परमेश्वर का विश्राम—इसका मतलब क्या है?
“ज़ाहिर है कि परमेश्वर के लोगों के लिए सब्त का विश्राम बाकी है।”—इब्रा. 4:9.
1, 2. उत्पत्ति 2:3 में लिखी गयी बात से हम किस नतीजे पर पहुँच सकते हैं और इससे क्या सवाल उठते हैं?
बाइबल की उत्पत्ति किताब के पहले अध्याय से हमें पता चलता है कि परमेश्वर ने छः लाक्षणिक दिनों में इंसानों के लिए धरती बनायी। हर दिन के बाद कहा गया: “सांझ हुई फिर भोर हुआ।” (उत्प. 1:5, 8, 13, 19, 23, 31) लेकिन सातवें दिन के बारे में बाइबल कहती है: “परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उस में उस ने अपनी सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्राम लिया।”—उत्प. 2:3.
2 इससे पता चलता है कि सातवाँ दिन परमेश्वर के विश्राम का दिन था। इसके अलावा, मूल भाषा में “विश्राम लिया,” इस क्रिया रूप को “विश्राम कर रहा है” लिखा गया है, जिससे ज़ाहिर होता है कि जब ईसा पूर्व 1513 में मूसा ने उत्पत्ति की किताब लिखी तब तक यह विश्राम “दिन” जारी था। क्या परमेश्वर का विश्राम दिन आज भी चल रहा है? अगर ऐसा है तो क्या हम इसमें प्रवेश कर सकते हैं? इन सवालों के जवाब हमारे लिए खास मायने रखते हैं।
क्या यहोवा आज भी “विश्राम” कर रहा है?
3. यूहन्ना 5:16, 17 में दर्ज़ यीशु के शब्द कैसे दिखाते हैं कि सातवाँ दिन पहली सदी तक चल रहा था?
3 दो सबूतों के आधार पर हम इस नतीजे पर पहुँच सकते हैं कि सातवाँ दिन पहली सदी तक जारी रहा। पहले हम यीशु के उन शब्दों पर गौर करेंगे जो उसने उन विरोधियों से कहे थे, जिन्होंने सब्त के दिन चंगाई करने के लिए यीशु की निंदा की थी। उनके हिसाब से चंगाई करना एक काम था। प्रभु यीशु ने उनसे कहा: “मेरा पिता अब तक काम करता आ रहा है और मैं भी काम करता रहता हूँ।” (यूह. 5:16, 17) यीशु क्या कहना चाह रहा था? यीशु पर सब्त के दिन भी काम करने का जो इलज़ाम लगाया गया, उसका उसने इस तरह जवाब दिया: “मेरा पिता अब तक काम करता आ रहा है।” दूसरे शब्दों में यीशु उनसे यह कह रहा था: ‘मैं और मेरा पिता दोनों एक ही तरह का काम कर रहे हैं। अगर मेरा पिता हज़ारों सालों के लंबे सब्त के दौरान काम कर रहा है तो मेरे सब्त के दिन काम करने में क्या बुराई है।’ इस तरह यीशु ने दिखाया कि धरती के मामले में परमेश्वर का महान विश्राम दिन यानी सातवाँ दिन यीशु के दिनों में खत्म नहीं हुआ था।a
4. पौलुस हमें क्या सबूत देता है कि उसके दिनों में भी विश्राम दिन जारी था?
4 दूसरा सबूत हमें प्रेषित पौलुस से मिलता है। उसने परमेश्वर के विश्राम के बारे में उत्पत्ति 2:2 का हवाला दिया और फिर लिखा: “हमने विश्वास दिखाया है और इसलिए उस विश्राम में दाखिल होते हैं।” (इब्रा. 4:3, 4, 6, 9) इससे पता चलता है कि सातवाँ दिन पौलुस के दिन तक चल रहा था। वह दिन और कितना लंबा होता?
5. सातवें दिन का मकसद क्या है और यह मकसद कब पूरा होगा?
