“विश्वास की कड़ी लड़ाई लड़ो”!
“उस विश्वास की कड़ी लड़ाई लड़ो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था।”—यहूदा ३, NW.
१. आज सच्चे मसीही किस तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं?
सैनिकों को लड़ाई में हमेशा ही लोहे के चने चबाने पड़े हैं। कल्पना कीजिए, हथियार लादकर खराब से खराब मौसम में सैकड़ों मील पैदल चलना, हथियार चलाने की सख्त ट्रेनिंग से गुज़रना और अपनी ज़िंदगी के लिए हर जोखिम और खतरे से लड़ना। लेकिन सच्चे मसीही दुनिया की लड़ाइयों में भाग नहीं लेते। (यशायाह २:२-४; यूहन्ना १७:१४) फिर भी, हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हम भी एक तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं। यीशु मसीह और इस ज़मीन पर उसके शिष्यों को देख शैतान नफरत से जल रहा है। (प्रकाशितवाक्य १२:१७) इसलिए जितने यहोवा परमेश्वर की सेवा करने का फैसला करते हैं, वे वाकई एक आत्मिक लड़ाई लड़ने के लिए सैनिकों के तौर पर भर्ती होते हैं।—२ कुरिन्थियों १०:४.
२. यहूदा मसीही लड़ाई का वर्णन कैसे करता है और यह पत्री हमें उस लड़ाई में टिके रहने में कैसे मदद कर सकती है?
२ इसलिए यीशु का सौतेला भाई यहूदा सही कहता है: “हे प्यारो, हालाँकि मैं तुम्हें उद्धार के बारे में लिखने की हर कोशिश कर रहा था, जिसमें हम सब सहभागी हैं, मैंने तुम्हें इस बारे में लिखना ज़रूरी समझा कि तुम्हें समझाऊँ कि उस विश्वास की कड़ी लड़ाई लड़ो जो पवित्र लोगों को एक ही बार सौंपा गया था।” (यहूदा ३, NW) मसीहियों से ‘कड़ी लड़ाई लड़ने’ का आग्रह करते हुए यहूदा जिस यूनानी शब्द का इस्तेमाल करता है वह “वेदना” से जुड़ा है। हाँ, यह लड़ाई कठिन, यहाँ तक कि वेदना-भरी हो सकती है! क्या आप कभी-कभी इस लड़ाई में टिके रहना मुश्किल पाते हैं? अगर ऐसा है तो यहूदा की छोटी मगर ज़ोरदार पत्री हमारी मदद कर सकती है। यह पत्री हमसे अनैतिकता से दूर रहने, परमेश्वर द्वारा ठहराए गए अधिकार के पद का आदर करने और परमेश्वर के प्यार में बने रहने का आग्रह करती है। आइए देखें कि इन सलाहों को कैसे लागू किया जा सकता है।
अनैतिकता से दूर रहें
३. यहूदा के दिनों में मसीही कलीसिया संकट में कैसे थी?
३ यहूदा देख सकता था कि उसके संगी मसीहियों में से सभी, शैतान के खिलाफ लड़ाई में नहीं जीत रहे थे। झुंड संकट में था। यहूदा लिखता है कि भ्रष्ट लोग “चुपके से . . . आ घुसे” थे। ये लोग बड़े ही छल से अनैतिकता फैला रहे थे। और बड़ी ही चतुराई से अपनी करनी को उचित ठहराकर ‘हमारे परमेश्वर के अनुग्रह को लुचपन में बदल’ रहे थे। (यहूदा ४, NHT) पुराने नॉस्टिकवादियों की तरह, शायद उन्होंने दलील दी कि एक इंसान जितना ज़्यादा पाप करता है, वह परमेश्वर का उतना ही ज़्यादा अनुग्रह पा सकता है—दरअसल वे कह रहे थे कि पाप करते रहना फायदेमंद है! या शायद उनका यह मानना था कि एक रहमदिल परमेश्वर उन्हें कभी भी सज़ा नहीं देगा। मगर हर तरह से वे गलत थे।—१ कुरिन्थियों ३:१९.
