आशा के लंगर से स्थिर रहना, प्रेम के पाल से बढ़ते रहना
“पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।”—१ कुरिन्थियों १३:१३.
१. प्रेरित पौलुस हमें किस बारे में सावधान करता है?
प्रेरित पौलुस हमें सावधान करता है कि जैसे एक जहाज़ टूटकर डूब सकता है, उसी तरह हमारे विश्वास के भी टूटने का खतरा है। वह कहता है कि “विश्वास और उस अच्छे विवेक को थामे” रहो, क्योंकि इन्हें “दूर करने के कारण कितनों का विश्वास रूपी जहाज डूब गया” है। (१ तीमुथियुस १:१९) पहली सदी में पानी के जहाज़ लकड़ी से बनाए जाते थे। लकड़ी जितनी मज़बूत होती और इसे बनानेवाले कारीगर जितने निपुण होते, जहाज़ भी उतना ही मज़बूत होता था।
२. हमारे विश्वास रूपी जहाज़ का मज़बूत होना क्यों ज़रूरी है, और इसके लिए हमें क्या करना चाहिए?
२ दुष्ट दुनिया के इस तूफानी समुंदर में हमारा विश्वास रूपी जहाज़ तैरता रहना चाहिए। (यशायाह ५७:२०; प्रकाशितवाक्य १७:१५) इसलिए यह ज़रूरी है कि यह विश्वास रूपी जहाज़ बहुत मज़बूत हो, और इसे सिर्फ हम ही मज़बूत बना सकते हैं। पहली सदी के यहूदी और रोमी समाज के ‘समुंदर’ में, सच्चे मसीही तूफानों से घिरे हुए थे। उनके विश्वास को मज़बूत करने के लिए यहूदा ने लिखा: “हे प्रियो, तुम अपने अति पवित्र विश्वास में अपनी उन्नति करते हुए और पवित्र आत्मा में प्रार्थना करते हुए। अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखो; और अनन्त जीवन के लिए हमारे प्रभु यीशु मसीह की दया की आशा देखते रहो।” (यहूदा २०, २१) यह “विश्वास” क्या है जिसमें उन्हें उन्नति करते रहना था? क्योंकि यहूदा ने पहले कहा था कि उन्हें अपने उस विश्वास के लिए लड़ना है जिसे “पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था,” इसीलिए इस “विश्वास” का मतलब हो सकता है, मसीही धर्म यानी वो तमाम मसीही शिक्षाएँ जिनमें उद्धार का सुसमाचार भी शामिल है। (यहूदा ३) यीशु ही इस मसीही धर्म की नींव है और इस सच्चे मसीही धर्म में टिके रहने के लिए हमारे विश्वास का मज़बूत होना बहुत ज़रूरी है।
“खतरनाक पंथ” होने का इलज़ाम
३. कुछ लोग पंथों के डर का किस तरह गलत इस्तेमाल कर रहे हैं?
३ हाल के सालों में खतरनाक पंथों से जुड़े हुए लोगों ने बहुत ही खौफनाक और घिनौने ज़ुर्म किए हैं। धर्म के नाम पर या तो कुछ लोगों ने मिलकर आत्महत्या की है, या दूसरों की हत्या की है या फिर लोगों में दहशत फैलायी है। इसलिए कुछ नेता और कई दूसरे लोग चाहते हैं कि मासूमों और खासकर नौजवानों को इन खतरनाक पंथों से बचाएँ। उनकी यह चिंता वाजिब भी है। मगर खतरनाक पंथों के घिनौने कामों के पीछे ‘इस संसार का ईश्वर’ यानी शैतान है। इन घिनौने कामों की वज़ह से लोगों के मन में पंथों के लिए एक तरह का डर बैठ गया है। यहोवा के लोगों के खिलाफ शैतान इसी डर का इस्तेमाल कर रहा है। (२ कुरिन्थियों ४:४; प्रकाशितवाक्य १२:१२) कुछ लोगों ने हमारे प्रचार काम का विरोध करने के लिए इस डर का गलत इस्तेमाल किया है। कुछ देशों में “खतरनाक पंथों” से सबको बचाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है जिसमें यहोवा के साक्षियों का भी नाम गलती से जोड़कर उन्हें बदनाम किया जा रहा है। इसकी वज़ह से यूरोप के कुछ देशों में घर-घर जाकर प्रचार का काम करना मुश्किल हो गया है और कुछ लोग जिन्हें हम बाइबल सिखा रहे थे उन्होंने अध्ययन करना बंद कर दिया है। यह देखकर हमारे कुछ भाई निराश हो गए हैं।
४. हमें विरोध से क्यों निराश नहीं होना चाहिए?
