अध्ययन लेख 14
क्या आप अपनी मसीही सेवा अच्छी तरह पूरी कर रहे हैं?
“खुशखबरी का प्रचार करता रह, अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी कर।”—2 तीमु. 4:5, फु.
गीत 57 सब किस्म के लोगों को सच्चाई बताइए
लेख की एक झलकa
1. परमेश्वर के सभी सेवक क्या चाहते हैं और क्यों? (बाहर दी तसवीर देखें।)
मसीह यीशु ने अपने चेलों को आज्ञा दी थी, “जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा चेला बनना सिखाओ।” (मत्ती 28:19) परमेश्वर के सभी वफादार सेवक सीखना चाहते हैं कि वे यह काम कैसे “अच्छी तरह” पूरा कर सकते हैं। (2 तीमु. 4:5) वह इसलिए कि इस काम से ज़्यादा ज़रूरी और कोई काम नहीं हो सकता। इससे हमें जो खुशी और संतुष्टि मिलती है, वह दुनिया के किसी भी काम से नहीं मिल सकती। लेकिन इस काम में हम जितना समय लगाना चाहते हैं, शायद उतना हम लगा न पाते हों।
2. कौन-सी बातें अपनी सेवा पूरी करने में हमारे लिए रुकावट बन सकती हैं?
2 प्रचार के अलावा ऐसे कई ज़रूरी काम हैं, जिनमें हमें अपना काफी समय और ताकत लगानी पड़ती है। शायद परिवार की ज़रूरतें पूरी करने के लिए हमें कई-कई घंटे नौकरी करनी पड़ती हो। हो सकता है, हम पर परिवार की दूसरी ज़िम्मेदारियाँ भी हों। शायद हम बीमारी या निराशा से जूझ रहे हों या फिर बुढ़ापे की मार सह रहे हों। ऐसे में हम अपनी सेवा कैसे अच्छी तरह पूरी कर सकते हैं?
3. मत्ती 13:23 में दी यीशु की बात से क्या पता चलता है?
3 अगर हम अपने हालात की वजह से यहोवा की सेवा में उतना समय नहीं दे पाते जितना हम चाहते हैं, तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। यीशु जानता था कि हम सब एक जैसा फल नहीं देंगे यानी खुशखबरी सुनाने में एक-जैसा समय और ताकत नहीं लगा पाएँगे। (मत्ती 13:23 पढ़िए।) जब हम यहोवा की सेवा जी-जान से करते हैं, तो हम चाहे जो भी करें, उसकी वह बहुत कदर करता है। (इब्रा. 6:10-12) वहीं दूसरी तरफ शायद हमें लगे कि हम अपने हालात के हिसाब से यहोवा की सेवा में और ज़्यादा कर सकते हैं। इस वजह से हम इस लेख में तीन बातों पर ध्यान देंगे। एक, हम प्रचार काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह कैसे दे सकते हैं? दो, हम किस तरह अपना जीवन सादा रख सकते हैं? और तीन, हम प्रचार और सिखाने का हुनर कैसे बढ़ा सकते हैं? लेकिन आइए सबसे पहले देखें कि अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करने का क्या मतलब है।
4. अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करने का क्या मतलब है?
