अपने बच्चों को फलने-फूलने में मदद दीजिए
बच्चों के पालन-पोषण के बारे में सलाह पाने के लिए अनेक माता-पिता चप्पा-चप्पा छान मारते हैं, जबकि असल में यह उन्हीं के घर में आसानी से मिल सकती है। अनगिनत परिवारों के पास बाइबल है, लेकिन वह ताक पर पड़ी धूल जमा करती है बजाय इसके कि बच्चों के पालन-पोषण के लिए काम में लायी जाए।
सच है, आज बहुतों को संदेह है कि क्या बाइबल को पारिवारिक जीवन के लिए मार्गदर्शक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। वे इसे दिनातीत, पुराने-विचारोंवाली, या बहुत-ही सख़्त कहकर नकार देते हैं। लेकिन एक निष्पक्ष जाँच प्रकट करेगी कि बाइबल परिवारों के लिए एक व्यावहारिक पुस्तक है। आइए देखते हैं कैसे।
सही वातावरण
बाइबल पिता से कहती है कि अपने बच्चों को ‘अपनी मेज़ के चारों ओर जलपाई के पौधे सा’ समझे। (भजन १२८:३, ४) कोमल पौधे फलदायी वृक्षों में विकसित नहीं होंगे यदि उनकी अच्छी देखभाल न की जाए, सही पोषण, मिट्टी और नमी न दी जाए। उसी प्रकार, सफलता से बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए मेहनत और देखभाल की ज़रूरत होती है। बच्चों को प्रौढ़ता की ओर बढ़ने के लिए हितकर वातावरण की ज़रूरत होती है।
ऐसे वातावरण के लिए पहला तत्त्व है प्रेम—विवाह-साथियों के बीच और माता-पिता एवं बच्चों के बीच। (इफिसियों ५:३३; तीतुस २:४) परिवार के अनेक सदस्य एक दूसरे से प्रेम करते हैं लेकिन ऐसे प्रेम को व्यक्त करने की कोई ज़रूरत नहीं समझते। लेकिन, इस पर विचार कीजिए: क्या आप सच कह रहे होंगे कि आपने एक मित्र के साथ संचार किया है, यदि आपने उसे पत्र तो लिखे परंतु उन पर कभी पता नहीं लिखा, टिकट नहीं लगाया, अथवा जिन्हें आपने भेजा तक नहीं? उसी तरह, बाइबल दिखाती है कि असली प्रेम उस भावना से कहीं अधिक है जो हृदय को प्रसन्न करती है; वह कथनी और करनी से अपने आपको व्यक्त करता है। (यूहन्ना १४:१५ और १ यूहन्ना ५:३ से तुलना कीजिए।) परमेश्वर ने इसका उदाहरण रखा और अपने पुत्र के प्रति अपने प्रेम को शब्दों में व्यक्त किया: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूं।”—मत्ती ३:१७.
सराहना
माता-पिता अपने बच्चों के प्रति ऐसा प्रेम कैसे दिखा सकते हैं? पहली बात, अच्छाई ढूँढ़िए। बच्चों में नुक़्स निकालना आसान है। उनका बचपना, अनाड़ीपन और स्वार्थ हर दिन अनगिनत बातों में दिखेगा। (नीतिवचन २२:१५) लेकिन हर दिन वे कई अच्छे काम भी करेंगे। आप किन बातों पर ध्यान देंगे? परमेश्वर हमारी कमियों को नहीं गिनता रहता, उसके बजाय जो अच्छाई हम करते हैं उसे याद रखता है। (भजन १३०:३; इब्रानियों ६:१०) हमें भी अपने बच्चों के साथ इसी तरह व्यवहार करना चाहिए।
एक युवक कहता है: “घर पर ज़िंदगी भर मुझे किसी क़िस्म की सराहना नहीं मिली—चाहे घर पर या स्कूल में कितना ही अच्छा काम किया हो।” माता-पिताओ, अपने बच्चों की इस अति-महत्त्वपूर्ण ज़रूरत को नज़रअंदाज़ मत कीजिए! बच्चे जो भी अच्छे काम करते हैं उनके लिए सभी बच्चों की नियमित रूप से सराहना की जानी चाहिए। यह इस जोख़िम को कम करेगा कि बड़े होकर उनका “साहस” न “टूट जाए,” वे यह न मान बैठें कि उनका कोई काम कभी अच्छा नहीं हो सकता।—कुलुस्सियों ३:२१.