४ मगर विरोध आने पर निराश हो जाने के बजाय हमारा यह विश्वास और भी पक्का हो जाना चाहिए कि हमारा मसीही धर्म ही सच्चा है। (मत्ती ५:११, १२) पहली सदी के मसीहियों पर भी इलज़ाम लगाया गया था कि यह विद्रोह करनेवाला पंथ है और “सब जगह लोग इसके विरोध में बातें करते” थे। (प्रेरितों २४:५; २८:२२, NHT) मगर प्रेरित पतरस ने अपने संगी विश्वासियों की हिम्मत बँधाते हुए कहा: “प्रिय भाइयो, अपनी अग्निपरीक्षा पर, जो तुम्हें परखने के लिए हो रही है, आश्चर्य मत करो कि मानो कोई अनोखी बात हो रही है। तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए कि अब तुम मसीह के दुःखों में सहभागी हो और उनकी महिमा के प्रगट होने पर आनन्दित और उल्लसित होगे।” (१ पतरस ४:१२, १३, न्यू हिंदी बाइबल) यही बात पहली सदी के शासी निकाय के एक सदस्य ने भी लिखी: “हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो, तो इस को पूरे आनन्द की बात समझो, यह जानकर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है। पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे।” (याकूब १:२-४) जिस तरह तूफानी हवाओं से पता चलता है कि जहाज़ कितना मज़बूत है, उसी तरह विरोध के तूफान से पता चलता है कि हमारे विश्वास का जहाज़ कितना मज़बूत है।
क्लेशों से धीरज उत्पन्न होता है
५. हमें कैसे पता चलेगा कि क्लेश में भी हमारा विश्वास मज़बूत है?
५ एक मसीही को क्लेश के तूफानों से गुज़रने के बाद ही पता चलेगा कि उसके पास कितना धीरज है और उसका विश्वास कितना मज़बूत है। इस क्लेश के तूफानों में हमारे धीरज को अपना काम पूरा करना होगा। और हमारे धीरज का काम सिर्फ तभी ‘पूरा होगा’ जब हम ‘पूरे और सिद्ध होंगे और हम में किसी भी बात की,’ यहाँ तक कि मज़बूत विश्वास की भी ‘घटी न होगी।’ पौलुस ने लिखा: “हर बात से परमेश्वर के सेवकों की नाईं अपने सद्गुणों को प्रगट करते हैं, बड़े धैर्य से, क्लेशों से, दरिद्रता से, संकटों से।”—२ कुरिन्थियों ६:४.
६. ‘हमें क्लेशों में’ क्या सबूत देने का बढ़िया मौका मिलता है और इससे हमारी आशा कैसे और भी पक्की होती है?
