मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
4-10 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | रोमियों 12-14
“मसीही प्यार का क्या मतलब है?”
इंसाइट-1 पेज 55
लगाव
मसीही मंडली के सब लोगों में भाइयों जैसा प्यार (यूनानी में फिलादेलफिया, शाब्दिक, “एक भाई से लगाव”) होना चाहिए। (रोम 12:10; इब्र 13:1; कृपया 1पत 3:8 भी देखें।) दूसरे शब्दों में मंडली के भाई-बहनों को एक-दूसरे के इतने करीब महसूस करना चाहिए और उनका आपसी रिश्ता इतना मज़बूत होना चाहिए जितना कि एक परिवार के लोगों का होता है। भले ही किसी मंडली के भाई-बहनों में ऐसा प्यार हो, फिर भी उन्हें बढ़ावा दिया जाता है कि वे एक-दूसरे से और भी ज़्यादा प्यार करें।—1थि 4:9, 10.
यूनानी शब्द फिलो-स्टोरगस का मतलब है, “गहरा लगाव” होना। यह शब्द एक ऐसे व्यक्ति के लिए इस्तेमाल होता है जिसका किसी और व्यक्ति से गहरा रिश्ता है। यह शब्द जिन शब्दों से निकला है उनमें से एक है स्टरगो। इसका ज़िक्र अकसर स्वाभाविक प्यार के लिए होता है, जैसे वह प्यार जो परिवार के लोगों के बीच होता है। प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को ऐसा ही प्यार बढ़ाने की सलाह दी थी। (रोम 12:10) पौलुस ने यह भी बताया था कि आखिरी दिनों में लोगों के बीच कोई “लगाव” (यूनानी, ऐस्टरगोई ) नहीं होगा और ऐसे लोग मौत की सज़ा पाने के लायक हैं।—2ती 3:3; रोम 1:31, 32.
‘सबके साथ शांति बनाए रखो’
3 रोमियों 12:17 पढ़िए। पौलुस समझाता है कि जब कोई हमारा विरोध करता है, तो हमें ईंट का जवाब पत्थर से नहीं देना चाहिए। यह सलाह मानना खासकर उन लोगों के लिए ज़रूरी है, जिनके परिवार के सभी सदस्य यहोवा के उपासक नहीं हैं। मिसाल के तौर पर एक मसीही को लीजिए, जिसका जीवन-साथी सच्चाई में नहीं है। वह साथी शायद उसे जब-तब जली-कटी सुनाता है या उसके साथ कठोरता से पेश आता है। ऐसे में मसीही बदला लेने के खयाल को अपने दिल में पनपने नहीं देगा। “बुराई का बदला बुराई से” देने में कोई फायदा नहीं। इसके उलट, यह आग में घी का काम कर सकता है।
“बुराई के बदले किसी से बुराई न करो”
12 विश्वासियों और अविश्वासियों के साथ हमें कैसे पेश आना चाहिए, इस बारे में पौलुस आगे उकसाता है: “बुराई के बदले किसी से बुराई न करो।” यह वाक्य, पहले कही पौलुस की इस बात से गहरा ताल्लुक रखता है: “बुराई से घृणा करो।” वाकई, अगर एक इंसान किसी से बदला लेने के लिए बुराई करेगा, तो क्या वह यह कह सकेगा कि वह बुराई से सचमुच घृणा करता है? हरगिज़ नहीं। इसके बजाय, ऐसा करना यह दिखाएगा कि उसमें “निष्कपट” प्रेम है ही नहीं। पौलुस आगे कहता है: “जो बातें सब लोगों की दृष्टि में भली हैं, उनकी चिन्ता किया करो।” (आर.ओ.वी.) (रोमियों 12:9, 17) हम इन शब्दों को कैसे लागू कर सकते हैं?
