अपने धीरज को ईश्वरीय भक्ति प्रदान करते जाओ
“अपने विश्वास को . . . धीरज, और धीरज को ईश्वरीय भक्ति . . . प्रदान करते जाओ।”—२ पतरस १:५-७, NW.
१, २. (क) दशक १९३० में आरम्भ होते हुए, नात्सी नियंत्रण के अधीन देशों में यहोवा के गवाहों के साथ क्या हुआ, और क्यों? (ख) यहोवा के लोगों ने इस कठोर व्यवहार का सामना कैसे किया?
यह २०वीं सदी के इतिहास में एक अन्धकारपूर्ण समय था। दशक १९३० में आरम्भ होते हुए, नात्सी नियंत्रण के अधीन देशों में हज़ारों यहोवा के गवाहों को अन्यायी रीति से गिरफ़्तार करके नज़रबंदी शिविरों में डाल दिया गया। क्यों? क्योंकि उन्होंने तटस्थ रहने का साहस किया और हाइल हिट्लर बोलने से इनकार किया। उनके साथ कैसा व्यवहार किया गया? “किसी अन्य कैदियों के समूह . . . को इस प्रकार एस.एस.-सैनिक वर्ग के परपीड़न रति का विषय नहीं बनाया गया जिस प्रकार बाइबल स्टूडेंटस् [यहोवा के गवाहों] को बनाया गया था। यह ऐसी परपीड़न रति थी जिसकी विशेषता थी शारीरिक और मानसिक उत्पीड़नों की एक अन्तहीन लड़ी, जिसको इस संसार की कोई भी भाषा व्यक्त नहीं कर सकती।”—कार्ल विटिख, भूतपूर्व जर्मन सरकारी अफ़सर।
२ गवाहों ने कैसे सामना किया? अपनी पुस्तक नात्सी राष्ट्र और नए धर्म: परंपरा-विरोध में पाँच व्यक्ति अध्ययन (The Nazi State and the New Religion: Five Case Studies in Non-Conformity) में, डॉ. क्रिस्टीन ई. किंग ने कहा: “[अन्य धार्मिक समूहों की विषमता में] सरकार केवल गवाहों के विरुद्ध ही असफल रही।” जी हाँ, यहोवा के गवाह एक समूह के तौर पर डटे रहे, जबकि उन में से सैकड़ों व्यक्तियों के लिए, इसका अर्थ था मृत्यु तक धीरज धरना।
३. किस बात ने यहोवा के गवाहों को कठोर परीक्षाओं में धीरज धरने के लिए समर्थ किया?
३ किस बात ने यहोवा के गवाहों को ऐसी परीक्षाओं में धीरज धरने के लिए समर्थ किया, न केवल नात्सी जर्मनी में बल्कि पूरे संसार में? उनके स्वर्गीय पिता ने उनकी ईश्वरीय भक्ति के कारण उन्हें धीरज धरने में सहायता की। “प्रभु भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेना . . . भी जानता है,” प्रेरित पतरस समझाता है। (२ पतरस २:९) पहले उसी पत्री में, पतरस ने मसीहियों को सलाह दी थी: “अपने विश्वास को . . . धीरज, और धीरज को ईश्वरीय भक्ति . . . प्रदान करते जाओ।” (२ पतरस १:५-७, NW) इस प्रकार धीरज नज़दीकी रूप से ईश्वरीय भक्ति से जुड़ा हुआ है। वास्तव में, अंत तक धीरज धरने के लिए, हमें ‘ईश्वरीय भक्ति का पीछा करना’ और इसे प्रकट करना है। (१ तीमुथियुस ६:११, NW) लेकिन वास्तव में ईश्वरीय भक्ति है क्या?
ईश्वरीय भक्ति क्या है
४, ५. ईश्वरीय भक्ति क्या है?
४ “ईश्वरीय भक्ति” के लिए यूनानी संज्ञा (यूसेबिआ, eu·seʹbei·a) का शाब्दिक अनुवाद “उचित-श्रद्धा” किया जा सकता है।a (२ पतरस १:६, किङ्गडम इंटरलीनियर) यह परमेश्वर के प्रति एक स्नेही हार्दिक भावना का अर्थ रखती है। डब्ल्यू. ई. वाइन के अनुसार, विशेषण यूसेबेस, जिसका शाब्दिक अर्थ “उचित-श्रद्धापूर्ण” है, उस “कार्य-शक्ति” को सूचित करता है “जो परमेश्वर के पवित्र विस्मय द्वारा निर्देशित होकर, भक्तिपूर्ण कार्यविधियों द्वारा अभिव्यक्त की जाती है।”—२ पतरस २:९, Int.