4 सीधे-सीधे कहें तो अपनी सेवा अच्छी तरह पूरी करने का मतलब है कि हम प्रचार और सिखाने के काम में ज़्यादा-से-ज़्यादा हिस्सा लें। लेकिन यहाँ सिर्फ बहुत-सारा समय देने की बात नहीं की गयी है। यहोवा के लिए यह बात ज़्यादा मायने रखती है कि हम किस इरादे से यह सेवा करते हैं। हम यहोवा और अपने पड़ोसी से प्यार करते हैं, इसलिए हम तन-मन से मसीही सेवाb करते हैं। (मर. 12:30, 31; कुलु. 3:23) तन-मन से यहोवा की सेवा करने का मतलब है, खुद को उसकी सेवा में पूरी तरह दे देना या यूँ कहें कि जितना हो सके, अपनी काबिलीयतें और ताकत उसकी सेवा में लगा देना। प्रचार सेवा करना बड़े सम्मान की बात है! यह बात समझने पर हम हर किसी को राज की खुशखबरी सुनाने की कोशिश करेंगे।
5-6. उदाहरण देकर समझाइए कि ज़्यादा समय न होने के बावजूद एक व्यक्ति प्रचार को कैसे पहली जगह दे सकता है।
5 ज़रा एक नौजवान के बारे में सोचिए जिसे संगीत का बहुत शौक है। उसे जब भी मौका मिलता है, वह गिटार बजाता है। फिर अपना गुज़ारा चलाने के लिए वह शनिवार-रविवार के दिन लोगों को गिटार सिखाता है। लेकिन वह जितना कमाता है, उससे उसका खर्च पूरा नहीं हो पाता। इस वजह से वह एक और नौकरी करता है। वह सोमवार से शुक्रवार तक एक दुकान में बैठता है और हिसाब-किताब सँभालता है। भले ही उसका ज़्यादातर समय दुकान में निकल जाता है, लेकिन उसका मन संगीत में ही लगा रहता है। वह दिल से चाहता है कि वह अपना हुनर बढ़ाए और एक दिन संगीतकार बने। इस बीच उसे जब भी थोड़ा-बहुत समय मिलता है, वह गिटार बजाता है।
6 उसी तरह, शायद आप पर बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ हों और आप प्रचार में उतना समय न दे पाते हों, जितना आप चाहते हैं। फिर भी आपका दिल इसी काम में लगा रहता है। आप इस काम में अपना हुनर भी बढ़ाने की कोशिश करते हैं, ताकि आप लोगों को अच्छी तरह गवाही दे सकें। लेकिन कभी-कभी शायद आपके मन में सवाल आए, ‘मेरे पास तो प्रचार के लिए ज़्यादा समय ही नहीं बचता, तो मैं इस काम को पहली जगह कैसे दे पाऊँगा?’
अपनी मसीही सेवा को पहली जगह कैसे दें?
7-8. (क) प्रचार के बारे में यीशु का कैसा रवैया था? (ख) हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?
7 यीशु ने अपनी सेवा के बारे में जो रवैया रखा, वह हमारे लिए एक बेहतरीन मिसाल है। उसकी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी काम था, लोगों को परमेश्वर के राज के बारे में बताना। (यूह. 4:34, 35) वह ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को गवाही देने के लिए सैकड़ों मील पैदल चला। उसने घर-घर के प्रचार में और सार्वजनिक जगहों पर गवाही देने का एक भी मौका नहीं छोड़ा। सच में, यीशु ने प्रचार काम को अपनी ज़िंदगी में हमेशा पहली जगह दी।
8 हम यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? हम भी हर जगह और हर मौके पर लोगों को खुशखबरी सुनाने की कोशिश करते हैं। इसके लिए हम अपना आराम भी त्याग देते हैं। (मर. 6:31-34; 1 पत. 2:21) मंडली में कुछ भाई-बहन खास पायनियर, पायनियर या सहयोगी पायनियर के तौर पर सेवा करते हैं। वहीं कुछ भाई-बहन नयी भाषा सीखते हैं या ऐसी जगह जाकर सेवा करते हैं, जहाँ प्रचारकों की बहुत ज़रूरत है। लेकिन देखा जाए तो प्रचार का ज़्यादातर काम मंडली के आम प्रचारक करते हैं, जो अपनी तरफ से जितना हो सकता है, करते हैं। हम चाहे ज़्यादा कर पाएँ या न कर पाएँ, लेकिन हम दिल से यहोवा की सेवा में जो भी करते हैं, उससे वह खुश होता है। वह हमसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता। वह चाहता है कि हम उसकी सेवा में खुशी पाएँ, क्योंकि हम “आनंदित परमेश्वर की . . . शानदार खुशखबरी” सुनाते हैं।—1 तीमु. 1:11; व्यव. 30:11.
9. (क) पौलुस ने तंबू बनाने का काम करते समय भी किस तरह प्रचार काम को अहमियत दी? (ख) प्रेषितों 28:16, 30, 31 के मुताबिक प्रचार के बारे में पौलुस का कैसा रवैया था?