13 रोम के मसीहियों को लिखने से पहले, पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीहियों को एक पत्री लिखी थी। उसमें उसने बताया था कि प्रेरितों को कैसे-कैसे ज़ुल्म सहने पड़े। उसने लिखा: “हम जगत और स्वर्गदूतों और मनुष्यों के लिये तमाशा ठहरे हैं। . . . लोग बुरा कहते हैं, हम आशीष देते हैं; वे सताते हैं, हम सहते हैं। वे बदनाम करते हैं, हम बिनती करते हैं।” (1 कुरिन्थियों 4:9-13) उसी तरह, आज दुनिया के लोगों की नज़रें सच्चे मसीहियों पर हैं। जब हमारे आस-पास के लोग देखते हैं कि हम अन्याय सहते वक्त भी भले काम करते हैं, तो वे शायद हमारा संदेश सुनने के लिए तैयार हो जाएँ, जिसे उन्होंने पहले ठुकरा दिया था।—1 पतरस 2:12.
एक-दूसरे को दिल खोलकर माफ करो
13 कभी-कभी हो सकता है कि कोई बाहरवाला आपके साथ बुरा सुलूक करे। लेकिन आप अपने व्यवहार से उसे सच्चाई की तरफ खींच सकते हैं। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “‘अगर तेरा दुश्मन भूखा हो तो उसे खाना खिला। अगर वह प्यासा है तो उसे पानी पिला, इसलिए कि ऐसा करने से तू उसके सिर पर अंगारों का ढेर लगाएगा।’ बुराई से न हारो बल्कि भलाई से बुराई को जीतते रहो।” (रोमि. 12:20, 21) दूसरों के भड़कने पर अगर आप अदब से पेश आते हैं, तो कठोर-से-कठोर इंसान भी पिघल सकता है और उसकी अच्छाइयाँ निखरकर सामने आ सकती हैं। आपके साथ बुरा बर्ताव करनेवाले को अगर आप समझने की कोशिश करें और उसके साथ करुणा से पेश आएँ, तो हो सकता है बाइबल की सच्चाइयाँ सीखने में आप उसकी मदद कर पाएँ। अगर ऐसा न भी हो तौभी, आपका कोमल व्यवहार देखकर वह सोचने पर मजबूर होगा कि आप दूसरों से इतने अलग क्यों हैं।—1 पत. 2:12; 3:16.
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प्यार के लायक पेज 76-77 पै 5-6
अच्छा मनोरंजन क्या है—कैसे जानें?
5 हम ज़िंदगी में जो कुछ करते हैं, उस पर निर्भर करता है कि परमेश्वर हमारी उपासना स्वीकार करेगा या नहीं। पौलुस ने यही बात समझाते हुए कहा था, “अपने शरीर को जीवित, पवित्र और परमेश्वर को भानेवाले बलिदान के तौर पर अर्पित करो।” (रोमियों 12:1) यीशु ने कहा था, “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपने पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना।” (मरकुस 12:30) हम यहोवा की उपासना के लिए जो भी करते हैं, वह हमारी तरफ से सबसे अच्छा होना चाहिए। इसराएलियों को बताया गया था कि जब भी वे यहोवा के लिए कोई जानवर बलिदान करें, तो वह ऐसा जानवर होना चाहिए, जो पूरी तरह स्वस्थ हो। अगर जानवर में कोई दोष होता, तो यहोवा उसे स्वीकार नहीं करता था। (लैव्यव्यवस्था 22:18-20) उसी तरह अगर आज हमारी उपासना में कोई दोष होगा, तो यहोवा उसे स्वीकार नहीं करेगा। इसका मतलब क्या है?