५ तो फिर, यह “ईश्वरीय भक्ति” अभिव्यक्ति यहोवा के लिए उस श्रद्धा या भक्ति को सूचित करती है जो हमें वह कार्य करने के लिए प्रेरित करती है जो उसे प्रिय लगते हैं। यह कठिन परीक्षाओं के बावजूद भी किया जाता है क्योंकि हम हृदय से परमेश्वर से प्रेम करते हैं। यह यहोवा के साथ एक निष्ठ, व्यक्तिगत संलग्न है जो हमारे जीवन व्यतीत करने के ढंग द्वारा अभिव्यक्त होता है। सच्चे मसीहियों से प्रार्थना करने के लिए आग्रह किया जाता है कि वे “विश्राम और चैन के साथ सारी भक्ति . . . से जीवन बिताएं।” (१ तीमुथियुस २:१, २) कोशकार जे. पी. लो तथा ई. ए. नाइडा के अनुसार, “कई भाषाओं में १ तीमु. २.२ में [यूसेबिआ] का अनुवाद उपयुक्त रीति से यूँ किया जा सकता है, ‘वैसे जीना जैसे परमेश्वर हम से चाहता है’ या ‘वैसे जीना जैसे परमेश्वर ने हमें जीने के लिए कहा है।’”
६. धीरज और ईश्वरीय भक्ति के बीच क्या सम्बन्ध है?
६ अब हम धीरज और ईश्वरीय भक्ति के बीच सम्बन्ध को बेहतर तरीक़े से समझ सकते हैं। क्योंकि हम वैसे ही जीते हैं जैसे परमेश्वर हम से चाहता है—ईश्वरीय भक्ति के साथ—हम संसार की शत्रुता अपने ऊपर लाते हैं, जिससे निरपवाद रूप से विश्वास की परीक्षाएँ आती हैं। (२ तीमुथियुस ३:१२) लेकिन हम इन परीक्षाओं में धीरज धरने के लिए किसी रीति से प्रेरित नहीं होते यदि हमारा अपने स्वर्गीय पिता के साथ व्यक्तिगत संलग्न न होता। इसके अलावा, यहोवा इस प्रकार की हार्दिक भक्ति की ओर अनुक्रिया दिखाता है। ज़रा कल्पना कीजिए कि वह कैसा महसूस करता होगा जब वह स्वर्ग से नीचे उन लोगों को देखता है जो, उसके प्रति अपनी भक्ति के कारण, हर प्रकार के विरोध के बावजूद उसे प्रसन्न करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं कि वह ‘भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेने’ के लिए प्रवण है!
७. ईश्वरीय भक्ति को क्यों विकसित करना पड़ता है?
७ लेकिन, हम ईश्वरीय भक्ति के साथ नहीं जन्मे हैं, न ही यह हमें ईश्वर परायण माता-पिता से अपने-आप ही मिल जाती है। (उत्पत्ति ८:२१) इसके बजाय, इसे विकसित करना पड़ता है। (१ तीमुथियुस ४:७, १०) हमें अपने धीरज और अपने विश्वास को ईश्वरीय भक्ति प्रदान करने के लिए परिश्रम करना पड़ेगा। पतरस कहता है कि इसके लिए “यत्न” की ज़रूरत है। (२ पतरस १:५) तो फिर, हम कैसे ईश्वरीय भक्ति प्राप्त कर सकते हैं?
हम ईश्वरीय भक्ति कैसे प्राप्त करते हैं?
८. प्रेरित पतरस के अनुसार, ईश्वरीय भक्ति प्राप्त करने की कुँजी क्या है?
