यहोवा के प्रधान कर्ता, उनके पुत्र का आदर करें
“जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिस ने उसे भेजा है, आदर नहीं करता।”—यूहन्ना ५:२३.
१. किस तरह ईसाईजगत् द्वारा त्रियेक में विश्वास करना यीशु का अपमान है?
आज ईसाईजगत् में के अनेक लोग यीशु मसीह का आदर करने का दावा तो करते हैं, फिर भी वे उसके बिलकुल विपरीत करते हैं। यह कैसे? ख़ैर, अनेक लोग दावा करते हैं कि यीशु मसीह सर्वशक्तिमान परमेश्वर है, और परमेश्वर, सभी वस्तुओं का सृजनहार, इस पृथ्वी पर आकर एक इंसान के तौर से जीया और फिर मर गया। यह दावा त्रियेक की शिक्षा में सम्मिलित है, जो कि ईसाईजगत् की मूलभूत शिक्षा है। लेकिन अगर त्रियेक की शिक्षा झूठ है, और अगर यीशु, दरअसल, परमेश्वर से अवर और अधीन है, तो परमेश्वर के साथ उसके रिश्ते के इस मिथ्या निरूपण से क्या यीशु नाखुश न होगा? वास्तव में, वह ऐसे मिथ्या निरूपण को अपना और उसके द्वारा सिखायी गयी हर बात का अपमान समझता।
२. धर्मशास्त्र में यह किस तरह स्पष्ट रूप से दिखाया गया है कि यीशु परमेश्वर से अवर और अधीन है?
२ सच बात यह है कि यीशु ने कभी परमेश्वर होने का दावा नहीं किया, लेकिन बार-बार उसने अपना ज़िक्र “परमेश्वर का पुत्र,” यूँ किया। उसके दुश्मनों ने भी यह क़बूल किया। (यूहन्ना १०:३६; १९:७) यीशु पिता की प्रशंसा करने और अपने आप को उनके अधीन करने के बारे में सदा सतर्क था, जैसे कि उस ने स्वीकार किया: “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है, क्योंकि जिन जिन कामों को वह करता है उन्हें पुत्र भी उसी रीति से करता है। मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता . . . क्योंकि मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूँ।” फिर से, उसने कहा: “मैं उसकी ओर से हूँ और उसी ने मुझे भेजा है।” उसने यह भी कहा: “मैं परमेश्वर की ओर से निकलकर आया हूँ।” (यूहन्ना ५:१९, ३०; ७:२८, २९; ८:४२) यीशु ने यह कभी नहीं सुझाया कि वह परमेश्वर था या कि वह उनके बराबर था। इसलिए ऐसी बात सिखाने से यीशु का अपमान होता है।
अन्य तरीक़े जिनके ज़रिए कुछेक यीशु का अपमान करते हैं
३. (अ) यीशु के सम्बन्ध में किस बात का इनकार करके ईसाईजगत् में के कुछ लोग उसका अपमान करते हैं? (ब) यीशु ने अपने मानव-पूर्वी अस्तित्व के बारे में क्या गवाही दी?
३ अजीब बात तो यह है कि ईसाईजगत् में भी कुछ ऐसे लोग हैं जो यह इनकार करके कि यीशु को एक मानव-पूर्वी अस्तित्व था, उसका अपमान करते हैं। बहरहाल, जब हम पूरी तरह समझेंगे कि यीशु अक्षरशः स्वर्ग से उतरकर पृथ्वी पर आया, तभी हम उचित रूप से उसका आदर करना शुरू कर सकते हैं। स्वयं यीशु ने बारंबार कहा कि उसका एक मानव-पूर्वी अस्तित्व था। “कोई स्वर्ग पर नहीं चढ़ा,” उसने कहा, “केवल वही जो स्वर्ग से उतरा, अर्थात् मनुष्य का पुत्र।” बाद में उस ने कहा: “जीवित रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूँ . . . और यदि तुम मनुष्य के पुत्र को जहाँ वह पहले था, वहाँ ऊपर जाते देखोगे, तो क्या होगा?” एक बार फिर: “तुम नीचे के हो, मैं ऊपर का हूँ। . . . मैं तुम से सच कहता हूँ, इब्राहीम के अस्तित्व में आने से पहले, मैं रहा हूँ।” (यूहन्ना ३:१३; ६:५१, ६२; ८:२३, ५८) उसके विश्वासघात किए जाने की रात, अपने स्वर्गीय पिता से प्रार्थना में भी यीशु ने अपने मानव-पूर्वी अस्तित्व का ज़िक्र किया।—यूहन्ना १७:५.
