परमेश्वर की भविष्यवाणी के वचन पर ध्यान दें
“हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह . . . दृढ़ ठहरा और तुम यह अच्छा करते हो जो यह समझकर उस पर ध्यान करते हो।”—2 पतरस 1:19.
1, 2. झूठे मसीहा के बारे में उदाहरण दीजिए?
सदियों से ऐसे कई इंसान आए जिन्होंने मसीहा होने का दावा किया और कई भविष्यवाणियाँ की। मिसाल के तौर पर, पाँचवीं सदी के मूसा नामक एक आदमी की बात लीजिए। उसने क्रीत द्वीप के यहूदियों को यकीन दिलाया कि वही मसीहा है और वादा किया कि उन पर हो रहे अत्याचार से वह उन्हें ज़रूर आज़ाद करायेगा। उसने एक दिन उनकी आज़ादी के लिए ठहराया था और उस दिन सारे यहूदी उसके पीछे हो लिये। वह उन्हें भूमध्य सागर के पास एक ऊँचे पहाड़ पर ले गया और फिर उसने यहूदियों से कहा कि अब उन्हें बस सागर में कूद जाने की देर है कि पानी अपने-आप दो हिस्सों में बँट जाएगा और वे आज़ाद हो जाएँगे। उसकी बातों में आकर कई यहूदी सागर में कूद पड़े मगर अपनी जान से हाथ धो बैठे। और वह झूठा मसीहा, वहाँ से फरार हो गया।
2 बारहवीं सदी में, यमेन देश में भी इसी तरह एक और “मसीहा” निकला। जब वहाँ के खलीफा यानी राजा ने उससे मसीहा होने का सबूत माँगा, तो उसने कहा, ‘अगर तू मेरा सिर कटवा दे, तो मैं फौरन ज़िंदा हो जाऊँगा और यही मेरे मसीहा होने का सबूत होगा।’ खलीफा ने ऐसा ही किया और उसी दम उस झूठे मसीहा का अंत हो गया।
3. सच्चा मसीहा कौन है और उसकी सेवकाई ने क्या साबित किया?
3 दुनिया में ऐसे कई मसीहा आए, जो झूठे साबित हुए और उनकी भविष्यवाणियाँ झूठी निकलीं। लेकिन, परमेश्वर की भविष्यवाणी के वचन, बाइबल पर हम पूरा भरोसा कर सकते हैं। बाइबल कहती है, यीशु ही सच्चा मसीहा है। क्योंकि बाइबल में मसीहा के बारे में जो भी भविष्यवाणियाँ लिखी हैं, वे सारी यीशु में सच हुईं। जैसे कि मत्ती ने, यशायाह की एक भविष्यवाणी की पूर्ति के बारे में लिखा: ‘जबूलून और नपताली के देश में, और झील के मार्ग से यरदन के पार अन्यजातियों के देश गलील में, जो लोग अन्धकार में बैठे थे उन्हों ने बड़ी ज्योति देखी; और जो मृत्यु के देश और छाया में बैठे थे, उन पर ज्योति चमकी। उस समय से यीशु ने प्रचार करना और यह कहना आरम्भ किया, कि मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है।’ (मत्ती 4:15-17; यशायाह 9:1, 2) जी हाँ, यीशु ही “बड़ी ज्योति” था। उसके प्रचार काम से साफ ज़ाहिर हुआ कि वही वह भविष्यवक्ता है, जिसके बारे में मूसा ने सदियों पहले कहा था और यह भी कहा था कि जो उसकी बात नहीं सुनेगा, उसका नाश किया जाएगा।—व्यवस्थाविवरण 18:18, 19; प्रेरितों 3:22, 23.
4. यीशु ने यशायाह 53:12 की भविष्यवाणी कैसे पूरी की?
