यहोवा दोषी नहीं है
“जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।”—भजन १०३:१३, १४.
१, २. इब्राहीम कौन था, और किस प्रकार उसका भतीजा लूत सदोम के दुष्ट शहर में जा बसा?
यहोवा उन दुःख-तकलीफ़ों के लिए ज़िम्मेदार नहीं है जो शायद हम अपनी ग़लतियों के कारण अनुभव करें। इस सम्बन्ध में विचार कीजिए कि कुछ ३,९०० साल पहले क्या हुआ था। परमेश्वर का मित्र इब्राहीम (अब्राम) और उसका भतीजा लूत बहुत समृद्ध हो गए थे। (याकूब २:२३) वास्तव में, उनकी सम्पत्ति और पशुधन इतने ज़्यादा थे कि “उस देश में उन दोनों की समाई न हो सकी कि वे इकट्ठे रहें।” इसके अलावा, दोनों पुरुषों के चरवाहों के बीच झगड़ा हो गया। (उत्पत्ति १३:५-७) इसके बारे में क्या किया जा सकता था?
२ झगड़े को समाप्त करने के लिए, इब्राहीम ने सुझाव दिया कि अलग हो जाएं, और उसने लूत को पहला चुनाव करने दिया। जबकि इब्राहीम उम्र में बड़ा था और यह उचित था कि उसका भतीजा उसे सबसे बढ़िया क्षेत्र लेने दे, लूत ने सबसे बढ़िया क्षेत्र चुना—यर्दन नदी के पास सिंची हुई सारी तराई। बाहरी रूप भ्रामक थे, क्योंकि क़रीब ही सदोम और अमोरा के नैतिक रूप से पतित शहर थे। अन्त में लूत और उसका परिवार सदोम में बस गए, और इससे वे आध्यात्मिक संकट में पड़ गए। इसके अलावा, जब राजा कदोर्लाओमेर और उसके मित्र राष्ट्रों ने सदोम के शासक को पराजित किया तो उन्हें बन्धुआ बना लिया गया। इब्राहीम और उसके आदमियों ने उन्हें बचाया, लेकिन लूत और उसका परिवार वापस सदोम चले गए।—उत्पत्ति १३:८-१३; १४:४-१६.
३, ४. जब परमेश्वर ने सदोम और अमोरा का नाश किया तो लूत और उसके परिवार के सदस्यों का क्या हुआ?
३ सदोम और अमोरा की कामविकृति और नैतिक भ्रष्टता के कारण, यहोवा ने उन शहरों को नाश करने का निर्णय लिया। उसने दयालुता से दो स्वर्गदूतों को भेजा जो लूत, उसकी पत्नी, और उनकी दो बेटियों को सदोम से बाहर ले आए। उन्हें पीछे नहीं देखना था, लेकिन लूत की पत्नी ने शायद पीछे छोड़ी भौतिक चीज़ों की लालसा में, ऐसा किया। उसी समय, वह नमक का खम्भा बन गई।—उत्पत्ति १९:१-२६.
४ लूत और उसकी बेटियों ने कितने नुकसान उठाए! लड़कियों को उन पुरुषों को पीछे छोड़ना पड़ा जिनसे वे विवाह करनेवाली थीं। लूत अब अपनी पत्नी और अपनी भौतिक सम्पत्ति के बिना था। वास्तव में, अन्त में उसकी नौबत यह हो गयी कि उसे अपनी बेटियों के साथ गुफ़ा में रहना पड़ा। (उत्पत्ति १९:३०-३८) जो उसे बहुत अच्छा दिखायी दिया, ठीक उसका विपरीत निकला। जबकि स्पष्ट है कि उसने कुछ गंभीर ग़लतियाँ की थीं, उसे बाद में “धर्मी लूत” कहा गया। (२ पतरस २:७, ८) और निश्चित ही लूत की ग़लतियों के लिए यहोवा दोषी नहीं था।
“भूलचूक को कौन समझ सकता है?”
५. भूलचूक और ढिठाई के विषय में दाऊद ने कैसा महसूस किया?