9 प्रेषित पौलुस ने भी इस ज़रूरी काम को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह दी थी। जब वह अपने दूसरे मिशनरी दौरे पर कुरिंथ शहर में था, तो उसके लिए गुज़ारा चलाना मुश्किल हो रहा था। इस वजह से कुछ समय तक उसे तंबू बनाने का काम करना पड़ा। लेकिन पौलुस के लिए यह काम सबसे ज़रूरी नहीं हो गया। उसने यह काम सिर्फ इसलिए किया, ताकि वह “बिना कोई दाम लिए” कुरिंथ के लोगों को खुशखबरी सुना सके। (2 कुरिं. 11:7) हालाँकि पौलुस को तंबू बनाने का काम करना पड़ा, फिर भी वह प्रचार काम को अहमियत देता रहा और उसने हर सब्त के दिन लोगों को गवाही दी। जब उसके हालात अच्छे हुए, तो वह “और भी ज़ोर-शोर से वचन का प्रचार करने लगा। वह यहूदियों को गवाही देने लगा और साबित करने लगा कि यीशु ही मसीह है।” (प्रेषि. 18:3-5; 2 कुरिं. 11:9) बाद में जब पौलुस रोम में अपने ही घर में दो साल के लिए कैद था, तो वह उन लोगों को गवाही देता था, जो उससे मिलने आते थे। उस दौरान उसने चिट्ठियाँ भी लिखीं। (प्रेषितों 28:16, 30, 31 पढ़िए।) पौलुस ने ठान लिया था कि वह अपनी सेवा पूरी करने में किसी बात को रुकावट नहीं बनने देगा। उसने लिखा, “जब . . . हमें यह सेवा सौंपी गयी है, तो हम हिम्मत नहीं हारते।” (2 कुरिं. 4:1) अगर पौलुस की तरह हमारे हालात ऐसे हों कि हमें नौकरी में काफी वक्त देना पड़े, तब भी हम राज के काम को सबसे ज़्यादा अहमियत दे सकते हैं।
10-11. खराब सेहत के बावजूद हम यहोवा की सेवा कैसे अच्छी तरह पूरी कर सकते हैं?
10 अगर हम खराब सेहत या बुढ़ापे की वजह से घर-घर के प्रचार में ज़्यादा हिस्सा न ले पाएँ, तब भी हम अपनी मसीही सेवा पूरी कर सकते हैं। हम दूसरे तरीकों से गवाही दे सकते हैं। पहली सदी के मसीहियों की मिसाल पर ध्यान दीजिए। उन्हें जहाँ कहीं लोग मिलते थे, वे गवाही देते थे। घर-घर का प्रचार करते वक्त, सार्वजनिक जगहों पर और अपने रोज़मर्रा के काम करते वक्त उन्हें “जो भी मिलता था,” उसे सच्चाई के बारे में बताते थे। (प्रेषि. 17:17; 20:20) अगर हम ज़्यादा चल-फिर नहीं पाते, तो हम ऐसी जगह बैठ सकते हैं, जहाँ लोग आते-जाते हैं और उन्हें गवाही दे सकते हैं। हम रोज़मर्रा के काम करते वक्त भी लोगों को प्रचार कर सकते हैं या फोन के ज़रिए या फिर चिट्ठियाँ लिखकर लोगों को गवाही दे सकते हैं। इन तरीकों से गवाही देकर उन प्रचारकों को बहुत खुशी मिलती है, जो खराब सेहत या दूसरी समस्याओं की वजह से घर-घर का प्रचार ज़्यादा नहीं कर पाते।
11 खराब सेहत के बावजूद आप अपनी मसीही सेवा अच्छी तरह पूरी कर सकते हैं। प्रेषित पौलुस के उदाहरण पर एक बार फिर ध्यान दीजिए। उसने कहा, “इसलिए कि जो मुझे ताकत देता है, उसी से मुझे सब बातों के लिए शक्ति मिलती है।” (फिलि. 4:13) जब पौलुस अपने एक मिशनरी दौरे पर बीमार हो गया था, तो उसे इसी ताकत की ज़रूरत थी। उसने गलातिया के मसीहियों को बताया, “अपनी बीमारी की वजह से मुझे पहली बार तुम्हें खुशखबरी सुनाने का मौका मिला था।” (गला. 4:13) उसी तरह, खराब सेहत की वजह से भले ही आप घर-घर का प्रचार न कर पाएँ, लेकिन आपको डॉक्टर, नर्स और आपकी देखभाल करनेवाले दूसरे लोगों को गवाही देने के मौके मिल सकते हैं। ये ऐसे लोग हैं, जो अकसर घर-घर के प्रचार में नहीं मिलते।
अपना जीवन सादा कैसे रखें?
