अध्ययन लेख 21
“इस दुनिया की बुद्धि” के बहकावे में मत आइए
“इस दुनिया की बुद्धि परमेश्वर की नज़र में मूर्खता है।”—1 कुरिं. 3:19.
गीत 98 परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा शास्त्र
लेख की एक झलकa
1. परमेश्वर अपने वचन के ज़रिए हमें क्या सिखाता है?
हम मसीही किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं और क्यों न हो, यहोवा हमारा महान उपदेशक जो है। (यशा. 30:20, 21) वह हमें अपने वचन के ज़रिए “हर अच्छे काम के लिए पूरी तरह काबिल” बनाता है और “हर तरह से तैयार” करता है। (2 तीमु. 3:17) जब हम बाइबल की शिक्षाओं के मुताबिक जीते हैं, तो हम उन लोगों से भी ज़्यादा बुद्धिमान बनते हैं, जो “इस दुनिया की बुद्धि” को श्रेष्ठ समझते हैं।—1 कुरिं. 3:19; भज. 119:97-100.
2. इस लेख में हम क्या सीखेंगे?
2 जैसे हम इस लेख में जानेंगे, दुनिया की बुद्धि अकसर हमारे अंदर स्वार्थी इच्छाएँ बढ़ाने की कोशिश करती है। इस वजह से शायद दुनिया के लोगों की सोच और उनके तौर-तरीके ठुकराना हमारे लिए मुश्किल हो। तभी बाइबल कहती है, “खबरदार रहो! कहीं ऐसा न हो कि कोई तुम्हें दुनियावी फलसफों और छलनेवाली उन खोखली बातों से कैदी बना ले, जो इंसानों की परंपराओं . . . के मुताबिक हैं।” (कुलु. 2:8) इस लेख में हम सीखेंगे कि किस तरह लोग दो किस्म की छलनेवाली खोखली बातों या झूठ पर यकीन करने लगे हैं। हर बात पर चर्चा करते वक्त हम यह भी देखेंगे कि क्यों दुनिया की बुद्धि मूर्खता है, जबकि परमेश्वर की बुद्धि उससे कहीं श्रेष्ठ है।
यौन-संबंधों के बारे में बदलती सोच
3-4. सन् 1900 से 1930 के दौरान अमरीका में यौन-संबंधों के बारे में लोगों की सोच में क्या बदलाव आया?
3 सन् 1900 से 1930 के दौरान अमरीका में यौन-संबंधों के बारे में लोगों की सोच में एक बड़ा बदलाव आया। इससे पहले बहुत-से लोगों का मानना था कि सिर्फ शादीशुदा लोगों के बीच यौन-संबंध होने चाहिए और इस विषय पर खुलेआम चर्चा नहीं की जानी चाहिए। लेकिन यह सोच धीरे-धीरे खत्म हो गयी और लोग ‘सबकुछ चलता है’ रवैया अपनाने लगे।
4 खासकर 1920-1929 के दौरान समाज में बहुत ज़्यादा बदलाव देखे गए। एक खोजकर्ता कहती है, “ज़्यादातर फिल्मों, नाटकों, गानों, उपन्यासों और विज्ञापनों में सेक्स से जुड़ी बातें दिखायी जाने लगीं।” उन्हीं सालों के दौरान लोगों के नाचने का तरीका ऐसा होने लगा, जो यौन-इच्छाएँ जगाता है और लोगों का पहनावा भी पहले जितना शालीन नहीं रहा। आखिरी दिनों के बारे में बाइबल में यही तो बताया गया था कि ज़्यादातर लोग “मौज-मस्ती से प्यार करनेवाले” होंगे।—2 तीमु. 3:4.
5. सन् 1960 के बाद से नैतिक मूल्यों के बारे में लोगों का नज़रिया किस तरह बदल गया?
