उद्धार की जन घोषणा करना
“जो कोई प्रभु [यहोवा] का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।”—रोमियों १०:१३.
१. पूरे इतिहास में, कौन-सी चेतावनियाँ दी गयी हैं?
इतिहास कई ‘यहोवा के दिनों’ का वर्णन करता है। नूह के दिन का जलप्रलय, सदोम और अमोरा का सर्वनाश और सा.यु.पू. ६०७ और सा.यु. ७० में यरूशलेम का विनाश यहोवा के बड़े और अति-भयानक दिन थे। यहोवा के ख़िलाफ़ बग़ावत करनेवालों पर न्यायदंड चुकाने के वे दिन थे। (मलाकी ४:५; लूका २१:२२) उन दिनों में, कई लोग अपनी दुष्टता की वज़ह से अपनी जान से हाथ धो बैठे। लेकिन कुछ लोग बच गए। यहोवा ने चेतावनियाँ दीं, और दुष्ट लोगों को आनेवाले सर्वनाश के बारे में बताया और अच्छे दिलवालों को उद्धार पाने के लिए एक मौक़ा दिया।
२, ३. (क) पिन्तेकुस्त के दिन किस भविष्यसूचक चेतावनी को उद्धृत किया गया था? (ख) सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त से यहोवा का नाम लेने में किस बात की माँग थी?
२ इस बात का एक लाजवाब उदाहरण है सा.यु. ७० में यरूशलेम का विनाश। इस घटना को लगभग ९०० साल पहले पूर्वबताते हुए, भविष्यवक्ता योएल ने लिखा: “मैं आकाश में और पृथ्वी पर चमत्कार, अर्थात् लोहू और आग और धूएं के खम्भे दिखाऊंगा। यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले सूर्य अन्धियारा होगा और चन्द्रमा रक्त सा हो जाएगा।” कोई ऐसे ख़ौफ़नाक समय से कैसे बच सकता था? योएल ने प्रेरणा पाकर लिखा: “उस समय जो कोई यहोवा से प्रार्थना करेगा [यहोवा का नाम लेगा], वह छुटकारा पाएगा; और यहोवा के वचन के अनुसार सिय्योन पर्वत पर, और यरूशलेम में जिन बचे हुओं को यहोवा बुलाएगा, वे उद्धार पाएंगे।”—योएल २:३०-३२.
३ सामान्य युग ३३ के पिन्तेकुस्त के दिन, प्रेरित पतरस ने यरूशलेम में यहूदियों और यहूदी मतधारकों की एक भीड़ को संबोधित किया और योएल की भविष्यवाणी को उद्धृत करते हुए बताया कि उसके सुननेवाले अपने दिनों में उसकी पूर्ति की उम्मीद कर सकते थे: “मैं ऊपर आकाश में अद्भुत काम, और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्थात् लोहू, और आग और धूंए का बादल दिखाऊंगा। प्रभु [यहोवा] के महान और प्रसिद्ध दिन के आने से पहिले सूर्य अंधेरा और चान्द लोहू हो जाएगा। और जो कोई प्रभु [यहोवा] का नाम लेगा, वही उद्धार पाएगा।” (प्रेरितों २:१६-२१) पतरस की बात सुननेवाली भीड़ के सभी लोग मूसा की व्यवस्था के अधीन थे, और इसलिए वे यहोवा का नाम जानते थे। पतरस ने समझाया कि अब से यहोवा का नाम लेने में कुछ और भी शामिल होगा। उल्लेखनीय बात है कि इसमें यीशु के नाम से बपतिस्मा लेना शामिल था, जिसे मारा गया था और फिर अमर स्वर्गीय जीवन के लिए पुनरुत्थित किया गया था।—प्रेरितों २:३७, ३८.
४. मसीहियों ने दूर-दराज़ तक कौन-सा संदेश सुनाया?