८ प्रेरित पतरस ने ईश्वरीय भक्ति प्राप्त करने की कुँजी को स्पष्ट किया। उसने कहा: “परमेश्वर के और हमारे प्रभु यीशु की पहचान के द्वारा अनुग्रह और शान्ति तुम में बहुतायत से बढ़ती जाए। क्योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिस ने हमें अपनी ही महिमा और सद्गुण के अनुसार बुलाया है।” (२ पतरस १:२, ३) इसलिए अपने विश्वास और धीरज को ईश्वरीय भक्ति प्रदान करने के लिए, हमें यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह के यथार्थ, यानी पूरे, या संपूर्ण ज्ञान में बढ़ने की ज़रूरत है।
९. इसे उदाहरण द्वारा कैसे समझाया जा सकता है कि परमेश्वर और मसीह का यथार्थ ज्ञान होने में केवल यह जानने से अधिक कुछ सम्मिलित है, कि वे कौन हैं?
९ परमेश्वर और मसीह का यथार्थ ज्ञान होने का क्या अर्थ है? स्पष्टतः, इसमें केवल यह जानने से अधिक कुछ सम्मिलित है कि वे कौन हैं। उदाहरण के तौर पर: आप शायद जानते हों कि आपका पड़ोसी कौन है और आप उसे शायद नाम से भी नमस्कार करते हैं। लेकिन क्या आप उसको एक बड़ी रक़म उधार देंगे? तब तक नहीं जब तक आप यह नहीं जानते कि वह कैसा व्यक्ति है। (नीतिवचन ११:१५ से तुलना कीजिए.) उसी तरह, यहोवा और यीशु को यथार्थ रीति से, या पूरी तरह से जानने का अर्थ केवल यह विश्वास करना कि वे अस्तित्व में हैं और उनके नामों का बोध होना ही नहीं है। उनकी ख़ातिर मृत्यु तक भी परीक्षाओं में धीरज धरने के लिए तैयार होने के लिए, हमें वास्तव में उन्हें घनिष्ठ तरीक़े से जानना चाहिए। (यूहन्ना १७:३) इसमें क्या सम्मिलित है?
१०. यहोवा और यीशु का यथार्थ ज्ञान होने में कौन-सी दो बातें सम्मिलित हैं, और क्यों?
१० यहोवा और यीशु का यथार्थ, या संपूर्ण ज्ञान रखने में दो बातें सम्मिलित हैं: (१) उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानना—अर्थात्, उनके गुणों, भावनाओं, और तरीक़ों को जानना—और (२) उनके उदाहरण का अनुकरण करना। ईश्वरीय भक्ति में सम्मिलित है यहोवा के साथ एक हार्दिक, व्यक्तिगत संलग्न और यह हमारे जीवन व्यतीत करने के ढंग से स्पष्ट होता है। इसलिए, इसे प्राप्त करने के लिए हमें यहोवा को व्यक्तिगत रूप से जानना चाहिए और उसकी इच्छा और मार्गों के साथ पूर्ण रीति से परिचित होना चाहिए जहाँ तक यह मानवीय रूप से संभव है। यहोवा को, जिसके स्वरूप में हमारी सृष्टि हुई, सचमुच जानने के लिए हमें ऐसे ज्ञान का प्रयोग करना चाहिए और उसकी तरह बनने का यत्न करना चाहिए। (उत्पत्ति १:२६-२८; कुलुस्सियों ३:१०) और क्योंकि यीशु ने जो कहा और जो किया उस में परिपूर्ण रीति से यहोवा का अनुकरण किया, यीशु को यथार्थ रीति से जानना ईश्वरीय भक्ति को विकसित करने में एक लाभप्रद सहायक है।—इब्रानियों १:३.
११. (क) हम परमेश्वर और मसीह का यथार्थ ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकते हैं? (ख) हम जो कुछ पढ़ते हैं, उस पर मनन करना क्यों महत्त्वपूर्ण है?
