समझ के साथ सिखाइए और कायल कीजिए
“बुद्धिमान मनुष्य का हृदय उसके मुँह से अंदरूनी समझ प्रकट करवाता है और उसके होंठ कायल करते हैं।”—नीतिवचन १६:२३, NW.
१. हम क्यों कह सकते हैं कि परमेश्वर का वचन सिखाने का मतलब सिर्फ जानकारी देना नहीं है?
परमेश्वर का वचन सिखानेवालों के नाते हम अपने विद्यार्थी को सच्चाई का सिर्फ दिमागी ज्ञान नहीं देना चाहते, बल्कि उसके दिल तक पहुँचना चाहते हैं। (इफिसियों १:१८) इसलिए सिखाने का मतलब सिर्फ जानकारी देना नहीं है। नीतिवचन १६:२३ (NW) कहता है: “बुद्धिमान मनुष्य का हृदय उसके मुँह से अंदरूनी समझ प्रकट करवाता है और उसके होंठ कायल करते हैं।”
२. (क) कायल करने का मतलब क्या है? (ख) किस तरह सभी मसीही कायल करनेवाले शिक्षक बन सकते हैं?
२ बेशक, प्रेरित पौलुस ने इसी उसूल के मुताबिक सिखाया। जब वह कुरिन्थ में था, तो “वह हर एक सब्त के दिन आराधनालय में वाद-विवाद करके यहूदियों और यूनानियों को भी समझाता [कायल करता, हिन्दुस्तानी बाइबल] था।” (प्रेरितों १८:४) एक विद्वान के मुताबिक, जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “कायल करना” किया गया है उसका मतलब है “तर्क देकर या नैतिक बातों के आधार पर समझा-बुझाकर किसी के सोच-विचार को बदलना।” पौलुस अपने तर्क से लोगों को इस तरह कायल कर सकता था कि उनका सोचने का तरीका ही बदल जाता था। पौलुस की दूसरों को कायल करने की काबिलीयत इतनी लाजवाब थी कि उसके दुश्मन भी उससे डरते थे। (प्रेरितों १९:२४-२७) लेकिन, पौलुस अपनी ही काबिलीयत के बलबूते पर नहीं सिखाता था। उसने कुरिन्थियों को बताया: “मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभानेवाली बातें नहीं; परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था। इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो।” (१ कुरिन्थियों २:४, ५) पौलुस की तरह सभी मसीहियों को यहोवा परमेश्वर की पवित्र आत्मा की मदद मिलती है, इसलिए वे भी ऐसे शिक्षक बन सकते हैं जो दूसरों को बड़ी अच्छी तरह कायल कर सकते हैं। मगर कैसे? आइए हम सिखाने के कुछ असरदार तरीकों पर नज़र डालें।
ध्यान से सुनिए
३. दूसरों को सिखाते वक्त उनके बारे में अंदरूनी समझ होना क्यों ज़रूरी है और हम किस तरह अपने बाइबल विद्यार्थी के दिल तक पहुँच सकते हैं?
३ सिखाने का सबसे पहला असरदार तरीका है सुनना, न कि बोलना। जैसे नीतिवचन १६:२३ में बताया गया है, किसी को कायल करने के लिए हमारे पास उसके बारे में अंदरूनी समझ होनी चाहिए। यीशु को भी उन लोगों के बारे में अंदरूनी समझ थी जिन्हें वह सिखाता था। यूहन्ना २:२५ कहता है: “वह आप ही जानता था, कि मनुष्य के मन में क्या है।” लेकिन हम कैसे जान सकते हैं कि जिन्हें हम सिखा रहे हैं उनके दिल में क्या है? यह जानने का एक तरीका है कि हम उनकी बात ध्यान से सुनें। याकूब १:१९ कहता है: “हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा . . . हो।” यह सच है कि हर कोई अपने दिल की बात दूसरों को नहीं बताता। लेकिन हमारे बाइबल विद्यार्थियों को जब यह यकीन हो जाता है कि हम उनके सच्चे दोस्त हैं तो अपने दिल की बात बताने में उन्हें दिक्कत नहीं होगी। अगर हम सोच-समझकर और प्यार से उनसे सवाल पूछें तो हम उनके दिल की बात बाहर “निकाल” पाएँगे।—नीतिवचन २०:५.
४. मसीही प्राचीनों के लिए दूसरों की बात ध्यान से सुनना क्यों ज़रूरी है?