५ अपरिपूर्ण और पापी होने के नाते, हम सब भूलचूक करते हैं। (रोमियों ५:१२; याकूब ३:२) लूत की तरह, हम बाहरी रूप के बहकावे में आ सकते हैं और फ़ैसला करने में ग़लती कर सकते हैं। इसलिए, भजनहार दाऊद ने निवेदन किया: “भूलचूक को कौन समझ सकता है? मेरे गुप्त पापों से तू मुझे पवित्र कर। तू अपने दास को ढिठाई के पापों से भी बचाए रख; वह मुझ पर प्रभुता न पाएं! तब मैं सिद्ध हो जाऊंगा, और बड़े अपराधों से बचा रहूंगा।” (भजन १९:१२, १३) दाऊद जानता था कि वह ऐसे पाप कर सकता था जिनके बारे में उसे पता भी न हो। इसलिए, उसने उन पापों की क्षमा मांगी जो उससे भी छिपे हो सकते थे। जब उसने गंभीर भूल की, क्योंकि उसके अपरिपूर्ण शरीर ने उसे ग़लत मार्ग लेने को उकसाया, तो उसे यहोवा की सहायता की बहुत इच्छा हुई। वह चाहता था कि परमेश्वर उसे ढिठाई के कामों से रोके। दाऊद नहीं चाहता था कि ढिठाई उसकी प्रबल मनोवृति बने। इसके बजाय, उसकी इच्छा थी कि वह यहोवा परमेश्वर के प्रति अपनी भक्ति में पूर्ण हो जाए।
६. भजन १०३:१०-१४ से क्या सांत्वना ली जा सकती है?
६ यहोवा के वर्तमान-दिन के समर्पित सेवकों के रूप में, हम भी अपरिपूर्ण हैं और इसलिए भूलचूक करते हैं। उदाहरण के लिए, लूत की तरह, हम अपने निवास-स्थान के सम्बन्ध में बुरा चुनाव कर सकते हैं। शायद हम परमेश्वर के प्रति अपनी पवित्र सेवा विस्तृत करने के अवसर को निकल जाने देते हैं। जबकि यहोवा ऐसी भूलों को देखता है, वह उन्हें जानता है जिनके हृदय धार्मिकता की तरफ़ प्रवृत्त हैं। यदि हम गंभीर पाप करते भी हैं लेकिन पश्चात्ताप करते हैं, तो यहोवा क्षमा और सहायता देता है और हमें धर्मी व्यक्तियों के रूप में ही देखता है। “उसने हमारे पापों के अनुसार हम से व्यवहार नहीं किया, और न हमारे अधर्म के कामों के अनुसार हम को बदला दिया है,” दाऊद ने घोषित किया। “जैसे आकाश पृथ्वी के ऊपर ऊंचा है, वैसे ही उसकी करुणा उसके डरवैयों के ऊपर प्रबल है। उदयाचल अस्ताचल से जितनी दूर है, उस ने हमारे अपराधों को हम से उतनी दूर कर दिया है। जैसे पिता अपने बालकों पर दया करता है, वैसे ही यहोवा अपने डरवैयों पर दया करता है। क्योंकि वह हमारी सृष्टि जानता है; और उसको स्मरण रहता है कि मनुष्य मिट्टी ही हैं।” (भजन १०३:१०-१४) हमारा दयालू स्वर्गीय पिता हमें अपनी ग़लतियों को सुधारने में भी समर्थ बना सकता है या हमें उसकी स्तुति करने के लिए हमारी पवित्र सेवा को विस्तृत करने का दूसरा अवसर दे सकता है।
परमेश्वर को दोषी ठहराने की ग़लती
७. हम कष्ट क्यों उठाते हैं?
७ जब मामले बिगड़ जाते हैं, तो जो हुआ है उसके लिए किसी व्यक्ति या किसी चीज़ को दोषी ठहराना मानव प्रवृति है। कई तो परमेश्वर तक को दोषी ठहराते हैं। लेकिन यहोवा लोगों पर दुःख-तकलीफ़ें नहीं लाता। वह अच्छी, न कि हानिकर चीज़ें करता है। क्यों, “वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है!” (मत्ती ५:४५) हमारा कष्ट उठाने का सर्वप्रथम कारण यह है कि हम जिस संसार में रहते हैं वह स्वार्थी सिद्धान्तों पर चलता है और शैतान अर्थात् इब्लीस की शक्ति के वश में है।—१ यूहन्ना ५:१९.
८. जब आदम के लिए मामला बिगड़ गया तो उसने क्या किया?
