‘तेरी उन्नति प्रगट हो’
“अब जब कि मैं सयाना हो गया हूँ, मैं ने बालक के गुणों को दूर कर दिया है।” —१ कुरिन्थियों १३:११, NW.
१. किस तरह वर्धन सृष्टि के अजूबे का सबूत है?
एक बहुत ही छोटे डिम्ब से, जो सिर्फ़ एक ख़ुर्दबीन के नीचे दिखाई दे सकता है, व्हेल मछली बढ़कर ३० मीटर से ज़्यादा लंबी और ८० टन से ज़्यादा वज़नवाली जीव बन सकती है। इसी समान, सबसे छोटे बीजों में से, विशाल सिक्वइया पेड़ ९० मीटर से ज़्यादा लंबाई तक बढ़ सकता है। सचमुच, वर्धन ज़िंदगी के अजूबों में से एक है। जैसे प्रेरित पौलुस ने वर्णन किया, हम बो सकते हैं और सींच सकते हैं, पर ‘परमेश्वर बढ़ानेवाला है।’—१ कुरिन्थियों ३:७.
२. बाइबल में किस तरह के वर्धन को पूर्वबताया गया है?
२ बहरहाल, एक और क़िस्म का वर्धन भी है जो उतना ही विस्मयजनक है। इसे भविष्यवक्ता यशायाह द्वारा पूर्वबताया गया था: “छोटे से छोटा एक हजार हो जाएगा और सब से दुर्बल एक सामर्थी जाति बन जाएगा। मैं यहोवा हूं; ठीक समय पर यह सब कुछ शीघ्रता से पूरा करूंगा।” (यशायाह ६०:२२) यह भविष्यवाणी परमेश्वर के लोगों के वर्धन से सम्बन्धित है, और इसकी मुख्य पूर्णता हमारे दिनों में हो रही है।
३. किस तरह १९९१ सेवा-वर्ष रिपोर्ट ने दिखाया कि यहोवा अपने लोगों का कार्य बढ़ा रहा है?
३ यहोवा के गवाहों की विश्वव्यापी गतिविधियों को १९९१ सेवा-वर्ष रिपोर्ट दिखाती है कि ४२,७८,८२० राज्य प्रचारकों का एक नया शिखर हासिल हुआ, और उस वर्ष के दौरान कुल ३,००,९४५ व्यक्तियों ने बपतिस्मा लिया। इतने सारे नए व्यक्तियों के आने से, ३,१९१ नई कलीसियाओं के साथ-साथ नए सर्किट और ज़िले भी स्थापित किए गए। इसका अर्थ है हर दिन आठ से ज़्यादा नई कलीसियाएं, यानी हर दो दिन में तक़रीबन एक नए सर्किट की स्थापना। क्या चमत्कारी वर्धन! स्पष्टतया, यहोवा गति बढ़ा रहा है, और उसकी आशिष उसके लोगों की कोशिशों पर है।—भजन १२७:१.
आत्म-परीक्षण का समय
४. जैसे-जैसे हम भविष्य की ओर देखते हैं, हमें कौनसे सवालों पर ग़ौर करना चाहिए?
४ हालाँकि यह आनन्द की बात है, यह आशिष कुछ जवाबदारियाँ भी लाती है। इन सब नए जनों की आध्यात्मिक ज़रूरतों की देख-भाल करने के लिए क्या पर्याप्त मात्रा में परिपक्व और इच्छुक व्यक्ति होंगे? जैसे-जैसे हम भविष्य की ओर देखते हैं, वैसे-वैसे बढ़ोतरी और विस्तार की देख-रेख करने के लिए जिन पायनियर, सहायक सेवक, प्राचीन, और सफ़री अध्यक्षों और साथ ही उस कार्य को सँभालने के लिए विश्व भर के शाखा दफ़्तरों और बेथेल घरों में जिन स्वयंसेवकों की तादाद की ज़रूरत है, उनके बारे में सोचना आश्चर्यजनक है। लोगों की इतनी बड़ी तादाद कहाँ से आएगी? इस में कोई शक़ नहीं कि फ़सल बहुत है। परन्तु आज उस फ़सल को काटने के लिए जिन काम करनेवालों की ज़रूरत है, उन की देख-रेख करने के लिए कौन योग्य स्थिति में हैं?—मत्ती ९:३७, ३८.