5 फिर 1960 के दशक में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग बिना शादी के साथ रहने लगे और समलैंगिकता और तलाक आम बात हो गयी। अलग-अलग तरह के मनोरंजन में सेक्स से जुड़ी बातें और भी खुलकर दिखायी जाने लगीं। इस सबका अंजाम क्या हुआ? एक लेखिका बताती है कि जब समाज नैतिक मूल्यों को नज़रअंदाज़ कर देता है, तो अंजाम बहुत बुरे होते हैं। जैसे, लोगों को अश्लील तसवीरें या वीडियो देखने की लत लग जाती है, परिवार टूटने लगते हैं, माता या पिता को अकेले बच्चों की परवरिश करनी पड़ती है, लोगों को उनके अपने ही ज़ख्म देने लगते हैं या ऐसे ही दूसरे दुख-दर्द झेलने पड़ते हैं। इसके अलावा नाजायज़ यौन-संबंधों से एड्स जैसी बीमारियाँ फैल रही हैं। यह सब इस बात का सबूत है कि दुनिया की बुद्धि मूर्खता है।—2 पत. 2:19.
6. यौन-संबंधों के बारे में दुनिया की सोच किस तरह शैतान का मकसद पूरा करती है?
6 यौन-संबंधों के बारे में दुनिया के लोगों की जो सोच है, उससे शैतान का मकसद पूरा होता है। वह कैसे? यौन-इच्छाएँ और शादी का इंतज़ाम परमेश्वर की देन हैं, लेकिन जब लोग ये इच्छाएँ गलत तरीके से पूरी करते हैं और शादी के इंतज़ाम का अनादर करते हैं, तो यह देखकर शैतान बहुत खुश होता है। (इफि. 2:2) यही नहीं, बच्चे पैदा करने की काबिलीयत भी परमेश्वर की तरफ से एक बढ़िया तोहफा है। लेकिन नाजायज़ यौन-संबंध रखकर लोग इस तोहफे का अपमान करते हैं और इस वजह से हमेशा की ज़िंदगी पाने का मौका गँवा सकते हैं।—1 कुरिं. 6:9, 10.
यौन-संबंधों के बारे में बाइबल का नज़रिया
7-8. (क) यौन-संबंधों के बारे में बाइबल कैसी सोच का बढ़ावा देती है? (ख) यह दुनिया की सोच से क्यों बेहतर है?
7 दुनिया की बुद्धि के मुताबिक जीनेवाले लोग बाइबल के नैतिक स्तरों का मज़ाक उड़ाते हैं। वे कहते हैं कि ये स्तर बस पन्नों पर ही ठीक लगते हैं, इन पर चला नहीं जा सकता। ऐसे लोग शायद कहें, ‘यौन-इच्छाएँ तो ईश्वर ने ही हममें डाली हैं, फिर वह इन्हें पूरा करने से हमें क्यों रोकेगा?’ वे ऐसा इसलिए कहते हैं क्योंकि उनमें यह गलत सोच है कि इंसान का जो मन करे, वह करना चाहिए। लेकिन बाइबल ऐसा नहीं सिखाती। यह कहती है कि अपनी हर इच्छा पूरी करना ज़रूरी नहीं है, बल्कि परमेश्वर ने हमें गलत इच्छाओं से लड़ने की काबिलीयत दी है। (कुलु. 3:5) इतना ही नहीं, यहोवा ने शादी का ऐसा बढ़िया इंतज़ाम किया है, जिसमें यौन-इच्छाएँ सही तरीके से पूरी की जा सकती हैं। (1 कुरिं. 7:8, 9) शादी करके पति-पत्नी यौन-संबंधों का सुख ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें न तो कोई अफसोस होता है, न ही किसी बात की चिंता या डर होता है, जो अकसर नाजायज़ यौन-संबंध रखनेवालों को होता है।
8 दुनिया की बुद्धि के बिलकुल उलट बाइबल यौन-संबंधों के बारे में सही सोच रखने का बढ़ावा देती है। बाइबल इस बात से इनकार नहीं करती कि यौन-संबंधों से एक तरह का सुख मिलता है। (नीति. 5:18, 19) लेकिन इसमें यह भी कहा गया है, “तुममें से हर कोई पवित्रता और आदर के साथ अपने शरीर को काबू में रखना जाने, न कि लालच से और बेकाबू होकर अपनी वासनाएँ पूरी करे, जैसा उन राष्ट्रों के लोग करते हैं जो परमेश्वर को नहीं जानते।”—1 थिस्स. 4:4, 5.
