झूठे उपदेशकों से सावधान!
“तुम में भी झूठे उपदेशक होंगे”—२ पतरस २:१.
१. यहूदा किसके बारे में लिखना चाहता था और उसने अपना विषय क्यों बदला?
क्या ही अचरज की बात है! प्रथम-शताब्दी मसीही कलीसिया में झूठे उपदेशक! (मत्ती ७:१५; प्रेरितों २०:२९, ३०) यीशु का सौतेला भाई यहूदा इसके बारे में जानता था। उसने कहा कि वह संगी विश्वासियों को “उस उद्धार के विषय में लिखने में अत्यन्त परिश्रम से प्रयत्न कर रहा था, जिस में हम सब सहभागी हैं,” परंतु उसने समझाया: “मैं ने तुम्हें यह समझाना आवश्यक जाना कि . . . विश्वास के लिये पूरा यत्न करो।” यहूदा ने अपने विषय को क्यों बदला? क्योंकि, वह कहता है, “कितने ऐसे मनुष्य चुपके से हम में [कलीसिया में] आ मिले हैं, . . . और हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं।”—यहूदा ३, ४.
२. दूसरा पतरस अध्याय २ और यहूदा इतने मिलते-जुलते क्यों हैं?
२ ऐसा लगता है कि पतरस द्वारा अपनी दूसरी पत्री के लिखने के कुछ ही समय बाद यहूदा ने लिखा। यहूदा निःसंदेह इस पत्री से वाकिफ़ था। निश्चित ही उसने अपनी प्रभावशाली प्रोत्साहक पत्री में अनेक समान विचार प्रकट किए। इसीलिए जब हम २ पतरस अध्याय २ की जाँच करेंगे तो हम देखेंगे कि यह यहूदा की पत्री से कितना मिलता-जुलता है।
झूठे उपदेशों के परिणाम
३. बीते समय में क्या हुआ था जो पतरस बताता है कि फिर होगा?
३ अपने भाइयों से भविष्यवाणी की ओर ध्यान देने का आग्रह करने के बाद पतरस कहता है: “जिस प्रकार उन लोगों में [प्राचीन इस्राएल में] झूठे भविष्यद्वक्ता थे उसी प्रकार तुम में भी झूठे उपदेशक होंगे।” (२ पतरस १:१४–२:१) प्राचीन समय में परमेश्वर के लोगों को सच्ची भविष्यवाणी सुनाई गई थी, लेकिन उन्हें झूठे भविष्यवक्ताओं के भ्रष्ट उपदेशों से भी जूझना पड़ा। (यिर्मयाह ६:१३, १४; २८:१-३, १५) यिर्मयाह ने लिखा, “परन्तु यरूशलेम के नबियों में मैं ने ऐसे काम देखे हैं, जिन से रोंगटे खड़े हो जाते हैं, अर्थात् व्यभिचार और पाखण्ड।”—यिर्मयाह २३:१४.
४. झूठे उपदेशक विनाश के योग्य क्यों हैं?
४ मसीही कलीसिया में झूठे उपदेशक जो करेंगे उसका वर्णन करते हुए पतरस कहता है: “[वे] नाश करने वाले पाखण्ड का उद्घाटन छिप छिपकर करेंगे और उस स्वामी [यीशु मसीह] का जिस ने उन्हें मोल लिया है इन्कार करेंगे और अपने आप को शीघ्र विनाश में डाल देंगे।” (२ पतरस २:१; यहूदा ४) ऐसे प्रथम-शताब्दी पाखण्ड का अंतिम परिणाम मसीहीजगत है जिस तरह हम उसे आज पाते हैं। पतरस बताता है कि क्यों झूठे उपदेशक पूर्ण रीति से विनाश के योग्य हैं: “बहुतेरे उन की नाईं लुचपन करेंगे, जिन के कारण सत्य के मार्ग की निन्दा की जाएगी।”—२ पतरस २:२.