संचार
अपने बच्चों के प्रति प्रेम व्यक्त करने का एक और अच्छा तरीक़ा है याकूब १:१९ की सलाह को मानना: “सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा” होना चाहिए। क्या आप अपने बच्चों के मन की बात निकलवाते हैं और जो वे कहते हैं उसे सचमुच सुनते हैं? यदि आपके बच्चे जानते हैं कि उनकी बात ख़त्म होने से पहले ही आप उन्हें भाषण देने लगेंगे या उनके मन की बात जानकर ग़ुस्सा हो जाएँगे, तो हो सकता है कि वे अपनी भावनाएँ अंदर ही रखें। लेकिन यदि वे जानते हैं कि आप सचमुच सुनेंगे, तो इसकी संभावना कहीं अधिक है कि वे आपसे खुलकर बात करेंगे।—नीतिवचन २०:५ से तुलना कीजिए।
तब क्या यदि वे ऐसी भावनाएँ व्यक्त करते हैं जो आप जानते हैं कि ग़लत हैं? क्या यह ग़ुस्से में आकर टोकने, भाषण देने, या कुछ ताड़ना देने का समय है? माना, बच्चे कुछ ऐसी बातें बोल बैठते हैं जिन्हें सुनकर “बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा” होना कठिन हो सकता है। लेकिन अपने बच्चों के साथ परमेश्वर ने जो उदाहरण रखा है उस पर फिर से विचार कीजिए। क्या वह हानिकर भय का वातावरण उत्पन्न करता है, जिससे कि उसके बच्चे उसे अपनी भावनाएँ बताने से डरते हैं? नहीं! भजन ६२:८ कहता है: “हे लोगो, हर समय [परमेश्वर] पर भरोसा रखो; उस से अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो; परमेश्वर हमारा शरणस्थान है।”
सो जब इब्राहीम सदोम और अमोरा के नगरों का नाश करने के परमेश्वर के फ़ैसले के बारे में चिंतित हुआ, तब वह अपने स्वर्गीय पिता से यह कहने से न हिचकिचाया: “इस प्रकार का काम करना तुझ से दूर रहे . . . क्या सारी पृथ्वी का न्यायी न्याय न करे?” यहोवा ने इब्राहीम को डाँटा नहीं; उसने उसकी सुनी और उसका डर दूर किया। (उत्पत्ति १८:२०-३३) परमेश्वर बहुत ही धीरजवंत और कोमल है, उस समय भी जब उसके बच्चे ऐसी भावनाएँ व्यक्त करते हैं जो पूरी तरह से असंगत और अनुचित हैं।—योना ३:१०–४:११.
उसी तरह माता-पिता को भी ऐसा वातावरण उत्पन्न करने की ज़रूरत है जिसमें बच्चे अपनी अंतरतम भावनाएँ व्यक्त करने में सुरक्षित महसूस करें, चाहे वे कितनी ही व्याकुल करनेवाली क्यों न हों। सो यदि आपका बच्चा भावुक होकर कुछ बोल बैठता है, तो सुनिए। डाँटने के बजाय, बच्चे की भावनाओं को मानिए और कारण पूछिए। उदाहरण के लिए, आप कह सकते हैं: ‘लगता है तुम फ़लाँ-फ़लाँ से ग़ुस्सा हो। क्या मुझे बताना चाहोगे कि बात क्या है?’
क्रोध पर क़ाबू पाना
निःसंदेह, कोई माता या पिता यहोवा के जितना धीरजवंत नहीं है। और बच्चे सचमुच अपने माता-पिता के धीरज की अग्नि-परीक्षा ले सकते हैं। यदि कभी-कभी आपको अपने बच्चों पर ग़ुस्सा आता है, तो इसकी चिंता मत कीजिए कि यह आपको एक अयोग्य जनक बना देता है। कभी-कभी, आपके ग़ुस्सा करने का उचित कारण होगा। स्वयं परमेश्वर अपने बच्चों से उचित ही ग़ुस्सा होता है, उनसे भी जो उसे बहुत प्रिय हैं। (निर्गमन ४:१४; व्यवस्थाविवरण ३४:१०) लेकिन, उसका वचन हमें अपने ग़ुस्से पर क़ाबू पाना सिखाता है।—इफिसियों ४:२६.
