ईश्वरीय अधीनता हमसे क्या माँग करती है
“इसलिये परमेश्वर के अधीन हो जाओ।”—याकूब ४:७.
१. हम जिस प्रकार के परमेश्वर की उपासना करते हैं उसके विषय में क्या कहा जा सकता है?
यहोवा क्या ही अद्भुत परमेश्वर है! इतने सारे तरीक़ों से अनुपम, बेजोड़, अतुलनीय, अद्वितीय! वह परम प्रधान है, विश्व सर्वसत्ताधारी जिसके पास सारा वास्तविक अधिकार है। वह अनन्तकाल से अनन्तकाल तक है और इतना तेजस्वी है कि उसे देखकर कोई मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। (निर्गमन ३३:२०; रोमियों १६:२६) वह शक्ति और बुद्धि में असीम है, न्याय में पूर्णतया परिपूर्ण है, और प्रेम का साक्षात् रूप है। वह हमारा सृष्टिकर्ता, हमारा न्यायी, हमारा व्यवस्थापक, और हमारा राजा है। हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान उससे आता है।—भजन १००:३; यशायाह ३३:२२; याकूब १:१७.
२. ईश्वरीय अधीनता में क्या चीज़ें सम्मिलित हैं?
२ इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, उसके प्रति अधीन रहने की हमारी बाध्यता के विषय में कोई प्रश्न नहीं हो सकता। लेकिन यह हमारे लिए क्या सम्मिलित करता है? कई बातें। क्योंकि हम व्यक्तिगत रूप से यहोवा परमेश्वर को नहीं देख सकते, उसके प्रति अधीनता में एक शिक्षित विवेक की आवाज़ को सुनना, परमेश्वर के पार्थिव संगठन का सहयोग देना, सांसारिक अधिकारियों को स्वीकार करना, और परिवार के दायरे में मुखियापन के सिद्धान्त का सम्मान करना सम्मिलित है।
अच्छे विवेक को थामे रहना
३. एक अच्छा विवेक रखने के लिए, हमें किस प्रकार के निषेधादेशों का पालन करना चाहिए?
३ एक अच्छा विवेक रखने के लिए हमें अप्रवर्तनीय चीज़ों का—अर्थात्, उन नियमों और सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए जिन्हें मनुष्य लागू नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, दस आज्ञाओं की दसवीं आज्ञा लोभ के विरुद्ध निर्दिष्ट थी, जो मानवी अधिकारियों द्वारा अप्रवर्तनीय थी। प्रसंगवश, यह दस आज्ञाओं के ईश्वरीय स्रोत को प्रमाणित करता है, क्योंकि कोई भी नियम बनानेवाला मानवी निकाय ऐसा नियम नहीं बनाता जिसे भंग किए जाने पर दंड के द्वारा लागू न करवाया जा सके। इस नियम के द्वारा, यहोवा परमेश्वर ने हरेक इस्राएली को स्वयं अपना पुलिस बनने की ज़िम्मेदारी दी—यदि वह एक अच्छा विवेक रखना चाहता था। (निर्गमन २०:१७) इसी प्रकार, एक व्यक्ति को परमेश्वर का राज्य विरासत में पाने से रोकनेवाले शरीर के कामों में “ईर्ष्या” और “डाह” हैं—प्रतिक्रियाएं जिनके विरुद्ध मानवी न्यायियों द्वारा दंड लागू नहीं होते। (गलतियों ५:१९-२१) लेकिन एक अच्छे विवेक को थामे रहने के लिए, हमें इनसे दूर रहना चाहिए।
४. एक अच्छा विवेक रखने के लिए, हमें बाइबल के किन सिद्धान्तों के अनुसार जीना चाहिए?
