यहोवा का महान आत्मिक मन्दिर
“हमारा ऐसा महायाजक है, जो . . . पवित्र स्थान और उस सच्चे तम्बू का सेवक हुआ, जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, बरन प्रभु ने खड़ा किया था।”—इब्रानियों ८:१, २.
१. पापपूर्ण मानवजाति के लिए परमेश्वर ने क्या प्रेमपूर्ण प्रबन्ध किया?
यहोवा परमेश्वर ने, मनुष्यजाति के लिए अपने महान प्रेम से प्रेरित होकर, संसार के पापों को उठा ले जाने के लिए एक बलिदान का प्रबन्ध किया। (यूहन्ना १:२९; ३:१६) इसमें उसके पहिलौठे पुत्र के जीवन को स्वर्ग से मरियम नामक एक कुँवारी यहूदिन के गर्भ में स्थानांतरित करने की ज़रूरत पड़ी। यहोवा के स्वर्गदूत ने मरियम को स्पष्ट रूप से बताया कि जो बच्चा वह धारण करती वह पवित्र, ‘परमेश्वर का पुत्र कहलाता।’ (लूका १:३४, ३५) यूसुफ को, जिसकी मंगनी मरियम के साथ हुई थी, यीशु के गर्भधारण के चमत्कारिक स्वभाव के बारे में बताया गया था और उसने जाना कि यह व्यक्ति “अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार” करता।—मत्ती १:२०, २१.
२. जब यीशु लगभग ३० वर्ष का था तब उसने क्या किया, और क्यों?
२ जैसे-जैसे यीशु बड़ा हुआ, उसने अपने चमत्कारिक जन्म की इन कुछेक सच्चाइयों को समझा होगा। वह जानता था कि उसके स्वर्गीय पिता ने उसको पृथ्वी पर एक जीवन-रक्षक काम करने के लिए दिया था। सो, ३० वर्ष की आयु के एक वयस्क पुरुष के तौर पर यीशु, परमेश्वर के भविष्यवक्ता यूहन्ना के पास, यरदन नदी में बपतिस्मा पाने आया।—मरकुस १:९; लूका ३:२३.
३. (क) इन शब्दों से यीशु का क्या अभिप्राय था, “बलिदान और भेंट तू ने न चाही”? (ख) उन सभी के लिए जो उसके शिष्य बनना चाहते हैं यीशु ने कौन-सा उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया?
३ यीशु अपने बपतिस्मे के समय प्रार्थना कर रहा था। (लूका ३:२१) प्रत्यक्षतः, अपने जीवन के इस क्षण से, उसने भजन ४०:६-८ के शब्दों को पूरा किया, जैसा कि बाद में प्रेरित पौलुस द्वारा सूचित किया गया: “बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिये एक देह तैयार किया।” (इब्रानियों १०:५) इस प्रकार यीशु ने इस बात की अपनी जानकारी को दिखाया कि परमेश्वर ने यरूशलेम के मन्दिर में चढ़ाए जा रहे पशु बलिदानों को जारी रखना ‘न चाहा’। इसके बजाय उसने यह महसूस किया कि परमेश्वर ने, बलिदान के तौर पर चढ़ाने के लिए, उस यीशु के लिए एक परिपूर्ण मानवी देह तैयार की थी। यह इसके आगे किसी भी पशु बलिदान की ज़रूरत को समाप्त कर देता। परमेश्वर की इच्छा के अधीन होने की अपनी हार्दिक अभिलाषा को दिखाते हुए, यीशु प्रार्थना करता रहा: “देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं।” (इब्रानियों १०:७) उस दिन यीशु ने उन सभी के लिए जो बाद में उसके शिष्य बनते, साहस और निःस्वार्थ भक्ति का क्या ही शानदार उदाहरण पेश किया!—मरकुस ८:३४.
४. यीशु की ख़ुद की भेंट के प्रति परमेश्वर ने अपनी स्वीकृति कैसे दिखाई?
४ क्या परमेश्वर ने यीशु की बपतिस्मा प्रार्थना को स्वीकार किया? यीशु के चुने हुए एक प्रेरित को जवाब देने दीजिए: “यीशु बपतिस्मा लेकर तुरन्त पानी में से ऊपर आया, और देखो, उसके लिये आकाश खुल गया; और उस ने परमेश्वर के आत्मा को कबूतर की नाईं उतरते और अपने ऊपर आते देखा। और देखो, यह आकाशवाणी हुई, कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं।”—मत्ती ३:१६, १७; लूका ३:२१, २२.