4 यशायाह 53:12 में भी, मसीहा के बारे में एक भविष्यवाणी की गई थी: “उस ने अपना प्राण मृत्यु के लिये उण्डेल दिया, वह अपराधियों के संग गिना गया; तौभी उस ने बहुतों के पाप का बोझ उठा लिया, और, अपराधियों के लिये बिनती करता है।” यह भविष्यवाणी भी यीशु में पूरी हुई क्योंकि उसने अपना बलिदान दिया था। वह अपनी मौत से पहले, शिष्यों का विश्वास मज़बूत करना चाहता था। (मरकुस 10:45) इसलिए उसने उन्हें एक ऐसा दर्शन दिया जो बहुत ही अद्भुत और अनोखा था। वह दर्शन था, उसका रूपांतरण।
रूपांतरण विश्वास मज़बूत करता है
5. अपने शब्दों में रूपांतरण का वर्णन कीजिए।
5 दरअसल यह रूपांतरण एक भविष्यवाणी थी। रूपांतरण की घटना से थोड़े समय पहले यीशु ने अपने प्रेरितों से कहा था: “मनुष्य का पुत्र अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा, . . . मैं तुम से सच कहता हूं, कि जो यहां खड़े हैं, उन में से कितने ऐसे हैं; कि जब तक मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते हुए न देख लेंगे, तब तक मृत्यु का स्वाद कभी न चखेंगे।” (मत्ती 16:27, 28) तो क्या यीशु के कुछ प्रेरितों ने उसे वाकई अपने राज्य में आते देखा? जी हाँ, मत्ती 17:1-7 में लिखा है: “छः दिन के बाद यीशु ने पतरस और याकूब और उसके भाई यूहन्ना को साथ लिया, और उन्हें एकान्त में किसी ऊंचे पहाड़ पर ले गया। और उन के साम्हने उसका रूपान्तर हुआ।” वह क्या ही अनोखी घटना थी! “उसका मुंह सूर्य की नाईं चमका और उसका वस्त्र ज्योति की नाईं उजला हो गया। और देखो, मूसा और एलिय्याह उसके साथ बातें करते हुए उन्हें दिखाई दिए।” इसके बाद, “एक उजले बादल ने उन्हें छा लिया, और देखो; उस बादल में से यह शब्द निकला, कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूं: इस की सुनो। चेले यह सुनकर मुंह के बल गिर गए और अत्यन्त डर गए। यीशु ने पास आकर उन्हें छूआ, और कहा, उठो; डरो मत।”
6. (क) यीशु ने रूपांतरण को दर्शन क्यों कहा था? (ख) रूपांतरण किस बात की एक झलक थी?
6 यह अद्भुत घटना हर्मोन पर्वत पर ज़रूर रात के वक्त हुई थी, इसीलिए यीशु की महिमा बहुत ही चकाचौंध कर देनेवाली और जीवंत थी। यीशु ने इस घटना को एक दर्शन कहा क्योंकि वहाँ मूसा और एलिय्याह सचमुच के मौजूद नहीं थे। ये दोनों तो सदियों पहले मर चुके थे, वहाँ सिर्फ यीशु ही मौजूद था। यह घटना एक हकीकत नहीं बल्कि एक दर्शन था। (मत्ती 17:8, 9; NHT) इस अद्भुत दर्शन से पतरस, याकूब और यूहन्ना को यीशु की उस महिमा की झलक मिली, जब वह राजा बनकर सिंहासन पर विराजमान होता। इसमें मूसा और एलिय्याह, अभिषिक्त मसीहियों को सूचित करते हैं, जो यीशु के साथ राज्य करेंगे। इसके अलावा, यह दर्शन इस बात का ज़बरदस्त सबूत था कि यीशु ने अपने राजा होने और राज्य के बारे में जो भी कहा था, वह ज़रूर सच होगा।
7. हम कैसे जान सकते हैं कि पतरस को रूपांतरण की एक-एक बात अच्छी तरह याद थी?
7 इस दर्शन में यीशु के सूरज की तरह चमकते हुए चेहरे, ज्योति की तरह उजले वस्त्र और खुद यहोवा की आवाज़ ने वाकई उन तीनों प्रेरितों का विश्वास मज़बूत किया, जो कि आगे जाकर मसीही कलीसिया की अगुवाई करनेवाले थे। लेकिन प्रेरितों को इस दर्शन के बारे में तब तक किसी से कुछ नहीं कहना था, जब तक कि यीशु का पुनरुत्थान नहीं हो जाता। और करीब 32 साल बाद, जब पतरस ने इस रूपांतरण के बारे में लिखा, तो उसे यह घटना इतनी अच्छी तरह याद थी, मानो कल की बात हो। उस घटना की अहमियत बताते हुए पतरस ने लिखा: “जब हम ने तुम्हें अपने प्रभु यीशु मसीह की सामर्थ का, और आगमन का समाचार दिया था तो वह चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों का अनुकरण नहीं किया था बरन हम ने आप ही उसके प्रताप को देखा था। कि उस ने परमेश्वर पिता से आदर, और महिमा पाई जब उस प्रतापमय महिमा में से यह वाणी आई कि यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूं। और जब हम उसके साथ पवित्र पहाड़ पर थे, तो स्वर्ग से यही वाणी आते सुना।”—2 पतरस 1:16-18.