४ पिन्तेकुस्त से, मसीहियों ने पुनरुत्थित यीशु के बारे में जानकारी फैलाई। (१ कुरिन्थियों १:२३) उन्होंने इस बात को ज़ाहिर किया कि मनुष्यों को यहोवा परमेश्वर के आत्मिक पुत्रों के रूप में अपनाया जा सकता था और वे ‘परमेश्वर के नए इस्राएल’ का भाग बन सकते थे, अर्थात् एक आत्मिक जाति जो दूर-दराज़ के देशों तक ‘यहोवा के गुण प्रगट करती।’ (गलतियों ६:१६; १ पतरस २:९) मरते दम तक वफ़ादार रहनेवाले लोग यीशु के स्वर्गीय राज्य में उसके साथ सहवारिसों के रूप में अमर स्वर्गीय जीवन को विरासत में पाते। (मत्ती २४:१३; रोमियों ८:१५, १६; १ कुरिन्थियों १५:५०-५४) इसके अलावा, इन मसीहियों को यहोवा के महान और अति-भयानक दिन के आने के बारे में घोषणा करनी थी। उन्हें यहूदी लोगों को आगाह करना था कि वे लोग एक ऐसे क्लेश का अनुभव करेंगे जो उस समय तक यरूशलेम और परमेश्वर के तथाकथित लोगों पर आए किसी भी क्लेश से कहीं ज़्यादा बढ़कर होता। लेकिन, उसमें से बचनेवाले होते। कौन? ऐसे लोग जो यहोवा का नाम लेते।
“अन्तिम दिनों में”
५. आज भविष्यवाणी की कौन-कौन सी पूर्ति हुई है?
५ अनेक तरीक़ों से, उस समय के हालात ने आज के हालात का पूर्वसंकेत किया। १९१४ से, मनुष्यजाति एक ऐसे ख़ास समय में जी रही है जिसे बाइबल में “अन्त समय,” “रीति-व्यवस्था की समाप्ति,” (NW) और ‘अन्तिम दिन’ कहा गया है। (दानिय्येल १२:१, ४; मत्ती २४:३-८; २ तीमुथियुस ३:१-५, १३) हमारी सदी में, क्रूर युद्धों, बेलगाम हिंसा और समाज तथा वातावरण के पतन ने बाइबल भविष्यवाणी की उल्लेखनीय पूर्ति की है। ये सभी यीशु द्वारा भविष्यवाणी किए गए चिन्ह का भाग हैं, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि मनुष्यजाति जल्द ही यहोवा के आख़िरी, निर्णायक अति-भयानक दिन का अनुभव करनेवाली है। यह अरमगिदोन की लड़ाई में अपनी चरमसीमा पर पहुँचता है, अर्थात् ऐसे “भारी क्लेश” की चरमसीमा “जैसा जगत के आरम्भ से न अब तक हुआ, और न कभी होगा।”—मत्ती २४:२१; प्रकाशितवाक्य १६:१६.
६. (क) यहोवा दीन लोगों को बचाने के लिए कैसे कार्य कर रहा है? (ख) कैसे बचें, इस पर हम पौलुस की सलाह कहाँ पाते हैं?
६ जैसे-जैसे सर्वनाश का दिन और भी नज़दीक आता जा रहा है, यहोवा दीन लोगों के उद्धार के लिए क़दम उठा रहा है। इस “अन्त समय” में उसने परमेश्वर के आत्मिक इस्राएल के बचे हुए लोगों को इकट्ठा किया है और १९३० के दशक के बाद से उसने अपने पार्थिव सेवकों का ध्यान “एक ऐसी बड़ी भीड़” को इकट्ठा करने की ओर खींचा है जो “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से [है] . . . जिसे कोई गिन नहीं सकता।” एक समूह के रूप में वे “उस बड़े क्लेश में से [ज़िंदा] निकलकर” आते हैं। (प्रकाशितवाक्य ७:९, १४) लेकिन हरेक व्यक्ति अपना बचाव कैसे निश्चित कर सकता है? प्रेरित पौलुस इस सवाल का जवाब देता है। रोमियों १० अध्याय में, वह बचाव के लिए अच्छी सलाह देता है—ऐसी सलाह जो उसके दिनों में लागू हुई और जो फिर से हमारे दिन में भी लागू होती है।
उद्धार के लिए प्रार्थना
७. (क) रोमियों १०:१, २ में कौन-सी आशा बतायी गयी है? (ख) यहोवा “सुसमाचार” की घोषणा अब और भी बड़े पैमाने पर क्यों करवा पा रहा है?
