बाइबल की किताब नंबर 49—इफिसियों
लेखक: पौलुस
लिखने की जगह: रोम
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 60–61
मान लीजिए आप जेल में हैं। आपका जुर्म बस इतना है कि आप एक मिशनरी के नाते जोश के साथ प्रचार कर रहे थे। अब आप अलग-अलग कलीसियाओं से मिलने नहीं जा सकते और ना ही उनकी हिम्मत बँधा सकते हैं। ऐसे में आप क्या करेंगे? क्या आप उन लोगों को खत नहीं लिखेंगे जो आपके प्रचार से मसीही बने हैं? क्या वे जानना नहीं चाहेंगे कि आप कैसे हैं और किस हाल में हैं? क्या उन्हें आपकी हौसला-अफज़ाई की ज़रूरत नहीं होगी? बेशक होगी! इसलिए आप उन्हें पत्र लिखना शुरू करते हैं। इस तरह आप वही कर रहे हैं, जो प्रेरित पौलुस ने सा.यु. 59-61 के आस-पास किया था। उस वक्त उसे पहली बार रोम में कैद किया गया था। उसने कैसर की दोहाई दी थी और अपने मुकदमे की सुनवाई का इंतज़ार कर रहा था। हालाँकि उस पर नज़र रखने के लिए पहरेदार ठहराए गए थे, मगर उसे थोड़ी-बहुत आज़ादी थी। पौलुस ने “इफिसियों के नाम” अपनी पत्री करीब सा.यु. 60 या 61 में रोम से लिखी थी। उसने यह पत्री तुखिकुस के हाथों भिजवायी थी, जिसके साथ उनेसिमुस भी था।—इफि. 6:21; कुलु. 4:7-9.
2 पौलुस अपनी पत्री के पहले शब्द में ही बताता है कि वह इसका लेखक है। और चार बार वह सीधे-सीधे या दूसरे तरीके से खुद को “प्रभु में बन्धुआ” कहता है। (इफि. 1:1; 3:1, 13; 4:1; 6:19, 20) पौलुस के लेखक होने के बारे में उठे वाद-विवाद खोखले साबित हुए हैं। चेस्टर बीटी पपाइरस नं. 2 (P46) में, जिसे करीब सा.यु. 200 का बताया जाता है, एक किताब के 86 पन्ने हैं जो पौलुस की पत्रियों के हैं। और उनमें इफिसियों को लिखी पत्री भी शामिल है। यह दिखाता है कि उस ज़माने में इफिसियों की पत्री को पौलुस की दूसरी पत्रियों के साथ रखा गया था।
3 शुरू के चर्च के लेखक पुख्ता करते हैं कि पौलुस ने ही यह पत्री “इफिसियों के नाम” लिखी थी। मिसाल के लिए, सा.यु. दूसरी सदी का आइरीनियस इफिसियों 5:30 का हवाला देते हुए कहता है: “जैसे कि पवित्र पौलुस इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में कहता है, हम उस की देह के अंग हैं।” उसी ज़माने के सिकंदरिया का क्लैमेंट अपनी बातों में इफिसियों 5:21 का हवाला देता है: “इफिसियों को लिखी अपनी पत्री में वह कहता है, परमेश्वर के भय में एक दूसरे के अधीन रहो।” सामान्य युग तीसरी सदी के शुरूआती सालों का लेखक ऑरिजन इफिसियों 1:4 का हवाला देते हुए कहता है: “प्रेरित पौलुस ने भी इफिसियों के नाम अपनी पत्री में एक-जैसी भाषा का इस्तेमाल किया जब उसने कहा, उसने हमें जगत की उत्पत्ति से पहिले चुन लिया है।”a शुरू के मसीही इतिहास (लगभग सा.यु. 260-लगभग 342) के एक और विद्वान, यूसेबियस इफिसियों को बाइबल के संग्रह में शामिल करता है। और शुरू के चर्च के ज़्यादातर लेखक भी इफिसियों को ईश्वर-प्रेरित शास्त्र का हिस्सा मानकर उसका हवाला देते हैं।b