6 यहोवा हमसे कहता है, “तुम्हें पवित्र बने रहना है क्योंकि मैं पवित्र हूँ।” (1 पतरस 1:14-16; 2 पतरस 3:11) यहोवा हमारी उपासना तभी स्वीकार करेगा, जब वह पवित्र या शुद्ध होगी। (व्यवस्थाविवरण 15:21) यहोवा को अनैतिकता, हिंसा, जादू-टोने जैसी बातों से नफरत है। अगर हम ऐसे काम करें, तो हमारी उपासना अशुद्ध हो जाएगी। (रोमियों 6:12-14; 8:13) हो सकता है कि हम खुद ऐसे काम न करें, लेकिन फिल्मों वगैरह में इन्हीं बातों का मज़ा लें। ऐसे में हमारी उपासना दूषित हो जाएगी। यहोवा उसे स्वीकार नहीं करेगा और उसके साथ हमारा जो रिश्ता है, वह भी टूट सकता है।
रोमियों किताब की झलकियाँ
13:1—किस मायने में प्रधान अधिकारी या सरकारी शासक “परमेश्वर के ठहराए हुए” हैं? वह इस मायने में कि वे परमेश्वर की इजाज़त से हुकूमत करते हैं। और कुछ मामलों में तो परमेश्वर ने बहुत समय पहले देख लिया था कि आगे चलकर कौन हुकूमत करेगा। यह बात हम बाइबल में देख सकते हैं। इसमें कई शासकों के बारे में भविष्यवाणी दी गयी है, जिन्होंने आगे चलकर राज किया।
बढ़ाएँ प्रचार में हुनर
प्र11 9/1 पेज 21-22, अँग्रेज़ी
क्या आपको कर चुकाना चाहिए?
कर के मामले में ज़मीर की आवाज़
ध्यान दीजिए कि पहली सदी के मसीही भी जो कर देते थे, उसका ज़्यादातर पैसा सेना के काम में लगाया जाता था। लेकिन ज़मीर के मसले को लेकर गाँधी जी और थारो ने कर देने के खिलाफ बात की थी।
मसीही रोमियों 13 में बतायी आज्ञा क्यों मानते थे? “अपने ज़मीर की वजह से” मानते थे, न कि सज़ा से बचने के लिए। (रोमियों 13:5) जी हाँ, एक मसीही का ज़मीर उसे मजबूर करता है कि वह सरकार को कर चुकाए, फिर चाहे उसके कर का पैसा ऐसे कामों में लगाया जाए जिनसे उसे एतराज़ है। शायद यह बात हमें समझने में थोड़ी मुश्किल लगे, मगर इसे समझने के लिए हमें ज़मीर के बारे में एक अहम बात जानने की ज़रूरत है क्योंकि ज़मीर हमारे अंदर की वह आवाज़ है जो हमें बताती है कि फलाँ काम सही है या गलत।
जैसे थारो ने कहा था, ज़मीर हर इंसान में होता है। मगर हमारा ज़मीर हमेशा भरोसे के लायक नहीं होता, क्योंकि कुछ मामलों में हमारी सोच शायद परमेश्वर की सोच से मेल न खाए। ऐसे में हमें अपनी सोच बदलनी होगी ताकि यह परमेश्वर की सोच से मेल खाए क्योंकि उसकी सोच हमारी सोच से कहीं ज़्यादा ऊँची है। परमेश्वर हमसे तभी खुश होगा जब हमारा ज़मीर उसके नैतिक स्तरों के मुताबिक काम करेगा। (भजन 19:7) इसलिए हमें जानना होगा कि सरकारों के बारे में परमेश्वर क्या सोचता है।
प्रेषित पौलुस ने कहा कि सरकारें “परमेश्वर के ठहराए जन-सेवक हैं।” इसका क्या मतलब है? यही कि सरकारें समाज में कानून और व्यवस्था कायम रखती हैं और जनता की खातिर कई अच्छे काम करती हैं। सरकारें चाहे कितनी भी भ्रष्ट हों, वे हमारे लिए कई सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं, जैसे डाक-सेवा, शिक्षा, अग्नि-सुरक्षा और पुलिस सेवा वगैरह। परमेश्वर जानता है कि इंसानी सरकारों में बहुत-सी खामियाँ हैं, फिर भी वह कुछ समय के लिए इन्हें बरदाश्त कर रहा है। उसने हमें आज्ञा दी है कि हम सरकारों की इज़्ज़त करें और इन्हें कर चुकाएँ।
परमेश्वर बहुत जल्द सभी इंसानी सरकारों को हटाकर अपनी सरकार कायम करेगा और इन सरकारों ने सदियों से इंसानों का जो नुकसान किया है, उसकी भरपाई कर देगा। (दानियेल 2:44; मत्ती 6:10) उस समय के आने तक परमेश्वर चाहता है कि हम सरकारों की आज्ञा मानें। वह नहीं चाहता कि हम कर देने से इनकार करें या किसी और तरह से सरकार के खिलाफ बगावत करें।
लेकिन ऊपर बतायी बातों पर गौर करने के बाद भी अगर आपको गांधी जी की तरह लगता है कि कर देकर हम युद्ध का समर्थन करते हैं और यह पाप है, तो आप क्या कर सकते हैं? एक मिसाल पर ध्यान दीजिए। जब हम किसी ऊँची जगह पर चढ़ते हैं, तो हमें नीचे का इलाका और साफ नज़र आता है। उसी तरह, जब हम अपनी सोच को परमेश्वर की ऊँची सोच के हिसाब से ढालते हैं, तो हम मामले को सही नज़रिए से देख पाते हैं। परमेश्वर ने यशायाह भविष्यवक्ता के ज़रिए कहा था, “जिस तरह आकाश पृथ्वी से ऊँचा है, उसी तरह मेरी राहें तुम्हारी राहों से और मेरी सोच तुम्हारी सोच से ऊँची है।”—यशायाह 55:8, 9.