५. झूठे उपदेशक किसके लिए ज़िम्मेदार थे?
५ ज़रा सोचिए! झूठे उपदेशकों के प्रभाव की वज़ह से कलीसियाओं में अनेक लोग लुचपन करेंगे। “लुचपन” अनुवादित यूनानी शब्द कामुकता, अनियंत्रण, अशिष्टता, अनुशासनहीनता और निर्लज्ज व्यवहार सूचित करता है। पतरस ने पहले कहा था कि मसीही ‘उस सड़ाहट से छूटे हैं जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है।’ (२ पतरस १:४) लेकिन कुछ लोग उसी सड़ाहट की ओर लौटनेवाले थे और कलीसियाओं में झूठे उपदेशक इसके लिए मुख्यतः ज़िम्मेदार होते! इस प्रकार सत्य के मार्ग की निंदा की जाएगी। कितनी दुःख की बात! यह निश्चित ही एक ऐसी बात है जिस पर आज सभी यहोवा के साक्षियों को ख़ास ध्यान देना चाहिए। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम अपने चालचलन से या तो यहोवा परमेश्वर और उसके लोगों को महिमा ला सकते हैं या उन पर कीचड़ उछाल सकते हैं।—नीतिवचन २७:११; रोमियों २:२४.
झूठी शिक्षाओं को अंदर लाना
६. झूठे उपदेशकों को क्या प्रेरित करता है और वे जो चाहते हैं, उसे वे कैसे पाने की कोशिश करते हैं?
६ झूठे उपदेशक अपने भ्रष्ट विचार जिस तरह अंदर लाते हैं, उसे ध्यान में रखना हमारे लिए बुद्धिमानी की बात होगी। पतरस पहले कहता है कि वे ऐसा चुप-चाप, या अस्पष्ट, चालाक तरीक़े से करते हैं। वह आगे कहता है: “वे लोभ के लिये बातें गढ़कर तुम्हें अपने लाभ का कारण बनाएंगे।” झूठे उपदेशक स्वार्थी अभिलाषाओं से प्रेरित होते हैं, जैसे कि द यरूशलेम बाइबल (अंग्रेज़ी) के इस अनुवाद में ज़ोर दिया गया है: “वे कपटी बातचीत से तुम्हें अपने लिए मोल लेने की उत्साहपूर्वक कोशिश करेंगे।” उसी प्रकार जेम्स् मोफॆट का अनुवाद (अंग्रेज़ी) यहाँ कहता है: “अपनी कामुकता में वे चालाक तर्कों से तुम्हारा अनुचित लाभ उठाएँगे।” (२ पतरस २:१, ३) झूठे उपदेशकों के कथन आध्यात्मिक रूप से अचेत व्यक्ति को शायद ठीक लगे, लेकिन उनके शब्द ध्यानपूर्वक चुने गए हैं ताकि वे लोगों को ‘मोल ले’ सकें और लुभानेवाले के स्वार्थी उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उन्हें प्रलोभित कर सकें।
७. प्रथम शताब्दी में कौन-सा तत्त्वज्ञान प्रचलित हुआ?
७ निःसंदेह प्रथम-शताब्दी के झूठे उपदेशकों पर तब की प्रचलित सांसारिक विचारधारा का प्रभाव था। पतरस के लिखने के समय तक, ग्नोस्टिकवाद नामक एक तत्त्वज्ञान प्रचलित हो रहा था। ग्नोस्टिकवादी विश्वास करते थे कि सब भौतिक वस्तुएँ बुरी हैं और केवल आत्मिकता से संबंध रखनेवाली बातें ही भली हैं। अतः, उनमें से कुछ लोगों ने कहा कि एक व्यक्ति अपनी शारीरिक देह से जो भी करे उससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। उन्होंने तर्क किया कि समय आने पर मनुष्य के पास यह शरीर रहेगा ही नहीं। इसलिए उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि शारीरिक पाप—जिनमें लैंगिक पाप भी शामिल है—वास्तव में महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। ऐसा लगता है कि इस प्रकार के विचार मसीही होने का दावा करनेवाले कुछ लोगों पर भी प्रभाव डालने लगे थे।
८, ९. (क) कौन-से विकृत तर्क ने कुछ प्रारंभिक मसीहियों को प्रभावित किया? (ख) यहूदा के अनुसार, कलीसियाओं में कुछ लोग क्या कर रहे थे?