8. (क) अपने पुत्र के बारे में परमेश्वर की वाणी से हमें क्या पता चलता है? (ख) रूपांतरण में बादल के छाने का मतलब क्या है?
8 रूपांतरण की एक सबसे बड़ी खासियत थी, यहोवा की यह वाणी: “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं प्रसन्न हूं: इस की सुनो।” यह वाणी साफ ज़ाहिर करती है कि पूरी दुनिया को यीशु की बात ज़रूर माननी चाहिए क्योंकि परमेश्वर ने उसे राजा ठहराया है। इस दर्शन में बादल दिखाया गया जिसका मतलब है कि दर्शन की बातें अदृश्य रूप से घटेंगी, यानी इसे सिर्फ समझ की आँखों से देखा जा सकेगा। दर्शन की पूर्ति, सिर्फ वे देख पाएँगे जो यीशु के राजा बनने के “चिन्ह” को पहचान लेंगे। (मत्ती 24:3) इसलिए यीशु ने अपने प्रेरितों को चिताया था कि इस दर्शन के बारे में तब तक किसी से न कहना, जब तक कि वह फिर से जी न उठे। तो इससे साफ पता चलता है कि पुनरुत्थान के बाद ही यीशु अपनी महिमा में आता और उसे राज्य का अधिकार मिलता।
9. रूपांतरण से हमारा विश्वास क्यों दृढ़ होना चाहिए?
9 रूपांतरण का ज़िक्र करने के बाद पतरस ने लिखा: “हमारे पास जो भविष्यद्वक्ताओं का वचन है, वह इस [रूपांतरण की] घटना से दृढ़ ठहरा और तुम यह अच्छा करते हो जो यह समझकर उस पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अन्धियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे हृदयों में न चमक उठे। पर पहिले यह जान लो कि पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती। क्योंकि कोई भी भविष्यद्वाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जाकर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।” (2 पतरस 1:19-21) रूपांतरण ने इस बात को दृढ़ कर दिया कि भविष्यवक्ताओं के वचन बिलकुल सच हैं। इसलिए आज हमें परमेश्वर के वचन पर ध्यान देना चाहिए, न कि “चतुराई से गढ़ी हुई कहानियों” पर, जो परमेश्वर की ओर से नहीं होते। और खासकर हमारा विश्वास इस दर्शन से और भी मज़बूत होना चाहिए क्योंकि दर्शन की बातें आज हकीकत बन चुकी हैं और यीशु अब स्वर्ग में विराजमान एक शक्तिशाली राजा है। और इस बात का हमारे पास ठोस सबूत भी है।
भोर का तारा कैसे चमक उठता है
10. पतरस ने किसे “भोर का तारा” कहा और हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?
10 पतरस ने लिखा: “तुम यह अच्छा करते हो जो यह समझकर उस [परमेश्वर के वचन] पर ध्यान करते हो, कि वह एक दीया है, जो अन्धियारे स्थान में उस समय तक प्रकाश देता रहता है जब तक कि पौ न फटे, और भोर का तारा तुम्हारे हृदयों में न चमक उठे।” यह “भोर का तारा” क्या है? प्रकाशितवाक्य 22:16 में यीशु को “भोर का चमकता हुआ तारा” कहा गया है। पतरस भी यहाँ यीशु को ही “भोर का तारा” कह रहा था जब वह अपने राज्य की महिमा में आता। दरअसल वह उन तारों की मिसाल दे रहा था, जो पूरब की ओर सूरज के उगने से पहले दिखाई देते हैं, और जिससे पता चलता है कि एक नया दिन शुरू होनेवाला है। ठीक उसी तरह जब यीशु अपनी राज्य की महिमा में आया तब वह मानो एक भोर के तारे के समान इस विश्वमंडल पर चमक उठा और एक नए युग के आने का पैगाम लाया।
11. (क) 2 पतरस 1:19 में बताया गया “भोर का तारा,” एक इंसान के हृदय में क्यों उदय नहीं हो सकता? (ख) न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन 2 पतरस 1:19 का सही अनुवाद किस तरह करता है?