४ जी हाँ, हमें बाइबल सिद्धान्तों के अनुसार जीना चाहिए। ऐसे सिद्धान्तों का सार दो आज्ञाओं में किया जा सकता है जिन्हें यीशु मसीह ने इस प्रश्न के उत्तर में प्रस्तुत किया कि मूसा के नियम में सर्वश्रेष्ठ आज्ञा कौन-सी थी। “तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। . . . तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।” (मत्ती २२:३६-४०) मत्ती ७:१२ में लेखबद्ध यीशु के शब्द समझाते हैं कि इन आज्ञाओं में से दूसरी आज्ञा में क्या सम्मिलित है: “इस कारण जो कुछ तुम चाहते हो, कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो; क्योंकि व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षा यही है।”
५. हम यहोवा परमेश्वर के साथ एक अच्छा सम्बन्ध कैसे रख सकते हैं?
५ चाहे दूसरे ध्यान दें या नहीं, हमें वही करना चाहिए जो हम जानते हैं कि सही है और उन कामों को करने से दूर रहना चाहिए जो हम जानते हैं कि ग़लत हैं। जो हमें करना चाहिए उसे न करने से या जो हमें नहीं करना चाहिए उसे करने से चाहे हम बच भी सकते हों तो भी ऐसा ही है। इसका अर्थ अपने स्वर्गीय पिता के साथ एक अच्छा सम्बन्ध रखना है, उस चेतावनी को मन में रखते हुए जो प्रेरित पौलुस इब्रानियों ४:१३ में सुस्पष्ट रूप से बताता है: “सृष्टि की कोई वस्तु उस से छिपी नहीं है बरन जिस से हमें काम है, उस की आंखों के साम्हने सब वस्तुएं खुली और बेपरद हैं।” सही काम को दृढ़ता से करते रहना हमें इब्लीस की धूर्त युक्तियों के विरुद्ध लड़ने में, संसार के दबावों का विरोध करने में, और स्वार्थ की वंशागत प्रवृत्ति से लड़ने में मदद करेगा।—इफिसियों ६:११ से तुलना कीजिए.
परमेश्वर के संगठन के प्रति अधीनता
६. मसीही-पूर्व समयों में यहोवा ने संचार के कौन-से माध्यमों को इस्तेमाल किया?
६ यहोवा परमेश्वर ने हमें व्यक्तिगत रूप से यह फ़ैसला करने का अधिकार नहीं दिया है कि हमें अपने जीवन में बाइबल सिद्धान्तों को कैसे लागू करना है। मानवजाति के इतिहास की शुरूआत से, परमेश्वर ने मनुष्यों को संचार के माध्यमों के रूप में इस्तेमाल किया है। अतः, हव्वा के लिए आदम परमेश्वर का प्रवक्ता था। हव्वा की सृष्टि से पहले आदम को वर्जित फल के विषय में आज्ञा दी गई थी, सो आदम ने हव्वा को उसके लिए परमेश्वर की इच्छा बताई होगी। (उत्पत्ति २:१६-२३) नूह अपने परिवार और प्रलयपूर्व संसार के लिए परमेश्वर का भविष्यवक्ता था। (उत्पत्ति ६:१३; २ पतरस २:५) इब्राहीम अपने परिवार के लिए परमेश्वर का प्रवक्ता था। (उत्पत्ति १८:१९) मूसा परमेश्वर का भविष्यवक्ता और इस्राएल के राष्ट्र के लिए संचार का माध्यम था। (निर्गमन ३:१५, १६; १९:३, ७) उसके बाद, यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले तक, परमेश्वर द्वारा उसकी इच्छा उसके लोगों को बताने के लिए बहुत से भविष्यवक्ता, याजक, और राजा इस्तेमाल किए गए।
७, ८. (क) मसीहा के आने पर, परमेश्वर के प्रवक्ता के रूप में किनको इस्तेमाल किया गया है? (ख) आज यहोवा के गवाहों से ईश्वरीय अधीनता क्या माँग करती है?
७ मसीहा, अर्थात् यीशु मसीह के आने पर परमेश्वर ने उसे और उसके नज़दीकी प्रेरितों और चेलों को अपने प्रवक्ता के रूप में सेवा करने के लिए इस्तेमाल किया। बाद में, यहोवा के लोगों को अपने जीवन में बाइबल सिद्धान्त कैसे लागू करने हैं, यह बताने के लिए यीशु मसीह के अभिषिक्त विश्वासयोग्य अनुयायियों को “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” के रूप में सेवा करनी थी। ईश्वरीय अधीनता का अर्थ था उस साधन को स्वीकार करना जिसे यहोवा परमेश्वर इस्तेमाल कर रहा था।—मत्ती २४:४५-४७; इफिसियों ४:११-१४.