११ लेकिन, हम परमेश्वर और मसीह का ऐसा यथार्थ ज्ञान कैसे प्राप्त कर सकते हैं? बाइबल और बाइबल-आधारित प्रकाशनों का परिश्रमी रूप से अध्ययन करने के द्वारा।b तो भी, यदि हमारे निजी बाइबल अध्ययन को ईश्वरीय भक्ति की प्राप्ति में परिणित होना है, तो यह अत्यावश्यक है कि हम जो पढ़ते हैं उस पर मनन करने, यानी चिंतन, या विचार करने के लिए समय लगाएँ। (यहोशू १:८ से तुलना कीजिए.) यह क्यों महत्त्वपूर्ण है? याद रखिए कि ईश्वरीय भक्ति परमेश्वर के प्रति एक स्नेही, हार्दिक भावना है। शास्त्रवचन में, मनन का सम्बन्ध बार-बार लाक्षणिक हृदय—आंतरिक व्यक्ति—से जोड़ा गया है। (भजन १९:१४; ४९:३; नीतिवचन १५:२८) जब हम जो पढ़ते हैं उस पर मूल्यांकन के साथ चिंतन करते हैं, तब यह आंतरिक व्यक्ति में रिस जाता है, इस प्रकार हमारी भावनाओं को उत्तेजित करता, हमारी मनोभावनाओं को छूता, और हमारी विचार-पद्धति को प्रभावित करता है। केवल तब ही वह अध्ययन यहोवा के साथ हमारे व्यक्तिगत संलग्न को मज़बूत बनाएगा और हमें चुनौती भरी परिस्थितियों या कठिन परीक्षाओं में भी ऐसी रीति से जीने के लिए प्रेरित करेगा जो परमेश्वर को प्रसन्न करती है।
घर में ईश्वरीय भक्ति के साथ व्यवहार करना
१२. (क) पौलुस के अनुसार, एक मसीही कैसे अपने घर में ईश्वरीय भक्ति के साथ व्यवहार कर सकता है? (ख) सच्चे मसीही वृद्ध माता-पिता की देख-भाल क्यों करते हैं?
१२ सबसे पहले घर में ईश्वरीय भक्ति के साथ व्यवहार करना चाहिए। प्रेरित पौलुस कहता है: “यदि किसी विधवा के लड़केबाले या नातीपोते हों, तो वे पहिले अपने ही घराने के साथ भक्ति का बर्ताव करना, और अपने माता-पिता आदि को उन का हक्क देना सीखें, क्योंकि यह परमेश्वर को भाता है।” (१ तीमुथियुस ५:४) जैसे पौलुस कहता है, वृद्ध माता-पिता की देख-भाल करना ईश्वरीय भक्ति की एक अभिव्यक्ति है। सच्चे मसीही ऐसी देख-भाल न केवल कर्तव्य की भावना के साथ करते हैं लेकिन इसलिए कि वे अपने माता-पिता से प्रेम रखते हैं। लेकिन, इससे भी अधिक वे उस महत्त्व को समझते हैं जो यहोवा एक व्यक्ति पर अपने परिवार की देख-भाल करने के लिए डालता है। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि ज़रूरत के समय में अपने माता-पिता पर पीठ फेरना ‘विश्वास से मुकर जाने’ के बराबर होगा।—१ तीमुथियुस ५:८.
१३. घर में ईश्वरीय भक्ति के साथ व्यवहार करना क्यों एक वास्तविक चुनौती हो सकती है, लेकिन अपने माता-पिता की देख-भाल करने से क्या संतुष्टि परिणित होती है?
१३ यह सच है कि घर में ईश्वरीय भक्ति के साथ व्यवहार करना हमेशा आसान नहीं होता है। परिवार के सदस्य एक दूसरे से काफ़ी दूर हो सकते हैं। बालिग़ बेटे-बेटी शायद अपने परिवार सम्भाल रहे हैं और आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं। माता-पिता को जिस प्रकार की और जिस हद तक देख-भाल की ज़रूरत है, उससे देख-भाल करनेवाले जनों के शारीरिक, मानसिक, और भावात्मक स्वास्थ्य पर काफ़ी भार पड़ सकता है। फिर भी, यह जानने में सच्ची संतुष्टि हो सकती है कि अपने माता-पिता की देख-भाल करना न केवल ‘हक्क देने’ के बराबर है लेकिन उसको भी प्रसन्न करता है “जिस से स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है।”—इफिसियों ३:१४, १५.