५. शाब्दिक मन्दिर की वेदी द्वारा क्या चित्रित होता था?
५ बलिदान के लिए यीशु की देह की भेंट की परमेश्वर की स्वीकृति का अर्थ था कि एक आत्मिक अर्थ में जो वेदी यरूशलेम मन्दिर में थी, उससे एक महान वेदी सामने आयी थी। इस भौतिक वेदी ने, जिस पर बलिदान के लिए पशु भेंट दिए जाते थे, आत्मिक वेदी का पूर्वसंकेत दिया जो कि यीशु का मानवीय जीवन बलिदान के रूप में स्वीकार करने के लिए असल में परमेश्वर की “इच्छा” अथवा प्रबन्ध था। (इब्रानियों १०:१०) इसीलिए प्रेरित पौलुस संगी मसीहियों को लिख सका: “हमारी एक ऐसी वेदी है, जिस पर से खाने का अधिकार उन लोगों को नहीं, जो तम्बू की सेवा करते हैं।” (इब्रानियों १३:१०) दूसरे शब्दों में, सच्चे मसीही पापों का प्रायश्चित्त करनेवाले एक श्रेष्ठ बलिदान से लाभ उठाते हैं, जिसे अधिकांश यहूदी याजकों ने अस्वीकार कर दिया था।
६. (क) यीशु के बपतिस्मे के समय क्या सामने आया? (ख) उपाधि मसीहा, अथवा मसीह का क्या अर्थ है?
६ यीशु को पवित्र आत्मा से अभिषिक्त करने का अर्थ था कि परमेश्वर ने अब अपने सम्पूर्ण आत्मिक मन्दिर की व्यवस्था को शुरू किया था, जिसमें यीशु महायाजक के रूप में सेवा करता। (प्रेरितों १०:३८; इब्रानियों ५:५) शिष्य लूका इस महत्त्वपूर्ण घटना के वर्ष को “तिबिरियुस कैसर के राज्य के पंद्रहवें वर्ष” के तौर पर सूचित करने के लिए प्रेरित हुआ। (लूका ३:१-३) यह सा.यु. २९ से मेल खाता है—राजा अर्तक्षत्र ने यरूशलेम की दीवारों को जब फिर से बनाने की आज्ञा दी थी उस समय से वर्षों के ठीक ६९ सप्ताह, अथवा ४८३ वर्ष बाद। (नहेमायाह २:१, ५-८) भविष्यवाणी के अनुसार, “अभिषिक्त प्रधान” उस चिन्हित वर्ष में प्रकट होता। (दानिय्येल ९:२५) स्पष्ट रूप से अनेक यहूदी इससे अवगत थे। लूका रिपोर्ट करता है कि मसीहा, अथवा मसीह के प्रकट होने की “लोग आस लगाए हुए थे।” ये ऐसी उपाधियाँ हैं जो इब्रानी और यूनानी शब्दों से आती हैं जिनका एक ही अर्थ है “अभिषिक्त जन।”—लूका ३:१५.
७. “परमपवित्र” स्थान का परमेश्वर ने कब अभिषेक किया, और इसका क्या अर्थ था? (ख) उसके बपतिस्मे के समय यीशु को और क्या हुआ था?
७ यीशु के बपतिस्मे के समय, परमेश्वर का स्वर्गीय वासस्थान, उस “परमपवित्र” के रूप में महान आत्मिक मन्दिर व्यवस्था में अभिषिक्त, अथवा अलग किया गया। (दानिय्येल ९:२४) ‘वह सच्चा तम्बू [अथवा, मन्दिर] जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, बरन प्रभु ने खड़ा किया’ कार्य करने लगा था। (इब्रानियों ८:२) साथ ही, पानी और पवित्र आत्मा द्वारा अपने बपतिस्मे से, वह व्यक्ति यीशु मसीह परमेश्वर के आत्मिक पुत्र के रूप में नये सिरे से जन्मा। (यूहन्ना ३:३ से तुलना कीजिए।) इसका अर्थ यह था कि परमेश्वर बाद में अपने पुत्र को स्वर्गीय जीवन के लिए वापस बुला लेता, जहाँ वह अपने पिता के दाहिने हाथ पर राजा और महायाजक के रूप में “मलिकिसिदक की रीति पर सदा काल” के लिए सेवा करता।—इब्रानियों ६:२०; भजन ११०:१, ४.