८ तथ्य दिखाते हैं कि आज “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” यहोवा के गवाहों से सम्बद्ध है और इसका प्रतिनिधित्व इन गवाहों का शासी निकाय करता है। यह निकाय, क्रमशः, स्थानीय स्तर पर कार्य निर्देशन के लिए विभिन्न हैसियतों में अध्यक्षों को नियुक्त करता है—जैसे कि प्राचीन और सफ़री प्रतिनिधि। इब्रानियों १३:१७ का पालन करते हुए प्रत्येक समर्पित गवाह से ईश्वरीय अधीनता की माँग है कि वह इन अध्यक्षों की अधीनता में रहे: “अपने अगुवों की मानो; और उन के अधीन रहो, क्योंकि वे उन की नाईं तुम्हारे प्राणों के लिये जागते रहते, जिन्हें लेखा देना पड़ेगा, कि वे यह काम आनन्द से करें, न कि ठंडी सांस ले लेकर, क्योंकि इस दशा में तुम्हें कुछ लाभ नहीं।”
अनुशासन स्वीकार करना
९. ईश्वरीय अधीनता में अक़सर क्या सम्मिलित होता है?
९ ईश्वरीय अधीनता अक़सर उन लोगों से अनुशासन स्वीकार करने की बात होती है जो अध्यक्षों के रूप में सेवा करते हैं। यदि हम हमेशा स्वयं को आवश्यक अनुशासन नहीं देते, तो हमें उनके द्वारा सलाह दिए जाने और अनुशासित होने की ज़रूरत हो सकती है जिनके पास अनुभव और ऐसा करने का अधिकार है, जैसे कि हमारी कलीसिया के प्राचीन। ऐसे अनुशासन को स्वीकार करना बुद्धिमानी का मार्ग है।—नीतिवचन १२:१५; १९:२०.
१०. अनुशासन देनेवालों का क्या कर्तव्य है?
१० प्रत्यक्षतः, प्राचीन जो अनुशासन देते हैं स्वयं ईश्वरीय अधीनता के उदाहरण होने चाहिए। कैसे? गलतियों ६:१ के अनुसार, केवल उनका सलाह देने का ढंग ही उत्तम नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें अनुकरणीय भी होना चाहिए: “हे भाइयो, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा भी जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो।” दूसरे शब्दों में, प्राचीन की सलाह उसके उदाहरण के अनुरूप होनी चाहिए। ऐसा २ तीमुथियुस २:२४, २५ और तीतुस १:९ में दी गयी चेतावनी के सामन्जस्य में है। जी हाँ, जो ताड़ना या सुधार देते हैं उन्हें बहुत सावधान रहना चाहिए कि कभी-भी कठोर न हों। उन्हें हमेशा नम्र, कृपालु होना चाहिए, और फिर भी परमेश्वर के वचन के सिद्धान्तों का समर्थन करने में दृढ़ होना चाहिए। उन्हें निष्पक्ष सुननेवाला, परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे हुओं के लिए स्फूर्तिदायक होना चाहिए।—मत्ती ११:२८-३० से तुलना कीजिए.
प्रधान अधिकारियों के प्रति अधीनता
११. सांसारिक अधिकारियों के साथ उनके सम्बन्ध में मसीहियों से क्या माँग है?
११ ईश्वरीय अधीनता यह भी माँग करती है कि हम सांसारिक अधिकारियों की आज्ञा पालन करें। रोमियों १३:१ में हमें सलाह दी गयी है: “हर एक व्यक्ति प्रधान अधिकारियों के अधीन रहे; क्योंकि कोई अधिकार ऐसा नहीं, जो परमेश्वर की ओर से न हो; और जो अधिकार हैं, वे परमेश्वर के ठहराए हुए हैं।” दूसरी चीज़ों के अलावा, ये शब्द हम से यातायात के नियमों का पालन करने और कर तथा महसूल देने के सम्बन्ध में ईमानदार होने की माँग करते हैं, जैसा कि प्रेरित पौलुस रोमियों १३:७ में बताता है।
१२. किस अभिप्राय में कैसर के प्रति हमारी अधीनता तुलनात्मक है?