१४, १५. बच्चों द्वारा माता या पिता के लिए ईश्वरीय देख-भाल के एक उदाहरण का वर्णन कीजिए।
१४ हृदय को सचमुच छू लेनेवाले एक उदाहरण पर विचार कीजिए। ऐलस और उसके पाँच भाई-बहन घर पर अपने पिता की देख-भाल करने में एक वास्तविक चुनौती का सामना करते हैं। “मेरे पिताजी को १९८६ में रक्ताघात हुआ, जिसके कारण उन्हें पूरी तरह से लकवा हो गया,” ऐलस समझाता है। वे छः बच्चे अपने पिता की ज़रूरतों की देख-भाल करते हैं, उसे नहलाने से लेकर यह निश्चित करने तक कि उसे बिस्तर पर नियमित रूप से करवट दिलाई जाए ताकि उसके शरीर पर शय्या-व्रण न हों। “हम उन्हें पढ़कर सुनाते हैं, उन से बात करते हैं, उनके लिए संगीत बजाते हैं। हम निश्चित रूप से नहीं जानते कि वे अपने आस-पास हो रही बातों से अवगत हैं या नहीं, लेकिन हम उनके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि वे हर चीज़ से अवगत हैं।”
१५ जिस प्रकार ये बच्चे अपने पिता की देख-भाल करते हैं, वे ऐसा क्यों करते हैं? ऐलस आगे कहता है: “१९६४ में हमारी माँ की मृत्यु के बाद, पापा ने हमें अकेले बड़ा किया। उस समय, हमारी उम्र ५ से १४ साल थीं। वे उस समय हमारी सहायता करने के लिए वहाँ थे; अब हम उनकी सहायता करने के लिए यहाँ हैं।” स्पष्टतः, ऐसी देख-भाल का प्रबन्ध करना आसान नहीं है, और बच्चे कभी-कभी निराश हो जाते हैं। “लेकिन हम जानते हैं कि हमारे पिताजी की स्थिति एक अल्पकालिक समस्या है,” ऐलस कहता है। “हम उस समय की राह देखते हैं जब हमारे पिताजी फिर से स्वस्थ हो जाएँगे और हम फिर से अपनी माँ से मिलेंगे।” (यशायाह ३३:२४; यूहन्ना ५:२८, २९) निश्चित ही, एक माता या पिता के लिए ऐसी निष्ठ देख-भाल उसके हृदय को ज़रूर ख़ुश करेगी जो बच्चों को अपने माता-पिता का आदर करने की आज्ञा देता है!c—इफिसियों ६:१, २.
ईश्वरीय भक्ति और सेवकाई
१६. हम सेवकाई में क्या करते हैं इसका मुख्य कारण क्या होना चाहिए?
१६ जब हम यीशु के आमंत्रण को स्वीकार करते हैं कि ‘उसके पीछे हो लें,’ तब हम राज्य के सुसमाचार को प्रचार करने और शिष्य बनाने की ईश्वरीय आज्ञा के आधीन आते हैं। (मत्ती १६:२४; २४:१४; २८:१९, २०) स्पष्ट रूप से, इन “अन्तिम दिनों” में सेवकाई में भाग लेना एक मसीही बाध्यता है। (२ तीमुथियुस ३:१) फिर भी, हमारा प्रचार करने और सिखाने का हेतु केवल कर्तव्य या बाध्यता के भाव से बढ़कर होना चाहिए। हम सेवकाई में क्या करते हैं और कितना करते हैं इसका मुख्य कारण यहोवा के लिए एक गहरा प्रेम होना चाहिए। “जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है,” यीशु ने कहा। (मत्ती १२:३४) जी हाँ, जब हमारे हृदयों में यहोवा के लिए प्रेम उमड़ता है, तब हम दूसरों को उसके बारे में गवाही देने के लिए प्रेरित होते हैं। जब परमेश्वर के लिए प्रेम हमारा हेतु होता है, तब हमारी सेवकाई हमारी ईश्वरीय भक्ति की एक अर्थपूर्ण अभिव्यक्ति होती है।
१७. हम सेवकाई के लिए सही हेतु कैसे विकसित कर सकते हैं?