4 चेस्टर बीटी पपाइरस, वैटिकन हस्तलिपि नं. 1209 और साइनाइटिक हस्तलिपि में इफिसियों के अध्याय 1 की पहली आयत से शब्द, “इफिसुस में” हटाया गया है। इसलिए इन हस्तलिपियों से पता नहीं चलता है कि इस पत्री को कहाँ भेजा गया था। इसके अलावा, पत्री में इफिसुस के भाइयों को शुभकामनाएँ भेजने का कोई ज़िक्र नहीं है (हालाँकि पौलुस ने तीन साल तक वहाँ प्रचार किया था)। इन दोनों वजहों से कुछ लोग इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि यह पत्री कहीं और भेजी गयी थी या एशिया माइनर की कलीसियाओं को भेजी गयी थी, जिनमें इफिसुस की कलीसिया भी शामिल थी। लेकिन दूसरी कई हस्तलिपियों से शब्द, “इफिसुस में” नहीं हटाया गया है और जैसा कि हमने पिछले पैराग्राफ में देखा, शुरू के चर्च के लेखक मानते थे कि यह पत्री इफिसियों को लिखी गयी थी।
5 इफिसुस के बारे में कुछ बातें जानने से हम समझ पाएँगे कि इस पत्री को किस मकसद से लिखा गया था। सामान्य युग की पहली सदी में इफिसुस झाड़-फूँक, जादू-टोना, ज्योतिष विद्या और प्रजनन देवी, अरतिमिस की पूजा के लिए मशहूर था।c इस देवी की मूर्ति के चारों तरफ एक शानदार मंदिर खड़ा किया गया था, जिसे प्राचीन समय के सात अजूबों में से एक माना जाता था। उन्नीसवीं सदी के दौरान इस जगह की खुदाई से पता चला कि यह मंदिर एक ऐसे चबूतरे पर खड़ा था, जो 240 फुट चौड़ा और 418 फुट लंबा था। मंदिर की चौड़ाई 164 फुट और लंबाई 343 फुट थी। उसमें संगमरमर के 100 खंभे थे और हर खंभा करीब 55 फुट ऊँचा था। छत बड़े और सफेद संगमरमर की खपरैल से बना था। कहा जाता है कि संगमरमर के पत्थरों के बीच सीमेंट की जगह सोना इस्तेमाल किया गया था। दुनिया-भर से सैलानी इस मंदिर को देखने आते थे और पर्वों के समय तो शहर लोगों से खचाखच भरा रहता था। इफिसुस में चाँदी का काम करनेवालों का फलता-फूलता कारोबार था, क्योंकि वे अरतिमिस के छोटे-छोटे चाँदी के मंदिर बनाकर तीर्थ यात्रियों को बेचते थे।
6 अपनी दूसरी मिशनरी यात्रा पर पौलुस ने थोड़े समय के लिए इफिसुस में प्रचार किया था। फिर उसने अक्विला और प्रिस्किल्ला को वहाँ प्रचार का काम जारी रखने के लिए छोड़ा था। (प्रेरि. 18:18-21) अपनी तीसरी मिशनरी यात्रा पर वह दोबारा इफिसुस आया और करीब तीन साल वहीं रहा। उस दौरान वह “मार्ग” के बारे में कइयों को प्रचार करता और सिखाता रहा। (प्रेरि. 19:8-10; 20:31) इफिसुस में रहते वक्त पौलुस ने सेवा में बहुत मेहनत की। ए. ई. बेली अपनी किताब, बाइबल के ज़माने में रोज़मर्रा की ज़िंदगी (अँग्रेज़ी) में लिखता है: “यह पौलुस का दस्तूर था कि हर दिन सूरज निकलने से लेकर सुबह के ग्यारह बजे तक वह अपने पेशे में लगा रहता था। (प्रेरि. 20:34, 35) ग्यारह बजे तक तुरन्नुस अपने स्कूल में सिखाना खत्म करता था और फिर उसी स्कूल में पौलुस ग्यारह से चार बजे तक प्रचार करता था, प्रचार में हाथ बँटानेवालों के साथ सभाएँ रखता था, . . . और आखिर में चार से देर रात तक वह घर-घर प्रचार करता था। (प्रेरि. 20:20, 21, 31) ऐसे में न जाने पौलुस को खाने और सोने की फुरसत कब मिलती होगी।”—सन् 1943, पेज 308.