८ एक बाइबल विद्वान ने कहा कि “कलीसिया में ऐसे लोग थे जिन्होंने ईश्वरीय कृपा [या “अनुग्रह”] के धर्मसिद्धांत को तोड़ा-मरोड़ा।” (इफिसियों १:५-७) उनके अनुसार कुछ लोग इस प्रकार तर्क करते थे: “क्या आप कहते हैं कि परमेश्वर का [अनुग्रह] सभी पापों को ढाँपने के लिए पर्याप्त है? . . . तो फिर चलो हम पाप करते रहें, क्योंकि परमेश्वर का [अनुग्रह] सभी पापों को मिटा सकता है। वास्तव में, जितना ज़्यादा हम पाप करेंगे उतना ज़्यादा परमेश्वर के [अनुग्रह] को कार्य करने का मौक़ा मिलेगा।” क्या आपने पहले कभी इससे ज़्यादा विकृत तर्क सुना है?
९ प्रेरित पौलुस ने परमेश्वर की दया के विषय में ग़लत विचारों का विरोध किया जब उसने पूछा: “क्या हम पाप करते रहें, कि अनुग्रह बहुत हो?” उसने यह भी पूछा: “क्या हम इसलिये पाप करें, कि हम व्यवस्था के आधीन नहीं बरन अनुग्रह के आधीन हैं?” हर सवाल के जवाब में पौलुस ज़ोर देकर कहता है: “कदापि नहीं!” (रोमियों ६:१, २, १५) स्पष्टतः, जैसे यहूदा बताता है, कुछ लोग “हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल” रहे थे। लेकिन पतरस कहता है कि ऐसे लोगों “का विनाश ऊंघता नहीं।”—यहूदा ४; २ पतरस २:३.
चितानेवाले उदाहरण
१०, ११. पतरस कौन-से तीन चितानेवाले उदाहरण प्रदान करता है?
१० इस बात पर ज़ोर देने के लिए कि परमेश्वर जान-बूझकर ग़लती करनेवालों के विरुद्ध कार्यवाही करेगा, पतरस शास्त्रवचनों से तीन चितानेवाले उदाहरण प्रदान करता है। पहले, वह लिखता है: “परमेश्वर ने उन स्वर्गदूतों को जिन्हों ने पाप किया नहीं छोड़ा।” यहूदा कहता है कि इन्होंने “अपने पद को स्थिर न रखा बरन अपने निज निवास को,” जो स्वर्ग में था, “छोड़ दिया।” वे जल-प्रलय से पहले पृथ्वी पर आए और उन्होंने शारीरिक देह धारण की ताकि मनुष्य की पुत्रियों के साथ लैंगिक संबंध रख सकें। उनके अनुचित, अप्राकृतिक व्यवहार के लिए सज़ा के रूप में उन्हें “टारटरस में” फेंक दिया गया, या जैसे यहूदा का वृत्तांत बताता है, उन्हें “उस भीषण दिन के न्याय के लिये अन्धकार में जो सदा काल के लिये है बन्धनों में रखा है।”—२ पतरस २:४, NW; यहूदा ६; उत्पत्ति ६:१-३.