४. यहूदा गुज़रे समय में यहोवा के किन तीन न्यायदंडों का शास्त्र से उदाहरण देता है?
४ गुज़रे समय में यहोवा के न्यायदंडों के तीन उदाहरण देकर यहूदा उनकी धूर्त दलीलों को गलत साबित करता है: उन इस्राएलियों के खिलाफ जो ‘विश्वास नहीं लाए’; उन “स्वर्गदूतों” के खिलाफ जिन्होंने स्त्रियों के साथ पाप करने के लिए “अपने निज निवास को छोड़ दिया”; और सदोम और अमोरा के खिलाफ, जो बहुत ही “व्यभिचारी हो गए थे और पराये शरीर के पीछे लग गए थे।” (यहूदा ५-७; उत्पत्ति ६:२-४; १९:४-२५; गिनती १४:३५) मगर इन सभी मामलों में यहोवा ने उन पापियों को सही न्यायदंड दिया।
५. यहूदा किस प्राचीन भविष्यवक्ता का हवाला देता है और उस भविष्यवाणी की पूर्ति के अटल होने का कैसे पता चलता है?
५ बाद में, यहूदा आनेवाले एक और बड़े न्यायदंड की तरफ ध्यान खींचता है। वह हनोक की भविष्यवाणी का हवाला देता है—एक ऐसी चर्चा जो ईश्वर-प्रेरित शास्त्र में और कहीं नहीं पाई जाती।a (यहूदा १४, १५) हनोक ने एक ऐसे समय के बारे में पहले से बताया जब यहोवा सभी अधर्मी लोगों का और उनके अधर्मी कामों का न्याय करेगा। दिलचस्पी की बात यह है कि हनोक ने बात इस तरह कही, मानो वह घट चुकी हो, क्योंकि परमेश्वर का न्यायदंड इतना अटल है कि समझो हो चुका। लोगों ने हनोक का और आगे चलकर नूह का शायद मज़ाक उड़ाया हो, मगर ठट्टा उड़ानेवाले ये सभी लोग बाद में जलप्रलय में डूब मरे।
६. (क) यहूदा के दिनों के मसीहियों को किन बातों की याद दिलाए जाने की ज़रूरत थी? (ख) हमें यहूदा की इन बातों पर क्यों ध्यान देना चाहिए?
६ यहूदा ने इन ईश्वरीय न्यायदंडों के बारे में क्यों लिखा? क्योंकि वह जानता था कि उसके अपने दिनों में मसीही कलीसिया के कुछ लोग उतने ही घृणित और बुरे पाप कर रहे थे जितने उन लोगों ने किए थे जिन पर ये पिछले न्यायदंड भड़के थे। इसलिए यहूदा लिखता है कि कलीसिया को कुछ बुनियादी आध्यात्मिक सच्चाइयों की याद दिलाए जाने की ज़रूरत है। (यहूदा ५) बेशक वे भूल गए थे कि यहोवा उनके कामों को देख रहा है। हाँ, जब उसके सेवक जानबूझकर उसके कानूनों को तोड़ते हैं, और अपने साथ-साथ दूसरों को भी भ्रष्ट करते हैं, तो वह देख रहा होता है। (नीतिवचन १५:३) ऐसे काम उसे गहरी चोट पहुँचाते हैं। (उत्पत्ति ६:६; भजन ७८:४०) ज़रा सोचिए, कितनी गहरी बात है कि अदना, मामूली इंसान इस विश्व-मंडल के महाराजा और मालिक की भावनाओं को छू सकता है। रोज़ उसकी आँखें हम पर होती हैं, और जब हम दिलोजान से उसके बेटे, यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर चलने की कोशिश करते हैं, तब उसका दिल खुशी से भर जाता है। तो फिर, आइए हम यहूदा की और ऐसी ही दूसरी चेतावनियों का कभी-भी बुरा न मानें, बल्कि उन पर ध्यान दें।—नीतिवचन २७:११; १ पतरस २:२१.