८ अपनी ग़लतियों के कारण हम पर आयी दुःख-तकलीफ़ों के लिए यहोवा परमेश्वर को दोषी ठहराना मूर्खतापूर्ण और ख़तरनाक है। ऐसा करने की क़ीमत हमारी अपनी जान तक हो सकती है। पहले पुरुष, आदम ने प्राप्त सारी वस्तुओं का श्रेय परमेश्वर को देना चाहिए था। जी हाँ, स्वयं जीवन के लिए और जिन आशिषों का आनन्द वह उद्यानरूपी घर, अदन की वाटिका में ले रहा था उनके लिए उसे परमेश्वर का बहुत आभारी होना चाहिए था। (उत्पत्ति २:७-९) जब मामला बिगड़ गया क्योंकि उसने यहोवा की आज्ञा नहीं मानी और वर्जित फल खा लिया, तब आदम ने क्या किया? आदम ने परमेश्वर से शिकायत की: “जिस स्त्री को तू ने मेरे संग रहने को दिया है उसी ने उस वृक्ष का फल मुझे दिया, और मैं ने खाया।” (उत्पत्ति २:१५-१७; ३:१-१२) निश्चित ही, हमें यहोवा को दोषी नहीं ठहराना चाहिए, जैसे कि आदम ने किया।
९. (क) यदि हम अपने मूर्ख कामों के कारण दुःख-तकलीफ़ों का सामना करते हैं, तो हम किस बात से सांत्वना ले सकते हैं? (ख) नीतिवचन १९:३ के अनुसार, कुछेक ख़ुद अपने पर कठिनाइयां लाने के बाद क्या करते हैं?
९ यदि हम दुःख-तकलीफ़ों का सामना करते हैं क्योंकि हमारे काम मूर्खता के हैं, तो हम इस ज्ञान से सांत्वना पा सकते हैं कि यहोवा हमारी कमज़ोरियों को हम से बेहतर समझता है और हमें हमारी दुर्दशा से निकालेगा यदि हम उसे अनन्य भक्ति दें। हमें प्राप्त ईश्वरीय सहायता का मूल्यांकन करना चाहिए, और हम जो दुरावस्था और कठिनाइयाँ अपने पर लाते हैं उनके लिए परमेश्वर को कभी दोषी नहीं ठहराना चाहिए। इस सम्बन्ध में एक बुद्धिमत्तापूर्ण नीतिवचन कहता है: “मूढ़ता के कारण मनुष्य का मार्ग टेढ़ा होता है, और वह मन ही मन यहोवा से चिढ़ने लगता है।” (नीतिवचन १९:३) दूसरा अनुवाद कहता है: “कुछ लोग अपना विनाश स्वयं अपने मूर्ख कार्यों से करते हैं और फिर प्रभु पर दोष लगाते हैं।” [टुडेस् इंगलिश वर्शन (Today’s English Version)] एक और दूसरा अनुवाद कहता है: “मनुष्य की अज्ञानता उसके कामों को अस्त-व्यस्त करती है और वह यहोवा पर क्रोधित होता है।”—बाइंगटन (Byington).
१०. आदम की मूर्खता ने कैसे उसका “मार्ग टेढ़ा” किया?
१० इस नीतिवचन के सिद्धान्त के अनुसार, आदम ने स्वार्थी रूप से कार्य किया और उसके मूर्ख विचार ने उसका “मार्ग टेढ़ा” कर दिया। उसका हृदय यहोवा से फिर गया, और वह अपने स्वार्थी, स्वतंत्र मार्ग पर चल पड़ा। क्यों, आदम इतना अकृतज्ञ बन गया कि उसने अपने सृष्टिकर्ता पर दोष लगाया और इस प्रकार अपने आप को परम प्रधान का दुश्मन बना लिया! आदम का पाप स्वयं उसके और उसके परिवार के लिए विनाश लाया। इसमें क्या ही चेतावनी है! जो अनचाही परिस्थितियों के लिए यहोवा पर दोष लगाने के लिए प्रवृत्त हैं, वे अपने आप से भलि-भांति पूछ सकते हैं: क्या मैं जिन अच्छी चीज़ों का आनन्द लेता हूँ उनका श्रेय परमेश्वर को देता हूँ? क्या मैं उसकी सृष्टि का एक जीव होने की हैसियत से आभारी हूँ? कहीं ऐसा तो नहीं कि स्वयं मेरी भूलों के कारण मुझ पर दुःख-तकलीफ़ें आयीं हैं? क्या मैं यहोवा के अनुग्रह या सहायता के योग्य हूँ, क्योंकि मैं उसके प्रेरित वचन, बाइबल में दिए मार्गदर्शन पर चलता हूँ?