४ मसीही प्राचीनों के लिए दूसरों की बात ध्यान से सुनना खासकर ज़रूरी है। ऐसा करने पर ही वे जान सकेंगे कि उन्हें “किस व्यक्ति को कैसे उत्तर देना चाहिए।” (कुलुस्सियों ४:६, नयी हिन्दी बाइबल) नीतिवचन १८:१३ चेतावनी देता है: “जो बिना बात सुने उत्तर देता है, वह मूढ़ ठहरता, और उसका अनादर होता है।” एक बहन कुछ दिनों से सभाओं में नहीं आई थी इसलिए उसकी मदद करने के इरादे से दो भाइयों ने उसे संसार का भाग न होने के बारे में सलाह दी। उस बहन के दिल को गहरी चोट लगी क्योंकि उन भाइयों ने उससे सभाओं में न आने की वज़ह पूछी ही नहीं। कुछ दिन पहले ही उसका ऑपरेशन हुआ था जिसकी वज़ह से वह चल-फिर नहीं पा रही थी। इस अनुभव से पता लगता है कि किसी को सलाह देने से पहले उसकी सुन लेना कितना ज़रूरी है!
५. किस तरह प्राचीन, भाइयों के बीच उठनेवाली समस्याओं को सुलझा सकते हैं?
५ जब प्राचीन सिखाते हैं तब अकसर उन्हें दूसरों को सलाह देनी होती है। इस मामले में भी दूसरों की बात ध्यान से सुन लेना बहुत ज़रूरी है। सुनना खासकर तब ज़रूरी हो जाता है जब कलीसिया में भाई-बहनों के बीच अनबन पैदा हो जाती है। उनकी पूरी बात सुन लेने के बाद ही प्राचीन, यहोवा की तरह ‘बिना पक्षपात के न्याय’ कर सकते हैं। (१ पतरस १:१७) ऐसे हालात में लोग अपने जज़्बात पर काबू नहीं रख पाते, इसलिए प्राचीनों को नीतिवचन १८:१७ की सलाह याद रखनी चाहिए: “मुक़द्दमे में जो पहिले बोलता, वही धर्मी जान पड़ता है, परन्तु पीछे दूसरा पक्षवाला आकर उसे खोज लेता है।” एक अच्छा शिक्षक दोनों पक्षों की बात सुनता है। माहौल को शांत करने के लिए वह परमेश्वर से प्रार्थना करता है। (याकूब ३:१८) अगर गहमा-गहमी होने लगे तो प्राचीन दोनों पक्षों से कह सकता है कि वे आपस में झगड़ने के बजाय अपनी-अपनी समस्या उसे बताएँ। सही तरह के सवाल पूछकर प्राचीन उनकी समस्या सुलझा सकता है। कई मामलों में झगड़ों की वज़ह कोई बुरी भावना नहीं होती, बल्कि दोनों पक्षों में बातचीत की कमी होती है। लेकिन अगर कोई बाइबल के उसूलों के खिलाफ गया है तो प्राचीन प्यार और करुणा दिखाते हुए, अंदरूनी समझ के साथ उन्हें सिखा सकता है, क्योंकि उसने दोनों पक्षों की बात ध्यान से सुनी है।
सरलता की अहमियत
६. किस तरह पौलुस और यीशु ने सरलता से सिखाने में एक अच्छी मिसाल रखी है?
६ अच्छे शिक्षक का एक और गुण यह है कि वह सब कुछ सरलता से सिखाता है। बेशक हम चाहते हैं कि हमारे बाइबल विद्यार्थी ‘सब पवित्र लोगों के साथ भली भांति [सच्चाई को] समझने की शक्ति पाएँ; कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है।’ (इफिसियों ३:१८) बाइबल में ऐसी कई शिक्षाएँ हैं जो बहुत ही दिलचस्प और गूढ़ हैं, मगर अकसर इन्हें दूसरों को सिखाना आसान नहीं होता। (रोमियों ११:३३) पर फिर भी जब पौलुस ने यूनानियों को सुसमाचार सुनाया तो उसने ‘क्रूस पर चढ़ाए गए मसीह’ का सरल संदेश सुनाया। (१ कुरिन्थियों २:१, २) उसी तरह यीशु का सिखाने का तरीका भी स्पष्ट और बढ़िया था। उसने अपने पहाड़ी उपदेश में सरल शब्दों का इस्तेमाल किया। लेकिन इन्हीं सरल शब्दों में यीशु ने बहुत बड़ी-बड़ी सच्चाइयाँ बताईं।—मत्ती, अध्याय ५-७.