१२ स्पष्ट रूप से, जबकि, कैसर के प्रति सब ऐसी अधीनता तुलनात्मक होनी चाहिए। हमें उस सिद्धान्त को हमेशा मन में रखना चाहिए जो यीशु मसीह ने बताया था, जैसा मत्ती २२:२१ में लेखबद्ध है: “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्वर का है, वह परमेश्वर को दो।” ऑक्सफर्ड ऍन आई वी [न्यू इन्टरनैशनल वर्शन] स्कोफ़ील्ड स्टडि बाइबल, (Oxford NIV [New International Version] Scofield Study Bible) कहती है: “इसका यह अर्थ नहीं कि उसे उन विनियमों का पालन करना है जो अनैतिक या मसीही-विरोधी हैं। ऐसे मामलों में उसका कर्तव्य है कि मनुष्यों के बजाय परमेश्वर की आज्ञा का पालन करे (प्रेरितों ५:२९; cp. दानि. ३:१६-१८; ६:१०ff).”
परिवार के दायरे में ईश्वरीय अधीनता
१३. ईश्वरीय अधीनता परिवार के दायरे में उसके सदस्यों से क्या माँग करती है?
१३ परिवार के दायरे में, पति और पिता सिर के तौर पर काम करता है। यह माँग करती है कि पत्नियाँ इफिसियों ५:२२, २३ में दी गई सलाह को मानें: “हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है।”a बच्चों के विषय में, वे स्वयं अपने नियम नहीं बनाते बल्कि माता-पिता दोनों के प्रति ईश्वरीय अधीनता उनकी बाध्यता है, जैसा कि पौलुस इफिसियों ६:१-३ में समझाता है: “हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है)। कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।”
१४. परिवार के सिरों से ईश्वरीय अधीनता क्या माँग करती है?
१४ निःसंदेह, जब पति और पिता स्वयं ईश्वरीय अधीनता दिखाते हैं तब पत्नियों और बच्चों के लिए ऐसी ईश्वरीय अधीनता दिखाना आसान हो जाता है। ऐसे बाइबल सिद्धान्तों के अनुसार अपने मुखियापन को प्रयोग करते हुए वे ऐसा करते हैं, जैसे कि इफिसियों ५:२८, २९ और ६:४ में पाए जाते हैं: “इसी प्रकार उचित है, कि पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है, जैसा मसीह भी कलीसिया के साथ करता है।” “हे बच्चेवालो अपने बच्चों को रिस न दिलाओ परन्तु प्रभु की शिक्षा, और चितावनी देते हुए, उन का पालन-पोषण करो।”
ईश्वरीय अधीनता दिखाने में सहायक
१५. ईश्वरीय अधीनता दिखाने में आत्मा का कौन-सा फल हमारी मदद करेगा?
१५ इन विभिन्न क्षेत्रों में ईश्वरीय अधीनता दिखाने के लिए क्या हमारी मदद करेगा? पहला, निःस्वार्थ प्रेम है—यहोवा परमेश्वर के प्रति और उनके प्रति प्रेम जिन्हें उसने हमारे ऊपर ठहराया है। हमें १ यूहन्ना ५:३ में बताया गया है: “परमेश्वर का प्रेम यह है, कि हम उस की आज्ञाओं को मानें; और उस की आज्ञाएं कठिन नहीं।” यूहन्ना १४:१५ में यीशु ने इसी बात पर महत्त्व दिया: “यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे।” सचमुच, प्रेम—आत्मा का सर्वप्रथम फल—वह सब जो यहोवा ने हमारे लिए किया है उसका मूल्यांकन करने में हमारी मदद करेगा और इस प्रकार ईश्वरीय अधीनता दिखाने में हमारी मदद करेगा।—गलतियों ५:२२.