७ जब पौलुस ने रोमियों की पुस्तक लिखी, तब यहोवा इस्राएल को एक जाति की हैसियत से पहले ही ठुकरा चुका था। फिर भी, प्रेरित ने निश्चयपूर्वक कहा: “मेरे मन की अभिलाषा [सद्भावना] और उन के लिये परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है, कि वे उद्धार पाएं।” उसकी आशा थी कि सभी यहूदी परमेश्वर की इच्छा का सही-सही ज्ञान हासिल करे, जिससे उनका उद्धार हो। (रोमियों १०:१, २) इसके अलावा, यहोवा पूरे मनुष्यजगत के उन लोगों का उद्धार करना चाहता है जो विश्वास करते हैं, जैसे यूहन्ना ३:१६ में बताया गया है: “परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।” यीशु के छुड़ौती बलिदान ने उस महान उद्धार का रास्ता खोल दिया। नूह के दिन और बाद में आए न्याय के अन्य दिनों की तरह, यहोवा उस “सुसमाचार” की घोषणा करवा रहा है, जो उद्धार के मार्ग की ओर इशारा करता है।—मरकुस १३:१०, १९, २०.
८. पौलुस की लीक पर चलते हुए, आज सच्चे मसीही किसके प्रति सद्भावना दिखाते हैं, और कैसे?
८ यहूदी और अन्यजाति, दोनों के प्रति अपनी सद्भावना दिखाते हुए, पौलुस ने हर मौक़े पर प्रचार किया। वह ‘तर्क-वितर्क करके यहूदियों और यूनानियों को समझाता।’ उसने इफिसुस के प्राचीनों से कहा: “जो जो बातें तुम्हारे लाभ की थीं, उन को बताने और लोगों के साम्हने और घर घर सिखाने से कभी न झिझका। बरन यहूदियों और यूनानियों के साम्हने गवाही देता रहा, कि परमेश्वर की ओर मन फिराना, और हमारे प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास करना चाहिए।” (प्रेरितों १८:४, NHT; २०:२०, २१) उसी तरह, आज यहोवा के साक्षी जी-जान से प्रचार में ख़ुद को मसरूफ़ रखते हैं, और केवल तथाकथित मसीहियों को ही नहीं, बल्कि सभी लोगों को, यहाँ तक कि “पृथ्वी की छोर तक” प्रचार करते हैं।—प्रेरितों १:८; १८:५.
‘विश्वास के वचन’ का अंगीकार करना
९. (क) रोमियों १०:८, ९ किस तरह के विश्वास का प्रोत्साहन देता है? (ख) हमें अपने विश्वास का कब और कैसे अंगीकार करना चाहिए?
९ उद्धार के लिए टिकनेवाले विश्वास की ज़रूरत है। व्यवस्थाविवरण ३०:१४ को उद्धृत करते हुए, पौलुस ने कहा: “वचन तेरे निकट है, तेरे मुंह में और तेरे मन में है; यह वही विश्वास का वचन है, जो हम प्रचार करते हैं।” (रोमियों १०:८) जैसे-जैसे हम उस ‘विश्वास के वचन’ का प्रचार करते हैं, वह हमारे दिल में और भी गहरा बैठता जाता है। पौलुस के साथ ऐसा ही हुआ, और उसके अगले शब्द हमारे संकल्प को मज़बूत कर सकते हैं कि हम उस विश्वास को दूसरों के साथ बाँटने में पौलुस की तरह हों: “यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा।” (रोमियों १०:९) न सिर्फ़ बपतिस्मे के समय इस बात को दूसरों के सामने अंगीकार किया जाता है, लेकिन ऐसा अंगीकार हमेशा किया जाना चाहिए, जो सच्चाई के महान पहलुओं के बारे में एक उत्साहपूर्ण जन गवाही है। ऐसी सच्चाई सर्वसत्ताधारी प्रभु यहोवा के बहुमूल्य नाम पर; हमारे मसीहाई राजा और छुड़ौती देनेवाले, प्रभु यीशु मसीह पर; और अद्भुत राज्य प्रतिज्ञाओं पर केंद्रित होती है।
१०. रोमियों १०:१०, ११ के सामंजस्य में, हमें इस ‘विश्वास के वचन’ का क्या करना चाहिए?
१० ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए कोई उद्धार नहीं है जो इस ‘विश्वास के वचन’ को स्वीकार और लागू नहीं करता, क्योंकि प्रेरित आगे कहता है: “धार्मिकता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है। क्योंकि पवित्र शास्त्र यह कहता है, कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।” (रोमियों १०:१०, ११) हमें इस ‘विश्वास के वचन’ का सही-सही ज्ञान हासिल करना चाहिए और इसे अपने दिल में संजोए रखना चाहिए ताकि हम इसे दूसरों को बताने के लिए प्रेरित हों। ख़ुद यीशु हमें याद दिलाता है: “जो कोई इस व्यभिचारी और पापी जाति के बीच मुझ से और मेरी बातों से लजाएगा, मनुष्य का पुत्र भी जब वह पवित्र दूतों के साथ अपने पिता की महिमा सहित आएगा, तब उस से भी लजाएगा।”—मरकुस ८:३८.