9. (क) 20वीं सदी की शुरूआत में साक्षियों को कैसे परमेश्वर के स्तरों पर चलते रहने का बढ़ावा दिया गया? (ख) 1 यूहन्ना 2:15, 16 में कौन-सी बुद्धि-भरी सलाह दी गयी है? (ग) जैसे रोमियों 1:24-27 में ज़िक्र किया गया है, हमें किस तरह के अनैतिक काम नहीं करने चाहिए?
9 सन् 1900 से 1930 के दौरान यहोवा के साक्षी उन लोगों की छलनेवाली खोखली बातों में नहीं आए, जो “शर्म-हया की सारी हदें पार कर चुके” थे। (इफि. 4:19) उन्होंने यहोवा के स्तरों पर चलना नहीं छोड़ा। पंद्रह मई, 1926 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग में लिखा था, “एक आदमी या औरत को अपनी सोच शुद्ध रखनी चाहिए और अपना चालचलन बेदाग रखना चाहिए, खासकर विपरीत लिंग के व्यक्ति से व्यवहार करने के मामले में।” भले ही उस दौर में लोगों की सोच बदल रही थी, मगर यहोवा के लोग उसके वचन में दी बुद्धि के मुताबिक चलते रहे, जो दुनिया की बुद्धि से कहीं श्रेष्ठ है। (1 यूहन्ना 2:15, 16 पढ़िए।) हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा ने हमें अपना वचन दिया! हम इस बात के लिए भी एहसानमंद हैं कि वह अपने संगठन के ज़रिए हमें सही समय पर ज़रूरी जानकारी देता है। इस वजह से हम यौन-संबंधों के बारे में दुनिया की बुद्धि ठुकरा पाते हैं।b—रोमियों 1:24-27 पढ़िए।
खुद के बारे में लोगों की बदलती सोच
10-11. बाइबल में आखिरी दिनों के बारे में पहले से क्या बताया गया था?
10 बाइबल में पहले से बताया गया था कि आखिरी दिनों में लोग “खुद से प्यार करनेवाले” होंगे। (2 तीमु. 3:1, 2) तभी यह कोई ताज्जुब की बात नहीं कि दुनिया इस सोच का बढ़ावा देती है कि खुद को दूसरों से बेहतर समझो। एक विश्वकोश बताता है कि 1970 के दशक में “ऐसी बहुत-सी किताबें प्रकाशित हुईं, जिनमें कामयाब होने के बारे में सलाह दी गयी है।” उन किताबों के पढ़नेवालों से कहा गया था कि आप जैसे हैं, वैसे ही अच्छे हैं। आपमें कोई कमी नहीं जो आप खुद को बदलें। ऐसी ही एक किताब में लिखा था, “दुनिया के सबसे खूबसूरत और रोमांचक इंसान से प्यार करना है, तो खुद से प्यार कीजिए।” वही किताब यह भी बताती है कि एक इंसान को खुद तय करना चाहिए कि किन हालात में क्या करना सही है और उसे जो सही लगे, वही करना चाहिए।
11 शायद आप सोचें, ‘यह बात तो मैंने पहले भी कहीं सुनी है।’ सही पहचाना। शैतान ने हव्वा से कुछ ऐसा ही करने के लिए कहा था। उसने कहा, “तुम परमेश्वर के जैसे हो जाओगे और खुद जान लोगे कि अच्छा क्या है और बुरा क्या।” (उत्प. 3:5) आज बहुत-से लोग खुद को इतना ज़्यादा बुद्धिमान समझते हैं कि उन्हें लगता है, किसी को भी उन्हें यह बताने की ज़रूरत नहीं कि क्या सही है और क्या गलत, यहाँ तक कि ईश्वर को भी यह हक नहीं है। यही सोच खासकर शादी के बंधन के बारे में लोग अपनाने लगे हैं।
12. शादी के बारे में दुनिया किस सोच का बढ़ावा देती है?