४. (अ) अनेक लोग किस अतिरिक्त रीति से यीशु का अपमान करते हैं? (ब) कौनसा सबूत यह स्थापित करने के लिए काफ़ी होना चाहिए कि यीशु सचमुच जीया था, और क्यों?
४ ईसाईजगत् में कुछ लोग यह इनकार करने की हद तक भी जाते हैं, कि यीशु एक ऐतिहासिक व्यक्ति था, कि वह कभी एक इंसान के तौर से ज़िन्दा था। अगर वह सचमुच ही एक व्यक्ति के तौर से ज़िन्दा न होता, तो फिर उनका आदर क्यों और कैसे किया जाना चाहिए, इस बारे में हमारा विचार-विमर्श करना ही फ़ुज़ूल होगा। फिर भी धर्मशास्त्र में सुरक्षित रखी गयी प्रचुर प्रत्यक्षदर्शी गवाही इस बात को बिना किसी शक के स्थापित करने के लिए सबूत के तौर से पर्याप्त होनी चाहिए, कि यीशु सचमुच ही पृथ्वी पर रह चुका। (यूहन्ना २१:२५) यह ख़ास तौर से इसलिए सच है कि प्रारंभिक मसीहियों ने अकसर अपनी जान और आज़ादी की बाज़ी लगाकर यीशु के बारे में सिखाया। (प्रेरितों १२:१-४; प्रकाशितवाक्य १:९) बहरहाल, उन बातों के अलावा, जो उसके अनुयायियों ने उसके बारे में लिखा, क्या यीशु का अस्तित्व प्रमाणित किया जा सकता है?
५, ६. धर्मशास्त्र के अलावा, ऐतिहासिक सबूत से यीशु मसीह के वास्तविक अस्तित्व के बारे में क्या दिखायी देता है?
५ द न्यू एन्साइक्लोपीडिया ब्रिटॅन्निका (१९८७) [The New Encyclopædia Britannica (1987)] में बताया गया है: “स्वतंत्र विवरण प्रमाणित करते हैं कि प्राचीन समय में ईसाईयत के विरोधियों ने भी यीशु की ऐतिहासिकता पर कभी शक नहीं किया।” इन में से कुछेक स्वतंत्र विवरण क्या हैं? यहूदी विद्वान् जोसेफ़ क्लाउस्नर के अनुसार, प्रारंभिक तालमुदी लेखों का सबूत है। (जीज़स ऑफ नॅज़रेत, Jesus of Nazareth, पृष्ठ २०) पहली-सदी के यहूदी इतिहासकार जोसीफ़स की भी गवाही मौजूद है। मिसाल के तौर पर, वह याकूब के पथरवाह किए जाने का वर्णन करता है, और उसकी पहचान “यीशु का भाई, जो मसीह कहलाता है,” यूँ देता है।—जूइश ॲन्टिक्विटीज़, Jewish Antiquities, XX, [ix, 1].