१७ हम सेवकाई के लिए सही हेतु कैसे विकसित कर सकते हैं? उन तीन कारणों पर विचार कीजिए जो यहोवा ने हमें उससे प्रेम करने के लिए दिए हैं। (१) जो कुछ यहोवा हमारे लिए पहले से ही कर चुका है उसके कारण हम उससे प्रेम करते हैं। छुड़ौती का प्रबन्ध करने को छोड़ वह और अधिक प्रेम नहीं दिखा सकता था। (मत्ती २०:२८; यूहन्ना १५:१३) (२) इस समय वह जो हमारे लिए कर रहा है उसके कारण हम यहोवा से प्रेम करते हैं। हम यहोवा के साथ, जो हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देता है, हियाव बान्धकर चलते हैं। (भजन ६५:२; इब्रानियों ४:१४-१६) जैसे-जैसे हम राज्य हितों को प्राथमिकता देते हैं, वैसे-वैसे हम जीवन की ज़रूरतों का आनन्द लेते हैं। (मत्ती ६:२५-३३) हम आध्यात्मिक भोजन की नियमित सप्लाई प्राप्त करते हैं जो हमें हमारी समस्याओं का सामना करने के लिए सहायता करती है। (मत्ती २४:४५) और हमारे पास एक विश्वव्यापी मसीही भाईचारे का भाग होने की आशिष है जो सचमुच हमें बाक़ी के संसार से अलग रखती है। (१ पतरस २:१७) (३) वह हमारे लिए जो आगे करेगा उसके कारण भी हम यहोवा से प्रेम करते हैं। उसके प्रेम के कारण ही, हम ‘उस अनन्त जीवन को धर लेते’ हैं—अर्थात्, भविष्य में अनन्तकालीन जीवन। (१ तीमुथियुस ६:१२, १९) जब हम हमारे लिए यहोवा के प्रेम पर विचार करते हैं, तब निश्चय ही हमारा हृदय हमें दूसरों को उसके और उसके अनमोल उद्देश्यों के बारे में बताने में निष्ठ भाग लेने के लिए प्रेरित करेगा! दूसरों को ज़रूरत नहीं होगी कि हमें यह बताएँ कि हम सेवकाई में क्या करें और कितना करें। हमारा हृदय हमें जितना हो सके उतना करने के लिए प्रेरित करेगा।
१८, १९. एक बहन ने सेवकाई में भाग लेने के लिए कौन-सी अड़चन को पार किया?
१८ चुनौती भरी परिस्थितियों के बावजूद, एक ईश्वरीय भक्ति द्वारा उत्तेजित हृदय बोलने के लिए प्रेरित होगा। (यिर्मयाह २०:९ से तुलना कीजिए.) यह स्टेला, एक अति संकोची मसीही स्त्री, के उदाहरण से देखा जा सकता है। जब उसने पहले-पहल बाइबल का अध्ययन करना शुरू किया, उसने सोचा, ‘मैं कभी भी घर-घर प्रचार करने नहीं जा सकती!’ वह समझाती है: “मैं हमेशा बहुत चुप रहती थी। बातचीत शुरू करने के लिए मैं कभी भी दूसरों के पास नहीं जा पाती थी।” जैसे-जैसे वह अध्ययन करती गई, यहोवा के लिए उसका प्रेम बढ़ता गया, और उसके बारे में दूसरों से बात करने की उसमें एक तीव्र इच्छा विकसित हुई। “मुझे याद है कि मैंने अपनी बाइबल शिक्षिका से कहा, ‘बात करने की मुझ में इतनी इच्छा है, लेकिन मैं कर ही नहीं पाती, और इससे मैं सचमुच चिन्तित हूँ।’ उसने मुझ से जो कहा वह मैं कभी नहीं भूलूँगी: ‘स्टेला, एहसानमन्द हो कि तुम बात करना चाहती हो।’”
१९ जल्द ही, स्टेला ने अपने आपको अपनी पड़ोसिन को गवाही देते हुए पाया। फिर उसने एक ऐसा क़दम उठाया जो उसके लिए एक बहुत ही बड़ा क़दम था—उसने घर-घर की सेवकाई में पहली बार भाग लिया। (प्रेरितों २०:२०, २१) वह याद करती है: “मैंने अपना प्रस्तुतीकरण लिख रखा था। लेकिन मैं इतनी घबराई हुई थी कि जबकि काग़ज़ मेरे सामने था, मुझे नीचे उसकी ओर देखने का भी साहस नहीं हुआ!” अब, ३५ साल से अधिक समय बाद, स्टेला अभी भी स्वाभाव से बहुत संकोची है। फिर भी, क्षेत्र सेवकाई उसे अति प्रिय है और वह इस में अभी भी एक अर्थपूर्ण भाग लेती है।
२०. कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि सताहट अथवा क़ैद भी यहोवा के निष्ठ गवाहों के मुँह बंद नहीं कर सकतीं?