12. अपनी आँख को ‘एक ही चीज़ पर टिकाए’ रखने का क्या मतलब है?
12 यीशु ने कहा था, “आँख, शरीर का दीपक है। इसलिए अगर तेरी आँख एक ही चीज़ पर टिकी है [या “सादी है,” फु.], तो तेरा सारा शरीर रौशन रहेगा।” (मत्ती 6:22) यीशु के कहने का क्या मतलब था? उसका मतलब था कि हमें अपना जीवन सादा रखना है यानी एक ही लक्ष्य या मकसद पूरा करने में ध्यान लगाना है और उससे भटकना नहीं है। यीशु ने खुद इस मामले में अच्छी मिसाल रखी। उसने अपना पूरा ध्यान यहोवा की सेवा और उसके राज पर लगाए रखा और अपने चेलों को भी ऐसा ही करने का बढ़ावा दिया। यीशु की तरह हम भी प्रचार काम को जीवन में सबसे ज़्यादा अहमियत देते हैं और “पहले [परमेश्वर के] राज और उसके नेक स्तरों की खोज” में लगे रहते हैं।—मत्ती 6:33.
13. यहोवा की सेवा में ध्यान लगाए रखने का एक तरीका क्या है?
13 यहोवा की सेवा में ध्यान लगाने का एक तरीका यह है कि हम गैर-ज़रूरी कामों में कम समय बिताएँ, ताकि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को यहोवा के बारे में सिखा सकें।c उदाहरण के लिए, क्या हम अपनी नौकरी के घंटों में कुछ फेरबदल कर सकते हैं, ताकि हफ्ते के बीच प्रचार में ज़्यादा समय दे सकें? या क्या हम मन-बहलाव के उन कामों में कटौती कर सकते हैं, जिनमें हमारा बहुत समय चला जाता है?
14. यहोवा की सेवा में ज़्यादा-से-ज़्यादा करने के लिए एक पति-पत्नी ने कौन-से फेरबदल किए?
14 एलीआस नाम के एक प्राचीन और उसकी पत्नी ने कुछ ऐसा ही किया। भाई बताता है, “हम तुरंत पायनियर सेवा तो शुरू नहीं कर पाए, लेकिन हमने छोटे-छोटे कदम उठाए, ताकि हम प्रचार में ज़्यादा समय दे पाएँ। हमने अपने खर्चे कम किए। हम मनोरंजन में जो समय बिता रहे थे, उसमें भी हमने कटौती की, क्योंकि उसमें हमारा बहुत सारा समय जा रहा था। फिर हमने नौकरी के घंटों में कुछ फेरबदल करने के लिए अपने-अपने बॉस से बात की। इस तरह हम शाम के वक्त प्रचार में निकल पाए, कई बाइबल अध्ययन चला पाए, यहाँ तक कि हम महीने में दो बार, हफ्ते के बीच भी प्रचार में जा पाए। हम बता नहीं सकते कि इससे हमें कितनी खुशी मिली!”
प्रचार और सिखाने का हुनर कैसे बढ़ाएँ?