परमेश्वर के सेवकों के लिए भी एक ख़तरा
११. जहां तक परमेश्वर का सम्बन्ध है, प्रथम-शताब्दी यहूदी धार्मिक नेता किस बात के दोषी थे?
११ सामान्य युग प्रथम शताब्दी के यहूदी धार्मिक नेताओं ने परमेश्वर की सेवा करने का दावा किया लेकिन उसके सत्य के वचन को छोड़ दिया और स्वयं अपनी समझ का सहारा लिया। (मत्ती १५:८, ९) क्योंकि यीशु मसीह ने उनके ग़लत विचारों का पर्दाफ़ाश किया, उन्होंने उसे मार डाला। बाद में, उन्होंने उसके चेलों के विरुद्ध बहुत क्रोध प्रकट किया। (प्रेरितों ७:५४-६०) उन लोगों का मार्ग इतना टेढ़ा था कि वे स्वयं यहोवा के विरुद्ध क्रोधित हो गए।—प्रेरितों ५:३४, ३८, ३९ से तुलना कीजिए.
१२. कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि मसीही कलीसिया से संगति रखनेवाले कुछ व्यक्ति भी अपनी कठिनाइयों के लिए यहोवा को दोषी ठहराने की कोशिश करते हैं?
१२ मसीही कलीसिया में भी कुछ व्यक्तियों ने ख़तरनाक विचार विकसित किए हैं, जिन कठिनाइयों का सामना उन्हें करना पड़ा है उसके लिए परमेश्वर को ज़िम्मेदार ठहराने की कोशिश करते हैं। उदाहरण के लिए, एक कलीसिया में नियुक्त प्राचीनों ने एक जवान विवाहित स्त्री को एक सांसारिक पुरुष के साथ संगति करने के विरुद्ध दयापूर्ण लेकिन दृढ़ शास्त्रीय सलाह देना आवश्यक समझा। एक परिचर्चा के दौरान, उसने परमेश्वर पर दोष लगाया कि उसने उस परीक्षा का विरोध करने के लिए उसकी सहायता नहीं की जो उस पुरुष के साथ लगातार संगति रखने से उस पर आयी। उसने वास्तव में कहा कि वह परमेश्वर से क्रुद्ध थी! शास्त्रीय तर्क और उसकी सहायता करने के लिए बार-बार किए गए प्रयासों का कोई लाभ नहीं हुआ, और एक अनैतिक रास्ता अपनाने के कारण बाद में वह मसीही कलीसिया से निष्कासित की गयी।
१३. कुड़कुड़ाने की मनोवृति से क्यों बचना चाहिए?
१३ कुड़कुड़ाने वाली आत्मा एक व्यक्ति को यहोवा पर दोष लगाने के लिए प्रेरित कर सकती है। “भक्तिहीन” लोग जो प्रथम-शताब्दी कलीसिया में चुपके से आ मिले थे, उनकी भी इस क़िस्म की बुरी आत्मा थी, और इसके साथ-साथ अन्य प्रकार के आध्यात्मिक भ्रष्ट विचार थे। जैसा शिष्य यहूदा ने कहा, ये लोग “हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल डालते हैं, और हमारे अद्वैत स्वामी और प्रभु यीशु मसीह का इन्कार करते हैं।” यहूदा ने यह भी कहा: “ये असंतुष्ट, कुड़कुड़ानेवाले” हैं। (यहूदा ३, ४, १६) यहोवा के निष्ठावान सेवक बुद्धिमानी से प्रार्थना करेंगे कि उनके पास एक मूल्यांकन दिखानेवाली आत्मा हो, न कि कुड़कुड़ानेवाली मनोवृति, जो उनको अन्त में इस हद तक कटु कर सकती है कि वे परमेश्वर में विश्वास खो दें और उसके साथ अपने सम्बन्ध को जोखिम में डाल दें।
१४. यदि संगी मसीही से नाराज़ हो तो एक व्यक्ति कैसी प्रतिक्रिया दिखा सकता है, लेकिन यह उचित मार्ग क्यों नहीं होगा?