१६. ईश्वरीय अधीनता दिखाने में ईश्वरीय भय कैसे सहायक है?
१६ दूसरा, ईश्वरीय भय है। यहोवा परमेश्वर को अप्रसन्न करने का भय हमारी मदद करेगा क्योंकि इसका अर्थ “बुराई से बैर रखना है।” (नीतिवचन ८:१३) निःसंदेह, यहोवा को अप्रसन्न करने का भय हमें मनुष्य के भय के कारण समझौता करने से रोकेगा। यह परमेश्वर के निर्देशों का पालन करने में हमारी मदद करेगा चाहे किसी भी कठिनाई को क्यों न पार करना पड़े। इसके अलावा, यह हमें ग़लत काम करने के प्रलोभनों या झुकावों के आगे हार मानने से रोकेगा। शास्त्र दिखाते हैं कि वह यहोवा का भय था जिसने इब्राहीम को अपने प्रिय पुत्र इसहाक को बलि के रूप में चढ़ाने का प्रयत्न करने के लिए समर्थ किया, और वह यहोवा को अप्रसन्न करने का भय था जिसने यूसुफ को पोतीपर की पत्नी के अनैतिक प्रस्तावों का सफलतापूर्वक विरोध करने के लिए समर्थ किया।—उत्पत्ति २२:१२; ३९:९.
१७. हमारे द्वारा ईश्वरीय अधीनता दिखाने में विश्वास क्या भूमिका निभाता है?
१७ एक तीसरा सहायक है यहोवा परमेश्वर में विश्वास। विश्वास हमें नीतिवचन ३:५, ६ में दी गयी सलाह को मानने में समर्थ करेगा: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” विश्वास ख़ासकर तब हमारी मदद करेगा जब हमें ऐसा लगता है कि हम नाहक़ दुःख भोग रहे हैं या महसूस करते हैं कि हमारी जाति या राष्ट्रीयता या किसी वैयक्तिक द्वंद्व के कारण हमारे विरुद्ध भेद किया जाता है। कई लोग ऐसा भी महसूस कर सकते हैं कि उन्हें ग़लत ही नज़रअंदाज़ किया गया है जब प्राचीन या सहायक सेवक के रूप में सेवा करने के लिए उनकी सिफ़ारिश नहीं की जाती है। यदि हमारे पास विश्वास है, तो हम यहोवा के उचित समय पर मामलों को सही करने के लिए उस पर भरोसा रखेंगे। इस दौरान हमें धीरजवन्त सहनशीलता विकसित करने की ज़रूरत हो सकती है।—विलापगीत ३:२६.
१८. हमारे द्वारा ईश्वरीय अधीनता दिखाने में चौथा सहायक क्या है?
१८ चौथा सहायक है नम्रता। एक नम्र व्यक्ति को ईश्वरीय अधीनता दिखाने में कोई कठिनाई नहीं होती क्योंकि ‘दीनता से वह दूसरों को अपने से अच्छा समझता है।’ एक नम्र व्यक्ति अपने आप को “सब से छोटे से छोटा” समझकर व्यवहार करने के लिए तत्पर रहता है। (फिलिप्पियों २:२-४; लूका ९:४८) लेकिन एक घमंडी व्यक्ति को अधीनता में रहने से क्रोध आता है और वह उस पर खिजता है। यह कहा गया है कि ऐसा व्यक्ति आलोचना द्वारा हानि से बचने के बजाय प्रशंसा द्वारा नाश होना पसन्द करता है।
१९. वॉच टावर सोसाइटी के एक भूतपूर्व अध्यक्ष ने नम्रता का क्या उत्तम उदाहरण दिया?