७. किस तरह हम बाइबल की सच्चाइयाँ सरलता से सिखा सकते हैं?
७ उसी तरह हम भी बाइबल की सच्चाइयाँ सरलता से सिखा सकते हैं। कैसे? उन बातों पर ध्यान देकर जो “उत्तम से उत्तम,” या “ज़्यादा ज़रूरी” (NW) हैं। (फिलिप्पियों १:१०) जब हम बाइबल के कठिन विषय सिखाते हैं तो हमें सरल भाषा में समझाने की कोशिश करनी चाहिए। हम जिस किताब से अध्ययन कर रहे हैं उसमें दी गई बाइबल की हर आयत को पढ़ने और उस पर चर्चा करने के बजाय खास आयतों पर ही ध्यान देना चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि हम खुद अध्ययन की अच्छी तैयारी करें। हमें विद्यार्थी को ढेर सारी गैर-ज़रूरी जानकारी देकर उलझन में नहीं डालना चाहिए, न ही छोटी-छोटी बातों को लेकर अपने विषय से भटकना चाहिए। अगर विद्यार्थी, विषय से हटकर कोई सवाल पूछता है तो हम उसे ठेस न पहुँचाने की सावधानी बरतते हुए कह सकते हैं कि हम इस सवाल के बारे में पाठ पूरा होने पर चर्चा करेंगे।
सवालों का अच्छा इस्तेमाल करना
८. किस तरह यीशु ने सवालों का अच्छा इस्तेमाल किया?
८ एक अच्छा शिक्षक सिखाने के लिए सवालों का बहुत बढ़िया इस्तेमाल करता है। यीशु मसीह अकसर सवालों का इस्तेमाल करते हुए सिखाता था। मिसाल के तौर पर उसने पतरस से पूछा: “हे शमौन तू क्या समझता है? पृथ्वी के राजा महसूल या कर किन से लेते हैं? अपने पुत्रों से या परायों से? पतरस ने उन से कहा, परायों से। यीशु ने उस से कहा, तो पुत्र बच गए।” (मत्ती १७:२४-२६) यीशु उसी परमेश्वर का एकलौता बेटा था जिसकी उपासना उस मंदिर में की जाती थी। इसलिए यीशु को मंदिर का कर देने की ज़रूरत नहीं थी। लेकिन इस सच्चाई को समझाने के लिए यीशु ने सवालों का अच्छा इस्तेमाल किया। इस तरह पतरस जो बात पहले से जानता था, उसी के ज़रिए यीशु ने उसे सही नज़रिया अपनाने में मदद दी।
९. किस तरह हम दूसरों को बाइबल सिखाते वक्त सवालों का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं?
९ हम दूसरों को बाइबल सिखाते वक्त सवालों का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। जब हमारा विद्यार्थी गलत जवाब देता है तो हम शायद उसे फौरन सही जवाब बताना चाहेंगे, लेकिन इस तरह बता देने से क्या उसे जवाब याद रहेगा? यह अच्छा होगा अगर हम विद्यार्थी से कई सवाल पूछकर उसे सही जवाब तक पहुँचने में मदद करें। मिसाल के तौर पर, अगर वो यह नहीं समझ पा रहा है कि उसे परमेश्वर का नाम क्यों इस्तेमाल करना चाहिए तो हम उससे पूछ सकते हैं, ‘क्या आप अपने नाम की कदर करते हैं? . . . क्यों? . . . अगर कोई आपको नाम से न बुलाना चाहे तो आपको कैसा लगेगा? . . . तो क्या परमेश्वर के लिए यह माँग करना उचित नहीं कि हम उसे उसके नाम से पुकारें?’
१०. ऐसे लोगों की मदद करते वक्त जिनका दिल ज़ख्मों से भरा हुआ है, किस तरह प्राचीन सवालों का इस्तेमाल कर सकते हैं?
१० परमेश्वर के झुंड की रखवाली करते समय भी प्राचीन सवालों का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं। शैतान की दुनिया ने कलीसिया के कई लोगों के दिल को ज़ख्मों से भर दिया है और उनके साथ गलत व्यवहार किया है, इसलिए शायद वे खुद को गंदा समझते हैं और उन्हें लगता है कि वे किसी का प्यार पाने के लायक नहीं हैं। ऐसा महसूस करनेवाले व्यक्ति को समझाने के लिए प्राचीन उससे पूछ सकता है: ‘हालाँकि आप खुद को गंदा समझते हैं पर यहोवा आपके बारे में क्या महसूस करता है? हमारे प्यारे स्वर्गीय पिता ने आपकी छुड़ौती देने के लिए अपने बेटे की ज़िंदगी दे दी, तो क्या इसका यह मतलब नहीं है कि परमेश्वर आपसे प्यार करता है?’—यूहन्ना ३:१६.