12 बाइबल में पति-पत्नियों को सलाह दी गयी है कि वे एक-दूसरे का आदर करें और शादी की शपथ निभाएँ। बाइबल में लिखा है, “आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे।” (उत्प. 2:24) इस तरह यह पति-पत्नी को बढ़ावा देती है कि वे हर हाल में एक-दूसरे का साथ निभाएँ। वहीं जो लोग दुनिया की बुद्धि के मुताबिक चलते हैं, वे इससे बिलकुल अलग सोच का बढ़ावा देते हैं। वे कहते हैं कि हर जीवन-साथी को पहले अपनी ज़रूरतों के बारे में सोचना चाहिए। तलाक के बारे में लिखी एक किताब बताती है, कुछ देशों में लोग शादी के वक्त सबके सामने यह शपथ खाते हैं कि वे आखिरी साँस तक एक-दूसरे का साथ निभाएँगे। लेकिन बहुत-से लोगों ने इसके शब्द बदल दिए और उन्होंने कहा कि वे तब तक इस बंधन में बँधे रहेंगे, जब तक उनके बीच प्यार रहेगा। यह दिखाता है कि लोग शादी को हमेशा का बंधन नहीं मानते, इसलिए अनगिनत परिवार टूट जाते हैं और लोगों को बहुत दुख सहना पड़ता है। तो क्या आपको नहीं लगता कि शादी के बारे में दुनिया की सोच मूर्खता है?
13. यहोवा घमंडी लोगों से नफरत करता है, इसकी एक वजह क्या है?
13 बाइबल बताती है, “जिसके मन में घमंड है, वह यहोवा की नज़र में घिनौना है।” (नीति. 16:5) यहोवा घमंडी लोगों से नफरत क्यों करता है? इसकी एक वजह यह है कि जो लोग सबसे ज़्यादा खुद से प्यार करते हैं और इसी सोच का बढ़ावा देते हैं, वे शैतान की फितरत दिखा रहे होते हैं। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि शैतान कितना घमंडी है? परमेश्वर ने यीशु के ज़रिए सारी चीज़ों की सृष्टि की थी, तो ज़ाहिर है कि वह शैतान से कहीं ज़्यादा ताकतवर होगा! (कुलु. 1:15, 16) फिर भी शैतान ने यीशु से उम्मीद की कि वह झुककर उसकी उपासना करे। (मत्ती 4:8, 9) भले ही घमंडी लोगों को लगे कि वे बुद्धिमान हैं, मगर परमेश्वर की नज़र में वे मूर्ख हैं।
खुद को अहमियत देने के बारे में बाइबल का नज़रिया
14. रोमियों 12:3 की मदद से हम खुद के बारे में सही नज़रिया कैसे रख सकते हैं?
14 बाइबल हमें खुद के बारे में सही नज़रिया रखने का बढ़ावा देती है। यह इस बात को मानती है कि कुछ हद तक खुद से प्यार करना सही है। यीशु ने कहा था, “अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।” (मत्ती 19:19) इससे पता चलता है कि खुद से प्यार करना और अपनी ज़रूरतों पर ध्यान देना पूरी तरह गलत नहीं है। लेकिन बाइबल यह नहीं सिखाती कि हमें खुद को दूसरों से बेहतर समझना चाहिए। इसके बजाय यह बताती है, “झगड़ालू रवैए या अहंकार की वजह से कुछ न करो, मगर नम्रता से दूसरों को खुद से बेहतर समझो।”—फिलि. 2:3; रोमियों 12:3 पढ़िए।
15. आपके हिसाब से खुद को बहुत ज़्यादा अहमियत न देने के बारे में बाइबल की सलाह क्यों फायदेमंद है?
