस की ज़बरदस्त चर्चा पढ़ते हैं। इसमें उसने चंद शब्दों में विश्वास की परिभाषा दी और फिर विश्वास की अच्छी मिसाल रखनेवालों के नाम गिनाए। जैसे नूह, अब्राहम, सारा और राहाब। इन सब बातों को मन में रखते हुए पौलुस ने संगी मसीहियों को उकसाया कि वे “यीशु पर नज़र टिकाए रहें जो हमारे विश्वास का खास नुमाइंदा और इसे परिपूर्ण करनेवाला है।” वह क्यों?
17 इब्रानियों अध्याय 11 में बताए वफादार स्त्री-पुरुषों को परमेश्वर के वादों पर पक्का विश्वास था। लेकिन ये वादे मसीहा और उसके राज के ज़रिए कैसे पूरे होंगे, इस बारे में वे हर बात नहीं जानते थे। इस मायने में उनका विश्वास पूर्ण नहीं था। यहाँ तक कि यहोवा ने जिन लोगों को मसीहा के बारे में भविष्यवाणियाँ लिखने के लिए इस्तेमाल किया, वे खुद उनका पूरा-पूरा मतलब नहीं समझ पाए थे। (1 पत. 1:10-12) सिर्फ यीशु के द्वारा ही विश्वास परिपूर्ण किया जा सकता है। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम यीशु की उस भूमिका को समझें और कबूल करें जो वह ‘हमारे विश्वास के खास नुमाइंदे और इसे परिपूर्ण करनेवाले’ के नाते निभाता है।
ढूँढ़ते रहो
18, 19. (क) मसीह में और कौन-से आध्यात्मिक रत्न छिपे हैं? (ख) हमें क्यों यीशु में छिपाए गए आध्यात्मिक खज़ाने को ढूँढ़ते रहना चाहिए?
18 मानवजाति के उद्धार के लिए परमेश्वर ने जो मकसद ठहराया है, उसमें यीशु की कई भूमिकाएँ हैं। इस लेख में हमने सिर्फ कुछ भूमिकाओं पर चर्चा की। मसीह में और भी बहुत-से आध्यात्मिक रत्न छिपे हैं। इन्हें ढूँढ़ने से हमें ढेरों खुशियाँ और फायदे मिलेंगे। उदाहरण के लिए, प्रेषित पतरस ने यीशु को ‘जीवन दिलानेवाला खास नुमाइंदा’ और चढ़ता हुआ “दिन का तारा” कहा। (प्रेषि. 3:15; 5:31; 2 पत. 1:19) और बाइबल यीशु के लिए “आमीन” शब्द का भी इस्तेमाल करती है। (प्रका. 3:14) क्या आपको यीशु की इन भूमिकाओं का मतलब और उनकी अहमियत पता है? यीशु ने कहा था: “ढूँढ़ते रहो और तुम पाओगे।”—मत्ती 7:7.
19 पूरे इतिहास में यीशु ही ऐसा शख्स है, जिसने सही मायनों में एक मकसद-भरी ज़िंदगी जी और जिसके ज़रिए हमें हमेशा के फायदे मिलेंगे। उसमें आध्यात्मिक खज़ाने का भंडार छिपा है और जो इसे पूरे दिल से ढूँढ़ते हैं, उन्हें यह आसानी से मिलता है। आप भी उसमें “सावधानी से छिपाया गया” खज़ाना ढूँढ़ सकते हैं। ऐसा करने पर आपको बेइंतिहा खुशी और ढेरों आशीषें मिलेंगी।
क्या आपको याद है?
• मसीहियों को कौन-सा खज़ाना ढूँढ़ने के लिए उकसाया गया है?
• कुलुस्से के भाइयों को दी पौलुस की सलाह आज हमारे लिए भी क्यों सही है?
• बताइए कि मसीह में कौन-से आध्यात्मिक रत्न ‘छिपाए गए’ हैं?
[पेज 5 पर तसवीरें]
बाइबल, एक नक्शे की तरह हमें उस खज़ाने की ओर ले जाती है जो मसीह में “सावधानी से छिपाया गया है”