11-17 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | रोमियों 15-16
“धीरज धरने और दिलासा पाने के लिए यहोवा की ओर ताकिए”
“रोनेवालों के साथ रोओ”
11 लाज़र की मौत पर यीशु ने जो दर्द और पीड़ा महसूस की, उस बारे में पढ़कर हमें बहुत दिलासा मिलता है। लेकिन बाइबल में और भी कई आयतें हैं जिनसे हमें राहत और सुकून मिलता है और क्यों न हों, आखिर “जो बातें पहले से लिखी गयी थीं, वे इसलिए लिखी गयीं कि हम उनसे सीखें और शास्त्र से हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम दिलासा पाएँ ताकि हमारे पास आशा हो।” (रोमि. 15:4) अगर मौत ने किसी अपने को आपसे छीन लिया है, तो इन आयतों से आपको भी सुकून और दिलासा मिल सकता है:
▪ “यहोवा टूटे मनवालों के करीब रहता है, वह उन्हें बचाता है जिनका मन कुचला हुआ है।”—भज. 34:18, 19.
▪ “जब चिंताएँ मुझ पर हावी हो गयीं, तब [यहोवा ने] मुझे दिलासा दिया, सुकून दिया।”—भज. 94:19.
▪ “हमारा प्रभु यीशु मसीह और हमारा पिता यानी परमेश्वर जिसने हमसे प्यार किया और अपनी महा-कृपा के ज़रिए हमें सदा कायम रहनेवाला दिलासा दिया है और एक शानदार आशा दी है, वे दोनों तुम्हारे दिलों को दिलासा दें और तुम्हें . . . मज़बूत करें।”—2 थिस्स. 2:16, 17.
“धीरज को अपना काम पूरा करने दो”
5 यहोवा से ताकत माँगिए। यहोवा “धीरज और दिलासा देनेवाला परमेश्वर” है। (रोमि. 15:5) सिर्फ वही हमारे हालात और हमारी भावनाएँ पूरी तरह समझता है। वह समझता है कि किसी मुश्किल हालात में किस पर क्या बीतती है। इसलिए वह सबसे अच्छी तरह जानता है कि धीरज धरने के लिए हमें क्या चाहिए। बाइबल कहती है, “वह अपने डरवैयों की इच्छा पूरी करता है, और उनकी दोहाई सुनकर उनका उद्धार करता है।” (भज. 145:19) लेकिन जब हम यहोवा से बिनती करते हैं कि वह हमें धीरज धरने की ताकत दे, तो वह कैसे उसका जवाब देता है?