5 इस सवाल का जवाब जानने से पहले हमें सातवें दिन के मकसद को याद रखना होगा। उत्पत्ति 2:3 में वह मकसद बताया गया है: “परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया।” उस दिन को “पवित्र ठहराया” गया यानी यहोवा के ज़रिए शुद्ध किया गया या अलग रखा गया ताकि उसका मकसद पूरा किया जा सके। यह मकसद था कि आज्ञाकारी स्त्री-पुरुष धरती की देखभाल करेंगे और इस पर हमेशा-हमेशा के लिए जीएँगे। (उत्प. 1:28) इसी मकसद को पूरा करने के लिए यहोवा परमेश्वर और “सब्त के दिन का प्रभु” यीशु मसीह दोनों ‘अब तक काम करते आ रहे हैं।’ (मत्ती 12:8) जब तक मसीह के हज़ार साल के शासन में यह मकसद पूरा नहीं हो जाता तब तक परमेश्वर का विश्राम दिन चलता रहेगा।
“आज्ञा न मानने के उनके ढर्रे में” मत पड़ो
6. किन लोगों के उदाहरण से हमें चेतावनी मिलती है और उनसे हम क्या सबक सीख सकते हैं?
6 आदम और हव्वा को परमेश्वर का मकसद अच्छी तरह समझाया गया था मगर फिर भी उन्होंने उसकी बात नहीं मानी। बेशक आदम और हव्वा वे पहले इंसान थे, जिन्होंने परमेश्वर की आज्ञा तोड़ी मगर उनके बाद लाखों लोगों ने वैसा ही किया। यहाँ तक कि चुना हुआ इसराएल राष्ट्र भी उनके नक्शे-कदम पर चला। और पौलुस ने पहली सदी के मसीहियों को चिताया कि वे भी उन इसराएलियों की तरह बन सकते हैं। उसने लिखा: “इसलिए आओ हम उस विश्राम में दाखिल होने के लिए अपना भरसक करें, कहीं ऐसा न हो कि हममें से कोई पाप करने लगे और आज्ञा न मानने के उनके ढर्रे में पड़ जाए।” (इब्रा. 4:11) गौर कीजिए पौलुस ने आज्ञा न मानने की बात को परमेश्वर के विश्राम दिन में प्रवेश करने से जोड़ा। इसका हमारे लिए क्या मतलब है? क्या इसका मतलब यह है कि अगर हम परमेश्वर के मकसद के खिलाफ काम करें तो हम उसके विश्राम दिन में प्रवेश नहीं कर पाएँगे? इस सवाल का जवाब जानना हमारे लिए बेहद ज़रूरी है, जिसके बारे में हम आगे सीखेंगे। आइए अब हम देखें कि इसराएलियों के बुरे उदाहरण से हम परमेश्वर के विश्राम दिन में प्रवेश करने के बारे में और क्या सीख सकते हैं।
“वे मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे”
7. जब यहोवा ने इसराएलियों को मिस्र की गुलामी से आज़ाद कराया, तब उसके मन में क्या था और उनसे क्या उम्मीद की गयी थी?
7 ईसा पूर्व 1513 में यहोवा ने अपने सेवक मूसा को इसराएलियों के बारे में अपना मकसद बताया। उसने कहा: “मैं उतर आया हूं कि उन्हें मिस्रियों के वश से छुड़ाऊं, और उस देश [मिस्र] से निकालकर एक अच्छे और बड़े देश में जिस में दूध और मधु की धारा बहती है . . . पहुंचाऊं।” (निर्ग. 3:8) ठीक जैसे यहोवा ने उनके पूर्वज अब्राहम से वादा किया था, उसने इसराएलियों को “मिस्रियों के वश से” छुड़ाया ताकि वह उन्हें अपने खास लोग बना सके। (उत्प. 22:17) परमेश्वर ने इसराएलियों को नियम दिए, जिन्हें मानकर वे यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता बना सकते थे। (यशा. 48:17, 18) उसने इसराएलियों से कहा: “यदि तुम निश्चय मेरी मानोगे, और मेरी वाचा [का] पालन करोगे, तो सब लोगों में से तुम ही मेरा निज धन ठहरोगे; समस्त पृथ्वी तो मेरी है।” (निर्ग. 19:5, 6) इस तरह इसराएलियों को परमेश्वर के साथ एक रिश्ता बनाने का सम्मान मिला था जो यहोवा की आज्ञा मानने पर टिका था।
8. अगर इसराएली परमेश्वर की आज्ञा मानते तो वे किस तरह की ज़िंदगी का आनंद उठाते?
