क्या आप पहले सेवा करते थे? क्या आप दोबारा सेवा करना चाहेंगे?
क्या आपने कभी मसीही मंडली में ज़िम्मेदारी के पद पर सेवा की है? हो सकता है, आप एक सहायक सेवक या प्राचीन रहे हों या शायद पूरे समय के सेवक। बेशक आपको अपने काम से गहरी खुशी और संतोष मिला होगा। मगर फिर किसी वजह से आपको वह ज़िम्मेदारी छोड़नी पड़ी।
शायद आपने परिवार की देखभाल करने के लिए ऐसा फैसला लिया हो। या हो सकता है कि ढलती उम्र या खराब सेहत इसकी वजह रही हो। ऐसा कदम उठाने का यह मतलब नहीं कि आप परमेश्वर की सेवा में नाकाम हो गए। (1 तीमु. 5:8) पहली सदी का फिलिप्पुस एक मिशनरी था, मगर बाद में वह अपने परिवार की देखभाल करने के लिए कैसरिया में जा बसा। (प्रेषि. 21:8, 9) जब प्राचीन इसराएल का राजा दाविद बूढ़ा हो चला, तब उसने अपने बेटे सुलैमान को अपनी जगह राजा बनाया। (1 राजा 1:1, 32-35) हालाँकि फिलिप्पुस और दाविद को अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी छोड़नी पड़ी, लेकिन उनके लिए यहोवा का प्यार कम नहीं हुआ और आज भी लोग उनका नाम आदर से लेते हैं।
लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि किसी गलत चालचलन या घरेलू समस्याओं की वजह से आपसे ज़िम्मेदारी या सुअवसर ले लिया गया हो। (1 तीमु. 3:2, 4, 10, 12) शायद आपको यह भी लगा हो कि आपसे ज़िम्मेदारी लेकर भाइयों ने सही नहीं किया और उस बात को लेकर आप आज तक नाराज़ हों।
दोबारा ज़िम्मेदारी पाने के लिए आप आगे बढ़ सकते हैं
क्या एक बार ज़िम्मेदारी गँवाने का यह मतलब है कि वह आपको दोबारा नहीं मिल सकती? मिल सकती है। लेकिन ज़िम्मेदारी के पद पर दोबारा सेवा करने के लिए आपमें उसे पाने की चाहत होनी चाहिए। (1 तीमु. 3:1) ऐसी चाहत क्यों होनी चाहिए? क्योंकि आप यहोवा और उसके लोगों से प्यार करते हैं। जी हाँ, वही प्यार जिसकी वजह से आपने यहोवा को अपना समर्पण किया था। अगर आप फिर से ज़िम्मेदारी उठाकर वह प्यार दिखाना चाहते हैं, तो यहोवा आपके उस तजुरबे को काम में ला पाएगा जो आपने ज़िम्मेदारी गँवाने से पहले और बाद में हासिल किया।
ज़रा याद कीजिए कि जब इसराएल जाति ने अपनी गलती की वजह से यहोवा के साथ अपना खास रिश्ता गँवा दिया, तो यहोवा ने क्या भरोसा दिलाया: “मैं यहोवा बदलता नहीं; इसी कारण, हे याकूब की सन्तान तुम नाश नहीं हुए।” (मला. 3:6) यहोवा इसराएलियों से बेहद प्यार करता था और उन्हें आगे भी इस्तेमाल करना चाहता था। यहोवा को आपमें भी दिलचस्पी है। लेकिन सवाल है कि अभी जब आपके पास मंडली की कोई ज़िम्मेदारी नहीं, तब आप क्या कर सकते हैं? आप परमेश्वर के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करने पर ध्यान दे सकते हैं। क्योंकि परमेश्वर का काम करने के लिए काबिलीयत से ज़्यादा उसके साथ एक अच्छा रिश्ता होना ज़रूरी है।