५. तेज़ बढ़ोतरी की वजह से कुछ इलाक़ों में किस तरह की स्थिति है?
५ मिसाल के तौर पर, यह रिपोर्ट किया गया है कि संसार के कुछ भागों में, ऐसी कलीसियाएँ हैं जिन में क़रीबन सौ राज्य प्रचारक हैं, पर उनकी सेवा करने के लिए एक या दो सहायक सेवक के साथ सिर्फ़ एक ही प्राचीन है। कई बार एक प्राचीन को दो कलीसियाओं में सेवा करनी पड़ती है। अन्य जगहों में, गृह बाइबल अध्ययन संचालित करने के लिए योग्य मसीही सेवकों की ज़रूरत इतनी ज़्यादा है कि नए जनों को प्रतीक्षा-सूचियों पर डाला जाता है। कई और जगहों में, नई कलीसियाएं इतनी तेज़ रफ़्तार से स्थापित की जाती हैं कि तीन, चार, या पाँच कलीसियाओं को एक राज्यगृह का उपयोग बारी-बारी से करना पड़ता है। शायद आपने ऐसी बढ़ोतरी अपने ही इलाक़े में देखी हो।
६. हमारी ओर से आत्म-परीक्षण क्यों समयोचित है?
६ हमें पूर्ववर्ती जानकारी क्या बताती है? यही कि समय को मद्दे नज़र रखते हुए और इस ज़रूरत के प्रति प्रतिक्रिया दिखाने के लिए हम सब को अपने हालातों को जाँचने की ज़रूरत है यह देखने के लिए कि क्या हम अपने समय और सम्पत्ति का अच्छा उपयोग कर रहे हैं या नहीं। (इफिसियों ५:१५-१७) पहली सदी के इब्रानी मसीहियों को प्रेरित पौलुस ने लिखा: “समय के विचार से तो तुम्हें गुरु हो जाना चाहिए था, फिर भी यह आवश्यक हो गया है कि कोई तुम्हें फिर से परमेश्वर के वचन की आदि से प्रारम्भिक शिक्षा दे। और ऐसे हो गए हो, कि तुम्हें अन्न के बदले अब तक दूध ही चाहिए। (इब्रानियों ५:१२, NW) जैसे ये शब्द सूचित करते हैं, वैयक्तिक मसीहियों को बढ़ने की ज़रूरत है। और एक असली ख़तरा यह है कि मसीही परिपक्वता तक तरक़्क़ी करने के बजाय एक व्यक्ति आध्यात्मिक शिशुपन में ही ठहर जाए। इसके अनुरूप, पौलुस हमसे आग्रह करता है: “अपने आप को परखो, कि विश्वास में हो कि नहीं; अपने आप को जांचो।” (२ कुरिन्थियों १३:५) क्या आपने ख़ुद को जाँचा है यह जानने के लिए कि आप अपने बपतिस्मे के समय से आध्यात्मिक रूप से बढ़ रहे हैं या नहीं? या आप निश्चल ही खड़े हैं? तथापि, कोई व्यक्ति यह कैसे जान सकता है?
‘बालक के गुण’
७. आध्यात्मिक उन्नति को प्रगट करने के वास्ते, हमें क्या करना चाहिए?
७ “जब मैं बालक था, तो बालक के समान बोलता, बालक के समान सोचता, बालक के समान समझता था; पर अब जब कि मैं सयाना हो गया हूँ, मैं ने बालक के गुणों को दूर कर दिया है।” (१ कुरिन्थियों १३:११, NW) आध्यात्मिक विकास में, एक समय पर हम सब अपने सोच-विचार और कार्यों में बालकों के समान थे। बहरहाल, उन्नति प्रगट होने के लिए, जैसे पौलुस ने कहा, हमें “बालक के गुणों” को दूर करना चाहिए। इन में से कुछेक गुण क्या हैं?
८. इब्रानियों ५:१३, १४ में पौलुस के शब्दों के अनुसार, आध्यात्मिक बालक का एक गुण क्या है?