१९ वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी के दूसरे अध्यक्ष, जोसफ़ रदरफ़ोर्ड द्वारा एक बार नम्रता और ईश्वरीय अधीनता का उत्तम उदाहरण दिया गया था। जब हिटलर ने जर्मनी में यहोवा के गवाहों के कार्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था, तब वहाँ के भाइयों ने उससे यह पूछने के लिए लिखा कि उनकी सभाओं और प्रचार कार्य पर प्रतिबन्ध लगने के कारण वे क्या करें। उसने यह बात बैथेल परिवार को बतायी और साफ़-साफ़ स्वीकार किया कि वह नहीं जानता कि जर्मन भाइयों को क्या कहे, ख़ासकर इसमें सम्मिलित कड़ी सज़ा के आदेशों को ध्यान में रखते हुए। उसने कहा कि यदि कोई जानता है कि उन्हें क्या कहा जाए, तो वह सुनने के लिए ख़ुश होगा। क्या ही नम्र आत्मा!b
ईश्वरीय अधीनता दिखाने से लाभ
२०. ईश्वरीय अधीनता दिखाने से क्या आशिषें आती हैं?
२० यह ठीक ही पूछा जा सकता है, ईश्वरीय अधीनता दिखाने के लाभ क्या हैं? वास्तव में, बहुत हैं। हम उन दुश्चिंताओं और निराशा से बचते हैं जिनका अनुभव वे करते हैं जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। हम यहोवा परमेश्वर के साथ एक अच्छे सम्बन्ध का आनन्द लेते हैं। हमारे पास अपने मसीही भाइयों के साथ सबसे बढ़िया संगति है। इसके अलावा, विधिसंगत रूप से व्यवहार करने के द्वारा, हम सांसारिक अधिकारियों के साथ अनावश्यक समस्याओं में पड़ने से बचते हैं। हम पतियों और पत्नियों के रूप में, माता-पिताओं और बच्चों के रूप में, एक ख़ुशहाल पारिवारिक जीवन का आनन्द भी लेते हैं। इसके अतिरिक्त, ईश्वरीय अधीनता बनाए रखने के द्वारा, हम नीतिवचन २७:११ में दी गयी सलाह के सामन्जस्य में कार्य करते हैं: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर, तब मैं अपने निन्दा करनेवाले को उत्तर दे सकूंगा।”
[फुटनोट]
a एक पायनियर सेवक ने एक अविवाहित पायनियर से अपनी पत्नी के आदर और प्रेममय सहयोग की प्रशंसा की। अविवाहित पायनियर ने सोचा कि उसके मित्र को अपनी पत्नी के दूसरे गुणों के विषय में भी कुछ कहना चाहिए था। लेकिन सालों बाद, जब अविवाहित पायनियर ने स्वयं विवाह किया, तब उसे एहसास हुआ कि पत्नी की तरफ से प्रेममय सहयोग वैवाहिक आनन्द के लिए कितना अत्यावश्यक है।
b काफ़ी प्रार्थना और परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने के बाद, जोसफ़ रदरफ़ोर्ड ने यह साफ़ देखा कि उसे जर्मनी में भाइयों को क्या जवाब देना चाहिए। उन्हें क्या करना चाहिए या क्या नहीं, उन्हें यह बताना उसकी ज़िम्मेदारी नहीं थी। उनके पास परमेश्वर का वचन था जिसने उन्हें बताया कि उन्हें एक साथ मिलने और गवाही देने के विषय में क्या करना चाहिए। सो जर्मन भाई गुप्त रूप से कार्य करने लगे लेकिन एक साथ मिलने और उसके नाम और राज्य के विषय में गवाही देने की यहोवा की आज्ञाओं का पालन करते रहे।
पुनर्विचार प्रश्न
▫ संचार के माध्यमों के रूप में परमेश्वर ने किन मनुष्यों को इस्तेमाल किया है, और उसके सेवकों की उनके प्रति क्या बाध्यता थी?
▫ किन विभिन्न सम्बन्धों में ईश्वरीय अधीनता लागू होती है?
▫ कौन-से गुण ईश्वरीय अधीनता दिखाने में हमारी मदद करेंगे?
▫ ईश्वरीय अधीनता दिखाने से क्या आशिषें आती हैं?
[पेज 14 पर तसवीरें]
परमेश्वर ने अपने लोगों को अपनी इच्छा बताने के लिए यरूशलेम की मंदिर व्यवस्था को इस्तेमाल किया
[पेज 16 पर तसवीरें]
क्षेत्र जहाँ हम ईश्वरीय अधीनता दिखा सकते हैं