‘तुझे अपने परमेश्वर यहोवा से प्यार करना है’
11 यहोवा हमें भविष्य की ‘आशा देता है जो हमें खुशी और शांति से भर देती है।’ (रोमि. 15:13) जब हमारा विश्वास परखा जाता है, तब यह आशा हमें धीरज धरने में मदद देती है। जो अभिषिक्त जन ‘मौत तक विश्वासयोग्य साबित होते हैं उन्हें स्वर्ग में ज़िंदगी का ताज’ मिलेगा। (प्रका. 2:10) और जिन वफादार जनों को धरती पर जीने की आशा है, वे फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी पाएँगे। (लूका 23:43) हमें अपनी आशा के बारे में कैसा महसूस होता है? यह आशा हमारे दिलों को खुशी और शांति, साथ ही यहोवा के लिए प्यार से भर देती है, जो हमें “हरेक अच्छा तोहफा और हरेक उत्तम देन” देता है।—याकू. 1:17
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प्र89 12/1 पेज 24 पै 3, अँग्रेज़ी
‘मैं परखना चाहता हूँ कि तुम्हारा प्यार कितना सच्चा है’
यह बिलकुल सही था कि गैर-यहूदी मसीही यरूशलेम के मसीहियों की मदद करने के लिए आगे बढ़ें। गैर-यहूदी मसीही एक खास मायने में यरूशलेम के मसीहियों के “कर्ज़दार” थे। कैसे? यरूशलेम के मसीहियों ने गैर-यहूदियों तक खुशखबरी पहुँचायी थी। पौलुस ने कहा, “पवित्र जनों ने परमेश्वर से जो पाया था वह गैर-यहूदी राष्ट्रों को भी दिया, इसलिए इनका भी फर्ज़ बनता है कि वे पवित्र जनों की खाने-पहनने की ज़रूरतों के लिए दान देकर उनकी सेवा करें।”—रोमियों 15:27.
इंसाइट-1 पेज 858 पै 5
पहले से जानना, पहले से तय करना
मसीहा वह वंश होता जिसके आने का वादा किया गया था और जिसके ज़रिए धरती के सभी परिवारों के नेक लोगों को आशीषें मिलतीं। (गल 3:8, 14) पहली बार उस वंश का ज़िक्र अदन में हुई बगावत के बाद किया गया था। (उत 3:15) तब तक हाबिल का भी जन्म नहीं हुआ था। इसके करीब 4,000 साल बाद उस “वंश” यानी मसीहा की पहचान साफ ज़ाहिर हुई और “पवित्र रहस्य” खुल गया। इसलिए यह कहना सही होगा कि उस रहस्य को “पुराने ज़माने से राज़ रखा गया था।”—रोम 16:25-27; इफ 1:8-10; 3:4-11.
18-24 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 कुरिंथियों 1-3
“आप इंसानी सोच रखते हैं या परमेश्वर की सोच?”
परमेश्वर की सोच रखने का क्या मतलब है?
4 इंसानी सोच रखनेवाले में दुनिया की फितरत होती है। वह सिर्फ अपनी इच्छाएँ पूरी करने की सोचता रहता है। पौलुस ने कहा कि “यह फितरत . . . आज्ञा न माननेवालों पर असर करती है।” (इफि. 2:2) इसलिए इंसानी सोच रखनेवाला दुनिया के लोगों की देखा-देखी वही करता है जो उसे ठीक लगता है। उसे परमेश्वर के स्तरों की कोई परवाह नहीं होती। उसे सबसे ज़्यादा अपने रुतबे और धन-दौलत से प्यार होता है। वह हमेशा अपने हक के बारे में सोचता है।
5 इंसानी सोच रखनेवाला उन कामों में लगा रहता है जिसे बाइबल “शरीर के काम” कहती है। (गला. 5:19-21) पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को लिखी अपनी पहली चिट्ठी में बताया कि ऐसा इंसान और क्या-क्या काम करता है। वह झगड़ों में पक्ष लेता है, लोगों में फूट डालता है, विद्रोह की आग भड़काता है, दूसरों को अदालत में घसीटता है, मुखियापन का आदर नहीं करता और खाने-पीने को हद-से-ज़्यादा अहमियत देता है। इतना ही नहीं, गलत काम के लिए लुभाए जाने पर वह बड़ी आसानी से उसमें फँस जाता है। (नीति. 7:21, 22) यहूदा ने लिखा कि ऐसे इंसान में यहोवा की पवित्र शक्ति काम नहीं करती।—यहू. 18, 19.