६ इसके अतिरिक्त, प्राचीन रोमी इतिहासकारों की गवाही मौजूद है, ख़ास तौर से अत्यन्त सम्मानित टॅसिटस् की गवाही। उसने दूसरी सदी के प्रारंभिक हिस्से में “एक ऐसे वर्ग” के बारे में लिखा, जिन से “अपने घृणित कामों की वजह से द्वेष किया जाता था, जिन्हें जनता ख्रीस्ती के नाम से पुकारती थी। ख्रिस्तुस [ख्रीस्त], जिस से यह नाम [ख्रीस्चियन] आता है, तिबिरियुस के शासनकाल के दौरान हमारे एक हाकिम के हाथों परम सज़ा भुगत चुका।” (दी ॲन्नल्ज़, The Annals, XV, XLIV) इस सबूत को ज़बरदस्त मानकर, कि यीशु एक ऐतीहासिक व्यक्ति था, १८वीं सदी के फ्रांसीसी दार्शनिक नीतिज्ञ, जाँ-जाक्स् रूस्सो, ने गवाही दी: “सुकरात का इतिहास, जिस पर शक करने की जुर्रत कोई नहीं करता, इतने अच्छी तरह से प्रमाणित नहीं, जितना कि यीशु मसीह का इतिहास प्रमाणित है।”
पुत्र का आदर करने के कारण
७. (अ) धर्मशास्त्र के कौनसे साक्ष्य से हम यीशु मसीह का आदर करने के लिए बाध्य होते हैं? (ब) यहोवा ने अपने पुत्र का और अधिक आदर-सत्कार किस तरह किया है?
७ अब हम यीशु मसीह का आदर करने के मामले की ओर आते हैं। यूहन्ना ५:२२, २३ में दिए उसके शब्दों से देखा जा सकता है कि उसके अनुयायी उसका आदर करने के लिए बाध्य हैं: “पिता किसी का न्याय भी नहीं करता, परन्तु न्याय करने का सब काम पुत्र को सौंप दिया है। इसलिए कि सब लोग जैसे पिता का आदर करते हैं वैसे ही पुत्र का भी आदर करें: जो पुत्र का आदर नहीं करता, वह पिता का जिस ने उसे भेजा है, आदर नहीं करता।” मसीह के पुनरुत्थान के समय से, यहोवा ने अपने पुत्र को ‘मृत्यु का दुःख झेलने के कारण,’ ‘महिमा और आदर का मुकुट पहनाकर’ उसे अधिक मात्रा में सम्मान दिया है। (इब्रानियों २:९; १ पतरस ३:२२) मूलतः, यीशु कौन है और उसने क्या किया है, दोनों वजहों से हमें उसका आदर करने के लिए ठोस कारण मिलते हैं।
८. यीशु मसीह से सम्बन्धित कौनसे बेजोड़ तथ्यों के कारण वह आदर के योग्य है?
८ यीशु मसीह आदर के योग्य है क्योंकि, लोगॉस, या वचन होने के नाते, वह यहोवा का सर्वोत्कृष्ट संचारक है। धर्मशास्त्र से यह ज़ाहिर है कि “वचन,” यह पदनाम यीशु के पृथ्वी पर आने से पहले और साथ ही उसके स्वर्ग लौटने के बाद भी उस पर लागू होता है। (यूहन्ना १:१; प्रकाशितवाक्य १९:१३) प्रकाशितवाक्य ३:१४ में वह अपना ज़िक्र “परमेश्वर की सृष्टि का मूल कारण” के तौर से करता है। वह न सिर्फ़ “सारी सृष्टि में पहलौठा है,” लेकिन “एकलौता पुत्र” होने के नाते वह ऐसा एक ही व्यक्ति है जिसकी सृष्टि सीधे यहोवा परमेश्वर ने ही की। (कुलुस्सियों १:१५; यूहन्ना ३:१६) इसके अतिरिक्त, “सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।” (यूहन्ना १:३) इसलिए, जब हम उत्पत्ति १:२६ में पढ़ते हैं कि परमेश्वर ने कहा, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएँ,” उस “हम” में लोगॉस, या वचन भी शामिल है। बेशक, यह तथ्य भी, कि अपने मानव-पूर्वी अस्तित्व में यीशु को यहोवा परमेश्वर के साथ सृष्टि करने के काम में भागीदार होने का ख़ास अनुग्रह प्राप्त था, उसे अत्याधिक आदर के योग्य बनाता है।
९. हम इस निष्कर्ष पर क्यों पहुँचते हैं कि यीशु प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल है, और मीकाईल ने किस तरह मूसा की लाश के सम्बन्ध में यहोवा का आदर किया?