7 इफिसुस में जोश के साथ प्रचार करते वक्त, पौलुस ने साफ-साफ बताया कि उपासना के लिए मूर्तियों का इस्तेमाल करना व्यर्थ है। यह सुनकर मूर्ति बनाने और बेचनेवालों का क्रोध भड़क उठा। उनमें से एक था, देमेत्रियुस जो चाँदी का काम करता था। नतीजा, शहर में जो हुल्लड़ मचा, उसकी वजह से पौलुस को मजबूरन शहर छोड़ना पड़ा।—प्रेरि. 19:23–20:1.
8 पौलुस अब जेल में बैठा यही सोच रहा है कि इफिसुस कलीसिया किन-किन मुश्किलों से गुज़र रही होगी। क्योंकि वे ऐसे शहर में हैं, जहाँ के लोग मूर्तियों को पूजते हैं। और-तो-और, वहाँ अरतिमिस का आलीशान मंदिर भी है। इसलिए पौलुस उन अभिषिक्त मसीहियों को जो उदाहरण देनेवाला है, वह उनके लिए बिलकुल सही है। वह उन्हें बताता है कि वे एक “पवित्र मन्दिर” हैं, जिसमें परमेश्वर अपनी आत्मा के ज़रिए वास करता है। (इफि. 2:21) वह उन्हें परमेश्वर के प्रबंध (अपने घरबार को सँभालने के उसके तरीके) के बारे में “पवित्र भेद” (NW) बताता है, जो उनके लिए बेशक एक महान प्रेरणा और सांत्वना भी थी। इस प्रबंध से परमेश्वर यीशु मसीह के ज़रिए पूरे जहान में एकता और शांति लाएगा। (1:9, 10) पौलुस इस बात पर ज़ोर देता है कि यहूदी और गैर-यहूदी दोनों मसीह में एक हैं। वह एकता का बढ़ावा देता है। इसलिए हम अब समझ सकते हैं कि इस किताब को लिखने के पीछे पौलुस का क्या मकसद था। हम यह भी समझ सकते हैं कि यह किताब कितनी अनमोल है और इसे ईश्वर-प्रेरणा से रचा गया है।
क्यों फायदेमंद है
16 इफिसियों की पत्री में मसीही ज़िंदगी के लगभग सभी पहलुओं पर चर्चा की गयी है। आज की दुनिया में समस्याएँ और अधर्म दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में पौलुस की उम्दा और कारगर सलाह उन लोगों को सचमुच फायदा पहुँचाती है, जो परमेश्वर को भानेवाली ज़िंदगी जीना चाहते हैं। बच्चों को अपने माता-पिता के साथ कैसे पेश आना चाहिए और माता-पिता को अपने बच्चों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए? पत्नी की तरफ एक पति की और पति की तरफ एक पत्नी की क्या ज़िम्मेदारियाँ बनती हैं? इस दुष्ट संसार में मसीही शुद्धता साथ ही, प्यार और एकता बनाए रखने के लिए कलीसिया के भाई-बहनों को क्या करना चाहिए? पौलुस की पत्री में इन सारे सवालों के जवाब दिए गए हैं। वह यह भी बताता है कि नया मसीही मनुष्यत्व पहनने में क्या शामिल है। इस पत्री का अध्ययन करने से सभी उस मनुष्यत्व की सच्ची कदर कर पाएँगे, जो परमेश्वर को भाता है और जो “परमेश्वर के अनुसार सत्य की धार्मिकता, और पवित्रता में सृजा गया है।”—4:24-32; 6:1-4; 5:3-5, 15-20, 22-33.