७. (क) गंभीर पाप में पड़नेवालों के लिए फौरन मदद माँगना निहायत ही ज़रूरी क्यों है? (ख) हम सभी अनैतिकता से कैसे दूर रह सकते हैं?
७ यहोवा सिर्फ देखता ही नहीं, बल्कि वह कार्रवाई भी करता है। वह न्याय का परमेश्वर है और—आज नहीं तो कल—बुरे लोगों को सज़ा ज़रूर देगा। (१ तीमुथियुस ५:२४) वे लोग जो कहते हैं कि परमेश्वर के न्यायदंड सिर्फ पुराने ज़माने की बातें हैं और उनके बुरे कामों से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, वे सिर्फ खुद को बेवकूफ बना रहे हैं। इसलिए आज बदचलनी में पड़नेवाले एक व्यक्ति के लिए फौरन मसीही प्राचीनों से मदद माँगना निहायत ही ज़रूरी है! (याकूब ५:१४, १५) अनैतिकता का खतरा हमारी आत्मिक लड़ाई में हमें होशियार रख सकता है। हर साल इसके शिकार देखे जा सकते हैं—ऐसे लोग जिन्हें हमारे बीच से निकाल दिया जाता है और इनमें से ज़्यादातर बदचलनी करनेवाले होते हैं, जो पछतावा नहीं दिखाते। तो किसी भी ऐसे प्रलोभन का विरोध करने के लिए हमें दृढ़ संकल्प होना चाहिए जो हमें गलती से भी उस रास्ते पर ले जाए।—मत्ती २६:१४ से तुलना कीजिए।
परमेश्वर द्वारा ठहराए गए अधिकार के पद का आदर करें
८. यहूदा ८ में ज़िक्र किए गए ‘ऊँचे पदवाले’ कौन थे?
८ एक और समस्या जिसका यहूदा ज़िक्र करता है, वह है परमेश्वर द्वारा ठहराए गए अधिकार के पद के लिए आदर की कमी। मिसाल के तौर पर, आयत ८ में वह ‘ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहने’ के लिए उन्हीं दुष्ट लोगों को दोषी ठहराता है। ये ‘ऊँचे पदवाले’ कौन थे? वे असिद्ध मनुष्य थे, लेकिन उन्हें यहोवा की पवित्र आत्मा द्वारा ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गयी थीं। मिसाल के तौर पर, कलीसियाओं में प्राचीन थे जिन पर परमेश्वर की झुंड की रखवाली का ज़िम्मा सौंपा गया था। (१ पतरस ५:२) उनमें प्रेरित पौलुस की तरह सफरी ओवरसियर भी थे। और यरूशलेम के प्राचीनों ने शासी निकाय का भी काम किया और ऐसे फैसले किए जो मसीही कलीसिया पर लागू होते। (प्रेरितों १५:६) यहूदा को गहरी चिंता थी कि कलीसिया के कुछ लोग ऐसे मनुष्यों के बारे में बुरा-भला कह रहे थे और उनका अनादर कर रहे थे।
९. यहूदा अधिकार के पद का अनादर करनेवालों के कौन-से उदाहरण देता है?