स्वर्गीय परमपवित्र स्थान
८. स्वर्ग में परमेश्वर के सिंहासन ने अब कौन-सी नई विशेषताएँ ग्रहण कर ली थीं?
८ यीशु के बपतिस्मे के दिन, परमेश्वर के स्वर्गीय सिंहासन ने नई विशेषताएँ धारण कर ली थीं। संसार के पापों के प्रायश्चित्त के लिए एक परिपूर्ण मानवी बलिदान के विशेष विवरण ने मनुष्य की पापपूर्णता की विषमता में परमेश्वर की पवित्रता पर ज़ोर दिया। परमेश्वर की दया भी विशिष्ट हुई कि अब उसने प्रसन्न किए जाने, अथवा प्रायश्चित्त स्वीकार करने की अपनी इच्छा दिखाई। अतः स्वर्ग में परमेश्वर का सिंहासन मन्दिर के सबसे भीतरी भाग के समान बन गया था, जहाँ महायाजक वर्ष में एक बार पाप के प्रायश्चित्त के लिए पशु के लहू के साथ चित्रात्मक तरीक़े से प्रवेश करता था।
९. (क) पवित्र स्थान और परमपवित्र स्थान के बीच के परदे ने क्या चित्रित किया? (ख) यीशु कैसे परमेश्वर के आत्मिक मन्दिर के परदे के पार गया?
९ वह परदा जो पवित्र स्थान को परमपवित्र स्थान से अलग करता था, यीशु की शारीरिक देह को चित्रित करता था। (इब्रानियों १०:१९, २०) जब वह पृथ्वी पर एक मनुष्य था, तब यह एक बाधा थी जिसने यीशु को अपने पिता के सम्मुख हाज़िर होने से रोके रखा। (१ कुरिन्थियों १५:५०) यीशु की मृत्यु के समय, “मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फटकर दो टुकड़े हो गया।” (मत्ती २७:५१) इसने नाटकीय रूप से सूचित किया कि वह बाधा जो यीशु को स्वर्ग जाने से रोक रही थी अब हटा दी गई थी। तीन दिन बाद, यहोवा परमेश्वर ने एक अद्वितीय चमत्कार किया। उसने यीशु को मरे हुओं में से जी उठाया, माँस और लहू के मरनहार मनुष्य के तौर पर नहीं, बल्कि एक महिमावान आत्मिक प्राणी के रूप में जो “युगानुयुग रहता है।” (इब्रानियों ७:२४) चालीस दिन बाद, यीशु स्वर्ग पर चढ़ गया और उसने सच्चे “परमपवित्र” स्थान में प्रवेश किया ताकि “हमारे लिये . . . परमेश्वर के साम्हने दिखाई दे।”—इब्रानियों ९:२४.
१०. (क) यीशु के अपने स्वर्गीय पिता को अपने बलिदान का मूल्य प्रस्तुत करने के बाद क्या हुआ? (ख) मसीह के शिष्यों के लिए पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किए जाने का क्या अर्थ था?
१० क्या परमेश्वर ने यीशु के बहाए गए लहू के मूल्य को संसार के पापों के लिए प्रायश्चित्त के रूप में स्वीकार किया? निःसंदेह उसने किया। इसका प्रमाण यीशु के पुनरुत्थान से ठीक ५० दिन बाद, पिन्तेकुस्त के पर्व के दिन मिला। यरूशलेम में एकसाथ इकट्ठे हुए यीशु के १२० शिष्यों पर परमेश्वर की पवित्र आत्मा उंड़ेली गयी। (प्रेरितों २:१, ४, ३३) अपने महायाजक, यीशु मसीह के समान, वे परमेश्वर की महान आत्मिक मन्दिर व्यवस्था में ‘याजकों के पवित्र समाज’ के तौर पर सेवा करने के लिए अब अभिषिक्त थे, ताकि ‘आत्मिक बलिदान चढाएँ’। (१ पतरस २:५) इसके अलावा, इन अभिषिक्त जनों से एक नई जाति, आत्मिक इस्राएल की परमेश्वर की “पवित्र जाति” बनी। इसके बाद, इस्राएल के बारे में अच्छी बातों की सभी भविष्यवाणियाँ, जैसे कि यिर्मयाह ३१:३१ में अभिलिखित “नई वाचा” की प्रतिज्ञा, अभिषिक्त मसीही कलीसिया पर, सच्चे “परमेश्वर के इस्राएल” पर लागू होतीं।—१ पतरस २:९, NW; गलतियों ६:१६.