८ पहला, इब्रानियों ५:१३, १४ में पौलुस के शब्दों पर ग़ौर करें: “दूध पीनेवाले बच्चे को तो धर्म के वचन की पहिचान नहीं होती, क्योंकि वह बालक है। पर अन्न [ठोस भोजन, NW] सयानों के लिये है, जिन के ज्ञानेन्द्रियां अभ्यास करते करते, भले बुरे में भेद करने के लिये पक्के हो गए हैं।” क्या आपको “धर्म के वचन की पहिचान” है? क्या आप परमेश्वर के वचन, बाइबल, को इतनी बख़ूबी जानते हैं कि आप “भले बुरे में भेद करने” के क़ाबिल हैं? पौलुस ने कहा कि परिपक्व लोग ऐसा कर पाते हैं क्योंकि वे नियमित तौर पर “ठोस भोजन” लेते हैं। इस प्रकार, ठोस आध्यात्मिक भोजन के लिए किसी की चाह या भूख इस बात का अच्छा संकेतक है कि वह व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से सयाना हो गया है या अभी तक एक आध्यात्मिक बालक ही है।
९. किस तरह एक व्यक्ति की आध्यात्मिक भूख उसकी आध्यात्मिक उन्नति का संकेत है?
९ तो फिर, आपकी आध्यात्मिक भूख कैसी है? आध्यात्मिक भोजन की प्रचुर सप्लाई को आप किस नज़र से देखते हैं, जिसे यहोवा नियमित तौर पर बाइबल-आधारित प्रकाशनों और मसीही सभाओं और सम्मेलनों के ज़रिये प्रदान करता है? (यशायाह ६५:१३) बेशक अगर वार्षिक ज़िला सम्मेलनों में नए प्रकाशन रिलीज़ किए जाते हैं, तो आप बहुत ही आनन्दित होते हैं। लेकिन घर पहुँचने पर आप उनका क्या करते हैं? प्रहरीदुर्ग या अवेक! पत्रिका का नया अंक आने पर आप क्या करते हैं? क्या आप इन प्रकाशनों को पढ़ने के लिए वक़्त निकालते हैं, या उनकी विशेषताओं को देखने के लिए सरसरी नज़र से देखते हैं और फिर उन्हें अन्य प्रकाशनों के साथ पुस्तकों के ताख़ पर रख देते हैं? मसीही सभाओं के सम्बन्ध में समान सवाल पूछे जा सकते हैं। क्या आप नियमित तौर पर सब सभाओं में हाज़िर होते हैं? क्या आप उन के लिए तैयारी करते हैं और साथ ही उन में हिस्सा लेते हैं? प्रत्यक्षतः, कुछ लोग सतही रूप से पढ़ते हुए, और, मानो, तेज़ी से खाते हुए, आध्यात्मिक रूप से अपर्याप्त भोजन लेने की आदत में पड़ गए हैं। भजनकार इस सम्बन्ध में कितना अलग था, जिसने कहा: “मैं तेरी व्यवस्था में कैसी प्रीति रखता हूं! दिन भर मेरा ध्यान उसी पर लगा रहता है।” इसके अतिरिक्त, राजा दाऊद ने कहा: “मैं बड़ी सभा में तेरा धन्यवाद करूंगा; बहुतेरे लोगों के बीच मैं तेरी स्तुति करूंगा।” (भजन ३५:१८; ११९:९७) स्पष्टतया, जिस हद तक हम आध्यात्मिक प्रबंधों की क़दर करते हैं वही हमारी आध्यात्मिक तरक़्क़ी का संकेतक है।
१०. आध्यात्मिक बालक का कौनसा गुण इफिसियों ४:१४ में सूचित किया गया है?
१० पौलुस ने आध्यात्मिक बालक के एक और गुण की तरफ़ संकेत किया जब उसने चेतावनी दी: “हम आगे को बालक न रहें, जो मनुष्यों की ठग-विद्या और चतुराई से उन के भ्रम की युक्तियों की, और उपदेश की, हर एक बयार से उछाले, और इधर-उधर घुमाए जाते हों।” (इफिसियों ४:१४) जैसे माता-पिता अच्छी तरह जानते हैं, बच्चे हर बात के बारे में जिज्ञासु होते हैं। एक तरह से तो यह एक सकारात्मक गुण है क्योंकि यह उन्हें खोज करने, सीखने और धीरे-धीरे परिपक्व व्यक्तियों में विकसित होने के लिए समर्थ बनाता है। बहरहाल, ख़तरा इस बात में है कि उनका ध्यान आसानी से एक के बाद एक चीज़ द्वारा भंग होता है। और इससे भी बुरी बात तो यह है कि अनुभव की कमी के कारण, यह जिज्ञासा अक़सर उन्हें भारी मुसीबत में डाल देती है, जिससे स्वयं उन्हें और दूसरों को ख़तरा रहता है। यह आध्यात्मिक बालकों के बारे में भी सच है।
११. (क) “उपदेश की हर एक बयार,” यह अभिव्यक्ति इस्तेमाल करते समय पौलुस के मन में क्या था? (ख) आज हमें किन ‘बयारों’ का सामना करना पड़ता है?