17 इफिसियों की पत्री यह भी दिखाती है कि भाइयों को ज़िम्मेदारी के पद सौंपने और कलीसिया के काम-काज देने का क्या मकसद है। वह यह है कि “पवित्र लोग सिद्ध हो [“सुधारे,” NW] जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए” और प्रौढ़ता हासिल करे। कलीसिया के इन इंतज़ामों में पूरा-पूरा सहयोग देकर एक मसीही ‘प्रेम के साथ सब बातों में उस में जो सिर है, अर्थात् मसीह में बढ़ते’ जा सकता है।—4:12, 15.
18 इस पत्री से इफिसुस की कलीसिया को बहुत फायदा हुआ, क्योंकि वह ‘मसीह के भेद’ को और भी अच्छी तरह समझ पायी। इसमें साफ बताया गया था कि विश्वास करनेवाले यहूदियों के साथ-साथ ‘अन्यजाति के लोगों’ को भी बुलाया जा रहा है, ताकि वे “मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा . . . मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी” हों। यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच दीवार बनकर खड़ी ‘आज्ञाओं की व्यवस्था’ को रद्द कर दिया गया था और मसीह के लहू से सभी, पवित्र लोगों के संगी स्वदेशी और परमेश्वर के घराने के सदस्य बन गए थे। अरतिमिस के मंदिर से बिलकुल उलट, ये लोग मसीह यीशु में ‘यहोवा के लिए एक पवित्र मंदिर’ बनते हैं, जिसमें यहोवा अपनी आत्मा के ज़रिए वास करता है।—3:4, 6; 2:15, 21.
19 “पवित्र भेद” के सिलसिले में पौलुस ने ‘एक ऐसे प्रबन्ध’ के बारे में भी बताया, जिसके ज़रिए ‘जो कुछ स्वर्ग में [यानी जिन्हें स्वर्ग के राज्य में हुकूमत करने के लिए चुना गया] है, और जो कुछ पृथ्वी पर है [यानी जो राज्य के अधीन धरती पर जीएँगे], सब कुछ मसीह में एकत्र होगा।’ इस तरह पूरे जहान में शांति और एकता कायम करने के परमेश्वर के महान मकसद पर ज़ोर दिया गया है। इस सिलसिले में पौलुस इफिसियों के लिए प्रार्थना करता है, जिनके मन की आँखें ज्योतिर्मय हो गयी थीं। वह दुआ करता है कि वे उस आशा को अच्छी तरह समझ जाएँ, जिनके लिए परमेश्वर ने उन्हें बुलाया है और वे देख सकें कि “पवित्र लोगों में उस की मीरास की महिमा का धन कैसा है।” इन शब्दों से ज़रूर इफिसियों को अपनी आशा को थामे रहने का हौसला मिला होगा। ईश्वर-प्रेरणा से लिखी इफिसियों की पत्री आज भी कलीसियाओं का हौसला बढ़ाती है कि ‘हम परमेश्वर की समस्त परिपूर्णता तक भरपूर हो जाएँ।’—1:9-11, 18; 3:19, NHT.
[फुटनोट]
a बाइबल की किताबों की शुरूआत और इतिहास (अँग्रेज़ी), सन् 1868, सी. ई. स्टो, पेज 357.
b नया बाइबल शब्दकोश (अँग्रेज़ी), दूसरा संस्करण, सन् 1986, जे. डी. डगलस द्वारा संपादित, पेज 175.
c इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्, भाग 1, पेज 182.