8 ज़रा कल्पना कीजिए अगर इसराएली परमेश्वर की बात मानते तो उनकी ज़िंदगी कैसी होती! यहोवा उनके खेतों, उनकी दाख की बारियों, भेड़-बकरियों और मवेशियों पर आशीष देता। उनके शत्रुओं का उन पर ज़ोर नहीं चलता। (1 राजा 10:23-27 पढ़िए।) जब मसीहा आता तो वह इसराएल को रोमियों के अधीन रोते-कलपते नहीं बल्कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर पाता। इसराएल, आस-पास के राष्ट्रों के लिए मिसाल ठहरता और इस बात का जीता-जागता सबूत होता कि सच्चे परमेश्वर की आज्ञा मानने से किसी तरह की कमी नहीं होती और आध्यात्मिक तौर पर भी आशीषें मिलती हैं।
9, 10. (क) इसराएलियों के लिए मिस्र लौटने की ख्वाहिश रखना क्यों एक गंभीर बात थी? (ख) मिस्र लौटने पर इसराएलियों की उपासना पर कैसा असर पड़ता?
9 इसराएलियों के पास यहोवा के मकसद में अहम भूमिका निभाने का क्या ही बड़ा सम्मान था! इससे न सिर्फ उन्हें बल्कि धरती के सभी परिवारों को आशीषें मिलतीं। (उत्प. 22:18) एक जाति के तौर पर वे परमेश्वर के शासन के अधीन रहकर दूसरों के लिए एक आदर्श राज बन सकते थे। लेकिन इन अड़ियल लोगों ने ऐसा नहीं किया उल्टे मिस्र लौटने की माँग की, जो एक गंभीर बात थी। (गिनती 14:2-4 पढ़िए।) अगर वे मिस्र लौट जाते तो इसराएल को एक आदर्श राज बनाने का परमेश्वर का मकसद कैसे आगे बढ़ता? यह कभी मुमकिन नहीं हो पाता। अगर इसराएली मिस्र लौट जाते तो वे कभी मूसा के नियम का पालन नहीं कर पाते और न ही अपने पापों की माफी के लिए यहोवा के इंतज़ाम का फायदा उठा पाते। वे कितने स्वार्थी हो गए थे और उन्हें भविष्य की कोई परवाह नहीं थी! इसलिए ताज्जुब नहीं कि यहोवा ने उनसे कहा: “मुझे इस पीढ़ी से घिन होने लगी और मैंने कहा, ‘इनके दिल हमेशा मुझसे दूर हो जाते हैं, और इन्होंने मेरी राहों को नहीं पहचाना।’ इस वजह से मैंने क्रोध में आकर यह शपथ खायी, ‘वे मेरे विश्राम में दाखिल न होंगे।’”—इब्रा. 3:10, 11; भज. 95:10, 11.
10 मिस्र लौटने की चाहत रखकर इस भटके हुए राष्ट्र ने दिखाया कि उन्हें परमेश्वर की आशीषों का कोई मोल नहीं, इसके बजाय मिस्र में मिलनेवाले गन्दने (एक तरह की हरी प्याज़), प्याज़ और लहसुन उन्हें ज़्यादा पसंद थे। (गिन. 11:5) एहसान-फरामोश एसाव की तरह ये बागी अपनी आध्यात्मिक धरोहर को ज़ायकेदार खाने के लिए त्यागने को तैयार थे।—उत्प. 25:30-32; इब्रा. 12:16.
11. क्या मूसा के दिनों के खुदगर्ज़ इसराएलियों की वजह से यहोवा के मकसद में कोई रुकावट आयी?
11 हालाँकि मिस्र से निकलकर आनेवाले इसराएलियों ने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी, फिर भी वह धीरज से अपने मकसद को पूरा करने के लिए “काम करता” रहा। अब वह इसराएलियों की अगली पीढ़ी पर ध्यान दे रहा था। इस नयी पीढ़ी के सदस्य अपने पूर्वजों से ज़्यादा आज्ञाकारी थे। यहोवा की आज्ञा के मुताबिक वे वादा किए देश में गए और उन्होंने राष्ट्रों को जीतना शुरू कर दिया। यहोशू 24:31 में हम पढ़ते हैं “यहोशू के जीवन भर, और जो वृद्ध लोग यहोशू के मरने के बाद जीवित रहे और जानते थे कि यहोवा ने इस्राएल के लिये कैसे कैसे काम किए थे, उनके भी जीवन भर इस्राएली यहोवा ही की सेवा करते रहे।”
12. हम कैसे जानते हैं कि आज परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करना संभव है?
