बाइबल की किताब नंबर 60—1 पतरस
लेखक: पतरस
लिखने की जगह: बाबुल
लिखना पूरा हुआ: लगभग सा.यु. 62-64
जब शुरू के मसीहियों ने ज़ोर-शोर से परमेश्वर के महान गुणों का ऐलान किया, तब राज्य का काम पूरे रोमी साम्राज्य में ज़ोर पकड़ने लगा और कमाल की बढ़ोतरी होने लगी। लेकिन लोगों को इन जोशीले मसीहियों के बारे में कुछ गलतफहमियाँ हुईं। वह क्यों? एक वजह यह थी कि मसीही धर्म यरूशलेम में और यहूदियों से शुरू हुआ था। इसलिए कुछ लोगों को लगा कि मसीही, राजनीति में डूबे कट्टरपंथी यहूदी हैं, जो रोम की गुलामी के खिलाफ बगावत कर रहे थे और जिन्होंने रोमी राज्यपालों की नाक में दम कर रखा था। दूसरी वजह यह थी कि वे सम्राट की उपासना करने से इनकार करते थे और झूठे धर्मों के रीति-रिवाज़ों और त्योहारों में शरीक नहीं होते थे। इसलिए उनकी निंदा की जाती थी और उन्हें सताया जाता था। यहोवा ने बिलकुल सही समय पर पहला पतरस लिखवाया, क्योंकि कुछ ही समय बाद मसीहियों को ज़ुल्मों के थपेड़े सहने पड़े थे। इस पत्री के ज़रिए पतरस ने मसीहियों को विश्वास में डटे रहने का बढ़ावा दिया और उन्हें सलाह दी कि कैसर नीरो की हुकूमत में उन्हें कैसा चालचलन बनाए रखना है।
2 इस पत्री के शुरूआती शब्दों से ही साबित होता है कि इसका लेखक पतरस है। इसके अलावा, आइरीनियस, सिकंदरिया का क्लैमेंट, ऑरिजन और टर्टलियन ने भी इस पत्री से हवाला देते वक्त पतरस को इसका लेखक बताया।a इस किताब की सच्चाई के बारे में क्या? दूसरी ईश्वर-प्रेरित पत्रियों की तरह इस पत्री की सच्चाई के भी बहुत-से सबूत मौजूद हैं। यूसेबियस बताता है कि चर्च के प्राचीनों ने इस पत्री का खूब इस्तेमाल किया। और उसके ज़माने में (लगभग सा.यु. 260-342) इस पत्री के सच होने पर कोई सवाल नहीं उठाया गया। दूसरी सदी के विद्वान इग्नेशीअस, हेरमस और बरनबास ने भी इस पत्री का बार-बार ज़िक्र किया।b पहला पतरस, पवित्र शास्त्र की बाकी किताबों से पूरी तरह मेल खाता है। इसमें उन यहूदी और गैर-यहूदी मसीहियों के लिए ज़बरदस्त संदेश दिया गया था, जो “परदेशियों” की तरह एशिया माइनर के “पुन्तुस, गलतिया, कप्पदुकिया, आसिया और बिथुनिया [प्रांतों] में तित्तर बित्तर होकर” रहते थे।—1 पत. 1:1.