९ यीशु मसीह आदर के योग्य इस कारण से भी है कि वह यहोवा का मुख्य स्वर्गदूत, या प्रधान स्वर्गदूत है। हम किस आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं? ख़ैर, “प्रधान,” यानी “मुख्य” या “प्रमुख,” इन उपसर्गों से सूचित होता है कि सिर्फ़ एक ही प्रधान स्वर्गदूत है। परमेश्वर का वचन उसका ज़िक्र पुनरुत्थित प्रभु यीशु मसीह के सम्बन्ध में करता है। हम पढ़ते हैं: “क्योंकि प्रभु स्वयं प्रभावशाली पुकार, प्रधान स्वर्गदूत की आवाज़ और परमेश्वर की तुरही के साथ, स्वर्ग से उतरेगा, और जो मसीह में मरे हैं, वे पहले जी उठेंगे।” (१ थिस्सलुनीकियों ४:१६) इस प्रधान स्वर्गदूत का एक नाम है, जैसा कि हम यहूदा ९ में पढ़ते हैं: “परन्तु प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल ने, जब इब्लीस से मूसा की लोथ के विषय में वाद-विवाद करता था, तो उस को बुरा भला कहके दोष लगाने का साहस न किया; पर यह कहा, कि ‘प्रभु तुझे डाँटे।’” यहोवा से आगे बढ़कर इब्लीस के ख़िलाफ़ न्याय सुनाने की जुर्रत न करके, यीशु ने इस प्रकार अपने स्वर्गीय पिता का आदर किया।
१०. (अ) परमेश्वर के राज्य के पक्ष में मीकाईल किस तरह नेतृत्व करता है? (ब) इस्राएल की जाति के मामले में मीकाईल ने कौनसी भूमिका अदा की?
१० प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल परमेश्वर के राज्य के पक्ष में लड़ाई करता है, और स्वर्ग से शैतान तथा उसके दुष्टात्मिक गिरोहों को हटाकर उसे साफ़ कर देने में नेतृत्व लेता है। (प्रकाशितवाक्य १२:७-१०) और भविष्यद्वक्ता दानिय्येल कहता है कि ‘वह परमेश्वर के लोगों का पक्ष करने के लिए खड़ा रहता है।’ (दानिय्येल १२:१) इसलिए, यह प्रकट होता है कि मीकाईल “परमेश्वर का दूत” है “जो इस्राएली सेना के आगे आगे चला करता था” और वही वह व्यक्ति है जिस को परमेश्वर ने अपने लोगों को प्रतिज्ञात देश में लाने के लिए इस्तेमाल किया। “उसके सामने सावधान रहना, और उसकी मानना,” परमेश्वर ने आदेश दिया। “उसका विरोध न करना, . . . इसलिए कि उस में मेरा नाम रहता है।” (निर्गमन १४:१९; २३:२०, २१) बेशक यहोवा के प्रधान स्वर्गदूत ने परमेश्वर के प्रतीकात्मक नामधारी लोगों में बड़ी दिलचस्पी ली होगी। बहुत ही उचित रूप से वह एक और स्वर्गदूत की सहायता करने आया जिसे भविष्यद्वक्ता दानिय्येल को दिलासा देने के लिए भेजा गया था, और जिसे एक ताक़तवर दुष्टात्मा ने रास्ते में अटकाया था। (दानिय्येल १०:१३) इसलिए इस निष्कर्ष पर पहुँचना तर्कसंगत होगा कि सन्हेरीब के १,८५,००० सिपाहियों को मार डालनेवाला स्वर्गदूत, प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल के अलावा और कोई न था।—यशायाह ३७:३६.
११. पृथ्वी पर किस प्रकार का जीवन बिताने के कारण यीशु हमारे आदर के योग्य है?