12 लेकिन वह आज्ञाकारी पीढ़ी आगे चलकर खत्म हो गयी और उसकी जगह वे लोग आए जो “न तो यहोवा को जानते थे और न उस काम को जो उस ने इस्राएल के लिये किया था।” इसका नतीजा यह हुआ कि “इस्राएली वह करने लगे जो यहोवा की दृष्टि में बुरा [था], और बाल नाम देवताओं की उपासना करने लगे।” (न्यायि. 2:10, 11) आज्ञा न मानने की वजह से वे परमेश्वर के साथ बेहतरीन रिश्ते का लुत्फ नहीं उठा पाए और इसलिए वादा किया हुआ देश उनके लिए “विश्राम की जगह” नहीं रहा। इनके बारे में पौलुस ने लिखा: “अगर यहोशू [इसराएलियों को] विश्राम की जगह में ले जा चुका होता, तो परमेश्वर बाद में एक और दिन की बात न करता। तो ज़ाहिर है कि परमेश्वर के लोगों के लिए सब्त का विश्राम बाकी है।” (इब्रा. 4:8, 9) यहाँ जब पौलुस ने “परमेश्वर के लोगों” कहा तो उसका इशारा दरअसल मसीहियों की तरफ था। तो क्या मसीही परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश कर सकते थे? बिलकुल, यहूदी और गैर यहूदी मसीही दोनों उस विश्राम में प्रवेश कर सकते थे।
कुछ लोग परमेश्वर के विश्राम में दाखिल नहीं हो सके
13, 14. (क) परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने के लिए मूसा के दिनों में इसराएलियों को क्या करना था? (ख) परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने के लिए पहली सदी में मसीहियों को क्या करना था?
13 जब पौलुस ने इब्रानियों के मसीहियों को लिखा तो उसे उन मसीहियों की चिंता हो रही थी जो परमेश्वर के मकसद को आगे बढ़ाने में अपना सहयोग नहीं दे रहे थे। (इब्रानियों 4:1 पढ़िए।) वे ऐसा क्यों कर रहे थे? दिलचस्पी की बात है कि यह समस्या मूसा के नियम से जुड़ी थी। मसीह से करीब 1,500 साल पहले जो भी परमेश्वर के मकसद के हिसाब से जीना चाहता था, उसके लिए मूसा के नियमों का पालन करना बेहद ज़रूरी था। हालाँकि यीशु की मौत के बाद वह नियम खारिज हो गया मगर कुछ मसीहियों ने यह कबूल नहीं किया और पुराने नियम की कुछ बातों पर अड़े रहे।b
14 जो मसीही मूसा का कानून मानने पर अड़े थे, पौलुस उनको समझाते हुए कहता है कि मसीह का कानून उससे कहीं बेहतर है। उनके पास बेहतर महायाजक यीशु, एक नयी वाचा, साथ ही आध्यात्मिक मंदिर है। (इब्रा. 7:26-28; 8:7-10; 9:11, 12) मूसा के नियम के तहत हर हफ्ते सब्त मनाया जाता था, उसके मद्देनज़र पौलुस ने यहोवा के विश्राम में प्रवेश करने के सुअवसर के बारे में लिखा: “ज़ाहिर है कि परमेश्वर के लोगों के लिए सब्त का विश्राम बाकी है। क्योंकि जो इंसान परमेश्वर के विश्राम में दाखिल हुआ है, उसने भी अपने कामों से विश्राम किया है, ठीक जैसे परमेश्वर ने किया था।” (इब्रा. 4:8-10) उन इब्रानी मसीहियों को यह सोच बदलनी थी कि मूसा के कानून पर आधारित काम करके वे यहोवा की मंज़ूरी पा सकेंगे। क्योंकि ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त के दिन से यहोवा की मंज़ूरी सिर्फ उन लोगों पर थी जो यीशु मसीह में विश्वास दिखाते थे।
15. परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करने के लिए क्या करना ज़रूरी है?