११. सुसमाचार की घोषणा कितने बड़े पैमाने पर की जानी चाहिए, और क्यों?
११ जैसे भविष्यवक्ता दानिय्येल द्वारा पहले से ही बताया गया था, इस अंत के समय में “समझदार लोग आकाशमण्डल के तेज के समान” चमकते हुए दिखायी दे रहे हैं, जैसे-जैसे राज्य गवाही पृथ्वी की छोर तक फैलती है। वे “बहुतों को धार्मिकता की ओर बढ़ाते हैं,” और वाक़ई सच्चा ज्ञान बहुतायत में है, क्योंकि यहोवा अंत के इस समय से संबंधित भविष्यवाणियों पर और भी तेज़ रोशनी डाल रहा है। (दानिय्येल १२:३, ४, NHT) यह उद्धार का संदेश है जो सत्य और धार्मिकता से प्रेम करनेवाले सभी लोगों के बचाव के लिए बहुत ही ज़रूरी है।
१२. रोमियों १०:१२ की बात प्रकाशितवाक्य १४:६ में बताई गयी स्वर्गदूत की आज्ञा से कैसे मेल खाती है?
१२ प्रेरित पौलुस आगे कहता है: “यहूदियों और यूनानियों में कुछ भेद नहीं, इसलिये कि वह सब का प्रभु है; और अपने सब नाम लेनेवालों के लिये उदार है।” (रोमियों १०:१२) आज “सुसमाचार” का प्रचार और भी बड़े, जागतिक पैमाने पर किया जाना चाहिए—सभी लोगों को, पृथ्वी की छोर तक। प्रकाशितवाक्य १४:६ का स्वर्गदूत आकाश के बीच उड़ना जारी रखता है, और हमें “पृथ्वी पर के रहनेवालों की हर एक जाति, और कुल, और भाषा, और लोगों को सुनाने के लिये सनातन सुसमाचार” देता है। प्रतिक्रिया दिखानेवालों के लिए इससे क्या लाभ होगा?
यहोवा का नाम लेना
१३. (क) १९९८ के लिए हमारा वार्षिक पाठ क्या है? (ख) आज के लिए यह वार्षिक पाठ बिलकुल मुनासिब क्यों है?
१३ योएल २:३२ को उद्धृत करते हुए, पौलुस घोषणा करता है: “जो कोई प्रभु [यहोवा] का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।” (रोमियों १०:१३) सो यह बिलकुल ही मुनासिब है कि ये शब्द १९९८ में यहोवा के साक्षियों के लिए वार्षिक पाठ के रूप में चुने गए हैं! यहोवा पर भरोसा रखते हुए आगे बढ़ना, उसके नाम को और जिस महान उद्देश्य को वह सूचित करता है, उसको ज़ाहिर करना आज पहले से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है! पहली सदी की तरह, मौजूदा भ्रष्ट रीति-व्यवस्था के अंतिम दिनों में भी यह पुकार गूँजती है: “अपने आप को इस टेढ़ी जाति से बचाओ।” (प्रेरितों २:४०) परमेश्वर से डरनेवाले दुनिया भर के सभी लोगों को मानो डंके की चोट पर यह निमंत्रण दिया जा रहा है कि यहोवा का नाम लें, ताकि वह उन लोगों का, और सुसमाचार की उनकी जन घोषणा को सुननेवालों का उद्धार करे।—१ तीमुथियुस ४:१६.
१४. हमें उद्धार के लिए किस चट्टान को पुकारना चाहिए?