परमेश्वर के आत्मिक मन्दिर की अन्य विशेषताएँ
११, १२. (क) यीशु के मामले में याजकीय आँगन द्वारा क्या चित्रित होता था, और उसके अभिषिक्त अनुयायियों के मामले में यह क्या है? (ख) पानी का हौद क्या चित्रित करता है, और कैसे इसका इस्तेमाल हो रहा है?
११ हालाँकि परमपवित्र स्थान ने “स्वर्ग ही” को चित्रित किया, जहाँ परमेश्वर सिंहासनारूढ़ है, परमेश्वर के आत्मिक मन्दिर की अन्य सभी विशेषताएँ पृथ्वी की वस्तुओं से सम्बन्ध रखती हैं। (इब्रानियों ९:२४) यरूशलेम के मन्दिर में, एक भीतरी याजकीय आँगन था जिसमें बलिदान के लिए एक वेदी और पानी का एक बड़ा हौद था, जिसका प्रयोग याजक पवित्र सेवा करने से पहले ख़ुद को शुद्ध करने के लिए किया करते थे। परमेश्वर की आत्मिक मन्दिर व्यवस्था में ये वस्तुएँ क्या चित्रित करती हैं?
१२ यीशु मसीह के मामले में, भीतरी याजकीय आँगन ने, परमेश्वर के परिपूर्ण मानव पुत्र के तौर पर उसकी निष्पाप स्थिति को चित्रित किया। यीशु के बलिदान में विश्वास करने के द्वारा, यीशु के अभिषिक्त अनुयायियों को धार्मिकता का श्रेय दिया जाता है। अतः, परमेश्वर उनके साथ सही रीति से व्यवहार कर सकता है, मानो वे निष्पाप हों। (रोमियों ५:१; ८:१, ३३) अतः, यह आँगन उस प्रदत्त धर्मी मानव स्थिति को भी चित्रित करता है जिसका आनन्द याजकों के पवित्र समाज के सदस्य परमेश्वर के सामने व्यक्तिगत रूप से उठाते हैं। साथ ही, अभिषिक्त मसीही अब भी अपरिपूर्ण हैं और पाप करने के लिए प्रवृत्त हैं। आँगन में पानी का हौद परमेश्वर के वचन को चित्रित करता है, जिसे महायाजक याजकों के पवित्र समाज को शुद्ध करने के लिए उत्तरोत्तर प्रयोग करता है। इस शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुज़रने के द्वारा, उन्होंने एक गौरवपूर्ण रूप पाया है, जो परमेश्वर को सम्मान देता है और बाहरवालों को उसकी शुद्ध उपासना की ओर खींचता है।—इफिसियों ५:२५, २६; मलाकी ३:१-३ से तुलना कीजिए।
पवित्र स्थान
१३, १४. (क) यीशु और उसके अभिषिक्त अनुयायियों के मामले में मन्दिर का पवित्र स्थान क्या चित्रित करता है? (ख) सोने की दीवट क्या चित्रित करती है?
१३ मन्दिर का पहला भाग आँगन की स्थिति से एक श्रेष्ठ स्थिति को चित्रित करता है। परिपूर्ण व्यक्ति यीशु मसीह के मामले में, यह स्वर्गीय जीवन में वापसी के लिए नियत परमेश्वर के आत्मिक पुत्र के तौर पर उसके नये सिरे से जन्म लेने को सूचित करता है। मसीह के बहाए गए लहू पर उनके विश्वास के आधार पर धर्मी घोषित किए जाने के बाद, ये अभिषिक्त अनुयायी भी पवित्र आत्मा के इस ख़ास प्रभाव का अनुभव करते हैं। (रोमियों ८:१४-१७) “जल [जो कि उनका बपतिस्मा है] और आत्मा” द्वारा वे परमेश्वर के आत्मिक पुत्रों के तौर पर “नये सिरे से जन्म” लेते हैं। इस स्थिति में, उनके पास परमेश्वर के आत्मिक पुत्रों के तौर पर स्वर्गीय जीवन में पुनरुत्थान पाने की आशा है, बशर्ते वे अपनी मृत्यु तक वफ़ादार रहें।—यूहन्ना ३:५, ७; प्रकाशितवाक्य २:१०.