विश्वास में ‘शक्तिशाली बनते जाने’ के लिए आपको ‘यहोवा और उसकी सामर्थ को खोजना’ होगा। (1 कुरिं. 16:13; भज. 105:4) ऐसा करने का एक तरीका है, सच्चे दिल से प्रार्थना करना। जब आप यहोवा से अपने हालात के बारे में प्रार्थना करते हैं, तो खुलकर अपनी भावनाएँ ज़ाहिर कीजिए और उससे पवित्र शक्ति माँगिए। इस तरह आप यहोवा के करीब आएँगे और मज़बूत होंगे। (भज. 62:8; फिलि. 4:6, 13) यहोवा के साथ अपने रिश्ते को मज़बूत करने का एक और तरीका है, परमेश्वर के वचन का अच्छे से अध्ययन करना। जब आपके पास ज़िम्मेदारियाँ थीं, तब आपके लिए नियमित तौर पर निजी और पारिवारिक अध्ययन करना मुश्किल रहा हो। लेकिन अब, जब आपके पास उतनी ज़िम्मेदारियाँ नहीं, तो शायद आपको अध्ययन के लिए ज़्यादा वक्त मिले।
भले ही आपसे कोई सुअवसर या ज़िम्मेदारी ले ली गयी हो, लेकिन आप अब भी यहोवा के एक साक्षी हैं। (यशा. 43:10-12) हमें इससे बड़ा सम्मान और क्या मिल सकता है कि हम “परमेश्वर के सहकर्मी हैं।” (1 कुरिं. 3:9) प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना एक बेहतरीन तरीका है जिससे आपका और यहोवा का रिश्ता मज़बूत होगा। साथ ही आप प्रचार में अपने साथियों को भी यहोवा के साथ मज़बूत रिश्ता बनाने में मदद दे पाएँगे।
अपनी भावनाओं पर काबू पाना
जब आपसे कोई ज़िम्मेदारी ले ली जाती है, तो आपके मन में शर्मिंदगी या पछतावे की भावना आ सकती है। या शायद आप ज़िम्मेदार भाइयों को अपनी सफाई देने की कोशिश करें। लेकिन तब क्या, जब आपकी सफाई सुनने के बाद भी उन्हें लगता है कि उनका फैसला सही है? ऐसे में शायद आप उन भाइयों से नाराज़ हो जाएँ। अगर आप नाराज़गी पाले रहेंगे, तो आप दोबारा ज़िम्मेदारी पाने के लिए आगे नहीं बढ़ेंगे और न ही अपनी गलती से सीखेंगे। हम अपनी भावनाओं पर काबू कैसे पा सकते हैं, यह जानने के लिए आइए अय्यूब, मनश्शे और यूसुफ की मिसाल पर ध्यान दें।
कुलपिता अय्यूब के पास कई सुअवसर थे। वह दूसरों की तरफ से यहोवा को बलिदान चढ़ाता और उनके लिए प्रार्थना करता था। वह अपने समाज में एक प्राचीन और न्यायी भी था। (अय्यू. 1:5; 29:7-17, 21-25) मगर फिर एक ऐसा वक्त आया जब उसकी दौलत, बच्चे और सेहत सबकुछ छिन गया। इसके साथ ही लोगों ने उसकी इज़्ज़त करना छोड़ दिया। इस बारे में अय्यूब ने कहा: “जिनकी अवस्था मुझ से कम है, वे मेरी हंसी करते हैं।”—अय्यू. 30:1.
अय्यूब को लगा कि उस पर जो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है, उसमें उसका कोई दोष नहीं और वह परमेश्वर के सामने अपनी सफाई पेश करना चाहता था। (अय्यू. 13:15) मगर इंसाफ के लिए वह यहोवा के समय का इंतज़ार करने को तैयार था। उसे इसके अच्छे नतीजे मिले। अय्यूब ने सीखा कि खासकर आज़माइश के वक्त उसने जैसा रवैया दिखाया उसके लिए उसे ताड़ना की ज़रूरत है। (अय्यू. 40:6-8; 42:3, 6) उसने परमेश्वर की ताड़ना कबूल करके नम्रता दिखायी। इस वजह से आगे चलकर उसे परमेश्वर ने बेशुमार आशीषें दीं।—अय्यू. 42:10-13.