15-16. पहला तीमुथियुस 4:13, 15 के मुताबिक प्रचार में अपना हुनर बढ़ाने के लिए हम क्या कर सकते हैं? (“मसीही सेवा अच्छी तरह पूरी करने के लिए ये लक्ष्य रखिए” बक्स भी देखें।)
15 अपनी मसीही सेवा अच्छी तरह पूरी करने का एक और तरीका है, प्रचार में अपना हुनर बढ़ाना। कुछ लोगों का पेशा ऐसा होता है, जिसमें उन्हें लगातार प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि वे अपना ज्ञान और हुनर बढ़ा सकें। राज के प्रचारकों के बारे में भी यह बात सच है। हमें भी लगातार सीखना होगा कि हम अच्छे प्रचारक कैसे बन सकते हैं।—नीति. 1:5; 1 तीमुथियुस 4:13, 15 पढ़िए।
16 हम अपनी मसीही सेवा और अच्छी तरह करने के लिए क्या कर सकते हैं? हमें उन हिदायतों पर पूरा ध्यान देना होगा, जो हर हफ्ते ‘मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा’ में मिलती हैं। इस सभा में हमें बढ़िया प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि हम प्रचार में अपना हुनर बढ़ाते रहें। मिसाल के लिए, जब सभा चलानेवाला भाई (चेयरमैन) विद्यार्थी भाग पेश करनेवालों को सलाह देता है, तो उसके सुझावों से हम सब कुछ-न-कुछ सीख सकते हैं। फिर अगली बार किसी को गवाही देते समय हम उन सुझावों को आज़मा सकते हैं। इसके अलावा हम अपने प्रचार समूह के निगरान से सलाह ले सकते हैं या उसके साथ प्रचार कर सकते हैं। हम किसी दूसरे अनुभवी प्रचारक, पायनियर या सर्किट निगरान के साथ भी प्रचार कर सकते हैं। प्रकाशनों के पिटारे में दिए हर प्रकाशन का इस्तेमाल करने में हम जैसे-जैसे निपुण होंगे, लोगों को गवाही देने और उन्हें सिखाने में हमें और भी मज़ा आएगा।
17. अपनी मसीही सेवा अच्छी तरह पूरी करने से क्या फायदा होता है?
17 हमारे लिए यह कितने सम्मान की बात है कि हम “परमेश्वर के सहकर्मी” हैं। (1 कुरिं. 3:9) जब आप ‘ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातों को पहचानने’ की कोशिश करते हैं और अपना ध्यान मसीही सेवा में लगाए रखते हैं, तो आप “खुशी-खुशी यहोवा की सेवा” कर पाते हैं। (फिलि. 1:10; भज. 100:2) परमेश्वर के सेवक होने के नाते आप पूरा भरोसा रख सकते हैं कि वह आपको ताकत देगा, ताकि आप अपनी सीमाओं या परेशानियों के बावजूद अपनी मसीही सेवा अच्छी तरह पूरी कर सकें। (2 कुरिं. 4:1, 7; 6:4) चाहे आपके हालात आपको ज़्यादा करने की इजाज़त दें या न दें, अगर आप तन-मन से यहोवा की सेवा करें, तो आप ज़रूर ‘खुशी पाएँगे।’ (गला. 6:4) अपनी मसीही सेवा अच्छी तरह पूरी करके आप यहोवा और लोगों के लिए प्यार ज़ाहिर करते हैं। “ऐसा करने से [आप] अपना और [आपकी] बात सुननेवालों का भी उद्धार” करेंगे।—1 तीमु. 4:16.
गीत 58 शांति चाहनेवालों की खोज!
a हमें राज की खुशखबरी सुनाने और चेला बनाने का काम सौंपा गया है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि हम अपनी यह सेवा कैसे अच्छी तरह पूरी कर सकते हैं, फिर चाहे हम कई समस्याओं से क्यों न गुज़र रहे हों। हम यह भी सीखेंगे कि हम कैसे अच्छे प्रचारक बन सकते हैं और इस काम से खुशी पा सकते हैं।
b इसका क्या मतलब है? मसीही सेवा में कई काम शामिल हैं जैसे, प्रचार और सिखाने का काम, राहत काम और उपासना की जगहों का निर्माण और उनका रख-रखाव।—2 कुरिं. 5:18, 19; 8:4.
c जुलाई 2016 की प्रहरीदुर्ग के पेज 10 पर “सादगी-भरी ज़िंदगी कैसे जीएँ?” बक्स में बताए सात सुझाव देखें।
d तसवीर के बारे में: हफ्ते के बीच की सभा में एक बहन वापसी भेंट का प्रदर्शन कर रही है। फिर जब सभा चलानेवाला भाई बहन को सलाह देता है, तो वह जी-जान ब्रोशर में सुझाव लिखती है। सभा में उसने जो बातें सीखीं, उन्हें वह शनिवार-रविवार के दिन प्रचार में लागू करती है।