९ ऐसी अनादर की बातों की खुलकर निंदा करते हुए यहूदा आयत ११ में सबक के तौर पर तीन और उदाहरण देता है: कैन, बिलाम, और कोरह। कैन ने यहोवा की प्यार-भरी सलाह को ठुकराया और अपनी मरज़ी के मुताबिक खूनी नफरत की राह पर चलता रहा। (उत्पत्ति ४:४-८) बिलाम को बार-बार चेतावनियाँ दी गयीं जो बेशक अलौकिक स्रोत से थीं—यहाँ तक कि उसकी गधी बोलने लगी! मगर बिलाम लालच की वज़ह से परमेश्वर के लोगों के खिलाफ साज़िश करता रहा। (गिनती २२:२८, ३२-३४; व्यवस्थाविवरण २३:५) कोरह का अपना ज़िम्मेदारी का पद था, लेकिन उसे इससे भी ज़्यादा चाहिए था। उसने मूसा के खिलाफ बगावत भड़काई—एक ऐसे इंसान के खिलाफ जो पृथ्वी का सबसे नम्र व्यक्ति था।—गिनती १२:३; १६:१-३, ३२.
१०. आज कुछ लोग ‘ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहने’ के फँदे में कैसे फँस सकते हैं, और ऐसी बातें क्यों नहीं करनी चाहिए?
१० ये उदाहरण कितनी साफ तरह हमें सिखाते हैं कि जिन्हें यहोवा ने ज़िम्मेदारी के पद सौंपे हैं उनकी सलाह को मानें और उनका आदर करें! (इब्रानियों १३:१७) नियुक्त प्राचीनों में कमियाँ ढूँढ़ना बहुत ही आसान होता है क्योंकि वे भी हमारी ही तरह असिद्ध हैं। लेकिन अगर हम उनकी कमियाँ ही देखते रहते हैं और उनका आदर घटाने की कोशिश करते हैं तो क्या हम ‘ऊंचे पदवालों को बुरा भला कहनेवाले’ नहीं ठहरेंगे? आयत १० में यहूदा उनका ज़िक्र करता है जो “जिन बातों को नहीं जानते, उन को बुरा भला कहते हैं।” कभी-कभार कुछ लोग प्राचीनों के निकाय या एक न्यायिक कमेटी द्वारा किए गए फैसले में शायद नुक्स निकालें। मगर, उन्हें उन सभी बातों का पता नहीं होता जिन पर प्राचीनों ने फैसला करने से पहले गौर किया है। इसलिए ऐसी बातों के बारे में बुरा-भला क्यों कहें जिनके बारे में हम जानते तक नहीं? (नीतिवचन १८:१३) ऐसी बुरी बातों में लगे रहनेवाले कलीसिया में फूट पैदा कर सकते हैं। यहाँ तक कि ये लोग संगी विश्वासियों के बीच “समुद्र में छिपी हुई [खतरनाक] चट्टान” सरीखे हो सकते हैं। (यहूदा १२, १६, १९) हम कभी-भी नहीं चाहेंगे कि दूसरे हमारी वज़ह से आध्यात्मिक खतरे में पड़ें। इसके बजाय, आइए हम सभी यह दृढ़ संकल्प करें कि हम इन ज़िम्मेदार लोगों की कड़ी मेहनत और परमेश्वर के झुंड के प्रति उनकी लगन के लिए उनकी कदर करेंगे।—१ तीमुथियुस ५:१७.
११. मीकाईल ने शैतान को बुरा-भला कहकर उस पर दोष क्यों नहीं लगाया?
११ यहूदा एक व्यक्ति का उदाहरण देता है जिसने ठहराए गए अधिकार के पद के लिए आदर दिखाया। वह लिखता है: “प्रधान स्वर्गदूत मीकाईल ने, जब शैतान से मूसा की लोथ के विषय में वाद-विषय करता था, तो उस को बुरा भला कहके दोष लगाने का साहस न किया; पर यह कहा, कि प्रभु तुझे डांटे।” (यहूदा ९) यह रोमांचक घटना जो ईश्वर-प्रेरित शास्त्र में सिर्फ यहूदा की पत्री में पाई जाती है, दो खास सबक सिखाती है। एक सबक यह है कि हम न्याय यहोवा के हाथों में छोड़ें। शैतान शायद वफादार मूसा की लाश को झूठी उपासना के लिए इस्तेमाल करना चाहता था। क्या ही दुष्ट इरादा! फिर भी, मीकाईल ने अपनी नम्रता की वज़ह से उस पर दोष नहीं लगाया, क्योंकि यह हक सिर्फ यहोवा का है। फिर हम जैसे लोगों को यहोवा की सेवा करने की कोशिश कर रहे वफादार जनों पर दोष लगाने की बात से कितना ज़्यादा दूर रहना चाहिए।
१२. मसीही कलीसिया में अधिकार रखनेवाले मीकाईल के उदाहरण से क्या सबक सीख सकते हैं?