११ यीशु मसीह न सिर्फ़ इसलिए सम्मानित किए जाने के योग्य है कि वह कौन है, लेकिन उसने जो कुछ भी किया है, इस के लिए भी वह हमारे आदर के योग्य है। मिसाल के तौर पर, वह एकमात्र इंसान है जिस ने एक परिपूर्ण जीवन बिताया। आदम और हव्वा को परिपूर्ण सृजा गया, लेकिन उनकी परिपूर्णता सिर्फ़ कुछ ही समय के लिए थी। फिर भी, प्रलोभनों या उत्पीड़न के रूप में इब्लीस उस पर जो भी कुछ ला सका, उन सारी बातों के बावजूद यीशु मसीह ‘वफ़ादार, निष्कपट और पापियों से अलग’ बना रहा। इन सारी बातों को झेलने में “न तो उस ने पाप किया, और न उसके मुँह से छल की कोई बात निकली।” वह अपने धार्मिक विरोधियों को सही-सही चुनौती दे सकता था: “तुम में से कौन है जो मुझे पापी ठहराता है?” कोई भी ऐसा कर न सका! (इब्रानियों ७:२६; १ पतरस २:२२; यूहन्ना ८:४६) और चूँकि उसने पापरहित ख़राई बनाए रखी, यीशु ने अपने स्वर्ग के पिता को न्यायोचित विश्व सम्राट् के तौर से निर्दोष प्रमाणित किया तथा इब्लीस को एक नीच और घोर झूठा साबित कर दिया।—नीतिवचन २७:११.
१२. (अ) यीशु किस प्रकार का आदमी था, और उसने क्या किया और दूसरों की ख़ातिर क्या दुःख झेले? (ब) आप ऐसा क्यों कहेंगे कि यीशु ने जो किया और उसने जो दुःख झेला, उसके कारण वह हमारे आदर के योग्य है?
१२ यीशु मसीह हमारे आदर के योग्य है, न सिर्फ़ इसलिए कि उसने एक परिपूर्ण, पापरहित जीवन बिताया, लेकिन इसलिए भी कि वह एक नेक इंसान था, एक निस्स्वार्थ, आत्म-त्यागी इंसान। (रोमियों ५:७ से तुलना करें.) उस ने लोगों की आध्यात्मिक और शारीरिक ज़रूरतों की पूर्ति करने के लिए अथक रूप से परिश्रम किया। उसने अपने पिता के भवन के लिए कैसा उत्साह प्रकट किया, और अपने शिष्यों से व्यवहार करने में उस ने कितनी सहनशीलता दिखायी! अपने पिता की इच्छापूर्ति करने में वह कैसे-कैसे दुःख भोगने के लिए तैयार था! गतसमनी के बग़ीचे में उसकी कठिन परीक्षा के बारे में बाइबल बताती है: “वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बून्दों की नाईं भूमि पर गिर रहा था।” जी हाँ, उस ने “ऊँचे शब्द से पुकार पुकारकर, और आँसू बहा बहाकर . . . प्रार्थनाएँ और बिनतियाँ की।” (लूका २२:४४; इब्रानियों ५:७) भविष्यद्वक्ता यशायाह ने यशायाह ५३:३-७ में उसकी कठिन परीक्षा की पूर्वसूचना कितनी यथार्थता से दी!
१३. अपने स्वर्गीय पिता का आदर करने में यीशु ने हमारे लिए कौनसी उत्तम मिसाल पेश की?
१३ अपने स्वर्ग के पिता का आदर करने में उसने जो उत्तम मिसाल पेश की, उसके लिए भी यीशु हमारे सम्मान के योग्य है। वह भली-भाँति कह सकता था: “मैं अपने पिता का आदर करता हूँ।” (यूहन्ना ८:४९) उसने हर समय अपने शब्दों और कामों से यहोवा परमेश्वर को सम्मानित किया। इस प्रकार, जब उसने एक आदमी को ठीक किया, बाइबल वृत्तान्त में यह नहीं बताया गया कि लोगों ने यीशु की महिमा की, परन्तु यह कि उन्होंने “परमेश्वर की बड़ाई” की। (मरकुस २:१२) इसलिए, अपनी पार्थिव सेवकाई के अन्त में, यीशु अपने स्वर्गीय पिता से प्रार्थना में सही-सही कह सकता था: “जो काम तू ने मुझे करने को दिया था, उसे पूरा करके मैं ने पृथ्वी पर तेरी महिमा की है।”—यूहन्ना १७:४.