११. सिखाते वक्त ऐसे सवाल पूछने का मकसद क्या है जिनके जवाब की ज़रूरत नहीं होती, और भाषण देते वक्त इनका इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है?
११ सिखाने का एक और अच्छा तरीका है ऐसे सवाल करना जिनके जवाब की ज़रूरत नहीं होती, मगर उनसे सुननेवालों को सिखाई जा रही बातों पर सोचने में मदद मिलती है। पुराने ज़माने के भविष्यवक्ता अकसर ऐसे ही सवाल पूछा करते थे, ताकि उनके सुननेवाले बड़े ध्यान से सोच सकें। (यिर्मयाह १८:१४, १५) यीशु ने ऐसे ही सवालों का अच्छा इस्तेमाल किया। (मत्ती ११:७-११) ऐसे सवाल खासकर तब असरदार होते हैं जब कई लोगों के सामने भाषण दिया जाता है। मिसाल के तौर पर, श्रोताओं को सिर्फ यह बताने के बजाय कि यहोवा को खुश करने के लिए उन्हें मन लगाकर सेवा करनी चाहिए, उनसे यह पूछना ज़्यादा अच्छा होगा, ‘अगर हम यहोवा की सेवा मन लगाकर न करें तो क्या वह खुश होगा?’
१२. विद्यार्थी की राय जानने के लिए सवाल पूछना क्यों ज़रूरी है?
१२ विद्यार्थी की राय जानने के लिए पूछे जानेवाले सवाल यह तय करने में मदद कर सकते हैं कि क्या वह सीखी हुई बातों पर विश्वास करता है या नहीं। (मत्ती १६:१३-१६) एक विद्यार्थी शायद व्यभिचार के बारे में यह कहकर सही जवाब दे कि व्यभिचार करना गलत है। लेकिन यह जवाब पाने के बाद क्यों न उससे ये सवाल भी किए जाएँ, परमेश्वर ने हमारे चालचलन के बारे में जो स्तर रखा उसके बारे में आप क्या महसूस करते हैं? क्या आपको लगता है कि परमेश्वर के नियम हमारी आज़ादी छीन लेते हैं? आप क्या सोचते हैं कि परमेश्वर के स्तरों को मानना सचमुच ज़रूरी है या नहीं?
दिल को छूनेवाले दृष्टांत
१३, १४. (क) किसी बात का दृष्टांत देने का मतलब क्या है? (ख) अच्छे दृष्टांत क्यों असरदार होते हैं?
१३ एक और तरीका जिसके ज़रिए हम सुननेवालों और बाइबल विद्यार्थियों के दिल तक पहुँच सकते हैं, वह है अच्छे दृष्टांत इस्तेमाल करना। जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “दृष्टांत” किया गया है उसका मतलब है “पास में या साथ रखना।” जब आप किसी बात को समझाने के लिए दृष्टांत देते हैं तो आप उस बात को उससे मिलती-जुलती किसी और बात के ‘साथ रख’ देते हैं। मिसाल के तौर पर, यीशु ने पूछा: “हम परमेश्वर के राज्य की उपमा किस से दें, और किस दृष्टान्त से उसका वर्णन करें?” यीशु ने इसका जवाब देते हुए राई के दाने का ज़िक्र किया जिससे सब लोग वाकिफ थे।—मरकुस ४:३०-३२.