६ इसलिए जब हम क्लेश के तूफानों से गुज़रते हैं तब हमारे पास अपने विश्वास रूपी जहाज़ के मज़बूती और टिकाऊपन का सबूत देने का बढ़िया मौका होता है। पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखा: “हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यही जानकर कि क्लेश से धीरज। और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है। और आशा से लज्जा नहीं होती।” (रोमियों ५:३-५) जब हम क्लेशों में धीरज धर के टिके रहते हैं तो हम यहोवा की नज़रों में खरे निकलते हैं, जिससे हमारी आशा और भी पक्की होती है।
विश्वास रूपी जहाज़ क्यों डूब जाता है
७. (क) जैसे पौलुस ने बताया, कुछ लोगों का विश्वास रूपी जहाज़ क्यों डूब गया? (ख) कुछ लोग आज कैसे दिखाते हैं कि वे सच्चाई की राह से भटक गए हैं?
७ पौलुस ने चेतावनी दी कि कुछ लोगों का विश्वास रूपी जहाज़ डूब जाएगा क्योंकि उन्होंने अपने अच्छे विवेक को ‘दूर कर दिया’ है और अपना विश्वास खो बैठे हैं। (१ तीमुथियुस १:१९) पौलुस यहाँ हुमिनयुस और सिकन्दर जैसे लोगों के बारे में बात कर रहा था। इन लोगों का विश्वास रूपी जहाज़ डूब गया था क्योंकि उन्होंने सच्चाई की राह से भटककर सच्चे मसीही धर्म की निंदा की थी और इस तरह धर्मत्यागी बन गए थे। (१ तीमुथियुस १:२०; २ तीमुथियुस २:१७, १८) आज, जो धर्मत्यागी सच्चाई की राह से भटक जाते हैं वे “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की निंदा करते हैं और इस तरह उसी थाली में छेद करते हैं जिसमें वे खाया करते थे। कुछ धर्मत्यागी उस “दुष्ट दास” के जैसे हैं, जो मानो अपनी बातों से यह कह रहे हों कि “मेरे स्वामी के आने में देर है।” (मत्ती २४:४४-४९; २ तीमुथियुस ४:१४, १५) ये लोग इस बात को कबूल नहीं करते कि इस दुष्ट दुनिया का अंत पास आ गया है। ये आध्यात्मिक रूप से सचेत “दास” वर्ग की निंदा करते हैं क्योंकि यह दास यहोवा के लोगों को सचेत रहने के लिए कहता है। (यशायाह १:३) ऐसे धर्मत्यागी, कुछ लोगों के “विश्वास को उलट पुलट कर देते हैं” और उनका विश्वास रूपी जहाज़ डुबो देते हैं।—२ तीमुथियुस २:१८.
८. कुछ लोगों ने खुद अपना विश्वास रूपी जहाज़ क्यों डुबो दिया?
८ कुछ समर्पित मसीही अपने विवेक को ‘दूर करके’ इस दुनिया की मौज-मस्ती और लुचपन में लग गए और खुद ही अपना विश्वास रूपी जहाज़ डुबो दिया। (२ पतरस २:२०-२२) कुछ और लोगों ने अपना विश्वास रूपी जहाज़ इसलिए डुबो दिया क्योंकि उन्हें नयी दुनिया का किनारा दूर-दूर तक कहीं भी नज़र नहीं आ रहा था। जब वे कुछ भविष्यवाणियों के पूरा होने की तारीख का पता नहीं लगा पाते, तो वे ‘प्रभु के दिन’ का इंतज़ार करना छोड़ देते हैं और सच्ची उपासना को त्याग देते हैं। (२ पतरस ३:१०-१३; १ पतरस १:९) और इस दुनिया के कीचड़ भरे तूफानी सागर में गोते खाने लगते हैं। (यशायाह १७:१२ १३; ५७:२०) कुछ लोग, जिन्होंने साक्षियों के साथ मेल-जोल रखना छोड़ दिया है, वे अब भी मानते हैं कि साक्षियों का धर्म ही सच्चा है। लेकिन यह बात तो साफ है कि उनमें इतना धीरज या सब्र नहीं कि यहोवा की वादा की हुई नई दुनिया में जाने के लिए अभी इंतज़ार करें। उनके हिसाब से नई दुनिया के आने में बहुत देर हो रही है।
९. कुछ समर्पित मसीही क्या कर रहे हैं और इसलिए हमें अपने बारे में क्या सोचना चाहिए?