3 यह पत्री कब लिखी गयी थी? इस पत्री की लेखन-शैली और इसकी बातों से इशारा मिलता है कि जब यह लिखी गयी तब मसीही, विधर्मियों या अविश्वासी यहूदियों के हाथों सताए जा रहे थे। मगर इससे यह इशारा नहीं मिलता कि उस वक्त नीरो ने मसीहियों पर ज़ुल्म ढाने की मुहिम छेड़ी थी। उसने तो सा.यु. 64 में ऐसा किया था। तो फिर इससे ज़ाहिर होता है कि पतरस ने अपनी पत्री इससे पहले यानी शायद सा.यु. 62 से 64 के बीच लिखी होगी। उस दौरान मरकुस का पतरस के साथ होना, इस नतीजे को पुख्ता करता है। दरअसल रोम में पौलुस की पहली कैद (लगभग सा.यु. 59-61) के दौरान मरकुस पौलुस के साथ था। लेकिन मरकुस एशिया माइनर के लिए रवाना होनेवाला था। पौलुस की दूसरी कैद (लगभग सा.यु. 65) के दौरान मरकुस उसके साथ नहीं था, मगर वह बहुत जल्द उसके पास रोम आनेवाला था। (कुलु. 4:10; 2 तीमु. 4:11; 1 पत. 5:13) तो इस बीच मरकुस ज़रूर पतरस के साथ बाबुल में रहा होगा।
4 पहला पतरस कहाँ लिखा गया था? यह सच है कि बाइबल टीकाकार इस बात से सहमत हैं कि यह किताब सच्ची है, बाइबल के संग्रह का हिस्सा है, इसका लेखक पतरस है और इसे सा.यु. 62 से 64 के बीच लिखा गया था। लेकिन यह कहाँ लिखी गयी थी, इस बारे में उनकी अलग-अलग राय है। पतरस खुद कहता है कि उसने अपनी पहली पत्री बाबुल से लिखी थी। (1 पत. 5:13) लेकिन कुछ लोग दावा करते हैं कि “बाबुल” दरअसल रोम का गुप्त नाम था और इसलिए पतरस ने अपनी पत्री रोम से लिखी थी। मगर सबूत इस बात को पुख्ता नहीं करते। बाइबल में कहीं भी इस बात का इशारा नहीं मिलता कि रोम के लिए बाबुल नाम इस्तेमाल किया गया था। पतरस ने अपनी पत्री पुन्तुस, गलतिया, कप्पदुकिया, आसिया और बिथुनिया के मसीहियों को लिखी थी। ये सचमुच की जगहें थीं, इसलिए यह मानना लाज़िमी होगा कि बाबुल से पतरस का मतलब सचमुच का बाबुल शहर था, रोम नहीं। (1:1) पतरस के पास बाबुल में होने का वाजिब कारण था। उसे “खतना किए हुए लोगों के लिये सुसमाचार का काम” सौंपा गया था और बाबुल में यहूदियों की बड़ी आबादी थी। (गल. 2:7-9) इनसाक्लोपीडिया जुडाइका में जहाँ बाबेलोनी तलमुद के तैयार किए जाने की चर्चा की गयी है, वहीं सा.यु. के दौरान “बाबुल में [यहूदी धर्म के] बड़े-बड़े स्कूलों” का भी ज़िक्र मिलता है।c
5 पतरस की दोनों पत्रियों और पवित्र शास्त्र की बाकी किताबों में कहीं भी यह नहीं लिखा है कि पतरस रोम गया था। पौलुस ने अपने बारे में कहा कि वह रोम में था, लेकिन उसने कभी पतरस के वहाँ होने का ज़िक्र नहीं किया। हालाँकि पौलुस ने रोमियों को लिखी अपनी पत्री में 35 लोगों का नाम लिया और 26 लोगों को शुभकामनाएँ भेजीं, लेकिन उसने पतरस का नाम क्यों नहीं लिया? वह इसलिए क्योंकि पतरस वहाँ था ही नहीं। (रोमि. 16:3-15) तो ज़ाहिर है कि जिस “बाबुल” से पतरस ने अपनी पहली पत्री लिखी, वह सचमुच का बाबुल था, जो मसोपोटामिया में फरात महानद के किनारे पर बसा हुआ था।
क्यों फायदेमंद है
11 पतरस की पहली पत्री में अध्यक्षों के लिए उम्दा सलाह दी गयी है। यूहन्ना 21:15-17 में दी यीशु की सलाह और प्रेरितों 20:25-35 में दी पौलुस की सलाह पर और भी जानकारी देते हुए पतरस बताता है कि एक अध्यक्ष की क्या ज़िम्मेदारी बनती है। उसे कलीसिया की रखवाली करनी है और यह काम उसे खुशी-खुशी, जोश के साथ और निःस्वार्थ भाव से करना चाहिए। अध्यक्ष, ‘प्रधान रखवाले’ यीशु मसीह के अधीन सेवा करनेवाले उपचरवाहे हैं और इसलिए वे परमेश्वर के झुंड के लिए यीशु को जवाबदेह हैं। उन्हें झुंड के फायदे के लिए पूरी नम्रता से उनकी सेवा करनी चाहिए और उनके लिए एक आर्दश बनना चाहिए।—5:2-4.