१४ आप ऐसा महसूस कर सकते हैं कि यह आपके साथ नहीं होगा। फिर भी, जो मामले हमारी या फिर दूसरों की भूलचूक से बिगड़ जाते हैं, अन्त में हमें परमेश्वर पर दोष लगाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति एक संगी विश्वासी के कुछ कहने या करने से नाराज़ हो सकता है। नाराज़ व्यक्ति—शायद वह जिसने कई सालों तक निष्ठा से यहोवा की सेवा की है—शायद तब कहे: ‘यदि वह व्यक्ति कलीसिया में है, तो मैं सभाओं में उपस्थित नहीं होऊँगा।’ एक व्यक्ति इतना परेशान हो सकता है कि वह अपने हृदय में कहता है: ‘यदि इस प्रकार की चीज़ें होती रहीं, तो मैं कलीसिया का भाग नहीं होना चाहता।’ लेकिन क्या एक मसीही की ऐसी मनोवृति होनी चाहिए? यदि एक दूसरे अपरिपूर्ण इन्सान से नाराज़गी है, तो पूरी कलीसिया के लोगों पर क्यों उतारें, जो परमेश्वर को स्वीकार्य हैं और निष्ठा से उसकी सेवा कर रहे हैं? कोई भी जिसने यहोवा को समर्पण किया है ईश्वरीय इच्छा को पूरा करना क्यों बन्द करे, और इस प्रकार परमेश्वर पर नाराज़गी दिखाए? एक व्यक्ति या कुछ परिस्थितियों के कारण यहोवा के साथ अपने अच्छे सम्बन्ध को नाश करने में कितनी बुद्धिमानी है? निश्चित ही, किसी भी कारण यहोवा परमेश्वर की उपासना को छोड़ना मूर्खता और पापमय होगा।—याकूब ४:१७.
१५, १६. दियुत्रिफेस किस बात का अपराधी था, लेकिन गयुस ने अपना चलन कैसा रखा?
१५ कल्पना कीजिए कि आप उसी कलीसिया में होते जिसमें प्रेममय मसीही गयुस था। वह भेंट करनेवाले संगी उपासकों की—और इसके अलावा परदेशियों की मेहमानदारी “विश्वासी की नाईं करता” था! लेकिन स्पष्ट है कि उसी कलीसिया में, एक घमंडी पुरुष दियुत्रिफेस था। वह यूहन्ना, यीशु मसीह के एक प्रेरित से कुछ भी आदर से स्वीकार नहीं करता था। वास्तव में, दियुत्रिफेस यूहन्ना के विषय में बुरी-बुरी बातें भी बकता था। प्रेरित ने कहा: “इस पर भी सन्तोष न करके आप ही [दियुत्रिफेस] भाइयों को ग्रहण नहीं करता, और उन्हें जो ग्रहण करना चाहते हैं, मना करता है: और मण्डली से निकाल देता है।”—३ यूहन्ना १, ५-१०.
१६ यदि यूहन्ना कलीसिया में आता, तो उसका इरादा था कि दियुत्रिफेस के कामों की, जो वह कर रहा था, सुधि दिलाएगा। इस दौरान, उस कलीसिया में गयुस और दूसरे मेहमानदार मसीहियों ने क्या प्रतिक्रिया दिखायी? ऐसा कोई शास्त्रीय संकेत नहीं है कि उनमें से किसी ने कहा: ‘जब तक दियुत्रिफेस कलीसिया में है, मैं इसका भाग नहीं होना चाहता। आप मुझे सभाओं में नहीं देखेंगे।’ निःसन्देह, गयुस और उसके जैसे दूसरे लोग दृढ़ रहे। उन्होंने किसी चीज़ को उन्हें ईश्वरीय इच्छा पूरी करने से रोकने नहीं दिया, और निश्चित ही वे यहोवा पर क्रोधित नहीं हुए। नहीं, और निश्चित ही, वे शैतान अर्थात् इब्लीस की धूर्त चालों का शिकार नहीं बने, जो अति आनन्दित होता यदि वे यहोवा पर विश्वास छोड़ देते और परमेश्वर पर दोष लगाते।—इफिसियों ६:१०-१८.
यहोवा के विरुद्ध कभी क्रुद्ध न होइए!
१७. यदि हम किसी व्यक्ति या स्थिति से नाराज़ या अप्रसन्न होते हैं, तो हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए?