परमेश्वर की सोच रखने का क्या मतलब है?
6 इंसानी सोच रखनेवाले को परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते की कोई फिक्र नहीं होती जबकि परमेश्वर की सोच रखनेवाले को होती है। वह यह जानने की कोशिश करता है कि परमेश्वर क्या सोचता है और मामलों को किस नज़र से देखता है। वह परमेश्वर की पवित्र शक्ति के मार्गदर्शन में चलता है और यहोवा की मिसाल पर चलने में मेहनत करता है। (इफि. 5:1) उसके लिए परमेश्वर एक असल शख्स होता है। वह अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में यहोवा के स्तरों पर चलता है। (भज. 119:33; 143:10) वह ‘शरीर के कामों’ में नहीं लगा रहता बल्कि अपने अंदर “पवित्र शक्ति का फल” बढ़ाता है।—गला. 5:22, 23.
परमेश्वर की सोच रखने का क्या मतलब है?
15 हम कैसे मसीह की मिसाल पर चल सकते हैं? पहला कुरिंथियों 2:16 समझाता है कि इसके लिए “मसीह के जैसी सोच” रखना ज़रूरी है। इसके अलावा, रोमियों 15:5 बढ़ावा देता है, “तुम्हारी सोच और तुम्हारा नज़रिया मसीह यीशु जैसा हो।” तो फिर मसीह के जैसा बनने के लिए ज़रूरी है कि हम उसकी सोच, भावनाओं और उसके कामों के बारे में सीखें। यीशु के लिए परमेश्वर के साथ उसका रिश्ता सबसे ज़्यादा अहमियत रखता था। तो फिर हम जितना ज़्यादा यीशु के जैसा बनने की कोशिश करेंगे, उतना ज़्यादा हम यहोवा के जैसा बन पाएँगे। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि हम यीशु के जैसी सोच रखना सीखें।
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इंसाइट-2 पेज 1193 पै 1
बुद्धि
परमेश्वर ने मसीह के ज़रिए जो इंतज़ाम किया था, उसे दुनिया ने मूर्खता समझकर ठुकरा दिया क्योंकि उसने अपनी बुद्धि का सहारा लिया। इस दुनिया के अधिकारी प्रशासन चलाने में भले ही काबिल और समझदार थे, फिर भी उन्होंने ‘महिमावान प्रभु को मार डाला।’ (1कुर 1:18; 2:7, 8) मगर परमेश्वर ने दुनियावी बुद्धि को मूर्खता साबित किया और दुनिया के ज्ञानियों को शर्मिंदा किया। कैसे? वे ‘परमेश्वर की जिन बातों को मूर्खता’ समझते थे और जिन लोगों को ‘मूर्ख, कमज़ोर और तुच्छ’ मानते थे, उन्हीं के ज़रिए परमेश्वर ने अपना मकसद पूरा किया। (1कुर 1:19-28) पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों से कहा कि ‘इस ज़माने की बुद्धि और इस ज़माने में राज करनेवालों की बुद्धि’ मिट जाएगी। इसलिए उसने परमेश्वर का संदेश देते समय दुनियावी ज्ञान की बातें नहीं लिखीं। (1कुर 2:6, 13) उसने कुलुस्से के मसीहियों को सलाह दी कि वे “दुनियावी फलसफों [यूनानी, फिलोसोफियास, शाब्दिक, ज्ञान से लगाव] और छलनेवाली उन खोखली बातों से” खबरदार रहें “जो इंसानों की परंपराओं” के मुताबिक होती हैं।
कुरिन्थियों को लिखी पत्रियों की झलकियाँ