11 मगर हमारी हिंदी बाइबल की तरह ही, कई अन्य बाइबलें 2 पतरस 1:19 में कहती हैं कि भोर का तारा मनुष्यों के हृदय में चमक उठेगा। लेकिन मनुष्य के हृदय का वज़न तो सिर्फ 250-300 ग्राम होता है। इसलिए भोर का तारा, यीशु मसीह, जो स्वर्ग में एक अमर आत्मिक प्राणी है, हमारे छोटे-से हृदय में कैसे चमक सकता है? (1 तीमुथियुस 6:16) न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में यही आयत पढ़ने से पता चलता है कि यहाँ लाक्षणिक हृदय यानी हमारे मन की बात हो रही है, और हमारे हृदय में परमेश्वर के वचन के प्रकाशमान होने की बात हो रही है। उसमें सही तरह अनुवाद किया गया है: “वह [परमेश्वर का वचन] एक दीया है, जो अन्धियारे स्थान में, यानी तुम्हारे हृदयों में, उस समय तक प्रकाश देता रहता है, जब तक कि पौ न फटे और भोर का तारा न चमक उठे।”
12. इंसानों के हृदय की हालत क्या है, मगर जो सच्चे मसीही हैं उनके बारे में क्या कहा जा सकता है?
12 आज इंसान के हृदय की हालत क्या है? इसमें शक नहीं कि उनके हृदय आध्यात्मिक रूप से अंधकार में हैं। अगर हम सच्चे मसीही न होते तो हमारा हृदय भी अंधकार में ही होता। मगर हमारे हृदय में रौशनी चमक रही है क्योंकि हम परमेश्वर के दीये समान वचन पर ध्यान देते हैं। तो पतरस के कहने का मतलब यही था कि जो मसीही परमेश्वर के वचन पर ध्यान देते हैं वे ही जागते रहेंगे और इस वज़ह से वे नए दिन की शुरूआत को पहचान लेंगे। वे यह जान लेंगे कि भोर का तारा इंसानों के हृदय में नहीं बल्कि विश्वमंडल पर चमक उठा है।
13. (क) हम पूरे यकीन के साथ क्यों कह सकते हैं कि “भोर का तारा” उदय हो चुका है? (ख) यीशु ने हमारे दिन के जिन बुरे हालात के बारे में भविष्यवाणी की थी, उन्हें सच्चे मसीही धीरज से क्यों सह लेते हैं?
13 भोर का तारा उदय हो चुका है! यानी यीशु अभी स्वर्ग से राज कर रहा है। यह हम कैसे जान सकते हैं? अगर हम यीशु के राजा बनने के बारे में उसकी शानदार भविष्यवाणी पर ध्यान दें। यीशु ने कहा था कि उसके राजा बनने पर ऐसे युद्ध होंगे, जो पहले कभी नहीं हुए थे। महामारियाँ और भूकंप होंगे, साथ ही संसार भर में सुसमाचार का प्रचार किया जाएगा। ये सारी बातें आज हमारे दिनों में पूरी हो रही हैं जो इस बात का सबूत हैं कि यीशु राजा बन चुका है। (मत्ती 24:3-14) यकीनन, इन मुसीबतों का असर हम मसीहियों पर भी होता है, मगर फिर भी हम धीरज धरते हैं और खुश रहते हैं। क्यों? क्योंकि हम परमेश्वर के वचन पर ध्यान देते हुए उसकी रौशनी में चलते हैं और नयी दुनिया के बारे में उसके वादे पर पूरा भरोसा रखते हैं। परमेश्वर के वचन के मुताबिक हम “अन्त समय” की सबसे आखिरी घड़ी में आ पहुँचे हैं इसलिए नई दुनिया बहुत ही करीब है। (दानिय्येल 12:4) आज हर कहीं संकट के काले बादल छाए हुए हैं, जैसा कि यशायाह 60:2 में बताया गया था: “देख, पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है।” ऐसे अंधकार में भला, कोई सही रास्ता कैसे ढूँढ़ सकता है? इसके लिए एक इंसान को अभी, परमेश्वर के दीये समान वचन पर ध्यान देना होगा, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। उसे नम्र होकर सच्चे दिल से यहोवा परमेश्वर की तरफ आना होगा क्योंकि ज़िंदगी और रौशनी उसी से मिलती है। (भजन 36:9; प्रेरितों 17:28) तभी उसे सच्चा ज्ञान मिलेगा और उसका भविष्य उज्जवल होगा।—प्रकाशितवाक्य 21:1-5.