लेकिन तब क्या जब आपकी किसी गलती की वजह से आपको ज़िम्मेदारी गँवानी पड़ी? शायद आप सोचें कि क्या यहोवा और मेरे मसीही भाई मुझे कभी माफ करेंगे? यहूदा के राजा मनश्शे के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसने “ऐसे बहुत से काम किए जो यहोवा की दृष्टि में बुरे हैं, और जिन से वह क्रोधित होता है।” (2 राजा 21:6) मगर अपनी मौत के वक्त मनश्शे एक वफादार सेवक और यहूदा का राजा था। आखिर उसमें यह बदलाव कैसे आया?
पहले-पहल तो मनश्शे ने यहोवा की चेतावनियों पर कान नहीं दिया। इसलिए यहोवा ने अश्शूरियों को यहूदा पर चढ़ाई करने और मनश्शे को ज़ंजीरों में बाँधकर बैबिलोन ले जाने दिया। वहाँ मनश्शे ने “अपने प्रभु-परमेश्वर की कृपा के लिए विनती की। उसने अपने पूर्वजों के परमेश्वर के सम्मुख स्वयं को अत्यधिक विनम्र और दीन किया। उसने प्रभु से प्रार्थना की।” मनश्शे को अपने किए पर सच्चा पछतावा था और उसने अपनी गलती सुधारने के लिए कदम उठाए। नतीजा, यहोवा ने उसे माफ कर दिया और उसका राजपाट लौटा दिया।—2 इति. 33:12, 13, नयी हिन्दी बाइबिल।
आप जिन ज़िम्मेदारियों से हाथ धो बैठते हैं आम तौर पर वे आपको फौरन वापस नहीं मिलतीं। मगर समय के गुज़रते शायद आपको एकाध ज़िम्मेदारी दी जाए। इन्हें कबूल करने और निभाने में अपना भरसक करने से आगे चलकर आपको और भी ज़िम्मेदारियाँ मिल सकती हैं। इसका यह मतलब नहीं कि अब सबकुछ ठीक हो जाएगा। हो सकता है, आपको कुछ निराशाओं का सामना करना पड़े। फिर भी अगर आप ज़िम्मेदारी लेने के लिए हमेशा तैयार रहें और उसे निभाने में लगे रहें तो आपको अच्छे नतीजे मिलेंगे।
याकूब के बेटे यूसुफ की मिसाल लीजिए। सत्रह साल की उम्र में उसके भाइयों ने उसे गुलामी में बेच दिया। (उत्प. 37:2, 26-28) उसे अपने भाइयों से ऐसी उम्मीद नहीं थी। मगर वह अपने हालात से समझौता करने को तैयार था और यहोवा की आशीष से उसे अपने मालिक के “घर का अधिकारी” बनाया गया। (उत्प. 39:4) बाद में यूसुफ को जेल में डाल दिया गया। वहाँ वह विश्वासयोग्य साबित हुआ और यहोवा उसके साथ था, इसलिए उसे जेल की देखरेख का ज़िम्मा सौंपा गया।—उत्प. 39:21-23.
यूसुफ यह नहीं जानता था कि उसने जेल में जितने साल बिताए उसके पीछे यहोवा का एक मकसद था। यूसुफ ने तो महज़ वही किया जो वह उन हालात में कर सकता था। इस वजह से यहोवा ने उसका इस्तेमाल कर वादा किए वंश के गोत्र को बरकरार रखा। (उत्प. 3:15; 45:5-8) यूसुफ ने यहोवा के मकसद में जो अहम भूमिका निभायी, वैसी भूमिका शायद हम न निभाएँ। लेकिन उसकी कहानी से पता चलता है कि यहोवा के सेवकों को जो सुअवसर मिलते हैं, उनमें यहोवा का हाथ होता है। यूसुफ की मिसाल पर चलकर आइए हम यहोवा से सुअवसर पाने का मौका हमेशा खुला रखें।
अपनी मुश्किलों से सीखना
अय्यूब, मनश्शे और यूसुफ को मायूस कर देनेवाले हालात का सामना करना पड़ा। यहोवा ने उनके साथ ऐसा होने की इजाज़त दी थी और उन तीनों ने इसे कबूल किया। इस वजह से वे अपने हालात से अनमोल सबक सीख पाए। क्या आप भी अपने हालात से कुछ सीख सकते हैं?