उसने हमारे लिए क्या किया है
१४. यीशु की मृत्यु ने हमारे लिए ऐसा क्या-क्या पूरा किया, जिस से कि वह सम्मान के योग्य बनता है?
१४ और चूँकि यीशु मसीह ने हमारे लिए इतना सारा किया है, वह हमारे सम्मान के कितने ज़्यादा योग्य है! वह हमारे पापों के लिए मरा ताकि यहोवा परमेश्वर के साथ हमारा मेल फिर से हो। यीशु ने अपने बारे में कहा: “मनुष्य का पुत्र, वह इसलिए नहीं आया कि उस की सेवा टहल की जाए, परन्तु इसलिए आया कि आप सेवा टहल करे: और बहुतों के लिए अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२८) इस प्रकार उसकी मृत्यु से वे सारी बातें मुमकिन हो गयीं जो राज्य हम मानवों के लिए पूरा करेगा: उसकी दुलहन बननेवाले १,४४,००० लोगों के लिए, स्वर्ग में अमर जीवन और अन्य करोड़ों लोगों के लिए, जो परीक्षा तले अपना विश्वास और आज्ञाकारिता साबित करते हैं, एक परादीस पृथ्वी पर अनन्त जीवन।—भजन ३७:२९; प्रकाशितवाक्य १४:१-३; २१:३, ४.
१५. यीशु का अपने पिता का व्यक्तित्व हमें प्रकट करने का एक उदाहरण क्या है?
१५ यीशु मसीह इसलिए भी आदर के योग्य है क्योंकि, महान् शिक्षक होने के नाते, उस ने अपने पिता की इच्छा और व्यक्तित्व हमें परिपूर्ण रीति से प्रकट की है। मिसाल के तौर पर, अपने पर्वत के उपदेश में, उस ने अपने पिता की दिलदारी की ओर संकेत किया, कि वे भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करते हैं और मेंह बरसाते हैं, और फिर यह ग़ौर किया: “इसलिए चाहिए कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।”—मत्ती ५:४४-४८.
१६. प्रेरित पौलुस ने यीशु के आदर-योग्य आचरण का संक्षिप्त विवरण किस प्रकार किया?
१६ प्रेरित पौलुस ने यीशु के आदर-योग्य आचरण का संक्षिप्त विवरण भली-भाँति किया जब उसने लिखा: “जिस ने परमेश्वर के स्वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। बरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहाँ तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हाँ, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।”—फिलिप्पियों २:५-८.
किस तरह हम पुत्र का आदर कर सकते हैं
१७, १८. हम कौन-कौनसे विभिन्न तरीक़ों से यीशु मसीह का आदर कर सकते हैं?
१७ चूँकि यीशु मसीह बिना किसी शक के हमारे आदर के योग्य है, अब हम इस सवाल की ओर आते हैं: हम किस तरह पुत्र का आदर कर सकते हैं? हम ऐसा उसके छुड़ौती बलिदान पर विश्वास करके करते हैं, और हम उस विश्वास को पश्चाताप, मन फिराव, समर्पण और बपतिस्मा के ज़रूरी क़दम लेकर साबित करते हैं। यीशु के नाम से यहोवा के पास प्रार्थना के ज़रिए आकर, हम यीशु का आदर करते हैं। हम उसे और अधिक सम्मान देते हैं जब हम उसके इन वचनों का पालन करते हैं: “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप को इन्कार करे और अपना क्रूस उठाए, और मेरे पीछे हो ले।” (मत्ती १६:२४) हम यीशु मसीह का आदर करते हैं जब हम पहले परमेश्वर के राज्य और उनके धर्म की खोज करते रहने के आदेशों का पालन करते हैं, और हम तब भी उस का आदर करते हैं जब हम शिष्य-बनाने के कार्य में हिस्सा लेने के लिए उसकी आज्ञा मानते हैं। और, हम यीशु का आदर इस तरह भी करते हैं, जब हम वह भाई-जैसा प्रेम दर्शाते हैं जो उस ने कहा अपने सभी सच्चे अनुयायियों का पहचान-चिह्न होता।—मत्ती ६:३३; २८:१९, २०; यूहन्ना १३:३४, ३५.