कैसे? कभी-कभी यह अच्छा होता है कि थोड़ी देर के लिए विषय बदल दें ताकि आपके ग़ुस्से को शांत होने का समय मिले। (नीतिवचन १७:१४) और याद रखिए, वह बच्चा है! उससे बड़ों-जैसे बर्ताव या प्रौढ़ सोच-विचार की अपेक्षा मत कीजिए। (१ कुरिन्थियों १३:११) यह समझना कि आपका बच्चा अमुक रीति से व्यवहार क्यों करता है आपके ग़ुस्से को कम कर सकता है। (नीतिवचन १९:११) कोई बुरा काम करने और बुरा इंसान होने के बीच जो बड़ा अंतर है, उसे कभी मत भूलिए। बच्चे को बुरा कहने से वह यह सोच सकता है, ‘अच्छा बनने की कोशिश ही क्यों करूँ?’ लेकिन बच्चे को प्रेम से सुधारना बच्चे की मदद करेगा कि अगली बार वह सुधार करे।
व्यवस्था और आदर बनाए रखना
बच्चों को व्यवस्था और आदर का भाव सिखाना माता-पिताओं के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती है। आज के उन्मुक्त संसार में, अनेक लोग सोचते हैं कि अपने बच्चों पर लगाम लगाना सही है भी या नहीं। बाइबल उत्तर देती है: “छड़ी और डांट से बुद्धि प्राप्त होती है, परन्तु जो लड़का योंही छोड़ा जाता है वह अपनी माता की लज्जा का कारण होता है।” (नीतिवचन २९:१५) कुछ लोग “छड़ी” शब्द से कतराते हैं। वे सोचते हैं कि यह किसी क़िस्म के बाल दुर्व्यवहार को सूचित करता है। लेकिन ऐसा नहीं है। “छड़ी” के लिए इब्रानी शब्द सोंटे को सूचित करता था, जिसे एक चरवाहा अपनी भेड़ों को रास्ता दिखाने के लिए इस्तेमाल करता था—उन पर हमला करने के लिए नहीं।a सो छड़ी अनुशासन को चित्रित करती है।
बाइबल में, अनुशासन देना मुख्यतः सिखाने का अर्थ रखता है। इसीलिए नीतिवचन की पुस्तक कुछ चार बार कहती है ‘शिक्षा को सुनो।’ (नीतिवचन १:८, NW; ४:१; ८:३३; १९:२७) बच्चों को यह सीखने की ज़रूरत है कि सही काम करने से इनाम मिलता है और ग़लत काम करने का अंजाम बुरा होता है। सज़ा मन में यह बिठाने में मदद दे सकती है कि ग़लत काम नहीं करने चाहिए और इनाम—जैसे कि सराहना—मन में यह बिठा सकता है कि अच्छे काम करने चाहिए। (व्यवस्थाविवरण ११:२६-२८ से तुलना कीजिए।) सज़ा के मामले में अच्छा होगा कि माता-पिता परमेश्वर के उदाहरण का अनुकरण करें, क्योंकि उसने अपने लोगों से कहा कि वह उनकी ताड़ना “उचित रूप से” करेगा। (यिर्मयाह ४६:२८, NHT) कुछ बच्चों को सही रास्ते पर लाने के लिए सख़्ती से कहे दो-चार शब्द ही काफ़ी होते हैं। दूसरों को ज़्यादा कड़ाई की ज़रूरत होती है। लेकिन “उचित रूप से” ताड़ना में कभी-भी ऐसी कोई बात शामिल नहीं होगी जो एक बच्चे को भावात्मक या शारीरिक रूप से ख़ासा नुक़सान पहुँचा सकती है।