१४ जो याजक पार्थिव मन्दिर के पवित्र स्थान में सेवा करते थे वे बाहर के उपासकों को नहीं दिखते थे। इसी प्रकार, अभिषिक्त मसीही एक आत्मिक स्थिति का अनुभव करते हैं जिसमें परादीस पृथ्वी पर सर्वदा जीवित रहने की आशा रखनेवाले परमेश्वर के अधिकांश उपासक भाग नहीं लेते अथवा उसे पूरी तरह से नहीं समझते। निवासस्थान की सोने की दीवट अभिषिक्त मसीहियों की प्रबुद्ध स्थिति को चित्रित करती है। परमेश्वर की पवित्र आत्मा का कार्य, दीपकों में तेल के समान, बाइबल पर प्रकाश डालता है। इसके परिणामस्वरूप जो समझ मसीही प्राप्त करते हैं, उसे वे अपने तक सीमित नहीं रखते। इसके बजाय, वे यीशु की आज्ञा का पालन करते हैं, जिसने कहा: “तुम जगत की ज्योति हो; . . . तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।”—मत्ती ५:१४, १६.
१५. भेंट की रोटी की मेज़ पर रखी रोटी के द्वारा क्या चित्रित किया गया है?
१५ इस प्रबुद्ध स्थिति में बने रहने के लिए, अभिषिक्त मसीहियों को नियमित रूप से उससे पोषित होना चाहिए जिसे भेंट की रोटी की मेज़ पर रखी रोटी के द्वारा चित्रित किया गया है। आध्यात्मिक भोजन का उनका मुख्य स्रोत परमेश्वर का वचन है, जिसे वे पढ़ने और जिस पर प्रतिदिन मनन करने का प्रयास करते हैं। यीशु ने भी उन्हें अपने “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के माध्यम से “समय पर . . . भोजन” देने की प्रतिज्ञा की थी। (मत्ती २४:४५) यह “दास” पृथ्वी पर किसी भी निश्चित समय पर सम्पूर्ण अभिषिक्त मसीहियों का निकाय है। मसीह ने इस अभिषिक्त निकाय को बाइबल भविष्यवाणियों की पूर्ति के बारे में जानकारी प्रकाशित करने के लिए और आधुनिक रोज़मर्रा जीवन में बाइबल सिद्धान्तों के अनुप्रयोग पर समयोचित निर्देश देने के लिए प्रयोग किया है। इसलिए, क़दरदानी दिखाते हुए अभिषिक्त मसीही इस प्रकार के सभी आध्यात्मिक प्रबन्धों से पोषित होते हैं। लेकिन उनके आत्मिक जीवन का जारी रहना, परमेश्वर के ज्ञान को अपने मन और हृदय में लेने से ज़्यादा पर निर्भर करता है। यीशु ने कहा: “मेरा भोजन यह है, कि अपने भेजनेवाले की इच्छा के अनुसार चलूं और उसका काम पूरा करूं।” (यूहन्ना ४:३४) उसी प्रकार, अभिषिक्त मसीही परमेश्वर की प्रकट इच्छा को पूरा करने के लिए प्रतिदिन परिश्रम करने के द्वारा संतोष का अनुभव करते हैं।
१६. धूप की वेदी की सेवाओं द्वारा क्या चित्रित किया गया है?