११ फिर पतरस नूह के दिन के लोगों का ज़िक्र करता है। (उत्पत्ति ७:१७-२४) वह कहता है कि नूह के दिनों में परमेश्वर ने “प्रथम युग के संसार को भी न छोड़ा, बरन भक्तिहीन संसार पर महा जल-प्रलय” भेजा। अंततः पतरस लिखता है कि “सदोम और अमोराह के नगरों को . . . भस्म करके राख में मिला” देने के द्वारा परमेश्वर ने “आनेवाले [बातों का] भक्तिहीन लोगों की शिक्षा के लिये एक दृष्टान्त” दिया। यहूदा अतिरिक्त जानकारी प्रदान करता है कि ये व्यक्ति “व्यभिचारी हो गए थे और पराये शरीर के पीछे लग गए थे।” (२ पतरस २:५, ६; यहूदा ७) पुरुषों ने न केवल स्त्रियों के साथ अनैतिक संबंध रखा परंतु दूसरे पुरुषों के शरीर के लिए भी, संभवतः जानवरों के शरीरों के लिए भी ललायित हुए।—उत्पत्ति १९:४, ५; लैव्यव्यवस्था १८:२२-२५.
१२. पतरस के अनुसार धर्मी चालचलन का प्रतिफल कैसे दिया जाता है?
१२ लेकिन साथ ही पतरस यह भी बताता है कि यहोवा उन लोगों का प्रतिफलदाता है जो वफ़ादारी से उसकी सेवा करते हैं। उदाहरण के लिए वह बताता है कि किस प्रकार परमेश्वर ने “धर्म के प्रचारक नूह समेत आठ व्यक्तियों को बचा लिया” जब वह जल-प्रलय लाया। सदोम के समय यहोवा द्वारा “धर्मी लूत” के बचाए जाने के बारे में भी वह बताता है और अंत में कहता है: “प्रभु भक्तों को परीक्षा में से निकाल लेना और अधर्मियों को न्याय के दिन तक दण्ड की दशा में रखना भी जानता है।”—२ पतरस २:५, ७-९.
दंड के योग्य कार्य
१३. कौन ख़ास तौर पर न्याय के लिए रखे गए हैं और वे प्रतीयमानतः क्या सपने देखते हैं?
१३ पतरस उन लोगों के बारे में बताता है जो ख़ास तौर पर परमेश्वर के न्याय के लिए रखे गए हैं, अर्थात् वे “जो अशुद्ध अभिलाषाओं के पीछे शरीर के अनुसार चलते, और प्रभुता को तुच्छ जानते हैं।” हम पतरस के रोष को लगभग महसूस कर सकते हैं जब वह कहता है: “वे ढीठ, और हठी हैं, और ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहने से नहीं डरते।” यहूदा लिखता है कि “ये स्वप्नदर्शी . . . अपने अपने शरीर को अशुद्ध करते, . . . और ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहते हैं।” (२ पतरस २:१०; यहूदा ८) वे शायद अशुद्ध लैंगिक स्वप्नों में डूबे रहते हों जो उनकी अनैतिक वासना की तृप्ति के लिए कार्य करने को उन्हें उकसाएँ। लेकिन वे किस अर्थ में “प्रभुता को तुच्छ जानते हैं” और “ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहते हैं?”
१४. झूठे उपदेशक किस अर्थ में “प्रभुता को तुच्छ जानते हैं” और “ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहते हैं?”
१४ ईश्वरीय रूप से नियुक्त अधिकार को तुच्छ जानने से वे ऐसा करते हैं। मसीही प्राचीन महान यहोवा परमेश्वर और उसके पुत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं और परिणामस्वरूप, उनको कुछ महिमा दी गई है। यह सच है कि वे ग़लतियाँ करते हैं, जैसे पतरस ने भी की, लेकिन शास्त्रवचन कलीसिया के सदस्यों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे ऐसे ऊँचे पदवाले व्यक्तियों के अधीन रहें। (इब्रानियों १३:१७) उनकी कमियाँ उनके बारे में बुरा-भला कहने का कारण नहीं हैं। पतरस कहता है कि स्वर्गदूत “उन्हें [झूठे उपदेशकों को] बुरा भला कहकर दोष नहीं लगाते,” हालाँकि वे बिलकुल इसी के लायक़ हैं। पतरस आगे कहता है: “पर ये लोग निर्बुद्धि पशुओं ही के तुल्य हैं, जो पकड़े जाने और नाश होने के लिये उत्पन्न हुए हैं; और जिन बातों को जानते ही नहीं, उन के विषय में औरों को बुरा भला कहते हैं, वे अपनी सड़ाहट में आप ही सड़ जाएंगे।”—२ पतरस २:१०-१३.