यह समझने की कोशिश कीजिए कि यहोवा आपको क्या सिखाना चाहता है। दुख झेलते-झेलते अय्यूब कुछ समय के लिए स्वार्थी बन गया था और अहम मसलों को भूल गया था। लेकिन जब यहोवा ने उसे प्यार से सुधारा तो वह अपना नज़रिया ठीक कर पाया। उसने कबूल किया: “मैं ने तो जो नहीं समझता था वही कहा।” (अय्यू. 42:3) अगर ज़िम्मेदारी गँवाने पर आपको ठेस लगी है, तो ‘अपने आपको जितना समझना चाहिए, उससे बढ़कर न समझें, बल्कि उतना ही समझें, ताकि स्वस्थ मन हासिल कर सकें।’ (रोमि. 12:3) हो सकता है, यहोवा आपको सुधारने की कोशिश कर रहा हो, मगर फिलहाल आप उसके तरीके को पूरी तरह नहीं समझ पा रहे हों।
अनुशासन कबूल कीजिए। मनश्शे को शुरू-शुरू में लगा होगा कि उसे जो सज़ा मिल रही है, वह जायज़ नहीं है। फिर भी उसने परमेश्वर का अनुशासन कबूल किया, पश्चाताप दिखाया और गलत रास्ते पर चलना छोड़ दिया। आपको जो अनुशासन दिया गया है उसके बारे में आप चाहे जैसा भी महसूस करें, लेकिन अगर आप ‘यहोवा की नज़रों में खुद को नम्र करेंगे तो वह आपको ऊँचा करेगा।’—याकू. 4:10; 1 पत. 5:6.
सब्र रखिए और सीखने के लिए तैयार रहिए। यूसुफ के साथ जो हुआ, उससे वह बड़ी आसानी से दिल में नफरत और बदले की भावना पाल सकता था। मगर उसने ऐसा नहीं किया। उलटा उसने गहरी समझ और दया जैसे गुण पैदा किए। (उत्प. 50:15-21) अगर किसी ने आपको निराश किया है, तो सब्र रखिए और यहोवा से प्रशिक्षित होने के लिए तैयार रहिए।
तो फिर, क्या आपने कभी मसीही मंडली में ज़िम्मेदारी के पद पर सेवा की है? यहोवा को मौका दीजिए कि वह आगे चलकर आपको ज़िम्मेदारियाँ सौंपे। उसके साथ अपने रिश्ते को मज़बूत कीजिए। सब्र और नम्रता दिखाकर अपनी भावनाओं पर काबू पाइए। आपको जो भी काम या ज़िम्मेदारी दी जाती है, उसे खुशी-खुशी कबूल कीजिए। भरोसा रखिए कि “जो लोग खरी चाल चलते हैं, उन से [यहोवा] कोई अच्छा पदार्थ रख न छोड़ेगा।”—भज. 84:11.
[पेज 30 पर बड़े अक्षरों में लेख की खास बात]
सच्चे दिल से प्रार्थना कीजिए और विश्वास में शक्तिशाली बनते जाइए
[पेज 31 पर तसवीर]
यहोवा के साथ अपना रिश्ता मज़बूत करने का एक बेहतरीन तरीका है, प्रचार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना
[पेज 32 पर तसवीर]
यहोवा को मौका दीजिए कि वह आगे चलकर आपको ज़िम्मेदारियाँ सौंपे