१६ सुबह और शाम, एक याजक पवित्र स्थान में धूप की वेदी पर परमेश्वर को धूप चढ़ाता था। उसी दौरान, ग़ैर-याजकीय उपासक परमेश्वर के मन्दिर के बाहरी आँगन में खड़े होकर उससे प्रार्थना करते। (लूका १:८-१०) “धूप,” बाइबल बताती है, “पवित्र लोगों की प्रार्थनाएं हैं।” (प्रकाशितवाक्य ५:८) “मेरी प्रार्थना तेरे साम्हने सुगन्ध धूप . . . ठहरे,” भजनहार दाऊद ने लिखा। (भजन १४१:२) अभिषिक्त मसीही यीशु मसीह के माध्यम से प्रार्थना में यहोवा के सम्मुख आने के अपने विशेषाधिकार को भी मूल्यवान समझते हैं। हृदय से निकलनेवाली हार्दिक प्रार्थनाएँ मीठी सुगन्ध के धूप के समान हैं। अभिषिक्त मसीही अन्य तरीक़ों से भी परमेश्वर की स्तुति करते हैं, दूसरों को सिखाने के लिए अपने होठों का प्रयोग करते हैं। ख़ासकर कठिनाइयों में उनका धीरज और परीक्षा में उनकी खराई परमेश्वर को प्रसन्न करती है।—१ पतरस २:२०, २१.
१७. प्रायश्चित्त के दिन परमपवित्र स्थान में महायाजक के पहले प्रवेश द्वारा प्रदान किए गए भविष्यसूचक चित्रण की पूर्ति में क्या शामिल था?
१७ प्रायश्चित्त के दिन, इस्राएल के महायाजक को परमपवित्र स्थान में प्रवेश करना होता था और सोने की धूपदानी में जलते कोयलों पर धूप जलाना होता था। उसके द्वारा पापबलि का लहू लाने से पहले यह किया जाना था। इस भविष्यसूचक चित्रण की पूर्ति में, उस मनुष्य यीशु ने हमारे पापों के लिए एक सदाकाल तक के बलिदान के रूप में अपना जीवन देने से पहले यहोवा परमेश्वर के प्रति पूर्ण खराई बनाए रखी। इस प्रकार उसने प्रदर्शित किया कि एक सिद्ध मनुष्य परमेश्वर के प्रति अपनी खराई बनाए रख सकता है चाहे शैतान उस पर कोई भी दबाव क्यों न लाए। (नीतिवचन २७:११) जब उसकी परीक्षा ली गई, तब यीशु ने “ऊंचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आंसू बहा बहाकर” प्रार्थना का प्रयोग किया, “और भक्ति के कारण उस की सुनी गई।” (इब्रानियों ५:७) इस तरीक़े से उसने यहोवा परमेश्वर को विश्वमंडल के धर्मी और न्यायसंगत सर्वसत्ताधारी के रूप में महिमा दी। परमेश्वर ने यीशु को मरे हुओं में से अविनाशी स्वर्गीय जीवन में पुनरुत्थित करने के द्वारा प्रतिफल दिया। इस ऊँचे पद से, यीशु पृथ्वी पर अपने आने के दूसरे कारण पर ध्यान देता है, जो कि, पश्चातापी मानवी पापियों का परमेश्वर से पुनर्मिलन कराना है।—इब्रानियों ४:१४-१६.
परमेश्वर के आत्मिक मन्दिर की पहले से बड़ी महिमा
१८. यहोवा अपने आत्मिक मन्दिर के लिए उत्कृष्ट महिमा कैसे लाया है?