‘जब तुम्हारे साथ भोज में शामिल होते हैं’
१५. झूठे उपदेशकों के तरीक़े कौन-से हैं और वे कहाँ लोगों को प्रलोभित करने की कोशिश करते हैं?
१५ हालाँकि इन भ्रष्ट लोगों को “दिन दोपहर सुख-विलास करना भला लगता है” वे “कलंक और दोष हैं,” वे धूर्त भी हैं। वे “छिप छिपकर” कार्य करते हैं और “बातें गढ़कर” कहते हैं, जैसे पतरस ने पहले बताया। (२ पतरस २:१, ३, १३) अतः परमेश्वर के नैतिक स्तरों को थामे रहने के लिए की गई प्राचीनों की कोशिशों का वे शायद सरेआम विरोध न करें या वे शायद खुलेआम अपनी नैतिक लालसा को पूरा करने की कोशिश न करें। इसके बजाय, पतरस कहता है कि “जब ये तुम्हारे साथ भोज में शामिल होते हैं तो छल करके [अपनी भ्रमात्मक शिक्षाओं में] रंगरेलियां मनाते हैं।” (NHT) और यहूदा लिखता हैं: “ये तुम्हारी प्रेम सभाओं में . . . समुद्र में छिपी हुई चट्टान सरीखे हैं।” (यहूदा १२) जी हाँ, जिस प्रकार पानी के नीचे छिपी नुकीली चट्टानें नौके का निचला भाग काट सकती हैं और अचेत नाविकों को डूबा सकती हैं उसी प्रकार झूठे उपदेशक अचेत लोगों को भ्रष्ट कर रहे थे जिनसे वे कपटी रीति से ‘प्रेम भोजों’ में प्यार का नाटक करते थे।
१६. (क) “प्रेम भोज” क्या थे, और अनैतिक लोग आज शायद किन तुलनात्मक परिस्थितियों में कार्य करें? (ख) झूठे उपदेशक किन पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं, सो ऐसे लोगों को क्या करना चाहिए?
१६ ये “प्रेम भोज” स्पष्टतः अनौपचारिक अवसर थे, जब प्रथम-शताब्दी मसीही भोजन और संगति का आनंद उठाने के लिए इकट्ठे होते थे। आज यहोवा के साक्षी भी कभी-कभी अनौपचारिक तौर पर इकट्ठे होते हैं, संभवतः विवाह दावतों में, पिकनिकों में, या कभी संगति करते वक़्त। शिकारों को प्रलोभित करने के लिए भ्रष्ट लोग ऐसे अवसरों का कैसे फ़ायदा उठा सकते हैं? पतरस लिखता है: “उन की आंखों में व्यभिचारिणी बसी हुई है, और . . . वे चंचल मनवालों को फुसला लेते हैं।” वे अपने मन को, जिसे “लोभ करने का अभ्यास हो गया है,” आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर व्यक्तियों पर केंद्रित करते हैं जो सत्य को पूर्ण रीति से अपनाने से चूक गए हैं। सो पतरस के दिनों में जो हुआ उससे चेतावनी प्राप्त कीजिए और सावधान रहिए! किसी भी अशुद्ध इरादे रखनेवाले का विरोध कीजिए और अनैतिक इरादे रखनेवाले किसी भी व्यक्ति के आकर्षण या शारीरिक सौंदर्य के बहकावे में न आइए!—२ पतरस २:१४.