१७ यदि कलीसिया में कोई व्यक्ति या स्थिति परमेश्वर के एक सेवक को अप्रसन्न या नाराज़ कर भी दे, तो जो नाराज़ हो जाता है असल में अपना ही मार्ग टेढ़ा करता है यदि वह यहोवा के लोगों के साथ संगति करना बन्द कर देता है। ऐसा व्यक्ति अपने ज्ञानेन्द्रिय का उचित प्रयोग नहीं कर रहा होगा। (इब्रानियों ५:१४) सो खराई रखनेवाले की नाईं हर मुश्किल का सामना करने के लिए दृढ़ रहिए। यहोवा परमेश्वर, यीशु मसीह, और मसीही कलीसिया के प्रति निष्ठा बनाए रखिए। (इब्रानियों १०:२४, २५) वह सत्य जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है और कहीं नहीं मिल सकता।
१८. जबकि हम हमेशा ईश्वरीय व्यवहार को नहीं समझ पाते हैं, यहोवा परमेश्वर के सम्बन्ध में हम किस बात पर अश्वस्त हो सकते हैं?
१८ यह भी याद रखिए कि, यहोवा बुरी बातों से कभी किसी की परीक्षा नहीं लेता है। (याकूब १:१३) परमेश्वर, जो प्रेम का साक्षात् रूप है, भला करता है, ख़ासकर उनके लिए जो उससे प्रेम करते हैं। (१ यूहन्ना ४:८) जबकि हम हमेशा ईश्वरीय व्यवहार को नहीं समझते हैं, हम विश्वस्त हो सकते हैं कि यहोवा परमेश्वर अपने सेवकों के लिए जो सबसे उत्तम है उसे करने से नहीं चूकेगा। जैसा कि पतरस ने कहा: “इसलिये परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए। और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।” (१ पतरस ५:६, ७) जी हाँ, यहोवा सचमुच अपने लोगों का ध्यान रखता है।—भजन ९४:१४.
१९, २०. चाहे कभी-कभी हमारी परीक्षाएं हमें हताश भी क्यों न कर दें, तो भी हमें किस प्रकार व्यवहार करना चाहिए?
१९ इसलिए, किसी चीज़ या किसी व्यक्ति से ठोकर न खाइए। जैसा कि भजनहार ने इतनी भली-भांति कहा, “[यहोवा परमेश्वर की] व्यवस्था से प्रीति रखनेवालों को बड़ी शान्ति होती है; और उनको कुछ ठोकर नहीं लगती।” (भजन ११९:१६५) हम सब परीक्षाओं का अनुभव करते हैं, और कभी-कभी ये हमें हताश और उदास कर देती हैं। लेकिन अपने हृदय में कटुता कभी विकसित न होने दीजिए, ख़ासकर यहोवा के विरुद्ध। (नीतिवचन ४:२३) उसकी सहायता के साथ और शास्त्रीय आधार पर, उन समस्याओं को निपटाइए जो आप हल कर सकते हैं और उनको सहन कीजिए जो निरन्तर रहती हैं।—मत्ती १८:१५-१७; इफिसियों ४:२६, २७.
२० अपनी भावनाओं में आकर कभी भी मूर्खतापूर्ण प्रतिक्रिया न दिखाइए, जिससे आपका मार्ग टेढ़ा हो जाए। ऐसे ढंग से बोलिए और काम कीजिए जो परमेश्वर के हृदय को आनन्दित करे। (नीतिवचन २७:११) यहोवा को भक्तिमय प्रार्थना में पुकारिए, यह जानते हुए कि वह सचमुच अपने एक सेवक के रूप में आपकी परवाह करता है और वह आपको उसके लोगों के साथ जीवन के पथ पर बने रहने के लिए आवश्यक समझ देगा। (नीतिवचन ३:५, ६) सबसे बड़ी बात यह है कि, परमेश्वर के विरुद्ध क्रुद्ध न होइये। जब मामले बिगड़ जाते हैं, तो हमेशा याद रखिए कि यहोवा दोषी नहीं है।
आप कैसे उत्तर देंगे?
▫ लूत ने क्या ग़लती की, लेकिन परमेश्वर ने उसे किस दृष्टिकोण से देखा?
▫ दाऊद ने भूलचूक और ढिठाई के विषय में कैसा महसूस किया?
▫ जब मामले बिगड़ जाते हैं, तो हमें परमेश्वर को दोषी क्यों नहीं ठहराना चाहिए?
▫ यहोवा के विरुद्ध क्रुद्ध होने से बचे रहने में क्या चीज़ हमारी सहायता करेगी?
[पेज 22 पर तसवीरें]
इब्राहीम से अलग होते समय, लूत ने अपने निवास-स्थान के सम्बन्ध में एक बुरा चुनाव किया