संतुलित अनुशासन में बच्चों को सीमाओं और मर्यादाओं के बारे में सिखाना शामिल होना चाहिए। इनमें से अनेक, परमेश्वर के वचन में स्पष्ट रूप से बतायी गयी हैं। बाइबल निजी संपत्ति के सिवानों का आदर करना सिखाती है। (व्यवस्थाविवरण १९:१४) यह भौतिक सीमाएँ लगाकर, हिंसा से प्रेम करना या जानबूझकर दूसरे को हानि पहुँचाना ग़लत ठहराती है। (भजन ११:५; मत्ती ७:१२) यह लैंगिक सीमाएँ लगाकर, कौटुंबिक व्यभिचार की निंदा करती है। (लैव्यव्यवस्था १८:६-१८) यह व्यक्तिगत और भावात्मक सीमाओं को भी मानकर, हमें मना करती है कि किसी को भला-बुरा कहें या दूसरी तरह का मौखिक दुर्व्यवहार करें। (मत्ती ५:२२) कथनी और करनी दोनों से बच्चों को इन मर्यादाओं और सीमाओं के बारे में सिखाना, हितकर पारिवारिक वातावरण उत्पन्न करने के लिए अत्यावश्यक है।
परिवार में व्यवस्था और आदर बनाए रखने की एक और कुंजी है परिवार के सदस्यों की भूमिका समझना। आज अनेक परिवारों में, ये भूमिकाएँ धुँधली हो गयी हैं या उलझ गयी हैं। कुछ परिवारों में, माता-पिता बच्चे को बड़ी समस्याओं के बारे में बताते हैं, परंतु बच्चा उन समस्याओं से निपटने में कुशल नहीं होता। दूसरे परिवारों में, बच्चों को घर का मुखिया बनने दिया जाता है और वे पूरे परिवार के फ़ैसले करते हैं। यह ग़लत और नुक़सानदेह है। अपने छोटे बच्चों की ज़रूरतें—चाहे वे भौतिक, भावात्मक, या आध्यात्मिक हों—पूरा करने की बाध्यता माता-पिता पर है, इसका उलटा नहीं। (२ कुरिन्थियों १२:१४; १ तीमुथियुस ५:८) याकूब का उदाहरण लीजिए जिसने अपने पूरे परिवार और काफ़िले की रफ़्तार को बदला ताकि बच्चों को कठिनाई न हो। उसने उनकी स्थिति समझी और उसी अनुसार क़दम उठाया।—उत्पत्ति ३३:१३, १४.
आध्यात्मिक ज़रूरतें पूरी करना
हितकर पारिवारिक वातावरण के लिए आध्यात्मिकता से अधिक महत्त्वपूर्ण कुछ नहीं। (मत्ती ५:३) बच्चों में आध्यात्मिकता की बड़ी क्षमता होती है। उनके पास ढेरों प्रश्न होते हैं: हम अस्तित्त्व में क्यों हैं? किसने पृथ्वी को और यहाँ जानवरों, पेड़ों और समुद्रों को बनाया? लोग क्यों मरते हैं? उसके बाद क्या होता है? अच्छे लोगों पर मुसीबतें क्यों आती हैं? सूची अंतहीन लगती है। प्रायः ऐसा होता है कि माता-पिता ही इन बातों पर न सोचना बेहतर समझते हैं।b
बाइबल माता-पिताओं से आग्रह करती है कि अपने बच्चों को आध्यात्मिक प्रशिक्षण देने में समय बिताएँ। यह ऐसे प्रशिक्षण का वर्णन स्नेही शब्दों में करती है कि यह माता-पिता और बच्चों के बीच एक सतत संचार है। माता-पिता अपने बच्चों को परमेश्वर और उसके वचन के बारे में एकसाथ चलते समय, घर में एकसाथ बैठे हुए, सोने से पहले—जहाँ भी संभव हो वहाँ—सिखा सकते हैं।—व्यवस्थाविवरण ६:६, ७; इफिसियों ६:४.