९ ऐसा लगता है कि दुनिया के कुछ हिस्सों में, कुछेक समर्पित मसीहियों ने अपने विश्वास रूपी जहाज़ के पाल बाँधकर रख दिए हैं। उनका जहाज़ चल तो रहा है, मगर पूरे विश्वास से आगे बढ़ने के बजाय बड़े आराम से, अपनी ही रफ्तार से चल रहा है। कई लोग इस आशा से सच्चाई में आए थे कि ‘नई दुनिया जल्द ही आएगी’ और इसलिए वे कड़ी से कड़ी मेहनत करने को तैयार थे। वे बड़े जोश से प्रचार का काम कर रहे थे और सभी सभाओं, सम्मेलनों और अधिवेशनों में हमेशा हाज़िर होते थे। लेकिन, अब वे ज़्यादा मेहनत नहीं करना चाहते क्योंकि उनकी आशा उन्हें अभी तक पूरी होते हुए नज़र नहीं आ रही। उन्हें लगता है कि इसमें बहुत देर हो रही है। इसलिए अब वे प्रचार के काम में ज़्यादा हिस्सा नहीं लेते, सभाओं में लगातार नहीं आते और सम्मेलन और अधिवेशन के सभी हिस्सों को सुनने के लिए भी मौजूद नहीं होते। कुछ भाई मनोरंजन में और अपनी सुख-सुविधा की चीज़ें जुटाने में ज़्यादा वक्त बिता रहे हैं। इसलिए यहोवा के सेवक होने के नाते हमें सोचना चाहिए हम किस वज़ह से उसकी सेवा करते हैं? क्या हम बस ‘नई दुनिया’ में पहुँचने के लिए ही जोश के साथ परमेश्वर की सेवा करते हैं?
लंगर की तरह हमारी आशा
१०, ११. पौलुस ने हमारी आशा की तुलना किससे की और यह तुलना उचित क्यों है?
१० पौलुस ने बताया कि यहोवा ने इब्राहीम के ज़रिये आशीषें देने का वादा किया। फिर पौलुस ने कहा कि परमेश्वर ने “शपथ का उपयोग किया, कि हमें दो अटल बातों [उसका वचन और उसकी शपथ] के द्वारा, जिनमें परमेश्वर का झूठ बोलना असम्भव है, दृढ़ प्रोत्साहन मिले—अर्थात् हमें जो शरण पाने के लिए दौड़ पड़े हैं कि उस आशा को प्राप्त करें जो सामने रखी है। यह आशा मानो हमारे प्राण के लिए लंगर है—ऐसी आशा जो निश्चित और दृढ़ है।” (इब्रानियों ६:१७-१९, NHT; उत्पत्ति २२:१६-१८) अभिषिक्त मसीहियों के सामने स्वर्ग में अमर जीवन पाने की आशा रखी हुई है। और यहोवा के बाकी के सेवकों के सामने नई दुनिया में सदा तक जीने की शानदार आशा है। (लूका २३:४३) विश्वास को अटल बनाए रखने के लिए आशा बेहद ज़रूरी है।
११ जहाज़ की सुरक्षा के लिए लंगर का होना निहायत ज़रूरी है। लंगर ही जहाज़ को स्थिर रखता है और उसे अपनी जगह से बहने नहीं देता। ऐसा कोई भी मल्लाह नहीं होगा जो बिना लंगर के जहाज़ को बंदरगाह से ले जाए। पौलुस ने जिन जहाज़ों से सफर किया था उनमें से कई जहाज़ टूटकर डूब गए थे। इसलिए वह भली-भाँति जानता था कि समुद्र में सफर करनेवालों की ज़िंदगी ज़्यादातर जहाज़ के लंगरों पर टिकी होती है। (प्रेरितों २७:२९, ३९, ४०; २ कुरिन्थियों ११:२५) पहली सदी में जहाज़ों में इंजन नहीं हुआ करते थे कि मल्लाह जहाज़ को जहाँ चाहे वहाँ मोड़ ले। पतवारों से चलाए जानेवाले लड़ाकू जहाज़ों के अलावा, बाकी सब जहाज़ हवा के सहारे ही चलते थे। तूफान में अगर जहाज़ को चट्टानों से टकराने का खतरा है तो कप्तान के लिए सिर्फ एक ही रास्ता होता है कि वह लंगर डालकर तूफान के थम जाने का इंतज़ार करे, इस उम्मीद के साथ कि समुद्रतल पर लंगर की पकड़ मज़बूत बनी रहेगी। इसलिए पौलुस ने एक मसीही की आशा की तुलना ‘प्राण बचानेवाले लंगर’ से की, “जो निश्चित और दृढ़ है।” (इब्रानियों ६:१९, NHT) जब हम विरोध के तूफानों से घिर जाते हैं या दूसरे क्लेशों में पड़ जाते हैं, तब हमारी शानदार आशा हमारे लिए लंगर का काम करती है। यह हमें स्थिर रखती है, जिससे हमारा विश्वास रूपी जहाज़ शक के रेतीले टीले के पास या धर्मत्याग की खतरनाक चट्टानों के पास न चला जाए।—इब्रानियों २:१; यहूदा ८-१३.
१२. कौन-सी बातें हमारी मदद करेंगी ताकि हम यहोवा से दूर न हट जाएँ?
१२ पौलुस ने इब्रानी मसीहियों को चेतावनी दी: “हे भाइयो, चौकस रहो, कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी न मन हो, जो जीवते परमेश्वर से दूर हट जाए।” (इब्रानियों ३:१२) यूनानी भाषा में “दूर हट जाने” का मतलब है “अलग खड़े होना” यानी धर्मत्यागी हो जाना। मगर हम धर्मत्यागी होकर अपने विश्वास के जहाज़ को डूबने से बचा सकते हैं। कैसे? विश्वास और आशा हमारी मदद करेंगी ताकि परीक्षा के सबसे प्रचंड तूफान में भी हम यहोवा से दूर न हट जाएँ मगर उससे लिपटे रहें। (व्यवस्थाविवरण ४:४; ३०:१९, २०) हमारा विश्वास रूपी जहाज़ धर्मत्यागियों की शिक्षाओं के तूफान में उछाला नहीं जाएगा। (इफिसियों ४:१३, १४) और हमारी आशा के लंगर के साथ हम उन सभी तूफानों का सामना कर सकते हैं जो यहोवा के सेवक होने के नाते हमारी ज़िंदगी में आते हैं।
प्रेम और पवित्र आत्मा से प्रेरित
१३, १४. (क) एक मसीही के लिए आशा का लंगर ही क्यों काफी नहीं है? (ख) यहोवा की सेवा करने का कारण क्या होना चाहिए और क्यों?
१३ अगर एक मसीही सिर्फ इसी आशा से यहोवा की सेवा करता है कि उसे नई दुनिया में हमेशा का जीवन मिलेगा, तो वह आगे नहीं बढ़ पाएगा। ज़िंदगी के तूफानों में अपने विश्वास रूपी जहाज़ को स्थिर करने के लिए उसके पास आशा का लंगर होना तो ज़रूरी है लेकिन अगर वह आगे बढ़ना चाहता है तो उसके पास प्रेम होना भी ज़रूरी है। पौलुस ने इसी बात पर ज़ोर देते हुए कहा: “अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।”—१ कुरिन्थियों १३:१३.