११ पौलुस के मन में क्या था जब उसने कहा कि आध्यात्मिक बालक “उपदेश की हर एक बयार” से उछाले जाते हैं? यहाँ, “बयार” का अनुवाद यूनानी शब्द एʹनि·मॉस से किया गया है, जिसके बारे में इंटरनॅश्नल क्रिटिकल कॉमॅन्टरि (International Critical Commentary) कहती है कि यह प्रत्यक्षतः “इसलिए चुना गया है क्योंकि यह परिवर्तनशीलता के विचार के लिए उचित है।” यह पौलुस के अगले शब्द “मनुष्यों की ठग-विद्या” से साफ़-साफ़ चित्रित होता है। मूल भाषा में “ठग-विद्या” का बुनियादी अर्थ “पासा” या “पासा का खेल” है, यानि संयोग का खेल। बात यह है कि हमें नई योजनाओं और व्यवसायों का निरन्तर सामना करना पड़ता है जो अहानिकर, आकर्षक, या लाभकर भी प्रतीत हो सकती हैं। पौलुस के शब्द मुख्य रूप से उन मामलों को लागू होते हैं जो हमारे विश्वास से सम्बन्धित हैं—एकता-वर्धक आंदोलन, सामाजिक और राजनीतिक मामले, इत्यादि। (१ यूहन्ना ४:१ से तुलना करें.) दुनिया के सदैव बदलते सनक और फैशन—जैसी विभिन्न शैलियाँ, मनोरंजन, भोजन, तंदुरुस्ती या कसरत के नित्यक्रम, इत्यादि—के सम्बन्ध में भी यह सिद्धांत सच है। तजरबा और अच्छे फ़ैसले की कमी की वजह से, ऐसी चीज़ों से आध्यात्मिक बालक का ध्यान कुछ ज़्यादा ही भंग हो सकता है और इस प्रकार आध्यात्मिक उन्नति करने और अपने अति महत्त्वपूर्ण दायित्वों को पूरा करने से रोका जा सकता है।—मत्ती ६:२२-२५.
१२. जवाबदारी के सम्बन्ध में छोटे बच्चे बालिग़ों से किस तरह भिन्न हैं?
१२ मदद और ध्यान के लिए निरन्तर ज़रूरत छोटे बच्चों का एक और गुण है। वे जवाबदारियों के बारे में न तो अवगत हैं और न चिंतित हैं; बचपन ज़िंदगी का वह समय है जब सब कुछ सिर्फ़ हँसी-खेल है। जैसे पौलुस ने अभिव्यक्त किया, वे ‘बालक के समान बोलते, बालक के समान सोचते, बालक के समान समझते हैं।’ वे यह मानकर चलते हैं कि अन्य लोग उनकी परवाह तो करेंगे ही। यही बात आध्यात्मिक बालक के बारे में भी कही जा सकती है। जब एक नया व्यक्ति अपना पहला बाइबल भाषण देता है या क्षेत्र सेवकाई में भाग लेना आरंभ करता है, तो आध्यात्मिक माता-पिता मदद करने के लिए सब कुछ करने में प्रसन्न हैं। क्या होगा अगर नया व्यक्ति ऐसी मदद पर निर्भर करते रहता है और ख़ुद की देख-रेख करने की ज़िम्मेदारी को स्वीकार करने में अयोग्य प्रमाणित होता है? स्पष्टतया यह आत्म-प्रयुक्ति की कमी का एक संकेत होगा।
१३. अपना ही बोझ उठाने के लिए हर व्यक्ति को क्यों सीखना चाहिए?