‘ज्योति जगत में आ चुकी है’
14. बाइबल में बताई गई शानदार आशीषों को पाने के लिए हमें क्या करना होगा?
14 बाइबल यह साफ ज़ाहिर करती है कि यीशु ने 1914 से राज करना शुरू कर दिया है। इसलिए अब जल्द ही शानदार आशीषों के बारे में की गई भविष्यवाणियाँ भी पूरी हो जाएँगी। अगर हम उन आशीषों को पाना चाहते हैं, तो हमें ऐसे नम्र व्यक्ति बनना होगा जो यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं और जाने-अनजाने में किए गए पापों के लिए दिल से पश्चाताप करते हैं। मगर जो अंधकार ही में रहना चाहते हैं, उन्हें तो अनंत जीवन की आशीष हरगिज़ नहीं मिलेगी। यीशु ने कहा था: “दंड की आज्ञा का कारण यह है कि ज्योति जगत में आई है, और मनुष्यों ने अन्धकार को ज्योति से अधिक प्रिय जाना क्योंकि उन के काम बुरे थे। क्योंकि जो कोई बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है, और ज्योति के निकट नहीं आता, ऐसा न हो कि उसके कामों पर दोष लगाया जाए। परन्तु जो सच्चाई पर चलता है, वह ज्योति के निकट आता है, ताकि उसके काम प्रगट हों, कि वह परमेश्वर की ओर से किए गए हैं।”—यूहन्ना 3:19-21.
15. पुत्र के ज़रिए परमेश्वर ने उद्धार का जो इंतज़ाम किया है, उसे ठुकराने का अंजाम क्या होगा?
15 यीशु ही वह ज्योति है, इसलिए उसकी बातों पर ध्यान देना बेहद ज़रूरी है। पौलुस ने लिखा: “पूर्व युग में परमेश्वर ने बापदादों से थोड़ा थोड़ा करके और भांति भांति से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें करके। इन दिनों के अन्त में हम से पुत्र के द्वारा बातें कीं, जिसे उस ने सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया।” (इब्रानियों 1:1, 2) लेकिन अगर हम परमेश्वर यहोवा के इंतज़ाम को ही ठुकरा दें, जो उसने अपने प्यारे बेटे के ज़रिए हमारे उद्धार के लिए किया है, तो क्या होगा? इसका जवाब पौलुस देता है: ‘यदि स्वर्गदूतों के द्वारा कहा गया वचन स्थिर रहा और उसके हर एक अपराध और आज्ञा न माननेवालों को ठीक ठीक बदला मिला, तो हम लोग ऐसे बड़े उद्धार की उपेक्षा करके क्योंकर बच सकते हैं? जिस की चर्चा पहिले पहिल प्रभु के द्वारा हुई, और सुननेवालों के द्वारा हमें निश्चय हुआ। और साथ ही परमेश्वर भी अपनी इच्छा के अनुसार चिन्हों, और अद्भुत कामों, और नाना प्रकार के सामर्थ के कामों, और पवित्र आत्मा के बरदानों के बांटने के द्वारा इस की गवाही देता रहा।’ (इब्रानियों 2:2-4) जी हाँ, बाइबल की सभी भविष्यवाणियों के पूरा होने में यीशु एक अहम भूमिका निभाता है।—प्रकाशितवाक्य 19:10.
16. यहोवा परमेश्वर की सारी भविष्यवाणियों पर हमें पूरा भरोसा क्यों है?