१४ परमेश्वर के भविष्यवक्ताओं ने कई असरदार दृष्टांत दिए। परमेश्वर ने इस्राएलियों को सज़ा देने के लिए अश्शूरियों का इस्तेमाल किया था लेकिन जब वे हद-से-ज़्यादा ज़ुल्म करने लगे तो यशायाह ने उनकी दुष्टता का पर्दाफाश करने के लिए यह दृष्टांत दिया: “क्या कुल्हाड़ा उसके विरुद्ध जो उस से काटता हो डींग मारे, वा आरी उसके विरुद्ध जो उसे खींचता हो बड़ाई करे?” (यशायाह १०:१५) दूसरों को सिखाते वक्त यीशु ने भी बहुत-से दृष्टांतों का इस्तेमाल किया। कहा गया है कि वह “बिना दृष्टान्त कहे उन से कुछ भी नहीं कहता था।” (मरकुस ४:३४) अच्छे दृष्टांत इसलिए असरदार होते हैं क्योंकि दिल और दिमाग, दोनों पर ही इनका असर होता है। इन दृष्टांतों के ज़रिए, सुननेवालों को नई बातें समझने में आसानी होती है, क्योंकि इनकी तुलना किसी जानी-पहचानी बात से की जाती है।
१५, १६. किस तरह दृष्टांत ज़्यादा असरदार बन सकते हैं? कुछ मिसाल दीजिए।
१५ हम किस तरह ऐसे दृष्टांत बता सकते हैं जो सचमुच दिल को छू लें? सबसे पहले, दृष्टांत काफी हद तक उस बात से मिलता-जुलता होना चाहिए जिसे समझाने के लिए दृष्टांत दिया जा रहा है। अगर दृष्टांत, समझाई जा रही बात पर सही नहीं बैठता है तो सुननेवालों को इससे कोई फायदा तो नहीं होगा, इसके बजाय उनका ध्यान भटक सकता है। एक भाई ने अपने भाषण में यीशु मसीह के प्रति अभिषिक्त लोगों की अधीनता को समझाने के लिए उनकी तुलना एक वफादार पालतू कुत्ते से की। लेकिन क्या इस तरह का अपमानजनक दृष्टांत देना उचित है? इसी विचार को बाइबल एक बहुत ही आकर्षक और गौरवपूर्ण तरीके से बताती है। यह यीशु के १,४४,००० अभिषिक्त चेलों की तुलना “उस दुल्हिन” से करती है “जो अपने पति के लिये सिंगार किए हो।”—प्रकाशितवाक्य २१:२.
१६ दृष्टांत तब ज़्यादा असरदार होते हैं जब वे लोगों की ज़िंदगी से ताल्लुक रखते हैं। जब नातान ने राजा दाऊद को एक भेड़ की बच्ची के वध किए जाने का दृष्टांत बताया तो यह बात राजा दाऊद के दिल को छू गई क्योंकि राजा दाऊद जवानी में भेड़ चराने का काम करता था और उसे भेड़ों से बहुत लगाव था। (१ शमूएल १६:११-१३; २ शमूएल १२:१-७) अगर दृष्टांत बैल का होता तो शायद इतना असरदार नहीं होता। इसी तरह, अगर हम अपने सुननेवालों को ऐसी वैज्ञानिक या ऐतिहासिक घटनाओं का दृष्टांत देंगे जिनके बारे में वे जानते ही नहीं तो उन्हें इससे कोई फायदा नहीं होगा। यीशु ने रोज़मर्रा ज़िंदगी में होनेवाली बातों का दृष्टांत दिया। उसने ऐसी आम बातों का ज़िक्र किया जैसे दीया, आकाश के पक्षी और जंगली फूल। (मत्ती ५:१५, १६; ६:२६, २८) यीशु के सुननेवाले इन बातों को आसानी से समझ सकते थे।
१७. (क) हम किन बातों का दृष्टांत दे सकते हैं? (ख) हमारी किताबों में दिए गए दृष्टांतों को हम अपने विद्यार्थियों के मुताबिक किस तरह बदल सकते हैं?
१७ प्रचार करते वक्त, हम कई मौकों पर ऐसे दृष्टांत दे सकते हैं जो समझने में आसान और असरदार हों। अपने आस-पास की चीज़ों को ध्यान से देखिए। (प्रेरितों १७:२२, २३) हम सुननेवाले के बच्चों, घर, नौकरी या उसके किसी शौक को लेकर दृष्टांत दे सकते हैं। या फिर अपने बाइबल विद्यार्थी के बारे में हमें जो कुछ पता है उसका इस्तेमाल करते हुए हम अध्ययन की जा रही किताब में दिए गए दृष्टांतों को ही अच्छी तरह समझा सकते हैं। मिसाल के तौर पर, ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब के अध्याय ८ के पैराग्राफ १४ में दिए गए बढ़िया दृष्टांत पर गौर कीजिए। इसमें एक प्यार करनेवाली माता या पिता की बात कही गई है जिस पर उसका पड़ोसी झूठे इलज़ाम लगाता है। हम इस बात पर ध्यान दे सकते हैं कि इस दृष्टांत को अपने बाइबल विद्यार्थी को समझाने के लिए कैसे बदलें जो खुद एक माँ या पिता है।
शास्त्रवचनों को असरदार तरीके से पढ़ना
१८. हमें अच्छी तरह पढ़ने की कोशिश क्यों करनी चाहिए?