15 मूसा के दिनों में किस वजह से इसराएली वादा किए देश में प्रवेश नहीं कर पाए? आज्ञा न मानने की वजह से। पौलुस के दिनों में किस वजह से कुछ मसीही परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश नहीं कर पाए? कारण वही है, आज्ञा न मानने की वजह से। वे इस बात को समझने से चूक गए कि मूसा के नियम का मकसद पूरा हो चुका था और अब यहोवा अपने लोगों को दूसरी दिशा में ले जा रहा था।
परमेश्वर के विश्राम में आज दाखिल होना
16, 17. (क) आज परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने का क्या मतलब है? (ख) अगले लेख में क्या चर्चा की जाएगी?
16 बेशक, आज उद्धार पाने के लिए कोई भी मसीही मूसा का कोई नियम मानने की ज़िद्द नहीं करेगा। पौलुस ने परमेश्वर की प्रेरणा से इफिसुस के मसीहियों को साफ-साफ लिखा: “तुम्हारा उद्धार इसी महा-कृपा की वजह से, विश्वास के ज़रिए किया गया है। और यह इंतज़ाम तुम्हारी अपनी वजह से नहीं है, बल्कि यह परमेश्वर का तोहफा है। नहीं! यह उद्धार तुम्हारे कामों की वजह से नहीं है, जिससे किसी भी इंसान के पास शेखी मारने की कोई वजह न हो।” (इफि. 2:8, 9) तो फिर मसीहियों का परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने का क्या मतलब है? यहोवा ने सातवाँ दिन यानी अपना विश्राम दिन धरती के लिए अपना शानदार मकसद पूरा करने के लिए अलग रखा था। आज यहोवा अपने संगठन के ज़रिए अपना मकसद ज़ाहिर करता है, अगर हम उसके मुताबिक काम करें तो हम परमेश्वर के विश्राम में दाखिल हो सकेंगे।
17 लेकिन अगर हम बाइबल की उन सलाहों को कम आँकेंगे, जो हमें विश्वासयोग्य दास के ज़रिए मिलती हैं और अपनी ही इच्छा के मुताबिक चलेंगे, तो हम यहोवा के मकसद के खिलाफ जा रहे होंगे। इससे यहोवा के साथ हमारे रिश्ते में दरार पड़ सकती है। अगले लेख में हम कुछ ऐसे हालात पर गौर करेंगे जिनका असर परमेश्वर के लोगों पर होता है और चर्चा करेंगे कि इन मामलों में हम जो फैसले करते हैं उनसे कैसे ज़ाहिर होगा कि हम वाकई परमेश्वर के विश्राम में दाखिल हुए हैं या नहीं।
[फुटनोट]
a याजक और लेवी सब्त के दिन मंदिर से जुड़े काम करते थे और “निर्दोष ठहरते” थे। उसी तरह परमेश्वर के महान आध्यात्मिक मंदिर का महायाजक यीशु भी सब्त का नियम तोड़े बिना आध्यात्मिक काम कर सकता था।—मत्ती 12:5, 6.
b यह ठीक-ठीक नहीं मालूम कि यहूदी मसीहियों ने पिन्तेकुस्त 33 के बाद से प्रायश्चित दिन के इंतज़ाम का पालन किया या नहीं। लेकिन उनका ऐसा करना दिखाता कि उन्हें यीशु के बलिदान की कोई कदर नहीं। और कुछ यहूदी मसीही, मूसा के नियम के दूसरे रीति-रिवाज़ों से चिपके हुए थे।—गला. 4:9-11.
मनन करने के लिए सवाल
• सातवें दिन परमेश्वर के विश्राम करने का क्या मकसद था?
• हम कैसे जानते हैं कि सातवाँ दिन आज भी चल रहा है?
• मूसा के दिनों में और पहली सदी के मसीही क्यों परमेश्वर के विश्राम में दाखिल नहीं हो पाए?
• परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने का क्या मतलब है?
[पेज 27 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
आज यहोवा अपने संगठन के ज़रिए अपना मकसद ज़ाहिर करता है, अगर हम उसके मुताबिक काम करें तो हम परमेश्वर के विश्राम में दाखिल हो सकेंगे
[पेज 26, 27 पर तसवीरें]
परमेश्वर के विश्राम में दाखिल होने के लिए हमें लगातार क्या करते रहने की ज़रूरत है?