2:3-5. यूनानी फलसफों और शिक्षाओं की खास जगह, कुरिन्थुस में गवाही देते वक्त पौलुस को शायद यह फिक्र थी कि वह अपने सुननेवालों को कायल कर पाएगा या नहीं। लेकिन किसी कमज़ोरी या डर की वजह से वह परमेश्वर से मिली अपनी सेवा को पूरा करने से पीछे नहीं हटा। उसी तरह, हमें भी मुश्किल हालात की वजह से राज्य का सुसमाचार सुनाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। हम यहोवा पर भरोसा रख सकते हैं कि वह हमारी मदद करेगा, ठीक जैसे उसने पौलुस की मदद की थी।
25-31 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | 1 कुरिंथियों 4-6
“ज़रा-सा खमीर पूरे गुँधे हुए आटे को खमीरा कर देता है”
इंसाइट-2 पेज 230
खमीर
प्रेषित पौलुस ने खमीर की मिसाल देकर कुरिंथ की मंडली को आज्ञा दी कि वे अपने बीच से एक ऐसे आदमी को निकाल दें जो अनैतिक काम करता था। उसने कहा, “क्या तुम नहीं जानते कि ज़रा-सा खमीर पूरे गुँधे हुए आटे को खमीरा कर देता है? पुराने खमीर को निकालकर फेंक दो ताकि तुम गुँधा हुआ नया आटा बन सको और देखा जाए तो तुम बिना खमीर के हो। इसलिए कि हमारे फसह का मेम्ना, मसीह बलि किया जा चुका है।” फिर उसने बताया कि यहाँ “खमीर” का मतलब क्या है। “इसलिए आओ हम यह त्योहार न तो पुराने खमीर से, न ही बुराई और दुष्टता के खमीर से मनाएँ बल्कि सीधाई और सच्चाई की बिन-खमीर की रोटियों के साथ मनाएँ।” (1कुर 5:6-8) पौलुस यहाँ बिन खमीर की रोटियों के त्योहार की मिसाल दे रहा था जो फसह के तुरंत बाद मनाया जाता था। जैसे थोड़ा-सा खमीर गुँधे हुए पूरे आटे को खमीरा बना देता है, उसी तरह अगर मंडली से उस अनैतिक आदमी को नहीं निकाला जाता, तो उसका असर पूरी मंडली पर पड़ता और मंडली यहोवा की नज़र में अशुद्ध हो जाती। उन्हें उस आदमी को, जो “खमीर” जैसा था, अपने बीच से निकाल देना था, ठीक जैसे इसराएलियों को बिन खमीर की रोटियों के त्योहार के दौरान अपने घरों में खमीर बिलकुल नहीं रखना था।
इंसाइट-2 पेज 869-870
शैतान
इस बात का मतलब क्या है कि “उस आदमी को शैतान के हवाले कर दो ताकि उसके पाप का बुरा असर मिट जाए”?
पौलुस ने कुरिंथ की मंडली को निर्देश दिया कि वे उस आदमी के साथ क्या करें जो अपने पिता की पत्नी से नाजायज़ संबंध रखता था। पौलुस ने लिखा, “तुम उस आदमी को शैतान के हवाले कर दो ताकि उसके पाप का बुरा असर मिट जाए।” (1कुर 5:5) पौलुस के कहने का यह मतलब था कि मंडली उस आदमी को अपने बीच से निकाल दे और उसकी संगति बिलकुल न करें। (1कुर 5:13) उसे शैतान के हवाले करने का यह मतलब था कि वे उसे मंडली से निकाल दें ताकि वह उस दुनिया में चला जाए जिसका ईश्वर और राजा शैतान है। जैसे “ज़रा-सा खमीर पूरे गुँधे हुए आटे को खमीरा कर देता है,” उसी तरह उस आदमी के “पाप का बुरा असर” पूरी मंडली पर हो रहा था। इसलिए परमेश्वर की सोच रखनेवाली मंडली जब उस बदचलन आदमी को अपने बीच से निकाल देती, तो मंडली पर उसका ‘बुरा असर मिट जाता।’ (1कुर 5:6, 7) पौलुस ने हुमिनयुस और सिकंदर को भी शैतान के हवाले कर दिया था, क्योंकि वे विश्वास से भटक गए थे। उनका ज़मीर भ्रष्ट हो चुका था और उनका विश्वास रूपी जहाज़ टूट गया था।—1ती 1:20.