१४ यहोवा की सेवा करने का हमारा कारण, दिल से उसके लिए प्रेम होना चाहिए क्योंकि सबसे पहले उसी ने हमसे बेहद प्रेम किया। प्रेरित यूहन्ना ने इसके बारे में लिखा: “जो प्रेम नहीं रखता, वह परमेश्वर को नहीं जानता, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है। जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं। हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले उस ने हम से प्रेम किया।” (१ यूहन्ना ४:८, ९, १९) इसलिए अगर हम यहोवा के प्रेम के लिए कदरदानी दिखाना चाहते हैं, तो हम सिर्फ अपने उद्धार की ही चिंता नहीं करेंगे बल्कि चाहेंगे कि यहोवा के नाम पर लगाया गया कलंक दूर हो और इस विश्व पर राज करने का उसका हक सब पर ज़ाहिर हो।
१५. लोग यहोवा के राज के अधीन क्यों रहना चाहते हैं?
१५ यहोवा भी यही चाहता है कि हम सिर्फ एक खूबसूरत पृथ्वी पर जीने के लिए नहीं, मगर उसके लिए अपने प्यार की वज़ह से उसकी सेवा करें। बाइबल का एक विश्वकोश इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्a कहता है: “यहोवा को इस बात का नाज़ है कि उसका राज प्रेम पर आधारित है और उसकी सृष्टि भी उसके राज के अधीन रहती है क्योंकि वह उससे प्रेम करती है। यहोवा सिर्फ ऐसे लोगों को चाहता है जो और किसी के नहीं बल्कि उसके राज के अधीन रहना चाहते हों और वह भी उसके गुणों की वज़ह से उसके अधीन रहना चाहते हों, और जो यह मानते हों कि उसी की प्रभुता न्याय से काम करती है। (१कुरि २:९) वे यहोवा से आज़ाद होकर जीने के बजाय उसके राज के अधीन रहना चाहते हैं क्योंकि वे यहोवा को, उसके प्रेम को, उसके न्याय और उसकी बुद्धि को बखूबी जानते हैं और उन्हें यह एहसास है कि वे कभी यहोवा की बराबरी नहीं कर सकते। (भज ८४:१०, ११)”—खंड २, पेज २७५.
१६. यीशु के लिए हमारा प्रेम हमें क्या करने के लिए विवश करेगा और कैसे हमारी मदद करेगा?
१६ मसीही होने के नाते, हम यीशु से भी इसलिए प्रेम करते हैं क्योंकि खुद उसने हमसे प्रेम किया है। पौलुस ने समझाया: “मसीह का प्रेम हमें विवश कर देता है; इसलिये कि हम यह समझते हैं, कि जब एक सब के लिये मरा तो सब मर गए। और वह इस निमित्त सब के लिये मरा, कि जो जीवित हैं, वे आगे को अपने लिये न जीएं परन्तु उसके लिये जो उन के लिये मरा और फिर जी उठा।” (२ कुरिन्थियों ५:१४, १५) यीशु मसीह ही तो वह नींव है जिस पर हमारा मसीही जीवन, हमारा विश्वास और हमारी आशा टिकी है। मसीह यीशु के लिए हमारा प्रेम ही हमारी आशा को पक्का और हमारे विश्वास को स्थिर करता है, खासकर तब जब हम परीक्षा के तूफानों से गुज़रते हैं।—१ कुरिन्थियों ३:११; कुलुस्सियों १:२३; २:६, ७.
१७. वह शक्ति क्या है जो यहोवा हमें देता है, और प्रेरितों १:८ और इफिसियों ३:१६ में इसकी अहमियत कैसे बतायी गयी है?