१२ दूसरी तरफ, कलीसिया में अधिकार रखनेवाले भी मीकाईल से एक सबक सीख सकते हैं। हालाँकि मीकाईल “प्रधान स्वर्गदूत,” यानी सभी स्वर्गदूतों का सरदार था, फिर भी उसने अपने अधिकार के पद का गलत इस्तेमाल नहीं किया, भड़काए जाने पर भी नहीं। वफादार प्राचीन इस उदाहरण पर ध्यान से चलते हैं और उन्हें इस बात का एहसास रहता है कि अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करना यहोवा के महान अधिकार के लिए अनादर दिखाना होगा। यहूदा की पत्री में ऐसे व्यक्तियों के बारे में काफी कुछ कहा गया है जो कलीसिया में अधिकार के पद पर थे, मगर अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करने लगे थे। मिसाल के तौर पर, आयत १२ से १४ में यहूदा ‘बेधड़क अपना ही पेट भरनेवाले रखवालों’ की घोर निंदा करता है। (यहेजकेल ३४:७-१० से तुलना कीजिए।) दूसरे शब्दों में, उनकी पहली चिंता बस अपना फायदा करना था, यहोवा के झुंड का नहीं। आज प्राचीन ऐसे बुरे उदाहरणों से काफी कुछ सीख सकते हैं। दरअसल, यहूदा साफ-साफ बताता है कि हमें क्या नहीं बनना चाहिए। जब हम अपनी ही चिंता करते हैं तब हम अपने फायदे के लिए ही लड़ने में लगे रहेंगे और मसीह के सैनिक नहीं रह सकेंगे। इसके बजाय, आइए हम यीशु के कहे अनुसार जीएँ: “लेने से देना धन्य है।”—प्रेरितों २०:३५.
‘अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखें’
१३. परमेश्वर के प्रेम में बने रहने की हम सभी को हार्दिक इच्छा क्यों होनी चाहिए?
१३ अपनी पत्री के आखिर में यहूदा दिल को छू लेनेवाली सलाह देता है: “अपने आप को परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखो।” (यहूदा २१) और कोई बात हमें मसीही लड़ाई लड़ने में मदद नहीं दे सकती सिवाय इसके कि हम यहोवा परमेश्वर के प्यार के पात्र बने रहें। आखिर, प्रेम यहोवा का प्रमुख गुण जो है। (१ यूहन्ना ४:८) पौलुस ने रोम के मसीहियों को लिखा: “मैं निश्चय जानता हूं, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएं, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊंचाई, न गहिराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।” (रोमियों ८:३८, ३९) मगर कैसे हम उस प्रेम में बने रह सकते हैं? यहूदा द्वारा बताए गए तीन कदमों पर गौर कीजिए।
१४, १५. (क) “अति पवित्र विश्वास” को बढ़ाते रहने का क्या मतलब है? (ख) हम अपने आत्मिक हथियारों की हालत कैसे जाँच सकते हैं?