१८ पौलुस ने तीमुथियुस को प्रोत्साहन दिया: “पढ़ने, और उपदेश [देने] और सिखाने में लौलीन रह।” (१ तीमुथियुस ४:१३) हम जो कुछ सिखाते हैं वह बाइबल से है, इसलिए इसे अच्छी तरह पढ़ा जाना ज़रूरी है ताकि सुननेवालों को फायदा हो। मिसाल के तौर पर, लेवियों को यह आशीष मिली थी कि वे परमेश्वर के लोगों को मूसा की व्यवस्था पढ़कर सुनाएँ। क्या वे अटक-अटककर पढ़ते थे या बिना भावना के एक ही सुर में पढ़ते थे? नहीं, नहेमायाह ८:८ (नयी हिंदी बाइबल) में बाइबल कहती है: “उन्होंने ग्रन्थ से, परमेश्वर की व्यवस्था से स्पष्ट स्वर में पाठ पढ़ा, और उसकी व्याख्या की। लोगों ने पाठ को समझ लिया।”
१९. हम अपनी बाइबल की पढ़ाई कैसे सुधार सकते हैं?
१९ कुछ भाई भाषण देने में तो बहुत अच्छे होते हैं पर अच्छी तरह पढ़ाई नहीं कर पाते। वे अपनी पढ़ाई कैसे सुधार सकते हैं? बार-बार पढ़कर। जी हाँ, ऊँची आवाज़ में बार-बार पढ़ते हुए, जब तक कि वे अच्छी तरह न पढ़ने लगें। अगर आपकी भाषा में बाइबल के ऑडियो कैसॆट हैं तो उसे सुनना अच्छा होगा। इससे आप यह जान पाएँगे कि बाइबल पढ़नेवाला सही अर्थ देने के लिए किन शब्दों पर ज़ोर देता है और अपनी आवाज़ में कहाँ-कहाँ फेर-बदल करता है और इस पर भी ध्यान दीजिए कि नामों और मुश्किल शब्दों का उच्चारण किस तरह किया जाता है। बार-बार पढ़ने पर महेर्शालाल्हाशबज जैसे नाम भी आसानी से पढ़े जा सकते हैं।—यशायाह ८:१.
२०. किस तरह हम “अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान” दे सकते हैं?
२० यहोवा ने अपने लोगों को सिखाने का काम देकर उन्हें कितना बड़ा सम्मान दिया है! इसलिए आइए हम सब इस ज़िम्मेदारी की अहमियत समझें और इसे पूरा करें। हम ‘अपने ऊपर और अपनी शिक्षा पर विशेष ध्यान दें।’ (१ तीमुथियुस ४:१६, NHT) हम अच्छे शिक्षक बन सकते हैं अगर हम अपने विद्यार्थी की बात अच्छी तरह सुनें, सरलता से सिखाएँ, समझदारी से सवाल पूछें, असरदार दृष्टांत इस्तेमाल करें और बाइबल की पढ़ाई अच्छी तरह करें। हम सब उस ट्रेनिंग का फायदा उठा सकते हैं जो आज यहोवा अपने संगठन के ज़रिए दे रहा है। ऐसा करने से हम “सीखनेवालों की जीभ” पा सकते हैं। (यशायाह ५०:४) प्रचार के काम के लिए ब्रोशर, ऑडियो कैसॆट और वीडियो कैसॆट के अलावा दी गई सभी चीज़ों का पूरा फायदा उठाने से हम दूसरों को अंदरूनी समझ के साथ सिखा सकते हैं और उन्हें कायल कर सकते हैं।
क्या आपको याद है?
◻ किस तरह ध्यान से सुनना हमें अच्छा शिक्षक बनने में मदद दे सकता है?
◻ किस तरह हम पौलुस और यीशु की तरह सरलता से सिखा सकते हैं?
◻ दूसरों को सिखाते वक्त हम किस तरह के सवाल पूछ सकते हैं?
◻ किस तरह के दृष्टांत ज़्यादा असरदार होते हैं?
◻ हम अपनी पढ़ाई को किस तरह सुधार सकते हैं?
[पेज 16 पर तसवीर]
एक अच्छा शिक्षक अंदरूनी समझ पाने के लिए विद्यार्थी की बात ध्यान से सुनता है
[पेज 18 पर तसवीर]
यीशु ने रोज़मर्रा ज़िंदगी की आम बातों का दृष्टांत दिया