१७ हालाँकि परमेश्वर और उसके बेटे के लिए प्रेम ही हमें मसीही ज़िंदगी में आगे बढ़ते रहने के लिए उकसाता है लेकिन यहोवा हमें कुछ और भी देता है जिससे हमें प्रेरणा मिलती है, और उसकी सेवा में बढ़ते जाने के लिए ताकत मिलती है। यह है उसकी शक्ति या पवित्र आत्मा। इब्रानी और यूनानी भाषा में “आत्मा” का असल में अर्थ है, हवा का तेज़ बहाव। पौलुस जिन जहाज़ों से सफर करता था, वे हवा के बल पर ही अपनी मंज़िल तक पहुँचते थे। उसी तरह, अगर हमारे विश्वास रूपी जहाज़ को यहोवा की सेवा में आगे बढ़ते जाना है तो हमें प्रेम की और परमेश्वर की अनदेखी ताकत की ज़रूरत है।—प्रेरितों १:८; इफिसियों ३:१६.
अपनी मंज़िल की ओर
१८. भविष्य में हमारे विश्वास की परीक्षाओं में धीरज धरने के लिए कौन-सी बात हमारी मदद करेगी?
१८ नई दुनिया तक पहुँचने से पहले हो सकता है कि हमारे विश्वास और प्रेम की कड़ी परीक्षा हो, लेकिन यहोवा ने हमें एक “निश्चित और दृढ़” लंगर दिया है, यानी हमारी शानदार आशा। (इब्रानियों ६:१९, NHT; रोमियों १५:४, १३) इसलिए अगर हमारी यह आशा का लंगर दृढ़ है तो हम विरोध या क्लेशों के थपेड़े खाते हुए भी धीरज धर सकते हैं। एक तूफान का सामना कर लेने के बाद आइए हम अपने विश्वास और आशा को और भी पक्का करें ताकि आनेवाले दूसरे तूफानों का डट कर सामना कर सकें।
१९. परमेश्वर की नयी दुनिया के किनारे तक पहुँचने के लिए हम अपने विश्वास रूपी जहाज़ को कैसे आगे बढ़ाते जा सकते हैं?
१९ पौलुस ने ‘प्राण बचानेवाले लंगर’ के बारे में बताने से पहले कहा: “हमारी हार्दिक इच्छा है कि तुम में से प्रत्येक व्यक्ति अपनी आशा-पूर्ति के लिए अन्त तक ऐसा ही प्रयत्न [“तेज़ी,” NW, फुटनोट] करता रहे। आलस्य को पास न आने दो वरन् उन लोगों का अनुकरण करो जो विश्वास और धैर्य द्वारा प्रतिज्ञाओं के उत्तराधिकारी बनते हैं।” (इब्रानियों ६:११, १२, न्यू हिंदी बाइबल) आइए हम यहोवा और उसके बेटे यीशु के लिए प्रेम से प्रेरित होकर और पवित्र आत्मा से शक्ति पाकर अपने विश्वास रूपी जहाज़ को आगे बढ़ाते जाएँ, जब तक कि हम परमेश्वर की वादा की हुई नयी दुनिया के किनारे तक न पहुँच जाएँ।
[फुटनोट]
a वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।
क्या आपको याद है
◻ हमारे विश्वास के बारे में पौलुस ने हमें कौन-सी चेतावनी दी?
◻ कुछ लोगों का विश्वास रूपी जहाज़ क्यों डूब गया और कुछ लोग धीमे क्यों पड़ रहे हैं?
◻ हमारे विश्वास के साथ कौन-सा ईश्वरीय गुण होना ज़रूरी है?
◻ परमेश्वर की वादा की हुई नयी दुनिया के किनारे तक पहुँचने के लिए कौन-सी बात हमारी मदद कर सकती है?
[पेज 16 पर तसवीर]
मसीही ज़िंदगी में तूफानों का सामना करने के लिए हमारे विश्वास रूपी जहाज़ को मज़बूत होना चाहिए
[पेज 17 पर तसवीर]
हमारा विश्वास रूपी जहाज़ डूब सकता है
[पेज 18 पर तसवीर]
आशा हमारी मसीही ज़िंदगी का लंगर है