१८ इसके अलावा, हम अपने पर पुत्र का नाम लेकर, अपने आप को मसीही कहलाकर, और फिर अपने उत्तम आचरण से उस नाम को रोशन करके, उसका आदर करते हैं। (प्रेरितों ११:२६; १ पतरस २:११, १२) प्रेरित पौलुस ने कहा कि हमें यीशु के पदचिह्नों पर ध्यानपूर्वक चलना चाहिए। (१ पतरस २:२१) इस प्रकार अपने सारे आचरण में उसका अनुकरण करने के द्वारा भी हम उसका आदर करते हैं। और बेशक, जब हम मसीह की मृत्यु का स्मारक समारोह सालाना मनाते हैं, हम उसे ख़ास सम्मान देते हैं।—१ कुरिन्थियों ११:२३-२६.
१९, २०. (अ) उसका आदर करने के लिए यीशु अपने अनुयायियों को अब और भविष्य में कैसे प्रतिफल देने का प्रस्ताव पेश करता है? (ब) पुत्र के सम्बन्ध में हमें किस बात का पूरा यक़ीन हो सकता है?
१९ यीशु अपने शिष्यों को ऐसी रीति से चलने के लिए, जिस से उसका आदर हो, कैसा प्रतिफल देने का प्रस्ताव रखता है? उस ने कहा: “मैं तुम से सच कहता हूँ, कि ऐसा कोई नहीं, जिस ने मेरी ख़ातिर और सुसमाचार की ख़ातिर घर या भाइयों या बहनों या माता या पिता या लड़के-बालों या खेतों को छोड़ दिया हो और अब इस समय सौ गुणा न पाए, घरों और भाइयों और बहनों और माताओं और लड़के-बालों और खेतों को, पर उपद्रव के साथ, और आनेवाले रीति व्यवस्था में अनन्त जीवन।”—मरकुस १०:२९, ३०, NW.
२० तो इस से समझ में आता है कि अगर हम यीशु की ख़ातिर त्याग करेंगे, वह यह ज़रूर देख लेगा कि हमें प्रतिफल मिलेगा। यीशु हमें आश्वासन देता है: “जो कोई मनुष्यों के साम्हने मुझे मान लेगा, उसे मैं भी अपने स्वर्गीय पिता के साम्हने मान लूँगा।” (मत्ती १०:३२) तो जिस प्रकार स्वर्गीय पिता उन लोगों का आदर करते हैं, जो उनका आदर करते हैं, हमें पूरा यक़ीन हो सकता है कि यहोवा का एकलैता पुत्र भी इस सम्बन्ध में अपने पिता का अनुकरण करेगा, जैसा वह अन्य मामलों में भी करता है।
आप किस तरह जवाब देंगे?
▫ ईसाईजगत् में कई लोग पुत्र का अपमान किस तरह करते हैं?
▫ यीशु ने अपने मानव-पूर्वी अस्तित्व के बारे में कैसा साक्ष्य दिया?
▫ हमें यीशु का आदर करने के कुछेक कारण क्या हैं?
▫ ऐसे कुछ तरीक़े क्या हैं, जिन के द्वारा हम यीशु का आदर कर सकते हैं?
▫ यीशु मसीह का आदर करने के परिणामस्वरूप क्या फ़ायदे प्राप्त होते हैं?