‘बिलाम का मार्ग’
१७. ‘बिलाम का मार्ग’ क्या था और इसका २४,००० इस्राएलियों पर क्या प्रभाव पड़ा?
१७ इन ‘सन्तापी’ लोगों ने कुछ समय से सत्य को जाना है। वे शायद कलीसिया में अब भी सक्रिय प्रतीत हों। लेकिन पतरस कहता है: “वे सीधे मार्ग को छोड़कर भटक गए हैं, और बओर के पुत्र बिलाम के मार्ग पर हो लिए हैं; जिस ने अधर्म की मजदूरी को प्रिय जाना।” (२ पतरस २:१४, १५) भविष्यवक्ता बिलाम का मार्ग था अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए अनैतिक प्रलोभन के मार्ग का सुझाव देना। उसने मोआबी राजा बालाक से कहा कि यदि इस्राएलियों को अनैतिक कार्य करने के लिए प्रलोभित किया जाता है तो परमेश्वर उनको शाप देगा। परिणामस्वरूप, परमेश्वर के अनेक लोग मोआबी स्त्रियों के प्रलोभन में आ गए और उनके अनैतिक चालचलन के लिए २४,००० लोग मार डाले गए।—गिनती २५:१-९; ३१:१५, १६; प्रकाशितवाक्य २:१४.
१८. बिलाम अपने कार्य में कितना लगा हुआ था और झूठे उपदेशकों के लिए उसका परिणाम क्या सूचित करता है?
१८ पतरस बताता है कि बिलाम को तब रोका गया था जब उसकी गदही ने उससे बात की, लेकिन बिलाम “अधर्म की मजदूरी को प्रिय” जानता था, यहाँ तक कि जब ऐसा हुआ तब भी वह अपने “बावलेपन” से न हटा। (२ पतरस २:१५, १६) कितना दुष्ट! बिलाम-समान लोगों पर हाय जो परमेश्वर के लोगों को अनैतिक कार्यों में शामिल होने के लिए प्रलोभित करने के द्वारा भ्रष्ट करने की कोशिश करते हैं! बिलाम अपनी बुराई की वज़ह से मर गया, और यह एक पूर्वोदाहरण है कि उसके मार्ग पर चलनेवाले सभी लोगों का क्या होगा।—गिनती ३१:८.
उनके शैतानी प्रलोभन
१९, २०. (क) बिलाम-समान लोगों की तुलना किसके साथ की गयी है और क्यों? (ख) वे किन्हें प्रलोभित करते हैं और कैसे? (ग) हम क्यों कह सकते हैं कि उनके प्रलोभन शैतानी हैं और हम स्वयं अपना और दूसरों का उनसे कैसे बचाव कर सकते हैं?
१९ बिलाम-समान लोगों का वर्णन करते हुए पतरस लिखता है: “ये लोग अन्धे कूंए, और आन्धी के उड़ाए हुए बादल हैं।” मरूभूमी में एक प्यासे यात्री के लिए एक सूखे कुए का अर्थ मृत्यु हो सकता है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि इनके समान लोगों के लिए “अनन्त अन्धकार ठहराया गया है!” पतरस आगे कहता है, “वे व्यर्थ घमण्ड की बातें कर करके लुचपन के कामों के द्वारा, उन लोगों को शारीरिक अभिलाषाओं में फंसा लेते हैं, जो भटके हुओं में से अभी निकल ही रहे हैं।” पतरस कहता है कि वे “स्वतंत्र होने की प्रतिज्ञा” देने के द्वारा कम अनुभवी लोगों को प्रलोभित करते हैं, “पर आप ही सड़ाहट के दास हैं।”—२ पतरस २:१७-१९; गलतियों ५:१३.