२० सताहट अथवा क़ैद भी यहोवा के निष्ठ गवाहों का मुँह बंद नहीं कर सकतीं। जर्मनी के अर्नस्ट और हिलडेगार्ट ज़ेलीगर के उदाहरण पर विचार कीजिए। अपने धर्म-विश्वास के कारण, उन दोनों ने नात्सी नज़रबंदी शिविरों और साम्यवादी क़ैदखानों में कुल मिलाकर ४० से अधिक साल बिताए। क़ैद में भी, वे अन्य कैदियों को गवाही देने में दृढ़ रहे। हिलडेगार्ट ने याद किया: “क़ैदखाने के अफसरों ने मुझे ख़ासकर ख़तरनाक वर्गीकृत किया, क्योंकि, जैसे कि एक महिला गार्ड ने कहा, मैं दिन भर बाइबल के बारे में बात करती थी। इसीलिए मुझे एक तहखाने में रखा गया।” आख़िरकार उन्हें उनकी स्वतंत्रता मिलने के बाद, भाई और बहन ज़ेलीगर ने अपना पूरा समय मसीही सेवकाई में लगाया। उन दोनों ने अपनी मृत्यु तक वफ़ादारी से सेवा की, भाई ज़ेलीगर की मृत्यु १९८५ में और उनकी पत्नी की मृत्यु १९९२ में हुई।
२१. अपने धीरज को ईश्वरीय भक्ति प्रदान करने के लिए हमें क्या करना होगा?
२१ परमेश्वर के वचन का परिश्रमी रूप से अध्ययन करने और सीखी हुई बातों पर कृतज्ञता से मनन करने के द्वारा, हम यहोवा परमेश्वर और यीशु मसीह के यथार्थ ज्ञान में बढ़ेंगे। क्रमशः, यह हमारे उस अनमोल गुण—ईश्वरीय भक्ति—को अधिक मात्रा में प्राप्त करने में परिणित होगा। ईश्वरीय भक्ति के बिना हम किसी भी तरीक़े से उन विविध परीक्षाओं में धीरज नहीं धर सकते जो मसीही होने के नाते हम पर आती हैं। इसलिए आइए हम प्रेरित पतरस की सलाह का अनुसरण करें, ‘अपने विश्वास को धीरज, और धीरज को ईश्वरीय भक्ति प्रदान करते जाएँ।’—२ पतरस १:५-७, NW.
[फुटनोट]
a यूसेबिआ के सम्बन्ध में, विलियम बार्कले कहता है: “इस शब्द के सेब- भाग [अर्थात्, मूल] का ही अर्थ है श्रद्धा अथवा उपासना। उचित के लिए यूनानी शब्द यू है; इसीलिए, यूसेबिआ है उपासना, उचित और सही रीति से दी गई श्रद्धा।”—न्यू टेस्टामेंट वर्डस्।
b परमेश्वर के वचन के ज्ञान को बढ़ाने के लिए कैसे अध्ययन करना चाहिए, इसकी चर्चा के लिए अगस्त १, १९९३, की प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ २०-२५ देखिए.
c वृद्ध माता-पिता से ईश्वरीय भक्ति के साथ व्यवहार कैसे किया जा सकता है, इसके बारे में पूरी चर्चा के लिए दिसम्बर १, १९८७, की प्रहरीदुर्ग देखिए.
आपका उत्तर क्या है?
▫ ईश्वरीय भक्ति क्या है?
▫ धीरज और ईश्वरीय भक्ति के बीच क्या सम्बन्ध है?
▫ ईश्वरीय भक्ति प्राप्त करने की कुँजी क्या है?
▫ एक मसीही किस प्रकार अपने घर में ईश्वरीय भक्ति के साथ व्यवहार कर सकता है?
▫ सेवकाई में हम क्या करते हैं इसका मुख्य कारण क्या होना चाहिए?
[पेज 30 पर तसवीरें]
रेवन्सब्रुक के नात्सी नज़रबंदी शिविर में क़ैद यहोवा के गवाहों ने धीरज और ईश्वरीय भक्ति को प्रदर्शित किया