१४ जब यहोवा का महान दिन इस धरती पर शुरू होता है तब क्या होगा? ज़्यादातर लोग उद्धार के लिए यहोवा की ओर नहीं देखेंगे। आम तौर पर मनुष्यजाति “पहाड़ों, और चटानों से कहने [लगेगी], कि हम पर गिर पड़ो; और हमें उसके मुंह से जो सिंहासन पर बैठा है, और मेम्ने के प्रकोप से छिपा लो।” (प्रकाशितवाक्य ६:१५, १६) वे इस रीति-व्यवस्था के पहाड़ जैसे संगठनों और संस्थाओं पर अपनी आस लगाए बैठेंगे। मगर यह कितना अच्छा होता अगर वे सबसे महान चट्टान, यहोवा परमेश्वर पर भरोसा रखते! (व्यवस्थाविवरण ३२:३, ४) उसके बारे में राजा दाऊद ने कहा: “यहोवा मेरी चट्टान, और मेरा गढ़ और मेरा छुड़ानेवाला है।” यहोवा “अपने [हमारे] उद्धार की चट्टान” है। (भजन १८:२; ९५:१) उसका नाम “दृढ़ कोट” है, एकमात्र “कोट” जो इतना मज़बूत है कि हमें आनेवाले संकट में सुरक्षित रख सकता है। (नीतिवचन १८:१०) इसीलिए, यह बहुत ही ज़रूरी है कि आज ज़िंदा क़रीब ६ अरब लोगों में से ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को वफ़ादारी और निष्कपटता से यहोवा का नाम लेना सिखाया जाए।
१५. रोमियों १०:१४ विश्वास के बारे में क्या बताता है?
१५ ठीक ही है कि प्रेरित पौलुस आगे पूछता है: “जिस पर उन्हों ने विश्वास नहीं किया, वे उसका नाम क्योंकर लें?” (रोमियों १०:१४) ऐसी भीड़ की भीड़ है जिसे अब भी ‘विश्वास के वचन’ को अपना बनाने के लिए मदद दी जा सकती है, ताकि उद्धार के लिए यहोवा का नाम ले। विश्वास बहुत ही ज़रूरी है। पौलुस एक और ख़त में लिखता है: “विश्वास बिना उसे [परमेश्वर को] प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आनेवाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है; और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों ११:६) लेकिन, ये लाखों लोग परमेश्वर में विश्वास किस क़दर रखेंगे? रोमियों को लिखे ख़त में पौलुस पूछता है: “जिस की नहीं सुनी उस पर क्योंकर विश्वास करें?” (रोमियों १०:१४) क्या यहोवा सुनने के लिए उन्हें कोई ज़रिया देता है? बिलकुल देता है! आगे पौलुस के शब्दों पर कान दीजिए: “प्रचारक बिना क्योंकर सुनें?”
१६. ईश्वरीय प्रबंध में प्रचारक क्यों आवश्यक हैं?
१६ पौलुस की दलील से यह बात बिलकुल साफ़ हो गयी है कि प्रचारक ज़रूरी हैं। यीशु ने बताया कि ठीक “रीति-व्यवस्था की समाप्ति तक” ऐसा होता। (NW) (मत्ती २४:१४; २८:१८-२०) प्रचार कार्य ईश्वरीय प्रबंध का एक अहम भाग है, ताकि बच निकलने के लिए यहोवा का नाम लेने में लोगों की मदद की जाए। मसीहीजगत में भी ज़्यादातर लोग परमेश्वर के बहुमूल्य नाम की इज़्ज़त करने के लिए कुछ भी नहीं करते। बहुतों ने यहोवा को त्रियेकवाद के सिद्धांत में दो और हस्तियों के साथ जोड़कर इतनी बुरी तरह उलझा दिया है कि उसे समझाना नामुमकिन है। और तो और, अनेक लोग उस वर्ग में आते हैं जिनके बारे में भजन १४:१ और ५३:१ में बताया गया है: “मूर्ख ने अपने मन में कहा है, कोई परमेश्वर है ही नहीं।” अगर वे आनेवाले महा क्लेश से बच निकलना चाहते हैं, तो उन्हें जानना होगा कि यहोवा ज़िंदा परमेश्वर है, और समझना होगा कि उसका नाम किस-किस बात को सूचित करता है।
प्रचारकों के ‘सोहावने पाँव’
१७. (क) पौलुस का पुनःस्थापना की भविष्यवाणी को उद्धृत करना क्यों मुनासिब है? (ख) ‘सोहावने पाँव’ होने में क्या शामिल है?