प्यार के लायक पेज 241, ज़्यादा जानकारी
बहिष्कार का इंतज़ाम
अगर एक मसीही बहुत बड़ा पाप करता है और पश्चाताप नहीं करता, तो वह मंडली का सदस्य नहीं रह सकता। उसका बहिष्कार करना ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि वह यहोवा के स्तरों पर चलने से इनकार कर देता है। उस व्यक्ति से हम कोई नाता नहीं रखते, यहाँ तक कि उससे बात भी नहीं करते। (1 कुरिंथियों 5:11; 2 यूहन्ना 9-11) बहिष्कार करने के इंतज़ाम की वजह से यहोवा और मंडली का नाम बदनाम नहीं होता। (1 कुरिंथियों 5:6) इस इंतज़ाम से बहिष्कृत व्यक्ति का भी भला होता है, क्योंकि जब उसके साथ ऐसी सख्त कार्रवाई की जाती है, तो उसे एहसास हो सकता है कि उसे यहोवा के पास लौट आने के लिए पश्चाताप करना होगा।—लूका 15:17.
▸ अध्याय 3, पैराग्राफ 19
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
“जन-सेवा करनेवाले स्वर्गदूत”
16 परीक्षा से गुज़रनेवाले मसीही ‘स्वर्गदूतों के लिए तमाशा’ ठहरते हैं। (1 कुरिं. 4:9) किस तरह? उन्हें यह देखकर बड़ा संतोष मिलता है कि मसीही आज़माइशों के बावजूद वफादार बने रहते हैं। इसके अलावा, जब एक पापी पश्चाताप करके लौटता है तब भी वे खुशियाँ मनाते हैं। (लूका 15:10) जब मसीही स्त्री परमेश्वर के स्तरों पर चलती है तो स्वर्गदूत उस पर गौर करते हैं। बाइबल कहती है: “स्वर्गदूतों की वजह से एक स्त्री को चाहिए कि वह अपने सिर पर अधीनता की निशानी रखे।” (1 कुरिं. 11:3, 10) जी हाँ, स्वर्गदूत यह देखकर बहुत खुश होते हैं कि मसीही स्त्रियाँ और परमेश्वर के धरती पर के सारे सेवक उसके कायदे-कानून और उसके मुखियापन का आदर करते हैं। जब परमेश्वर के नियमों का पालन किया जाता है तो यह बात परमेश्वर के स्वर्गीय पुत्रों के लिए एक बेहतरीन मिसाल ठहरती है।
इंसाइट-2 पेज 211
कानून
स्वर्गदूतों को दिया गया कानून। स्वर्गदूतों का दर्जा इंसानों से ऊँचा है। उन्हें भी परमेश्वर का कानून और उसकी आज्ञाएँ माननी होती हैं। (इब्र 1:7, 14; भज 104:4) यहोवा ने अपने दुश्मन शैतान को भी कुछ आज्ञाएँ दी थीं और उस पर पाबंदियाँ लगायी थीं। (अय 1:12; 2:6) प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल इस बात को मानता था कि यहोवा ही सबसे बड़ा न्यायी है। इसलिए जब शैतान से उसकी बहस हुई, तो उसने शैतान से कहा, “यहोवा तुझे डाँटे।” (यहू 9; कृपया जक 3:2 से तुलना करें।) यहोवा परमेश्वर ने महिमावान यीशु मसीह को सब स्वर्गदूतों पर अधिकार दिया है। (इब्र 1:6; 1पत 3:22; मत 13:41; 25:31; फिल 2:9-11) इसलिए यीशु के आज्ञा देने पर एक स्वर्गदूत यूहन्ना के पास गया था। (प्रक 1:1) पहला कुरिंथियों 6:3 में प्रेषित पौलुस ने कहा कि मसीह के अभिषिक्त भाइयों को स्वर्गदूतों का न्याय करने के लिए ठहराया गया है। शायद इसका यह मतलब है कि दुष्ट स्वर्गदूतों का नाश करने में अभिषिक्त जन भी हिस्सा लेंगे।