12 पतरस ने अपनी पत्री में मसीही अधीनता के दूसरे कई पहलुओं के बारे में लिखा और बेहतरीन सलाह दी। पहला पतरस 2:13-17 में राजा और हाकिमों के अधीन रहने की सलाह दी गयी है। लेकिन मसीही परमेश्वर के दास हैं, इसलिए उन्हें उसकी खातिर और “परमेश्वर का भय” (NHT) मानते हुए इंसानी शासकों को कुछ हद तक ही अधीनता दिखानी चाहिए। सेवकों को उकसाया गया है कि वे अपने स्वामियों के अधीन रहें और अगर उन्हें “परमेश्वर के प्रति शुद्ध विवेक के कारण” (NHT) दुःख उठाना पड़े, तो उन्हें सह लेना चाहिए। पत्नियों को भी बेशकीमती सलाह दी गयी है कि उन्हें अपने पतियों के अधीन रहना चाहिए, फिर चाहे उनके पति अविश्वासी क्यों न हों। उन्हें बताया गया है कि आदर के साथ पवित्र चालचलन बनाए रखना ‘परमेश्वर की दृष्टि में बड़ा मूल्य’ रखता है। ऐसा करने से वे अपने अविश्वासी पतियों का दिल जीत सकती हैं और उन्हें सच्चाई की तरफ खींच सकती हैं। अधीनता दिखाने पर ज़ोर देने के लिए पतरस सारा का उदाहरण देता है, जो अपने पति इब्राहीम के अधीन थी। (1 पत. 2:17-20; 3:1-6; उत्प. 18:12) पतियों को भी सलाह दी गयी है कि वे अपने मुखियापन की ज़िम्मेदारी सही तरह से निभाएँ और अपनी पत्नियों को “निर्बल पात्र” जानकर उनका लिहाज़ करें। अधीनता के विषय पर चर्चा करते हुए पतरस आगे कहता है: “हे नवयुवको, तुम भी प्राचीनों के आधीन रहो।” फिर वह दीनता दिखाने पर ज़ोर देता है। यह एक ऐसा मसीही गुण है, जिसका ज़िक्र पूरी पत्री में बार-बार आता है।—1 पत. 2:21-25; 3:7-9; 5:5-7.
13 पतरस ने ऐसे समय पर अपनी पत्री लिखी, जब भाइयों पर एक बार फिर भयानक आज़माइशों और ज़ुल्मों का दौर शुरू हुआ था। इस पत्री के ज़रिए उसने उनकी हौसला-अफज़ाई की। और यह पत्री आज उन सभी के लिए बहुत ही बेशकीमती है, जो ऐसी ही आज़माइशों का सामना कर रहे हैं। गौर कीजिए कि पतरस किस तरह इब्रानी शास्त्र की तरफ ध्यान खींचता है। वह यहोवा के इन शब्दों का हवाला देता है: “पवित्र बनो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।” (1 पत. 1:16; लैव्य. 11:44) पत्री के एक दूसरे हिस्से में वह पवित्र शास्त्र की दूसरी आयतों से ढेरों हवाले देता है। वह बताता है कि किस तरह मसीही कलीसिया, जीवते पत्थरों से बना आत्मिक घर है, जिसकी नींव यीशु मसीह है। लेकिन इस आत्मिक घर का क्या मकसद है? पतरस जवाब देता है: “तुम एक चुना हुआ वंश, राजकीय याजकों का समाज, एक पवित्र प्रजा, और परमेश्वर की निज सम्पत्ति हो, जिस से तुम उसके महान् गुणों को प्रकट करो जिसने तुम्हें अंधकार से अपनी अद्भुत ज्योति में बुलाया है।” (NHT) (1 पत. 2:4-10; निर्ग. 19:5, 6; भज. 118:22; यशा. 8:14; 28:16; 43:21; होशे 1:10; 2:23) “राजकीय याजकों का समाज” परमेश्वर के पवित्र लोगों से बना है। पतरस के मुताबिक इन्हीं से राज्य का वादा किया गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें “मसीह में अपनी अनन्त महिमा के लिए बुलाया” गया है और उन्हें “अविनाशी और निर्मल, और अजर मीरास,” कभी ‘न मुरझानेवाला मुकुट’ दिया जाएगा। इस वजह से उन्हें आनंद मनाते रहने का बढ़ावा दिया गया है, ताकि जब ‘मसीह अपनी महिमा में प्रगट होगा, उस समय भी वे आनन्दित और मगन होंगे।’—1 पत. 1:4; 4:13; 5:4, 10.
[फुटनोट]
a मैक्लिंटॉक और स्ट्रॉन्ग की साइक्लोपीडिया, सन् 1981 में दोबारा छापी गयी, आठवाँ भाग, पेज 15.
b नया बाइबल शब्दकोश (अँग्रेज़ी), दूसरा संस्करण, सन् 1986, जे. डी. डगलस द्वारा संपादित, पेज 918.
c जरूसलेम, सन् 1971, भाग 15, कॉलम 755.