१८ “इस भवन की पिछली महिमा इसकी पहिली महिमा से बड़ी होगी,” यहोवा ने पूर्व बताया। (हाग्गै २:९) यीशु को अविनाशी राजा और महायाजक के रूप में पुनरुत्थित करने के द्वारा यहोवा अपने आत्मिक मन्दिर के लिए उत्कृष्ट महिमा लाया। यीशु अब ‘अपने सब आज्ञा माननेवालों के लिये सदा काल का उद्धार’ करने की स्थिति में है। (इब्रानियों ५:९) इस तरह की आज्ञाकारिता दिखानेवालों में पहले १२० शिष्य थे जिन्होंने पिन्तेकुस्त सा.यु. ३३ के दिन पवित्र आत्मा प्राप्त की। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक ने पूर्वबताया था कि इस्राएल के इन आत्मिक पुत्रों की संख्या अन्ततः १,४४,००० होती। (प्रकाशितवाक्य ७:४) मरने के बाद, उनमें से अनेक लोगों को राजकीय सत्ता में यीशु की उपस्थिति के समय का इन्तज़ार करते हुए, मानवजाति की सामान्य क़ब्र में अचेतन अवस्था में पड़े रहना था। दानिय्येल ४:१०-१७, २०-२७ में पाया गया भविष्यसूचक कालक्रम १९१४ की ओर उस समय के तौर पर इशारा करता है जब यीशु अपने शत्रुओं के बीच शासन करना शुरू करता। (भजन ११०:२) दशकों पहले, अभिषिक्त मसीहियों ने उत्सुकतापूर्वक उस वर्ष का इन्तज़ार किया। प्रथम विश्व युद्ध और उसके साथ मानवजाति पर आनेवाली विपत्तियों ने प्रमाण प्रस्तुत किया कि यीशु निश्चित ही १९१४ में राजा के तौर पर सिंहासनारूढ़ किया गया था। (मत्ती २४:३, ७, ८) उसके कुछ ही समय बाद, वह समय आया “कि पहिले परमेश्वर के घर का न्याय किया जाए,” तब यीशु मृत्यु में सो गए अपने अभिषिक्त शिष्यों से की गई इस प्रतिज्ञा को पूरा करता: “मैं . . . फिर आकर तुम्हें अपने यहां ले जाऊंगा।”—१ पतरस ४:१७, फुटनोट; यूहन्ना १४:३.
१९. कैसे १,४४,००० का शेषवर्ग स्वर्गीय परमपवित्र स्थान में पहुँच पाता है?
१९ याजकों के पवित्र समाज के सभी १,४४,००० सदस्यों को अन्ततः मुहर लगाकर उनके स्वर्गीय निवास स्थान में इकट्ठा नहीं किया गया है। उनका एक शेषवर्ग अब भी पृथ्वी पर उस आत्मिक स्थिति में जीवित है, जो पवित्र स्थान द्वारा चित्रित होती है, जो परमेश्वर की पवित्र उपस्थिति से अपनी शारीरिक देह के, एक “परदे,” अथवा बाधा द्वारा अलग किए गए हैं। जब ये लोग वफ़ादारी से मरते हैं, तो वे क्षण-भर में अविनाशी आत्मिक प्राणियों के रूप में पुनरुत्थित होकर १,४४,००० जनों में से जो पहले ही से स्वर्ग में हैं, उनके साथ शामिल हो जाते हैं।—१ कुरिन्थियों १५:५१-५३.
२०. इस समय याजकों के पवित्र समाज के शेषजन कौन-सा महत्त्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, और किन परिणामों के साथ?
२० स्वर्ग में महान महायाजक के साथ सेवा करते इतने सारे याजकों से, परमेश्वर के आत्मिक मन्दिर ने पहले से बड़ी महिमा पाई है। इस दौरान, याजकों के पवित्र समाज के बाक़ी जन पृथ्वी पर मूल्यवान कार्य कर रहे हैं। उनके प्रचार के माध्यम से, परमेश्वर अपने न्यायदण्ड के कथनों से ‘सारी जातियों को कम्पकपा रहा है,’ जैसा हाग्गै २:७ में पूर्वबताया गया था। उसी के साथ, ‘सारी जातियों की मनभावनी वस्तुओं’ के तौर पर वर्णित लाखों उपासक यहोवा के मन्दिर के पार्थिव आँगनों में इकट्ठे हो रहे हैं। ये लोग उपासना के लिए परमेश्वर की व्यवस्था में कैसे ठीक बैठते हैं, और उसके महान आत्मिक मन्दिर की कौन-सी भावी महिमा की हम आशा कर सकते हैं? इन सवालों की जाँच अगले लेख में की जाएगी।
पुनर्विचार प्रश्न
◻ सा.यु. २९ में यीशु ने कौन-सा उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया?
◻ सा.यु. २९ में कौन-सी व्यवस्था कार्य करने लगी?
◻ पवित्र स्थान और परमपवित्र स्थान द्वारा क्या चित्रित होता है?
◻ महान आत्मिक मन्दिर महिमान्वित कैसे हुआ है?
[पेज 17 पर तसवीरें]
जब यीशु को सा.यु. २९ में पवित्र आत्मा से अभिषिक्त किया गया, तब परमेश्वर का महान आत्मिक मन्दिर कार्य करने लगा