१३ इस सम्बन्ध में प्रेरित पौलुस की उस चेतावनी को याद करें कि हालाँकि हमें ‘एक दूसरे का भार उठाना’ चाहिए, फिर भी “हर एक व्यक्ति अपना ही बोझ उठाएगा।” (गलतियों ६:२, ५) बेशक, अपनी मसीही ज़िम्मेदारियों को उठाने के लिए सीखने में समय और परिश्रम तो लगता है, और इसका अर्थ शायद कुछेक क्षेत्र में त्याग करना भी हो सकता है। बहरहाल, ख़ुद को ज़िंदगी की हँसी-खेल में उलझाना एक भारी ग़लती होगी, चाहे वह मनोरंजन, यात्राएँ, उपकरणों, या पेशे का व्यर्थ पीछा ही क्यों न हो। इसकी वजह से हम में शिष्य बनाने के कार्य में या आध्यात्मिक उन्नति और जवाबदारी के लिए आगे बढ़ने के लिए किसी तरह की चाह नहीं रहती, और कहा जाए तो हम सिर्फ़ एक प्रेक्षक की तरह रहना पसंद करेंगे। शिष्य याकूब ने आग्रह किया, “वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।”—याकूब १:२२; १ कुरिन्थियों १६:१३.
१४. एक आध्यात्मिक बालक के गुणों को प्रदर्शित करने में ही हमें संतुष्ट क्यों नहीं होना चाहिए?
१४ हाँ, ऐसे अनेक आसानी से ज़ाहिर होनेवाले गुण हैं जो एक बच्चे को बालिग़ से अलग करते हैं। तथापि, जैसे पौलुस ने अभिव्यक्त किया, अहम बात यह है कि हम धीरे-धीरे बालक के गुणों को दूर करें और बढ़ें। (१ कुरिन्थियों १३:११; १४:२०) अन्यथा, हम आध्यात्मिक रूप से पीछे रहेंगे। पर एक व्यक्ति उन्नति किस तरह करता है? परिपक्वता तक आध्यात्मिक बढ़ोतरी करते रहने में क्या सम्मिलित है?
उन्नति किस तरह प्रगट होती है
१५. वर्धन की प्रक्रिया के बुनियादी क़दम क्या हैं?
१५ ख़ैर, प्राकृतिक दुनिया में वर्धन किस तरह होता है? द वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया (The World Book Encyclopedia) व्याख्या करती है, “हर व्यक्ति अपना जीवन एक कोशिका के रूप में आरंभ करता है। कोशिका अपने भीतर सामग्री लेती है और उन्हें बढ़ोतरी के लिए ज़रूरी निर्माण खंडक में बदल देती है। इस प्रकार, एकल कोशिका अपने अन्दर से ही बढ़ती है। अन्य कोशिकाएँ बनाने के लिए यह कोशिका गुणात्मक ढंग से बढ़ सकती है और अलग हो सकती है। निर्माण, गुणन, और अलग होने की प्रक्रिया ही वर्धन है। यहाँ उल्लेखनीय बात यह है कि बढ़ाव अन्दर से ही होता है। जब सही आहार लिया जाता है, इसे पचाया जाता है, और काम में लाया जाता है, तो इसका परिणाम बढ़ाव है। यह एक नवजात शिशु के सम्बन्ध में साफ़-साफ़ दिखाई देता है। जैसे हम जानते हैं, नवजात शिशु ख़ास तरह के संयोजन के अनुसार बनाए गए आहार, दूध, जो वसा और प्रोटीन से भरपूर है, को नियमित तौर से लेता है। नतीजा? पहले साल में बालक के वज़न और क़द के सम्बन्ध में हुई बढ़ोतरी की मात्रा की तुलना उसके बाक़ी जीवन के किसी भी अन्य साल की सामान्य बढ़ोतरी से नहीं की जा सकती है।
१६. अधिकांश नए बाइबल विद्यार्थियों में किस क़िस्म की बढ़ोतरी दिखाई देती है, और यह कैसे संभव होती है?