15 आज जिन लोगों को दुनिया में बुद्धिमान माना जाता है, उन्हें बाइबल की सलाह बेतुकी लगती है। वे कहते हैं कि अगर तुम दूसरों को खुद से बेहतर समझोगे, तो लोग तुम्हें कमज़ोर समझेंगे और तुम्हारा नाजायज़ फायदा उठाएँगे। लेकिन ज़रा सोचिए, शैतान की दुनिया ने सिर्फ खुद के बारे में सोचने का जो बढ़ावा दिया है, उससे क्या नतीजे निकले हैं? आपने क्या गौर किया है? क्या स्वार्थी लोग खुश रहते हैं? क्या उनका परिवार खुशहाल रहता है? क्या उनके सच्चे दोस्त हैं? क्या परमेश्वर के साथ उनकी गहरी दोस्ती है? आपने जो देखा है, उसके हिसाब से आप क्या कहेंगे? क्या दुनिया की बुद्धि के मुताबिक जीने से अच्छे नतीजे निकलते हैं या परमेश्वर के वचन में दी बुद्धि के मुताबिक चलने से?
16-17. हम किस बात के लिए एहसानमंद हैं और क्यों?
16 आप उस मुसाफिर के बारे में क्या कहेंगे, जो रास्ता भटक जाने पर किसी ऐसे मुसाफिर से रास्ता पूछता है, जो खुद भटक गया है? यही हाल उनका है, जो दुनिया की नज़र में बुद्धिमान लोगों की सलाह पर चलते हैं। यीशु ने अपने ज़माने के ऐसे ही “बुद्धिमान” आदमियों के बारे में कहा, “वे खुद तो अंधे हैं, मगर दूसरों को राह दिखाते हैं। अगर एक अंधा अंधे को राह दिखाए, तो दोनों गड्ढे में जा गिरेंगे।” (मत्ती 15:14) सच में, इस दुनिया की बुद्धि परमेश्वर की नज़र में मूर्खता है!
17 वहीं बाइबल की सलाह “सिखाने, समझाने, सुधारने और नेक स्तरों के मुताबिक सोच ढालने के लिए” हमेशा “फायदेमंद” साबित हुई है। (2 तीमु. 3:16, फु.) हम यहोवा के कितने एहसानमंद हैं कि उसने अपने संगठन के ज़रिए हमें इस दुनिया की बुद्धि से बचाया है! (इफि. 4:14) वह अपने संगठन के ज़रिए हमें जो जानकारी देता है, उसकी वजह से हम उसके वचन में दिए स्तरों पर चल पाते हैं। परमेश्वर के वचन में जो बुद्धि और मार्गदर्शन दिया गया है, उस पर चलने से हमेशा भला ही होता है! क्या दुनिया में इससे बेहतर सलाह कोई और हमें दे सकता है?
गीत 54 “राह यही है”
a इस लेख से हमारा यह यकीन और भी पक्का होगा कि सबसे सही और भरोसेमंद मार्गदर्शन सिर्फ यहोवा दे सकता है। इससे यह भी पता चलेगा कि दुनिया की बुद्धि के मुताबिक चलने के भयानक अंजाम होते हैं, जबकि परमेश्वर के वचन में दी बुद्धि के मुताबिक चलने से फायदे होते हैं।
c तसवीर के बारे में: एक साक्षी पति-पत्नी की ज़िंदगी की एक झलक दिखायी गयी है। सन् 1968 के आस-पास वे एक आदमी को गवाही दे रहे हैं।
d तसवीर के बारे में: सन् 1980 के दशक में भाई की पत्नी बीमार हो गयी है और वह उसकी देखभाल कर रहा है। उनकी छोटी बेटी यह सब देख रही है।
e तसवीर के बारे में: आज वही पति-पत्नी पुरानी तसवीरें देखकर अपनी यादें ताज़ा कर रहे हैं और खुश हो रहे हैं कि उन्होंने यहोवा की सलाह मानी। उनकी बेटी बड़ी हो गयी है और वह अपने पति और बच्चे के साथ उनकी खुशी में शामिल है।