१४ पहला कदम जो यहूदा हमें बताता है वह है “अति पवित्र विश्वास” को बढ़ाते रहना। (यहूदा २०) इसे लगातार बढ़ाते रहने की ज़रूरत है जैसा हमने पिछले लेख में देखा था। हम उन इमारतों की तरह हैं जिन्हें बिगड़ते मौसम की मार से बचने के लिए ज़्यादा-से-ज़्यादा सुरक्षा की ज़रूरत पड़ती है। (मत्ती ७:२४, २५ से तुलना कीजिए।) इसलिए आइए हम कभी-भी हद से ज़्यादा आत्म-विश्वासी न बनें। इसके बजाय, हमें देखना चाहिए कि हम विश्वास की अपनी नींव को कहाँ-कहाँ मज़बूत कर सकते हैं, और दृढ़ होकर मसीह के और भी वफादार सैनिक कैसे बन सकते हैं। मिसाल के तौर पर, इफिसियों ६:११-१८ में दिए गए आत्मिक हथियारों के वर्णन पर हम गौर कर सकते हैं।
१५ हमारे अपने आत्मिक हथियारों की हालत क्या है? क्या हमारी “विश्वास की ढाल” उतनी मज़बूत है जितनी होनी चाहिए? जब हम पिछले कुछ सालों पर एक नज़र डालते हैं, तो क्या हमें ढीले पड़ने के कुछ लक्षण दिखाई देते हैं जैसे सभाओं में कम हाज़िर होना, सेवकाई के लिए जोश ठंडा पड़ना या व्यक्तिगत अध्ययन के लिए उत्साह कम होना? ऐसे लक्षण बहुत ही गंभीर होते हैं! सच्चाई में अपने आपको बढ़ाने और मज़बूत करने के लिए हमें अभी कदम उठाने की ज़रूरत है।—१ तीमुथियुस ४:१५; २ तीमुथियुस ४:२; इब्रानियों १०:२४, २५.
१६. पवित्र आत्मा में प्रार्थना करने का क्या मतलब है और हमें यहोवा से हमेशा क्या माँगना चाहिए?
१६ ‘परमेश्वर के प्रेम में बने रहने’ के लिए दूसरा कदम जो हमें उठाना है, वह है “पवित्र आत्मा में प्रार्थना” करते रहना। (यहूदा २०) इसका मतलब है, यहोवा की आत्मा के प्रभाव में और उसके आत्मा-प्रेरित वचन के अनुसार प्रार्थना करना। प्रार्थना यहोवा के नज़दीक आने का और उसके लिए अपनी भक्ति ज़ाहिर करने का बहुत ही महत्त्वपूर्ण माध्यम है। इस अनोखे विशेषाधिकार के प्रति हमें कभी भी लापरवाह नहीं होना चाहिए! और जब हम प्रार्थना करते हैं, हम पवित्र आत्मा माँग सकते हैं—हमेशा माँग सकते हैं। (लूका ११:१३) यह हमारी मदद के लिए सबसे ज़बरदस्त शक्ति है। ऐसी मदद से हम लगातार ‘परमेश्वर के प्रेम में बने’ रह सकते हैं और इस तरह मसीह के सैनिक बने रह सकते हैं।
१७. (क) दया के मामले में यहूदा क्यों एक लाजवाब मिसाल है? (ख) हम सभी एक दूसरे को दया कैसे दिखा सकते हैं?
१७ यहूदा हमसे दया दिखाते रहने का आग्रह करता है। यह तीसरा कदम है। (यहूदा २२) इस मामले में वह खुद एक लाजवाब मिसाल है। वह परेशान था कि मसीही कलीसिया में भ्रष्टाचार, बदचलनी और धर्मत्याग धीरे-धीरे फैल रहे थे। इस पर भी उसकी परेशानी ने उसे यह सोचने पर मजबूर नहीं किया कि ऐसे समय पर दया जैसा “कोमल” गुण दिखाना बहुत खतरनाक हो सकता है। ज़रा भी नहीं, इसके बजाय उसने अपने भाइयों से आग्रह किया कि हर मौके पर दया दिखाते रहें, संदेह करनेवालों को प्यार से समझाएँ, यहाँ तक कि उन लोगों को “आग में से झपटकर” निकालें जो गंभीर पाप के खतरे में हैं। (यहूदा २३; गलतियों ६:१) इन संकट के समयों में प्राचीनों के लिए क्या ही बढ़िया नसीहत! वे जहाँ कहीं दया की गुंजाइश होती है वहाँ इसे दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन जहाँ ज़रूरत है, वहाँ सख्ती बरतते हैं। इसी तरह हम सभी चाहेंगे कि एक दूसरे पर दया करें। मिसाल के तौर पर, छोटी-छोटी बातों पर कुढ़ने के बजाय, हम दिल से माफ कर सकते हैं।—कुलुस्सियों ३:१३.