१६ विकास की प्राकृतिक प्रक्रिया से हम काफ़ी कुछ सीखते हैं जिसे बुनियादी ज्ञान से परिपक्वता तक हमारी आध्यात्मिक उन्नति पर लागू किया जा सकता है। सबसे पहले, एक नियमित संभरण कार्यक्रम अत्यावश्यक है। उस समय को याद करें जब आपने बाइबल का अध्ययन करना आरंभ किया था। यदि आप अन्य व्यक्तियों की तरह थे, तो शायद आपको परमेश्वर के वचन के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। पर हर सप्ताह आप ने अपने पाठ को तैयार किया और अपने बाइबल अध्ययन को किया, और थोड़े समय में, आप धर्मशास्त्र की सभी बुनियादी शिक्षाओं को समझने लगे। आपको मानना पड़ेगा कि यह असाधारण बढ़ोतरी थी, और यह सब परमेश्वर के वचन पर नियमित होकर भोजन लेने की वजह से था!
१७. क्यों नियमित आध्यात्मिक संभरण कार्यक्रम अनिवार्य है?
१७ तथापि, अभी के बारे में क्या? क्या आपका अभी भी एक नियमित संभरण कार्यक्रम है? हम में से किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि चूँकि हमारा बपतिस्मा हो गया है, इसलिए पुष्टिकर आध्यात्मिक आहार लेने के लिए नियमित और व्यवस्थित अध्ययन की और कोई ज़रूरत नहीं है। हालाँकि तीमुथियुस एक परिपक्व मसीही अध्यक्ष था, पौलुस ने उसे उत्तेजित किया: “उन बातों को सोचता रह और उन्हीं में अपना ध्यान लगाए रह, ताकि तेरी उन्नति सब पर प्रगट हो।” (१ तीमुथियुस ४:१५) हम में से हर किसी को कितना ही ज़्यादा करने की ज़रूरत है! अगर आप अपनी आध्यात्मिक उन्नति प्रगट करने में दिलचस्पी रखते हैं, तो ऐसी कोशिशें अनिवार्य हैं।
१८. किसी की आध्यात्मिक उन्नति किस तरह प्रगट होती है?
१८ अपनी उन्नति प्रगट करने का यह मतलब नहीं कि हमें अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने या दूसरों को प्रभावित करने के लिए ख़ास कोशिश करनी चाहिए। यीशु ने कहा: “तुम जगत की ज्योति हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता” और, “जो मन में भरा है, वही मुंह पर आता है।” (मत्ती ५:१४; १२:३४) जब हमारे दिलोदिमाग़ परमेश्वर के वचन की भली बातों से भरपूर हैं, तब हमारे कार्यों और बातों से यह ज़ाहिर हो ही जाता है।
१९. हमारी आध्यात्मिक उन्नति के बारे में हम ने क्या करने का संकल्प करना चाहिए, और इसका नतीजा क्या होगा?
१९ इसलिए, सवाल यह है: क्या आप पुष्टिकर चीज़ें लेने के लिए नियमित रूप से बाइबल का अध्ययन करते और मसीही सभाओं में हाज़िर होते हैं, जो आपके आंतरिक, आध्यात्मिक विकास को बढ़ा सकती हैं? जहाँ तक आध्यात्मिक विकास का मामला है एक निष्क्रिय प्रेक्षक रहने में संतुष्ट न रहें। यहोवा द्वारा प्रबंध किए गए प्रचुर आध्यात्मिक आहार का पूरा उपयोग करने के लिए सकारात्मक क़दम यक़ीनन लें। अगर आप एक ऐसे व्यक्ति हैं जो “यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता है और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है,” तो ये शब्द आप के बारे में भी कहे जा सकते हैं: “वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।” (भजन १:२, ३) फिर भी, यह निश्चित करने के लिए कि आप आध्यात्मिक उन्नति करते रहेंगे, क्या किया जा सकता है? इसकी चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।
क्या आप जवाब दे सकते हैं?
▫ हमारी आध्यात्मिक उन्नति की जाँच करना क्यों समायोचित है?
▫ कैसे आध्यात्मिक बढ़ोतरी आध्यात्मिक भूख से सम्बन्धित है?
▫ “उपदेश की हर एक बयार” का क्या अर्थ है?
▫ हर किसी को अपना बोझ क्यों उठाना चाहिए?
▫ आध्यात्मिक उन्नति किस तरह प्राप्त की जाती है?
[पेज 10 पर तसवीरें]
क्या आप बाइबल आधारित प्रकाशनों को पढ़ने के लिए वक़्त निकालते हैं?