16 जैसा हमने देखा कि पतरस ने कहा: “पवित्र शास्त्र की कोई भी भविष्यद्वाणी किसी के अपने ही विचारधारा के आधार पर पूर्ण नहीं होती।” तो यह बात बिलकुल सच है क्योंकि इंसान की अपनी भविष्यवाणियाँ कभी सच नहीं होतीं। लेकिन यहोवा की हर भविष्यवाणी पर हम पूरा भरोसा कर सकते हैं क्योंकि वह ज़रूर पूरी होती है। वह अपने सेवकों को पवित्र शक्ति के द्वारा बताता है कि उसकी भविष्यवाणियाँ किस तरह पूरी होंगी। यहोवा की कई भविष्यवाणियों को हमने 1914 से पूरा होते देखा है और इसके लिए हम वाकई उसके बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हैं। हमें पूरा भरोसा है कि इस दुष्ट दुनिया के अंत के बारे में की गई उसकी बाकी भविष्यवाणियाँ भी पूरी होंगी। अब ज़रूरी यह है कि हम परमेश्वर की भविष्यवाणियों पर ध्यान देते रहें और अपनी ज्योति चमकाते रहें। (मत्ती 5:16) जी हाँ, हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि यहोवा का वचन इस दुनिया के घुप ‘अन्धियारे में हमारे लिए प्रकाश की तरह चमक’ रहा है!—यशायाह 58:10.
17. हमें परमेश्वर से आध्यात्मिक रौशनी की ज़रूरत क्यों है?
17 अगर रौशनी न होती, तो हमें कुछ दिखाई नहीं देता। हमें खाने को भी कुछ नहीं मिलता क्योंकि रौशनी की बदौलत ही अनाज उगता है और हम तरह-तरह के खाने की चीज़ों का मज़ा लेकर तंदुरुस्त रहते हैं। रौशनी के बगैर जीना मुमकिन नहीं। लेकिन आध्यात्मिक रौशनी के बारे में हमारा क्या खयाल है? यह भी उतनी ही ज़रूरी है। परमेश्वर से मिलनेवाली रौशनी हमें सही रास्ता दिखाती है और उज्जवल भविष्य की ओर ले जाती है। (भजन 119:105) यह तो यहोवा परमेश्वर का प्यार है कि वह ‘अपना प्रकाश और अपनी सच्चाई हमें भेजता है।’ (भजन 43:3) इसके लिए हमें वाकई दिल से कदर दिखानी चाहिए। आइए हम “परमेश्वर की महिमा” के ज्ञान का प्रकाश लेने की पूरी-पूरी कोशिश करें ताकि हमारा हृदय और भी प्रकाशमान हो।—2 कुरिन्थियों 4:6; इफिसियों 1:18.
18. यहोवा का भोर का तारा, यीशु अब क्या करने के लिए तैयार है?
18 यह जानना कितनी खुशी की बात है कि रूपांतरण के दर्शन की बातें आज पूरी हो रही हैं। भोर का तारा, यीशु मसीह 1914 से इस विश्व पर चमक उठा है! इसका मतलब है कि जल्द ही एक नए युग की शुरूआत होगी। मगर इससे पहले यीशु “सर्वशक्तिमान परमेश्वर के उस बड़े दिन की लड़ाई,” में इस दुष्ट दुनिया का नाश करेगा। (प्रकाशितवाक्य 16:14, 16) तब परमेश्वर एक नयी दुनिया लाएगा और इस तरह एक “नए आकाश और नई पृथ्वी” के बारे में अपना वादा पूरा करेगा। उस समय हम हमेशा-हमेशा के लिए इस विश्व के सम्राट और राजाओं के राजा, यहोवा की स्तुति करेंगे और उसकी महिमा करेंगे, क्योंकि वह सच्ची भविष्यवाणियों का परमेश्वर है। (2 पतरस 3:13) उस शानदार दिन के आने तक, आइए हम दिये समान परमेश्वर की भविष्यवाणी के वचन पर ध्यान देते हुए उसकी रौशनी में यूँ ही चलते रहें।
आप क्या जवाब देंगे?
• यीशु के रूपांतरण का वर्णन कीजिए।
• रूपांतरण हमारे विश्वास को किस तरह मज़बूत करता है?
• यहोवा का भोर का तारा क्या है और वह कब चमक उठा?
• हमें क्यों परमेश्वर की भविष्यवाणी के वचन पर ध्यान देना चाहिए?
[पेज 13 पर तसवीर]
क्या आप बता सकते हैं कि रूपांतरण के दर्शन का मकसद क्या था?
[पेज 15 पर तसवीर]
भोर का तारा उदय हो चुका है। क्या आप जानते हैं, कब और कैसे?