२० ऐसे भ्रष्ट उपदेशकों के प्रलोभन शैतानी होते हैं। उदाहरण के लिए, वे शायद कहेंगे: ‘परमेश्वर जानता है कि हम कमज़ोर हैं और कामुक हैं। सो यदि हम अपने आपको ख़ुश करते हैं और अपनी लैंगिक अभिलाषाओं को तृप्त करते हैं, तो परमेश्वर दया दिखाएगा। यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं, तो वह हमें क्षमा करेगा, बिलकुल वैसे ही जैसे उसने तब किया जब हम पहले-पहल सच्चाई में आए।’ याद कीजिए कि इब्लीस ने हव्वा के साथ भी कुछ ऐसा ही रवैया अपनाया था। उसने उसे वचन दिया कि वह दंड पाए बिना पाप कर सकती है। हव्वा के मामले में उसने दावा किया कि परमेश्वर के प्रति पाप करने से उसे प्रबोधन और स्वतंत्रता प्राप्त होगी। (उत्पत्ति ३:४, ५) यदि हम ऐसे एक भ्रष्ट व्यक्ति का सामना करते हैं जो कलीसिया के साथ संगति कर रहा है, तो स्वयं अपनी और दूसरों की भी रक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है। ऐसे व्यक्तियों के बारे में मसीही कलीसिया के ज़िम्मेदार व्यक्तियों को बताने से हम ऐसा कर सकते हैं।—लैव्यव्यवस्था ५:१.
यथार्थ ज्ञान की वज़ह से सुरक्षित
२१-२३. (क) यथार्थ ज्ञान को लागू करने से चूकने के क्या परिणाम हैं? (ख) पतरस और कौन-सी समस्या के बारे में चर्चा करता है जिसके बारे में आगे विचार किया जाएगा?
२१ पतरस अपनी पत्री के इस भाग की समाप्ति में उस ज्ञान को लागू करने से चूकने के परिणामों के बारे में बताता है जो उसने पहले बताया कि “जीवन और भक्ति” के लिए अनिवार्य है। (२ पतरस १:२, ३, ८) वह लिखता है: “जब वे प्रभु और उद्धारकर्त्ता यीशु मसीह की पहचान [यथार्थ ज्ञान] के द्वारा संसार की नाना प्रकार की अशुद्धता से बच निकले, और फिर उन में फंसकर हार गए, तो उन की पिछली दशा पहिली से भी बुरी हो गई है।” (२ पतरस २:२०) कितने दुःख की बात है! पतरस के दिनों में ऐसे लोगों ने कुछ क्षणों के लैंगिक सुख के लिए अमर स्वर्गीय जीवन की बहुमूल्य आशा को ठुकराया था।
२२ सो पतरस कहता है: “धर्म के मार्ग का न जानना ही उन के लिये इस से भला होता, कि उसे जानकर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई थी। उन पर यह कहावत ठीक बैठती है। कि कुत्ता अपनी छांट की ओर और धोई हुई सूअरनी कीचड़ में लोटने के लिये फिर चली जाती है।”—२ पतरस २:२१, २२; नीतिवचन २६:११.
२३ प्रतीयमानतः प्रारंभिक मसीहियों पर एक और ऐसी समस्या का असर होने लगा था, जो आज के कुछ मसीहियों को भी प्रभावित करती है। ऐसा लगता है कि उस समय कुछ लोग मसीह की प्रतिज्ञात उपस्थिति के न आने के आभास के बारे में शिकायत कर रहे थे। आइए देखें पतरस इस बात से कैसे निपटता है।
क्या आपको याद है?
◻ पतरस किन तीन चितानेवाले उदाहरणों के बारे में बताता है?
◻ झूठे उपदेशक “प्रभुता को” कैसे “तुच्छ जानते हैं?”
◻ ‘बिलाम का मार्ग’ क्या है और उसका पालन करनेवाले दूसरों को शायद कैसे प्रलोभित करने की कोशिश करें?
◻ यथार्थ ज्ञान को लागू करने से चूकने के क्या परिणाम हैं?
[पेज 16, 17 पर तसवीर]
बिलाम एक चितानेवाला उदाहरण है