१७ प्रेरित पौलुस एक और बहुत ज़रूरी सवाल करता है: “यदि भेजे न जाएं, तो क्योंकर प्रचार करें? जैसा लिखा है, कि उन के पांव क्या ही सोहावने हैं, जो अच्छी बातों का सुसमाचार सुनाते हैं!” (रोमियों १०:१५) पौलुस यहाँ यशायाह ५२:७ को उद्धृत करता है, जो पुनःस्थापना की भविष्यवाणी का भाग है जो १९१९ से लागू हुई है। आज, फिर एक बार, यहोवा उसे भेजता है “जो शुभ समाचार लाता है, जो शान्ति की बातें सुनाता है और कल्याण का शुभ समाचार और उद्धार का सन्देश देता है।” परमेश्वर के अभिषिक्त “पहरुए” और उनके साथी आज्ञाकारिता दिखाते हुए ख़ुशी से जयजयकार करते रहते हैं। (यशायाह ५२:७, ८) आज जब उद्धार की बातें सुनानेवाले घर-घर पैदल जाते हैं, तब उनके पाँव शायद थक जाएँ, और गंदे भी हो जाएँ, लेकिन उनके चेहरे पर ख़ुशी की क्या ही चमक होती है! वे जानते हैं कि शांति का सुसमाचार सुनाने और शोक करनेवालों का हौसला बढ़ाने के लिए, और उद्धार को मद्देनज़र रखते हुए यहोवा का नाम लेने में उनकी मदद करने के लिए उन्हें यहोवा ने हुक़्म दिया है।
१८. रोमियों १०:१६-१८ सुसमाचार सुनाने के अंजाम के बारे में क्या कहता है?
१८ चाहे लोग “समाचार की प्रतीति” करें या उसकी अवज्ञा करने का चुनाव करें, पौलुस के शब्द सच साबित होते हैं: “क्या उन्हों ने नहीं सुना? सुना तो सही क्योंकि लिखा है कि उन के स्वर सारी पृथ्वी पर, और उन के वचन जगत की छोर तक पहुंच गए हैं।” (रोमियों १०:१६-१८) ठीक जैसे “आकाश ईश्वर की महिमा वर्णन कर रहा है,” जो उसकी की गयी रचनाओं में साफ़ दिखायी देता है, उसी तरह धरती पर उसके साक्षियों को “यहोवा के प्रसन्न रहने के वर्ष का और हमारे परमेश्वर के पलटा लेने के दिन” का प्रचार करना चाहिए, ‘ताकि सब विलाप करनेवालों को शान्ति दें।’—भजन १९:१-४; यशायाह ६१:२.
१९. उन लोगों का परिणाम क्या होगा जो आज ‘यहोवा का नाम लेते हैं?’
१९ यहोवा का महान और अति-भयानक दिन और भी नज़दीक आता जा रहा है। “उस दिन के कारण हाय! क्योंकि यहोवा का दिन निकट है। वह सर्वशक्तिमान की ओर से सत्यानाश का दिन होकर आएगा।” (योएल १:१५; २:३१) हम दुआ करते हैं कि और भी बहुतेरे लोग सुसमाचार के प्रति शीघ्रता की भावना के साथ क़दम उठाएँगे, और यहोवा के संगठन की ओर आएँगे। (यशायाह ६०:८; हबक्कूक २:३) याद कीजिए कि यहोवा के अन्य दिनों में दुष्ट लोगों का नाश हुआ था—जैसे नूह के, लूत के, और धर्मत्यागी इस्राएल और यहूदा के दिनों में। अब हम सबसे बड़े क्लेश की दहलीज़ पर खड़े हैं, जब यहोवा का बवण्डर इस धरती पर से दुष्टता का सफ़ाया कर देगा, और ऐसे परादीस के लिए रास्ता तैयार करेगा जहाँ हमेशा-हमेशा की शांति होगी। क्या आप वफ़ादारी से ‘यहोवा का नाम लेनेवाले’ होंगे? अगर हाँ, तो ख़ुशी मनाइए! परमेश्वर का आपसे वादा है कि आप बचाए जाएँगे।—रोमियों १०:१३.
आप क्या जवाब देंगे?
◻ सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के बाद से किन नयी बातों की घोषणा की गयी?
◻ मसीहियों को ‘विश्वास के वचन’ पर कैसे ध्यान देना चाहिए?
◻ ‘यहोवा का नाम लेने’ का मतलब क्या है?
◻ किस अर्थ में राज्य संदेशवाहकों के ‘सोहावने पाँव’ हैं?
[पेज 18 पर तसवीर]
परमेश्वर के लोग पोर्टो रीको, सेनिगल, पेरू, पपुआ न्यू गिनी में—जी हाँ, दुनिया भर में—उसके गुण प्रकट कर रहे हैं