१८. अपनी आत्मिक लड़ाई में हमें कैसे पूरा विश्वास है कि जीत हमारी होगी?
१८ जो लड़ाई हम लड़ रहे हैं, वह आसान हरगिज़ नहीं है। जैसे यहूदा कहता है, यह एक “कड़ी लड़ाई” है। (यहूदा ३, NW) हमारे दुश्मन ताकतवर हैं। न सिर्फ शैतान, बल्कि उसका दुष्ट संसार और खुद हमारी असिद्धताएँ हमारे खिलाफ मिलकर खड़े हैं। इसके बावजूद हमें पूरा विश्वास है कि जीत हमारी ही होगी! क्यों? क्योंकि हम यहोवा की तरफ हैं। यहूदा यह याद दिलाते हुए अपना खत समाप्त करता है कि “महिमा, और गौरव, और पराक्रम, और अधिकार,” यहोवा का ही है ‘जैसा सनातन काल से है, अब भी है और युगानुयुग रहेगा।’ (यहूदा २५) ज़रा सोचिए! यही परमेश्वर हमें “ठोकर खाने से बचा सकता है”। क्या इसमें शक की गुंजाइश है? (यहूदा २४) हरगिज़ नहीं! आइए हम सब दृढ़ संकल्प करें कि अनैतिकता से दूर रहेंगे, परमेश्वर द्वारा ठहराए गए अधिकार के पद का आदर करेंगे, और अपने आपको परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखेंगे। इस तरह, हम साथ मिलकर बड़ी जीत हासिल करेंगे।
[फुटनोट]
a कुछ विद्वान दावा करते हैं कि यहूदा हनोक की किताब से हवाला दे रहा था। एक ऐसी किताब जो बाइबल का भाग नहीं है। लेकिन, आर. सी. एच. लॆन्स्की कहते हैं: “हम पूछते हैं: ‘यहाँ-वहाँ से लेकर लिखी गई यह हनोक की किताब कहाँ से आई?’ यह किताब रत्ती-रत्ती करके जोड़ी गई है और कोई भी नहीं जानता कि इसके अलग-अलग भागों की तारीखें सही भी हैं या नहीं। . . . ; कोई भी दावे के साथ नहीं कह सकता कि उसकी कुछ बातें यहूदा की पत्री में से नहीं ली गयी हैं।”
विचार के लिए सवाल
◻ यहूदा की पत्री हमें कैसे सिखाती है कि हम अनैतिकता से दूर रहें?
◻ यह क्यों इतना ज़रूरी है कि हम परमेश्वर द्वारा ठहराए गए अधिकार के पद का आदर करें?
◻ कलीसिया में अधिकार के पद का गलत इस्तेमाल करना बहुत गंभीर क्यों है?
◻ हमें क्या करना है कि हम अपने आपको परमेश्वर के प्रेम में बनाए रखें?
[पेज 15 पर तसवीर]
मसीही एक आत्मिक लड़ाई लड़ते हैं, रोमी सैनिकों की तरह दुनिया की लड़ाइयों में भाग नहीं लेते
[पेज 18 पर तसवीर]
मसीही रखवाले लालच से नहीं, प्रेम से सेवा करते हैं