बाइबल ऐसे आध्यात्मिक कार्यक्रम का प्रोत्साहन तो देती ही है, उससे भी अधिक करती है। यह उन चीज़ों को भी प्रदान करती है जिनकी आपको ज़रूरत पड़ेगी। आख़िरकार, आप बच्चों के उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर कैसे देंगे? बाइबल में उत्तर दिए गए हैं। वे स्पष्ट हैं, रुचिकर हैं और इस आशाहीन संसार में बड़ी आशा देते हैं। उससे भी बढ़कर, बाइबल की बुद्धि को समझना आपके बच्चों को सबसे मज़बूत आधार, आज के उलझन भरे समय में सबसे पक्का मार्गदर्शन दे सकता है। उन्हें यह दीजिए और वे सचमुच फलेंगे-फूलेंगे—अभी और भविष्य में भी।
[फुटनोट]
a सजग होइए! (अंग्रेज़ी), सितंबर ८, १९९२, पृष्ठ २६-७ देखिए।
b पुस्तक पारिवारिक सुख का रहस्य पारिवारिक अध्ययन के लिए रची गयी है और इसमें विवाह एवं बच्चों के पालन-पोषण पर बाइबल में से काफ़ी व्यावहारिक मार्गदर्शन दिया गया है। यह वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित की गयी है।
[पेज 11 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
अपने बच्चे की कोई ख़ास बात ढूँढ़कर उसकी सराहना करने की आदत बनाइए
[पेज 9 पर बक्स/तसवीर]
कैसे दें बच्चों को फलने-फूलने में मदद
• सुरक्षित वातावरण प्रदान कीजिए जिसमें वे प्रिय और मूल्यवान महसूस करें
• नियमित रूप से उनकी सराहना कीजिए। सुनिश्चित बात कहिए
• अच्छे श्रोता बनिए
• जब ग़ुस्सा भड़कता है तब विषय बदल दीजिए
• स्पष्ट, संगत सीमाएँ और मर्यादाएँ रखिए
• हर बच्चे की ज़रूरत के हिसाब से अनुशासन दीजिए
• अपने बच्चे से ज़रूरत से ज़्यादा की अपेक्षा मत कीजिए
• परमेश्वर के वचन के नियमित अध्ययन के द्वारा आध्यात्मिक ज़रूरतों को पूरा कीजिए
[पेज 10 पर बक्स]
अपने समय से आगे
बाइबल नियमों ने प्राचीन इस्राएल के लोगों को एक ऐसे स्तर के पारिवारिक जीवन का आनंद लेने में मदद दी जो आस-पास की जातियों से कहीं ऊँचा था। इतिहासकार ऐल्फ्रॆड ऎडरशाइम टिप्पणी करता है: “इस्राएल के बाहर के लोगों के बारे में यह कहना शायद ही उचित हो कि उनका कोई पारिवारिक जीवन, या परिवार भी था, उस अर्थ में जिसमें हम इन पदों को समझते हैं।” उदाहरण के लिए, प्राचीन रोमियों के बीच कानून ने परिवार में पिता को पूर्ण अधिकार दिया। वह अपने बच्चों को दासता में बेच सकता था, उनसे मज़दूरों की तरह काम करवा सकता था, अथवा यहाँ तक कि उनका वध कर सकता था—और उसे कोई दंड नहीं मिलता।
कुछ रोमी सोचते थे कि यहूदी अजीब हैं जो अपने बच्चों के साथ नरमी से व्यवहार करते हैं। असल में, पहली सदी के रोमी इतिहासकार टैसिटस ने यहूदियों के विरुद्ध एक घृणापूर्ण परिच्छेद लिखा। इसमें उसने कहा कि उनकी प्रथाएँ “एकदम विकृत और घृणित” हैं। फिर भी, उसने स्वीकार किया: “उनके बीच किसी नवजात शिशु की हत्या करना अपराध माना जाता है।”
बाइबल ने ऊँचा स्तर प्रदान किया। इसने यहूदियों को सिखाया कि बच्चे अनमोल हैं—असल में उन्हें स्वयं परमेश्वर की ओर से मीरास समझा जाना चाहिए—और इसी के अनुसार उनके साथ व्यवहार किया जाना चाहिए। (भजन १२७:३) प्रत्यक्षतः अनेक यहूदी ऐसी सलाह के अनुसार जीये। इस संबंध में उनकी भाषा भी स्पष्ट थी। ऎडरशाइम कहता है कि पुत्र और पुत्री के लिए जो शब्द थे उनके अलावा, प्राचीन इब्रानी में बच्चों के लिए नौ शब्द थे, और हर शब्द जीवन के अलग चरण के लिए इस्तेमाल किया जाता था। उदाहरण के लिए, उस बच्चे के लिए एक शब्द था जो अभी-भी माँ का दूध पीता है और उसके लिए दूसरा जिसका दूध छुड़ाया जा चुका है। थोड़े बड़े बच्चों के लिए, एक शब्द था जिसका अर्थ था कि वे ठोस और मज़बूत बन रहे हैं। और बड़े युवाओं के लिए, एक शब्द था जिसका शाब्दिक अर्थ था ‘अपने आपको मुक्त करना।’ ऎडरशाइम टिप्पणी करता है: “निश्चित है कि जिन्होंने बाल-जीवन को इतने ध्यान से देखा कि उसके अस्तित्त्व के हर क्रमिक चरण को एक चित्रात्मक नाम दिया, उन्हें अपने बच्चों से बहुत लगाव रहा होगा।”